अम्बोली घाट, हरे-भरे पश्चिमी घाट जो भारत और विश्व में जैव विविधता का प्रसिद्ध स्थल है, का एक छोटा सा हिस्सा है। वर्षा ऋतु के दौरान यह पूरी पर्वत-श्रेणी जैसे जीवंत सी हो उठती है और हरियाली की चादर ओढ़े अपने दर्शकों और इस मार्ग से गुजरनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर देती है। जब हम कास पठार और सातारा की यात्रा पर जा रहे थे उस वक्त रास्ते में अंबोली घाट से हमारा बहुत ही संक्षिप्त परिचय हुआ। उसी पल हमने फिर से वहाँ पर जाने का निश्चय कर लिया था और अगले साल हमने झरनों की नगरी अंबोली घाट के दर्शन करने हेतु एक खास यात्रा का आयोजन किया। मुंबई की भगदड़ से दूर बसी यह जगह महाराष्ट्र एक प्रसिद्ध पहाड़ी इलाका है।
महाराष्ट्र के पर्यटक स्थल
अम्बोली घाट के झरने
अंबोली घाट गोवा के पणजी शहर, जहाँ पर हम रहते हैं, से लगभग 90 कि.मी. की दूरी पर बसा हुआ है, जहाँ तक बड़ी आसानी से पहुंचा जा सकता है। रास्ते में हम नाश्ता करने के लिए सावंतवाड़ी में रुके और फिर बीच-बीच में कुछ मौसमी नदियां देखते हुए गरमा-गरम चाय की चुसकियाँ लेते हुए यहाँ-वहाँ थोड़ी देर के लिए रुके। रास्ते के उतार-चढ़ाव पार करते हुए आखिर हम पश्चिमी घाट की थोड़ी सहल सी ढलान में पहुंचे जहाँ से आगे हमे हरी-भरी वादियाँ और घाटियां हमारा स्वागत करती हुई दिखाई देने लगी। साथ में बंदरों के बड़े-बड़े समूह भी नज़र आने लगे।
जैसे ही हमे पहला झरना नज़र आया हम वहीँ रुक गए। झरनों को पास से देखने के लिए तथा वहाँ की ताज़ा हवा और हरे-भरे परिसर का आनंद उठाने के लिए उस झरने के थोड़ा और पास चले गए। यहाँ पर हमने आस-पास की कुछ तस्वीरें भी ली। शुक्र है कि हम यहाँ पर पहले भी आए थे, जिसके चलते हमे पता था कि यहाँ से लेकर ‘बड़ा धबधबा’ अर्थात बड़े झरने तक हमे अनेक छोटे-बड़े झरने मिलने वाले थे और इसीलिए हमने आगे की यात्रा पैदल ही करने का निश्चय किया।
रास्ते में हमे बहुत सी जल-धाराएँ दिखी, जो नीचे जाकर नदी से मिलने के लिए आतुर थीं और ये नदियां आगे जाकर समुद्र में विलीन होने के लिए अधीर थीं। तथा यह समुद्र बादलों में व्याप्त होने के लिए उत्सुक था और बादल हमारे खेतों और खलिहानों में खुशियाँ बरसाने के लिए और फिर से इन झरनों का रूप लेकर हमारे चेहरे पर हँसी खिलाने के लिए उतावले थे।
अंबोली घाट के परिसर का भ्रमण
अम्बोली घाट के झरनों का विडियो
यह अंबोली घाट की यात्रा और वहाँ के झरनों का एक छोटा सा विडियो है, इसे जरूर देखिये।
ये झरने सड़कों से गुजरते हुए आगे जाकर किसी गहरे दून में गिरते हैं। यहाँ पर कुछ विशेष सुविधाजनक स्थल हैं जहाँ से आप अनेक झरनों को ऊंची और ढलाऊ चट्टानों से नीचे गिरते हुए देख सकते हैं। तो कुछ जगहों पर ये झरने पेड़ों के पीछे छिपे हुए होते हैं और सिर्फ अपनी गरजती हुई आवाज़ से अपने होने का एहसास दिलाते हैं। तो एक जगह पर ये झरने किसी कृत्रिम दीवार की तरह लग रहे थे, जिसमें से बाहर निकले हुए छोटे-छोटे गुलाबी रंग के फूल जैसे प्रकृति के इस निरालेपन से बिलकुल अचंभित थे। ऐसा लग रहा था जैसे इस सीधे खड़े बगीचे के लिए कोई खास प्रकृतिक जलदान की तकनीक बनाई गयी हो।
यहाँ ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं जिनके एक तरफ अनेक जलधाराएँ बहती हैं तो दूसरी तरफ गहरी घाटियां हैं जिनमें इन जल-धाराओं का पानी इकट्ठा होता है। ऐसा लगता है जैसे आप इन झरनों के बीच में से गुजर रहे हों, लेकिन शुक्र है उन अभियंतों का जिन्होंने यहाँ पर इन सड़कों का निर्माण किया। इनके होते आप बिना भीगे इन झरनों का आनंद उठा सकते हैं और सिर्फ तब तक जब तक कि बारिश ना होने लगे।
इस पदयात्रा के दौरान कुछ जगहों पर हम वास्तव में बादलों के बीच से चलते हुए आगे बढ़े, तो कुछ जगहों पर हमे इन बादलों के हटने का इंतजार करना पड़ता था ताकि सामने साफ दिखाई दे सके। कभी-कभी तो ये बादल हट जाते थे लेकिन कई बार वे वहीं पर डटे रहते थे।
झरनों के पास मिलनेवाले स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ
बड़े झरने के पास पहुँचते-पहुँचते हम सभी भूख से व्याकुल हो गए थे। वहाँ पर पहुँचते ही हमने बड़ी चाव से वहीं पर मिलनेवाले गरमा-गरम और स्वादिष्ट साबूदाने के वड़े खाए। यहाँ के साधारण से दुकानों में आपको चाय, प्याज के पकोड़े, साबूदाने के वड़े और भुना हुआ भुट्टा जैसे व्यंजन मिलते हैं। यहाँ पर सबकुछ आपके सामने ही ताज़ा-ताज़ा बनाया जाता है और परोसा जाता है। पिछली बार जब हम यहाँ आए थे, तो यहाँ की हर दुकान पर मैगी नूडल्स ही बिक रही थी, लेकिन इस बार यहाँ पर मैगी का नामोनिशान नहीं था। चारों ओर बहते पानी और साथ में हो रही वर्षा के उस वातावरण में चाय और पकड़ों से अच्छा और स्वादिष्ट और कुछ हो भी नहीं सकता था। जब हम बड़े झरने के पास पहुंचे तो वहाँ पर बहुत वर्षा हो रही थी, जिसके कारण हमने आगे जाकर बाकी के झरने देखने का निश्चय किया जो लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर बसे थे।
नागरतास झरना, अंबोली घाट
नागरतास झरने का विडियो
यात्रा के दौरान लिया गया नागरतास झरने का यह सुंदर सा विडियो जरूर देखिये।
नागरतास एक विशाल मौसमी झरना है। इस झरने की सबसे खास बात है उसका तलभाग यानी खंदक जहाँ पर झरने का पानी गिरता है। यह खंदक गिरते हुए पानी के प्रभाव के कारण बहुत ही प्रखर और संकीर्ण बन गया है। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार से झरने का पानी इस विशाल मखराली चट्टान में से अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ता है। यह सबकुछ सच में बहुत ही अप्रतिम है।
यहाँ पर इस झरने को देखने के लिए एक खास मंच बनवाया गया है, जिसके प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के सामने घंटियों का एक बड़ा सा गुच्छा लटकाया गया है। शायद इसके पीछे भी कोई ना कोई कहानी जरूर होगी लेकिन उस समय मैं पूरी तरह से उस झरने की खूबसूरती में डूब गयी थी, जिसके चलते मैं अन्य किसी भी बात पर ध्यान देने की स्थिति में नहीं थी।
उस मंच पर खड़े होकर हम झरने में रूपांतरित होती उस नदी को देख रहे थे। बाद में हम एक और पुल जैसी बनी किसी संरचना के पास गए जो पानी के संघात से निर्मित सँकरी सी घाटी पर खड़ी थी। मैंने इस प्रकार की कोई चीज़ इससे पहले कहीं पर नहीं देखी थी।
हिरण्यकेशी गुफा मंदिर
यहाँ-वहाँ घूमते-घूमते हम हिरण्यकेशी गुफा के पास पहुंचे, जो व्यावहारिक रूप से एक शिव मंदिर है। इस गुफा तक जाने वाले उतार-चढ़ाव वाले मार्ग के दोनों तरफ आपको मंत्रमुग्ध कर देनेवाले परिदृश्य मिलते हैं। यहीं पर हमने पहली बार गेंद जैसे गोलाकार पौधे देखे, जो यहाँ की झड़ियों में इधर-उधर छितरे हुए थे। मैं आज भी इन पौधों का नाम जानने की कोशिश में हूँ, अगर आप में से किसी को भी इन पौधों के बारे में कोई भी जानकारी हो तो कृपया हमे जरूर बताइए। यहाँ पर एक छोटी सी नदी के ऊपर एक रोड़े का पुल बना हुआ है, जिसे पार करके आप उस तरफ जा सकते हैं। हम घाटी जैसे प्रतीत होने वाले घास के मैदानों से चलते हुए इस प्राचीन मंदिर के पास पहुंचे थे जो एक समय पर बस एक गुफा हुआ करता था।
इस मंदिर के सामने ही एक सरोवर है जो पास में बहनेवाली जल-धारा से जुड़ा हुआ है। इस सरोवर का आकार कुछ रोचक सा था। यहाँ पर एक हवन कुंड भी था, जो इस मंदिर की सादगी को और भी खूबसूरत बना रहा था। इस मंदिर तक जानेवाली पगडंडी सुव्यवस्थित रूप से बनाई गयी थी जिससे कि लोग आराम से उसपर चल सके। यहाँ पर भी आपको एक तरफ से दूसरी तरफ बहती अनेक जल-धाराएँ मिलती हैं।
कवळेशेट या कवळेसाद व्यूव पॉइंट
हमने फिर से मुख्य सड़क पर आकर कवळेशेट या कवळेसाद तक जानेवाला रास्ता लिया। कवळेसाद तक हमारी यात्रा बहुत ही खूबसूरत रही। रास्ते में हमे गन्नों के खेतों से होकर जाना पड़ा जो पूर्ण रूप से कोहरे से आवृत्त थे। तथा पूरे रास्ते में मिलने वाली घाटी के सुंदर परिदृश्य भी जैसे अपनी सुंदरता को व्यक्त करने से शर्मा रहे थे और पूरे समय बादलों की उस घनी चादर के पीछे ही छिपकर बैठे हुए थे। और जैसे ही हम घाटी को पार करके आगे बढ़ने ही वाले थे कि बादलों ने हमे उनकी एक छोटी सी झलक प्रदान की जैसे कि हमे चिढ़ा रहे हो।
अगर हम चाहते तो वहीं पर पर्यटकों के लिए बने दर्शनगाह में थोड़ी देर के लिए रुक सकते थे, लेकिन उस गंदे और विद्रुप से अपूर्ण सीमेंट के ढांचे में रुकने से अच्छा था कि हम वहाँ से चले जाए। आगे जाकर हम एक अच्छे से भोजनालय में गए जहाँ पर हमने बहुत ही स्वादिष्ट मालवणी खाना खाया।
बादलों के बीच प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेना
अब फिर से बड़े झरने के पास जाने का समय आ गया था। वहाँ पर हमने झरने के ऊपर तक जानेवाली सीढ़ियों पर कुछ समय बिताया और आस-पास के वातावरण का अवलोकन भी किया। हमे वहाँ पर कुछ परिवार दिखे जो पूर्ण रूप से झरने का आस्वाद ले रहे थे। तो कुछ अन्य लोग पानी में न गिरने का ध्यान रखते हुए और अपनी मुस्कुराहट ओढ़े एक-दूसरे की तस्वीरें खींच रहे थे। यह अंबोली घाट का सबसे अधिक भीड़ वाला भाग है।
ऐसे में अगर आपको प्रकृति के साथ अपना एकांत अधिक प्रिय है, तो आप बस दूर से ही झरने के दर्शन करके वहाँ से गुजर सकते हैं। लेकिन अगर आपको लोगों के बीच रहना पसंद है तो आप वहाँ पर कुछ समय बिता सकते हैं। जैसे कि हमने भी गरमा-गरम चाय और पकौड़ों के साथ इस माहौल का पूरा लुत्फ उठाया। यहाँ पर बहुत भीड़ होने के कारण यह जगह उतनी साफ नहीं है, जितनी कि यह बाकी की सड़क है। इसके अलावा कभी-कभी आपको वहाँ पर कुछ उद्धत पुरुषों की टोली भी मिलती है जो शराब के नशे में पूर्ण रूप से डूबे हुए होते हैं।
अब वापस घर जाने का समय आ गया था, यद्यपि रास्ते में हमे सावंतवाड़ी में रुकना था।
अंबोली घाट के इन अनेक झरनों के दर्शन करने के लिए, तथा महाराष्ट्र का सबसे उत्तम पहाड़ी इलाका यानी अंबोली हिल स्टेशन घूमने के लिए आपको लगभग आधा दिन या फिर एक पूरा जरूर चाहिए।