अप्रतिम सौंदर्य से परिपूर्ण, भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गोकर्ण एक प्राचीन तीर्थ क्षेत्र है। यह एक ओर समुद्र तथा तीन ओर पर्वतों से घिरा हुआ है। पुराणों में इस स्थान का उल्लेख शतश्रृंगी के नाम से किया गया है, जिसका अर्थ है, सौ सींगों के समान पहाड़ियों से घिरा स्थान। मैं जब गोकर्ण नगरी में प्राचीन मंदिरों एवं तीर्थों की खोज में भ्रमण कर रही थी, मैंने चारों ओर अनेक छोटी छोटी पहाड़ियों को देखा था। गोकर्ण की पावन भूमि दो ओर से गंगावल्ली एवं अघनाशिनी नदियों से तथा तीसरी ओर अरब सागर से घिरी हुई है। सम्पूर्ण नगरी में अनेक तीर्थ अथवा पवित्र जलकुंड हैं। उनमें विशालतम तीर्थ है कोटि तीर्थ, जो गोकर्ण नगरी का हृदयस्थल है। गोकर्ण में तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों, दोनों के लिए अनेक आकर्षण हैं। आईये गोकर्ण के इन्ही मणियों के विषय में जानते हैं।
गोकर्ण की कथा
महाभारत, गुरुचरित्र, गोकर्ण खंड जैसे अनेक हिन्दू साहित्यों में गोकर्ण का एक पवित्र स्थल के रूप में उल्लेख है। इसका नाम गोकर्ण कैसे पड़ा?
गोकर्ण नाम की व्युत्पत्ति
गोकर्ण से सम्बंधित इस कथा से इसके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में ज्ञात होता है। किसी समय पृथ्वी पर सर्वत्र जल ही जल व्याप्त था। भगवान नारायण क्षीरसागर में शेषशैय्या पर योगनिद्रा में लीन थे। उनकी नाभि से उत्पन्न कमल पुष्प से, सम्पूर्ण सृष्टि की रचना के उद्देश्य से, ब्रह्माजी का उद्भव हुआ। उन्होंने सर्वप्रथम अपने क्रोध से रूद्र की रचना की, जिन्हें उन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि का आदेश दिया। रूद्र पृथ्वी के गर्भ पाताललोक जाकर ध्यान मग्न हो गए। ब्रह्मा को यह आभास हुआ कि उन्हें ऐसे विश्व की आवश्यकता है जिसमें सत्वगुण, रजोगुण तथा तमोगुण तीनों हों। तब उन्होंने पितृ, पुरुष एवं प्रकृति की रचना की। इससे रूद्र क्रुद्ध हो गए तथा पाताललोक से ब्रह्मलोक की ओर कूच किया।
रूद्र के क्रोध से धरती माता भयभीत हो गयी। उन्होंने रूद्र से निवेदन किया कि वे उनके गर्भ से धीरे से निकलें। रूद्र ने उनके अनुनय को स्वीकार किया तथा अंगूठे का अतिलघु आकार लेकर धरती माता के कर्ण से बाहर आ गए। चूंकि धरती माता का एक नाम ‘गो’ भी है, यह घटना जिस स्थान पर हुई, उसका नाम गोकर्ण पड़ा। गोकर्ण के मुख्य महाबलेश्वर मंदिर के शिवलिंग को आदि-गोकर्ण कहते हैं, जिसे इस कथा का प्रमाण माना जाता है।
रावण एवं गोकर्ण
गोकर्ण की दूसरी कथा लंका के रावण से सम्बंधित है। कठोर तपस्या के उपरान्त रावण भगवान शिव के आत्मलिंग को उठाकर कैलाश पर्वत से लंका ले जा रहा है। भगवान शिव का कड़ा निर्देश था कि वह उस आत्मलिंग को उसी स्थान पर रखे जहां वह उसे स्थापित करना चाहता है। जैसे ही वह गोकर्ण पहुंचा, उसके संध्यावंदन का समय हो चुका था। उसी समय भगवान गणेश उसके समक्ष एक नन्हे बटुक के रूप में प्रकट हुए। संध्यावंदन समाप्ति तक रावण ने गणेश को वह आत्मलिंग सौंप दिया। किन्तु नन्हा बटुक आत्मलिंग का भार अधिक क्षण नहीं उठा पाया तथा उसे धरती पर रख दिया। इससे क्रुद्ध होकर रावण ने गणेश के शीष पर प्रहार किया।
आज भी वह लिंग गोकर्ण के प्रमुख मंदिर, गोकर्ण महाबलेश्वर में स्थापित है। समीप स्थित महागणपति मंदिर में गणेशजी की प्रतिमा के शीष पर उस प्रहार का चिन्ह है।
अयोध्या
तीसरी कथा अयोध्या के महाराज सागर की है जिनके ६०,००० पुत्रों को कपिलमुनि ने अग्नि में भस्म कर दिया था। महाराज सागर के वंशज भागीरथ ही गंगा को धरती पर लाये थे। ऐसी मान्यता है कि किसी काल में अनेक असुर समुद्र के भीतर निवास करते थे। रात्रि के समय वे बाहर आकर मानवों पर नाना प्रकार के अत्याचार करते थे। त्रस्त होकर वे अगस्त्य ऋषि के समक्ष गए तथा उनसे समुद्र का सम्पूर्ण जल ग्रहण करने का आग्रह किया ताकि असुर वहां से चले जाएँ। अगस्त्य ऋषि ने सागर का सम्पूर्ण जल पी लिया जिससे समुद्र तल सूख गया।
समुद्र देवता चिंतित हो गये तथा उन्होंने अगस्त्य ऋषि से सम्पूर्ण जल लौटाने का आग्रह किया। अगस्त्य ऋषि ने असमर्थता जताई क्योंकि वे समूचे जल को पचा चुके थे। तदनंतर समुद्र देव गोकर्ण आये तथा एक शिवलिंग की रचना कर भगवान् शिव की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिए कहा। समुद्र देव ने अपना सम्पूर्ण जल पुनः प्राप्त करने की अभिलाषा की। भगवान शंकर ने कहा कि जब महाराज सागर के वंशज, भागीरथ गंगा को धरती पर लायेंगे, तब उसे भी उसका जल पुनः प्राप्त हो जाएगा। इसी कारण गोकर्ण के जल को गंगा के समान पावन माना जाता है। इस सागरेश्वर शिवलिंग को आप महाबलेश्वर मंदिर के बाहर, एक छोटे से मंदिर के भीतर देख सकते हैं।
परशुराम
गोकर्ण से सम्बंधित चौथी कथा में जमदग्नि एवं रेणुका के पुत्र परशुराम का उल्लेख है जिन्होंने परशु से वार कर समुद्र के जल को पीछे धकेल दिया था, जिसके कारण कोंकण तट अस्तित्व में आया। ऐसी मान्यता है कि परशुराम ने गोकर्ण में खड़े होकर समुद्र की ओर अपना परशु फेंका था। वस्तुतः, यह कथा आप कोंकण तट के लगभग सभी क्षेत्रों में सुनेंगे। महाबलेश्वर मंदिर के भीतर जमदग्निश्वर नामक एक शिवलिंग भी स्थापित है जो आप देख सकते हैं।
पांचवीं कथा के अनुसार दिव्य गौमाता सुरभि ने यहीं तपस्या की थी। उन्होंने जिस शिवलिंग का अभिषेक किया था, उसे सुर्भेश्वर कहते हैं।
गोकर्ण के पवित्र स्थल
गोकर्ण की छोटी सी पावन नगरी में छोटे-बड़े अनेक मंदिर एवं तीर्थ हैं।
महाबलेश्वर मंदिर परिसर
महाबलेश्वर मंदिर गोकर्ण का मुख्य मंदिर है। इसके भीतर आत्मलिंग स्थापित है। आत्मलिंग को चाँदी के आवरण से ढका है जिसके ऊपर स्थित छिद्र के द्वारा आप लिंग को स्पर्श कर सकते हैं। विशेष समयकाल में आप आवरण विहीन लिंग के भी दर्शन कर सकते हैं।
यह गोकर्ण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिर के भीतर देवी एवं गणेश के भी विग्रह हैं। मंदिर के समीप मुझे एक वीरगल भी दृष्टिगोचर हुआ। वीरगल का अर्थ है, वीरों की स्मृति में स्थापित शिलास्तंभ। एक ओर स्थित अतिरिक्त प्रवेशद्वार के बाहर भी कुछ वीरगल थे जिस पर नाग शिल्प थे।
मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों को केवल धोती एवं उपवस्त्र धारण करना पड़ता है। स्त्रियाँ कोई भी भारतीय परिधान धारण कर सकती हैं।
आदि-गोकर्ण मंदिर
मुख्य मंदिर से यदि आप दक्षिणावर्त आयें तो सर्वप्रथम मंदिर आदि-गोकर्ण मंदिर है। इसके भीतर एक प्राचीन लिंग है। शिवलिंग तक पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं। इस शैल मंदिर के चारों ओर लकड़ी के सुन्दर फलक लगाए हुए हैं। कुछ समय पूर्व ही इसका नवीनीकरण किया गया है।
स्कंदेश्वर मंदिर
एक लघु मंदिर के भीतर यह एक प्राचीन शिवलिंग है। इसके तीन ओर स्थित खिड़कियों पर स्वस्तिक बने हुए हैं।
वीरभद्र मंदिर
दक्षिणावर्त ही आगे बढ़ेंगे तो आप उजले पीले रंग का एक वीरभद्र मंदिर देखेंगे। यह भगवान शिव का ही रूप है जिसने दक्ष के यज्ञ को नष्ट किया था।
ताम्र गौरी मंदिर
ताम्र गौरी गोकर्ण की अधिष्ठात्री शक्ति हैं। उनका मंदिर महाबलेश्वर मंदिर के पृष्ठ भाग में है। ऐसी मान्यता है कि शंकरजी के पीछे पीछे गौरी ताम्रंचल पर्वत से यहाँ तक पहुँच गयी थीं। इसीलिए उन्हें ताम्र गौरी कहा जाता है। उनके हाथों में एक तराजू होता है। लोगों की मान्यता है कि वे वाराणसी एवं गोकर्ण के सद्गुणों की तुलना कर रही हैं। उनका गोकर्ण में होना यह दर्शाता है कि गोकर्ण के सद्गुण अधिक हैं।
ताम्र गौरी मंदिर के समीप ताम्र कुण्ड है जिसका उपयोग केवल अस्थिविसर्जन के लिए किया जाता है। महात्मा गाँधी के अस्थियों का एक भाग यहाँ भी विसर्जित किया गया था।
गौतमेश्वर मंदिर
ऐसा माना जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना एवं आराधना गौतम ऋषि द्वारा की गयी थी। यह शिवलिंग केवल एक पीठिका पर स्थापित है।
दत्तात्रय मंदिर
महाबलेश्वर मंदिर की भित्ति पर एक छोटा सा दत्तात्रय मंदिर है। इसके भीतर एक पादुका पीठ है जिस पर दत्त महाराज की पादुकाएं हैं। भीतर दत्तात्रय की एक प्रतिमा भी है।
महागणपति मंदिर
महागणपति मंदिर अथवा द्विभुज गणपति मंदिर गोकर्ण के आत्मलिंग से केवल ४० पग दूर है। यह महाबलेश्वर मंदिर के लगभग बाहर ही स्थित है। अप्रतिम नारगी रंग का यह मंदिर ठेठ कोंकण शैली में निर्मित है।
मंदिर के भीतर द्विभुज गणपति की प्रतिमा स्थापित है।
भित्तियों पर कुछ प्राचीन शिल्प हैं जो रामायण के दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं।
मंदिर के एक ओर स्थित सड़क कोटि तीर्थ तक जाती है। यहाँ गायत्री तीर्थ नामक एक अन्य तीर्थ भी है।
इन्द्रेश्वर लिंग
महागणपति मंदिर एवं मुख्य मंदिर के अतिरिक्त द्वार के मध्य, यह मंदिर लगभग सड़क पर ही स्थित है।
सगरेश्वर मंदिर
मुख्य मंदिर में प्रवेश करते समय, मुख्य मंदिर के बाहर स्थित इस छोटे से मंदिर पर आपकी दृष्टी अवश्य पड़ेगी। समीप स्थित ब्राह्मण के एक सुन्दर से निवास को देखाना ना भूलें।
महाबलेश्वर मंदिर परिसर के चारों ओर रंगबिरंगे सुन्दर निवास हैं। उन पर सुन्दर चित्रकारी की हुई है। उन्हें भी अवश्य निहारें।
वाहन मार्ग पर स्थित मंदिर
वाहन मार्ग गोकर्ण का एक मुख्य मार्ग है।
अहिल्या बाई होलकर मंदिर
मुख्य मंदिर के पृष्ठभाग में, जैसे ही आप वाहन मार्ग पर जायेंगे, आप चारों ओर अनेक छोटे-बड़े मंदिर देखेंगे। उनमें से इस मंदिर की सादगी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। इसके भीतर एक लिंग स्थापित है। समीप ही, हाथों में एक लिंग उठाये, मालवा की महारानी अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा है।
सूर्य नारायण मंदिर
यह सूर्य को समर्पित एक लघु मंदिर है।
वेंकटरमण मंदिर
यह अपेक्षाकृत विशाल मंदिर है जिसके ऊपर कमल के पुष्प के आकार का एक विशेष शिखर है। मंडप के स्तंभों पर विष्णु पुराण से सम्बंधित घटनाएँ उत्कीर्णित हैं।
मुख्य मंदिर के क्षेत्र को कोटि तीर्थ से जोड़ते दो मार्ग हैं। प्रथम मार्ग पर नागा तीर्थ है, वहीं दूसरे मार्ग पर अनेक विशाल व अप्रतिम निवास हैं जिनके भीतर मंदिर हैं। यदि आप यहाँ प्रातःकाल के समय भ्रमण करें तो आपको स्तोत्र पठन एवं घंटानाद से गुंजायमान वातावरण मिलेगा। उस समय सभी पुरोहित पूजा-अर्चना में व्यस्त रहते हैं।
नाग तीर्थ
यह नाग वीथी पर स्थित है जो महाबलेश्वर मंदिर को कोटि तीर्थ से जोड़ता प्रमुख मार्ग है। यह ब्राह्मणों के निवास से भरा एक संकरा मार्ग है। यहाँ स्थित एक मंदिर में लाखों की संख्या में नागों की छवियाँ हैं। एक वृद्ध वृक्ष के नीचे, मंदिर के भीतर, मंदिर की आतंरिक एवं बाह्य भित्तियों पर, जहाँ दृष्टी जाए वहां नाग उत्कीर्णित हैं। मंदिर के भीतर स्थापित लिंग भी नाग शिल्पों द्वारा अलंकृत है।
ऐसी मान्यता है कि पांडवों के वंशज, जन्मजेय के यज्ञ में जो नाग अग्नि में भस्म हुए थे, वे सभी मुक्ति प्राप्त करने यहीं आये थे।
दुर्गा तीर्थ
नाग तीर्थ के निकट एक अन्य लघु व प्राचीन तीर्थ है। इस जलकुंड का नाम दुर्गा तीर्थ है। इसके निकट एक छोटा सा मंदिर भी है। यह किसी स्थानिक के निजी स्वामित्व का भाग है। अतः इसके अवलोकन के लिए उनकी अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है।
कोटि तीर्थ
ऐसा कहा जाता है कि शतश्रंगी पर्वतों में लगभग दो लाख तीर्थ अथवा जलस्त्रोत थे। यहां अनेक तपस्वी तप किया करते थे। कालान्तर में उनमें से एक लाख तीर्थों का सागर में विलय हो गया। शेष एक लाख तीर्थ संविलीन होकर कोटि तीर्थ कहलाये। यह एक विशाल जलाशय है जिसके चारों ओर मंदिर एवं निवास हैं। यह तीर्थ पिंड दान के लिए जाना जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जो यहाँ प्रार्थना करे उसे एक कोटि अर्थात् एक लाख गुना फल प्राप्त होता है।
इस कुंड के मध्य में एक शिवलिंग है जिसे कोटेश्वर कहते हैं। इसके चारों ओर भ्रमण करें तो आप पट्ट विनायक मंदिर, विश्वेश्वर विट्ठल मंदिर, वीर मारुति मंदिर, गोपाल कृष्ण मंदिर, शंकर नारायण मंदिर, हरिहर मंदिर, काली मंदिर तथा भैरव मंदिर देख सकते हैं।
पट्ट विनायक मंदिर गणेश को विशेष सम्मान से विभूषित करने का द्योतक है जब उन्होंने रावण से आत्मलिंग को पुनः प्राप्त करने में देवताओं की सहायता की थी।
काली मंदिर अथवा कालीहृद
यह एक प्राचीन देवी मंदिर है जो गोकर्ण नगर के प्रवेश द्वार पर स्थित है। गोकर्ण नगरी में प्रवेश करते समय आप इसे अवश्य देखेंगे।
ऐसी मान्यता है कि शुम्भ, निशुम्भ, रक्तबीज, चंड एवं मुंड इत्यादि दानवों का संहार कर देवी गोकर्ण आयीं थी तथा यहाँ के जल में अपने आयुध स्वच्छ किये थे। तत्पश्चात वे भद्रकाली में ध्यानमग्न हो गयी थीं।
मुख्य मार्ग से जिस प्रवेश द्वार द्वारा हम मंदिर के भीतर पहुंचते हैं, वह वास्तव में मंदिर का पृष्ठभाग है। अतः गोल घूमते हुए हम इस दक्षिण-मुखी मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुँचते हैं। मंदिर के भीतर भद्रकाली की अत्यंत उर्जावान मूर्ति है। शुक्रवार मंदिर का विशेष दिवस होता है।
इस मंदिर के समीप अनेक अन्य लघु देवी मंदिर हैं।
कलकलेश्वर मंदिर
कलकलेश्वर मंदिर एक छोटी चट्टानी पहाड़ी पर स्थित है। कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर आप इस छोटे से मंदिर तक पहुँचते हैं। उजाले रंगों में रंगे इस मंदिर के भीतर एक शिवलिंग है।
ऐसी मान्यता है कि जब रावण आत्मलिंग को गोकर्ण की भूमि से पृथक करने में असफल हुआ तब सभी देवताओं ने उसका उपहास किया। यह शिवलिंग उनके उसी उपहास के कलकल का द्योतक है।
राम तीर्थ
एक पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर से तीनों ओर के सागर का दृश्य दिखाई देता है। एक प्राकृतिक जल स्त्रोत द्वारा मंदिर के जलकुंड में सतत जल भरता रहता है। इस जलकुंड को राम कुंड कहते हैं। मंदिर के भीतर एक अप्रतिम राम दरबार है। मंदिर की परिक्रमा करते समय आप अनुभव कर सकते हैं कि कंक्रीट संरचनाओं से पूर्व यहाँ का वायुमंडल कितना उर्जावान रहा होगा।
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम जब रावण का वध कर लंका से लौट रहे थे तब उन्होंने ब्राह्मण हत्या के दोष से निवारण हेतु यहीं तप किया था। उसके पश्चात ही उन्होंने अयोध्या की भूमि पर अपने चरण कमल रखे थे।
गो गर्भ तथा कमण्डलु तीर्थ
मुख्य मंदिर के समीप, आप एक प्राकृतिक गुफा देख सकते हैं जिसके भीतर एक लघु मंदिर है। मंदिर सामान्यतः बंद रहता है। किन्तु आप गुफा को भीतर से अवश्य देख सकते हैं। कदाचित प्राचीन काल में ऋषियों ने इस गुफा का उपयोग एकांत में तप करने के लिए किया होगा। गुफा के ऊपर विचरण करते समय तनिक भी आभास नहीं होता कि नीचे एक विशाल गुफा है। गुफा के मुख को देखने के पश्चात ही यह आभास होता है।
गुफा के ऊपर स्थित एक छिद्र द्वारा सूर्य का प्रकाश भीतर स्थित मंदिर पर पड़ता है। अरकू घाटी में स्थित बोर्रा गुफाओं में भी ऐसी ही व्यवस्था थी।
ऐसा कहा जाता है कि गुफा का आकार गौमाता के गर्भ के समान है। इसीलिए इसे गो गर्भ कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब परशुराम ने धरती माता को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, तब धरती माता ने यही आकर ध्यान साधना की थी।
कमण्डलु तीर्थ एक छोटा गोलाकार छिद्र है। लोगों की मान्यता है कि ब्रह्माजी ने यहाँ अपना कमण्डलु रख दिया था। इसे देख आश्चर्य होता है कि चारों ओर बंजर चट्टान होने के पश्चात भी इस छोटे से छिद्र में सदा मीठा जल भरा रहता है, जो कदाचित किसी भूमिगत स्त्रोत द्वारा आपूर्त होता रहता है।
जटायु तीर्थ
यह समुद्र के समीप एक छोटी गुफा है जहाँ पहुँचने के लिए सीधी ऊंची पहाड़ी से नीचे उतरना पड़ता है। उतरने के लिए चट्टानों पर उबड़-खाबड़ सीढ़ियाँ हैं जिसे उतरने के लिए अत्यंत सावधानी एवं चपलता की आवश्यकता है। पहाड़ी के ऊपर से समुद्र, सूर्यास्त तथा हरियाली का अप्रतिम दृश्य दिखाई पड़ता है।
भूलभुलैया
जटायु तीर्थ के समीप एक सुन्दर भूलभुलैया है। किन्तु इसकी रचना के विषय में किसी को जानकारी नहीं है।
रूद्रपाद
यह मुख्य नगरी से किंचित दूर, गंगावल्ली नदी के समीप स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए खेतों से होकर जाना पड़ता है। कोई स्थानिक ऑटो चालक आपको वहां ले जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि जैसे गया में विष्णु के चरणों को विष्णुपाद के रूप में पूजा जाता है, गोकर्ण में भगवान शिव के चरणों को रूद्रपाद के रूप में पूजा जाता है। यह एक लघु मंदिर है जिसके शिवलिंग पर दो पादों के चिन्ह हैं।
यहाँ स्वर्गारूढ़ आत्मा के लिए पिंडदान का अनुष्ठान किया जाता है।
गोकर्ण के आश्रम
गोकर्ण पहाड़ियों, चट्टानों, एकाकी समुद्र तट एवं अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण एक शांत स्थल है। इसी कारण यह तपस्वियों एवं संतों का प्रिय स्थल रहा है। अनेक महान ऋषियों ने यहाँ आश्रण बनाकर तपस्या की थी। आज भी आप कुछ आश्रम यहाँ देख सकते हैं। जैसे:
- मार्कंडेय आश्रम (वाहन मार्ग)
- विश्वामित्र आश्रम
- कपिल तीर्थ तथा आश्रम
- ब्रह्मा आश्रम
- जह्नु ऋषि आश्रम (गंगावल्ली) – दीपावली की संध्या को महाबलेश्वर की पालकी उनके विवाह के लिए गंगावल्ली तक आती है।
- गोकर्ण मठ – यह गोकर्ण बस स्थानक के समीप स्थित है। इसके समक्ष एक छोटा सा मंदिर है जो किंचित विचित्र रीति से निर्मित है।
गोकर्ण के पर्यटन स्थल
एक ओर जहाँ गोकर्ण तीर्थयात्रियों एवं भक्तों का प्रसिद्ध गंतव्य है, वहीं गोकर्ण पर्यटकों में भी अत्यंत लोकप्रिय है। गोकर्ण के समुत्र तटों पर चट्टानें हैं जो समुद्र से अठखेलियाँ करते रहते हैं। आप चाहें तो समुद्र तट पर जाकर आनंद ले सकते हैं अथवा ऊंची पहाड़ियों पर बैठकर समुद्र जल में सूर्य को अस्त होते देख सकते हैं। गोकर्ण के कुछ प्रमुख समुद्र तट हैं:
गोकर्ण समुद्रतट
यह समुद्रतट महाबलेश्वर मंदिर के समीप है। मंदिर के मुख्य द्वार से आप पैदल ही यहाँ पहुँच सकते हैं। गोकर्ण समुद्रतट पर खड़े होकर यदि आप बाईं ओर देखेंगे तो आपको एक पहाड़ी पर राम तीर्थ दृष्टिगोचर होगा। पीछे देखेंगे तो एक मंडप के नीचे आदि शंकराचार्य की प्रतिमा है।
समुद्रतट पर चारों ओर आनंद का वातावरण दिखाई देता है। पर्यटक तथा तीर्थयात्री जल में अठखेलियाँ करते अथवा रेत पर सैर करते दिखाई देते हैं। कई लोग ऊँट की सवारी का आनंद उठाते भी दिखते हैं।
कुड्ले समुद्रतट
यह गोकर्ण समुद्रतट के दक्षिणी ओर स्थित है। इसके दोनों ओर पहाड़ियां हैं। जब आप ॐ समुद्रतट की ओर जाते हैं तब पहाड़ी के ऊपर से यह अर्धगोलाकार समुद्रतट देख सकते हैं। यह तट पर्यटकों में सूर्यास्त तथा सैर के लिए लोकप्रिय है।
ॐ समुद्रतट
इस समुद्रतट का आकार ॐ के समान है। यह तट जलक्रीड़ा, सूर्यास्त तथा इसके लोकप्रिय नमस्ते कैफ़े के लिए प्रसिद्ध है।
ॐ समुद्रतट से कुड्ले समुद्रतट तक पैदल भ्रमण आयोजित की जाती है। हम इसके द्वारा उमा महेश्वर मंदिर तक गए थे।
समुद्र-पर्यटन – प्रतिदिन तीन नौकाटन आयोजित किये जाते हैं जिसके द्वारा आप जल में भ्रमण का आनंद उठा सकते हैं। पणजी की निवासी होने के कारण समुद्र पर्यटन मेरे लिए नवीन अनुभव नहीं है। इसलिए हम उस ओर नहीं गए। समुद्रतट पर अनेक अन्य पर्यटन क्रियाकलाप हैं जिनका आप आनंद उठा सकते हैं, जैसे कयाकिंग, जेट स्काई, बनाना बोट में सैर इत्यादि। खाने-पीने के लिए अनेक शैक्स हैं। कुल मिलाकर गोकर्ण के सभी समुद्रतट पर्यटकों के आनंद का केंद्र बिंदु हैं।
गोकर्ण की सडकों पर बोहिमियाई अथवा रूढ़िमुक्त जीवनशैली भी यदाकदा दृष्टिगोचर हो जाती है, जैसे कहीं कहीं सड़कों के किनारे स्थित भित्तियों पर सुन्दर चित्रकारियाँ की गयी हैं। कुछ गोकर्ण की कथा कहती हैं तो कुछ इतने विचित्र होते हैं कि अनायास आपके मुख पर हास्य उमड़ पड़ता है।
गोकर्ण के आसपास दर्शनीय स्थल
गोकर्ण में ठहर कर आप अनेक स्थानों पर एक दिवसीय भ्रमण कर सकते हैं। आप विभूति झरना, याना चट्टानें तथा मिर्जन दुर्ग जा सकते हैं। विभूति झरना वर्षा ऋतु की एक अप्रतिम देन है, वहीं याना चट्टानें अद्भुत प्राकृतिक विशाल चट्टानी संरचनाएं हैं। पहाड़ी के ऊपर स्थित मिर्जन दुर्ग एक दर्शनीय दुर्ग है।
गोकर्ण माहात्म्य का विडियो
इंडीटेल के यूट्यूब चैनल पर गोकर्ण माहात्म्य का यह विडियो देखिये, डॉक्टर शकुंतला गावडे से एक चर्चा। गोकर्ण पुराण अथवा गोकर्णखंड ११८ अध्यायों के द्वारा गोकर्ण की कथा कहता है। यह स्कन्द पुराण सनत्कुमारसंहिता गोकर्णखंड का भाग है। यह अनेक आख्यानों एवं उपाख्यानों का सारांश है। एक प्रकार से यह गोकर्ण का महिमागान करता एक स्थल पुराण है।
गोकर्ण दर्शन एवं गोकर्ण के विभिन्न आकर्षणों की खोज के लिए कुछ सुझाव
- गोकर्ण में हर स्तर के अनेक विश्रामगृह हैं।
- गोकर्ण की संकरी गलियों में भ्रमण करने के लिए ऑटोरिक्शा सर्वोत्तम परिवहन साधन है।
- गोकर्ण नगरी के मुख्य क्षेत्र एवं उसके मंदिरों के दर्शन के लिए पैदल ही भ्रमण किया जा सकता है। वाहन की अपेक्षा यहाँ पैदल भ्रमण अधिक सुगम्य है।
- सादा दक्षिण भारतीय भोजन सभी स्थानों पर उपलब्ध है।
- समुद्रतटीय क्षेत्र तथा आसपास नदी के मुहाने होने के कारण यहाँ का वातावरण आर्द्र तथा उष्ण है।
- लंबी दूरी तक पैदल भ्रमण का विचार हो तो पर्याप्त पेयजल साथ रखें।
- समुद्रतट पर छोटे-बड़े चट्टानों के होने के कारण वहां सावधानी से भ्रमण करें।
- सूर्य की किरणों से बचने के लिए आवश्यक साधन अपनाएँ।
- अधिकतर भ्रमण प्रातःकाल अथवा संध्या के समय में करें। दोपहर के समय बाहर भ्रमण से बचें।
- प्रातःकाल शीघ्र बाहर निकालें तो आप अनेक पक्षियों के दर्शन कर सकते हैं। सड़क से लगे वनों के भीतर अथवा पहाड़ियों के ऊपर स्थित वृक्षों पर हमने मोर-मोरनी(Peafowl), मलाबारी धनेश(Malabar Pied-Hornbill), पिलक(Golden Oriole), कोयल(Asian Koels), चील(Kites) इत्यादि देखे।
- हम ॐ समुद्रतट पर स्वस्वरा (Swaswara) में ठहरे थे जो एक वेलनेस रिसोर्ट है। यह नगर से किंचित दूर है किन्तु सर्वाधिक लोकप्रिय समुद्रतट के समीप है।
- गोकर्ण पर अधिक जानकारी के लिए, website, यहाँ संपर्क करें।