सुखना झील चंडीगढ़ शहर का एकमात्र प्रसिद्ध जल स्तोत्र है। एक आधुनिक शहर की परिसीमा के अंतर्गत अपने आगंतुकों को प्रकृति की प्रचुरता से सराबोर कराने वाली यह झील स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों की भी सबसे पसंदीदा जगह है। सुबह और शाम के समय आपको झील के किनारे स्थानीय लोग टहलते हुए नज़र आते हैं, तो पूरे दिन यह जगह पर्यटकों से भरी होती है जो झील के पास बैठकर आस-पास की विविध गतिविधियों का आनंद लेते हुए दिखाई देते हैं।
आप सुखना झील पर नौकाविहार का आनंद ले सकते हैं, तो बैठे-बैठे इन नावों के पालों की सराहना भी कर सकते हैं। इसके अलावा आप यहां के सबसे प्राचीन वृक्ष के दर्शन कर सकते हैं, जो अब इस शहर का धरोहर वृक्ष बन गया है। आप स्मारिका दुकानों पर जाकर अपने मनपसंद वस्तुओं की खरीदी कर सकते हैं तथा यहां के प्रसिद्ध कॉफी शॉप की कॉफी का भी लुत्फ उठा सकते हैं।
सुखना झील – चंडीगढ़ में घूमने की जगहें
इस झील की पृष्ठभूमि में खड़े शिवालिक पर्वत आपको इस बात का स्मरण कराते हैं, कि आप हिमालय की तलहटी में खड़े हैं। यहां पर झील के पीछे एक आर्द्रभूमि है, जहां पर आपको विभिन्न प्रकार के घुमंतू पक्षी दिखाई देते हैं।
हाल ही में इस झील के परिसर का थोड़ा विस्तार किया गया है, जिसके चलते उसके चारों ओर बनी पगडंडी लगभग 2.2 कि.मी. तक बढ़ गयी है, जिस पर हर निश्चित अंतर के बाद कुछ चिह्नांकन किए गए हैं। यहां पर टहलते हुए आपको झील के किनारे बैठी बहुत सारी युगल जोड़ियाँ आनंद लेती हुई नज़र आती हैं। इसके अलावा यहां पर बहुत सारे पर्यटक भी थे जो अपने सामान के साथ बैठे हुए यहां के मनमोहक पर्यावरण की प्रशंसा में पूर्ण रूप से डूबे हुए थे। और इन सबसे अलग यहां पर कुछ एकांतप्रिय व्यक्ति भी थे जो अपने ही विचारों में खोये हुए थे, जैसे उन्हें किसीके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता हो।
शांति उद्यान
सुखना झील के परिसर में हाल ही में बनवाए गए इस शांति उद्यान की रचना बड़ी ही रमणीय है। इस बाग में ध्यान मुद्रा में बैठे बुद्ध की एक प्रतिमा है, जिसके चारों ओर वृत्ताकार सीढ़ियाँ बनवाई गयी हैं। मैं लगभग सुबह के 9 बजे वहां पर पहुंची थी, लेकिन उस समय पूरा बाग जैसे सुनसान था। यहां-वहां बस कुछ एक लोग नज़र आ रहे थे। बाद में मुझे पता चला कि यह बाग तो प्रातःकाल के समय लोगों से भरा होता है, जो योग और ध्यान करने हेतु यहां पर आते हैं। ऐसी स्थिति में भी यहां पर कोई शोर-गुल नहीं होता और यह जगह बिलकुल शांत होती है।
खुले हाथ का अधिचिह्न
सुखना झील के किनारे देखने लायक अनेक सुंदर-सुंदर पौधे हैं, जिनकी प्रशंसा करते आप नहीं थकते। लेकिन इन सब के अलावा यहां पर एक ऐसी बात है जो इन सबसे अधिक सुंदर है और वह है यहां की स्टील की बनी एक विशाल संरचना जिस पर शहर का अधिचिह्न यानी खुले हाथ का चिह्न बना हुआ, जो जाहिरा तौर पर घोषित करता है कि चंडीगढ़ एक शांतिप्रिय शहर है।
यहां की और एक बात जो मुझे सबसे अच्छी लगी वह है, यहां की सार्वजनिक संरचनाओं का अनुरक्षण जो कि भारत के अन्य भागों में दुर्लभ है। आप चाहें तो यहां से एक साइकल किराए पर लेकर पूरे शहर का दौरा कर सकते हैं। इससे एक बात तो साफ है कि मेरा चंडीगढ़ आज भी एक साइकल प्रेमी शहर है।
सुखना झील से जुड़ी कुछ यादें
इस झील से मेरे बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं, जिन में से एक है सुखना झील पर हर साल आयोजित श्रम दान या लोक-सेवा का कार्यक्रम। सुखना झील एक कृत्रिम झील है जो इस शहर के निर्माण के साथ ही बनवाई गयी थी। इस झील में बहुत सारा गाद जमा होता था जिसे हर साल निकालना पड़ता था। इसलिए यहां पर हर साल श्रम दान का आयोजन किया जाता था।
उस समय विद्यार्थी के रूप में हम सभी हर साल वहां जाकर, झील के बीचों बीच खड़े होकर उसमें जमा हुआ गाद निकाला करते थे और सिर्फ हम ही नहीं बल्कि शहर के सभी लोग इस कार्य में अपना थोड़ा-बहुत योगदान जरूर देते थे। लोग बड़े गर्व से झील की सफाई में भाग लिया करते थे। जब तक श्रम दान का यह कार्यक्रम चलता था उस दौरान अखबार वाले रोज यहां पर आकर काम में लीन इन लोगों की तस्वीरें खींचकर उन्हें प्रकाशित करते थे। आज भी श्रम दान का यह कार्यक्रम मेरे लिए, सार्वजनिक जगह की देख-रेख हेतु जनता द्वारा किए गए योगदान का सबसे उत्तम उदाहरण है।
यहां के पर्यटन अधिकारी से मुझे पता चला कि श्रम दान की यह परंपरा अब बंद हो चुकी है, क्योंकि, झील के विस्तारिकरण के बाद अब गाद का जमना काफी नियंत्रण में है। और जो थोड़े-बहुत रखरखाव की आवश्यकता होती है वह यंत्रणों द्वारा पूर्ण की जाती है। उनका यह भी कहना था कि अब के जमाने में हमारी युवा पीढ़ी भी ऐसे कड़े परिश्रम वाले काम करना ज्यादा पसंद नहीं करती।
तो अब जब भी कभी आप चंडीगढ़ जाए तो मंत्रमुग्ध करनेवाले इस झील के दर्शन जरूर कीजिये।
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