मेरी कांचीपुरम यात्रा के समय जिन मंदिरों के मैंने दर्शन किये उनमें प्रथम था, कांची कामाक्षी मंदिर तथा दूसरा था, एकम्बरेश्वर मंदिर। क्यों ना हो? भले ही यहाँ कामाक्षी देवी का साम्राज्य है, आप कांचीपुरम के स्वामी से मिले बिना कैसे जा सकते हैं? एकम्बरेश्वर मंदिर अथवा एकम्बरनाथ मंदिर तमिल नाडू के विशालतम शिव मंदिरों में से एक है तथा विश्वसनीय रूप से कांचीपुरम का सब से बड़ा शिव मंदिर है। सहस्त्र स्तंभों के विशाल मंडप से युक्त इस मंदिर का गोपुरम कांचीपुरम के सर्वाधिक ऊंचे गोपुरमों में से एक है।
एकम्बरेश्वर मंदिर के प्रथम दर्शन मैंने प्रातःकाल किये थे। मेरे ऑटो के चालक ने मुझे कई स्तंभों के एक मंडप के समीप ऑटो से उतार दिया था। मंडप के द्वार अब तक खुले नहीं थे। किसी काल में यह एक खुला प्रांगण रहा होगा। किन्तु अब लोहे की बाड़ से इसकी घेराबंदी कर दी गयी है। केवल दिन में ही इसके द्वार खोले जाते हैं। मैं आगे बढ़ गयी। उस समय मुझे ज्ञात नहीं था कि मैं कुछ समय पश्चात इसके भीतर हनुमान स्तंभ देखने वाली थी जिसकी एक मंदिर के सामान पूजा की जाती है। यह मुझे चिंतन करने पर बाध्य करने वाला था कि प्राचीन मंदिरों के स्तंभों पर जो देवी देवताओं की उत्कीर्णित छवि हम देखते हैं, क्या हमारे पूर्वज उन सब छवियों की भी पूजा किया करते थे?
यहाँ से आगे जाते हुए मेरी दृष्टी चार स्तम्भों पर टिके एक छोटे से मंडप पर पड़ी। यह सुन्दर मंडप एकम्बरेश्वर मंदिर के ठीक सामने था। कांचीपुरम के अप्रतिम एकम्बरेश्वर मंदिर का ऊंचा व दक्षिणी पद्धति से निर्मित गोपुरम का यह उपयुक्त पृष्ठभाग सिद्ध हो रहा था। यहाँ से दिखता भव्य गोपुरम का विलक्षण सुनहरा रंग मुझे मंत्रमुग्ध कर रहा था। मैं वहां खड़ी होकर उसे मन भर कर निहारने लगी।
राज गोपुरम
एकम्बरेश्वर मंदिर का गोपुरम ११ तल का है। निचले दो माले भस्म वर्ण के हैं। गोपुरम के ऊपर ११ धातुई कलश हैं। इसे शुभ तथा समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ५७ मीटर ऊंचे गोपुरम के भीतर, ठीक मध्य में, शिवलिंग का आलिंगन करती पार्वती की प्रतिमा है। प्रतिमा की यह छवि इस मंदिर का प्रतीकात्मक चिन्ह है। इसी प्रतिमा का आधुनिक रूप मैंने अपने बाईं ओर फिर से देखा जब मैं गोपुरम से होते हुए मंदिर में प्रवेश कर रही थी। ऐसा प्रतीत हुआ मानो मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व यह एक बार फिर अपनी कथा दुहरा रही हो।
कांचीपुरम का एकम्बरेश्वर मंदिर
मंदिर के भीतर प्रवेश करने के पश्चात ही मंदिर के सम्पूर्ण मानचित्र का अनुमान लगता है। मंदिर के सर्वोत्तम भाग अब भी मजबूत पत्थर की दीवारों के पीछे छिपे हुए हैं। वहां मेरा ध्यान खींचा अत्यंत आकर्षक नक्काशे हुए, गहरे भस्म वर्ण के पत्थरों ने। इन पत्थरों के ऊपर एक लंबा गलियारा था। दुहरे स्तंभों पर अश्वों एवं अन्य पशुओं की नक्काशी कुछ इस प्रकार की गयी थी मानो युद्ध पर कूच करने के लिए सज्ज खड़े वे राजा के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हों। धरती पर पुष्पाकृति की रंगोली (कोलम) बनी थी। वह अप्रतिम कोलम मेरा स्वागत करते हुए मुझे मंदिर के भीतर आमंत्रित कर रहा था।
मैंने मंदिर के भीतर प्रवेश किया। मेरे एवं गर्भगृह के मध्य एक और गलियारा था जो प्रथम गलियारे से भी अधिक लंबा था। मध्य की इस दूरी से आप मंदिर की विशालता एवं भव्यता का सहज अनुमान लगा सकते हैं।
ध्वजस्तंभ
बाहरी गलियारे के मध्य एक ऊंचा ध्वजस्तंभ था। यह एक सुन्दर नक्काशे पत्थर के आधार पर स्थित था। इसके समीप प्रसाद विक्री की एक दुकान थी। समीप ही भित्त पर शिव की एक अत्यंत मनोहारी छवी उत्कीर्णित थी जिसे सजाया एवं पूजा गया था। गलियारे के एक ओर एक विशाल कुण्ड था, ठीक उसी प्रकार जैसे आपने भारत के अन्य प्राचीन मंदिरों में सामान्यतः देखा होगा।
गलियारे के अंतिम छोर को पार कर, गर्भगृह की सीध में आप एक छोटा मंडप देखेंगे। यह नंदी मंडप है। इसके भीतर श्वेत रंग में विशाल नंदी हैं जो शिव को निहार रहे हैं।
मंदिर का शिखर कैलाश पर्वत की भान्ति अत्यंत ऊंचा है। इसके ऊपर ७ कलश हैं।
मैंने मुख्य प्रवेश द्वार से मंदिर के भीतर ज्यों ही प्रवेश किया, स्वयं को दोनों ओर से स्तंभों युक्त लम्बे गलियारों से घिरा पाया। नक्काशे हुए स्तंभ इतने विशाल थे कि वे छत्र का आभास करा रहे थे। इन विशाल संरचनाओं के मध्य मुझे अपनी सूक्ष्मता का भलीभांति आभास हो रहा था। कदाचित इसी अभिप्राय को ध्यान में रखकर भगवान् के मंदिर अतिविशाल निर्मित किये जाते थे। यह आपको आभास कराते हैं कि आप भले ही इस ब्रम्हांड का एक भाग हों, किन्तु वह भाग अति सूक्ष्म है।
समीप के मंदिर में पार्वती की आदमकद छवि उत्कीर्णित थी जिसमें एक बार फिर उन्हें शिवलिंग का आलिंगन करते दर्शित किया गया है। यहाँ पार्वती का मानवी रूप था। समीप की एक वृक्ष के तने पर चांदी का आवरण दिया हुआ था। इस आवरण पर भी पार्वती को शिवलिंग के संग उसी रूप में उत्कीर्णित किया गया है।
एकम्बरेश्वर मंदिर का शिवलिंग
गर्भगृह की ओर ले जाते मुख्य द्वार के चारों ओर पीतल के सैंकड़ों दीप थे। आप इनमें तेल भरकर दीप जला सकते हैं। संध्या में जब ये सारे दीप जलाए जाते हैं, ये एक प्रकार की दैवीय आभा बिखेर देते हैं। ये आपको उन दिनों का आभास देते हैं जब यह केवल दीयों से ही ज्योतिर्मय होती होगी।
कुछ द्वार पार करने के पश्चात मैं गर्भगृह के समीप पहुँची। यहाँ मंदिर के भीतर प्रवेश करने के लिए भक्तों की दो कतारें दिखाई दी। एक कतार भगवान् के दायीं ओर तक जा रही थी तथा दूसरी बाईं ओर तक। पूछने पर ज्ञात हुआ कि इनमें से एक कतार विशेष है जिससे जाने के लिए ५ रुपयों का साधारण शुल्क है । मैंने दो बार मंदिर के दर्शन किये। दोनों बार मुझे उन दोनों कतारों की लम्बाई में कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई दिया। कदाचित उत्सवों के समय तथा सोमवार के दिन वस्तुस्थिति भिन्न रहती होगी।
और पढ़ें:- तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर
मैंने एकम्बरेश्वर मंदिर के गर्भगृह के भीतर प्रवेश किया। भीतर शंकु के आकर का बड़ा लिंग स्थापित था। लिंग के पृष्ठ भाग में शिवजी की पार्वती व कार्तिक संग, सोमस्कंद रूप में एक छवि है। पहली बार जब मैंने गर्भगृह के दर्शन किये, मैंने श्रद्धा से प्रार्थना की तथा बाहर आ गयी। तत्पश्चात मंदिर का विस्तारपूर्वक अवलोकन किया। सांझ बेला में मैंने जब दूसरी बार मंदिर के दर्शन किये, तब मुझे वहां विस्तृत आरती देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह भव्य दृश्य मेरे लिए मेरी कांचीपुरम यात्रा के कुछ सर्वोत्तम स्मृतियों में से एक था।
एकम्बरेश्वर मंदिर के स्तंभों से युक्त गलियारे
दर्शन के उपरांत मैं गर्भगृह से बाहर आयी तथा मंदिर को चारों ओर से निहारने लगी। मंदिर के चारों ओर निर्मित विशाल गलियारों से पैदल चलाना आरम्भ किया। ऊंचे मंच पर विशाल स्तंभों से ये गलियारे बने थे। सम्पूर्ण गलियारा इतना विशाल था कि मुझे यह हम भक्तों को निगलता सा प्रतीत हो रहा था। कुछ स्तंभों के बीच में पालकियाँ रखी थीं। इन पालकियों में भगवान् को बैठाकर भ्रमण कराया जाता है। भस्म वर्ण के विशाल स्तंभों के मध्य यह पालकियाँ रंगबिरंगी छटा बिखेर रही थीं। इनके साथ ही धरती एवं छत के रंग इस छटा को चार चाँद लगा रहे थे। इन पालकियों में से एक पालकी शेषनाग के आकार की भी थी।
गलियारे के बाएं सतह पर आले बने हुए थे जिन पर १००८ शिवलिंग रखे थे। इनमें से एक शिवलिंग १००८ छोटे शिवलिंगों से बना हुआ था। ऐसा लग रहा था कि ये १००८ छोटे शिवलिंग एक बड़े शिवलिंग पर चिपकाए हुए थे। वहाँ नायनमार अर्थात् तमिल शैव कवियों की श्वेत वेष्टि धारण की हुई ६३ प्रतिमाएं भी थीं।
स्तंभों पर की गयी विस्तृत नक्काशी इतनी चित्ताकर्षक थीं कि मैं उनमें खो सी रही थी। कुछ स्थानों पर मैंने स्तंभों के मध्य बांस की रस्सियाँ लटकती देखीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इन रस्सियों से पर्दे लटकाकर मंदिर को छोटे छोटे भागों में बाँट सकते थे। मैं सोच में पड़ गयी, क्या इसलिए ही इतना विशाल स्तंभ युक्त कक्ष बनाया गया होगा ताकि उसे आवश्यकता के अनुसार छोटे भागों में बाँट सकते हैं।
एकम्बरेश्वर मंदिर परिसर के अन्य मंदिर
काली अम्मा मंदिर
आप जब एकम्बरेश्वर मंदिर की परिक्रमा आरम्भ करेंगे तब जो प्रथम मंदिर आपको दाहिनी ओर दृष्टिगोचर होगा वह है काली अम्मा मंदिर। अष्टभुजाधारी काली अम्मा की प्रतिमा के चारों ओर सुनहरी भित्तियाँ थीं। इस देवी प्रतिमा की विशेषता थी देवी के शीश पर स्थित गंगा।
उत्सव मूर्ति मंदिर
एक कोने में मैंने एक छोटा मंदिर देखा जिसके भीतर उमा एवं महेश की आकर्षक मूर्तियाँ थीं। भव्य आभूषणों एवं वस्त्रों से सज्ज उमा एवं महेश के चारों ओर विशाल आभामंडल भी था। मंदिर के पुजारी प्रेम से उनका श्रृंगार कर रहे थे। उन्होंने मुझे बताया कि ये उत्सव मूर्तियाँ हैं। उत्सवों में जब भगवान् को पालकी में बिठा कर मंदिर के बाहर भ्रमण कराया जाता है तब मुख्य प्रतिमा नही अपितु इन उत्सव मूर्तियों को पालकियों में बिठाया जाता है।
एकम्बरेश्वर मंदिर में आम का वृक्ष
सारे गलियारे घूमकर हम एक प्रांगण में पहुंचते हैं। इस प्रांगण में एक आम का वृक्ष है। ऐसा माना जाता है कि यह वृक्ष कम से कम ३५०० वर्ष प्राचीन है। वृक्ष की चार शाखाएं चार भिन्न प्रकार के आम देती हैं। लोग इसे ४ वेदों का प्रतिरूप मानते हैं। वे इस वृक्ष को स्थल वृक्ष कहते हैं।
इस वृक्ष से लगा हुआ एक शिव मंदिर है। वृक्ष एवं मंदिर, दोनों ही प्रांगण के मध्य एक मंच पर स्थित हैं। मैंने वहां बैठकर कुछ क्षण चिंतन किया। मैं सोचने लगी कि क्या यह वास्तव में वही स्थान है जहां पार्वती ने शिव की आराधना की थी!
श्री यन्त्र
आम के वृक्ष के निकट ही एक शिला पर श्री यन्त्र उत्कीर्णित था। उन पर अर्पित कुमकुम एवं पुष्प को देख ज्ञात हुआ कि इसकी नियमित पूजा की जाती है। इस शिला के आगे एक मंदिर था जिसके हरे रंग के द्वार बंद थे। सूचना पट्टिका में तमिल भाषा में लिखे होने के कारण मैं समझ नहीं पायी कि यह किस देवता का मंदिर है।
सहस्त्रलिंग मंदिर
एक कोने में स्थित यह एक छोटा सा मंदिर था जिसके भीतर एक शिवलिंग पर १००८ शिवलिंग निर्मित थे। उस शिवलिंग का छायाचित्र लेने की मेरी तीव्र अभिलाषा थी किन्तु पुजारी ने मुझे अनुमति नहीं दी।
नटराज मंदिर
परिक्रमा उत्तरार्ध में अब मैं गर्भगृह के प्रवेश द्वार की ओर जा रही थी। मेरे बाईं ओर स्थित एक कक्ष में मैंने नटराज की सुन्दर मूर्ति देखी। मैं इसे अपने जीवन में देखे सर्वाधिक आकर्षक नटराज मूर्तियों में से एक मानती हूँ। यहाँ इस नटराज मूर्ति की भी पूजा की जाती है। मैं सोचने लगी कि जिस नटराज की मूर्तियाँ सम्पूर्ण विश्व में सजावट की वस्तु के रूप में बिकती हैं, किसी समय उनके इस रूप की भी आराधना की जाती थी।
नटराज मंदिर के समीप एक छोटे से मंदिर के भीतर भी सुन्दर उत्सव मूर्तियाँ रखी हुई थीं।
महाविष्णु मंदिर
परिक्रमा के अंतिम चरण में, गर्भगृह के समीप, महाविष्णु को समर्पित एक छोटा मंदिर था। यह विष्णु के १०८ दिव्य देशम में से एक था। विष्णु के दर्शन एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मैं भी वहां कतार में खड़ी हो गयी। मेरी बारी आने पर मैंने विष्णु के दर्शन किये। पुजारी ने चांदी का आशीर्वाद पात्र मेरे सिर पर रखकर विष्णु का आशीर्वाद मुझ तक पहुंचाया।
और पढ़ें:- नैमिषारण्य के विष्णु – ८८००० ऋषियों की तपोभूमि
जैसा कि मैंने अपने कांची कामाक्षी के संस्करण में लिखा था, कांची के सभी शिव मंदिरों में पार्वतीजी का अपना पृथक मंदिर नहीं होता है। वे कांचीपुरम की अधिष्ठात्री देवी, कामाक्षी के रूप में अपने मंदिर में विराजमान रहती हैं।
मंदिर दर्शन के उपरांत मैं गर्भगृह से बाहर उसी गलियारे में आ गयी जहां से मैंने अपना एकम्बरेश्वर मंदिर दर्शन आरम्भ किया था। सहसा मेरे ध्यान में आया कि मंदिर के भीतर कितनी शीतलता थी। रोशनी भी अत्यंत मद्धम थी। इसीलिए बाहर आकर, तेज रोशनी में आँखे सहज होने के पश्चात ही मैं अन्य संरचनाओं को देखने लगी। मंदिर का जलकुंड देखा। एकम्बरेश्वर मंदिर के मुख्य गोपुरम के अलावा अन्य गोपुरम भी देखे जो भले ही आकार में किंचित छोटे हों, किन्तु सुन्दरता में कम नहीं थे।
उत्कीर्णित स्तंभों के साथ साथ कुछ ऐसे भी स्तंभ थे जिन पर भित्तिचित्र चित्रित थे। इन्हें देख आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्राचीन मंदिरों में किस प्रकार मूर्तिकला एवं चित्रकला का आकर्षक सम्मिश्रण किया जाता था।
एकम्बरेश्वर मंदिर से जुड़ी किवदंतियां
एकम्बरेश्वर मंदिर एक शिव मंदिर है। अतः स्वाभाविक है कि इससे शिव-पार्वती की अनेक कथाएँ जुड़ी हुई होंगी। इनमें दो दन्त कथाएँ प्रमुख रूप से प्रचलित हैं। दोनों कथाओं में, शिव को प्राप्त करने हेतु पार्वती द्वारा की गयी साधना की व्याख्या है।
प्रथम किवदंती के अनुसार एक समय शिव ने हंसी-ठठ्ठा करते हुए पार्वती को ‘काली’ बना दिया। पार्वती को यह नहीं भाया। वह कांचीपुरम के समीप से बहती वेगवती नदी के तट पर बैठ गयी। एक आम के वृक्ष के नीचे नदी की बालू से एक शिवलिंग की रचना की तथा उसकी आराधना की। उनकी परीक्षा लेने हेतु शिव ने आम के वृक्ष पर अग्नि फेंकी। पार्वती ने विष्णु से सहायता माँगी। विष्णु ने शिव के ही शीश पर स्थित चन्द्र द्वारा अग्नि के दाह को शांत किया। तब शिव ने गंगा से कहा कि वे अपना वेग बढायें तथा पार्वती को भयभीत करें। परन्तु पार्वती ने गंगा को समझाया कि वे दोनों भगिनियां हैं तथा आग्रह किया कि वे शांत हो जाएँ। इससे प्रसन्न होकर शिव भी नीचे आये तथा यहाँ दोनों का मिलन हुआ।
दूसरी दंतकथा के अनुसार पार्वती ने आम के वृक्ष के नीचे, वेगवती नदी के तट पर बालू से निर्मित लिंग की आराधना की थी। उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए शिव ने गंगा का वेग बढ़ा दिया ताकि बालू का लिंग बह जाये। पार्वती ने लिंग का आलिंगन कर उसकी रक्षा की। इससे प्रसन्न होकर शिव भी धरती पर आये तथा यहाँ दोनों का विवाह हुआ। उनके विवाह का उत्सव आज भी फाल्गुन मास में कांचीपुरम के मंदिरों में मनाया जाता है। यह लगभग मार्च-अप्रैल मास में पड़ता है। इस कथा में पार्वती को कामाक्षी भी कहा गया है।
और पढ़ें:- कांचीपुरम का कांची कामाक्षी मंदिर
अब आप समझ गए होंगे कि बालू से निर्मित लिंग का आलिंगन करती पार्वती की कथा क्या है। आम के वृक्ष का भी अत्यंत महत्व है। इस मंदिर का नामकरण भी इसी वृक्ष से हुआ है। एकम्बर का अर्थ है एक आम का वृक्ष। एकम्बरेश्वर का अर्थ है आम के एक वृक्ष का ईश्वर।
एकम्बरेश्वर मंदिर का इतिहास
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर आदिकाल से अस्तित्व में है। ऐतिहासिक अभिलेखों में इसे ७वीं. सदी का बताया गया है जब यहाँ इस मंदिर के स्थान पर एक प्राचीन मंदिर था। आज जो संरचना आप देखेंगे वह कांचीपुरम में पल्लवों के शासन के समय निर्मित था। तत्पश्चात उत्तरकालीन चोल एवं विजयनगर साम्राज्य ने भी इसमें योगदान दिया। इस मंदिर की वास्तुकला में आप इन योगदानों का प्रभाव स्पष्ट देख सकते हैं।
उदाहरणतः सहस्त्र स्तंभों युक्त मंडप का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के समय हुआ था।
मंदिर का क्षेत्रफल लगभग २५ एकड़ है। इसका आकार लगभग कांचीपुरम के विशालतम विष्णु मंदिर, वरदराज पेरूमल मंदिर के सामान है। अतः आप कह सकते हैं कि एकम्बरेश्वर मंदिर अत्यंत विशाल है।
चारों शैव संतों, अप्पर, सम्बन्दर, सुन्दरर तथा मनिक्कवसागर ने इस मंदिर की गौरव गाथाएँ गाई हैं।
एकम्बरेश्वर मंदिर – एक पंचभूत मंदिर
तमिल नाडू में ५ प्रमुख शिव मंदिर हैं। ये पांच मंदिर, प्रकृति के पांच तत्वों, धरती, आकाश, अग्नी, जल तथा वायु का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः इन्हें पंचभूत मंदिर कहा जाता है।
कांचीपुरम का यह एकम्बरेश्वर मंदिर धरती का स्वरूप है। यहाँ का लिंग धरती की मत्तिका अर्थात् मिट्टी से निर्मित है। यहाँ तक कि शिवलिंग को अर्पित जलाभिषेक भी योनी अथवा आधार पर किया जाता है। अन्यथा मिट्टी का बना लिंग जल में घुल सकता है।
एकम्बरेश्वर मंदिर का लिंग, सामान्य गोलाकार लिंग ना होकर, शंकु आकार का है।
अन्य पंचभूत मंदिर इस प्रकार हैं:
चिदंबरम का नटराज मंदिर आकाश का प्रतिनिधित्व करता है।
तिरुवनैकवल का जम्बुकेश्वर मंदिर जल का स्वरूप है।
तिरुवन्नमलई के अन्नामलाई मंदिर का लिंग, अग्नि का स्वरूप है।
तिरुपति के समीप कालहस्ती मंदिर का लिंग, वायु का प्रतिनिधित्व करता है।
कांची कामाक्षी मंदिर तथा समीप स्थित कुमार कोट्टम मंदिर के साथ एकम्बरेश्वर मंदिर कांचीपुरम के सोमस्कंद की छवि पूर्ण करते हैं। भारत में प्राचीन काल की कलात्मकता एवं सौंदर्यबोध का यह सर्वोत्तम उदाहरण है।
यूँ तो एकम्बरेश्वर मंदिर की मेरी अनेक स्मृतियाँ हैं। किन्तु उनमें प्रमुख हैं, वहां के अति विशाल गलियारे, जो मुझे बौनेपन का आभास करा रहे थे तथा वहां की भव्य आरती जो आपको एक दिव्य विश्व में स्थानांतरित कर देती है।
कांचीपुरम के एकम्बरेश्वर मंदिर के दर्शन करने के लिए कुछ यात्रा सुझाव
- कांचीपुरम, चेन्नई से लगभग ७० की.मी. की दूरी पर है। एकम्बरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम बस स्थानक से २ की.मी. तथा रेल स्टेशन से लगभग आधे की.मी. दूर स्थित है।
- मंदिर प्रातः ६ बजे से दोपहर १२:३० बजे तक तथा सायं ४:३० से रात्री ८:३० बजे तक खुला रहता है।
- प्रत्येक दिन ६ आरती होती हैं- उशथकालम अर्थात् सूर्योदय पूर्व, कलसंथी अर्थात् प्रातःकाल, उछिकालम अर्थात् दोपहर से पूर्व, सयरक्शई अर्थात् सायंकाल के आरम्भ में, इरन्दमकालम अर्थात् रात्री पूर्व तथा अर्ध जमम अर्थात् रात्री के समय। आपको मेरी सलाह रहेगी कि आप कम से कम एक आरती में अवश्य भाग लें। मैंने संध्या ६ बजे की आरती में भाग लिया था तथा अत्यंत आनंद प्राप्त किया था।
- एकम्बरेश्वर मंदिर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है, ब्रह्मोत्सव। यह १३ दिवसीय उत्सव है जो फाल्गुन मास अर्थात् लगभग मार्च-अप्रैल में पड़ता है।
- यूँ तो वस्त्रों पर कोई कड़ी पाबंदी नहीं है, फिर भी मेरा सुझाव है कि आप ऐसे वस्त्र पहने जो आपको ढँक सकें। मैं पंजाबी सलवार कुरता पहनी थी एवं मुझ पर किसी ने कोई आक्षेप नहीं किया था।
- मंदिर के अवलोकन के लिए कम से कम एक घंटे का समय लगता है। यदि आप इसका विस्तृत दर्शन करना चाहते हैं तो आप २ से ३ घंटों का समय अपने पास रखें। इसमें आरती का समय सम्मिलित नहीं है।
- चूंकि यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है, यहाँ छायाचित्रिकरण की अनुमति है। किन्तु गर्भगृह में छायाचित्रिकरण निषेध है।
- यहाँ अधिकतर निवासी तमिल भाषा समझते एवं बोलते हैं| वे सब अंग्रेजी एवं हिंदी समझ सकते हैं।
अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे
एकम्बरेश्वर मंदिर – कांचीपुरम का प्रसिद्ध शिव मंदिर वाकई यह जितना विशाल मंदिर व चित्ताकर्षक आपने बताया, उतना ही भव्य चित्रण एक मनमोहक व अलंकारो से परिपूर्ण अंदाज में आपने किया है साधुवाद।
संजय जी – इस मंदिर की अभ को शब्दों में पिरोना असंभव है, कभी अवसर मिले तो अवश्य जाइएगा। आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।
अनुराधा जी,
कांचीपुरम के एकम्बरेश्वर मंदिर का अद्भुत शब्द-चित्रण ! आलेख,एकम्बरेश्वर शिव मंदिर के विशाल गोपुरम एवम् आकर्षक नक्काशी युक्त पाषाण स्तम्भों के विशाल गलियारों मे प्रत्यक्ष भ्रमण करने की सुखद अनुभूति प्रदान करता है । मंदिर ये जुडी हुई दन्त कथायें भी इसकी पौराणिकता को प्रतिपादित करती हैं ।सुंदर अनुवादित , पठनीय आलेख हेतू साधुवाद !
प्रदीप जी, कांचीपुरम के सब मंदिरों के बारे में पढने के बाद आपको कांचीपुरम का एक चक्कर तो लगाना ही पड़ेगा। प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।