बाल्यकाल में हम जब भी ट्रेन द्वारा लंबी यात्राएं करते थे, हम सम्पूर्ण यात्रा काल के लिए अपना भोजन साथ लेकर चलते थे। वह चाहे प्रातःकाल का जलपान हो अथवा दोपहर या रात्रि का भोजन हो। इसके पश्चात भी ट्रेन में विविध नाश्ते विक्री करते परिचारक हम बालक-बालिकाओं की दृष्टि भेद ही लेते थे। उस पर रेल स्थानकों की चहल-पहल एवं शोभा अद्वितीय होती थी।
चारों ओर से भिन्न भिन्न व्यंजनों के विक्रेता हाक मारते रहते थे। कहीं फलों के ठेले थे तो कहीं से चाय वाले रेल के डिब्बे के भीतर प्रवेश कर यात्रियों को लुभाने लगते थे। कहीं ताजे चटपटे व्यंजन बनते रहते थे तो कहीं स्थानीय मिष्टान्नों की विक्री होती रहती थी। जैसे आगरा रेल स्थानक पर आगरा का पेठा, भोपाल स्थानक पर मीठी रबड़ी, मथुरा स्थानक पर मथुरा के पेड़े। रेल यात्राओं में शाकाहारियों के लिए भोजन की समस्या कभी नहीं होती थी।
उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर यात्रा करते हुए केलों के आकार को छोटे होते देखना, नागपूर स्थानक में संतरों के भिन्न भिन्न आकार एवं रंग देख उनकी ओर आकर्षित होना, बंगाल के स्थानकों में उपलब्ध झालमुडी को देख मुंह में पानी आना, मनमाड स्थानक में डोसे खाना, ये सभी मेरे बाल्यकाल की सर्वाधिक प्रिय यात्रा स्मृतियाँ हैं। बाल्यकाल में ये सब अत्यंत रोचक प्रतीत होता था।
इतने स्वादिष्ट व्यंजन स्थानकों में एवं रेल के डिब्बों में उपलब्ध हों तथा हम उनका आस्वाद ना लें, यह संभव नहीं है। इसके पश्चात भी हमारा मूल भोजन हम अपने साथ लेकर जाते थे। मेरे परिवार में मेरा सर्वाधिक प्रिय यात्रा भोजन होता था, आलू की सूखी भाजी एवं पूरियाँ। मेरे घर में इस उद्देश्य से मिठाइयों के उपयोग में लाए हुए गत्ते के डिब्बे सहेज कर रखे जाते थे। उन में यात्रा संबंधी खाद्य पदार्थ सुधड़ता से रखे जाते थे। इस उपयोग के पश्चात उन्हे निराकृत कर दिया जाता था। वातावरण के अनुसार आलू की तेल में बनी सूखी भाजी एवं पूरियाँ आसानी से २-३ दिवस टिक जाते थे।
हमारे बाल्यकाल में पेयजल का स्रोत सदा सर्वदा रेल स्थानक पर स्थित सार्वजनिक नल हुआ करता था। उस काल में वर्तमान काल के अनुरूप बोतलों में जल उपलब्ध नहीं होते थे, ना ही घरों में जल शुद्धिकरण यंत्र होते थे। वर्तमान में जिस प्रकार मोबाईल द्वारा किसी भी स्थानक में वहाँ के किसी भी जलपानगृह से भोजन मंगाया जा सकता है, इस प्रकार की सुविधाएं कदाचित कल्पित विज्ञान चलचित्रों में ही देखी जाती थीं।
आज २१ वीं शताब्दी के तीसरे दशक में यात्राओं के लिए खाद्य पदार्थों एवं उन्हे मंगाने के विकल्पों की बाढ़ आ गयी है। वर्तमान में विमानतलों एवं रेल स्थानकों पर खाद्य पदार्थ केंद्रों की संख्या इतनी अधिक हो गयी है कि सीमित प्रतीक्षा काल में उन सब का अवलोकन करना लगभग असंभव हो गया है। उस पर अब मोबाईल द्वारा विविध भोजन मंगाने के अनेक विकल्प उपलब्ध है। किसी भी नगर के स्थानक पर पहुँचने से पूर्व ही उस नगर के किसी भी मनचाहे जलपानगृह से कोई भी प्रिय खाद्य वस्तु के लिए पूर्व आदेश दे सकते हैं। आपके उस स्थानक पर पहुँचने से पूर्व ही वितरक आपके आदेशित व्यंजनों से सज्ज वहाँ उपस्थित रहता है।
किन्तु वर्तमान में खाद्य पदार्थों एवं उनमें प्रयुक्त सामग्रियों की गुणवत्ता में भारी गिरावट दिखाई देती है। स्वास्थ्य पर होते उनके विपरीत परिणामों के कारण अब मैंने यात्राओं में पुनः घर से भोजन ले जाना आरंभ कर दिया है। अपने चारों ओर देखने पर मुझे यह अनुभव हुआ कि इस प्रकल्प में मैं अकेली नहीं हूँ। मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे अनुरूप अनेक यात्रियों ने अब घर से भोजन ले जाना पुनः आरंभ कर दिया है। वे सभी अपने बाल्यकाल के आनंद को पुनः अनुभव करने लगे हैं।
शाकाहारियों के लिए सर्वोत्तम घरेलू यात्रा भोजन
यह संस्करण लिखने से पूर्व मैंने परिपाटी के अनुसार अपने ट्विटर परिवार से प्रश्न किया कि उनके सर्वाधिक प्रिय घरेलू व सुरक्षित यात्रा भोजन कौन से हैं। आशा के अनुसार पाठकों का उत्तम प्रतिसाद मिला । उन्ही उत्तरों को मैंने क्रमबद्ध कर यहाँ प्रस्तुत किया है।
थेपला एवं खाखरा
सभी शाकाहारी गुजराती बंधु-बांधवों को लाख लाख धन्यवाद एवं आशीर्वाद जो उन्होंने इन पूर्णतया यात्रा अनुकूल व्यंजनों का आविष्कार किया। मुझे थेपलों के विषय में जानकारी थी किन्तु यात्रा भोजन के रूप में उनका प्रयोग करना मैंने तब आरंभ किया जब मैं गोवा में रहती थे। मेरे आस-पड़ोस में कुछ गुजराती महिलायें थीं जो थेपले बनाती थीं तथा अचार के संग बांधकर उनकी विक्री करती थीं।
यात्रा के लिए वे अत्यंत सुविधाजनक, सुरक्षित, स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन होते हैं। थेपले ४-५ दिवस आसानी से टिक जाते हैं। विविध आटे एवं शाक-भाजियों का प्रयोग कर उन्हे अधिक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक बनाया जा सकता है। यात्राओं में किसी भी परिस्थिति में उन्हे खाना आसान होता है। थेपला एक सम्पूर्ण आहार होता है जिसके साथ किसी भी अतिरिक्त व्यंजन की आवश्यकता नहीं होती।
खाखरे तो थेपलों से भी अधिक लोकप्रिय एवं आसानी से उपलब्ध खाद्य पदार्थ हो गए हैं। ये प्रायः सभी प्रकार के विक्री केंद्रों में उपलब्ध होते हैं। पूर्व में सामान्यतः बड़े आकार के खाखरे मिलते थे जो शीघ्र ही टूट जाते थे। किन्तु अब छोटे छोटे आकार के खाखरे उपलब्ध हैं जिन्हे यात्रा में ले जाना तथा बस, रेलगाड़ी आदि में बैठकर खाना भी आसान होता है।
ये थेपलों की तुलना में सूखे होते हैं तथा इनके साथ जल, चाय आदि पेय की आवश्यकता प्रतीत होती है। किन्तु यदि आप शाकाहारी हैं तथा लंबी अवधि के लिए किसी ऐसे स्थान की यात्रा कर रहे हैं जहाँ सामान्यतः सामिष भोजन ही उपलब्ध होता है, वहाँ जाने के लिए अपने सामान में खाखरे अवश्य सम्मिलित करें। सूखे होने के कारण दीर्घ कल तक इनके स्वाद में परिवर्तन नहीं होता है।
खाखरा एवं थेपलों के संग प्रायः अचार तथा छुँदा खाया जाता है। इन्हे भी साथ रखना ना भूलें।
आलू की भाजी, पूरी एवं अचार
ये बनाने में आसान हैं तथा दीर्घ काल तक बासी नहीं होते हैं। थेपलों के समान आप इन्हे भी सीधे उन्ही डिब्बों से खा सकते हैं जिनमें इन्हे बांधा था। तली हुई पूरियाँ जब कढ़ाई से बाहर आती हैं तब अत्यंत स्वादिष्ट लगती हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये ठंडी होने के पश्चात भी उतनी ही स्वादिष्ट लगती हैं।
एक उत्तर भारतीय होने के नाते मुझे पूरियों को आम के अचार के संग खाना अत्यंत भाता है।
पूरियों के संग खाने के लिए अनेक विकल्प हैं, जैसे आलू-गोभी अथवा आलू-मटर की सूखी भाजी। पूरियाँ भी अनेक प्रकार की बनाई जा सकती हैं, जैसे अजवाइन पूरियाँ मुझे अत्यंत प्रिय है। आप मसाला पूरियाँ, पालक की पूरियाँ, मेथी की पूरियाँ, कद्दू की पूरियाँ आदि बना सकते हैं।
पराठे – आसान यात्रा भोजन
वर्तमान में यात्राओं में मुझे पराठे ले जाना अधिक भाता है। ये पराठे किंचित भिन्न होते हैं। इन पराठों को दीर्घ काल तक मुलायम रखने तथा बासी होने से बचाने के लिए मैं आटे को जल के स्थान पर दूध से गूंधती हूँ। इससे वे लम्बे समय तक मुलायम रहते हैं।
यात्रा के समय इन पराठों को खाने में सुगम बनाने के लिए मैं पराठों एवं भाजी को पृथक पृथक नहीं ले जाती हूँ। मैं पराठों में सभी मसालों, यहाँ तक कि अचार भी पूर्व में ही भर लेती हूँ। आप इनमें दाल भी भर सकते हैं। मैं इनमें आलू, पत्ता गोभी जैसी भाजियाँ नहीं भरती क्योंकि इससे पराठे नमीयुक्त हो जाते हैं।
आप अपने प्रिय भरावन इन पराठों में भरें तथा यात्रा में इनका आनंद लें। ये शाकाहारियों की यात्रा के लिए एक सम्पूर्ण आहार होते हैं।
सूखा उपमा
इस उत्तम यात्रा आहार की खोज मैंने तब की थी जब मैं हाँग-काँग की यात्रा कर रही थी। हाँग-काँग के निवासी मूलतः मांसाहार का सेवन अधिक करते हैं। वहाँ हमारी रुचि के अनुसार शाकाहारी भोजन आसानी से उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए मुझे पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थ ले जाने की आवश्यकता पड़ी, विशेष रूप से रात्रि के भोजन के लिए। दिवस भर भ्रमण करने के पश्चात जब मैं अपने कक्ष में आती हूँ, उसके पश्चात रात के भोजन हेतु मुझे पुनः कक्ष से बाहर जाना भाता नहीं है।
हाँग-काँग में दिवस भर भ्रमण करते हुए मैं अधिकतर शाकाहारी पीज़ा एवं डम्प्लिंग पर निर्भर रहती थी किन्तु रात्रि के लिए मैं उपमा का मिश्रण तैयार कर ले गयी थी। मिश्रण की एक पोटली खोलकर उस पर उबलता पानी डालकर ३-४ मिनट के लिए ढँक देती थी। स्वादिष्ट घरेलू उपमा खाने के लिए तैयार!
जी हाँ, यह वही उपमा का मिश्रण है जिसके लिए हमें घरेलू उड़ानों में एक बड़ी राशि लुटानी पड़ती है।
वर्तमान में अनेक कंपनियां ऐसे मिश्रण बनाती हैं, जैसे MTR, जिन्हे साथ ले जाना आसान है। अन्यथा आप इन्हे घर पर भी बना सकते हैं। गेहूं के रवे को भूनकर उस पर राई आदि का बघार लगाकर सूखा मिश्रण तैयार करें। इसमें आप प्याज, हरी मिर्च, कढ़ी पत्ते आदि को तलकर कुरकुरा कर के भी डाल सकते हैं। साथ ही मिश्रित दालें तथा काजू भी घी में तलकर डाल सकते हैं। आवश्यकता अनुसार नमक एवं चीनी डालें। इस प्रकार तैयार सूखे मिश्रण की छोटी छोटी पोटलियाँ बनाकार अपने साथ ले जाएँ। खाने के लिए आपको इसमें केवल उबलता पानी डालना होगा।
इसी प्रकार आप पोहे का भी सूखा मिश्रण बनाकार ले जा सकते हैं। ये स्वादिष्ट होने के साथ साथ यात्रा के लिए पौष्टिक आहार सिद्ध होंगे।
सत्तू
सत्तू की खोज मैंने बिहार की सड़क यात्रा के समय की थी। भुने चने के महीन चूर्ण को सत्तू कहा जाता है। इसमें पानी, स्वादानुसार नमक, चीनी अथवा गुड़ मिलाकर एक पौष्टिक पेय बनाया जाता है। इसे ठंडा ही पिया जाता है।
यदि उपलब्ध हो तो आप इसमें नींबू का रस, महीन काटा प्याज तथा हरी मिर्च भी डाल सकते हैं।
सत्तू ऐसा पेय है जिसे आप अपने स्वाद के अनुसार बना सकते हैं। इसे साथ ले जाना आसान होता है। ग्रीष्म काल के लिए तो यह एक स्वादिष्ट व पौष्टिक पेय होता है जो दीर्घ काल के लिए उदर को शांत रखता है।
सत्तू एवं मालपूए का उल्लेख महाभारत में भी किया गया है। उस काल में भी यात्री अपने संग सत्तू एवं मालपूए ले जाते थे। इस प्रकार यात्राओं में अपना भोजन साथ रखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।
सूखे मेवे
रेल अथवा बस यात्राओं में समय व्यतीत करने के लिए कुछ खाते रहने की इच्छा होती है। वहीं गंतव्यों के अवलोकन व भ्रमण के समय भी ऊर्जा बनाए रखने के लिए कुछ खाते रहना पड़ता है।
भोजन के मध्य की इस क्षुधा को शांत करने के लिए सूखे मेवे उत्तम विकल्प हैं, जैसे बादाम, काजू, अखरोट, मूंगफली आदि। ये दीर्घकाल तक उदर को शांत रखते हैं तथा शरीर की ऊर्जा को बनाए रखते हैं। इन्हे साथ रखना अत्यंत आसान होता है।
सेना आदि के जवान जब दुर्गम मार्गों पर चढ़ाई करते हैं, तब वे अपने साथ सूखे मेवे अवश्य रखते हैं।
केले
मैं जब भी सड़क मार्ग द्वारा भ्रमण करती हूँ, अपने वाहन को विविध प्रकार के फलों से भर देती हूँ। भारत में सड़कों के किनारे अनेक फल विक्रेता उपलब्ध रहते हैं जो अपनी दुकानों अथवा ठेलों के माध्यम से अनेक प्रकार के फलों की विक्री करते हैं। आप जितना नगर के भीतरी भागों में जाएंगे, उतने ही स्थानीय व ताजे फल उपलब्ध होंगे।
केला एक ऐसा फल है जो किसी भी भोजन का उत्तम विकल्प हो सकता है। मुझे स्मरण है, एक सड़क यात्रा में हम मार्ग से पूर्णतः भटक गए थे। हम सभी यात्री शाकाहारी थे। वहाँ एक भी ऐसी दुकान नहीं थी जहाँ शाकाहारी भोजन उपलब्ध हो। उस समय केलों ने हमारा साथ निभाया। हमने भरपूर केले क्रय किये तथा उन्ही से अपनी क्षुधा शांत की।
टमाटर, मक्खन के सैंडविच
किसी भी गंतव्य का भ्रमण करते हुए यदि आपको कुछ भी शाकाहारी भोजन प्राप्त होने की अपेक्षा ना हो तो आप किसी भी बड़ी दुकान से टमाटर, मक्खन एवं डबलरोटी क्रय कर लें तथा अपने सैंडविच स्वयं तैयार कर लें। यदि आपको उनके भीतर भरने के लिए अन्य भाजियाँ, चीज, चटनी आदि उपलब्ध हो जाए तो उनका भी प्रयोग कर सकते हैं। अपने हाथों से बनाए सैंडविच का आनंद अद्वितीय होगा।
यात्रा भोजन चुनाव
अपने इस संस्करण में मैंने जिन शाकाहारी यात्रा व्यंजनों का संकलन किया है, उन्हे निम्न आधार पर चयनित किया है:
- पौष्टिकता
- स्वाद एवं खाने का आनंद
- बांधने एवं खाने में आसान।
- टपकने एवं बहने से सुरक्षित
- दीर्घ काल तक टिकाऊ
क्या आप इनके अतिरिक्त भी ऐसे शाकाहारी व्यंजनों के विषय में जानते हैं जिन्हे आप लंबी यात्राओं में अपने साथ ले जा सकते हैं?