हिमाचल प्रदेश पर्यटकों का स्वर्ग है। हिमाचल की झोली में पर्यटकों के लिए अनेक उपहार हैं। यह भारत के सर्वाधिक पर्यटन-अनुकूल राज्यों में से एक है। देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध इस राज्य में अनेक मंदिर एवं तीर्थस्थल हैं। इस राज्य को प्रकृति ने हिमालय की धौलाधार, हिमाचल व शिवालिक पर्वत मालाओं से अलंकृत किया है जिनके दर्शन करने तथा जिन पर अनेक रोमांचकारी खेल करने विश्व भर से अनेक पर्यटक आते हैं।
एक ओर हिमाचल प्रदेश पर्यटकों में अपने पर्वतीय मार्गों पर रोमांचकारी पदयात्राओं तथा मोटरसाइकिल की सवारी के लिए लोकप्रिय है तो दूसरी ओर पर्यटक यहाँ पैराग्लाइडिंग का अनुभव प्राप्त करने के लिए भी आते हैं। हिमाचल प्रदेश में स्थित बीर बिलिंग अथवा बीड बिलिंग या बीड़ बिलिंग विश्व के लोकप्रिय पैराग्लाइडिंग स्थलों में से एक है। यह विश्व का दूसरा सर्वोच्च पैराग्लाइडिंग स्थल है।
मैं एक लम्बे समय से पैराग्लाइडिंग का अनुभव प्राप्त करने के लिए बीड़ बिलिंग की यात्रा का नियोजन कर रहा था। किसी ना किसी कारणवश मेरी योजना साकार नहीं हो पा रही थी। अंततः, इस वर्ष २६ जनवरी के लम्बे सप्ताहांत में मैं एवं मेरे मित्र चार दिवसों की हिमाचल यात्रा पर निकल पड़े।
अपनी इस यात्रा संस्मरण द्वारा मैं अपनी उसी रोमांचक यात्रा के अनुभव आपसे साझा कर रहा हूँ। इस संस्मरण में वहाँ के दर्शनीय स्थलों, लोकप्रिय क्रियाकलापों एवं कुछ महत्वपूर्ण सूचनाओं का भी उल्लेख कर रहा हूँ जो आपको एक सफल यात्रा का नियोजन करने में सहायक होगी।
बीड़ बिलिंग लोकप्रिय क्यों है?
रोमांचक खेलों में पैराग्लाइडिंग सर्वाधिक लोकप्रिय क्रीड़ाओं में से एक है। सम्पूर्ण विश्व में तथा भारत में ऐसे अनेक स्थल हैं जो रोमांचक क्रियाकलापों के लिए अत्यंत लोकप्रिय हैं। अपनी ऊंचाई एवं उड़ान कालावधि के कारण उन सब में बीड़ बिलिंग का एक विशेष स्थान है। बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग के लिए उड़ान बिंदु की ऊँचाई समुद्रतल से लगभग ३२०० मीटर है जो अन्य स्थलों के उड़ान बिंदु की ऊँचाई से कहीं अधिक है।
यहाँ का दूसरा आकर्षण यह है कि उड़ान की औसत कालावधि लगभग २०-२५ मिनट हैं, जो अन्य स्थलों के औसत उड़ान कालावधियों से कहीं अधिक है। मैंने उत्तराखंड के भीमताल में भी पैराग्लाइडिंग की थी। किन्तु वह अनुभव बीड़ बिलिंग की पैराग्लाइडिंग में प्राप्त अनुभव के समक्ष न्यून है। अपने अनुभव से मैं यह कह सकता हूँ कि बीड़ बिलिंग की पैराग्लाइडिंग के समक्ष भारत के अन्य सभी स्थलों के पैराग्लाइडिंग अनुभव गौण हैं।
बीड़ बिलिंग कहाँ है?
बीड़ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के अंतर्गत, भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय पर्वतीय स्थलों में से एक, बैजनाथ नगर में स्थित एक सुन्दर गाँव है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग ५३० किलोमीटर दूर है। यहाँ का पैराग्लाइडिंग स्थल दो भागों में बंटा है, बिलिंग का उड़ान स्थल तथा बीड़ का अवतरण स्थल।
बीड़ बिलिंग में मेरा अनुभव
मेरी बीड़-बिलिंग यात्रा में मेरे प्रथम दिवस का पड़ाव बरोट घाटी तथा दूसरे दिवस का पड़ाव बीड़ में नियोजित था।
इस यात्रा का आरम्भ हमने दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा किया था। दिल्ली की सड़कों पर उपस्थित गाड़ियों की प्रातःकालीन भीड़ से बचने के लिए हम प्रातः शीघ्र ही निकल पड़े। मुझे अपनी मोटरसाइकिल द्वारा साच दर्रे की यात्रा (bike trip to Sach Pass) का स्मरण हो आया जब हम भारत के सर्वाधिक जोखिम भरे मार्ग (toughest roads in India) पर जाने के लिए इसी प्रकार प्रातः शीघ्र ही निकल पड़े थे। दिल्ली से बरोट पहुँचने में हमें लगभग १४ घंटों का समय लगा। मार्ग में हम अम्बाला में जलपान करने के लिए कुछ समय रुके थे। तत्पश्चात पंजाब-हिमाचल प्रदेश की सीमा पर उना नगर में हमने दोपहर का भोजन किया।
हमारी सम्पूर्ण सड़क यात्रा, विशेषतः काँगड़ा से बीड़ तक की यात्रा मंत्र मुग्ध कर देने वाली थी। अप्रतिम सौंदर्य से युक्त बरोट घाटी को चारों ओर से अलंकृत करते धौलाधार पर्वत माला के शुभ्र श्वेत हिमाच्छादित शिखर मन मोह लेते हैं। बौद्ध नगरी धर्मशाला के समीप स्थित बीड़ के मार्ग में हमने अनेक बौद्ध भिक्षुकों को देखा। चित्रपट राजा हिन्दुस्तानी द्वारा अधिक लोकप्रिय हुआ पालमपुर नगर एवं तीर्थ नगरी बैजनाथ को पार कर हम अंततः बरोट घाटी पहुंचे। दिवस भर पर्वतीय मार्गों पर कार चलाते हुए हम थक गए थे। इसलिए वहाँ पहुंचकर हमने विश्राम करने का निश्चय किया तथा घाटी अवलोकन का कार्यक्रम अगले दिवस के लिए नियोजित किया।
हिमाचल एवं स्पीति घाटी – १५ दिवसीय रोमांचक सड़क यात्रा
बरोट घाटी
बरोट घाटी में मेरे प्रथम दिवस का आरंभ मेरे सामान्य दिवस की तुलना में पूर्णतः भिन्न था। प्रातः आँख खुलते ही कड़कड़ाती ठण्ड ने हमारा स्वागत किया। ऊबदार रजाइयों से बाहर निकलना किसी साहसपूर्ण कार्य से कम नहीं था। आपको स्मरण होगा, हम यहाँ २६ जनवरी के लम्बे सप्ताहांत में पहुंचे थे जो उत्तर भारत में शीत ऋतु के चरमकाल में पड़ता है।
पिछले दिवस हमने यात्रा के अंतिम घंटे लगभग अन्धकार में पूर्ण किये थे। इसलिए हम घाटी के परिदृश्य देख नहीं पाए थे। आज प्रातः हमने घाटी का जो दृश्य देखा, उसने मानो पिछले दिवस की क्षतिपूर्ति कर दी हो। या कहूँ, उससे भी कहीं अधिक! हमारे समक्ष सम्पूर्ण घाटी का दृश्य हमारे मन को मोह लेने के लिए तत्पर खड़ा था।
सम्पूर्ण दृश्य ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। सम्पूर्ण घाटी ने बर्फ की श्वेत चादर ओढ़ रखी थी। कड़ाके की ठण्ड हमें स्नान ना करने पर बाध्य कर रही थी।
ऊहल नदी
दूसरे दिवस प्रातः हलके जलपान के पश्चात हमें पर्वतीय गाँव की पैदल यात्रा एवं एक लघु पर्वतारोहण के लिए पोल्लिंग गाँव जाना था। पोल्लिंग गाँव बरोट से ९ किलोमीटर तथा हमारे विश्रामगृह से ५ किलोमीटर दूर है। कुछ समय पूर्व हुए हिमपात ने पोल्लिंग से बरोट के मध्य मुख्य मार्ग अवरुद्ध कर दिया था। हमने हमारी कार वहीं छोडी तथा स्थानीय जिप्सी गाड़ी की सेवायें लीं। लगभग ११ बजे हम निकले तथा ३० मिनट के पश्चात लोहार्डी गाँव पहुंचे।
लोहार्डी से आगे की यात्रा हमने पैदल पूर्ण की। यद्यपि हमारे साथ एक स्थानिक परिदर्शक था, तथापि बरोट घाट से बहती ऊहल नदी हमारी सर्वोत्तम परिदर्शक थी। वह हमें निरंतर मार्ग दिखा रही थी। ऊहल नदी इस क्षेत्र के निवासियों की जीवन रेखा है।
जैसे जैसे हम पोल्लिंग गाँव की ओर आगे बढ़ रहे थे, बर्फ की चादर की मोटाई भी बढ़ रही थी। जब हम लम्बदुग जलविद्युत उत्पादन प्रकल्प पहुंचे, मुख्य सड़क पर बर्फ की मोटाई अब एक फुट से अधिक हो गयी थी तथा सड़क के दोनों ओर उससे भी अधिक मोती परत थी। एक लटकते सेतु से हम ऊहल नदी के उस पार पहुंचे तथा गाँव की ओर आगे बढ़ने लगे।
सेतु पार करते ही हमारी पैदल यात्रा पर्वतारोहण में परिवर्तित हो गयी थी जिससे हमारी गति कम हो रही थी। गाँव तक पहुँचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग भी था किन्तु उसे बर्फ ने अवरुद्ध कर रखा था। हमने गांववासियों द्वारा प्रयुक्त एक अन्य वैकल्पिक पथ का प्रयोग कर गाँव पहुँचने का निश्चय किया। पोल्लिंग पहुँच कर निकटतम पर्वत शिखर पर चढ़ने से पूर्व हमने दोपहर का भोजन किया। शीत ऋतु के चरम स्तर में ऊँचाई पर स्थित गाँवों में सीमित संसाधन ही उपलब्ध होते हैं। जलपानगृहों में भी भोजन के सीमित व्यंजन ही उपलब्ध होते हैं। यहाँ केवल राजमा व चावल ही उपलब्ध था। किन्तु हम उसमें ही आनंदित थे। भोजन के पश्चात हम रोहण के लिए आगे बढे। ४५ मिनट तक चढ़ने के पश्चात हम शिखर पर पहुंचे।
हिमपात
शिखर पर पहुंचे ही थे कि हिमपात आरम्भ हो गया। मेरे अधिकतर मित्रों के लिए हिमपात का यह प्रथम अनुभव था। शिखर से ३६० अंश का विहंगम दृश्य अत्यंत रोमांचकारी था। शिखर से नीचे देखने पर पोल्लिंग गाँव के घर अत्यंत गौण प्रतीत हो रहे थे। हमें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने कम समय में हम इस ऊँचाई तक चढ़ गए थे। लगभग एक घंटे तक हम एवं हमारे कैमरे इन अप्रतिम दृश्यों का आनंद लेते रहे तथा उन स्मृतियों को अमर बनाते रहे। शनैः शनैः सूर्य का उजाला कम होने लगा था। हिमपात तापमान को नीचे नीचे ले जा रहा था। अब हमारे विश्रामगृह लौटने का समय हो गया था।
पोल्लिंग गाँव पहुंचते पहुँचते हमारा चलना दूभर होने लगा था। वातावरण अत्यंत शीतल हो गया था। इसके अतिरिक्त हमारे जूते भी भीतर से गीले हो गए थे। हमने जिप्सी गाड़ी को यहीं बुलवा लिया तथा लटकते सेतु से विश्रामगृह तक गाड़ी से ही पहुंचे। विश्रामगृह हम अकेले नहीं पहुंचे थे, अपितु हमारे साथ पर्वतारोहण एवं शिखर से दिखते विहंगम दृश्यों की स्मृतियाँ भी साथ लौटी थीं। वापिसी यात्रा के समय होते दर्दभरे अनुभव भी साथ लौटे थे।
बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग
अगला दिवस विशेष था क्योंकि हम रोमांचकारी क्रीड़ाओं के लिए जाने वाले थे। बरोट से जोगिंदरनगर होते हुए हम बीड़ गाँव पहुंचे। बरोट से बीड़ तक की ५० किलोमीटर की सड़क यात्रा अत्यंत लुभावनी थी जिसमें हमने अनेक छोटे छोटे सुन्दर हिमालयी गाँवों को पार किया। बीड़ गाँव पहुँचते ही हम आश्चर्यचकित रह गए। बीड़ किसी भी मापदंड से गाँव प्रतीत नहीं होता है। गाँव की पूर्ण जनसँख्या पर्यटन सम्बन्धी क्रियाकलापों के चारों ओर ही केन्द्रित है, विशेषतः पैराग्लाइडिंग। सम्पूर्ण गाँव मुख्यतः होमस्टे, होटलों, जलपानगृहों इत्यादि से भरा हुआ है तथा पर्यटकों की यात्रा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ती करता है। यहाँ के अनेक निवासी वाहनचालक, परिदर्शक, प्रशिक्षक आदि के रूप में कार्यरत हैं।
हमने हमारे मेनेजर से पैराग्लाइडिंग के लिए हमारे पूर्वनियोजित समयावधि की जानकारी ली। हमें दो घंटे वहीं प्रतीक्षा करनी थी। अतः हमने दोपहर का भोजन करने का निश्चय किया। भोजन के पश्चात परिदृश्यों के कुछ रचनात्मक चित्र भी लिए। हमारे पैराग्लाइडिंग का समय समीप आ रहा था। हम साझा सूमो गाड़ी से निकटतम पर्वत शिखर पहुंचे जो हमारा नियोजित पैराग्लाइडिंग उड़ान स्थल था।
हमारा नियोजित पैराग्लाइडर उड़ान स्थल बिलिंग हमारे पैराग्लाइडर अवतरण स्थल बीड़ से लगभग २० किलोमीटर दूर था। बीड़ से बिलिंग तक पहुँचने में हमें दो घंटे लगे। उस समय शीत ऋतु की चरम सीमा थी जो पर्यटकों की दृष्टी से मंदी का समय होता है, फिर भी वहां पर्यटकों की बड़ी भीड़ थी। हमने घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये तथा सुरक्षात्मक साधनों को धारण किया।
पैराग्लाइडिंग अनुभव
यह एक आसान कार्य है। आपको केवल बड़ी तेजी से दौड़ लगानी है तथा पहाड़ से कूद जाना है। जब आप दौड़ लगाते हो तब पैराग्लाइडर के पंखों में आवश्यक वायु एकत्रित हो जाती है तथा वह उड़ने के योग्य हो जाती है। एक ग्लाइडर में दो व्यक्ति सवार हो सकते हैं। पर्यटक सामने की कुर्सी पर बैठता है तथा उसके पीछे पैराग्लाइडिंग का प्रशिक्षक अथवा गाइड बैठता है जो पंखों से बंधी रस्सियों द्वारा पैराग्लाइडर को सही दिशा में उड़ाता है।
हम भी उसी प्रकार पहाड़ से कूद गए। सहज होने में तथा वायु की दिशा को जानने में हमें कुछ क्षण लगे। उड़ने के लिए सहज एवं अभ्यस्त होने के पश्चात मुझे आनंद आने लगा। मैं अपने गाइड से वार्तालाप करने लगा तथा मैंने उसे पैराग्लाइडिंग के अपने पिछले अनुभव के विषय में बताया। उसने मुझे आश्वासन दिया कि उड़ान के अंत में वह पैराग्लाइडर का घुमावदार अवतरण करवाएगा। मेरा गोप्रो कैमरा घाटी एवं धौलाधार पर्वतमाला के विहंगम दृश्यों को आत्मसात करने लगा। अत्यंत शीतल वायु मेरी उड़ान को असह्य बनाने में लगभग सफल हो रही थी क्योंकि मैंने दस्ताने नहीं पहने थे। ठण्ड इतनी थी कि खुले हाथों से कैमरा पकड़ना भी दूभर हो रहा था। दस्ताने ना लाना मेरी भारी भूल थी। किन्तु इतना अवश्य कहूंगा कि इतना कष्ट सहने के पश्चात भी मैंने उड़ान के प्रत्येक क्षण का आनंद उठाया। ऊँचाई से पहाड़ एवं गाँव अत्यंत सूक्ष्म प्रतीत हो रहे थे। मेरे साथ उड़ते अन्य पैराग्लाइडरों को देख उड़ने का अपरोक्ष आनंद भी आया। उन्हें देख यह आभास हुआ कि पंछी कितने भाग्यशाली होते हैं जो खुले आकाश में उड़ सकते हैं। मेरी उड़ान अगले १८ मिनटों तक जारी रही।
अवतरण
जब हम अवतरण स्थल के समीप पहुंचे, मेरे गाइड ने मुझे सिखाया कि घुमावदार अवतरण किस प्रकार की जानी चाहिए। घुमावदार अवतरण में ग्लाइडर एक छोटे गोलाकार में तेज गति से घूमता है। यह सामान्य अथवा सीघे अवतरण तकनीक से भिन्न तकनीक है। उस अवतरण अनुभव ने मुझे रोमांचित कर दिया था। मैंने सम्पूर्ण पैराग्लाइडिंग के उत्तम अनुभव के लिए अपने गाइड का धन्यवाद किया। हम सब की उड़ान समाप्त होते ही हमने निर्धारित शुल्क जमा किया, जो २००० रुपये प्रति व्यक्ति था। इसके अतिरिक्त, किराये का कैमरा ५०० रुपये में उपलब्ध था। चूँकि मैंने स्वयं का गोप्रो रखा था, मुझे केवल २००० रुपये देने पड़े।
इससे पूर्व मैंने भीमताल में पैराग्लाइडिंग की थी किन्तु यह अनुभव अद्वितीय था।
हम जैसे ही बीड़ में उतरे, मौसम अधिक बिगड़ने लगा था जिसके चलते आयोजकों को अंतिम २० उड़ानें रद्द करनी पड़ी। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया कि उन्होंने मेरी उड़ान बिना किसी व्यवधान के पूर्ण करने में सहायता की। यदि हमारा क्रमांक आते आते २० मिनटों का विलम्ब हो जाता तो कदाचित हमारी उड़ान भी रद्द हो जाती। इसके अतिरिक्त, दोपहर के ४ बजे तक हमारा पैराग्लाइडिंग उड़ान समाप्त हो जाने के कारण हमारे पास वापिसी की यात्रा आरम्भ करने के लिए पर्याप्त समय था। हमने तुरंत ही दिल्ली के लिए रवाना होने का निश्चय किया ताकि पर्वतों के दुर्गम मार्ग हम उजाले में पार कर सकें। मैदानी क्षेत्रों में गाड़ी चलाना अपेक्षाकृत आसान होता है।
बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग करने के लिए कुछ सुझाव
- बीड़ बिलिंग एवं बरोट तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। आप यहाँ तक पहुँचने के लिए दिल्ली-मनाली मार्ग अथवा दिल्ली-कांगड़ा मार्ग का प्रयोग कर सकते हैं।
- दोनों स्थानों पर उपयुक्त विश्रामगृह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। यद्यपि बीड़ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन चुका है, तथापि बरोट भी उससे अधिक पीछे नहीं है। यहाँ अनेक स्तर के होमस्टे, होटल एवं तम्बू सुविधाएं उपलब्ध हैं।
- यदि पैराग्लाइडिंग में आपकी रूचि हो तो मेरा सुझाव है कि आप पैराग्लाइडिंग सुविधाओं का पूर्व में ही आरक्षण कर लें। अन्यथा संभव है कि पर्यटन कालावधि के चरम समय में आपके लिए उड़ान समयावधि शेष ना रहे।
- यहाँ पर्यटन का चरम काल ग्रीष्म ऋतु में रहता है। यद्यपि शीत ऋतु में पर्यटकों की भीड़ कम रहती है तथा पैराग्लाइडिंग भी उपलब्ध रहती है, तथापि धुंध एवं विकट तापमान आपकी यात्रा योजना ध्वस्त कर दें, इसकी संभावना भी अत्यधिक रहती है।
- पर्यटन के चरम काल में पैराग्लाइडिंग शुल्क २५०० से ३५०० रुपये प्रति व्यक्ति प्रति उड़ान के मध्य घटते-बढ़ते हैं। शीत ऋतु में इसका शुल्क इससे कम रहता है।
- यदि आप पर्वतारोहण की योजना बना रहे हैं तो आप अपने साथ एक जानकार परिदर्शक अवश्य रखें क्योंकि पर्वतारोहण पगडंडियाँ सुपरिभाषित नहीं हैं। स्थानिक व जानकार परिदर्शक आवश्यक है।
- बीड़ एवं बरोट दोनों स्थानों में मोबाइल फ़ोन के नेटवर्क सुचारू रूप से कार्य करते हैं। डाटा नेटवर्क में कुछ व्यवधान आ सकता है किन्तु किसी को फ़ोन करने में सामान्यतः बाधा नहीं होती है।
यह सुशांत पाण्डेय द्वारा लिखित तथा inditales द्वारा प्रकाशित अतिथि यात्रा संस्करण है।
सुशांत पाण्डेय व्यवसाय से दूरसंचार अभियंता हैं। साथ ही वे इतिहास एवं भूगोल प्रेमी भी हैं। रिक्त समय में यात्राएं करना उन्हें अत्यंत भाता है। विशेषतः दुपहिये पर सवार होकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों की खोज करने में उनकी उत्कट इच्छा रहती है। उन्हें भारत के इतिहास एवं भूगोल संबंधी वृत्तचित्र देखना भी भाता है। अपने अतिरिक्त समय का सदुपयोग वे अपने ब्लॉग Knowledge of India को संभालने में करते हैं।