दमन एक छोटा सा शहर है जो भारत के पश्चिमी तट पर महाराष्ट्र और गुजरात के बीच बसा हुआ है। इन दो राज्यों से घिरे होने के बावजूद भी वह अपनी अलग और विशेष पहचान बनाने में सफल रहा है। आज दमन जो भी है और जैसा भी है उसकी जड़ें कहीं ना कहीं उसके भूतकाल से जुडी हुई हैं। एक समय ऐसा था जब दमन भी गोवा की तरह पुर्तुगालियों का उपनिवेश हुआ करता था। पाठशाला में पढे हुए केंद्र शासित प्रदेश गोवा, दमन और दीव तो आपको याद होंगे ही। इस बात से परे, आज दमन एक छोटे से द्वीप के रूप में जाना जाता है, जहां पर पानी की कोई कमी नहीं है। पडौसी गुजरात में शराब पर पाबन्दी होने के कारण, गुजरात के लोग यहाँ जी भर के पीकर वापस अपने घर चले जाते हैं। वास्तव में गुजरातियों का दमन जाने के पीछे का सबसे बड़ा कारण भी यही है। लोग छुट्टियों के दिनों में और खास कर सप्ताह के अंत में यहां पर जरूर जाते हैं।
दमन गंगा
दमन राज्य दमन गंगा नदी के दोनों किनारों पर फैला हुआ है। यह नदी दमन को दो भागों में विभाजित करती है। यही वह जगह है जहां पर यह नदी अरब सागर में विलीन होती है। इस नदी के दक्षिणी किनारे पर मोटी दमन और उत्तरी किनारे पर नानी दमन बसा हुआ है। दमन में गुजराती भाषा व्यापक स्तर पर बोली जाती है, जिसका प्रभाव आप यहां के स्थानों के नाम पर देख सकते हैं, जैसे कि मोटी दमन और नानी दमन। गुजराती में मोटी यानी बड़ा और नानी यानी छोटा होता है। मज़े की बात तो यह है कि दोनों दमनों में से मोटी दमन असल में भौगोलिक रूप से छोटा है और दमन का प्राचीन हिस्सा भी है। मोटी दमन इतिहास प्रेमियों का आकर्षण बिंदु है, तो नानी दमन सामान्य तौर पर व्यापार यात्रियों और रोमांच प्रेमियों का मेजबान है।
दमन की प्रसिद्ध जगहें
मैंने अपनी यात्रा की शुरुआत नानी दमन से की थी, क्योंकि में वहीं पर स्थित द डेल्टीन होटल में ठहरी हुई थी।
नानी दमन
हमने अपनी यात्रा की शुरुआत दमन गंगा के मुहाने के दर्शन के साथ की। यहां पर एक तरफ यानी नानी दमन में सेंट जेरोम का किला है, तो दूसरी तरफ यानी नदी के उस पार मोटी दमन में मोटी दमन किला खड़ा है। जब हम वहां पर पहुंचे, उस समय समुद्र का ज्वार थोड़ा कम था जिसके कारण किनारे पर बंधी हुई नावों को देखकर ऐसा लग रहा था मानो उन्हें रेत पर खड़ा किया गया हो। बाद में वहां के लोगों से बातचीत करते-करते मुझे पता चला कि हर शाम इस भाग में समुद्र का ज्वार बढ़ जाता है और रेत पर खड़ी ये नावें पानी में तैरते हुई नज़र आती हैं। यहां से पानी के उस पार आपको काले और सफ़ेद रंग की पहरे की मीनार नज़र आती है जो अकेले रक्षक की तरह खड़ी समंदर की निगरानी करती है।
सेंट जेरोम का किला
दमन गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर एक परिश्रांत सा किला बसा हुआ है जिसके प्रवेश द्वार पर सुंदर नक्काशी काम किया गया है। इन उत्कीर्णित प्रतिमाओं तथा उनमें छुपी कहानियों को तो मैं नहीं समझ पायी, लेकिन उसपर उत्कीर्णित पुर्तुगाली भाषा के कुछ अभिलेखों के अनुसार यह किला उस दौर में बनवाया गया था, जब दमन पुर्तुगालियों का उपनिवेश हुआ करता था। इस किले के प्रवेश द्वार पर बने मेहराब के ऊपर सेंट जेरोम की मूर्ति खड़ी है और उससे थोड़ा ऊपर यानी प्रवेश द्वार के शीर्ष पर एक क्रॉस बना हुआ है। इतिहास की पुस्तकों के अनुसार यह किला लगभग चार शताब्दियों पहले बनवाया गया था, ताकि अरब सागर में हो रही समुद्री गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके।
इस किले में प्रवेश करते ही आपको एक बड़ा सा खुला मैदान नज़र आता है, जिसके एक कोने में अवर लेडी ऑफ द सी चर्च स्थित है। यह गिरजाघर किले की मोटी-मोटी दीवारों से घिरा हुआ है, जो अपने से भी मोटा प्राचीनता का आवरण ओढ़े हुए हैं। इस गिरजाघर के ऊपरी मजले, जो नीचे से देखने में छत की तरह लग रहा था, तक जाती सीढ़ियों से मैंने ऊपर जाने का निश्चय किया। ऊपर पहुँचकर मैंने वहां पर जो देखा उससे मैं बिलकुल अवाक रह गयी। वहां से हमे एक मोटी सी दीवार दिखी जो इस पूरे मैदान को घेरकर खड़ी थी। वह दीवार इतनी चौड़ी थी कि उस पर से कई लोग एक बराबर बड़ी आसानी से चल सकते थे और यहां से किले के आस-पास की जगहों पर भी नज़र रखना आसान था। इसके अलावा यहां पर और भी छोटी-छोटी अव्यवस्थित सी कुछ संरचनाएं थीं जिनसे संबंधित मुझे कोई भी दस्तावेज़ नहीं मिले, जिससे मैं जान सकू कि ये किस प्रकार की संरचनाएं हैं।
पुर्तुगाली युद्ध स्मशान भूमि
गिरजाघर के ऊपरी मजले पर जाते समय बाईं तरफ आपको एक यथोचित सुव्यवस्थित स्मशान भूमि दिखाई देती है जहां पर एक छोटा सा चैपल है। इस चैपल के सामने ही एक कुसुमित गुलमोहर का पेड़ था जो कोमलता से इन कब्रों पर अपने फूल बरसा रहा था। बाद में मुझे पता चला की यह पुर्तुगाली युद्ध स्मशान भूमि है।
सेंट जेरोम के किले के एक कोने में एक छोटा सा आँगन है जिसके इर्द-गिर्द कुछ कमरे थे और सभी कमरों के दरवाजों पर ताला लगा हुआ था। इसके कारण हम इन कमरों का आंतरिक रख-रखाव तो नहीं देख पाए लेकिन इनमें मौजूद छोटे-छोटे झरोकों से भीतर झाँक कर आप थोड़ा बहुत अनुमान तो लगा सकते है। इसी अनुमान के आधार पर मुझे लगता है कि शायद ये कमरे कभी इस किले के निवास स्थान रहे होंगे। किले में घूमते-घूमते एक जगह पर मुझे एक चबूतरा दिखा जिस पर टूटा हुआ सा लकड़ी का खंबा खड़ा था जो ध्वज फहराने के लिए इस्तेमाल होता था। मुझे लगता है कि शायद यह स्तंभ इसलिए बनवाया होगा ताकि उसपर लगा हुआ द्वाज हमेशा ऊंचा फहराता रहे।
आज सेंट जेरोम का किला अवर लेडी ऑफ द सी चर्च के कारण बहुत प्रसिद्ध है। बहुत से लोग यहां पर खास तौर से इसी गिरजाघर को देखने आते हैं।
नानी दमन में समुद्र के पास ही बर्फ का एक कारख़ाना है, जो मत्स्य पालन विभाग से संबद्ध है। यहां पर आपको रास्ते भर यहां-वहां पड़ी हुई लकड़ी की नावें नज़र आती हैं जो टूटी-फूटी अवस्था में थीं। उनकी इस स्थिति को देखकर मुझे कुछ अस्वस्थ सा महसूस होने लगा। ये नावें आज भले ही किसी काम की ना हो लेकिन उनके इस दुखभरे मौन के पीछे बहुत सारी कहानियाँ छुपी हैं जिन्हें किसी सुननेवाले की जरूरत है।
समुद्र नारायण मंदिर
दमन गंगा नदी के किनारे पर एक छोटा सा मंदिर है जो समुद्र नारायण अथवा वरुण देव, जिन्हें समुद्र के देवता माना जाता है, को समर्पित किया गया है। यहां पर नदी को तटबंध करता हुआ चबूतरा बनवाया गया है जिसके किनारे पर यानी नदी के पास ही इस मंदिर का निर्माण किया गया है। छोटा होने पर भी उज्वल रंगों से सुसज्जित यह सुंदर सा मंदिर अनेक भाविकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह पहली बार है कि मैंने वरुण देव को समर्पित कोई मंदिर देखा हो। यहां के लोगों का कहना है कि तटीय क्षेत्रों पर तो समुद्र के देवता अथवा वरुण देव को समर्पित ऐसे कई सारे मंदिर होते हैं। पर आज तक मैंने जितने भी तटीय क्षेत्रों की यात्रा की है मुझे तो ऐसा एक भी मंदिर नहीं दिखा जो वरुण देव को समर्पित हो।
यहीं पर पास में कुछ छोटी-छोटी अस्थायी दुकाने हैं, जिनमें लटकते रंगबिरंगी कपड़े उनकी मौजूदगी की गवाही दे रहे थे।
नानी दमन की यात्रा के दौरान मैंने वहां पर बहुत सारी पुरानी इमारतें देखी जो आज भी काफी अच्छी अवस्था में खड़ी हैं। इनके बारे में जब भी मैंने किसी से कुछ पूछने की कोशिश की तो हर बार मुझे यही जवाब मिलता कि, “अरे, ये तो बस एक पुरानी इमारत है, यहां देखने योग्य कुछ नहीं है।”
दमन का व्यापार केंद्र होने के नाते नानी दमन के बाज़ार हमेशा लोगों और व्यापारियों से भरे रहते हैं। इसमें भी राह चालकों के रंग में भंग डालती हुई गाडियाँ यहां-वहां घूमती रहती हैं। बाज़ार की इस चहल-पहल के बीचोबीच तटस्थ रूप से खड़ा तीन बत्तियों वाला एक घंटा-घर है जो लोगों को भागते हुए समय के पीछे भागने के लिए उकसाता है।
देविका समुद्र तट
दमन के दोनों भागों के अपने अपने समुद्र तट हैं। मोटी दमन में जैसे जैमपोरे समुद्र तट है उसी प्रकार नानी दमन में भी देविका समुद्र तट है जो यहां का बहुत ही प्रसिद्ध समुद्र तट है। अगर आपने कभी गोवा के समुद्र तट देखे हैं, तो आप इसे किसी भी रूप से एक समुद्र तट नहीं कहेंगे। जब इस क्षेत्र में समुद्र का ज्वार कम होता है, तो आप इस तट पर पानी के नीचे कैद रहनेवाली चट्टानी जमीन देख सकते हैं। चट्टानों की इस भूल भुलैया से गुजरते हुए आप चाहे तो इन चट्टानों पर बैठकर समुद्र का पूरा लुत्फ उठा सकते हैं। तट पर आती-जाती इन लहरों को देखते हुए कुछ समय अपने साथ बिता सकते हैं।
सोमनाथ महादेव मंदिर
सफ़ेद रंग का यह छोटा सा मंदिर दिखने में काफी साधारण है, परंतु बाहर से यह जितना साधारण दिखता है भीतर से उसकी चमक-दमक उतनी ही लुभावनी है। इस मंदिर के आंतरिक भाग कांच के बने हुए हैं। कांच की ऐसी कारीगरी मैंने बहुत से जैन मंदिरों की आंतरिक छतों पर देखी है, लेकिन इस मंदिर की विशेष बात यह है कि, इसकी दीवारें भी कांच की बनी हुई हैं। यह मंदिर सच में बहुत ही खूबसूरत है। यद्यपि यहां पर तस्वीरें खींचना मना है।
मोटी दमन
अगर आप सच्चे इतिहास प्रेमी हैं तो मोटी दमन आपके लिए एकदम सही जगह है, जहां पर आप इतिहास के साथ थोड़ा बहुमूल्य समय बिता सकते हैं। इसके अलावा यहां का प्रमुख आकर्षण है जैमपोरे समुद्र तट, जिसके बारे में मैं पहले लिख चुकी हूँ। नानी दमन से दमन गंगा नदी पार कर जब आप दूसरी तरफ पहुँचते हैं तो आपके सामने मोटी दमन का विराट दुर्ग खड़ा हो जाता है। यह दुर्ग आज भी अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है, जिसकी अधिकतर इमारतें किसी ना किसी प्रकार के सरकारी कार्यालय के रूप में कार्यरत हैं। इसका मतलब यही हुआ कि सामान्य पर्यटकों को यहां पर आने की अनुमति नहीं है। आप सिर्फ बाहर से ही उनकी जी भरकर प्रशंसा कर सकते हैं।
इस किले का सबसे अधिक दृष्टिगोचर भाग है उसकी विशाल दीवार जो दमन गंगा नदी से भी दिखाई देती हैं। यद्यपि उसका सर्वाधिक देखा जानेवाला हिस्सा उसका प्रवेश द्वार है, जो आज भी किले के भीतर जाने और किले से बाहर आने के लिए इस्तेमाल होता है।
मोटी दमन में स्थित गिरजाघर
मोटी दमन में पुर्तुगाली काल के बहुत सारे गिरजाघर स्थित हैं। उनका सूक्ष्म आकार ही बताता है कि वे बहुत ही छोटी सी जनसंख्या के लिए बनवाए गए थे। मैंने यहां के 3 गिरजाघरों के दर्शन किए हैं।
चर्च ऑफ बोम जीजस
बोम जीजस के इस गिरजाघर से मुझे गोवा में इसी नाम से स्थित एक गिरजाघर की याद आयी। यद्यपि मोटी दमन में स्थित यह गिरजाघर गोवा में बसे गिरजाघर से बहुत छोटा, काफी विलक्षण और बहुत ही शांतिपूर्ण है।
उत्कीर्णित पत्थरों से बना इसका प्रवेश द्वार गिरजाघर की इस शुभ्र दीवार पर बहुत फबता है। यह दीवार अपनी त्रिकोणी शिखर से जैसे आसमान छूना चाहती है। इस गिरजाघर का आंतरिक भाग भी काफी साधारण है लेकिन वहां के प्रचुरता से उत्कीर्णित लकड़ी के छज्जे बहुत ही आकर्षक हैं। नीले और लाल रंग से सुसज्जित यह नक्काशीकाम अपने धुंदले पड़ते हुए रंगों के साथ आज भी काफी उज्वलित नज़र आता है। ये उत्कीर्णन आपको समकालीन लकड़ी कारीगरों के बारे में बहुत कुछ बताते हैं और साथ ही साथ उनके आश्रयदाताओं को भी रोशन करते हैं। अगर आपको कभी भी यहां पर जाने का मौका मिले तो इस गिरजाघर का एक चक्कर जरूर लीजिये, जहां पर आपको पत्थर से बना हुआ एक और प्रवेश द्वार मिलेगा जो सच में प्रशंसा के योग्य है। यह प्रवेश द्वार आस-पास खड़े पेड़ों की नाजुक शाखाओं की आड़ से देखने में और भी खूबसूरत दिखता है।
चैपल ऑफ अवर लेडी ऑफ रोजरी
बोम जीजस के गिरजाघर के परिसर में बने बगीचे को पार करते ही आप साधारण से दिखने वाले एक चैपल के पास पहुँच जाते हैं। जब मैं इस चैपल के दर्शन करने गयी थी तब वह बंद था, जिसकी वजह से मैं केवल बाहर से ही उसके दर्शन कर पायी। लेकिन यहां पर लगे हुए सूचना फ़लक के अनुसार इस चैपल का आंतरिक भाग प्रचुर रूप से अलंकरणों से सजाया गया है।
डॉमनिकन का कान्वेंट
यहां पर बिखरे हुए इन सुंदर अवशेषों तक पहुँचने के लिए आपको कुछ संकीर्ण गलियों से गुजरते हुए जाना पड़ता है। ये अवशेष अपने बिखरे हुए रूप में भी अति सुंदर लगते हैं। दूर किसी कोने में स्थित इन अवशेषों को देखने बहुत ही कम लोग आते हैं। ऐसा लगता है जैसे इन अवशेषों को अपने अकेलेपन से एक प्रकार का लगाव सा हो गया है, जैसे उन्हें अपने होने में ही सुख मिलता हो।
अपने ऐश्वर्य काल में ये अवशेष डॉमनिकन मठ का भाग हुआ करते थे, जहां पर दुनिया भर के कैथलिक विद्वान आते थे। इस मठ की अधोगति के पीछे छुपे कारणों को आज तक कोई नहीं जान पाया। सोचने की बात तो यह है कि, जब आस-पास के अधिकतर गिरजाघर आज भी सुव्यवस्थित रूप से खड़े हैं तो सिर्फ इसी मठ की यह दुर्गति क्यों हुई। मेरे ड्राईवर, जो कि मेरे गाइड भी थे, ने मुझे बताया कि उन्होंने सुना था कि आखरी बार यहां पर किंगफ़िशर कलेंडर का फोटो शूट हुआ था। श्रीमान विजय मल्ल्या के स्थान सूचकों की तो सच में दाद देनी पड़ेगी।
चर्च ऑफ अवर लेडी ऑफ रेमेडीस
यह भी एक गिरजाघर है जो 1607 में बनवाया गया था। इसका बहिर्भाग साधारण सा है जिसे धवल रंग से रंगवाया गया है और उसके किनारों को नीले रंग से सुशोभित किया गया है। इस गिरजाघर के भीतर उपस्थित वेदी अलकरणों से सुंदर रूप से सजायी गयी है।
दमन जेल
बोम जीजस के गिरजाघर और अवर लेडी ऑफ रोजरी के चैपल के बीच एक सफ़ेद इमारत खड़ी है। इसमें बहुत सारी छोटी-छोटी खिड़कियाँ हैं जो हमेशा बंद रहती हैं। जब हमने आस-पास के लोगों से इसके बारे में पूछा तो हमे पता चला कि यह दमन की जेल है और इसीलिए इसकी सभी खिड़कियाँ हमेशा बंद रहती हैं। इस इमारत की एक बात तो मैं नहीं जान पायी कि क्या यह आज भी सक्रिय है या नहीं।
मुक्ति स्मारक
सफ़ेद और स्वर्ण रंग का यह छोटा सा स्मारक 19 दिसम्बर 1961 की स्मृति में बनवाया गया था। इसी दिन दमन को गोवा और दीव के साथ 400 सालों से भी अधिक काल के पुर्तुगाली शासन से आजादी मिली थी और वह भारतीय गणराज्य में विलीन हुआ था। इस मुक्ति स्मारक पर लिखा गया था कि, ‘दमन को 19 दिसम्बर 1961 के दिन मराठा के प्रथम सैन्य दल यानी पैदल सेना दल द्वारा पुर्तुगाली शासन से आजाद करवाया गया था। इस युद्ध में उन्होंने प्रशंसनीय साहस और शूरवीरता का प्रदर्शन कर 450 सालों के पुर्तुगाली शासन का पतन किया था।’
बोकेज हाउस
दमन से जुड़ा यह मिथक पर्यटकों द्वारा निर्मित किया गया है। दमन किले के प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा सा घर है जिसे बोकेज हाउस कहा जाता है। इसके ऊपर लगा हुआ फ़लक इस बात को प्रमाणित करता है। तथापि अगर आप इस घर को भीतर से देखे तो यह किसी गोदाम की तरह लगता है, जहां पर निर्माण की कुछ सामाग्री रखी गयी है।
जिस स्थान पर यह घर बसा हुआ है, उससे तो यही लगता है जैसे वहां पर कभी इस किले के रक्षक रहते होंगे। या फिर यह एक साधारण सा घर भी तो हो सकता है। दमन में किसी को भी इस घर की कोई जानकारी नहीं है, ना ही उन्हें इस बात का कोई अंदाज़ा है कि यह घर विदेशी पर्यटकों के बीच इतना प्रसिद्ध क्यों हैं। किसी भी व्यक्ति को इसके बारे में कुछ नहीं पता। वास्तव में अगर आप गूगल पर भी इसे ढूंढने जाओ तो भी आपको इससे संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती। मुझे तो लगता है कि शायद किसी ने इस घर का उल्लेख किसी प्रसिद्ध यात्रा वरणिका में किया होगा जिसके चलते बहुत से पर्यटक इसे देखने आते होंगे।
परगोला गार्डन
परगोला गार्डन मुक्ति स्मारक के ठीक सामने और दमन किले के प्रवेश द्वार के काफी नजदीक स्थित है। यह एक छोटा सा बगीचा है जिसमें बैठने के लिए गोलाकार प्रकार की व्यवस्था है और इस बैठक के बीचोबीच चट्टान की संरचना बनी हुई है। यह पुर्तुगाली सैनिकों के लिए बनवाया गया चट्टान का स्मारक था, लेकिन आजादी के बाद इस स्थान को बगीचे में परिवर्तित किया गया। आज भी इस स्मारक पर पुर्तुगाली भाषा में कुछ स्मृति फ़लक नज़र आते हैं जो आजादी के पूर्व के काल को दर्शाते हैं।
दमन में स्थित ये सारी जगहें आप केवल एक दिन में देख सकते हैं, लेकिन मेरे खयाल से आपको अपनी यात्रा एक रात और दो दिनों के हिसाब से नियोजित करनी चाहिए, ताकि आप इन स्थानों को अच्छे से देख सके और पूर्ण रूप से उन्हें समझ और जान सके।