बीकानेर – यह नाम मेरे मानसपटल में केवल बीकानेरी भुजिया से जुड़ा हुआ था। बीकानेर, जिसे मैंने अन्य राजस्थानी शहरों की तरह, एक रेगिस्तानी शहर से ज्यादा कुछ नहीं समझा था – वही विरासती हवेलियाँ, वही कहानियाँ! लेकिन, मेरी बीकानेर यात्रा के पहले ही दिन जूनागड़ किले ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया। मेरे अनुमान से यह भारत का सर्वोत्तम अनुरक्षित व रखरखाव युक्त किला होगा। दूसरे दिन का बीकानेर भ्रमण मेरे लिए अत्यंत अनपेक्षित किन्तु सुखद अनुभव लिए हुए था, जब मेरे मेजबान नरेन्द्र भवन ने मुझे बीकानेर की पुरानी हवेलियों के बीच से गुजरते व्यापारिक मार्ग पर ले गए। मेरा अनुमान था कि यह भ्रमण, धूल भरे बाज़ार से होता हुआ, इधर उधर की कुछ हवेलियाँ दिखाता समाप्त हो जाएगा। परन्तु जो कुछ मैंने देखा व अनुभव किया वह इसके अत्यंत विपरीत था।
व्यापारिक मार्ग पर भ्रमण हेतु जब हम इस मार्ग के एक छोर पर पहुंचे, मेरे समक्ष बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित, नीले झरोखे युक्त, ऊंची हवेली का एक भाग प्रस्तुत था। उस ओर कुछ कदम बढ़ा कर मैंने उसकी बारीकियों को अपने कैमरे में कैद किया। जब मैंने बांयी ओर नजर दौड़ाई, मेरी आँखे फटी की फटी रह गयीं। मैं किसी अन्य कालचक्र में पहुँच गयी थी। मेरे समक्ष अप्रतिम नक्काशी किये गए लाल बलुआ पत्थर के बड़े बड़े टुकड़े थे। इस मार्ग की सम्पूर्ण वास्तुकला बहुतकुछ यूरोपीय सदृश थी। मध्य में एक त्रिकोणीय ईमारत व उसके दोनों ओर से गुजरती एक एक सड़क। पर इन पत्थरों की नक्काशी पूर्णतः भारतीय थी। रंगों से भरपूर बंद द्वार व झरोखे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो अपने भीतर कई राज और कहानियाँ छुपाये हुए थे।
हमने ऊंची हवेली की तरफ जाते मार्ग को चुना और उस पर चल पड़े। धनाड्य व्यापारियों के इन हवेलियों के अग्रभाग पर पड़ते धुप और छाँव अपने ही खेल में व्यस्त थे व इन्हें चंचलता का आभास करा रहे थे। अपने चारों ओर के परिवेश में आत्मविभोर होने के कुछ समय पश्चात यथार्थ ने धीरे से आहट दी और मैंने हवेलियों के इन अग्रभागों की बारीकियों का ध्यान से निरिक्षण करना आरम्भ किया।
बीकानेरी हवेलियाँ – वास्तुशिल्प विशेषतायें
छज्जे, झरोखे व जालियां
हवेलियों के अग्रभाग मुख्यतः ३ विशेषताओ द्वारा निर्मित हैं। ये हैं-
छज्जे
झरोंखों व दरवाजों के ऊपर, बाहर की ओर लटकते भाग को छज्जा कहा जाता है। यह ज्यादातर नक्काशीदार और शिल्पकारी युक्त होते हैं। छज्जे उत्तर भारतीय वास्तुशिल्प का एक अभिन्न अंग है। यह इमारत के अग्रभाग को अलंकृत करने के साथ साथ, द्वीआयामी भित्तियों को तीसरा आयाम प्रदान करतें है।
झरोखे
अलंकृत व बाहर की ओर लटकते खिडकियों को झरोखा कहा जाता है। अक्षरशः इसका अर्थ है खिड़कियाँ जो बाहर का दृश्य दिखाए। यह एक सर्वोत्कृष्ट राजस्थानी तत्व है। रंगबिरंगे दुपट्टे ओढ़े जब महिलायें इन झरोखों से बाहर झाँकतीं हैं, ऐसा विदित होता है मानो एक सुन्दर से चौखट पर एक खूबसूरत तस्वीर लगी हो। तस्वीर कैमरे में उतारने हेतु यह एक अद्भुत दृश्य होता है।
जालियां
पत्थरों पर की गयी बारीक व जटिल छिद्रित नक्काशी को जाली कहा जाता है। यह पत्थरों पर लयदार जाली का आभास कराती है। ऐसा आभास होता है मानो आप इन जालियों से भीतर देख सकतें हैं पर नक्काशी की बारीकी के कारण यथार्थ में यह कठिन है। मौलिक रूप से यह मध्य एशिया की कलाकृति की देन है परन्तु वर्तमान में यह भारतीय शिल्प व वास्तु का हिस्सा बन गयी है।
बीकानेर की हवेलियों में इन तीनों तत्वों का खूबसूरत व रचनात्मक मिश्रण है। साथ ही इसमें यूरोपीय तत्वों का भी बराबरी का हिस्सा है, जैसे रंगीन कांच, विक्टोरिया युग की मेहराबें, और कुछ शाही वक्षों की प्रतिमायें।
बीकानेरी हवेलियों के अन्य तत्व
उच्चावच
ज्यादातर हवेलियाँ उभारदार शिल्पयुक्त हैं, जिन्हें उच्चावच भी कहा जाता है। प्रवेश द्वार पर हिन्दू देवी-देवताओं की छवि चित्रित अथवा उनकी प्रतिमाएं गड़ी हुईं हैं। बाजू की कुछ दीवारों पर शाही अंग्रेज हस्तियों की अर्ध-प्रतिमाएं बनायी गईं हैं व शेष सतह पर खूबसूरत आकृतियाँ हैं। प्रवेश द्वार पर लगी नामपट्टिका उस हवेली के मालिक का नाम व हवेली के स्थापना का समय भी बताती है। ज्यादातर हवेलियाँ सन १९२० के आस पास बनाईं गईं हैं, अर्थात् लगभग १०० वर्ष पुरानी हैं।
संकरा प्रवेश द्वार
बीकानेरी हवेलियों के अग्रभाग पर विशाल अलंकृत प्रवेशद्वार व झरोखें होते हैं। परन्तु अधिकांशतः हवेली में प्रवेश हेतु संकरी सीड़ियाँ मुख्यद्वार तक ले जातीं हैं। इनकी चौड़ाई इतनी कम होती है कि एक बार में केवल एक ही व्यक्ति इन सीड़ियों से उतर सकता है। प्रवेशद्वार अत्यंत खूबसूरत व अतिशय अलंकृत होता है जो मालिक की रूचि का प्रदर्शन कराता है।
मध्य प्रांगण
कुछ हवेलियों के भीतर जाने का सौभाग्य मुझे मिला। उन हवेलियों के बीचोबीच आँगन बने हुए थे। मुझे यह बताया गया कि हवेली कितनी ही छोटी क्यों ना हो, एक भव्य आँगन हवेली के वास्तु का अनिवार्य अंग होता है। इस आँगन की विशेषता यह है कि यह हवेली के प्रत्येक भाग से दृष्टिगोचर है, केवल तहखाने के सिवाय।
तहखाने
प्रत्येक हवेली में १ या २ मंजिलों का तहखाना जमीनी स्तर के नीचे और ३ से ४ मंजिलों की रिहाईश जमीनी स्तर के ऊपर स्थित होती है। इस तरह पूर्ण हवेली ५ या ६ मंजिल ऊंची होती है। बेतरतीब सीड़ियाँ आपको अलग अलग मंजिलों तक पहुंचातीं है। इन हवेलियों में सरलता से घूमने व ऊपर-नीचे जाने के लिए इन हवेलियों की पूर्ण जानकारी आवश्यक है। यह एक सुरक्षा का इंतजाम है या योजना में कमतरता, यह अनुमान लगाना कठिन है।
भित्ति पर शिल्पकारी और चित्रकारी
हवेलियों के भीतर दीवारों व छतों पर सुन्दर चित्रकारी की जाती है। दीवार के आलों को भी खूबसूरती से सजाया जाता है और उन पर ज्यादातर देवी-देवताओं के चित्र रखे जातें हैं। छतों पर चटक रंगों में बेलबूटेदार नमूने चित्रित किये जातें है।सोपानी हवेली में हमने राजा रवि वर्मा की शैली में की गयी सरस्वती और लक्ष्मी के चित्र देखे। अधिकाँश चित्र श्वेत भित्तियों पर चटक रंगों द्वारा, मुख्यतः नीले व लाल रंगों में की गयी थी।
तिजोरी
तिजोरियां बीकानेरी हवेलियों का अभिन्न अंग हुआ करतीं थीं। उस काल में बैंक प्रणाली मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बनी थी, तिजोरियां किसी भी अमीर परिवार के धन संपत्ति हेतु एक अहम् व सुरक्षित संग्रहण हुआ करतीं थीं। यह ऐसे परिवार हैं जो नौकर-चाकरों से भरपूर हवेलियों में रहते थे। धर्मशाला व सराय के अभाव में हवेली, रिश्तेदारों व मेहमानों के निरंतर प्रवाह से भरीपूरी रहती थी। इसलिए अपनी धनसंपत्ति को दूसरों की नज़रों से दूर सुरक्षित रखने हेतु तिजोरी अतिआवश्यक हुआ करतीं थीं। यह तिजोरियां, मालिक की इच्छानुसार, दीवारों में मढ़ी अथवा जमीन में गड़ी होतीं थीं। आप जब भी इन हवेलियों के दर्शनार्थ इनमें प्रवेश करें, आप इन तिजोरियों को गुप्त स्थानों पर गड़ा हुआ पायेंगे, जैसे तस्वीरों के पीछे, कालीन के नीचे या अलमारी के अन्दर!
इन हवेलियों के निर्माण हेतु पत्थर दुलमेरा से लाया गया था। यह हलके गुलाबी रंग के पत्थर हैं।
दुर्भाग्यवश ज्यादातर हवेलियाँ इन दिनों रिक्त पड़ी हैं और पूर्णतः बंद हैं। इन हवेलियों की आतंरिक सजावट देखने हेतु अन्दर जाने के सारे मार्ग बंद कर रखे हैं। आप इनकी सजावट अपनी कल्पना में ही देख सकते हैं।
हवेलियों की दरमियानी जगह
हवेलियों के भ्रमण के दौरान, गलियों के कोनो पर, मुझे लकड़ी के कई तख़त दिखाई पड़े। यह उस समय का चाय पर चर्चा हेतु यहाँ हुआ करते होंगे। मैं वहीँ खड़ी, अपनी कल्पना में वह दृश्य देखने लगी जब इन पटियों पर बैठे, हवेली के रहवासी, चाय पीते चर्चा में मशगूल रहते होंगे और बच्चे इन सडकों पर खेलने में मग्न होते होंगे। हालांकि वर्तमान में यह स्थान कारों व गाड़ियों ने घेर कर लिया है।
सुना है की धीरे धीरे कुछ हवेलियाँ खुलने लगीं।
बीकानेरी हवेलियों का इतिहास
यह हवेलियाँ शहर के सौदागरों व व्यापारियों की बनाई हुई हैं जिन्होंने कलकत्ता जैसे बड़े शहरों में खूब धन अर्जित किया। ५०० वर्षों पूर्व, राव बीका द्वारा इसके खोज के उपरांत से अब तक यह मुख्य व्यापारिक केंद्र रहा है। हालांकि १००-२०० वर्षों पूर्व रामपुरिया जैसे शहरों से कुछ व्यापारियों ने कलकत्ता जा कर, धन अर्जित कर, यहाँ, बीकानेर में सुन्दर हवेलियों का निर्माण करवाया था।
यहाँ की अधिकाँश हवेलियों का निर्माण सन १८८७ से १९४३ के मध्य महाराज गंगासिंग के शासनकाल में हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने बीकानेर में १००१ हवेलियों के निर्माण का आज्ञापत्र दिया था। यहाँ हवेलियाँ हर आकार में पाई जातीं हैं। छोटी से छोटी हवेली भी खूबसूरत अग्रभाग, छज्जे, झरोखे, जालियां इत्यादि से सुसज्जित हैं, मानो बीकानेर की परंपरा निभा रहीं हों।
कुछ प्रसिद्ध बीकानेरी हवेलियाँ
रामपुरिया हवेलियां
रामपुरिया परिवार की हवेलियाँ, सर्वाधिक भव्य है व पर्यटकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। द्वारों व झरोखों पर चटक रंग इन हवेलियों के गुलाबी पत्थरों को और विशिष्ठता प्रदान करतें हैं। यूरोपीय शासकों की प्रतिमाओ से लेकर हिन्दू देवी देवताओं की शिल्पकारी यहाँ इन हवेलियों पर देखी जा सकती है।
कोठारी हवेली
यह रामपुरिया हवेलियों से छोटी हैं परन्तु सर्वाधिक शिल्पकारी युक्त बहिर्भाग के लिए प्रसिद्ध है।
सोपानी हवेली
यह उन कुछ हवेलियों में से हैं जो पर्यटकों के लिए दर्शानार्थ खुले हैं। परन्तु इन्हें देखने के लिए पूर्व आज्ञा प्राप्त करना अनिवार्य है। हवेली के मालिक आपको अपनी हवेली के, विस्तृत वर्णन सहित, दर्शन करातें हैं। आप चाहें तो उनके साथ भोजन का आस्वाद ग्रहण कर सकतें हैं।
बीकानेरी हवेलियाँ – दर्शन हेतु कुछ सुझाव
• इसमें कोई शंका नहीं कि आप इन खूबसूरत हवेलियों की तस्वीरें लेना चाहेंगे। इसलिए इनके दर्शनार्थ सूर्य के स्वर्णिम क्षणों अर्थात् प्रातःकाल या संध्याकाल का समय निश्चित करें।
• पैदल चल कर आप इन हवेलियों के आसपास घूम सकते हैं, परन्तु यदि आप सम्पूर्ण क्षेत्र के दर्शन करना चाहें तो तांगा किराए पर लेकर शान से इस विरासत का भरपूर आनंद उठा सकतें हैं।
• अपने साथ पीने का पानी अवश्य ले जाएँ क्योंकि इन मार्गों पर ज्यादा दुकानें उपलब्ध नहीं हैं जहाँ से आप पानी खरीद सकें। यह और बात है कि आप पानी माँगने के बहाने इन हवेलियों के रहवासियों से बात करने की कोशिश कर सकतें है।
• कोशिश कर किसी हवेली के भीतर से भी दर्शन करें और उनकी भव्यता का आनंद उठायें।
• कुछ हवेलियों के ऊपर की गयी चित्रकारियों को देखना ना भूलें।
• इन हवेलियों को इत्मीनान से देखने के लिए २ घंटे का समय लग सकता है। हालांकि तांगे पर बैठ कर इन्हें ३० मिनट में भी देखा जा सकता है। परन्तु इससे आप इनकी बारीकियों पर गौर नहीं फरमा सकेंगें।
राजस्थान से कुछ और यात्रा संस्मरण
चित्तोडगढ़ दुर्ग – सहस और त्याग की कथाएं
Very Nice with Pictures, send further again:
धन्यवाद जीतेन्द्र जी|
I really loved each articles of yours.
Thanks for the good work.
Regards
अनेकानेक धन्यवाद संजीव जी. हमसे जुड़े रहिये और प्रोत्साहन देते रहिये.
मेरी और कोचर साहब की लिखी किताब ज़रूर पढ़िये।
“हज़ार हवेलियों का शहर बीकानेर”
डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी
जी अवश्य. मैंने यह किताब ऑनलाइन ढूंडने की कोशिश की मगर मिली नहीं, क्या आप बता सकते हैं की यह कहाँ मिलेगी.
ये किताब मेरे पास मिल जाएगी।
या।
राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी,जयपुर से प्राप्त कर सकते हैं।