देवबलोदा का रहस्यमयी शिव मंदिर – रायपुर छत्तीसगढ़

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भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के देवबलोदा नामक गाँव की गोद में बसा हुआ है जो राजधानी रायपुर से लगभग २२ किमी दूर स्थित है। रायपुर-दुर्ग महामार्ग पर, भिलाई-३ चरोदा की रेल पटरी के किनारे बसे इस सुन्दर गाँव में स्थित यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी पुरातनता, इतिहास एवं उत्कृष्ट कारीगरी के साथ साथ रहस्यमयी किवदंतियों के लिए भी अत्यंत लोकप्रिय है। अब यह भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग के अंतर्गत एक संरक्षित क्षेत्र भी है।

कुछ दिनों पूर्व मैं अपने एक पारिवारिक आयोजन में भाग लेने के लिए भिलाई गयी थी। रायपुर के स्वामी विवेकानंद विमानतल से भिलाई की ओर प्रस्थान करते समय मेरी बहिन ने मुझे रायपुर-भिलाई महामार्ग पर स्थित इस प्राचीन मंदिर के विषय में बताया। मुझे यह एक स्वर्णिम अवसर प्रतीत हुआ। हम तुरंत सहमत हो गए कि घर पहुँचने से पूर्व, मार्ग में स्थित इस मंदिर के दर्शन करते हुए चलें। वह एक अत्यंत ही फलदायी निर्णय सिद्ध हुआ।

रायपुर विमानतल से भिलाई की ओर लगभग ३०किमी वाहन चलाकर हमने देवबलोदा गाँव की ओर एक छोटा सा विमार्ग लिया। वर्षा ऋतु होने के कारण हमारे चारों ओर स्थित विशाल वृक्षों की पंक्तियों के मध्य धान के कोमल पौधे हरिवाली की भिन्न भिन्न छटा बिखेर रहे थे। घुमावदार, कच्चे किन्तु स्वच्छ मार्ग से होते हुए हम मंदिर प्रांगण के प्रवेश द्वार पर पहुंचे।

देवबलोदा छत्तीसगढ़ का शिव मंदिर
देवबलोदा छत्तीसगढ़ का शिव मंदिर

वाहन से बाहर आते ही हमारे चारों ओर के परिदृश्यों ने हमारा मन मोह लिया। यह एक स्वच्छ व सुन्दर गाँव है जो छोटे छोटे घरों, विशाल वृक्षों व जलाशयों से भरा हुआ है। प्रांगण के भीतर, प्रवेश द्वार पर ही एक अतिविशाल पीपल का वृक्ष है। पवन के झोंके उसके पत्तों से अठखेलियाँ खेल रहे थे जिससे निकलते मधुर स्वर मन को मोह रहे थे। पीपल के वृक्ष से आगे दृष्टि गई तो इस अप्रतिम प्राचीन मंदिर पर टिक गयी। लाल बलुआ शिलाखंड द्वारा निर्मित यह सुन्दर मंदिर अपूर्ण प्रतीत हो रहा था। इसका रहस्य भी कुछ क्षणों पश्चात खुलने वाला था!

देवबलोदा शिव मंदिर का इतिहास

भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग द्वारा स्थापित सूचना पटल के अनुसार नागर शैली में निर्मित इस शिव मंदिर का निर्माण १३-१४ सदी में कलचुरी राजवंश के राजाओं ने करवाया था। इस मंदिर को छमासी मंदिर भी कहते हैं।

देवबलोदा शिव मंदिर से जुड़ी किवदंतियां

देवबलोदा के इस प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर से कुछ अत्यंत ही रोचक लोककथाएं जुड़ी हुई हैं। एक किवदंती के अनुसार मंदिर का निर्माण करने वाला शिल्पकार इसे अपूर्ण ही छोड़कर कहीं चला गया। इसी कारण मंदिर के ऊपर शिखर नहीं है।

एक अन्य लोककथा यह कहती है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तब छः मास के लिए अखंड रात्रि छाई हुई थी। इसी कारण इसे छमासी मंदिर अथवा छः मास का मंदिर भी कहा जाता है। किन्तु इस घटना का किसी भी खगोलशास्त्र अथवा इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं है। मेरे अनुमान से कदाचित इस मंदिर के निर्माण में अत्यधिक समयावधि व्यतीत हुई होगी अथवा शिल्पकार कदाचित केवल रात्रिकाल में ही मंदिर का निर्माण कार्य करता होगा। इसी कारण ऐसा कहा गया होगा।

जगती पर खड़ा लाल बलुआ से बना मंदिर
जगती पर खड़ा लाल बलुआ से बना मंदिर

इस मंदिर से संबंधित एक अन्य रोचक कथा भी अत्यंत लोकप्रिय है। ऐसा माना जाता है कि शिल्पकार मंदिर निर्माण कार्य में इतना तल्लीन था कि उसे किसी की भी सुध नहीं रहती थी। दिवस-रात्रि अनवरत कार्य करते हुए वह इतना लीन हो गया था कि उसे स्वयं का भी भान नहीं रहा। उसके वस्त्र घिस कर नष्ट हो चुके थे तथा वह पूर्णतः निर्वस्त्र हो चुका था। उसकी पत्नी प्रतिदिन उसके लिए भोजन लाती थी।

एक दिवस पत्नी की व्यस्तता के कारण शिल्पकार की बहिन उसके लिए भोजन व कलश में जल लेकर आयी। अपनी बहिन को आते देख उसे अपनी निर्वस्त्र स्थिति का आभास हुआ तथा वह अत्यंत शर्मिंदा हुआ। स्वयं को व बहिन को लज्जित होने से बचाने के लिए वह मंदिर की छत पर चढ़ गया तथा मंदिर के एक ओर स्थित जलकुंड में छलांग लगा दी। अपने भाई को जल समाधि लेते देख बहिन को इतना पश्चाताप हुआ कि उसने मंदिर परिसर के बाहर स्थित तालाब में कलश समेत कूद कर अपनी जान दे दी। हमें बताया गया कि तालाब का जल स्तर नीचे आने पर हम वह कलश देख सकते हैं।

इसी कथा को आगे ले जाते हुए ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के जल कुण्ड के नीचे दो कुँए हैं जिनमें से एक वास्तव में एक सुरंग है जो आगे जाकर आरंग नामक गाँव में खुलती है। शिल्पकार को जल में छलांग लगाते से ही यह सुरंग दिखाई दी जिसके द्वारा वह आरंग पहुँच गया। वहाँ जाकर वह एक शैल प्रतिमा में परिवर्तित हो गया। ऐसा कहा जाता है कि आरंग मंदिर में उसकी प्रतिमा अब भी है।

देवबलोदा के गांववासी

 हमें देवबलोदा के गांववासी अत्यंत आत्मीय प्रतीत हुए। वे सभी अत्यंत प्रेम व निच्छल भाव से हमारा स्वागत कर रहे थे। वे हमें अत्यंत सरल प्रतीत हुए। जिनकी भी दृष्टि हम पर पड़ रही थी वे आत्मीयता से हमारा अभिवादन कर रहे थे। हम बहुधा देखते हैं कि किसी भी ऐतिहासिक व पुरातन स्थल पर अधिकाँश सामान्य नागरिकों को मंदिर के विषय में अधिक जानकारी नहीं होती है। किन्तु यहाँ हमने देखा कि उन्हें ना केवल मंदिर, उसके इतिहास व उनसे संबंधित दन्त कथाओं की जानकारी थी, वे उत्साह से हमें बता भी रहे थे। कुछ स्त्रियों ने हमें तालाब में कलश का स्थान भी बताया।

मंदिर की वास्तुकला एवं स्थापत्य

यह पूर्वाभिमुख मंदिर लाल बलुआ पत्थर में बना हुआ है। यह पत्थर स्थानीय प्रतीत नहीं होता। ये शिलाखंड कहाँ से लाये गए, इसकी जानकारी हमें प्राप्त नहीं हुई। मंदिर नागर शैली में निर्मित है। इसमें एक गर्भगृह एवं एक नवरंग मंडप है। मंदिर एक ऊँचे चबूतरे अथना जगती पर स्थित है जिसकी छत चार मुख्य स्तंभों पर टिकी हुई है।

देवबलोदा शिव मंदिर की भित्तियों पर उत्कीर्णित देवी देवता
देवबलोदा शिव मंदिर की भित्तियों पर उत्कीर्णित देवी देवता

मंदिर का शिखर नहीं है जो कदाचित नागर शैली रहा होगा अथवा नियोजित होगा। मंदिर के समक्ष एक मंडप है जिसमें नंदी विराजमान हैं। नंदी के समक्ष मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार है। मंदिर का एक अन्य द्वार भी है जो मंदिर से लगे हुए जलकुंड की ओर खुलता है।

हंसों की पंक्ति, देवता और मानुष
हंसों की पंक्ति, देवता और मानुष

मुख्य द्वार पर स्थित सीढ़ियाँ चढ़ते ही आप उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित चार मुख्य स्तंभ तथा नवरंग के अन्य स्तंभ देखेंगे। उन पर आप भैरव, विष्णु, महिषासुरमर्दिनी, शिव, कीर्तिमुख तथा अनेक नर्तक व संगीतज्ञ देख सकते हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार के दोनों ओर अप्रतिम प्रतिमाएं गढ़ी हुई हैं जिनमें आप द्वारपाल, गणेश, भगवान शिव का सम्पूर्ण परिवार तथा अन्य देवी-देवताओं के साथ साथ पुष्प, बेल, लताएँ एवं सर्पाकृतियाँ देख सकते हैं। गर्भगृह के द्वार का अलंकृत चौखट छोटा है जिसके कारण आपको किंचित झुककर प्रवेश करना पड़ता है। वैसे भी कहते हैं ना कि भगवान के समक्ष शीष झुकाकर जाना चाहिए।

गर्भगृह मंडप से लगभग ३ फीट नीचे है। वहाँ उतरने के लिए कुछ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। गर्भगृह के मध्य में एक ऊँचा शिवलिंग है जिसके दोनों ओर फन फैलाए दो नाग हैं। शिवलिंग के पृष्ठभाग में देवी पार्वती की सुन्दर प्रतिमा है। इनके अतिरिक्त गर्भगृह के भीतर गणेश, हनुमान, जगन्नाथ तथा अन्य देवताओं की भी प्रतिमाएं हैं।

देवबलोदा शिव मंदिर की मनोहर कलाकृतियाँ
देवबलोदा शिव मंदिर की मनोहर कलाकृतियाँ

मंदिर की बाहरी भित्तियों पर शिलाखंडों की कुछ पंक्तियों पर नक्काशी नहीं है क्योंकि मंदिर निर्माण अपूर्ण है। अन्य पंक्तियों पर, कुछ भंगित फलकों को छोड़कर अधिकतर शिलाखंडों पर उत्कृष्ट शिल्पकारी है। उत्कीर्णित शिल्पकारी की विविधता आपको अचरज में डाल देगी। हाथी, घोड़े एवं मानवी आकृतियाँ सहसा ध्यान आकर्षित करते हैं। ढोलक एवं अन्य संगीत वाद्य बजाते स्त्री-पुरुष, तलवार, भालों आदि के साथ युद्ध करते योद्धा, वृक्षों व प्राणियों को दर्शाते दृश्य, शिव-विवाह दृश्य आदि के शिल्प अचरज में डाल देते हैं। एक फलक पर उत्कीर्णित दृश्य में माताएं अपने शिशुओं को उठाये वृक्ष के नीचे खड़ी हैं। अनेक फलकों पर रामायण तथा महाभारत के दृश्य उत्कीर्णित हैं। मंदिर पर की गयी कलाकृतियों के विभिन्न प्रकार देखकर उस काल के राजाओं के कलाप्रेम का आभास होता है।

बैल और हाथी का एक सिर
बैल और हाथी का एक सिर

मंदिर की बाह्य भित्तियों पर अनेक देवी-देवताओं के चित्र उत्कीर्णित हैं। हम ने हिरण्यककश्यप को जांघ पर लिटाकर उसका पेट चीरते विष्णु का नरसिंह अवतार, गणेश, वराह, त्रिशूल धारी भगवान शिव, वैजयंतीमाल धारण किये भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी को देखा। वहाँ हमें एक शिल्प अत्यंत रोचक प्रतीत हुआ जिसमें एक बैल एवं एक हाथी का समुच्चय चित्र था। उससे शिल्पकार की कल्पना शक्ति का आभास होता है। वहाँ कुछ कामुक चित्र भी उत्कीर्णित थे। शिलाखंडों की अनेक पंक्तियों पर अब भी शिल्पकारी नहीं की गयी है।

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नंदी मंडप के एक ओर एक काला उंचा शिलाखंड है जिस पर कुछ शिल्पकारी की गयी है। वह किसका प्रतिरूप है, हम नहीं पहचान पाए।

मंदिर का जलकुण्ड एवं तालाब

मंदिर के निकट दो प्रमुख जल स्त्रोत हैं। मंदिर से लगा हुआ एक विशाल चौकोर जलकुण्ड है जो मंदिर के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर स्थित है। मंदिर परिसर के पीछे एक बड़ा तालाब है। दोनों के जल स्वच्छ प्रतीत हो रहे थे। मंदिर के जलकुण्ड में कई मछलियाँ एवं कछुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस कुण्ड का जल कभी नहीं सूखता।

जलकुण्ड में २३ सीढ़ियाँ हैं तथा इसके भीतर दो कुँए हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनमें से एक कुआँ कुण्ड को अनवरत रूप से जल की आपूर्ति करता रहता है। दूसरा कुआँ वास्तव में एक सुरंग है। लोगों का मानना है कि यह सुरंग आरंग नामक एक गाँव में जाकर खुलता है। किन्तु किसी के पास इसका ठोस संज्ञान नहीं है। ना ही इसका कोई वैज्ञानिक अथवा पुरातात्विक प्रमाण है।

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तालाब मंदिर के जलकुण्ड के पीछे स्थित है। इसे करसा तालब या कलश तालाब भी कहते हैं। वहाँ गाँव की कुछ स्त्रियाँ तालाब से जल भर रही थीं। हमने उनसे शिल्पकार की बहिन के कलश के विषय में पूछा क्योंकि जल सतह के ऊपर हमें कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। उन्होंने कहा कि तालाब के मध्य एक शैल स्तंभ के ऊपर शिलाखंड की ही गोल संरचना है। किन्तु वर्षा के कारण जल स्तर ऊपर आ गया था जिसके कारण वह संरचना उस समय जल के भीतर थी।

मंदिर के उत्सव

प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के समय इस मंदिर में दो-दिवसीय उत्सव आयोजित किया जाता है। यह जनवरी-फरवरी के समय होता है। इस विशाल मेले में भाग लेने के लिए आसपास के गाँवों एवं नगरों से बड़ी संख्या में भक्तगण यहाँ आते हैं तथा श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं। बड़े उत्साह से मेले के विभिन्न क्रियाकलापों में भाग लेते हैं। इस उत्सव को देवबलोदा उत्सव कहते हैं।

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इस मंदिर में दर्शनार्थी वर्ष भर, सप्ताह के सातों दिवस आते हैं। लोगों को भगवान शिव, मंदिर तथा जलकुंड के जल पर अपार श्रद्धा है। वे जलकुंड के जल को अपने साथ ले जाते हैं तथा घरों में छिड़काव करते हैं। वे इसे अत्यंत शुभ मानते हैं। उनका मानना है कि इस जल में विभिन्न रोगों एवं भूत बाधा जैसे अवांछित तत्वों से मानवों को मुक्ति दिलाने की क्षमता है। जब हम इस मंदिर में आये थे, हिन्दू पंचांग का श्रावण मास चल रहा था। शिव भक्तों के लिए इस मास में भगवान शिव के दर्शन करना व शिवलिंग पर जल चढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हमने देखा गाँव की अनेक स्त्रियाँ व पुरुष सज-धज कर भगवान के दर्शन करने के लिए आये थे। वे बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह से सभी अनुष्ठान कर रहे थे।

अन्य मंदिर

देवबलोदा गाँव में शिव मंदिर की ओर मुड़ने से पूर्व देवी महामाया का एक मंदिर है। जहां भगवान शिव हैं वहाँ उनकी शक्ति भी अवश्य होगी।

कैसे पहुंचें

देवबलोदा के शिव मंदिर रायपुर में कहीं से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह रायपुर-दुर्ग महामार्ग पर भिलाई-३, चरोदा से एक छोटे से विमार्ग पर स्थित है। यह रायपुर विमानतल से लगभग ३५ किमी तथा रायपुर रेल स्थानक से लगभग २० किमी दूर है।

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