नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय का मेरी जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यही वह स्थान है जहां से मुझे कला इतिहास व प्राचीन भारतीय कलात्मक क्रियाकलापों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हुई थी। वास्तव में यह कला को जानने व सराहने वालों के लिए एक विशाल कलाकृति भण्डार है। इस संग्रहालय के गलियारों से गुजरते, इन संग्रहों को निहारते ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई बहुमूल्य खजाना हाथ लग गया हो। अपने गुड़गाव निवास के दौरान मैं अक्सर इस संग्रहालय में आती थी। यहाँ स्थित पुस्तकालय के पुस्तकों का अध्ययन करने में मेरी बेहद रूचि हुआ करती थी। इन्ही यादों को इतने वर्षों के बाद फिर ताज़ा करने हेतु मैंने एक पूरा दिन इस संग्रहालय में बिताया। समय के अभाव के रहते कुछ और दिन इस संग्रहालय का आनंद उठाने की अपनी इच्छा को बड़ी कठिनाई से दबाया।
दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय के १० बेहतरीन आकर्षण
अपने इस संस्मरण में मैं आपको दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में १० बेहद ख़ास आकर्षण के बारे में बताना चाहूंगी जिन्हें आप अपने संग्रहालय भ्रमण के दौरान अवश्य देखें। आशा करती हूँ कि मेरे इस संस्मरण को पढ़ने के उपरांत आप जरूर इस संग्रहालय के अवलोकन का निश्चय करंगे।
राष्ट्रीय संग्रहालय की इमारत नयी दिल्ली के मास्टर प्लान का एक हिस्सा थी जिसका निर्माण ख़ास तौर पर संग्रहालय की स्थापना हेतु ही किया गया था।
१) हड़प्पा की नृत्यांगना
आप सब ने सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में विद्यालय के पुस्तकों में अवश्य पढ़ा होगा। हड़प्पा की इस प्रसिद्ध नृत्यांगना के बारे में भी आप सब जानते होंगे। इस नृत्यांगना की मूर्ति को आप दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रत्यक्ष निहार सकते हैं। छोटे से आसन पर खड़ी यह मूर्ति अपेक्षा से विपरीत, बेहद छोटी है। सिर्फ ४ इंच की इस छोटी सी मूर्ति के नैन-नक्श व हाव-भाव निहारने हेतु थोड़ा झुकने की आवश्यकता है। तभी आप देख सकतें हैं कि कैसे इस नृत्यांगना ने अपना चूड़ियों से भरा हाथ अपनी कमर पर रखा हुआ है और बालों को जूड़े के आकार में बांध कर कैसे आत्मसम्मान से अपना सर उठाया हुआ है।
हड़प्पा की इस नृत्यांगना की मूर्ति को मोम ढलाई पद्धति द्वारा पीतल धातु में बनाया गया है। मोहनजोदाड़ो में खुदाई के दौरान पाई गयी इस प्रकार की दो मूर्तियों में दूसरी मूर्ति पाकिस्तान के करांची संग्रहालय में रखी गयी है।
सिन्धु घाटी सभ्यता को समर्पित इस गलियारे में आप कई हड़प्पा मुद्राएँ देखेंगे। यह मुद्राएँ भी अपेक्षा से विपरीत, बेहद छोटी हैं। इन पर जानवर व लिपियां खुदी हुई हैं। इस गलियारे में आप मिट्टी के खिलौने, समाधि पत्थर, मिट्टी के बर्तन इत्यादि भी देख सकते हैं। हरियाणा के राखीगड़ी में स्थित सिंधुघाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान प्राप्त एक महिला का कंकाल भी यहाँ रखा हुआ है।
२) चोल कांस्य में निर्मित नटराज की मूर्ति
चोलवंशी तमिलनाडु के तंजावुर के निवासी थे जिन्होंने ९ वीं. से १३ वीं. शताब्दी तक दक्षिण भारत, श्री लंका, मालदीव व जावा के कुछ हिस्सों पर राज किया था। काव्य, नाटक, संगीत, नृत्य व शिलाशिल्प के अतिरिक्त कांसे की बनी मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। चोल कांस्य में बनी कुछ बेहतरीन वस्तुएं चेन्नई के एग्मोर संग्रहालय व तंजावुर के मराठा महल में देखीं जा सकतीं हैं। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में भी चोल कांसे में बनी कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह है। इनमें मुख्य है प्रसिद्ध नटराज की मूर्ति। यदि समय का अभाव हो तो कांस्य गलियारे में स्थित इस नटराज की मूर्ति के दर्शन पर्याप्त आनंद प्रदान करने में सक्षम है।
हालांकि कांस्य गलियारे में देश के कोने कोने से हर काल की मूर्तियाँ रखीं हुईं हैं। जैसे हिमाचल से पंचमुखी शिवलिंग और स्वच्छंद भैरवी, दक्षिण भारत से कृष्ण द्वारा कालिया नाग मर्दन और कई देवियों की मूर्तियाँ, उत्तर भारत से गरुड़ पर विराजमान विष्णु-लक्ष्मी और सूर्य की मूर्तियाँ।
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३) बुद्ध के अस्थि अवशेष
जब भगवान् बुद्ध का शरीर अग्नि द्वारा भस्म में परिणित किया गया था, तब उनकी अस्थियों को ८ बराबर हिस्सों में बांटा गया था। इन्हें ८ स्तूपों का निर्माण कर उन में रखा गया था। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने इनमें से ७ स्तूपों के अस्थियों को ८४००० स्तूपों में बांट दिया था। इकलौता अछूता स्तूप नेपाल के लुम्बिनी के समीप रामनगर में स्थित है। बाद में इनमें से कुछ स्तूपों की खुदाई के पश्चात इन अस्थि अवशेषों का और विभाजन हुआ। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में भी थाई स्वर्ण संदूक में भगवान् बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे हुए हैं।
आप इस अस्थि स्मृति-चिन्ह को श्रद्धा नमन अर्पित कर सकतें हैं परन्तु पुष्प इत्यादि का अर्पण वर्जित है। इस बुद्ध कक्ष में पत्थर व धातु में बनी बुद्ध की कई प्रतिमाएं प्रदर्शित की गयी हैं।
४) दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के लघुचित्र
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में सम्पूर्ण भारत के लघुचित्रों का सर्वाधिक और कह सकते हैं की सर्वश्रेठ संग्रह है। एक विशाल गलियारे में असंख्य चित्रकारियाँ रखीं हुईं हैं हालांकि यह चित्रकारियाँ किसी शैली या बनावट के अंतर्गत संगठित व सुव्यवस्थित नहीं रखी गयी हैं, फिर भी एक एक लघुचित्र अपने आप में अति उत्कृष्ट रचना है।
एक मसौदे के रूप में लिपटा रखा वाराणसी शहर का नक्शा, कुछ सूक्ष्म चित्रकारों द्वारा बनाए गए आत्मचित्र, सूक्ष्म चित्रीकरण में उपयोगी उपकरण व विधियां, जटिल गणितीय समीकरण की तरह दिखतीं जैन मंडल इत्यादि प्रमुख आकर्षण हैं।
सूक्ष्म चित्रों की कला का आनंद उठाने व उसे सराहने हेतु, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय का यह लघुचित्र गलियारा सर्वोत्तम स्थान है। यहाँ अलग अलग घराने व पद्धत की शैलियाँ प्रदर्शित हैं। मुग़ल, राजस्थानी, पहाड़ी और दख्खनी लघु चित्र मुख्य आकर्षण है। हालांकि यह लघुचित्र मुख्यतः धार्मिक कथाओं और राजसी दृश्यों पर आधारित है, कहीं कहीं आम आदमी के जीवन पर बने लघुचित्र भी दिखाई पड़ते हैं। एक छोटे से स्थान पर इतना कुछ दर्शाना यह इस कला की ख़ास विशेषता है। उदाहरणतः यहाँ प्रदर्शित एक लघुचित्र में कमल की पंखुड़ियों पर बनाए सिक्खों के १० गुरु।
सलाह: संग्रहालय में एक विक्रय केंद्र है जहां से आप बारामासा या रामायण जैसे विषयों पर बनाए गए लघुचित्र श्रंखला की प्रतिकृतियाँ खरीद सकतें हैं।
५) बहुमूल्य भारतीय जवाहरातों का अलंकार संग्रह
इस संग्रहालय के अलंकार जवाहरात संग्रह में रखे करीब २५० बेहद खूबसूरत जेवर आपको मंत्रमुग्ध करने में सक्षम हैं। इस अतिसुरक्षित कक्ष के बीचोंबीच, इस खजाने की सुरक्षा में रत, यक्ष की प्रतिमा रखी है। स्वर्ण व बहुमूल्य रत्नों में गढ़ी सूक्ष्म कलाकारी युक्त जवाहरातों का बेहतरीन प्रदर्शन यहाँ देखने को मिलता है।
यहाँ मेरा पसंदीदा जेवर है एक हार जिस पर कई लघुचित्र बनाए गए हैं। स्वर्ण व उत्कृष्ट कला का अद्वितीय नमूना है यह हार।
इस संग्रह में मंदिर के देवी देवताओं हेतु बनाए गए जेवरों का भी समावेश है। साथ ही राज परिवारों द्वारा पहने गए जवाहरात भी यहाँ रखे हुए हैं। इन जवाहरातों का दर्शन ह्रदय में कई मीठी इच्छाएं जागृत कर देतीं हैं, खासकर महिलाओं के लिए।
संग्रहालय के वेबसाइट पर भी इन्हें देखा जा सकता है।
६) गंजीफा ताश के पत्ते
गंजीफा के पत्ते वर्तमान में प्रचलित ताश के पत्तों का मूल रूप हैं। प्राचीन काल में इन्हें हाथों से बना कर रंगा जाता था। इन पर धार्मिक कथाओं से सम्बंधित चित्रकारी की जाती थी। भगवान् विष्णु के दशावतार इनमें प्रमुख है।
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में इन गंजीफा ताश के पत्तों को सजावटी कला गलियारा व लघुचित्र गलियारा, दोनों में देख सकतें हैं। इनके अलावा यहाँ अन्य पटियों के खेल, जैसे शतरंज, सांप-सीड़ी इत्यादि, के भी प्राचीन रूप प्रदर्शित किये हुए हैं।
मेरी दिली इच्छा है कि इन खेलों को हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए पुनर्जीवित किया जाय।
आप इस चलचित्र में बिश्नुपुर के श्री फौजदार को गंजीफा ताश खेलने की विधि बताते देख सकतें हैं।
७) हाथीदांत की कलाकृतियाँ
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में हाथीदांत से बने भिन्न भिन्न ख़ूबसूरत कलाकृतियाँ रखीं हुईं हैं। भगवान् की दया से इन कलाकृतियों का अपार संग्रह इस संग्रहालय में उपलब्ध है। इन्हें देखकर ही संतुष्ट होने व इन्हें सहेजकर रखने की आवश्यकता है, क्योंकि हाथीदांत का व्यापार अब प्रतिबंधित है। इस कारण अब यह कला लुप्त हो चुकी है। संग्रहालय के सजावटी कला गलियारे में हाथीदांत से बने सूक्ष्म से लेकर विशाल आकार की कलाकृतियाँ रखीं हुईं हैं। यूँ तो हर एक कलाकृति बेहद खूबसूरती से बनी हुई है, इनमें मेरी पसंदीदा कलाकृतियाँ है-
• हाथीदांत में बनी भगवान् विष्णु के दशावतारों की गढ़ी व रंगी सुन्दर प्रतिकृतियाँ
• हाथीदांत की नक्काशीदार डिबिया
• नक्काशीदार हाथीदांत द्वारा बनाया गया मंदिर
एक एक कलाकृति बेहद नाजुक व महीन प्रतीत होती है मानो हाथ लगाने पर टूट जायेगी। परन्तु इतने वर्षों से इसे सहेज कर रखा गया है। इनमें से आपको कौन सी कलाकृति पसंद आई मैं जरूर जानना चाहूंगी।
८) तंजावुर की चित्रकारी
यह अपेक्षाकृत छोटा व बेहद खूबसूरत गलियारा है। दक्षिण भारत के तंजावुर व मैसूर की भव्य रंगीन चित्रकारियाँ हर तरफ रंग बिखेरतीं प्रतीत होतीं हैं। इन चित्रों में भगवान् शिव का नटराज रूप व कृष्ण भगवान् का माखनचोर बाल रूप मुख्य विषय हैं। इनमें मेरी पसंदीदा चित्रकारी प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध व भव्य दो विवाह दृश्य हैं, शिव-पार्वती विवाह और राम-सीता विवाह। इन दोनों विवाह दृश्यों पर चित्रित चित्रकारी मैंने अब तक कहीं और नहीं देखी।
नटराज रूप में शिवलीला का चित्र भी मेरा पसंदीदा चित्र है। मुझे यहाँ विठोबा, पंचमुखी हनुमान जैसे अनोखे चित्रों को भी देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
९) भारतीय लिपियों की कथा
हमने कई बार पढ़ा व अपने बड़ों से सुना कि वर्तमान काल में प्रचलित लिपियों का मूल प्राचीन स्वरुप एक ही है। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में लिपि की इसी यात्रा को दर्शाती एक विशाल तालिका रखी हुई है जिस पर प्राचीन लिपि को कई काल व कई पीढ़ियों में रूप को बदलते देख व समझ सकतें हैं। यह अनोखा परिवर्तन आपको अचंभित कर देगा।
१०) लकड़ी का नक्काशीदार द्वार
संग्राहलय के मूर्तिकक्ष में रखे गए पाषाणी मूर्तियों के बीच आप की नजर एक अनोखे लकड़ी के दरवाजे पर अवश्य पड़ेगी। नक्काशीदार लकड़ी के खणों से बना यह द्वार कई कहानियां कहता है। इस दरवाजे का निचला हिस्सा अतिउपयोग और इतने ऋतुओं को सहने के कारण घिस गया है। जैसा कि यहाँ बताया गया है, यह दरवाजा १४ वीं. शताब्दी में उत्तरप्रदेश के कटारमल में बनाया गया है।
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में देश के कोने कोने से, हर युग में बनीं वस्तुओं का अपार संग्रह है। इसके मुख्य प्रवेशद्वार से अन्दर जाते से ही आपको इनके दर्शन प्रारम्भ हो जायेंगे। आशा है कि मेरा यह संस्मरण आपके दर्शन आनंद पर खरा उतरेगा। यदि आप चाहें तो मैं एक पूरा संस्मरण यहाँ प्रदर्शित पाषाणी मूर्तिकला पर लिख सकती हूँ।
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के दर्शन हेतु सलाह
• सोमवार व सभी सार्वजनिक अवकाशों को छोड़कर दिल्ली का राष्ट्रीय संग्रहालय हर दिन प्रातः १० बजे से सांझ ५ बजे तक खुला रहता है।
• पर्यटकों की सुविधा के लिए श्रव्य परिदार्शिका उपलब्ध है।
• कुछ नियत समयों पर इस संग्रहालय का निर्धारित व निर्देशित दौरा भी उपलब्ध है। आप सही समय की जानकारी टिकट खिड़की से प्राप्त कर सकतें हैं।
• इस संग्रहालय में फोटो खींचना वर्जित नहीं है और कैमरे के अलग से शुल्क भी नहीं है। हालांकि कुछ स्थानों पर इन कलाकृतियों को नष्ट होने से बचाने हेतु अतिरिक्त रोशनाई या फ़्लैश वर्जित है।
• दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में दो कलाकृतियाँ विक्रयकेंद्र हैं, एक टिकट खिड़की के पिछवाड़े में व दूसरी इमारत की पहली मंजिल पर। यहाँ आपको कई अनोखे उपहार व यादगार वस्तुएं मिल जायेंगीं।
• इमारत के तहखाने में स्थित जलपानगृह में सादा भोजन उपलब्ध है। मुख्य इमारत में भी एक नवीन उपाहार गृह बनाया गया है। इन दोनों स्थानों पर आप जलपान ग्रहण कर सकतें हैं। गलियारों में भ्रमण के दौरान आप थक जाएँ तो यहाँ बैठ थोड़ा सुस्ता सकतें हैं।
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के बारे में रोचक जानकारी प्राप्त हुई.बचपन में पाठ्य पुस्तको में सिन्धु घाटी की सभ्यता,हडप्पा और मोहनजोदाडो आदि के बारे में पढ़ा था. सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओ में से एक है. हड़प्पा की प्रसिद्ध नृत्यांगना की सुन्दर मूर्ति सिर्फ चार इंच की है तथा खुदाई में प्राप्त दूसरी मूर्ति कराची संग्रहालय में है यह जानकर आश्चर्य और ज्ञानवर्धन हुआ.
सुंदर प्रभावी भाषा में रोचक जानकारी के लिए अनेकानेक धन्यवाद् .
प्रदीप जी, पता नहीं क्यों पर हमारे देश में संग्रहालय जाने का रिवाज़ ही नहीं है – जबकि यह ज्ञान का भण्डार हैं.
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.
अनुराधाजी ,आपकी बात बिलकुल सही है.अगर जाते भी है तो बाहर निकलने की जल्दी में ठीक से अवलोकन भी नही करते है.संग्रहालय तो वास्तव में ज्ञान के भंडार है .
धन्यवाद .