जयपुर राजस्थान जाएँ तो क्या क्या खरीद कर लायें?

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खरीददारी हेतु मेरे प्रिय स्थलों की सूची में जहां एक ओर पुरानी दिल्ली के बाजार हैं तो दूसरी ओर जयपुर के बाजारों का भी प्रमुख स्थान है। विभिन्न रंगों से परिपूर्ण जयपुर के बाजार आपको अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जयपुर के बाजार वस्त्रों, परिधानों, चादरों, रजाइयों, आभूषणों, कठपुतलियों इत्यादि से भरे हुए हैं। अपनी जयपुर यात्रा के समय आप इनमें से इच्छित वस्तुएं स्मृति चिन्ह स्वरुप ले जा सकते हैं। चूंकि जयपुर एक अत्यंत सुनियोजित नगरी है, इसकी गुलाबी गलियों में घूमते, खरीददारी करने का आनंद कुछ और ही है।

जयपुर में क्या खरीदें जयपुर में पारंपरिक एवं आधुनिक संस्कृति का अद्भुत संगम है। जहां एक ओर पारंपरिक हाट बाजार हैं तो दूसरी ओर ‘अनोखी’ तथा ‘सोमा’ जैसे स्वयं के ब्रांड भी हैं जहां आधुनिकता की ओर परिवर्तित होती संस्कृति के भी दर्शन होते हैं।

संक्षेप में यह कहना उचित होगा कि यदि आप जयपुर से स्मृति चिन्ह  ले जाना चाहें तो आपकी झोली चटक रंगों में रंगी परंपरागत, साथ ही उपयोगी वस्तुओं से भर जायेगी।

जयपुर जाएँ तो क्या लायें खरीद कर

प्रस्तुत है जयपुर में खरीदने योग्य सर्वोत्कृष्ट वस्तुओं की मेरी सूची-

लहरिया साड़ी

राजस्थान की प्रसिद्द लहरिया साडी
राजस्थान की प्रसिद्द लहरिया साडी

लहरिया एक अभिकल्पना है जिसकी व्युत्पत्ति लहर शब्द से हुई है। लहरिया साड़ियों में इसी लहर के आकार की रूपरेखा है जिसमें कम से कम दो रंगों का उपयोग किया जाता है। एक साड़ी का मूल रंग होता है तथा दूसरे रंग द्वारा इस पर अनियमित तिरछी पट्टियां रंगी जाती हैं जो लहरों का आभास कराती हैं। यह रूपरेखा साड़ियों पर अत्यंत मनमोहक प्रतीत होती है। लहरिया साड़ियाँ हर संभव रंग संयोजन एवं हर संभव प्रकार के मूलवस्त्रों में उपलब्ध हैं। फलतः यह हर संभव मूल्य सीमाओं में उपलब्ध है। २००/- रुपये मल्य की सादी लहरिया साड़ियों से लेकर २०,०००/- रुपये मूल्य तक की जार्जेट अथवा क्रेप की लहरिया साड़ियाँ यहाँ उपलब्ध हैं।

 साड़ी लेने करने की इच्छा न हो तो आप लहरिया दुपट्टा भी ले सकती हैं।

पाश्चात्य परिधान धारण करने की इच्छा रखने वाले, इसे स्टोल की तरह ओढ़ कर अपने परिधान की शोभा बढ़ा सकते हैं।

लहरिया वस्त्र आप जयपुर के किसी भी बाजार से क्रय कर सकते हैं। जौहरी बाजार एवं बापू बाजार उनमें से दो प्रसिद्ध बाजारों के नाम हैं।

बांधनी कार्य से सजी वस्तुएं

बांधनी या पुलकबंद
बांधनी या पुलकबंद

बांधनी राजस्थान की प्रमुख कला शैलियों में से एक है। यह राजस्थान की पहचान है। बांधनी अथवा बन्देज एक थका देने वाली लंबी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत, वस्त्र पर वांछित अभिकल्प प्राप्त करने हेतु योग्य स्थानों पर थोड़े थोड़े भागों को बांधा जाता है और मनचाहे रंग से रंगा जाता है। सूखने के पश्चात जब धागों को खोला जाता है तब बंधे स्थानों को छोड़, अन्य स्थान नवीन रंग में रंग जाते हैं। इसी तरह वस्त्रों पर मनचाही आकृति तैयार की जाती है। सरल तथापि मनमोहक छवि प्राप्त करने के पश्चात ही हमें इसके पीछे उठाये गए कष्ट का मूल्य ज्ञात होता है। बांधनी का एक प्राचीन नाम पुलकबंद भी है।

क्या आप जानते हैं कि यह बांधनी शैली अजंता के चित्रों में भी दृष्टिगोचर होते हैं।

बांधनी हर संभव रंग तथा हर संभव रूपरेखा में उपलब्ध हैं जो आप सब के भिन्न भिन्न रूचियों पर खरा उतरने में सक्षम है। मेरा सुझाव है कि बने बनाए परिधानों के स्थान पर, बांधनी वस्त्र खरीदें एवं अपनी इच्छानुसार उसे भिन्न भिन्न परिधानों में परिवर्तित करें।

बांधनी वस्त्रों एवं परिधानों के अंतर्गत पुरुषों हेतु बंधनी की पगड़ियां उत्तम स्मृतिचिन्ह हो सकते हैं।

बांधनी वस्त्र एवं परिधान आप जौहरी बाजार, बापू बाजार या इस तरह के किसी भी अन्य बाजार से खरीद सकते हैं।

जयपुर की मीनाकारी

बांधनी की तरह मीनाकारी भी जयपुर की प्रमुख कला शैलियों में से एक है जहां धातु पर रंगों से चित्रकारी की जाती है। जयपुर की मीनाकारी, झुमके एवं लोलक जैसे आभूषणों के साथ साथ विभिन्न कलाकृतियों की सुन्दरता को भी चार चाँद लगा देती है। परम्परागत रूप से मीनाकारी केवल लाल एवं हरे रंग में ही की जाती थी। यद्यपि वर्तमान में अन्य रंगों का भी प्रयोग किया जाता है। नीले एवं गुलाबी जैसे लुभावने रंगों में भी मीनाकारी वस्तुएं उपलब्ध हैं।

मीनाकारी से बने मोर
मीनाकारी से बने मोर

अतः ये भव्य एवं हलके वजन के आभूषण जयपुर के सर्वोत्कृष्ट स्मृतिचिन्ह हो सकते हैं।

जयपुर में उपलब्ध गुलाबी मीनाकारी की वस्तुओं के सम्बन्ध में उल्लेख करना चाहूंगी कि यह गुलाबी मीनाकारी मूलतः वाराणसी की देन है। वाराणसी में गुलाबी मीनाकारी पर व्यापक कार्य किया जाता है।

मीनाकारी वस्तुओं में मेरी व्यक्तिगत पसंद है छोटी छोटी चटक रंगों में रंगी धातु की कलाकृतियाँ। मीनाकारी में बनी मोर की प्रतिमा अत्यंत मनमोहक है। गणेश की एक प्रतिमा ने मेरा मन इतना मोह लिया कि मैंने जयपुर की मीनाकारी के स्मृतिचिन्ह के रूप में उसे ही चुन कर अपने साथ ले आयी।

कुंदनकारी

कुंदन बिना तराशी मणियों द्वारा निर्मित आभूषण है जो मूलतः राजस्थान के राजपरिवारों की स्त्रियों में अत्यंत प्रचलित थे। बिना तराशी एवं अनियमित आकार की मणियों को सोने में जड़कर आकर्षक आभूषण निर्मित किये जाते हैं। श्वेत पारदर्शी मणि एवं सोने के सुनहरे रंग का संयोजन प्रायः त्वचा की हर रंगत को निखारने में सक्षम है। बड़े आकार की इन मणियों से निर्मित कुंदन आभूषण सामान्य व्यक्ति को भी राजसी आभा प्रदान कर देती हैं।

कुंदन या पोलकी के गहने
कुंदन या पोलकी के गहने

मेरे व्यक्तिगत मतानुसार दैनिक उपयोग हेतु कुंदन आभूषणों का वजन अनुकूल नहीं है। यद्यपि विवाह समारोह जैसे सुअवसरों में धारण करने हेतु यह भव्य आभूषण है। भारतीय पारंपरिक परिधान, साड़ी एवं लहंगे के साथ इनका मेल सर्वोत्कृष्ट है।

जयपुर के कुंदन हारों की एक और विशेषता यह है कि इसके उलटी बाजू में मीनाकारी की जाती है। अतः आप इसे उल्टा भी धारण कर सकते हैं। अर्थात् आभूषण एक, रूप अनेक!

मुझे कुंदनकारी अत्यंत आकर्षित करती हैं किन्तु वजन अधिक होने के कारण इसे धारण करने में मुझे किंचित असुविधा होती है। मेरी तीव्र अभिलाषा है कि कोई हलके वजन के कुंदन आभूषणों की शीघ्र रचना करे।

आप इन्हें अमेज़न पर भी देख सकते हैं

रत्न जवाहरात

जमुनिया या जंबू मणि - उपरत्न
जमुनिया या जंबू मणि – उपरत्न

जयपुर अपने रत्नों के व्यापार हेतु जग प्रसिद्ध है। हवामहल के समीप स्थित जौहरी बाजार की गलियों में भ्रमण करते समय आपको जयपुर के रत्नों के खजाने के दर्शन होंगे। यहाँ कई दुकानें हैं जहां से आप भिन्न भिन्न प्रकार के रत्नों खरीद सकते हैं। मेरा सुझाव है कि यहाँ आप मोलभाव करने के पश्चात ही खरीदें। जयपुर एक पर्यटन नगरी है। अतः यहाँ वस्तुओं की विक्री उन्हें ध्यान में रख कर ही की जाती है। इसके फलस्वरूप दुर्भाग्य से रत्नों के मूल्य अपेक्षाकृत अधिक दर्शाए जाते हैं।

घेवर – जयपुर का सर्वोत्कृष्ट मिष्ठान

घेवर
घेवर

घेवर जयपुर का पारंपरिक मिष्ठान है जिसे परंपरा अनुसार वर्षा ऋतु में आने वाले तीज के त्यौहार के अवसर पर बनाया जाता था। इस अवसर पर उपवास करती पुत्रियाँ एवं पुत्रवधुओं हेतु यह मिठाई भिजवाई जाती थी। इसके स्वादिष्ट स्वाद के कारण वर्तमान में जयपुर में यह प्रत्येक ऋतु में बनाई एवं बेची जाती है।

यदि आप मीठी वस्तुएं कम खाते हों तब भी आप इसका स्वाद अवश्य चखिए। जयपुर में निर्मित घेवर का स्वाद सर्वोत्कृष्ट है। मीठा पसंद करने वाले आपके परिवारजनों, रिश्तेदारों एवं मित्रों हेतु यह एक स्वादिष्ट स्मृति चिन्ह हो सकते हैं।

चूरमा

आपने राजस्थान के प्रसिद्ध दाल बाटी और चूरमा के विषय में अवश्य सुना होगा। यही चूरमा अब जयपुर में सुन्दर एवं सुडौल डब्बों में बंद कर बेचे जाते हैं जिसे आप आसानी से अपने संग ले जा सकते हैं। इसके विषय में जितना मुझे ज्ञान है, उसके अनुसार यह कई दिनों तक ताजा बना रहता है। घेवर के विपरीत इसे कई दिनों तक रखा जा सकता है।

चूरमा को स्वादिष्ट एवं पाचक बनाने हेतु पर्याप्त मात्र में घी का उपयोग किया जाता है। जिव्हा को आनंदित करने वाल चूरमा कदाचित अधिक सेवन करने पर वजन संयम में घातक हो सकता है।

कठपुतलियां

राजस्थान में आप कहीं भी जाएँ, आपको कठपुतली का नृत्य देखने का अवसर अवश्य प्राप्त होगा। फिर वह बड़े बड़े सितारा होटलों में भव्य प्रदर्शन हो या रंगशाला का सार्वजनिक प्रदर्शन अथवा गली गली के छोटे छोटे प्रदर्शन। इसी कड़ी में जयपुर में भी कठपुतली के नृत्य का प्रदर्शन कई स्थानों में किया जाता है। जयपुर नगरी में आप कहीं भी भ्रमण करें, कठपुतली विक्रेता आपको कठपुतली बेचने आपके समक्ष प्रस्तुत हो जाते हैं।

मनभावन कठपुतलियाँ
मनभावन कठपुतलियाँ

मेरे मतानुसार ये कठपुतलियाँ गृहसज्जा में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती हैं। घरों के प्रवेशद्वार पर रंगबिरंगी कठपुतलियाँ अतिथियों का स्वागत कर उनका मन प्रसन्न कर देती हैं। इसके अलावा आपके घर के नन्हे मुन्नों हेतु ये मनपसंद खिलौने हो सकते हैं। यहाँ तक कि आप उन्हें प्रेरित कर सकते हैं कि वे इन कठपुतलियों द्वारा स्वयं नृत्य नाटिका तैयार करें।

कठपुतलियों की एक जोड़ी का मूल्य १०० रुपये से आरम्भ होता है। अतः अत्यंत उपयोगी, मनोरंजक फिर भी कम मूल्य की ये कठपुतलियाँ आपके प्रियजनों हेतु उत्तम उपहार हो सकती हैं।

ठप्पा छपाई की चादरें

सांगानेर एवं बागरू की ठप्पा छपाई अपने उत्कृष्ट नमूनों एवं रूपरेखा के लिए प्रसिद्ध है। कई वर्षों पूर्व मैंने सांगानेर का दौरा किया था। उस समय मैंने वहां से ठप्पा छपाई से सजी चादरें खरीदी थीं जिसका उपयोग मैं आज भी करती हूँ। अतः सांगानेर की स्मृति मेरे मानसपटल में सदैव उपस्थित रहती है। जयपुर के अपने इस दौरे के समय जब मैंने आमेर किले के निकट ‘अनोखी संग्रहालय’ के दर्शन किये, वहां प्रदर्शित सांगानेर नगरी का नक्शा देख मन गदगद हो उठा।

ठप्पा छपाई का काम
ठप्पा छपाई का काम

आप जयपुर से, ठप्पा छपाई से अलंकृत चादरें अथवा कपड़े खरीद सकते हैं। इसकी खरीदी हेतु सर्वोत्तम स्थल सांगानेर ही है जहां आप खरीदी के साथ साथ छपाई का कार्य भी प्रत्यक्ष देख सकते हैं।

आप यह छपाई का कार्य स्वयं अपने घर पर भी कर सकते हैं। आपको केवल मनपसंद ठप्पे की आवश्यकता होगी। अतः आप स्वयं अथवा किसी कलाप्रेमी परिजन हेतु यह ठप्पे खरीदकर ले जा सकते हैं।

जयपुरी रजाईयाँ

जयपुरी रजाइयों के सम्बन्ध में सर्व विदित है कि यह रजाईयाँ हलके वजन के नर्म मुलायम कपास से बनी होती हैं। यह इतनी हलकी होती हैं कि इन्हें तह लगाकर एक छोटे बक्से में भी रखा जा सकता है। हमें जब भी किसी परिजन द्वारा जयपुर भ्रमण किये जाने की सूचना प्राप्त होती है, हमारे मन में जयपुरी रजाई की उम्मीद हिलोरे मारने लगती हैं। यद्यपि मेरे स्वस्थल गोवा में इसकी आवश्यकता नहीं होती, तथापि उत्तरी भारत में कई वर्षों के निवास के समय मैंने यहाँ की कड़ाके की ठण्ड का सामना इन्ही नर्म, गर्म एवं मुलायम रजाईयों की सहायता से किया था। वर्तमान में यह रजाईयां सूती के साथ साथ कई प्रकार के वस्त्रों के आवरण सहित उपलब्ध हैं। यद्यपि मेरी व्यक्तिगत रूचि मुलायम सूती आवरण सहित रजाईयों में है।

रंगों के सम्बन्ध में भी मेरी रूचि पारंपरिक श्वेत एवं नीलवर्ण अथवा श्वेत एवं गुलाबी रंग की छपाई में है। यह रजाईयां जयपुर के प्रत्येक बाजार में उपलब्ध हैं।

जयपुर की ‘ब्लू पॉटरी’

जयपुर में प्रसिद्ध चीनी मिटटी पर नीली चित्रकारी अर्थात् ‘ब्लू पॉटरी’ मूलतः जयपुर की कलाशैली नहीं है। गोवा की अजुलेजो टाइलों  की तरह ब्लू पॉटरी भी भारतीय कला ना होते हुए, शनैः शनैः जयपुर की मौलिक कला शैली में परिवर्तित हो गयी। जयपुर में इस कला से बर्तन इत्यादि बनाने के कई कार्यशालाएं हैं। इनमें से एक कार्यशाला के दर्शन का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ। आमेर रास्ते पर, जैन मंदिर के निकट स्थित जयपुर ब्लू पॉटरी कला केंद्र में मैंने इस कला का प्रत्यक्ष नमूना देखा। यह केंद्र इस कला पर एक लघु प्रदर्शन पर्यटकों हेतु आयोजित करता है। तत्पश्चात वे अपनी दुमंजिले प्रदर्शन कक्ष में भ्रमण की अनुमति प्रदान करते हैं।

मैंने देखा कि यह केंद्र रंगबिरंगे पात्रों से भरा पड़ा था। नीले एवं पीले रंगों का प्रयोग अधिक किया गया था। बर्तन, कढ़ाई, साबुनदानी, आभूषण, और यहाँ तक कि शतरंज की तरह खेलों के मंच भी यहाँ उपलब्ध हैं।

मेरे मित्रों ने मुझे पहले ही अनेक ब्लू पॉटरी की वस्तुएं भेट स्वरुप दी हैं। अतः मैंने केवल ब्लू पॉटरी में बने झुमके ही खरीदे।

लाख की चूड़ियाँ

भारत के प्रत्येक क्षेत्र में भिन्न भिन्न परंपरागत शैलियों में चूड़ियाँ बनायी जाती हैं। फिरोजाबाद में कांच की चूड़ियाँ, हैदराबाद में चमचमाते कांच के टुकड़ों से सज्ज लाख की चूड़ियाँ ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। जयपुर में भी लाख की चूड़ियाँ बनायी जाती हैं। यद्यपि उन्हें कुन्दनकारी से सजाया जाता है। पारंपरिक लाख की चूड़ियाँ लाल एवं हरे जैसे शुभ रंगों में उपलब्ध हैं।

भिन्न भिन्न रंगों एवं मापों में उपलब्ध ये चूड़ियाँ आपको चुनाव का सम्पूर्ण अवसर देती हैं। पतली चूड़ियों से लेकर भारी मोटे कड़ों से जयपुर के बाजार अलंकृत हैं जो प्रत्येक स्त्री अथवा कन्या की रूचि पर खरी उतरती हैं। आप ये चूड़ियाँ ऐसे ही किसी भी बाजार से ले सकती हैं।

लाख की चूड़ियाँ अमेज़न पर भी खरीद सकते हैं

जयपुरी गलीचे

जयपुर में ऊन एवं रेशमी धागों से आकर्षक गलीचे अथवा कालीन हाथ से बुने जाते हैं। भारत से हाथ से निर्मित सर्वाधिक निर्यातित वस्तुओं में जयपुर के यह प्रसिद्ध गलीचे भी सम्मिलित हैं। इन गलीचों की गुणवत्ता प्रति सेन्टीमीटर गाठों की संख्या से आंकी जाती है। अधिक गाठें अपेक्षाकृत श्रेष्ठ गुणवत्ता दर्शाती हैं तथा गलीचों को अपेक्षाकृत अधिक मूल्यवान बनाती हैं।

जयपुर के गलीचे
जयपुर के गलीचे

ऊष्ण प्रदेशों में रेशमी गलीचे तथा शीत प्रदेशों हेतु ऊनी गलीचे उपयुक्त हैं। गलीचे खरीदते समय इसका ध्यान रखना आवश्यक है।

गलीचे भी आपको जयपुर के किसी भी बाजार में प्राप्त हो जायेंगे। यद्यपि प्रमाणिक गुणवत्ता एवं सही मूल्य के गलीचों हेतु राष्ट्रीय हथकरघा भण्डार सर्वोत्तम स्थान है।

राजस्थानी लघु चित्रकारी

सम्पूर्ण राजस्थान अपनी लघु चित्रकारी हेतु प्रसिद्ध है। यहाँ कई संस्थान हैं जहां लघुचित्रकारी का ज्ञान प्रदान किया जाता है। इन लघु चित्रों की मूल प्रति अत्यंत मूल्यवान होते हुए हम में से कुछ की पहुँच से परे हो सकते हैं। यद्यपि पुराने सरकारी कागज़ पर बने लघु चित्र सस्ते दामों में उपलब्ध हैं। इन चित्रों के अन्य विकल्प हैं, संगमरमर के पट्ट पर की गयी लघु चित्रकारी अथवा रत्नों की धूलि से बने चित्र।

यदि आप देखना चाहें कि यह लघु चित्रकारी कैसे की जाती है, तो यह देखें।

रंगबिरंगी चमड़े की चप्पलें

रंग बिरंगी चमड़े की चप्पलें
रंग बिरंगी चमड़े की चप्पलें

रंगबिरंगे राजस्थान के रंग केवल वस्त्रों, रजाईयों अथवा गलीचों तक ही सीमित नहीं हैं। राजस्थान में निर्मित चप्पलें भी भिन्न भिन्न चटक रंगों में उपलब्ध हैं। आप चाहें तो रंगबिरंगी परन्तु सादी चप्पलें ले सकती हैं अथवा इच्छानुसार अलंकृत चप्पलें भी खरीद सकती हैं। एक समय में मैंने भी अपने प्रत्येक जयपुर दौरे पर ऐसी रंगबिरंगी चप्पलों की खूब खरीददारी की थी।

अंततः, आप जयपुर के बाजारों से चाहे जो खरीदें, इन रंगबिरंगी गलियों में भ्रमण का आनंद अवश्य प्राप्त करेंगे।

जयपुर की इन प्रसिद्ध वस्तुओं में से आपकी रूचि किसमें है, यह जानने की उत्सुकता मुझे निरंतर रहेगी।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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4 COMMENTS

  1. अनुराधाजी एवं मीताजी
    पिंक सिटी जयपुर का बाजार बहुत सुहावना है ये आपके सुंदर लेख से प्रतीत होता है. लहरिया साड़ियाँ आकर्षक लगीं. बाँधनी शैली अजंता के चित्रों से मिलती है जानकर आश्चर्य हुआ.
    मीनाकारी से बनी वस्तुएँ और मणियों से निर्मित कुंदन आभूषण सुंदर लगते हैं. जयपुर रत्नों के लिऐ जग प्रसिद्ध है पढ़कर खुशी हुई.
    लाख की चूड़ियाँ और कठपुतलियाँ सुहावनी लगी. मिठाईयाँ देखकर मन ललचाया.
    जानकारी से भरपूर लेख हेतु आपको अनेकानेक धन्यवाद.

  2. बन्धेज मुझे सबसे ज्यादा पसंद हैं मुझे जानकर अच्छा लगा कि इतनी सारी चीजों की जानकारी अपने हमको इस ब्लॉग में दी आशा हैं अब जब भी जयपुर जाना होगा इनमे से कुछ न कुछ जरूर लेकर आया जाएगा????

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