भारत की अधिकांश महिलाओं के लिए पोचमपल्ली नाम नवीन नहीं होगा। वहाँ की बुनी हुई इक्कत रेशम की साड़ियों एवं चादरों के विषय में उन्हें जानकारी अवश्य होगी। उनमें से कई लोगों के पास स्वयं की इक्कत रेशम की साड़ियाँ एवं चादरें भी अवश्य होंगी।
पोचमपल्ली तेलंगाना राज्य में स्थित एक छोटा सा नगर है जो हैदराबाद से लगभग ५० किलोमीटर दूर स्थित है। पोचमपल्ली नगर मुख्यतः बुनाई उद्योग के लिए जाना जाता है। यह उन ५० से भी अधिक गावों में से एक है जिन्हें ग्रामीण पर्यटन के लिए चुना गया है। ऐसे ही एक गाँव में भ्रमण करने की मेरी एक दीर्घ काल से अभिलाषा थी। मेरी यह अभिलाषा तब पूर्ण हुई जब हम हैदराबाद से गाड़ी द्वारा पोचमपल्ली पहुँचे तथा वहाँ एक सम्पूर्ण दिवस व्यतीत किया।
विनोभा भावे का प्रथम भूदान – पोचमपल्ली
हैदराबाद से राष्ट्रीय महामार्ग-७ द्वारा पोचमपल्ली पहुँचने का मार्ग अधिकांशतः सीधा एवं सरल है। केवल रामोजी फिल्म सिटी से कुछ किलोमीटर आगे जाकर बाईं दिशा में एक मोड़ है। इसके लिए भी मार्ग में सूचना पटलों पर पर्याप्त संकेत दिए हुए हैं, एक मुख्य मार्ग से बाईं दिशा में विमार्ग स्थल पर, तत्पश्चात पोचमपल्ली गाँव के पर्यटन केंद्र पहुँचने तक नियमित अंतराल पर सूचना पटल लगे हुए हैं। लगभग सम्पूर्ण गाँव पार करने के पश्चात हम इस पर्यटन केंद्र पर पहुँचते हैं।
पर्यटक केंद्र
यह आकर्षक रूप से निर्मित एक सुन्दर पर्यटन केंद्र है। इसके भीतर एक संग्रहालय, एक बुनाई प्रदर्शन केंद्र, कुछ कुटियाएँ, दुकानों का एक संकुल तथा एक जलपानगृह हैं। यह पर्यटन केंद्र एक विशाल सरोवर के तट पर स्थित है। पर्यटक केंद्र के परिसर में हमें कुछ त्यक्त नावें भी दिखाई दीं। केंद्र की संरचना अपेक्षाकृत नवीन है तथा इसका रखरखाव भी उत्तम है। किन्तु वहाँ पर्यटकों को आवश्यक जानकारी प्रदान करने तथा सेवायें उपलब्ध कराने के लिए क्वचित ही कर्मचारी उपस्थित थे।
संग्रहालय
यद्यपि संग्रहालय में प्रवेश के लिए निर्धारित शुल्क है, तथापि उसे लेने के लिए भी वहाँ कोई भी उपस्थित नहीं था। संग्रहालय सभी के लिए खुला रखा हुआ था। संग्रहालय में प्रवेश करते ही आपको इसका कारण भी ज्ञात हो जाएगा। संग्रहालय में अधिक वस्तुएं प्रदर्शित नहीं हैं।
कुछ कक्ष हैं जिनमें चित्र प्रदर्शित किये गए हैं, वहीं कुछ कक्षों में भित्तियों पर कुछ साड़ियाँ लटकी हुई हैं। अधिकाँश प्रदर्शित वस्तुओं के विषय में कोई जानकारी संलग्न नहीं की गयी है। संभवतः संग्रहालय की बाह्य भित्तियों पर कुछ सूचना पटल थे जिन पर पोचमपल्ली में प्रयुक्त भिन्न भिन्न प्रकार की बुनाई तकनीक, आकृतियाँ एवं विविध वस्त्रों के विषय में जानकारी दी गयी थी। किन्तु उनमें से अधिकाँश पटल अब या तो अनुपस्थित हैं या यहाँ-वहाँ पड़े हुए हैं।
बुनाई प्रदर्शन केंद्र
बुनाई प्रदर्शन केंद्र की स्थापना अवश्य की गयी है किन्तु किसी तज्ञ प्रशिक्षक द्वारा जानकारी प्राप्त नहीं हो पाने तथा स्वयं करघा चलाकर उसका अनुभव ना ले पाने के कारण बुनाई प्रदर्शन केंद्र का औचित्य लगभग नगण्य था। हम जिस समय वहाँ पहुंचे थे, जलपानगृह कार्यान्वित नहीं था तथा दुकानों के संकुल में अधिकतर दुकानों के द्वार बंद थे।
हमें बताया गया कि यह स्थिति पर्याप्त संख्या में पर्यटकों की उपस्थिति ना होने के कारण उत्पन्न हुई है। मैं सोच में पड़ गयी कि सर्वप्रथम पर्यटकों की उपस्थिति आवश्यक होनी चाहिए अथवा पर्याप्त साधनों की उपस्थिति! इस पर्यटक केंद्र के निर्माण एवं उसके कार्यान्वयन में पूर्व में ही पर्याप्त धन का निवेश हो चुका है। कुछ दक्ष परिदर्शकों एवं कुशल प्रशिक्षकों की उपस्थिति मात्र से इस गाँव को, साथ ही यहाँ आये दर्शनार्थियों को इस केंद्र का पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सकता है।
विनोभा भावे – भूदान आन्दोलन
पोचमपल्ली की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है, भूदान आन्दोलन के सृजक विनोबा भावे से इसका ऐतिहासिक संबंध। इसी स्थान से विनोबा भावे ने अप्रैल सन् १९५१ में भूदान आन्दोलन का आरम्भ किया था। इस आन्दोलन के अंतर्गत सर वेडिरे रामचन्द्र रेड्डी ने तेलंगाना क्षेत्र में स्थित पोचमपल्ली में वोनोबा भावे को १०० एकड़ की भूमि दान में दी थी। पोचमपल्ली वह प्रथम गाँव था जिसे दान में प्राप्त भूमि द्वारा गठित किया गया था। इसीलिए इसे भूदान पोचमपल्ली भी कहते हैं। कालान्तर में उन्होंने इस आन्दोलन द्वारा दान में प्राप्त १२००० एकड़ से भी अधिक भूमि का पुनर्वितरण किया।
वास्तव में जब विनोबा भावे इस क्षेत्र में आये थे, तब भूदान के विषय में उनकी कोई संकल्पना नहीं थी। इस संकल्पना का जन्म इसी भूमि पर हुआ था। देश के भूमिहीन निर्धन व असहाय नागरिकों की समस्याओं का निवारण करने के लिए उन्होंने इस आन्दोलन को जन्म दिया एवं उसे आगे बढ़ाया था। एक प्रकार से कहा जाए तो श्री रामचन्द्र रेड्डी ने उन्हें भूमि का दान कर इस संकल्पना का शुभारंभ किया था।
विनोबा मंदिर – पोचमपल्ली
यहाँ एक छोटा सा घर है जहाँ विनोबा जी ने एक दिवस व्यतीत किया था। इस निवास को अब विनोबा मंदिर कहा जाता है। यह एक छोटा सा दो कक्षों का घर है जिसे ठेठ भारतीय वास्तुशैली में निर्मित किया गया है। सामने की ओर एक बरामदा एवं एक उद्यान भी है।
इसके भीतर विनोबा भावे जी, श्री रामचन्द्र रेड्डी एवं इस आन्दोलन में लाभार्थी प्रथम परिवार के सदस्यों के चित्र हैं। इस गाँव में प्रवेश करने के लिए जिस मुख्य मार्ग से आप आते हैं, वहाँ भी श्री रामचन्द्र रेड्डी की एक प्रतिमा स्थापित है। यहाँ आते ही ऐसा आभास होता है मानो इतिहास में पढ़े इस ऐतिहासिक घटना का हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हों। इस ऐतिहासिक कार्य को सफल बनाने में कार्यरत इन व्यक्तियों के समर्पणभाव व उनकी सरलता देख हम आत्मविभोर हो जाते हैं।
यहाँ के पर्यटक सूचना केंद्र में इन दोनों महानुभावों की प्रतिमाएं हैं। साथ ही इस ऐतिहासिक उपलब्धि की स्मृति में एक स्मारक स्तंभ की भी स्थापना की गयी है। पर्यटन सूचना केंद्र के मुख्य प्रवेशद्वार के समक्ष एक वृक्ष है। कहा जाता है कि इसी वृक्ष के नीचे उस प्रथम भूदान की प्रक्रिया संपन्न हुई थी।
१०१ द्वारों का गृह
पर्यटन सूचना केंद्र की ओर जाते मार्ग पर एक छोटा सा किन्तु सुरम्य लक्ष्मी नारायण मंदिर है। श्वेत रंग में रंगा यह मंदिर अत्यंत मनोरम है। इसी मार्ग पर १०१ द्वारों से युक्त एक गृह है जो अब जीर्ण अवस्था में है। १०१ द्वारों से युक्त इस निवास की इसके मूल स्वरूप में कल्पना करना उतना ही असंभव जितना कि इसके भीतर प्रवेश करना।
इसका आकार अपेक्षा के अनुरूप विशाल नहीं है। किन्तु इसकी वास्तुशैली कुछ इस प्रकार थी कि इसमें १०१ द्वार थे। इसकी वास्तुशैली एवं स्थापत्य कला अवश्य ही विशेष रहे होंगे। किन्तु अब यह गृह चारों ओर से जीर्ण हो चुका है तथा ढह रहा है। दुर्भाग्य से इसके संरक्षण का कोई कार्य भी नहीं किया जा रहा है। यह अब भटके पशुओं का आश्रय बन चुका है।
यह इतनी गलिच्छ अवस्था में है कि इसके भीतर प्रवेश करना तो दूर, आप इसकी ओर देखने का भी साहस नहीं करेंगे। वर्तमान में यह जिस अवस्था में विद्यमान है, मैं नहीं जानती कि इसे इसके मूल रूप में पुनः स्थापित करना तथा इसे उसका मूल वैभव पुनः प्रदान कराना संभव भी है अथवा नहीं! फिर भी आशा करती हूँ कि इसके पुनरुद्धार के कुछ प्रयास अवश्य किये जाएँ ताकि इसे पूर्णतः नष्ट होने से बचाया जा सके।
पोचमपल्ली की बुनकर गली
पोचमपल्ली में कुछ क्षेत्र हैं जहाँ बुनकरों की गलियाँ हैं। यहाँ के निवासी व्यापार में निपुण हैं। उन्होंने अपने घरों में ही बुनकर यन्त्र रखे हुए हैं जिन पर वे बुनाई का कार्य करते हैं। वे आपको अपने गृहों में आमंत्रित करते हैं तथा इन बुनकर यंत्रों का प्रदर्शन करते हैं। साधारण यंत्रों से रंगबिरंगे आकारों से युक्त मनमोहक वस्त्रों की बुनाई देखना अत्यंत रोमांचक होता है। वे आपको उन यंत्रों में बुनी गयी साड़ियाँ एवं चादरें भी दिखाते हैं जिन्हें आप क्रय कर सकते हैं।
मेरे विचार से उन्हे अब अपने यंत्रों एवं बुनकर तकनीकियों में नव परिवर्तन लाने की आवश्यकता है ताकि वे नित-नवीन रंगों एवं आकृतियों से युक्त वस्त्रों की बुनाई कर सकें। अंततः, एक ही प्रकार के रंगों एवं आकृतियों से युक्त साड़ियों व चादरों के द्वारा वे कितने समय तक अपने व्यवसाय का अस्तित्व बचाए रख सकते हैं? रंगों व आकृतियों में नित-नवीन परिवर्तन कर उन्हें अपने उत्पादों की अभिनवता बनाए रखना चाहिए। कदाचित इस क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे संशोधक, इस क्षेत्र में कार्य कर रहे कारीगर एवं इस कला क्षेत्र में रत विद्यार्थी इनकी सहायता कर सकें।
आप जब मुख्य मार्ग से होते हुए जायेंगे, तब वहाँ स्थित इन स्थानीय वस्त्रों की दुकानों के विक्रेता आप से उन को खरीदने का आग्रह करेंगे। इन दुकानों में स्थानीय करघे पर बुने गए इन वस्त्रों के मूल्य अपेक्षाकृत अधिक बताये जाते हैं। बड़े नगरों में आप यही वस्तुएं इसी मूल्य पर अथवा इससे कम मूल्य पर प्राप्त कर सकते हैं। जहाँ तक पोचमपल्ली में बुने गए इन वस्त्रों का प्रश्न है, यह स्थान किसी भी अन्य पर्यटन स्थल के समान प्रतीत होता है जहाँ वस्तुओं के मूल्य बढ़ा-चढ़ा कर बताये जाते हैं तथा वस्तुओं की गुणवत्ता भी सामान्य होती है।
मुझे यहाँ पर मोटरसाइकिल जैसी दुपहिया वाहनों की विक्री एवं मरम्मत करने वाली अनेक दुकानें दिखीं। उनकी संख्या मुझे अचंभित कर रही थी। उन्हें देख कर दुपहिया वाहन उद्योगों द्वारा दी गयी संवृद्धि दर मुझे विश्वसनीय प्रतीत होने लगी।
पोचमपल्ली जलाशय
मुझे बताया गया था कि हम इस जलाशय के चारों ओर पदभ्रमण कर सकते हैं तथा जलाशय में नौकायन भी कर सकते हैं। किन्तु मुझे जलाशय के चारों ओर ना तो पदभ्रमण मार्ग दृष्टिगोचर हुआ, ना ही नौकायन की कोई सुविधा। यहाँ पर्यटन सुविधाओं के अभाव ने मुझे अत्यंत निराश किया था। जो कुछ भी न्यूनतम सुविधाएं हैं, उनकी सेवायें भी शोचनीय हैं।
हमने यहाँ के पर्यटन केंद्र को हमारे आने की पूर्व सूचना एक दिवस पूर्व ही दे दी थी। हमने एक परिदर्शक अथवा गाइड की भी मांग की थी। उन्होंने हमें बताया था कि ८०० रुपयों के शुल्क पर एक पर्यटक उपलब्ध रहेगा। हम स्तब्ध हो गए थे क्योंकि इतना अधिक शुल्क तो विश्व धरोहर स्थलों के परिदर्शक भी नहीं लेते हैं। फिर भी हमने अपनी सहमति दे दी।
नियत दिवस एवं समय पर कोई भी परिदर्शक उपस्थित नहीं था। अनेक फोन करने के पश्चात् जो व्यक्ति एक परिदर्शक के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित हुआ, वह पर्यटन केंद्र का चौकीदार था। ८०० रुपयों के एवज में उसने जो कार्य किये, वे थे, कुछ ताले खोलना एवं हमें उन स्थानों का अवलोकन करने देना। ऐसी सुविधाओं से यहाँ के पर्यटन उद्योग को कैसे बढ़ावा मिलेगा?
अयप्पा मंदिर
पोचमपल्ली भ्रमण का सर्वाधिक आनंददायी आकर्षण था, अयप्पा मंदिर। यह मंदिर गाँव की सीमा के पार स्थित है। इस मंदिर का निर्माण पगोडा शैली में किया गया है। इसके निर्माण में काले पत्थर एवं लाल मंगलुरु टाइलों का प्रयोग किया गया है। इस पर सुनहरी नक्काशी की गयी है। यह अपेक्षाकृत एक नवीन मंदिर है।
चारों ओर की हरियाली के मध्य यह मंदिर अत्यंत आकर्षक प्रतीत होता है। इसका सुनहरा ध्वजस्तंभ अत्यंत आकर्षक है। मंदिर संकुल के चारों ओर तिरछी छतों से युक्त भित्तियाँ एवं अनेक प्रवेश द्वार हैं। परिसर के भीतर एक मुख्य मंदिर, अनेक लघु मंदिर, एक यज्ञशाला, सुनहरा ध्वजस्तंभ, दो ऊँचे दीपस्तंभ तथा कुछ वृक्ष हैं। यह मंदिर जितना सादा एवं सुन्दर है, उतना ही अनूठा एवं भिन्न है। भारत के ऐसे कई अनूठे मंदिर हैं जो हमें अचंभित करने में चूकते नहीं हैं।
अयप्पा मंदिर की ओर आता हुआ मार्ग अनेक विशेषताओं से युक्त है। यह मार्ग अत्यंत सुरम्य है। इसके दोनों ओर हरियाली से भरे मैदान हैं जिन पर छोटी छोटी अनेक पहाड़ियां हैं। नीले आकाश के परिप्रेक्ष्य में, हरियाली से भरे मैदानों में स्थित छोटी छोटी पहाड़ियां मंत्र-मुग्ध कर देती हैं। मार्ग में वाहनों की संख्या अधिक नहीं होती है। आप आसानी से अपने चारों ओर के परिदृश्यों का आनंद उठा सकते हैं। मार्ग में ठहर कर छायाचित्रीकरण कर सकते हैं। अथवा अपने चारों ओर के परिदृश्यों को निहारने का आनंद उठा सकते हैं।