कर्णाटक में स्थित कूर्ग भारत के पश्चिमी घाटों की गोद में बसा एक अप्रतिम पर्वतीय पर्यटन स्थल है। कॉफी के अनेक बगीचे होने के कारण इसे कॉफी के प्याले के नाम से जाता जाता है। कूर्ग का अधिकारिक नाम कोडगु है। कूर्ग या कोडगु प्रकृति एवं संस्कृति से अत्यंत समृद्ध क्षेत्र होने का कारण सभी प्रकार के पर्यटकों का एक प्रिय गंतव्य है। कूर्ग से भले ही कॉफी के बागों का ध्यान आता है किन्तु कूर्ग केवल कॉफी के बागों तक ही सीमित नहीं है। उसके अतिरिक्त भी कूर्ग में अनेक सुन्दर दर्शनीय स्थल हैं। आईये हम साथ मिलकर उन दर्शनीय स्थलों का अवलोकन करें।
कूर्ग के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल
ये कूर्ग के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों की सूची है। इनमें से अधिकतर स्थलों के अवलोकन का अविस्मरणीय सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ था। इस सूची में मैंने उन पर्यटन बिन्दुओं का भी उल्लेख किया है जिन्हें मैं अपनी उस यात्रा में सम्मिलित नहीं कर पायी थी। निकट भविष्य में उन्हें देखने के लिए मैंने उन्हें अपनी इच्छा पोटली में डाल रखा है। इन पर्यटन स्थलों के अवलोकन करने के लिए आप को अपनी यात्रा व्यवस्थित रूप से नियोजित करनी पड़ेगी क्योंकि ये स्थल सम्पूर्ण मडिकेरी नगरी में पसरे हुए हैं। मडिकेरी में पड़ाव रखते हुए टैक्सी द्वारा आप इन स्थलों तक जा सकते हैं।
कूर्ग के प्रसिद्ध मंदिर
तलकावेरी मंदिर
कावेरी नदी, कर्णाटक एवं तमिल नाडू के अधिकाँश भागों की पोषिका, कूर्ग से ही प्रस्फुटित होती है। कूर्ग में ही कावेरी नदी का उद्गम स्थल है। भारत में नदियों के उद्गम स्थलों को अत्यंत पावन माना जाता है। कावेरी नदी के उद्गम स्थल को तलकावेरी कहा जाता है। यहाँ आप कावेरी अम्माँ की प्रतिमा देख सकते हैं। कूर्ग में कावेरी नदी को सभी आदर से कावेरी अम्मा या कावेरी अम्मन कह कर पुकारते हैं।
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भागमंडला मंदिर एवं त्रिवेणी संगम
भागंदा ऋषि द्वारा स्थापित इस मंदिर को स्कन्द क्षेत्र भी कहते हैं। ब्रह्मगिरी पर्वतों की तलहटी पर स्थित यह एक विस्तृत मंदिर है जहाँ तलकावेरी स्थित है। इसकी पुरातनता, इसकी स्थानीय वास्तुशैली, इसकी अप्रतिम काष्ठ एवं शैल उत्कीर्णन अत्यंत दर्शनीय हैं। इनका आनंद लेने के लिए आपको इस मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए।
इस मंदिर के समक्ष ही तीन नदियों का त्रिवेणी संगम है। ये नदियाँ हैं, कावेरी, कन्निगे एवं सुज्योत। प्रयागराज के समान इन तीन नदियों के इस संगम को भी अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहाँ अनेक धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। इसके आसपास आप अनेक प्राचीन शिवलिंग देखेंगे। यहाँ आने से पूर्व ‘तलकावेरी, भागमंडला एवं त्रिवेणी संगम’ पर लिखे मेरे संस्करण को अवश्य पढ़ें।
इग्गुथप्पा मंदिर
पडी इग्गुथप्पा मंदिर कोडगु के अधिष्ठात्र देवता का मंदिर है जिन्हें फसल का देवता एवं समृद्धि का देवता भी माना जाता है। मैंने इस मंदिर पर एक विस्तृत संस्करण पहले से ही लिखा हुआ है। उसे अवश्य पढ़ें।
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कॉफी उद्यानों का अनुभव
कॉफी उद्यानों का अनुभव प्राप्त करना हो तो उसका सर्वोत्तम मार्ग है, किसी कॉफी उद्यान में ही रहना। आप उद्यान में शांति से टहल सकते हैं। कॉफी की खेती कैसे की जाती है, यह देख सकते हैं। कॉफी के विभिन्न प्रकारों के विषय में सीख सकते हैं। भारत में कॉफी के इतिहास के विषय में जान सकते हैं। कॉफी के बीजों के जीवन चक्र को समझ सकते हैं।
इसके पश्चात आप जब भी कॉफी पियेंगे, वह आपको अधिक रुचिकर प्रतीत होगी। उससे अधिक निकटता का अनुभव होगा। कॉफी के बीजों को भूनने तथा उससे कॉफी पेय बनाने के विभिन्न तकनीकों को जानना भी अत्यंत रोचक होता है। इनमें से अधिकतर कॉफी उद्यानों में कॉफी के साथ साथ काली मिर्च, इलायची जैसे मसालों की भी खेती की जाती है। आप दैनन्दिनी जीवन में जिन मसालों का प्रयोग करते हैं, उन्हें उनके मूल रूप में उगते देखना आपको प्रसन्न कर देगा। अधिकतर कॉफी उद्यान ब्रिटिश काल के हैं जिनके भीतर स्थित इमारतें एवं अन्य संरचनाएं आपको औपनिवेशिक काल का एक प्रत्यक्ष अनुभव देंगी।
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सूचना- कॉफी उद्यानों में रहना हो तो सर्वोत्तम समय तब होता है जब कॉफी के पेड़ों पर पुष्प पल्लवित हो रहे हों। वे अत्यंत सुन्दर दिखते हैं मानो पेड़ों पर पुष्प हार चढ़ाए गए हों।
दूबारे हाथी प्रशिक्षण शिविर
जैसा कि नाम से ही विदित होता है, यह एक ऐसा कैंप अथवा शिविर है जहां आप हाथियों को समीप से देख सकते हैं। उनसे जुड़े क्रियाकलापों में भाग ले सकते हैं। जैसे हाथियों को स्नान करवाना, हाथियों द्वारा लकड़ी के लट्ठों को उठवाना एवं व्यवस्थित रूप से रखवाना आदि।
ये सभी क्रियाकलाप किसी महावत या पशुविद्याविज्ञ के कुशल निरिक्षण में किया जाता है। यदि आप स्वयं भाग ना लेना चाहें तब भी उन्हें नदी के जल में क्रीड़ा करते देखना भी अत्यंत मनोरंजक होता है।
कावेरी निसर्गधाम वन उद्यान
यह एक सघन वनीय क्षेत्र है जहां आप विभिन्न प्रकार के वनों के मध्य कुछ समय व्यतीत कर सकते हैं। आप वन में टहल सकते हैं। कावेरी नदी पर बने झूला सेतु पर टहल सकते हैं। कावेरी के जल द्वारा पोषित हरियाली से ओतप्रोत परिवेश का आनंद ले सकते हैं। कोडगु के स्थानिकों के जीवन की विशेषताओं को दर्शाती एक प्रदर्शनी भी है। वृक्षों पर एवं सूखे तनों पर स्थानिकों के इतिहास एवं लोक-साहित्यों का सुन्दर चित्रण किया गया है।
कोडगु जीवन शैली की विशेषताओं को दर्शाती यहाँ अनेक चित्रावलियाँ हैं। रोमांच की खोज में आये पर्यटकों के लिए यहाँ ज़िप-लाइन की भी सुविधा है। परिसर के निकास द्वार के समीप स्मारिकाओं की कई दुकानें हैं जहां से आप यहाँ के विशेष मसाले तथा घरेलु रूप से बने चॉकलेट आदि क्रय कर सकते हैं। यदि आपको प्रकृति के सानिध्य में समय व्यतीत करना भाता है तो यहाँ अवश्य आईये। विशेष रूप से मुझे यहाँ का बांस का उद्यान भा गया।
बैलकुप्पे का तिब्बती मठ
भारत में सन् १९६१ से अब तक के विशालतम तिब्बती बस्तियों की चर्चा करें तो सर्वप्रथम नाम है, धर्मशाला जो हिमाचल प्रदेश का एक नगर है। इसके पश्चात दूसरे क्रमांक पर बैलकुप्पे का नाम आता है। इस वसाहती क्षेत्र में तिब्बती मूल के लगभग १००,००० रहवासी रहते हैं। यह स्वयं में एक छोटी सी नगरी है। यहाँ का नामद्रोलिंग निंगमापा मठ प्रसिद्ध है जो अपने उजले स्वर्णिम रंगों के कारण पर्यटकों में गोल्डन टेम्पल या स्वर्ण मंदिर के नाम से लोकप्रिय है। इस मठ में अनेक बौद्ध उत्सवों का आयोजन किया जाता है।
दक्षिण भारत में स्थित यह एक अहम बौद्ध स्थल है। बौद्ध अनुयायियों के लिए इसे दक्षिण भारत का एक मरूद्यान माना जाता है। ठीक वैसे ही जैसे मध्य भारत में छत्तीसगढ़ का मैनपाट है।
नलकनाड (पैलेस) महल
कूर्ग के स्थानिक इसे नालनाड अरमाने कहते हैं। यह महल कूर्ग के यवकपाडी नाम के गाँव में स्थित है। १८वीं सदी में निर्मित यह महल कोडगु के अंतिम हलेरी राजाओं का था जिसके पश्चात इस महल पर अंग्रेजों ने अधिपत्य जमा लिया। यह संरचना महल कम, दो-तलों की विशाल हवेली अधिक प्रतीत होती है। इस पर दुहरी ढलुआ छतें हैं। छत एवं द्वारों पर अप्रतिम काष्ठकारी की गयी है। भीतर लगे कुछ चित्र तो अत्यंत दर्शनीय हैं। महल के भीतर सभी स्थानों पर नाग के चिन्ह चित्रित अथवा उत्कीर्णित हैं। मुझे लगा यह हलेरी राजवंश का चिन्ह हो सकता है।
यहाँ उपस्थित गाइड आपको बताएँगे कि कैसे इस महल की संरचना यह सुनिश्चित करती थी कि भीतर के सैनिक स्वयं शत्रुओं की दृष्टि से ओझल रहते हुए भी आसानी से बाहर देख सकते थे तथा शत्रुओं पर वार कर सकते थे। उस काल में यह महलों एवं दुर्गों की महत्वपूर्ण आवश्यकता मानी जाती थी ताकि राजमहल एवं राजपरिवार के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
महल के बाहर एक छोटा मंडप है जहां कदाचित् विभिन्न समारोह एवं अनुष्ठान आयोजित किये जाते थे। दरबार कक्ष एवं अन्धकार में स्थित कुछ अन्य कक्ष रोचक हैं। यह एक साधारण धरोहर संपत्ति है। किन्तु, यदि आपको राजमहलों एवं उनकी धरोहरों में रूचि हो तथा आपके पास समय की समस्या ना हो तो आप इस महल में अवश्य आयें।
मडिकेरी नगरी के दर्शनीय स्थल
मडिकेरी दुर्ग
मडिकेरी दुर्ग को मरकरा दुर्ग भी कहा जाता है। १७वीं सदी में निर्मित इस दुर्ग को मुद्दुराजा ने बनवाया था। इसके पश्चात इस पर टीपू सुल्तान ने अधिपत्य जमाया। टीपू सुल्तान के पश्चात यह दुर्ग डोड्डा वीर राजेन्द्र के स्वामित्व में आया तथा अंततः अंग्रेजों के पास चला गया। वर्तमान में इस दुर्ग को उप-आयुक्त के कार्यालय में परिवर्तित किया गया है जिसके कारण यह अब भारत सरकार की संपत्ति है। दुर्ग के बाहर स्थित हाथियों के दो शिल्प पर्यटकों में लोकप्रिय हैं। दुर्ग की भित्तियों पर चलते हुए आप दुर्ग के चारों ओर के परिदृश्यों का विहंगम रूप देख सकते हैं।
मडिकेरी राजमहल
मडिकेरी राजमहल एक काल में मडिकेरी दुर्ग का ही भाग था।
अब यह एक स्थानीय सरकारी कार्यालय है जिसके कारण आप इसे केवल बाहर से देख सकते हैं। फिर भी आप इस धरोहरी संरचना की प्रशंसा किये बिना नहीं रह पायेंगे।
सरकारी संग्रहालय
दुर्ग की भित्तियों के ठीक बाहर एक प्राचीन गिरिजाघर है जो अब एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में रखी कलाकृतियाँ अत्यंत रोचक हैं। बाहर स्थित उद्यान में अनेक वीरगल स्थापित हैं। उस क्षेत्र के वीरों के सम्मान में स्थापित शैल खण्डों को वीरगल कहते हैं। संग्रहालय में स्थित स्मारिकाओं की दुकान से मैंने कर्णाटक की धरोहरी संपत्तियों पर लिखी अनेक पुस्तकें खरीदीं।
ओंकारेश्वर मंदिर
यह एक अप्रतिम मंदिर है। मेरे हृदय का काशी से सम्बन्ध होने के कारण यह मंदिर व उसके सुन्दर जलकुंड ने मेरी स्मृतियों में सदा के लिए एक अमिट छाप छोड़ दी है। इस मंदिर के शिवलिंग को वाराणसी से लाया गया है। इस मंदिर का नाम भी वही है जो मध्यप्रदेश में नर्मदा के तट पर बने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का नाम है।
जलकुंड के मध्य स्थित मंदिर इसकी सुन्दरता में कई गुना वृद्धि करता है। जलकुंड में बहुत सारे कछुए भी हैं।
राजा की गद्दी (राजा सीट)
यह स्थान मडिकेरी का सर्वाधिक पर्यटन प्रिय बिंदु है। यह एक सुन्दर उद्यान है। यहाँ से पर्वतों एवं हरियाली से परिपूर्ण परिदृश्यों का अप्रतिम दृश्य दिखाई पड़ता है। इसलिए भी यह एक महत्वपूर्ण अवलोकन बिंदु भी है। घाटियों में हरियाली के विभिन्न रंग मन मोह लेते हैं। पर्वत श्रंखला के पीछे होते सूर्यास्त का दृश्य भी अत्यंत मनमोहक होता है।
यदि वातावरण में धुंध हो तो वह परिदृश्यों को अधिक रहस्यमयी बना देती हैं। उद्यान का रखरखाव उत्तम रीति से किया गया है। यदि आप यहाँ मार्च के महीने में आयें तो आपको पुष्प प्रदर्शनी का भी आनंद प्राप्त होगा। इस उद्यान के समीप बच्चों के लिए ट्रेन है जिस पर बैठकर चक्कर लगाने में बच्चे क्या, बड़ों को भी आनंद आ जाता है।
राजा स्मारक
यहाँ पर राज-स्मारकों की पंक्तियाँ हैं जो हैदराबाद की कुतुब शाही स्मारकों के समान प्रतीत होती हैं। किन्तु इन स्मारकों पर नंदी की आकृतियाँ उत्कीर्णित हैं। इन स्मारकों के भीतर शिवलिंग हैं जिनकी पूजा अर्चना की जाती है।
कुछ स्मारकों के द्वार पर द्वारपालों की आकृतियाँ भी उत्कीर्णित हैं। इन स्मारकों के द्वारों एवं झरोखों के शैल-चौखट दर्शनीय हैं। प्रत्येक स्मारक पर लगे सूचना पटल पर सम्बंधित राजा का नाम एवं उसकी जीवनी की झलक प्राप्त होती है जिसके लिए यह स्मारक बनाया गया है।
यहाँ पर्यटकों की अधिक भीड़ नहीं होती है। इसके परिसर में सुन्दर उद्यान एवं अन्य धरोहर संरचनाएं भी हैं।
कूर्ग में और क्या करें:
- विभिन्न प्रकार की कॉफी का आस्वाद लें।
- स्थानीय व्यंजन चखें।
- प्रकृति का छायाचित्रीकरण करें।
- पक्षियों का दर्शन एवं छायाचित्रीकरण करें।
- बारापोल नदी में रोमांचक रिवर राफ्टिंग करें।
- प्रत्यक्षदर्शियों से हाथियों एवं उनसे हुए सामनाओं की रोमांचक कथाएं सुनें।
- स्मारिकाओं की खरीदी करें। आपकी सुविधा के लिए मैंने कूर्ग की विशेष स्मारिकाओं की सूची बनाई है।
जलप्रपात
पश्चिमी घाट की सीमा पर स्थित होने के कारण कूर्ग में मानसून में अत्यधिक वर्षा होती है। स्वाभाविक है, घाटियाँ एवं अत्यधिक वर्षा, दोनों ही स्थितियाँ अनेक जलप्रपातों को जन्म देती हैं। वर्षा का जल पर्वतों से जलधाराओं के रूप में बहते हुए नीचे आता है। घाटियों से नीचे आते हुए ये जलधाराएं जलप्रपातों का रूप ले लेती हैं। इन जलप्रपातों में से अधिकतर प्रपात केवल मानसून में अथवा मानसून के पश्चात ही दृष्टिगोचर होते हैं। ये जलप्रपात अपेक्षाकृत अधिक ऊँचे नहीं हैं। फिर भी अप्रतिम परिवेश के कारण ये सुन्दर दिखाई पड़ते हैं।
मौसमी जलप्रपातों का सर्वोत्तम सौंदर्य मानसून में ही होता है। किन्तु इन जलप्रपातों तक पहुँचने के लिए जंगल अथवा वनीय क्षेत्रों में पैदल चलना पड़ता है। मानसून में इन्हें देखने जाने का अर्थ है, चिकनी सतह पर चलने का जोखिम उठाना, जोंक का खतरा और धुआंधार वर्षा से जूझना। यदि योग्य सहायता की अनुपस्थिति में वहाँ फंस गए तो आप संकट की स्थिति में आ सकते हैं।
मानसून के ठीक पश्चात, अर्थात् नवम्बर मास में किसी स्थानीय गाइड के साथ यहाँ आना सर्वोत्तम होगा। तब यही जलप्रपात रोमांचक आनंद प्रदायक हो सकते हैं। इस काल के पश्चात जल के प्रवाह में कमी आ जाती है। जलप्रपात के नाम पर चट्टानों से टपकती जल धाराएँ ही शेष रह जाती हैं। किन्तु यदि आपको जंगल में पैदल चलना, ट्रेक करना भाता है तो आप जलप्रपात के दृश्य का मोह ना रखते हुए, प्रकृति के सानिध्य में ट्रेक करने का आनंद उठायें।
एब्बी फाल्स/जलप्रपात
इस जलप्रपात तक पहुँचने के लिए स्थानीय अधिकारियों ने व्यक्तिगत स्वामित्व के हरियाली भरे वनों में सुव्यवस्थित सीढ़ियाँ बनाई हैं। जिन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने में कष्ट हो उनके लिए यह यात्रा कष्टदायक हो सकती है किन्तु अन्य के लिए यह आसान है। चढ़ाई एवं वनीय प्रदेशों की आर्द्रता के कारण पसीने की असुविधा अवश्य हो सकती है। प्रवेश स्थल पर जलपान एवं पेयजल की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
हमने भी जलप्रपात तक की यात्रा की थी। जलप्रपात के साथ साथ हमें यहाँ की प्रकृति में समय व्यतीत करने में आनंद आया था। यह जलप्रपात ना तो विशाल है, ना ही बहुत ऊँचा है। यह लगभग ६०-७० फीट ऊँचा जलप्रपात है। मानसून में इसकी सुन्दरता चरम सीमा पर होती है। इससे उठता शोर सम्पूर्ण वातावरण को गुंजायमान कर देता है। मानसून के पश्चात इसके आकर्षण में कमी आ जाती है। इसलिए अपनी अपेक्षाएं कम रखकर यहाँ आयें तो आपको अवश्य आनंद आएगा।
जलप्रपात तक जाने के लिए नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। पर्यटकों को जलप्रपात के जल में अथवा जलाशय में उतरने की अनुमति नहीं है। यह जलप्रपात मडिकेरी नगरी से लगभग ८ किलोमीटर दूर है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ तक आने का कष्ट करना व्यर्थ होगा क्योंकि तब तक जलप्रपात का जल लगभग लुप्त हो जाता है।
अन्य जलप्रपात
अन्य सभी जलप्रपात भी मौसमी हैं। वर्षा ऋतु अथवा इसके तुरंत बाद ही वहाँ तक जाना फलदायी होगा। मैं मार्च के महीने में कूर्ग पहुँची थी। वह ना तो जलप्रपात के लिए योग्य मौसम था, ना ही हमारे पास इन सब जलप्रपातों तक जाने के लिए पर्याप्त समय था। इसलिए हमने इन जलप्रपातों के दर्शन तो नहीं किये। किन्तु यदि आप वर्षा ऋतु में अथवा उसके पश्चात कूर्ग जाते हैं तो आप इनके दर्शनों का प्रयास कर सकते हैं। आप की सुविधा के लिए मैं उन जलप्रपातों की सूची यहाँ दे रही हूँ।
- इरुप्पू जलप्रपात (Iruppu Falls लक्षमण तीर्थ) – वायनाड सीमा पर पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत श्रंखलाओं में स्थित है।
- चेलवरा जलप्रपात (Chelavara Falls) – जिसे कछुआ शिला भी कहा जाता है। स्थानीय भाषा में एम्बेपेरे कहा जाता है।
- कब्बे जलप्रपात (Kabbe Falls)
- बगनमाने जलप्रपात (Baganamane Waterfalls)
- गर्वाले जलप्रपात (Garwale Waterfalls)
- कल्याला जलप्रपात (Kalyala Waterfalls) – इसे कन्नड़ भाषा में स्पतिका जलपथा कहा जाता है।
- देवराकोल्ली जलप्रपात (Devarakolli Waterfalls)
- कुप्पेहोले जलप्रपात (Kuppehole Waterfalls)
- करिके जलप्रपात (Karike Waterfalls)
- मल्लाली जलप्रपात (Mallalli Waterfalls)
पर्वतारोहण
कूर्ग पश्चिमी घाटियों में बसी एक अप्रतिम नगरी है। स्वाभाविक है कि इसके चारों ओर पर्वत श्रंखलायें हैं जिन पर चढ़कर इस क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। किन्तु इन पर्वतों पर चढ़ना थकावट एवं संकट भरा हो सकता है। इसलिए ऐसे रोमांचक चढ़ाई के लिए पूर्व योजना बनाएं। समूह में चढ़ाई करें। अपने साथ स्थानीय मार्गदर्शक अवश्य रखें।
इनमें से अधिकतर यात्रा मार्ग वनीय प्रदेशों से होकर जाते हैं। इसलिए चढ़ाई आरम्भ करने से पूर्व वन विभाग से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होता है। आपको पुनः सचेत कर दूं कि ऐसी चढ़ाई के लिए अकेले ना जाएँ। पूर्व नियोजित समूह में जानकार गाइड के मार्गदर्शन में जाएँ। पर्वतीय क्षेत्रों में मोबाइल तंत्र कार्य नहीं करते हैं। किसी दुर्घटना की परिस्थिति में शीघ्र सहायता पहुँचाने में कठिनाई हो सकती है। हमने इनमें से कोई भी रोहण स्वयं नहीं किया है।
कुछ पर्वतारोहण मार्गों की सूची इस प्रकार है:
- ताडियान्दामोल शिखर (Tadiandamol peak)– यह कूर्ग का सर्वोच्च पर्वत शिखर है जिसकी ऊँचाई समुद्र सतह से लगभग १७५० मीटर है।
- पुष्पगिरी (Pushpagiri) – इसे कुमार पर्वत या सुब्रमन्य पर्वत भी कहते हैं। समुद्र सतह से लगभग १७१० मीटर ऊँचाई पर स्थित यह शिखर कूर्ग का दूसरा सर्वोच्च शिखर है।
- ब्रह्मगिरी (Brahmagiri) – समुद्र सतह से लगभग १६१० मीटर ऊँचाई पर स्थित यह शिखर कूर्ग का चौथा सर्वोच्च शिखर है।
- मंडलपट्टी (Mandalpatti)
- निशानी बेट्टा (Nishani Betta) – बेट्टा का अर्थ पर्वत होता है। इसकी ऊँचाई समुद्र सतह से लगभग १२७५ मीटर है।
- कोपट्टी (Kopatty)
- कब्बे (Kabbe)
- चोमाकुंडा (Chomakund)
- कोटे बेट्टा (Kote Betta) – समुद्र सतह से लगभग १६२० मीटर ऊँचाई पर स्थित इस शिखर को कूर्ग का तीसरा सर्वोच्च शिखर माना जाता है।
- गलिबीडू (Galibeedu) – सुब्रमन्य
- कक्कबे (Kakkabe)
- तवूर (Tavoor)
कूर्ग के आसपास के राष्ट्रीय उद्यान
कूर्ग क्षेत्र चारों ओर से कई वन्य प्राणी उद्यानों, राष्ट्रीय उद्यानों एवं बाघ अभयारण्यों से घिरा हुआ है। ये सभी उद्यान कर्णाटक, तमिलनाडु एवं केरल राज्यों की सीमाओं को पार करते हैं। यदि आप पर्याप्त समय लेकर कूर्ग की यात्रा पर आये हैं तो इनमें से कुछ अभयारण्य अवश्य जाएँ।
- नागरहोले (Nagarahole) राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य
- काबिनी (Kabini) वन्यजीव अभयारण्य
- बाँदीपुर (Bandipur) बाघ अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान
- मधुमलई (Madumalai) राष्ट्रीय उद्यान
- वायनाड (Wayanad) वन्यजीव अभयारण्य
- ब्रह्मगिरी (Brahmagiri) वन्यजीव अभयारण्य
मैं किसी दिन इन सभी वन्यजीव अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यानों को देखने की अभिलाषा रखती हूँ। आशा है कि मेरी इच्छा शीघ्र पूर्ण होगी।
कूर्ग के समीप अन्य दर्शनीय स्थल
यदि आपके पास समय हो तो आप कूर्ग के आसपास अन्य पर्यटन स्थलों का भी आनंद ले सकते हैं। उनमें कुछ इस प्रकार हैं:
- काबिनी (Kabini) जलाशय
- होन्नामाना केरे (Honnamana Kere) – एक विशाल प्राकृतिक सरोवर
- हरंगी (Harangi) बाँध
- चिकलीहोले (Chiklihole) जलाशय
मैंने इस स्थलों का अवलोकन नहीं किया है। आशा है निकट भविष्य में मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हो।
कूर्ग का आनंद उठायें! उसके प्राकृतिक सौंदर्य में सराबोर हो जाएँ!