भारत में भारत माता के मंदिरों की संख्या गिनती के हैं तथा सभी अपेक्षाकृत नवीन हैं। किन्तु भारतीय इतिहास एवं सांस्कृति में उनकी जड़ें अत्यंत गहरी हैं।
भारती शब्द का आरंभिक संदर्भ ऋगवेद के आप्री सूक्त में प्राप्त होता है जहाँ उन्हे वाग्देवी अर्थात् वाणी की देवी कहा गया है। साथ ही भारत वंश का भी उल्लेख किया गया है जिनका नेतृत्व सम्राट भारत ने किया था।
महाभारत में इस धरती को भारतवर्ष कहा गया है।
एक चंद्रवंशी कुरु राजा भी थे जिनका नाम था राजा भरत।
विष्णु पुराण में भारत का विस्तार समुद्रों से उत्तरोत्तर तथा हिमालय से दक्षिण तक बताया गया है। विष्णु पुराण के अनुसार भारत वह धरती है जहाँ भरत की संतानें रहती हैं।
भारत माता का समकालीन उद्भव
भारत माता उस समय जन मानस में आई जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन आरंभ हुआ था। आप सब ने बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित ‘वंदे मातरम’ गीत अवश्य ही सुना होगा। यह गीत १८८२ में उनके द्वारा लिखित प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ का भाग बना जो बंगाल में आए अकाल की पृष्ठभूमि पर रचित कथा है। इस कथा में भारत माता का शक्तिशाली चरित्र प्रस्तुत किया गया है।
भारत माता का प्रथम चित्र सन् १९०५ में चित्रकार अवनींद्रनाथ टैगोर ने चित्रित किया था जिसमें भारत माता की एक सजीव कल्पना सर्वप्रथम प्रस्तुत की गई थी। उस चित्र में भारत माता को केसरिया रंग की साड़ी धारण की हुई चार भुजा धारी देवी के समान प्रदर्शित किया था। ऊपरी दो हाथों में उन्होंने शास्त्र एवं श्वेत वस्त्र का एक टुकड़ा पकड़ा हुआ है। निचले दो हाथों में धान की कटाई एवं अक्षमाला पकड़ी है। अर्थात् उन्होंने अपने चार हाथों में मानव जीवन का सार धारण किया है, शिक्षा, दीक्षा, अन्न एवं वस्त्र।
आपको स्मरण होगा कि उस समय अग्रेजी सरकार ने बंगाल का बंटवारा किया था। टैगोर जैसे अनेक कलाकारों ने अपने अपने शैली से इस बंटवारे का कड़ा विरोध किया था। अनेक राष्ट्रवादियों ने इस चित्र का विवेचन इस प्रकार किया कि भारत माता अपने पुत्रों से उन्हे स्वतंत्र करने का अनुरोध कर रही हैं। सिस्टर निवेदिता इस चित्र से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उस चित्र की लाखों प्रतियां बनवा कर केदारनाथ से कन्याकुमारी तक प्रत्येक घर में बँटवाने की इच्छा व्यक्त की थी।
कालांतर में अनेक कलाकारों ने इस चित्र के अनेक संस्करण बनाए। भारत माता का मूल चित्र अब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हाल संग्रहालय में प्रदर्शित है।
वाराणसी का भारत माता मंदिर
वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के संकुल में स्थित भारत माता का मंदिर अनेक आयामों में विशेष है। किसी पारंपरिक मंदिर की भांति यह एक ठेठ मंदिर नहीं है जो साधारणतः किसी देवी-देवता को समर्पित होता है।
यह मंदिर उसी प्रकार अखंड भारत का उत्सव मनाता है जैसा हमारे प्राचीन शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। राजनीतिक रूप से इस अखंड भारत में आज के अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार तथा श्री लंका जैसे देश भी सम्मिलित होने चाहिए। यह भारत की संकल्पना का उत्सव मनाता है तथा मां भारती की कल्पना को साकार करता है।
भारत का मानचित्र
मकराना के संगमरमर का प्रयोग कर भारत के एक विस्तृत मान चित्र की रचना की गई है। धरती की स्थलाकृति अर्थात् टोपोग्राफी को १ इंच:६.४ मील के आनुपातिक स्तर पर स्पष्ट रूप से मानचित्रित किया गया है। अतः जब आप विभिन्न पर्वत श्रंखलाओं को देखेंगे तो उन्हे उसी अनुपात में पाएंगे जिस अनुपात में वे इस धरती पर विराजमान हैं। नक्शे पर ४५० से भी अधिक पर्वत चोटियों को अंकित किया गया है। साथ ही सभी जल स्त्रोतों, नदियों, समुद्रों, पठारों तथा विस्तृत मैदानी क्षेत्रों को भी दर्शाया गया है। एक ओर समुद्र के भीतर स्थित न्यूनतम से न्यूनतम द्वीप भी स्पष्ट दृष्टिगोचर हैं तो दूसरी ओर सगरमाथा तथा k2 जैसे विशालतम पर्वत चोटियाँ भी स्पष्ट अंकित हैं। यदि इस मान चित्र में कुछ नहीं है तो वह है मानव निर्मित परिवर्तन, फिर चाहे वह राजनीतिक सीमाएं हों अथवा कोई संरचनात्मक परिवर्तन।
मुझे बताया गया कि स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस के उत्सवों में इसके सभी जल स्त्रोतों में जल भरा जाता है तथा नक्शे को पुष्पों से अलंकृत किया जाता है। इस नक्शे के चारों ओर स्तंभ युक्त गलियारे हैं जिसमें ३६० अंश घूमते हुए आप सभी दिशा से नक्शे का अवलोकन कर सकते हैं। समीप से देखते हुए आप इसके सूक्ष्म तत्वों की सराहना किये बिना नहीं रहेंगे।
प्रेरणा
मंदिर के सूचना पटल पर अंकित बाबू शिव प्रसाद गुप्ता की टिप्पणी के अनुसार उन्हे इस मंदिर के निर्माण की प्रेरणा पूना के एक विधवा आश्रम से प्राप्त हुई थी जहाँ उन्होंने धरती पर चित्रित ऐसा ही एक मानचित्र देखा था। तभी उन्होंने एक शिलाखंड पर भारत का विस्तृत मानचित्र तैयार करने का निश्चय किया। उनका यह निश्चय तब और दृढ़ हुआ जब वे लंदन गए तथा उन्होंने ब्रिटिश संग्रहालय में ऐसे अनेक विस्तृत नक्शे देखे। वहाँ से वापिस आने के पश्चात उन्होंने अनेक लोगों के साथ, इस प्रकार के एक मंदिर के निर्माण के, अपने स्वप्न के विषय में चर्चा की। उन्होंने दुर्गा प्रसाद खत्री जी को इसका दायित्व सौंपा। मंदिर को जनता के लिए खोलने से पूर्व मंदिर में गायत्री मंत्र जप के २४ लाख आवर्तन किये गए थे।
सन् १९३६ में महात्मा गांधी ने मंदिर में आयोजित इस यज्ञ में पूर्णाहुति देकर इस मंदिर का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया था। वेदों के मंत्रोच्चारण के बीच मंदिर के पट जनता के लिए खोले गए थे।
बाबू शिव प्रसाद गुप्ता
इस मंदिर के निर्माण हेतु सम्पूर्ण निधि का प्रबंध उद्योगपति एवं स्वतंत्रता सेनानी बाबू शिव प्रसाद गुप्ता ने किया था। उनका परिवार अब भी मंदिर की देखरेख करता है। यही वे गुप्ताजी हैं जिन्होंने काशी विद्यापीठ की स्थापना की थी तथा अनेक समाज कल्याण के कार्य किये थे। मंदिर के प्रमुख वास्तुकार दुर्गा प्रसाद एवं उनके साथियों के नाम मंदिर की भित्तियों पर उत्कीर्णित हैं।
कुछ वर्षों पूर्व जब मैंने मंदिर के दर्शन किये थे, वहाँ कोई भी उपस्थित नहीं था। जहाँ तक मैंने समझा, वास्तविक रूप से वहाँ किसी भी पूजा-अनुष्ठान का पालन नहीं किया जा रहा है। आप निःसंकोच वहाँ विचरण कर सकते हैं तथा हमारा पोषण करने वाली भारत की धरती की स्थलाकृति देख सकते हैं।
हाँ, भारत माता की एक मूर्ति अवश्य है जो अवनींद्रनाथ टैगोर द्वारा चित्रित भारत माता के प्रसिद्ध चित्र से प्रेरित है।
काव्य
हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध कवि, राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने इस मंदिर के सम्मान में एक कविता रचकर इसे समर्पित की थी। वह कविता है-
भारत माता का मंदिर यह
समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
यह कविता मंदिर परिसर में अंकित है। आप पूर्ण कविता यहाँ पढ़ सकते हैं।
इस मंदिर की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसका निर्माण सन् १९१८ से सन् १९२४ के मध्य, भारत की स्वतंत्रता से पूर्व हुआ था। अर्थात् भारत के दुर्भाग्यपूर्ण बंटवारे से पूर्व!
हरिद्वार का भारत माता मंदिर
वाराणसी के भारत माता मंदिर से विपरीत हरिद्वार के भारत माता मंदिर में भक्तों एवं पर्यटकों का तांता लगा रहता है। यह स्थल हरिद्वार भ्रमण पर आए अधिकांश पर्यटकों एवं भक्तों की भ्रमण सूची में सम्मिलित किया जाता है।
इस मंदिर का निर्माण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी ने सन् १९८३ में करवाया था तथा इसका उद्घाटन इंदिरा गांधी के हाथों से हुआ था। ८ तल ऊंची यह संरचना कदाचित हरिद्वार की सर्वोच्च इमारतों में से एक हो। गंगाद्वार नाम से प्रसिद्ध इस हरिद्वार नगरी से होकर बहती हुई गंगा के विभिन्न शाखाओं के अवलोकन के लिए यह सर्वोत्तम स्थान है। गंगा के चारों ओर पसरे राजाजी राष्ट्रीय उद्यान की भी सीमाएं आप यहाँ से देख सकते हैं।
मंदिर के ८ तल
मंदिर के ८ तलों में से प्रत्येक तल एक भिन्न विषय को समर्पित है। संरचना का भूतल माता को समर्पित है। यहाँ माता की एक भव्य मूर्ति स्थापित है। उन्हे निहारते हुए मैं शनैः शनैः आगे बढ़ने लगी। शीघ्र आगे बढ़ना चाहती तो भी संभव नहीं था क्योंकि पर्यटकों एवं दर्शकों की भारी भीड़ एक पंक्ति में धीरे धीरे कक्ष में से आगे रेंग रही थी।
- मंदिर के प्रथम तल को शूर मंदिर कहा जाता है। यह भारत के शूर-वीरों को समर्पित है जिनमें अनेक स्वतंत्रता सेनानी भी सम्मिलित हैं।
- मंदिर का दूसरा तल मातृ मंदिर है जो नारी शक्ति को समर्पित है। यहाँ लक्ष्मीबाई जैसे अनेक स्त्री योद्धाओं व वीरांगनाओं तथा मीराबाई जैसी संतों की छवियाँ है।
- तीसरा तल संत मंदिर के नाम से जाना जाता है जो भारत के संतों को समर्पित है।
- चौथा तल भारत में प्रचलित विभिन्न धर्मों को समर्पित है जिसके अनुयायी आपस में सद्भाव से रहते हैं।
- पाँचवाँ तल देवी अथवा शक्ति को समर्पित है जो भारत की दिव्य स्त्री हैं।
- छठा तल विष्णु को समर्पित है। यहाँ उनके विभिन्न अवतारों को प्रदर्शित किया गया है।
- सातवाँ तल मंदिर के अधिष्ठात्र देव के रूप में भगवान शिव को समर्पित है।
संक्षेप में समझा जाए तो यह मंदिर भारत माता से आरंभ होता है तथा एक ढलुआं गलियारे से आप को शनैः शनैः ऊपर ले जाता हुआ अंततः भगवान शिव तक पहुंचता है। तत्पश्चात उसी प्रकार आप नीचे वापिस आ जाते हैं।
संकल्पना
देश के विभिन्न आयामों को एक साथ एक पृष्ठभूमि में लाती हुई मंदिर की यह संकल्पना मुझे अत्यंत भायी। वह चाहे इसका धार्मिक मेरुदंड हो अथवा इसके स्वतंत्रता सेनानी, इसके संत हों अथवा इसकी भिन्न भिन्न मान्यताएं, सर्वश्रेष्ठ योद्धा हों अथवा सर्वश्रेष्ठ वीरांगनाएं। किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यहाँ की मूर्तियों एवं चित्रावलियों का इससे उत्तम निष्पादन किया जा सकता था। भारत शास्त्रीय एवं लोक शैली के विविध कला रूपों से सम्पन्न देश है। मुझे सम्पूर्ण विविधता परिलक्षित होती प्रतीत नहीं हुई। अनेक रिक्त भित्तियाँ थीं जिन पर इन महानुभावों की कथाएं प्रदर्शित की जा सकती हैं।
फिर भी इसकी संकल्पना को दाद देने के लिए आप यहाँ अवश्य आईए। मेरा विश्वास है कि आप आनंदित हो जाएंगे। आपके आनंद को चार चाँद लगाएगा मंदिर की छत से दृष्टिगोचर चारों ओर का अप्रतिम परिदृश्य।
कन्याकुमारी का भारत माता मंदिर
आपमें से कई पाठकों ने कन्याकुमारी के दर्शनीय स्थलों पर प्रदर्शित मेरा यात्रा संस्करण पढ़ा होगा। वहाँ मैंने विवेकानंद केंद्र का उल्लेख किया था। उसी परिसर में भारत माता का मंदिर भी है।
उस मंदिर में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति के चारों ओर माताओं की ५ प्रतिमाएं हैं। वे हैं:
- पार्वती – भगवान गणेश एवं कार्तिक की माता
- शकुंतला – सम्राट भारत की माता
- जीजाबाई – शिवाजी महाराज की माता
- शारदा देवी – स्वामी विवेकानंद की गुरु माता
- माता अमृतानन्दमयी – वर्तमान काल की एक संत जिन्होंने सन् २०१७ में इस मंदिर का उद्घाटन किया था
यहाँ भारत माता की १२ फीट ऊंची एक सुनहरी मूर्ति है जिनके बाएं हाथ में एक ध्वज है तथा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। उनके अलौकिक स्वरूप से साम्य रखता हुआ एक सुनहरा सिंह उनके पीछे खड़ा है जो यह दर्शाता है कि माता माँ दुर्गा का अवतार हैं।
उज्जैन का भारत माता मंदिर
भारत माता के मंदिरों में यह एक नवीनतम मंदिर है जिसका निर्माण माधव सेवा न्यास ने करवाया था तथा इसका उद्घाटन २०१८ में ही किया गया था। उज्जैन के प्रसिद्ध महांकालेश्वर मंदिर के निकट स्थित इस ३ तल के मंदिर में माता की शिला में उत्कीर्णित १६ फीट की विशाल मूर्ति है। उनके चारों ओर नवदुर्गा की छवियाँ हैं। मंदिर परिसर में एक प्रेक्षागृह, एक पुस्तकालय, एक ध्यान एवं योग कक्ष तथा एक सभा-कक्ष भी हैं।
देवगिरि अथवा दौलताबाद दुर्ग का मंदिर
महाराष्ट्र के औरंगाबाद नगरी के समीप स्थित ११ वीं. सदी के देवगिरि दुर्ग का निर्माण यादव राजाओं ने करवाया था। समय के साथ इस दुर्ग ने अनेक साम्राज्य एवं उनके साथ हुए अनेक परिवर्तन देखे। आज इसके परिसर में एक प्राचीन मंदिर के स्थान पर भारत माता का मंदिर बनवाया गया है। मूल मंदिर की आयु का अनुमान लगाना कठिन है। परिसर के चारों ओर खड़े स्तंभों को देख यह मंदिर अत्यंत प्राचीन प्रतीत होता है। इसमें भारत माता की प्रतिमा की स्थापना कुछ समय पूर्व ही की गई होगी।
शेखावटी के भित्तिचित्र
मंडावा की एक शेखावटी हवेली में भारत माता का एक विशाल भित्तिचित्र है।
यदि आप भारत अथवा विश्व के किसी क्षेत्र में स्थित भारत माता के किसी अन्य मंदिर के विषय में जानते हों, जिनका उल्लेख मैंने यहाँ नहीं किया हो तो आपसे अनुरोध है कि आप मुझे उनके विषय में जानकारी अवश्य दें। इसके लिए आप निम्न दर्शित टिप्पणी खंड का प्रयोग कर सकते हैं।
हम यह भी जानना चाहते हैं कि उपरोक्त मंदिरों में से आपने किन किन मंदिरों के दर्शन किए हैं?
भारत के भारत माता मंदिर भारत माता की गौरव गाथा:-
भारत में भारत माता का मंदिर हर देशभक्त के दिल मे अदृश्य रूप स्थापित है क्योंकि जब भी भारत माता की जय बोला जाता है हर नागरिक का उत्साह दोगुना हो जाता है और आज के संदर्भ हर नागरिक को देश के साथ जोड़ने के लिए मंदिर भी एक अच्छा माध्यम हो सकता है, जो भारत माता के मंदिरो का हमेशा की तरह आपने सुंदर वर्णन किया है उसमें काशी और हरिद्वार के बहुत अच्छे मंदिर है, ऐसे ही मंदिरो का और शहरों में भी निर्माण किया जाना चाहिए।
एक नए विषय पर हमारा ज्ञानवर्धन करने के लिए धन्यवाद????????
धन्यवाद संजय जी हमें प्रोत्साहित करने के लिए, हम और ऐसी कहानियां आप तक ला सकें, यही प्रयास रहेगा।
अनुराधा जी,
एक अनछुए विषय पर सटीक जानकारी युक्त सुंदर आलेख पढ़कर प्रसन्नता हुई । वास्तव में हमारे देश मे भारत माता के इने गिने मंदिर ही हैं । अन्य स्थानो पर भी इन मंदिरों का निर्माण कर उनमे हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों की शौर्य गाथायें भी प्रदर्शित की जानी चाहिये जिससे हमारी आने वाली पीढी ,भारत के गौरवशाली इतिहास से परिचित हो सके ।
आपने सही कहा है,ये मंदिर ही हमारी गौरव-गाथा है !
नये विषय पर ज्ञानवर्धक आलेख हेतू साधुवाद ।
धन्यवाद प्रदीप जी।
स्कूल के दिनों में जब प्रार्थना समाप्त होती थी, तो भारत माता की जय के जयकारे लगाए जाते थे, तब धमनियों में जैसे एक बिजली का करंट दौड़ा हो। और उस जयकारे की गूंज से आसपास का वातावरण भक्तिमय हो जाता था। यह लेख पढ़ने के बाद बिल्कुल वैसा ही अनुभव किया मैंने। बहुत बहुत आभार ऐसा लेख साझा करने के लिए।????????
धन्यवाद अभिषेक अपना अनुभव हमारे साथ साँझा करने के लिए।