दूधसागर जलप्रपात – गोवा का प्रसिद्द एवं भारत का सर्वोत्कृष्ट झरना

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दूधसागर जलप्रपात, इस नाम का स्मरण होते ही विशाल दूधिया जलप्रपात से होकर जाती रेलगाड़ी का दृश्य मानसपटल पर उभरने लगता है। ऊंचा, परतदार तथा चिरस्थायी यह रमणीय झरना गोवा का प्रमुख दर्शनीय स्थल बन चुका है। इसका श्रेय कई मायनों में भारत के चलचित्रों को जाता है जिन्होंने इसकी सुन्दरता को परदे पर उतार का इसे जन मानस तक पहुँचाया है। चेन्नई एक्सप्रेस जैसे कई चलचित्रों में इस जलप्रपात के अप्रतिम दृश्यों को उत्कृष्टता से प्रस्तुत किया गया है। यह और बात है कि दूधसागर झरने को गोवा के अपेक्षा अन्य स्थलों में दर्शाया गया है।

गोवा का दूधसागर झरना
गोवा का दूधसागर झरना

इस मनोरम दूधसागर जलप्रपात को मैंने पहली बार तब देखा जब मैं महाराष्ट्र पर्यटन द्वारा योजित सात दिनों की भव्य रेल यात्रा ‘डेक्कन ओडिसी’ द्वारा महाराष्ट्र एवं गोवा के पर्यटन स्थलों का आनंद उठा रही थी। अपने आरामदायक कक्ष से इस अतिसुन्दर झरने के दर्शन प्राप्त कर मैं आत्मविभोर हो गयी थी। दर्शनोपरांत हम सब यात्री इसी जलप्रपात की सुन्दरता के गुणगान में डूब से गए थे। मेरे गोवा स्थानान्तरण के पश्चात मैंने इस जलप्रपात की सुन्दरता के दर्शन कई बार तथा कई रेल गाड़ियों द्वारा गोवा आते जाते प्राप्त किये थे। अतः मैंने निश्चय किया कि इस समय रेलगाड़ी द्वारा दर्शन ना करते हुए, वहां प्रत्यक्ष उपस्थित होकर इसकी सम्पूर्ण सुन्दरता को आत्मसात करूं।

दूधसागर जलप्रपात की कथा

दूधसागर जलप्रताप के प्रथम दर्शन
दूधसागर जलप्रताप के प्रथम दर्शन

दूधसागर अर्थात् दूध का सागर। इस नाम के पीछे भी एक रोचक कथा है।

इस कथा के अनुसार पश्चिमी घाटों के मध्य एक झील हुआ करती थी जहां एक राजकुमारी अपनी सखियों सहित स्नान करने प्रतिदिन आती थी। स्नानोपरांत वे घड़े भर दूध का सेवन करती थीं। एक दिवस वे झील के जल में अठखेलियाँ कर रही थीं। तब वहां से जाते एक नवयुवक की दृष्टी उन पर पड़ी और वह वहीं ठहर कर उन्हें निहारने लगा। अपनी लाज रखने हेतु राजकुमारी की सखियों ने दूध का घडा झील में उड़ेल दिया ताकि दूध की परत के पीछे वे स्वयं को छुपा सकें।
कहा जाता है कि तभी से इस प्रपात का दूधिया जल अनवरत बह रहा है।

इस रोचक कथा को सुनने के पश्चात जब आप इस प्रपात के जल को देखेंगे तो वह अवश्य दूधिया प्रतीत होगी।

दूधसागर जलप्रपात के तथ्य

दूधसागर – झरने के नदी तक
दूधसागर – झरने के नदी तक

मांडवी नदी पश्चिमी घाट से पणजी की ओर बहती है और अरब सागर में जा मिलती है। दूध सागर जलप्रपात मांडवी नदी की इसी यात्रा का एक संक्षिप्त विराम है। यह भारत का पांचवा सर्वोच्च जलप्रपात है।

दूध सागर जलप्रपात की सम्पूर्ण ऊंचाई ३०० मीटर अथवा १००० फीट से किंचित अधिक है।

दूधसागर जलप्रपात ऊंचाई से नीचे एक गहरे हरे झील में गिरता है। तत्पश्चात इसका जल पश्चिमी दिशा में गमन करते हुए अरब महासागर में जा मिलता है।

गोवा के दूधसागर जलप्रपात यात्रा का विडियो

भारतीय रेल की पटरियां यहाँ कुछ इस प्रकार बिछी हुई हैं कि रेल इस प्रपात के मध्य से होकर जाती है। इसी दृश्य का एक विडियो यहाँ प्रस्तुत है जिसे देख आप प्रत्यक्ष इस अद्भुत दृश्य का आनंद उठा सकते हैं।

दूधसागर जलप्रपात के आसपास के मंदिर

जीप द्वारा घने वन के प्रवेश द्वार से दूधसागर जलप्रपात की ओर जाते हमें कुछ छोटे घर दृष्टिगोचर हुए। इसका अर्थ है कि कुछ लोग यहाँ निवास भी करते हैं। हमने यहाँ कुछ गन्ने के खेत भी देखे। हमें बताया गया कि किसान इन खेतों में कार्य करने प्रातःकाल आते हैं तथा कार्य समाप्त कर सान्झबेला में यहाँ से वापिस चले जाते हैं। अतः यहाँ मंदिरों की उपस्थिति आश्चर्यजनक घटना नहीं है।

दूधसागर बाबा मंदिर
दूधसागर बाबा मंदिर

हमें राह में दो मंदिरों के दर्शन हुए। हालांकि जीप से नीचे उतरने की अनुमति ना होने के कारण हम इनके भीतर नहीं जा सके। हमें बताया गया कि पहला मंदिर दूधसागर बाबा का है। यह दूधसागर बाबा कौन हैं मुझे इसकी जानकारी नहीं है। यद्यपि मंदिर अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत हो रहा था।

दूसरा मंदिर सत्तरी देवी का था। यह वही सत्तरी देवी हैं जिनके सम्पूर्ण गोवा में अनेक देवस्थान हैं। हालांकि गोवा में शान्तादुर्गा देवी के भी कई मंदिर हैं।अतः यह प्रामाणिकता से नहीं कहा जा सकता कि गोवा की पीठासीन देवी सत्तरी देवी हैं अथवा शांतादुर्गा देवी। लोगों की मान्यता है कि शांतादुर्गा देवी तथा सत्तरी देवी एक ही देवी के दो स्वरुप हैं।

दूधसागर जलप्रपात के दर्शन

दूधसागर झरने की और जाता कच्छा रास्ता
दूधसागर झरने की और जाता कच्छा रास्ता

दूधसागर जलप्रपात के दर्शन हेतु हम प्रातःकाल ९ बजे मोलें गाँव पहुंचे। पर्यटन का मौसम होने के कारण जलप्रपात दर्शन हेतु भारी मात्रा में पर्यटक यहाँ उपस्थित थे। जीप की टिकट के लिए तो एक लम्बी सी कतार थी। हम भी कतार में खड़े हो गए। दो घंटों की प्रतीक्षा के उपरांत हमें जीप की टिकट प्राप्त हुई। जीप द्वारा वन के प्रवेशद्वार पर पहुँचने के उपरांत भी वन में प्रवेश से पहले हमें लगभग एक घंटा प्रतीक्षा करनी पड़ी। हमें बताया गया कि वन की मूल प्रकृति को नष्ट होने से बचाने के लिए जीपों की सीमित संख्या ही भीतर भेजी जाती है। अपने वनों के संरक्षण के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं।

हम वहीं कतार में खड़े होकर अपने आसपास के दृश्य का आनंद उठाने लगे। हमारे निकट से ही शांत एवं निर्मल मांडवी नदी बह रही थी। वन में जंगली पशु एवं पक्षियों के दर्शन की भी अभिलाषा थी, यद्यपि इतनी गाड़ियों एवं पर्यटकों की उपस्थिति में इसकी संभवता पर शंका थी।

कुछ क्षणों उपरांत वन के प्रवेशद्वार को पार कर हमारी गाड़ी घने जंगल में बनी पगडण्डी से आगे बढ़ने लगी। राह में हमने कई जलधाराओं को अपने इधर उधर से जाते देखा, तो दो जलधाराओं को गाडी से पार भी किया। यह एक रोमांचक अनुभव था। वर्षा ऋतू के पूर्णतया समाप्त ना होने के कारण रास्ता किंचित नम एवं कही कहीं कीचड भरा भी था।

जहां हमारी गाड़ी से हमें उतारा गया वहां एक पर्यवेक्षण बुर्ज था जिस पर चढ़ कर दूधसागर जलप्रपात दृष्टिगोचर होता है। यदि आप जलप्रपात तक की १ की.मी. की पदयात्रा नहीं करना चाहते तो आप यहीं से जलप्रपात के दर्शन कर सकते हैं। यहाँ से भी जलप्रपात का विहंगम दृश्य प्राप्त होता है। यह और बात है कि इस बुर्ज को वहां उपस्थित बन्दर अपनी संपत्ति मानते हैं। अतः आपको उनसे कुछ समझौता करना पड़ सकता है।

दूध सागर जलप्रपात तक की पदयात्रा

पत्थर अवं नदियाँ – दूधसागर के रास्ते पर
पत्थर अवं नदियाँ – दूधसागर के रास्ते पर

अड्डे पर जीप खड़ी कर हमने झरने की ओर चलना आरम्भ किया। हम सब के मनमस्तिष्क में इस विहंगम जलप्रपात को समीप से देखने की उत्तेजना हिलोरें मार रही थीं। रास्ते पर कई उतार चड़ाव पार करते हम एक जलधारा के ऊपर बने पुलिया पर पहुंचे। दायीं ओर से पत्थरों के बीच से खलखल करती आ रही जलधाराएं हमारे बाईं ओर शक्तिशाली नदिया में परिवर्तित हो रही थीं। समीप स्थित एक वृक्ष की शाखा उस नदिया पर पूर्णतः झुकी हुई थी, मानो उसके निर्मल स्पर्श का आनंद उठाना चाहती हो।

यह एक अद्भुत दृश्य था। एक ओर पत्थरों से कलकल बहती जलधारा के मधुर स्वर कानों में गूँज रहे थे तो दूसरी ओर कई जलधाराओं का इस प्रकार शक्तिशाली नदिया में परिवर्तित होते देखना अत्यंत रोमांचक था। कुछ क्षण इस मनमोहक दृश्य का आनंद प्राप्त करने के पश्चात हम आगे बढ़े। कुछ दूरी पर हमारा आनंद दुगुना हो गया जब ऐसी ही एक और जलधारा ने हमारा अविस्मरणीय स्वागत किया।

दोनों जलधाराओं को पार करने के उपरांत मार्ग किंचित चट्टानी एवं फिसलन भरा होने लगा था। मैंने अपने समक्ष कई पर्यटकों को इनसे जूझते देखा। मैं भी सावधानी से आगे बढ़ने लगी। और अचानक एक विहंगम जलप्रपात हमारे समक्ष झरझर करता बह रहा था। यहाँ से सम्पूर्ण जलप्रपात दृष्टिगोचर हो रहा था। जैसा चित्रों में देखा, उससे कहीं अधिक विशाल एवं असाधारण यह दूधसागर जलप्रपात देख हम कुछ क्षणों को जड़ हो गए थे। एक रेलगाड़ी का पुल इसे बीचोंबीच से दो भागों में विभाजित रहा था।

यह एक अत्यंत मनमोहक दृश्य था। उस पर से हमारी दृष्टी हटने को इच्छुक ही नहीं थी।

कुछ क्षणों उपरांत हम जलप्रपात के समीप पहुँचने को और आगे बढ़े। मार्ग अत्यंत जोखिम भरा था। चारों ओर फिसलन भरी चट्टाने थीं। बन्दर हमारे आसपास छलांग लगा कर अपनी उपस्थिति दर्शा रहे थे। गिरते पड़ते अंततः हम जलप्रपात के चरणों तक पहुँच ही गए। कदाचित ग्रीष्म ऋतु में मार्ग सूखा एवं अपेक्षाकृत कम जोखिम भरा हो, किन्तु ग्रीष्म ऋतु में जल की मात्रा भी कम हो जाती है।

गोवा का दूधसागर जलप्रपात

दूधसागर झरने के तल पर आनंदित पर्यटक
दूधसागर झरने के तल पर आनंदित पर्यटक

दूधसागर जलप्रपात के चरणों में समुद्री नीले रंग के जल से भरी झील है। इस झील में कई पर्यटक तैर रहे थे। सबने लाल रंग का सुरक्षा कवच पहना हुआ था तथा कई जीवनरक्षक चट्टानों पर बैठ उन पर दृष्टी रखे हुए थे। मेरी तीव्र इच्छा थी कि जलप्रपात के समीप पहुंचकर नीचे गिरते जल का कोलाहल अनुभव कर सकूं, किन्तु इतने पर्यटकों की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। पर्यटकों के आनंदमय शोरगुल में जलप्रपात का मधुर कोलाहल लुप्त सा हो रहा था। अतः श्रवणेद्रियों पर अधिक दबाव ना डालते हुए अपने चक्षुओं द्वारा प्राप्त आनंद में सराबोर होने लगी। चंचल जल की अविचलित अनवरत धारा को देखना मनमस्तिष्क को अत्यंत शीतलता प्रदान कर रहा था।

चट्टानों पर कुछ चटक पीले रंग के आसन थे जिन पर बैठ कुछ वयस्क पर्यटक जलप्रपात का आनंद ले रहे थे। मैं भी कुछ क्षण एक आसन पर बैठ गयी। किन्तु चट्टानें मुझे अपनी ओर आकर्षित करने लगी तथा जलप्रपात के और समीप जाने को बाध्य करने लगी। पर्याप्त समय झील के किनारे बैठ जलप्रपात को निहारने के पश्चात तृप्त मन से लौटने की तय्यारी की। मन संतुष्ट था इस विचार से कि चार वर्ष गोवा में निवास के उपरांत अंततः मुझे इस विहंगम दूधसागर जलप्रपात के दर्शन प्राप्त हो ही गए।

दूधसागर जलप्रपात तक कैसे पहुंचे?

दूधसागर झरने का आनंद लेते हुए
दूधसागर झरने का आनंद लेते हुए

दूधसागर जलप्रपात, गोवा-कर्नाटक राज्यों की सीमा पर स्थित भगवान् महावीर वन्य अभ्यारण्य के भीतर स्थित है। अभ्यारण्य के किनारे स्थित मोलें गाँव से सड़क मार्ग द्वारा यहाँ पहुंचा जा सकता है। यदि आप रेलगाड़ी द्वारा यहाँ पहुँचना चाहते हैं तो कुलें स्टेशन पर उतर कर गाड़ी द्वारा भी यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं।

दूधसागर जलप्रपात गोवा के पणजी शहर से ७० कि.मी. व मडगाव शहर से ४६कि.मी. तथा कर्नाटक के बेलगाव शहर से लगभग ८० कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

पणजी शहर से टैक्सी का भाडा लगभग ३००० से ४००० रुपये है। अन्य भाड़े इसी अनुपात में निर्धारित हैं।

वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में गोवा पर्यटन विभाग निर्धारित स्थलों की आयोजित यात्रा की व्यवस्था करता है। इसके अंतर्गत दूधसागर जलप्रपात के साथ साथ, मसालों के बगीचे तथा प्राचीन गोवा जैसे पर्यटन स्थलों के भी दर्शन प्राप्त हो सकते हैं। अधिक जानकारी हेतु गोवा पर्यटक विभाग के अधिकारिक वेबस्थल पर संपर्क करें।

यदि आप रोमांचक पदयात्रा में रूचि रखते हैं तो आप कुवेशी गाँव (६कि.मी), या कुलें स्टेशन (११कि.मी) अथवा कैसल रॉक (१४कि.मी) से पदयात्रा करके भी यहाँ पहुँच सकते हैं।

दूधसागर जलप्रपात के निकट उपलब्ध होटल तथा जलपानगृह

दूधसागर स्पा रेसॉर्ट – मोलें गाँव में गोवा पर्यटन विभाग का दूधसागर रेसॉर्ट उपलब्ध है। यह उस स्थल से अत्यंत निकट है जहां से जीप गाड़ी की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। यहाँ अत्यंत आकर्षक एवं सुख-सुविधाओं से लैस तम्बू रुपी आवास उपलब्ध हैं। यहाँ ठहर कर आप जंगल में ठहरने का आनंद प्राप्त कर सकते हैं। पिछली वर्षा ऋतु में मैंने भी यहाँ कुछ दिन अपना डेरा जमाया था तथा चारों ओर स्थित जंगल का भरपूर आनंद उठाया था। इस रेसॉर्ट के विषय में और अधिक जानकारी हेतु उनके वेबस्थल से संपर्क साधें।

जंगल कैफ़े – यह एक प्यारा सा बगीचानुमा जलपानगृह है। इसकी छत अनेक लटकते गमलों द्वारा बनायी गयी हैं जिनमें तरह तरह के पौधे उगाये हुए हैं। यह एक पर्यावरण अनुकूल स्थल है जहां हम चारों ओर से पौधों से घिरे रहते हैं। साथ ही यहाँ कचरा प्रबंधन भी दक्षता से किया जाता है। खाना सादा होते हुए भी स्वादिष्ट तथा पर्याप्त है।

जीप टिकट खिड़की के आसपास भी कुछ छोटे भोजनालय हैं जहां कई प्रकार के खाद्य प्रदार्थ उपलब्ध हैं। मछली करी यहाँ का प्रसिद्ध पक्वान्न है।

दूधसागर जलप्रपात दर्शन हेतु प्रवेश शुल्क

• जीप शुल्क – २८०० रु. प्रति जीप अथवा ४०० रु. प्रति व्यक्ति
• सुरक्षा जैकेट – ३० रु. प्रति व्यक्ति
• जंगल प्रवेश शुल्क – ५० रु. प्रति व्यक्ति
• सादा कैमरा – ३० रु. प्रति कैमरा
• विडियो कैमरा – अनुमति प्राप्ति आवश्यक है। ( कोई उन्हें बताये कि सर्व वर्तमान कैमरे विडियो भी तैयार करते हैं)
• मोबाइल कैमरा – निःशुल्क

यह सर्व शुल्क अक्टोबर २०१७ में घोषित थे। वर्तमान शुल्क में परिवर्तन शक्य है।

दूधसागर जलप्रपात तक यात्रा एवं दर्शन हेतु कुछ सुझाव

दूधसागर जलप्रताप – गोवा
दूधसागर जलप्रताप – गोवा

1. दूधसागर जलप्रपात पर्यटकों हेतु अक्टूबर मध्य से मई के अंत तक खुला रहता है। तिथि संबंधी सटीक जानकारी हेतु गोवा पर्यटन विभाग से संपर्क करें।
2. दूधसागर जलप्रपात का दर्शन वर्षा ऋतु में प्रतिबंधित है। वर्षा ऋतु में नदी तथा जलप्रपात का जल अत्यधिक उफान पर रहता है। जीप नदियों को पार कर जलप्रपात तक नहीं पहुँच सकतीं। धरती अत्यधिक फिसलन भरी होने के कारण जलप्रपात तक पैदल यात्रा भी अत्यंत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। कुछ दलाल आपके समक्ष रेल द्वारा जलप्रपात तक पहुंचाने का प्रस्ताव रख सकते हैं। उनके प्रस्ताव को स्वीकारना मूर्खता सिद्ध हो सकती है क्योंकि कदाचित आपको वापिसी हेतु कोई रेल सुविधा प्राप्त न हो।
3. भगवान् महावीर वन्य अभ्यारण्य के भीतर प्रवेश हेतु जीप में स्थान क्रय करना आवश्यक है। मेरी यात्रा के समय यहाँ प्रतिदिन लगभग २२५ जीपों की सुविधाएं उपलब्ध थीं तथा प्रत्येक जीप में ७ व्यक्ति बैठ सकते हैं।
4. जीप द्वारा निर्धारित स्थल तक पहुँचने के उपरांत आप जलप्रपात के निकट ६० से ९० मिनट तक का समय बिता सकते हैं। इसके उपरांत जीप तक वापिस पहुंचना आवश्यक है ताकि जीप आपको वापिस पहुंचा कर अन्य यात्रियों को जलप्रपात के दर्शन हेतु ले जा सके।
5. जीप की टिकट क्रय करने हेतु लंबी कतार रहती है। जीप में बैठने के उपरांत, जंगल के प्रवेशद्वार पर भी कतार में अपनी पारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जंगल में प्रवेश से पूर्व प्लास्टिक की सर्व वस्तुओं को बाहर ही छोड़ना पड़ता है।
6. जंगल के भीतर तथा जलप्रपात के निकट अपने समीप किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ न रखें। वहां उपस्थित बन्दर इनकी सुगंध आने पर आप पर हमला कर सकते हैं।
7. जीप अड्डे से जलप्रपात तक की दूरी लगभग १ की.मी. है। राह में दो नदियों के ऊपर बने नाजुक पुलों को पार करना पड़ता हैं। राह का अंतिम चरण पथरीला तथा खतरनाक है। बच्चों तथा वयस्कों के संग सावधानी पालने की अत्यंत आवश्यकता है। गोवा पर्यटक विभाग से मेरी प्रार्थना है कि वे उपयुक्त मंचों का निर्माण करा कर राह को अधिक सरल बनाए।
8. यदि आप मोलें गाँव के समीप निवास कर रहे हैं तो जलप्रपात दर्शन हेतु आधा दिवस पर्याप्त है, अन्यथा एक पूर्ण दिवस आप दूधसागर दर्शन हेतु निर्धारित करें।

चिकित्सीय सुविधाएं

1. जंगल के भीतर प्रवेश के उपरांत किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सुविधाएं तथा खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं। अतः अपनी आवश्यकता की वस्तुएं साथ रखें।
2. जलप्रपात के निकट जीवन रक्षक आप पर निरंतर दृष्टी रखे रहते हैं ताकि झील में आप के साथ किसी भी प्रकार की दुर्घटना ना हो। किन्तु उनके पास औषधियाँ उपलब्ध नहीं होती हैं।
3. यदि आप झील में उतरना चाहें तो रक्षा जैकेट अवश्य पहने। यह आप की सुरक्षा हेतु अत्यंत आवश्यक है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

2 COMMENTS

  1. अनुराधा जी,
    बहुत ही रोचक जानकारी ! दरअसल हमारे देश में ही असंख्य मनोरम, प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण स्थल एवम् प्राचीन धरोहरें है,हमें देश से बाहर जाने की जरूरत ही नहीं ।
    दूधसागर जलप्रपात के बारे में कहानी भी बड़ी रोचक हैं ! भगवान महावीर जी के नाम पर भी एक वन्य अभयारण्य हैं-एक नईं जानकारी !
    पूर्व मे भी गोवा के बारे में आपका ब्लाॅग पढ़ा था,सच में गोवा प्राकृतिक सौन्दर्य और विविधताओं से भरपुर प्रदेश हैं ।
    धन्यवाद ????

    • प्रदीप जी – गोवा में रहने के बाद ही मैंने भी गोवा को थोडा बहुत जाना समझा है। वास्तव में यह एक समृद्ध प्रान्त है, सांस्कृतिक एवं नैसर्गिक धरोहर से परिपूर्ण ।

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