गोवा का भुतहा होता कुर्डी गाँव जो साल में ११ महीने जलमग्न रहता है

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कुर्डी गाँव सन १९८३ तक एक जीता जागता गाँव था। तब से यह एक भूतिया गाँव बन के रह गया है। यह गाँव गोवा के सालावली बाँध के जल में वर्ष के लगभग ११ मास जलमग्न रहता है। मानसून से पहले, गोवा में जिसका पदार्पण जून मास में होता है, बाँध का जल स्तर नीचे चला जाता है। उन्ही दिनों यह गाँव कुछ समय के लिए पुनः प्रकट होता है।

गोवा के कुर्डी गाँव का सोमेश्वर मंदिर
गोवा के कुर्डी गाँव का सोमेश्वर मंदिर

गाँव के एक समय अस्तित्व रखते घर, मंदिर, गुफाएं तथा पगडंडियाँ ३५ वर्ष से जलमग्न होने के बाद भी अपना अस्तित्व बनाए रखने का असफल प्रयास कर रही हैं। भय है कि किसी दिन उनका यह प्रयास पूर्णतः निष्फल हो जाएगा।

अतः, कुर्डी गाँव के दर्शन करना, गोवा के इतिहास के उस भाग के दर्शन करने के समान था, जो हम जानते हैं कि हमारी भावी पीढ़ी को कदाचित देखने नहीं मिलेगा। यदि इस सभ्यता के कुछ अंश बच भी जाएँ, तो उनकी अवस्था प्रत्येक बीतते वर्ष के साथ बिगड़ती जायेगी।

कुर्डी गाँव कब देखें?

गोवा के कुर्डी गाँव के दर्शन करने के लिए एक छोटी सी समयावधि प्राप्त होती है। मई मास का उत्तरार्ध इस गाँव के दर्शन करने के लिए सर्वोत्तम समय है। आप मानसून आगमन के पूर्वानुमान की जानकारी ले लें तथा उस के अनुसार जितना विलम्ब संभव हो, उतने विलम्ब से जाएँ। किन्तु ध्यान रहे, गोवा में पूर्व-मानसून के आगमन से भी पूर्व यहाँ की यात्रा नियोजित करें।

गाँव का कितना भाग एवं कितने ऐतिहासिक अंश आप यहाँ देख सकेंगे यह जल स्तर निर्भर करता है। जलस्तर जितना नीचे होगा, उतना ही अधिक अंश आप देख सकेंगे। इसलिए सोमेश्वर मंदिर जैसे ऊंचाई पर स्थित कुछ स्थल को छोड़कर प्रत्येक वर्ष आप यहाँ किंचित भिन्न दृश्य देखेंगे।

कुर्डी गाँव का इतिहास

कुर्डी गाँव के खण्डहर
कुर्डी गाँव के खण्डहर

सालावली बाँध की कल्पना गोवा के प्रथम मुख्य मंत्री द्वारा १९७० के दशक के अंत में की गयी थी। बाँध के जलग्रहण क्षेत्र को निर्मित करने के लिए केवल कुर्डी ही नहीं, गोवा के सांगे तालुका के लगभग १७ गाँवों को स्थानांतरित किया गया था। १९८३-८४ में सब गांव वासियों को समीप के वेलिप एवं वल्किनी गाँवों में स्थानांतरित किया गया था।

कुर्डी गाँव कुशावती नदी के तट पर बसा हुआ था। नदी तट के समीप एक टेकड़ी के ऊपर सोमेश्वर मंदिर स्थित है। एक समय अपने चारों ओर बसे कुर्डी गाँव का स्मरण कराता यह मंदिर आज भी उस टेकड़ी पर गर्व से खड़ा है।

कुर्डी से जुड़े अनोखे तथ्य

कुर्डी गाँव प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्म विभूषण मोगूबाई कुर्डीकर का निवास स्थान था। आपने स्वर सम्राज्ञी स्वर्गीय सुश्री किशोरी अमोणकर जी के विषय में अवश्य सुना होगा। किशोरी जी मोगूबाई कुर्डीकर की सुपुत्री थीं एवं स्वयं एक पारंगत शास्त्रीय गायिका थीं। हो सकता है, मोगूबाई ने अपना बालपन यहाँ बिताया होगा हलाँकि उन्होंने शास्त्रीय संगीत में पांडित्य एवं व्यवसाय मुंबई में ही प्राप्त किया।

उनका जलमग्न निवास कुर्डी का सर्वाधिक आकर्षण का स्थल है। तीव्र ग्रीष्म ऋतू में जैसे ही जलस्तर नीचे जाता है, पर्यटक यहाँ आकर इसे ढूँढने का प्रयास करते हैं। हमारे कुर्डी दर्शन का एक कारण यह भी था। इस गाँव के अन्य गणमान्य व्यक्ति हैं, गणेश वेलिप एवं श्रीराम कुर्डीकर।

कुर्डी गाँव के मंदिर

भारत का ग्रामीण जनजीवन मंदिरों के चारों ओर ही केन्द्रित रहता है। मंदिर केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र ही नहीं था, अपितु सर्व सामाजिक कार्यकलापों का भी केंद्रबिंदु होते हैं।

श्री सोमेश्वर मंदिर

श्री सोमेश्वर प्रसन्न मंदिर - कुर्डी गोवा
श्री सोमेश्वर प्रसन्न मंदिर – कुर्डी गोवा

यह गाँव का प्रमुख मंदिर रहा होगा। इसके दो तलों का गर्भगृह अब भी गर्व से खड़ा है। इसके भीतर सोमेश्वर नाम का शिवलिंग स्थापित है। मैंने इस मंदिर के विषय में जो कुछ पढ़ा है, उसके अनुसार गांववासी इस लिंग को स्वयंभू लिंग मानते हैं। इसीलिए इस मंदिर को स्थानांतरित नहीं किया गया।

सोमेश्वर मंदिर की भित्ति पर इस मंदिर की मूल छवि छायाचित्र के रूप में लगाई हुई है। इस चित्र के अनुसार मूल मंदिर वर्तमान स्थिति से कहीं अधिक विशाल था। मंदिर के भीतर पत्थर की पटिया है जिस पर १२ चिन्ह खुदे हुए हैं। कदाचित ये चिन्ह १२ मास अथवा १२ राशिचिन्ह के प्रतीक हैं। चूंकि मंदिर बंद था, मैं इन चिन्हों को देख नहीं पायी।

सोमेश्वर महादेव मंदिर का दीपस्तंभ
सोमेश्वर महादेव मंदिर का दीपस्तंभ

मंदिर के दीपस्तंभ पर जलमग्न होने के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे किन्तु यह अब भी गर्व से खड़ा, सोमेश्वर मंदिर एवं कुर्डी के स्वर्णिम दिवसों का साक्षी बन कर।

मंदिर के समक्ष कंक्रीट की संरचना है जिसे ‘शेज़ो’ कहा जाता है। इनमें वृत्ताकार तोरण युक्त दो द्वार हैं जिनमें एक मंदिर की ओर तथा दूसरा उस पार स्थित नदी की ओर मुख किये हुए है। यह कदाचित कलाकारों का साजसज्जा कक्ष था। मंदिर एवं नदी के मध्य एक प्रदर्शन मंच था जिस पर कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। इसका प्रयोग मंदिर एवं कलाकारों के लिए संगीत कक्ष एवं गोदाम के रूप में भी किया जाता था।

२०१६ के पश्चात से, कुर्डी गाँव के मूल निवासी यहाँ वार्षिक कुर्डी उत्सव का आयोजन करते हैं जिसमें वे यहाँ एकत्र होकर पूजा अर्चना करते हैं। मैं इस कुर्डी उत्सव के तुरंत पश्चात यहाँ आयी थी। उत्सव एवं पूजा अर्चना के चिन्ह चारों ओर स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे।

कुर्डी महादेव मंदिर

स्थानान्तरण से पूर्व यह महादेव मंदिर कुर्डी में स्थित था। बाँध निर्माण से पूर्व इस मंदिर को सालावली बाँध के समीप एक सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किया गया है। १२वी. शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को सावधानी पूर्वक, एक एक पत्थर पृथक कर उसी क्रम में नवीन स्थान पर पुनर्निर्मित किया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस कार्य को इतनी कुशलता से पूर्ण किया है कि उन्हें अपनी सफलता पर गर्व अनुभव होना उचित है। वे अवश्य सराहना के पात्र हैं। किसी संरचना को इस प्रकार स्थानांतरित किया गया हो, ऐसी इमारतें अधिक नहीं होंगी।

यह मंदिर अब सालावली बाँध के समीप स्थित है। इसकी शिलाओं पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा स्थानान्तरण किये जाने के चिन्ह शिला-क्रमांक के रूप में अंकित हैं। इन्हें देख आप अनुमान लगा सकते हैं कि इसे किस प्रकार क्रमवार स्थानांतरित किया गया होगा।

देवी माँ की छवि

लेटराइट की एक चट्टान पर देवी माँ की विशाल छवि उकेरी गयी थी। स्थानान्तरण के समय इस चट्टान को कुशलता पूर्वक धरती के निकाल कर दक्षिण गोवा के वेरणा गाँव ले जाया गया। वेरणा के मूल महालसा नारायणी मंदिर के समीप रखी इस चट्टान को आप अपनी आगामी भेंट के समय अवश्य देखें।

गुफाएं

रिवोणा गुफाओं के समान कुर्डी गाँव में भी चट्टानों में कटी कुछ गुफाएं हैं। इन्हें खोजना अब आसान नहीं है। हाँ इतना कह सकती हूँ कि बाँध परियोजना के परितंत्र में ये कहीं छुपी हुई हैं।

कुर्डी दर्शन

पिछले कुछ वर्षों से प्रत्येक मई मास में कुर्डी गाँव के दर्शन करने की अभिलाषा हृदय में थी। यह छोटी सी समयावधि किसी न किसी कारणवश तुरंत गुजर जाती थी एवं मुझे इसके दर्शन का अवसर ही नहीं मिल पाता था। इस वर्ष मुझे वह स्वर्णिम अवसर मिल ही गया जब एक दिन हमने प्रातः गाड़ी निकाली एवं कुर्डी गाँव के आकर्षणों को खोजने निकल पड़े।
मार्ग में हमने रिवोणा की गुफाएं ढूँढी। इन्हें ढूंढने में अत्यंत रोमांचित भी अनुभव किया। इनके साथ ही आप कुशावती नदी के तल पर स्थित पन्सैमोल शैलचित्र भी देख सकते हैं। इन्हें देखने के लिए भी मई का मास सर्वोत्तम है। समीप ही गोवा का बुलबुलों वाला बुड़बुड़े ताल एवं कोटिगाव वन्यजीव अभ्यारण्य है। आप चाहें तो, इसी यात्रा में इनके भी दर्शन कर सकते हैं।

कुर्डी के आस पास जलमग्न स्थान
कुर्डी के आस पास जलमग्न स्थान

जैसे जैसे हम कुर्डी गाँव के समीप पहुँच रहे थे, मार्ग संकरा होता जा रहा था तथा जंगल घना होता जा रहा था। मार्ग का अनुसरण करते हुए हम एक ऐसे गाँव में पहुंचे जहां कुर्डी के निवासियों को स्थानांतरित किया गया है। इस गाँव की सर्वाधिक विशाल संरचना उजले पीले रंग में रंगा एक अपेक्षाकृत नवीन किन्तु छोटा मंदिर है।

छोटे छोटे शिवलिंग
छोटे छोटे शिवलिंग

इस मंदिर के चारों ओर हमें धरती पर कई शिवलिंग दिखाई दिए। इन शिवलिंगों के तीन ओर छोटी भित्तियाँ निर्मित थीं। हम समझ नहीं पाए कि क्या यह योनी का मौलिक रूप है? हमने वहां के निवासियों से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया किन्तु वे अधिक जानकारी नहीं दे पाए। उन्होंने केवल यही कहा कि इन्हें पूर्वजों ने स्थापित किया है।

सालावली का जलग्रहण क्षेत्र

सलावली का जलग्रहण क्षेत्र
सलावली का जलग्रहण क्षेत्र

कुर्डी गाँव पहुँचने हेतु दिशा निर्देश प्राप्त कर हमने गाड़ी एक कच्चे मार्ग पर उतार ली। संकरा कच्चा मार्ग अचानक हमें एक विशाल खुले क्षेत्र में ले आया। हमारे समक्ष कुछ दूरी पर हमें जल स्त्रोत दिखाई पड़ रहा था। जल स्त्रोत के उस पार कुछ दूरी पर सूखे दलदली क्षेत्र में हमें कुछ खँडहर दृष्टिगोचर हो रहे थे। खँडहर दूर थे। यहाँ से कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या हैं।

हम कुछ और आगे बढ़ें। जल स्त्रोत के समीप से आगे जाकर हम खँडहरों की प्रथम खेप के समीप पहुंचे। अधिकांशतः सूखी धरातल अब भी कई स्थानों पर नम थी। हम असमंजस में थे कि इन पर पैर रखें कि नहीं। कहीं पैर दलदल में धंस तो नहीं जायेंगे? कुछ दुर्घटना होने की स्थिति में समीप कोई सहायतार्थ भी उपलब्ध नहीं था।

जलमग्न कुर्डी गाँव के खँडहर

जलमग्न रहने के बाद भी तन कर खड़े हैं यह तने
जलमग्न रहने के बाद भी तन कर खड़े हैं यह तने

दलदल में धँसे पत्थरों को सुरक्षित जानकार हम उन पर पाँव रखकर खंडहरों की ओर बढ़े। मैंने स्वयं को कुछ टूटी भित्तियों से घिरा पाया। कदाचित ये किसी के निवासस्थान के अवशेष थे। एक ओर तुलसी वृन्दावन था जिसे देख हमने निवास के अग्रभाग का अनुमान लगाया। मुझे दलदली धरती पर एक अस्पष्ट रेखा दिखाई दी। यह कदाचित सड़क थी जिसके दोनों ओर घर थे।

दलदली धरती पर, जलस्त्रोत के चारों ओर तथा इसके भीतर स्थित एक छोटे मिट्टी के टापू पर नारियल के पेड़ों के अनेक ठूंठ थे। पिछले ३५ वर्षों से निरंतर जलमग्न रहते हुए भी ये अब तक वहां खड़े अपना अस्तित्व बनाए रखे हुए हैं। प्रत्येक वर्ष कुछ समय के लिए जल से बाहर आकर सूर्य की किरणों का आनंद उठाते हैं। जल ने इन ठूंठों पर आकृतियाँ बनायी हुई हैं। समय ना गंवाते हुए कुछ मकड़ियों ने उन पर अपने जाले भी बना लिए थे। सब कुछ अत्यंत भूतिया प्रतीत हो रहा था। यदि मैं यहाँ संध्या के पश्चात आयी होती तो मैं निःसंदेह ही इन्हें आपस में वार्तालाप करते भूतप्रेत मान लेती।

गाँव पहुँचने के पश्चात पहली बार मुझे एक अलौकिक अनुभूति हुई। भानगढ दुर्ग जैसे प्रेतबाधित स्थलों में प्राप्त अनुभूति से ये भिन्न अनुभव था।

खरीज़

खरीज़
खरीज़

संकरे मार्ग से हम आगे बढे। समक्ष हमारे मार्ग में धरती पर आड़ी खरीज निर्मित थी। धरती की चट्टानों को काटकर खाई बनायी हुई थी। इन्हें ‘खरीज़’ कहा जाता है। यह खरीज़ मानव निर्मित था या प्राकृतिक रूप से जल द्वारा कटकर बना था, यह नहीं जान पायी। देखने पर तो यह मानवनिर्मित प्रतीत हो रहा था जो कदाचित कुछ निचले स्थानों को जोड़ने हेतु बनाया गया था। खाई के उस पार, पत्थर की सूली निर्मित थी जिसके चारों ओर छोटी शिलाएं रख कर उसे सीमाबंद किया गया था। खाई के ऊपर निर्मित एक छोटे से पुलिये से हम आगे बढ़े।

कुर्डी महोत्सव की चिन्ह
कुर्डी महोत्सव की चिन्ह

भिन्न भिन्न आकार के जलस्त्रोतों के समीप से जाते हुए अंततः हमें एक ऊंची संरचना दिखाई पड़ी। इसे देखते ही मैंने जान लिया कि यह श्रीस्थल का सोमेश्वर महादेव मंदिर है। इस पर नवीन रंगरोगन किया गया था। चारों ओर पताकाएं फड़फड़ा रही थी।

सोमेश्वर महादेव - एक स्वयंभू लिंग
सोमेश्वर महादेव – एक स्वयंभू लिंग

मंदिर बंद था। द्वार के सलाखों से हम लिंग के दर्शन कर पा रहे थे। मैंने मन ही मन प्रार्थना की। तत्पश्चात मंदिर के चारों ओर अवलोकन आरम्भ किया। मुख्य मंदिर के आसपास किसी अन्य मंदिर के अस्तित्व को खोजने लगी। मुझे योनी सहित कुछ शिवलिंग दिखाई दिए। इसी शिला द्वारा निर्मित कुछ भंगित प्रतिमाएं भी थीं। उनमें से कुछ पर हल्दी-कुमकुम अर्पित किये हुए थे। मुझे बताया गया था कि एक समय यहाँ एक वेताल मंदिर भी था। बहुत खोजा किन्तु मुझे उसके अस्तित्व के कोई चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं हुए।

सोमेश्वर मंदिर के एक पुराना चित्र
सोमेश्वर मंदिर के एक पुराना चित्र

मैं कल्पना करने लगी, प्रत्येक महाशिवरात्रि, चैत्र पूर्णिमा तथा दशहरा के उत्सव में यह कैसा प्रतीत होगा।

प्राचीन शिवलिंग
प्राचीन शिवलिंग

टेकड़ी पर स्थित इस मंदिर से मैंने जब चारों ओर दृष्टी दौड़ाई, वहां के परिदृश्यों ने मुझे मोह लिया। नुकीली पहाड़ियों की श्रंखला एवं शांत जल पर पड़ते उनके प्रतिबिम्ब मुझे हतप्रभ कर रहे थे। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मैं एक प्याले के मध्य में खड़ी हूँ जिसकी भित्तियाँ नुकीली पहाड़ियों से बनी हैं तथा मेरे चारों ओर जल के कई पोखर हैं।

कुशावती नदी का सामीप्य

लगभग ढहते हुए ‘शेज़ो’ को पार कर मैं कुशावती नदी की ओर जाते मार्ग पर चल पड़ी। इसे ‘पाज़’ कहते हैं। यहाँ इस जलमग्न गाँव के सर्वाधिक सघन खँडहर हैं।

शेज़ो
शेज़ो

दाहिनी ओर एक निवासस्थान से सटा एक कुआं था। कुआँ अखंडित एवं सुव्यवस्थित था। समीप ही एक सुन्दर तुलसी वृन्दावन था जो इस घर में रहते परिवार के सर्वाधिक शक्तिशाली सदस्य होने का प्रमाण देता प्रतीत हो रहा था। उस पर तुलसी का पौधा नहीं था। किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी समय इसके भीतर लगी तुलसी से ही इसने अपनी शक्ति अर्जित की होगी।

खुशावती नदी का तट
खुशावती नदी का तट

कुछ दूरी पर एक मंच था। कदाचित अपने समृद्ध काल में इस मंच पर कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया होगा। यहाँ मेरी दृष्टी टेराकोटा में उत्कीर्णित एक टुकड़े पर पड़ी। यह किसी उत्कीर्णित भित्ति का भाग होगा। यहाँ-वहां बिखरे द्वार के चौखट एवं लकड़ी के कोष्टकों के टुकड़े क्षय के विभिन्न चरणों में थे।

मोगूबाई कुर्डीकर के निवासस्थान का अधिकांश भाग अब भी जलमग्न था। उसका कुछ भाग ही हमें जल के बाहर दिखाई दिया। जल स्तर अत्यंत नीचे होने की स्थिति में ही हम उनका सम्पूर्ण घर देख सकते हैं। उनके निवासस्थान से जब मैंने अपनी दृष्टी सोमेश्वर मंदिर की ओर डाली, मंदिर अत्यंत ऊंचा प्रतीत हुआ। इतनी ऊंचाई पर स्थित मंदिर भी वर्षा के जल में जलमग्न हो जाता है, यह कल्पना से परे है।

एक चौकोर मंच, जिस पर पालकी के समय बाहर निकाली गयी उत्सव मूर्ति रखी जाती थी, अब भी आप देख सकते हैं। एक मांड भी है जहां कदाचित विभिन्न उत्सव आयोजित किये गए होंगे।

मंदिर के समीप

मंदिर के दूसरी ओर एक छोटा चौकोर मंच था जिस पर पूजा अर्पण किये जाने के चिन्ह स्पष्ट विदित थे। यहाँ से लगभग १०० मीटर की दूरी पर ऊंची खड़ी शिलाएं धरती पर गड़ी हुई थीं। जहां अन्य शिलाएं साधारण थे, वहीं एक शिलाखंड पर कुछ उत्कीर्णित था। उन्हें गोलाकार में धरती पर खड़ा किया गया था। उनकी पृष्ठभागीय कथा यदि है, तो मुझे ज्ञात नहीं।

मंदिर के आप पास खुदाई किये हुए पत्थर
मंदिर के आप पास खुदाई किये हुए पत्थर

कुछ दूर पत्थरों के एक ढेर पर एक झंडा फड़फड़ा रहा था। इस ढेर के चारों ओर भी शिलाखंडों को रखकर सीमा बनायी गयी थी।

यहाँ एक घंटे से कुछ अधिक समय बिताकर हम यहाँ से वापिस आ गए।

कुर्डी में एक अद्भुत प्रकार की सुन्दरता एवं आकर्षण है। यह आपको आनंदित करने के साथ साथ दुखी भी करता है। यह मुझे जैसलमेर के निकर स्थित कुल्धारा गाँव का स्मरण कराता है।

कुछ तो शक्ति है इस तुलसी वृन्दावन में
कुछ तो शक्ति है इस तुलसी वृन्दावन में

इन खंडहरों को देख अत्यंत दुःख होता है। किन्तु यहाँ का परिदृश्य अत्यंत ही मनमोहक है। यह परिदृश्य एवं ये अद्भुत खँडहर वर्ष में केवल कुछ ही दिन दृष्टिगोचर होते हैं, यह तथ्य इन्हें और भी मूल्यवान बना देता है।

कुर्डी गाँव के निवासियों को विस्थापित करने के पश्चात सालावली बाँध बनाया गया था जिसके जल की आपूर्ति सम्पूर्ण दक्षिण गोवा में की जाती है। दक्षिण गोवा के निवासी निश्चित रूप से कुर्डी निवासियों के आभारी होंगे जिनके कारण आज उन्हें भरपूर पेयजल की प्राप्ति होती है।

जलमग्न कुर्डी गाँव का एक विडियो

पुनः प्रकट हुए इस जलमग्न कुर्डी गाँव की मेरी यात्रा का एक विडियो आपके समक्ष प्रस्तुत है।

यात्रा सुझाव

• कुर्डी गाँव मडगांव से दक्षिण-पूर्वी दिशा में लगभग ३०कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यात्रा का अंतिम भाग किंचित भ्रामक है। आप जब भी यहाँ आयें, प्रयत्न कर समूह में आना उचित होगा।
• अपने साथ पर्याप्त पेयजल रखें। मई मास अत्यंत ऊष्ण होता है। सूर्य की तपती किरणों से बचने के लिए कोई आश्रय भी नहीं है।
• यहाँ किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं है। अतः अपने साथ इच्छानुसार खाद्यपदार्थ रखें। किन्तु इस संवेदनशील स्थल की मर्यादा का ध्यान रखते हुए इस स्थान को गन्दा न करें।
• आरामदायक जूते पहनें ताकि आप इन खंडहरों में आसानी से ऊपर-नीचे जा सकते हैं।
• नम प्रतीत होने पर धरती को जांच कर ही उस पर पैर रखें। धरती दलदली भी हो सकती है।
• ध्यान रखें, यह एक वनीय प्रदेश है। यहाँ आपको कई प्रकार के जीव-जंतु दिखाई पड़ सकते हैं।
• इस स्थान के अवलोकन के लिए केवल दिन के समय ही आयें। रात्रि से पूर्व वापिस आ जाएँ।
• यहाँ की कुछ भी वस्तु वापिस लाने का प्रयत्न ना करें। विशेषतः वनीय क्षेत्र की वस्तुएं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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