कुंजुम और रोहतांग दर्रा – दो हिमालयी दर्रों की कथा 

2
5085

कुंजुम दर्रे पर फूल और हिम एक साथ
कुंजुम दर्रे पर फूल और हिम एक साथ

कुंजुम दर्रे की यात्रा मेरे लिए हमेशा से एक सुदूर दुर्लभ सपने की तरह थी। जब हम किन्नौर, लाहौल और स्पीति घाटी की यात्रा पर निकले थे, तो हम इस बात से अवगत थे कि कुंजुम दर्रा इस यात्रा का चरम बिंदु होगा – भौगोलिक रूप से और मानसिक रूप से भी। हमने सुना था कि यह दर्रा प्रति वर्ष सिर्फ कुछ ही महीनों के लिए आवागमन के लिए खुलता है। मैंने कुंजुम दर्रे से जानेवाले इस मार्ग से गुजरे उन सभी लोगों को लगभग अपना आदर्श मान लिया था। मैं उस जगह पर खड़ा होना चाहती थी जहाँ पर कभी वे लोग खड़े थे और देखना चाहती थी कि उस स्थान से दुनिया कैसी दिखती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कुंजुम दर्रा इस यात्रा पर जाने का सबसे प्रमुख प्रेरणास्रोत था।

पिघलते बनते भुरभूरे से हिमालय पर्वत
पिघलते बनते भुरभूरे से हिमालय पर्वत

हिमाचली सेबों के दर्शन करते हुए और सतलेज नदी की प्रशंसा करते हुए किन्नौर में कुछ दिन बिताने के पश्चात और स्पीति के शीतल रेगिस्तान से सफर करने के पश्चात हम हिमाचल प्रदेश में स्थित लाहौल और स्पीति घाटी के लाहौल क्षेत्र की ओर बढ़े। हम सुबह-सुबह ही काजा से निकले और स्पीति नदी के किनारे पर बसे छोटे-छोटे गांवों से गुजरते हुए आगे बढ़ते गए। नीला आसमान, कहीं-कहीं पर नज़र आती हरी भूमि, बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियाँ, स्पीति नदी के किनारे की मटमैली सी नालियाँ और उन बादलों के बीच एक भी ऐसा पल नहीं गुजारा जब हम थके हो या ऊब गए हो। स्पीति नदी के किनारे घास चरते भेड़ों के झुण्ड इस परिदृश्य की स्थिरता को गति प्रदान कर रहे थे। यहाँ का प्रत्येक दृश्य कैमरे में कैद करने लायक था।

शेराब चोलिंग नन्नरी, मोरंग गाँव, स्पीति
शेराब चोलिंग नन्नरी, मोरंग गाँव, स्पीति
शेराब चोलिंग नन्नरी, मोरंग गाँव, स्पीति

रास्ते में मोरंग गाँव में हमे शेराब चोलिंग नन्नरी के दर्शन करने का मौका मिला। स्पीति घाटी में बसे छोटे-छोटे गांवों के अनुपात में यह नन्नरी काफी बड़ी है। पारंपरिक हिमालयी वास्तुकला में निर्मित इस भवन के चारों ओर रंगबिरंगी फूल खिले हुए थे। हमे वहाँ आस-पास कोई नहीं दिखा जिससे कि हम इस नन्नरी के संबंध में थोड़ा और जान सके। अगर हम वहाँ की महिलाओं से मिल पाते तो अच्छा रहता, पर वो कहते हैं न – सब कुछ एक साथ नहीं मिलता।

कुंजुम और रोहतांग दर्रे की साहसिक यात्रा, हिमाचल 

स्पीती नदी पर पुल
स्पीती नदी पर पुल

इन पर्वतों के जीर्ण-शीर्ण आवरण उनकी रक्षा करने के लिए खड़े सैनिकों की तरह लग रहे थे या फिर वे बस सीधे-सादे पहाड़ी लोग थे, जो हमारी तरह ही आस-पास की प्रकृति की उदारता से विस्मित थे। रास्ते में मिलने वाले मेहराब जिन पर बौद्ध धर्म के चिह्न बने हुए थे, हर बार किसी गाँव की प्रवेश सीमा या प्रस्थान सीमा को घोषित करते थे। यह लगभग 75 कि.मी. की दूरी थी जिसे हमे पार करना था, लेकिन यहाँ की उबड़-खाबड़ सड़कों पर संभलकर आगे बढ़ते हुए और चरों और फैले सौंदर्य को अपने कैमरे में कैद करते हुए हमे 75 कि.मी. की दूरी पार करने में कुछ घंटे लगे।

कुंजुम दर्रे की यात्रा
कुंजुम दर्रे की और ले जाती सड़क
कुंजुम दर्रे की और ले जाती सड़क

जैसे ही हमारे ड्राईवर ने हमे सूचित किया कि हम कुंजुम दर्रे तक बस पहुँचने ही वाले हैं, तो मेरे सभी इंद्रिय जैसे कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो उठे। मैं अपने सभी इंद्रियों से आस-पास के वातावरण को आत्मसात करना चाहती थी। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए रंगबिरंगी फूलों से सुसज्जित घास के व्यापक मैदान हमारे सामने प्रकट होने लगे। वहाँ की एक पहाड़ी की ढलान पीले फूलों की चादर से आवृत्त थी। वे फूल अभी-अभी खिले थे और उनमें किशोरावस्था की ताजगी साफ झलक रही थी। बर्फ से ढकी इन चोटियों की शुभ्र पृष्ठभूमि में ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों पर खिले नाजुक फूलों का यह नज़ारा अद्वितीय लग रहा था।

भेड़ें चराता चरवाहा - कुंजुम दर्रा
भेड़ें चराता चरवाहा – कुंजुम दर्रा

वहाँ पर एक चरवाहा आराम से टहल रहा था और उसके भेड़ वहीं पर पास में घास चर रहे थे। उसके भेड़ अपनी भूख मिटाने और नदी का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने में लीन थे। मुझे तो वो पानी देख कर ही ठण्ड लग रही थी. न जाने वह भेड़ें कैसे गड गड इतना ठंडा पानी पी रही थी। लेकिन फिर मुझे लगा कि इन लोगों के पास इस ठंड से बचने का कोई न कोई ऊपय जरूर होगा।

कुंजुम दर्रा
कुंजुम दर्रा

वहाँ से थोड़ा आगे जाने पर हमे एक छोटा सा बौद्ध मंदिर दिखा जिसके चारों ओर रंगबिरंगे झंडे लगे हुए थे। यह मंदिर इस बात का संकेत था कि हम कुंजुम दर्रे के समीप पहुँच गए हैं। वहाँ से आगे बढ़ते ही कुछ ही मिनटों में हम उस जीर्ण-शीर्ण से मील के पत्थर के पास पहुँच गए जो बड़े गर्व से घोषित कर रहा था कि हम कुंजुम दर्रे की भूमि पर खड़े थे।

बौद्ध मंदिर के दर्शन
चोरतम या बौद्ध मंदिर - कुंजुम दर्रा
चोरतम या बौद्ध मंदिर – कुंजुम दर्रा

हम गाड़ी से उतरे और उस मील के पत्थर के पास खड़े होकर कुछ तस्वीरें खींचने के पश्चात वहीं पर स्थित बौद्ध मंदिरों के समूह की ओर बढ़े और हमने उनके चारों ओर घूमकर उनका एक परिक्रमा की।

अलका के साथ कुंजुम दर्रे पर
अलका के साथ कुंजुम दर्रे पर

वहां खड़े हो मुझे कुछ कुछ समझ आया की क्यों हम ऐसे स्थानों को देव स्वरूप मानते हैं। इन बौद्ध मंदिरों के चारों ओर एक परिक्रमा पथ बना हुआ है। हमारे ड्राईवर ने गाड़ी को इस पथ से मंदिरों के चारों ओर परिक्रमा के रूप में घुमाया और हमारी प्रश्न भरी नज़रों को भाँपकर हमे बताया, कि माना जाता है कि जो भी कुंजुम दर्रे से गुजरता है उसे इस मंदिर के दर्शन जरूर करने चाहिए, चाहे वह मनुष्य हो पशु। उसी बात पर मैंने आस-पास देखा तो मुझे वहाँ पर कोई भी जानवर नहीं दिखा। लेकिन मैंने बहुत से लोगों को वहाँ पर घूमते हुए देखा, जो शायद पदयात्री थे।

कुंजुम दर्रे का परिक्रमा पथ
कुंजुम दर्रे का परिक्रमा पथ

वहाँ पर उत्कीर्णित प्रार्थना के पत्थरों का ढेर था, जो हमेशा की तरह मुझे मनुष्य और उसकी श्रद्धा के बीच के अद्भुत रिश्ते के बारे में बता रहा था। ये उत्कीर्णित प्रार्थना के पत्थर प्रकृति को लिखे गए पत्रों के समान हैं जिसके द्वारा प्रकृति को हमेशा ऐसे ही उदार, पोषक और दयालु रहने की प्रार्थना की जाती है।

कुंजुम दर्रे का मनोरम दृश्य
कुंजुम दर्रे का मनोरम दृश्य

हमे उस दिन चंद्रताल तक जाना था, तो हमने जल्दी से अपनी इस यात्रा को संभव बनाने वाले नक्षत्रों का धन्यवाद किया। लालसा-वश मैंने जल्द ही यहाँ पर वापस आने के लिए भी दुआ मांगी और हम संतोषपूर्वक आगे बढ़ गए।

रोहतांग दर्रा
रोहतांग दर्रे
रोहतांग दर्रे

चंद्रताल के पास रात गुजारने के पश्चात, जहाँ पर मैंने इस यात्रा के सबसे खूबसूरत पलों को जिया। प्रातः हम मनाली की ओर निकल पड़े, जो इस लंबी सी यात्रा का अंतिम पड़ाव था। हमरे थके हुए शरीर आसानी से श्वास लेने के लिए मनाली की समधरातल का उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। जिसने भी चंद्रताल से मनाली तक की यात्रा की थी उन्होंने हमे रास्ते में मिलने वाली घातक जलधाराओं के बारे में बताया जिन्हें पार करके हमे दूसरी ओर जाना था। इस सफर के दौरान हमे कभी भी अकेले आगे बढ़ने से मना किया गया था और हमेशा कुछ अन्य गाड़ियों के साथ रहने के लिए सूचित किया गया था और हमने उनका पालन किया।

नदी नालों से गुजरते रास्ते
नदी नालों से गुजरते रास्ते

चंद्रताल से थोड़ा दूर पहुँचते ही हमारे सामने जमे हुए बर्फ को तोड़कर बनाए गए संकीर्ण मार्ग प्रकट होने लगे। मैं पहली बार ऐसे मार्ग से गुजर रही थी जिसके दोनों तरफ बर्फ की दीवारें खड़ी थीं। यह बर्फ की सुरंग भी हो सकती थी लेकिन ऊपर देखने पर आपको खुला नीला आसमान साफ दिखाई देता था।

शीतल जलधाराएँ
रोहतांग पास पे पिघलते हिमखंड
रोहतांग पास पे पिघलते हिमखंड

बिना किसी परेशानी के हमने दो जलधाराएँ बड़ी आसानी से पार की, लेकिन तीसरी जलधारा को पार करते समय हमारी गाड़ी बीच में ही अटक गयी। उसे बाहर निकालने के लिए हमे बहुत से लोगों की सहायता लेनी पड़ी। गाड़ी को इस हालत में देखना तथा अनेक लोगों उस ठंडे बहते जल में खड़े होकर उसे धक्का देते हुए देखना काफी कष्टदायक था। यह सब देखकर मेरे मन में यही विचार आया कि क्या मुश्किल समय ही है जो हम सबको मनुष्य के रूप में हमें एक साथ लाकर खड़ा करता है।

हिमाचल की अधिकतर सड़कें पगडंडियों जैसी हैं, जिन्हें हर समय बर्फ और गिरते पत्थरों का सामना करना पड़ता है। जो भी वाहन वहाँ से गुजरता है उसे जितना हो सके उतनी शांति पूर्वकता से निकलना पड़ता है।

रंगबिरंगे फूल
रोहतांग पास पे फूल एवं हिम
रोहतांग पास पे फूल एवं हिम

इस सख्त और ऊबड़-खाबड़ से वातावरण में खिलने की इन फूलों की दृढ़ता आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। यद्यपि हम उत्तराखंड की फूलों की घाटी के बारे में तो सुनते ही रहते हैं लेकिन रोहतांग दर्रे की ओर जाते हुए हम वहाँ की पहाड़ियों पर दूर तक फैली फूलों की लंबी-लंबी क्यारियाँ देख सकते हैं। यहाँ की सबसे रोचक बात यह है, कि यहाँ कि अधिकतर ढलानों पर आपको एक ही रंग के फूल नज़र आएंगे। यानी आपको एक ढलान पर केवल जामुनी या बैंगनी रंग के फूल ही नज़र आएंगे, तो दूसरी ढलान पर सिर्फ नीले रंग के फूल ही नज़र आएंगे और अन्य किसी पहाड़ी पर केवल उज्ज्वलित गुलाबी रंग के या पीले रंग फूल ही नज़र आएंगे।

पिघलते हिमखंड
स्पीती घाटी के परिदृश्य
स्पीती घाटी के परिदृश्य

इन रंगबिरंगी फूलों की प्रशंसा करते-करते हम रोहतांग दर्रे के नजदीक पहुँच गए। हमारे चारों ओर फैली हुई सफ़ेद बर्फ अद्भुत लग रहा थी, लेकिन इस बर्फ के नीचे बहता हुआ पानी और भी लुभावना था। यहीं पर आपको ज्ञात होता है कि हिमखंड कैसे हिलते हैं। अध-जमी जलधाराएँ पहाड़ियों की ढलानों से रास्ता बनाते हुए नीचे बहती नदियों से मिलने के लिए तत्परता से दौड़ती हैं।

रास्ते में जैसे ही हमे भुट्टा बेचनेवाला दिखा तो हमने तुरंत वही पर अपनी गाड़ी रोकी। हम ना सिर्फ कुछ गरमा-गरम खाना चाहते थे, बल्कि वहाँ से आस-पास के खूबसूरत नज़ारों का लुत्फ भी उठाना चाहते थे। हमारे चारों ओर हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ फैली हुई थीं। मेरे लिए ये पल सच में अविस्मरणीय थे। यहीं पर मुझे एहसास हुआ कि वास्तव में पहाड़ी दर्रे का अर्थ क्या है।

मनाली – रोहतांग मार्ग 
मनाली की और
मनाली की और

जल्द ही हम मनाली–रोहतांग के प्रसिद्ध मार्ग पर पहुंचे। इस पूरे मार्ग पर आप बर्फ की दीवारें देख सकते हैं, जिसके बीच-बीच में यहाँ-वहाँ आप हरयाली देख सकते हैं। तथापि मनाली के नजदीक पहुँचते-पहुँचते हमारे आस-पास के परिदृश्य धीरे-धीरे शुभ्रता से हरे रंगों में परिवर्तित होने लगे। यहाँ के पहाड़ जैसे हरी चादर ओढ़े हुए थे, जिनपर कहीं-कहीं धवल हिम दिखाई दे रहा था।

बहुत दिनों के पश्चात हमारी गाड़ी को सरल मार्ग पर चलता देख हमे आनंद आया।

कुछ ही पलों में हम मनाली की आरामदायक गोद में पहुँच गए थे। हमारे श्वसन में भी थोड़ी सरलता आ गयी थी और हमारे हृदय खुशी से भर उठे थे। हमने अपने सपनों की यात्रा जो पूर्ण की थी।

2 COMMENTS

  1. Sorry for a comment in English as I am not very good at typing in Hindi.

    Beautiful post and I loved the description, especially because you have touched some of the beautiful parts of Himalayas I love the most. I am lazy at commenting but after reading this post I felt like sharing my feelings. feeling blessed.

    • आप जिस भी भाषा में टिपण्णी करें – हमारे सर माथे पर. हिमालय सदा ही एक आशीर्वाद का प्रतिरूप रहा है, मुझे आश्चर्य नहीं की आपको पढ़ कर अच्छा लगा. हमसे जुड़े रहिये आयर हमें प्रोत्साहित करते रहिये.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here