संस्कृत के महान कवि कालिदास के बारे तो आप सब जानते ही हैं। उनकी कथाओं, काव्यों और अन्य साहित्यिक कृतियों से भी आप अवश्य परिचित होंगे; लेकिन क्या आप भारत में स्थित उनसे जुड़ी जगहों के बारे में जानते हैं? तो चलिये आज ऐसी ही एक खास जगह के बारे में थोड़ा जान लेते हैं, जो छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में बसी है।
कहा जाता है कि महाराज राजा भोज से हुई कहा-सुनी के पश्चात कालिदास उज्जैन छोड़कर सरगुजा चले गए थे और वहीं पर बस गए थे। छत्तीसगढ़ के इस जिले में हाथी के आकार की एक बड़ी सी चट्टान रूपी पहाड़ी है जिसे रामगढ़ के नाम से जाना जाता है। इस पहाड़ी में अनेक गुफाएँ बनी हुई हैं, जिनमें से एक कालिदास से संबंधित है। यह गुफा कालिदास की नाट्यशाला के नाम से प्रसिद्ध है।
कालिदास की नाट्यशाला, रामगढ़
रामगढ़ की इन गुफाओं में से एक गुफा प्राचीन नाट्यशाला हुआ करती थी, जहाँ पर कालिदास के नाटकों का प्रदर्शन किया जाता था। इस नाट्यशाला की तुलना में अगर आज के आधुनिक नाट्यगृहों को देखा जाए तो यह अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल है कि यहाँ पर नाटकों का प्रस्तुतीकरण किस प्रकार होता था। इसके लिए पहले हमे पुरातन काल में झांकना होगा और समझना होगा कि उस समय जनसंख्या बहुत कम हुआ करती थी और यही गुफाएँ लोगों का घर हुआ करती थीं, जहाँ पर विविध समुदायों के लोग एक-दूसरे के साथ मिल जुलकर रहते थे।
इस नाट्यशाला की सबसे उल्लेखनीय बात है, उसकी अद्भुत श्रवण-गम्यता। गुफा में बने इस मंच पर की गयी छोटी सी आवाज भी काफी बड़े प्रतिवेश में साफ-साफ सुनाई दे सकती है। अब क्या यह किसी नाट्यगृह की सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण आवश्यकता नहीं है? इस गुफा में कुछ छेद भी बने हुए हैं, जो शायद किसी प्रकार के पर्दे लटकाने हेतु इस्तेमाल किए जाते होंगे। इस अर्धवृत्त गुफा अर्थात नाट्यशाला में एक साथ 50-60 लोग बड़ी आसानी बैठ सकते हैं।
कवि कालिदास
रामगढ़ की इन्हीं पहाड़ियों में कालिदास ने अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘मेघदूतम’ की रचना की थी। इसी याद में आज भी यहाँ पर आषाढ़ महीने के प्रथम दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस पहाड़ी के नीचे एक आधुनिक प्रकार का मंच बना हुआ है जहाँ पर कालिदास के जीवनकाल तथा देवनागरी में उद्धृत उनकी कृतियों को दर्शानेवाले चित्र बने हुए हैं।
कवि कालिदास की प्रमुख कृतियाँ
कालिदास जी ने यूँ तो बहुत साहित्य की रचना की है, परन्तु कुछ है जो जन मानस के स्मृति पटल पे सदैव अंकित रहेंगी इनमे से कुछ यह हैं:
सीता और रामायण
इस गुफा के पास स्थित कुछ अन्य गुफाओं में भित्तिचित्र बने हुए हैं, लेकिन मैं उन गुफाओं को नहीं ढूंढ पायी। नाट्यशाला वाली इस गुफा का इतिहास आपको रामायण-काल तक ले जाता है। माना जाता है यह गुफा रामायण में सीता द्वारा वनवास के दौरान प्रयुक्त होती थी। इस गुफा को स्थानीय रूप से सीता बेंगरा के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहीं पर रावण ने सीता का अपहरण किया था और उन्हें लंका ले गए थे। वास्तव में, अगर प्रयाग को रामेश्वरम से जोडनेवाले प्राचीन मार्ग को देखा जाए तो यह जगह लंका तक जाने वाले मार्ग में ही पड़ती है। इस गुफा में कुछ अभिलेख भी पाये गायें हैं, यद्यपि उनके उद्वाचन के बारे में मैं निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकती।
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रामगढ़ की चट्टानी पहाड़ियों में बनी इन कुदरती गुफाओं में कुछ जलस्त्रोत भी पाये गए हैं जो सालों पूर्व यहाँ पर बसनेवाले जीवन की ओर संकेत करते हैं। इन पहाड़ियों में सुरंग भी बनी हुई हैं, जो पहाड़ी के दूसरी तरफ जाने के लिए खोदे गए थे। आज इस पहाड़ी के ऊपर तक जाने के लिए व्यवस्थित सीढ़ियाँ बनाई गयी हैं। लेकिन नाट्यशाला तक जानेवाला मार्ग अपने अंतिम पड़ाव पर काफी जोखिम भरा है।
इस गुफा के आस-पास कुछ उत्कीर्णित पत्थर की मूर्तियाँ हैं। इनमें से कुछ मूर्तियाँ लाल कपड़े पर स्थापित की गयी हैं और उनके सामने कुछ चावल, छुट्टे पैसे और सिक्के अर्पित किए गए थे; जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जब आप रामगढ़ के दर्शन करने आते हैं तो यहाँ पर आपको कुछ दान जरूर देना चाहिए।
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मैं मार्च महीने के अंतिम कुछ दिनों के दौरान रामगढ़ के दर्शन करने गयी थी और उस समय वहाँ पर पहाड़ी के नीचे मेला लगा हुआ था। भारत में उत्सवों के दौरान लगनेवाले अन्य किसी भी मेले की तरह यहाँ पर भी रंग और श्रद्धा का अद्भुत मिश्रण देखा जा सकता है। इसी के साथ यहाँ पर मिठाई और चाट की बड़ी-बड़ी दुकानें भी लगी हुई थीं।
भारत में आप जहाँ जाइए वहां कहानियां तो मिल ही जाती हैं. पर रामगढ में तो हमें कवि कालिदास की कहानी के साथ साथ उनकी प्राचीन नाट्यशाला भी मिल गयी। हैं न यह देश अजब-गजब!