कुल्लू की तीर्थन घाटी – हिमाचल प्रदेश का रमणीय पर्यटन गंतव्य

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हिमाचल प्रदेश भारत के सर्वाधिक रम्य, शांत, सौंदर्य से ओतप्रोत तथा पर्यटन के अनुकूल राज्यों में से एक है। हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध पर्वतीय क्षेत्रों में प्रायः बारह मास पर्यटकों का तांता लगा रहता है, जिन में प्रमुख हैं, मनाली, शिमला एवं धर्मशाला इत्यादि। पर्यटन में वृद्धि के फलस्वरूप इन प्रसिद्ध गंतव्यों में पर्यटकों की भारी भीड़ होने लगी है। अतः पर्यटक अब अपारंपरिक गंतव्यों की खोज करने लगे हैं।

हिमाचल प्रदेश में ऐसे अनेक मनोरम स्थल हैं जो अब तक अछूते हैं। ये स्थल कम भीड़भाड़ भरे हैं। अधिक शांत एवं रम्य हैं। यहाँ हमें प्रकृति के सानिध्य में शांत वातावरण का आनंद उठाने का उत्तम अवसर प्राप्त हो सकता है। ऐसा ही एक स्थल है, तीर्थन घाटी। यह अत्यंत सुरम्य, शांत, एकाकी तथा प्रकृति के सौंदर्य से ओतप्रोत स्थल है। शांति की खोज में आये पर्यटकों के लिए तीर्थन घाटी हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय अपारंपरिक पर्यटन स्थल के रूप में उभर  रहा है।

तीर्थन घाटी में भ्रमण

तीर्थन घाटी पर्वतारोहण, पैदल यात्रा, चट्टानों की चढ़ाई, नदी पार करना, मछली पकड़ना जैसे रोमांचक क्रियाकलापों के लिए उत्तम स्थल है। यह कुल्लू जिले में स्थित है। हिमालयीन क्षेत्र के अनेक अन्य घाटियों के अनुरूप, इस स्थान का नाम यहाँ से बहती प्रमुख नदी तीर्थन से लिया गया है।

तीर्थन घाटी की अवस्थिति एवं यहाँ तक कैसे पहुंचे?

तीर्थन घाटी कुल्लू से लगभग ५० किलोमीटर तथा मंडी से लगभग ७० किलोमीटर दूर स्थित है। दिल्ली/चंडीगढ़ की ओर से यहाँ तक पहुँचने के लिए दो प्रमुख मार्ग हैं। एक है, चंडीगढ़-मनाली महामार्ग से होते हुए औट गाँव तक। वहां से कुल्लू व मनाली की ओर जाती औट सुरंग में प्रवेश ना करते हुए, आप सीधे राष्ट्रीय महामार्ग ३०३ पर जाएँ जो आपको तीर्थन घाटी ले जायेगी। यह मार्ग वर्ष भर खुला रहता है।

तीर्थन घाटी - हिमाचल प्रदेश
तीर्थान घाटी का परिदृश्य

दूसरा मार्ग है, भारत-तिब्बत महामार्ग अथवा राष्ट्रीय महामार्ग ५, जो शिमला से किन्नौर की ओर जाती है। नरकंडा पहुँचते ही महामार्ग छोड़कर जलोड़ी दर्रे की ओर जाएँ। इस दर्रे को पार करते ही आप तीर्थन घाटी पहुँच जायेंगे। जलोड़ी दर्रे में भारी हिमपात के चलते यह मार्ग दिसंबर से मार्च मास के मध्य तक बंद रहता है।

आप अपने निजी वाहनों द्वारा भी यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं। सड़कें सुगम एवं उत्तम हैं। विकास कार्यों से संबंधित कुछ बाधाओं को छोड़ शेष यात्रा सुखद व सुगम्य है।

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तीर्थन घाटी पहुँचने के लिए आप सार्वजनिक परिवहन का भी प्रयोग कर सकते हैं। हिमाचल राज्य परिवहन निगम की बसें घाटी के सभी मुख्य मार्गों पर गतिशील हैं। घाटी का मुख्य नगर, बंजार, राज्य के सभी प्रमुख नगरों से बस सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है। आप कुल्लू बस स्थानक से भी बस सेवा ले सकते हैं। कुल्लू से बसों की संख्या उत्तम है जो नियमित अंतराल पर उपलब्ध हैं। दिल्ली अथवा चंडीगढ़ से आने वाले पर्यटक अधिकतर कुल्लू/मनाली की ओर जाने वाली बस सेवा लेकर औट सुरंग तक पहुँचते हैं। सुरंग से पूर्व वे दूसरी बस लेकर तीर्थन घाटी पहुँचते हैं। आप कुल्लू बस स्थानक से टैक्सी भी किराये पर ले सकते हैं। टैक्सी शुल्क साधारणतः वातावरण के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।

तीर्थन घाटी में भ्रमण का सर्वोत्तम समय

आप तीर्थन घाटी का भ्रमण वर्ष में किसी भी समय कर सकते हैं। मैदानी क्षेत्रों एवं देश के अन्य भागों की उष्ण लहर से बचने के लिए ग्रीष्म ऋतु सर्वोत्तम है। यदि आपको हिमाच्छादित परिवेश में आनंद आता हो तो आप दिसंबर से मार्च के मध्य अपनी यात्रा नियोजित कर सकते हैं।

संभव हो तो जुलाई से सितम्बर तक का समय टालें। भारी वर्षा एवं कीचड के कारण आपके भ्रमण में बाधा उत्पन्न हो सकती है। मार्ग फिसलन भरे हो जाते हैं। पहाड़ियों की सतहें असुरक्षित हो जाती हैं। भूस्खलन की संभावना बनी रहती है। इसके कारण पैदल यात्रा एवं पर्वतारोहण में बाधा व संकट उत्पन्न हो सकते हैं।

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तीर्थन घाटी के दर्शनीय स्थल

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की स्थापना सन् १९८४ में हुई थी। यह राष्ट्रीय उद्यान सम्पूर्ण कुल्लू जिले में फैला हुआ है। इसकी ऊँचाई समुद्र तट से २००० से ६५०० मीटर के मध्य परिवर्तित होती रहती है। यह राष्ट्रीय उद्यान तीर्थन घाटी से पार्वती घाटी तक के समूचे क्षेत्र को अपने आँचल में समेटे हुए है। तीर्थन घाटी की ओर से आयें तो गुशैनी एवं बंजार होते हुए यहाँ पहुँच सकते हैं।

इस उद्यान में हिमालयी भालू, हिम तेंदुआ तथा भरल अथवा नीली भेड़ जैसे अनेक लुप्तप्राय प्रजातियों का बसेरा है। इन दुर्लभ प्रजातियों के दर्शन करने के लिए आपको मनमोहक वनों में पैदल चलते हुए इन्हें खोजना होगा। इनकी खोज व दर्शन के लिए वनों में अनेक पगडंडियाँ नियत की गयी हैं, विशेषतः गुशैनी से अनेक मार्ग हैं। किन्तु किसी गाइड को अवश्य साथ ले जाएँ ताकि घने वनों में आप मार्ग से ना भटकें, वनीय पशु से कोई संकट उत्पन्न ना हो, साथ ही वृक्षों एवं प्राणियों के विषय में वह आपको आवश्यक जानकारी भी दे सके।

छोई झरना

छोई झरना इस घाटी का सर्वाधिक लोकप्रिय जलप्रपात है। यहाँ तक पहुँचने के लिए गुशैनी से लगभग ३० मिनट की छोटी सी चढ़ाई है। इस झरने में शीतकाल की अपेक्षा, ग्रीष्म ऋतु एवं वर्षा ऋतु में अधिक जल रहता है।

चैहणी कोठी

चैहणी गाँव बंजार के ऊपरी क्षेत्रों में बसा एक गाँव है। वहां तक पहुँचने के लिए बंजार को पार कर जीभी घाटी की ओर जाना पड़ता है। यह गाँव अटारी जैसी ऊंची संरचनाओं के लिए लोकप्रिय है। यह किन्नौर के कामरू एवं कल्पा दुर्ग जैसे गढ़ों के अनुरूप हैं। किन्तु चैहणी की कोठी उससे भी ऊंची है। एक प्रकार से यह हिमाचल प्रदेश की सर्वाधिक ऊंची पारंपरिक संरचना है। एक काल में यह वर्तमान संरचना से भी ऊंची थी किन्तु २०वीं सदी के आरम्भ में आये भूकंप में इसका कुछ भाग भंगित हो गया था। जिसके कारण नौ तलों की संरचना के ऊपरी दो तलों को सुरक्षा की दृष्टी से निकाल दिया था।

चैहणी कोठी
चैहणी कोठी

इसके परिसर में एक कृष्ण मंदिर है जिसकी वास्तु शैली भी मूल संरचना के पारंपरिक वास्तु शैली के अनुरूप है। चैहणी कोठी तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है। यह चढ़ाई ऊंची एवं कठिन है। कोठी तक पहुँचने में एक घंटे का समय लग जाता है। वर्षा के उपरान्त यह चढ़ाई अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती है। यह चढ़ाई बंजार के श्रृंगी ऋषि मंदिर से आरम्भ होती है।

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श्रृंगी ऋषि मंदिर

यह बंजार के अधिष्ठात्र देव का मंदिर है। यह मंदिर लकड़ी से निर्मित है। यह मंदिर बंजार से ३ किलोमीटर दूर, जीभी मार्ग पर स्थित है। जहां मंदिर का सूचना फलक है, वहां से १५ मिनट पैदल चलकर यहाँ पहुंचा जा सकता है।

ऋषि श्रृंगी मंदिर
ऋषि श्रृंगी मंदिर

इस मंदिर में भगवान श्रीराम की बहन शांता की पूजा होती है। इस मंदिर में देवी शांता के साथ उनके पति शृंग ऋषि भी विराजमान हैं।

जीभी झरना

जीभी जैव विविधता से परिपूर्ण, हरेभरे वनों एवं पहाड़ों से घिरा एक लोकप्रिय पर्यटन क्षेत्र है। जीभी का झरना पर्यटकों में विशेष आकर्षण का स्थल है। यह झरना तीर्थन नदी की एक सहायक नदी द्वारा पोषित है।

जीभी झरना
जीभी झरना

यहाँ तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग है। झरने के आसपास के क्षेत्र को स्थानीय शासन ने सुन्दरता से सज्जित किया है। लकड़ी के अनेक पुल बनाए गए हैं जो परिदृश्यों की रम्यता को द्विगुणीत करते हैं। चारों ओर शिलाखंडों का प्रयोग कर पक्की पगडंडियाँ बनाई गयी हैं।

जलोड़ी दर्रा

जलोड़ी दर्रा ऊंचाई पर स्थित एक दर्रा है जो कुल्लू को शिमला से जोड़ता है। यह जीभी से लगभग १६ किलोमीटर दूर स्थित है। दर्रे पर पहुँचते ही आप एक मंदिर देखेंगे जो जलोड़ी माता मंदिर है। इसे जलोड़ी जोत भी कहते हैं। इस दर्रे को इसी मंदिर के नाम पर जलोड़ी दर्रा कहते हैं। यह दर्रा समुद्र सतह से लगभग ३१२० मीटर ऊँचाई पर स्थित है।

हिमाच्छादित जालोरी माता मंदिर
हिमाच्छादित जालोरी माता मंदिर

ग्रीष्म ऋतु में जलोड़ी दर्रे से रघुपुर दुर्ग तथा सिरोलसर झील के लिए चढ़ाई आरम्भ की जाती है। किन्तु शीत ऋतु में ये चढ़ाई भारी हिमपात के कारण बंद कर दी जाती है। ग्रीष्म ऋतु में गाड़ियां दर्रे तक आसानी से पहुँचती हैं किन्तु शीत ऋतु में गाड़ियां केवल शोजा तक ही जा सकती हैं, जो जलोड़ी दर्रे से ५ किलोमीटर पूर्व स्थित एक छोटा सा कस्बा है। यहाँ से बर्फ पर पैदल चलकर जलोड़ी दर्रे तक पहुँच सकते हैं।

जालोरी दर्रे की हिमाच्छादित ढलानें
जालोरी दर्रे की हिमाच्छादित ढलानें

जलोड़ी दर्रा स्कीइंग में रूचि रखने वाले पर्यटकों के लिए उत्तम गंतव्य है। इसकी हिमाच्छादित ढलानें प्रारंभिक एवं मध्यम स्तरीय खिलाडियों के लिए सुगम्य हैं।

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रघुपुर दुर्ग एवं सिरोलसर झील

जलोड़ी दर्रे से ३ किलोमीटर दूर स्थित रघुपुर दुर्ग समुद्र सतह से लगभग ३४५० मीटर ऊँचाई पर स्थित है तथा शोज नगर का एकमात्र ऐतिहासिक स्थान है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ पहुँचने के लिए जलोड़ी दर्रे से लगभग डेढ़ घंटे की चढ़ाई करनी पड़ती है। अब दुर्ग के कुछ अवशेष मात्र शेष रह गए हैं। यहाँ से चारों दिशाओं में हिमाच्छादित हिमालय का अप्रतिम दृश्य दिखाई देता है।

सिरोलसर झील ऊंचाई पर स्थित एक सुन्दर झील है। ग्रीष्म ऋतु में आप जलोड़ी दर्रे से वनमार्ग द्वारा चढ़ाई करते हुए यहाँ पहुँच सकते हैं। समीप ही स्थानीय देवी बूढ़ी नागिन को समर्पित एक मंदिर है। इस झील को भी पवित्र माना जाता है। सर्पों की देवी बूढ़ी नागिन को इस क्षेत्र की संरक्षक कहा जाता है।

तीर्थन घाटी में ठहरने की व्यवस्था

गुशैनी

गुशैनी तीर्थन नदी के तट पर स्थित एक छोटा व सुन्दर गाँव है। यदि आप औट की ओर से तीर्थन घाटी आ रहे हैं तो गुशैनी प्रथम प्रमुख स्थान है जहां आप ठहर सकते हैं। मुख्य महामार्ग से ५ किलोमीटर का विमार्ग लेते हुए यहाँ पहुंचा जा सकता है। गाँव में लकड़ी के सुन्दर आवास हैं। सम्पूर्ण परिसर अत्यंत मनमोहक है। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क जाने के लिए पैदल यात्रा यहीं से आरम्भ की जाती है। यहाँ तीर्थन नदी एवं फ्लाचन नदी का संगम है।

बंजार

बंजार तीर्थन घाटी का सबसे बड़ा नगर है। हिमाचल के इस क्षेत्र में आये अधिकाँश पर्यटक यहीं ठहरते हैं। तीर्थन घाटी के मध्य में स्थित होने के कारण यहाँ से तीर्थन घाटी के सभी पर्यटन स्थलों तक पहुंचा जा सकता है। यहाँ होटल, तम्बू स्थल तथा होमस्टे के अनेक विकल्प उपलब्ध हैं।

जीभी

तीर्थन घाटी का सर्वाधिक सुन्दर नगर जीभी है। तीर्थन नदी के तट पर बसा यह नगर पारंपरिक वृक्षगृह आवास के लिए जाना जाता है। लकड़ी के पारंपरिक आवासों का स्थान अब अनेक आधुनिक आवासों ने ले लिया है। उनके मध्य आप कुछ प्राचीन घर अब भी देख सकते हैं तथा नाममात्र मूल्य देकर उनमें रह भी सकते हैं।

जीभी तम्बू स्थल तथा साहसिक क्रियाकलापों के लिए भी प्रसिद्ध है। उनमें नदी पार करना, चट्टानों की चढ़ाई करना इत्यादि प्रमुख हैं। आप नदी के तट पर शान्ति से बैठकर प्रकृति का आनंद उठा सकते हैं अथवा नदी के बर्फीले जल में अपने पैर डुबोने का रोमांच भी ले सकते हैं। जलोड़ी दर्रा जीभी से केवल १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

जीभी में ठहरने के लिए तीन प्रमुख विकल्प हैं। इनके अतिरिक्त शोजा तथा सई रोपा गाँवों में भी आश्रय लिया जा सकता है। सई रोपा एवं शोजा के वन-विश्राम गृहों की अवस्थिति प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद उठाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यहाँ से आसपास के परिदृश्यों का अप्रतिम दृश्य दिखाई देता है। यहाँ ठहरने के लिए पूर्व सूचना देकर आरक्षण करना आवश्यक है क्योंकि प्रायः यह पूर्व आरक्षित होने के कारण उपलब्ध नहीं रहते हैं। तीर्थन घाटी के विश्राम गृहों में आवास शुल्क अधिक नहीं है। १५०० रुपये प्रतिदिन से कम लागत में आपको अच्छे आवास-कक्ष मिल जायेंगे। विभिन्न इन्टरनेट संकेत स्थलों द्वारा भी आप इन स्थानों पर पूर्व आरक्षण प्राप्त कर सकते हैं।

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उपयोगी यात्रा सुझाव

  • लम्बी दूरी तक पैदल चलने की पूर्ण रूप से तैयारी आवश्यक है। तीर्थन घाटी के अधिकतर पर्यटन स्थलों तक जाने के लिए छोटी चढ़ाई करनी ही पड़ती है। अतः मूलभूत स्वास्थ्य अपरिहार्य है।
  • उपलब्ध भोजन सादा तथा स्वादिष्ट है। सिड्डू जैसे स्थानीय व्यंजन चखना चाहे तो कुछ चुने भोजनालयों में पूर्व सूचना देने पर वे उपलब्ध किये जाते हैं।
  • पैदल यात्रा अथवा चढ़ाई करते समय अच्छी पकड़ वाले जूते पहनें। कुछ चढ़ाई कठिन व फिसलन भरी हो सकती हैं।
  • नदी के तट पर पूर्ण सतर्कता का पालन करें। तट पर विशाल शिलाएं प्रायः फिसलन भरी हो सकती हैं। बिना सोचे-समझे जोखिम उठाना किसी भी समय घातक व प्राणांतिक सिद्ध हो सकता है।
  • धूप के चश्मे तथा टोपियाँ साथ रखें। बर्फ की उपस्थिति में ये अधिक आवश्यक हो जाते हैं क्योकि बर्फ में सूर्य की परावर्तित किरणों से आँखें चुंधिया जाती हैं तथा चेहरे की त्वचा जल जाती है।
  • दोपहर के समय आप पक्षी दर्शन के लिए जा सकते हैं।
  • वनीय क्षेत्र में पैदल यात्रा अथवा चढ़ाई के लिए स्थानीय गाइड साथ रखना आपकी अपनी सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। यहाँ के वनों में भटक जाने की घटनाएँ कई पर्यटकों के साथ घट चुकी हैं।
  • सूर्योदय से पूर्व अथवा सूर्यास्त के पश्चात किसी भी प्रकार की यात्रा को टालें। उस समय घातक वन्य प्राणियों से साक्षात्कार का संकट रहता है। तेंदुए, हिमालयीन भालू इत्यादि बस्तियों के निकट आ जाते हैं। मवेशियों एवं लोगों पर हमले की घटनाएँ भी हो चुकी हैं।
  • यदि आप यहाँ शीत ऋतु में आते हैं तो अपने साथ बर्फ में उपयोगी बूट अवश्य रखें। अन्यथा बर्फ में चलना कठिन होगा।

यह IndiTales Internship Program के अंतर्गत, तेजस कपूर द्वारा प्रदत्त एक अतिथि संस्करण है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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