जाफना मेरे मानसपटल पर सदैव से श्रीलंका के एक युद्ध ग्रस्त क्षेत्र के रूप में छाप छोड़े हुए था। १९८० के दशक में पले-बढ़े होने के कारण श्रीलंका के जाफना का नाम हमने वहाँ के अन्य स्थलों की अपेक्षा अधिक सुन रखा था। उस समय मैं ना तो कोलंबो के विषय में जानती थी, ना ही उस अनुराधापुरा के विषय में, जिसका नाम मेरे नाम से मेल खाता है। मैं केवल जाफना के विषय में ही जानती थी। हमारे लिए मानो श्रीलंका केवल जाफना ही था। उस समय सभी समाचारपत्र जाफना नगर के समाचारों एवं वहाँ चल रहे गृहयुद्ध के समाचारों से भरे रहते थे।
मैंने श्रीलंका की यात्रा सर्वप्रथम २००५ में की थी। उस समय मैं केवल कैंडी तक ही जा पायी थी। संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण, उत्तरी श्रीलंका तब भी पहुँच से दूर था। २०१७ की मेरी श्रीलंका की यात्रा के समय मैं अनुराधापुरा तथा पोलोन्नरुवा के दर्शन कर पायी थी। जाफना श्रीलंका का और भी उत्तरी क्षेत्र है। २०१९ की मेरी श्रीलंका यात्रा के समय मैं उसके पूर्ण उत्तरी क्षेत्रों तक पहुँच पायी। मैंने श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र का पूर्व से लेकर पश्चिम तक अर्थात मन्नार से आरंभ कर त्रिन्कोमाली तक की यात्रा की।
जाफना प्रायद्वीप के उत्तरी नोक पर स्थित जाफना नगर मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था। मुझे यहाँ के कुछ प्राचीन मंदिरों के विषय में जानकारी थी। इस क्षेत्र में शैव तमिल भाषी जनमानस का प्रभुत्व अधिक रहा है। तथापि, मंदिरों की विशाल संख्या, चित्ताकर्षक झीलें, हिन्द महासागर के नीले जल पर बिखरे हुए इसके द्वीप, सब कुछ मेरे लिए सही मायने में एक सुखद आश्चर्य था। इसके साथ ही यह एक भीड़भाड़ भरा बड़ा नगर भी है।
तो आईए मेरे साथ, श्रीलंका के इस प्राचीन नगर की खोज में चलते हैं।
जाफना के मंदिर
नगर का क्षितिज इसके मंदिरों के ऊंचे ऊंचे एवं भव्य गोपुरों से शोभायमान है। यहाँ तक कि समुद्र में दूर दूर तक फैले द्वीपों पर भी ऊंचे ऊंचे मंदिर अपना अस्तित्व सफलतापूर्वक दर्शाते हैं। दो-तीन दिवसों में इन सर्व मंदिरों के दर्शन करना असंभव है। अतः मैंने कुछ प्राचीन तथा कुछ नवीन मंदिरों की एक मिश्रित सूची तय की तथा उनके दर्शन किये। आईए उन सब मंदिरों से आपका परिचय कराती हूँ।
कीरिमलई का नागुलेश्वरम मंदिर
यह मंदिर श्रीलंका के ५ पंचईश्वर मंदिरों में से उत्तरोत्तर मंदिर है। त्रिन्कोमाली के कोनेश्वर मंदिर तथा मन्नार के थिरुकेटेश्वर मंदिर के समान यह मंदिर भी एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का नाम नागुला मुनि के नाम पर पड़ा जो यहाँ तपस्या किया करते थे। हम आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि यह मंदिर लगभग ६०० ई.पू. का है।
एक प्राचीन गोपुरम के नीचे से आप इस मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं। गोपुरम पर रंग बिरंगी प्रतिमाओं द्वारा शिव पार्वती विवाह का सुंदर दृश्य दर्शाया गया है। इसके पश्चात आपके समक्ष एक ऊंचा गोपुरम प्रकट होगा। हल्के मटमैले रंग में रंगे इस गोपुरम पर कई सुनहरी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इसके मध्य से आगे बढ़ते ही आप स्वयं को रंग-बिरंगे छोटे मंदिरों से घिरा हुआ पाएंगे। भित्तियों पर किवदंतियाँ उत्कीर्णित हैं जिसके नीले तोरण इसकी सुंदरता को चार चाँद लगाते हैं। मंदिर के बाहर एक विशाल शिवलिंग स्थापित है जिस पर अभिषेक किया जाता है। गर्भगृह के भीतर स्थित शिवलिंग कई द्वारों के पीछे रखा है।
भित्तियों पर शिव तांडव नृत्य की १०८ मुद्राएं उत्कीर्णित हैं।
भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी अपनी श्रीलंका यात्रा के समय इस मंदिर के दर्शन किये थे। मैंने जैसे ही पुजारीजी को मेरे भारतीय होने की जानकारी दी, उन्होंने तुरंत मोदीजी के छायाचित्र मुझे दिखाए।
कीरिमलई के गर्म जल के सोते
नागुलेश्वरम मंदिर के ठीक पीछे समुद्र तट पर जल के प्राकृतिक सोते हैं। उन्हे गर्म जल के सोते कहा जाता है किन्तु उनका तापमान सामान्य है। हो सकता है किसी समय उनका तापमान ऊष्ण रहा होगा। पुरुषों के स्नान हेतु खुला ताल है तथा स्त्रियों द्वारा स्नान के लिए घेराबंद भाग सुरक्षित किया गया है।
इन सोतों के जल को चिकित्सीय गुणों से युक्त माना जाता है। यहाँ का समुद्र तट सुंदर है। तट का एक भाग सँकरी पट्टी के रूप में समुद्र में प्रवेश करता हुआ प्रतीत होता है।
नल्लुर कंदस्वामी मंदिर
नल्लुर अब जाफना का एक उपनगर है किन्तु एक समय यह जाफना की राजधानी हुआ करता था। नल्लुर कंदस्वामी मंदिर इस क्षेत्र का सर्वाधिक मनोरम, सर्वाधिक वैभवपूर्ण तथा भव्यतम मंदिर है। इसका सुनहरा गोपुरम दूर से भी देखा जा सकता है। ऐतिहासिक आलेखों से मिली जानकारी के अनुसार इस मंदिर की निर्मिती १० वी. ईस्वी में की गई है। अब जो मंदिर हम देखते हैं उसका निर्माण १८ वी. ईस्वी में किया गया है।
मंदिर के भीतर स्तंभों पर खड़े सुनहरे तोरण अत्यन्त भव्य है। प्रत्येक तोरण ६ छोटे स्तंभों पर खड़ा है। जब आप इनके नीचे से आगे जाते हैं इन स्तंभों पर जड़े आईने आपका प्रतिबिंब कुछ इस प्रकार बिखेरते हैं कि किसी की भी आँखें चुँधिया जाएंगी। इनके ऊपर एक विशाल मंदिर खड़ा है। जब मैं उन तोरणों के नीचे से जा रही थी मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मैं कई काल पीछे चली गई हूँ तथा किसी भव्य राजमहल में जा रही हूँ। मंदिर की चार भित्तियों के भीतर एक कुंड भी है।
यह मंदिर मुरूगन अर्थात कार्तिकेयन को समर्पित है।
यदि आपके पास इतना कम समय हो कि आप जाफना का एक ही स्थल देख सकते हैं तो आप नल्लुर कंदस्वामी मंदिर देखिए।
नागपूषणी अम्मा मंदिर
यह मंदिर श्रीलंका में स्थित दो शक्ति पीठों में से एक है। मैंने त्रिन्कोमाली पर लिखे अपने यात्रा संस्मरण में शंकरी शक्ति पीठ के विषय में पहले ही लिखा है। यह दूसरा शक्ति पीठ है। यहाँ पहुँचने के लिए जाफना नगर से ४५ मिनट सड़क मार्ग से जाकर २० मिनट नौका सवारी करने की आवश्यकता है। मुख्यभूमि से नैनतिवु द्वीप के बीच प्रत्येक आधे घंटे में दोनों ओर से नौकाएँ चलती हैं।
नागपूषणी अम्मा मंदिर का १०८ फीट ऊंचा गोपुरम बहुत दूर से दृष्टिगोचर होने लगता है। नौका सवारी करते समय जैसे जैसे आप इसके निकट जाते हैं, यह गोपुरम और बड़ा होता जाता है। उस पार उतरते ही एक सीधा सड़क मार्ग गोपुरम की ओर ही ले जाता है।
नाग की आकृति इस मंदिर में आप हर ओर देख सकते हैं। मंदिर के समक्ष एक विशाल नंदी विराजमान है। मंदिर में प्रवेश करते ही नंदी से ही आपका प्रथम साक्षात्कार होता है। यह एक विशाल मंदिर है जहां बड़ी संख्या में भक्तगण आते हैं।मुख्य गर्भगृह में नागपूषणी अम्मा का विग्रह है। इस प्रतिमा के एक ओर पीतल में बनी उनकी उत्सव मूर्ति है तथा दूसरी ओर श्री चक्र के समान एक विशाल रचना है जिसके समक्ष लोग पुष्प अर्पित करते हैं। मैं यहाँ शुक्रवार के दिन आई थी। अतः मुझे देवी की भव्य शोभायात्रा देखने का अप्रतिम सौभाग्य प्राप्त हुआ।
त्रिन्कोमाली के कोनेश्वर मंदिर के समान यहाँ भी मंदिर के चारों ओर वृक्षों पर छोटे छोटे झूले बंधे हुए थे।
इस मंदिर के संबंध में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए विकिपीडिया में पढ़ें।
नागदीप पुराण विहार
यह एक सुंदर बौद्ध विहार है जो नागपूषणी अम्मा मंदिर के एक ओर स्थित है। यहाँ भी नाग से संबंधित आकृतियों की प्राधान्यता है। यहाँ तक कि बुद्ध की प्रतिमा के ऊपर भी नाग का फन है। मंदिर में समुद्र की दिशा में एक आकर्षक तोरण है जिसे भी दूर से देखा जा सकता है।
श्रीलंका के पोलोन्नरुवा तथा अन्य बौद्ध स्थलों के समान यहाँ भी श्वेत रंग का एक स्तूप है। एक छोटा मंदिर भी है जिसकी सीढ़ियों पर एक चंद्रशिला है।
मुझे कुछ ही क्षण इस विहार में व्यतीत करने मिले क्योंकि मुख्यभूमि पर पहुँचने के लिए मुझे फेरी पकड़नी थी। तथापि एक शांत एवं निर्मल स्थल के रूप में इस आकर्षक स्थल की स्मृति मेरे मानसपटल में सदैव जीवित रहेगी।
थिरुवसगम का महल
जाफना नगर में प्रवेश करने से पूर्व ही आप नगर के इस नवीनतम आकर्षण के दर्शन कर सकते हैं। यह है थिरुवसगम का महल। नेवत्कुली में स्थित यह महल ९ वी. ईस्वी के कवि मणिक्कवसागर द्वारा रचित एवं भगवान शिव को समर्पित तमिल कविताओं को एक श्रद्धांजलि है। भारत एवं श्रीलंका के तमिल भाषी क्षेत्रों के शिव मंदिरों में उनकी कविताओं को नियमित रूप से गाया जाता है।
इस महल की भित्तियों पर उनकी सभी ६१५ रचनाएं अंकित हैं। उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना शिव पुराण है जिसे मंदिरों में सर्वप्रथम गाया जाता है। इस शिव पुराण का विश्व के कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है तथा वे सभी अनुवाद भी थिरुवसगम महल की भित्तियों पर अंकित हैं।
महल के प्रांगण में शिव को समर्पित एक मंदिर है जिसे दक्षिणमूर्ति मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर तथा महल की उस भित्ति के बीच, जिस पर कविताएं अंकित हैं, एक ही आकार एवं आकृति के १०८ शिवलिंग हैं। यहाँ तक कि मंदिर के शिखर पर भी सामान्यतः उत्कीर्णित देवी देवताओं की मूर्ति के स्थान पर अनेक शिवलिंग रखे हुए हैं। मंदिर के समक्ष स्थित कुंड के मध्य, एक रथ के आकार के एक छोटे मंदिर के भीतर मणिक्कवसागर की मूर्ति है। वहीं आगस्त्य मुनि की एक प्रतिमा अपने प्रतिष्ठापन की प्रतीक्षा कर रही है। यह सम्पूर्ण संरचना एवं प्रतिष्ठापन १८ मास से भी कम समय में सम्पूर्ण किया गया है। इस विशालकाय कार्य को सम्पन्न किया है एक व्यक्ति ने जिनका नाम है डॉ. अरू थिरुमुरूगन।
यह स्थान अत्यन्त तेजी से नगर के सर्वाधिक लोकप्रिय स्थान में परिवर्तित होता जा रहा है। एक सामान्य दिवस में मैंने यहाँ कई भक्तों को आते देखा जो अपने अपने कार्य पर जाने से पूर्व मंदिर के दर्शन कर रहे थे। लोगों में यह मान्यता विकसित होने लगी है कि यदि वे १०८ शिवलिंगों का अभिषेक करेंगे तो उनकी सर्व इच्छाएं फलित होंगी।
तमिल भूमि की प्राचीन कविताओं का उत्सव मनाते इस अनूठे मंदिर के दर्शन अवश्य करें।
हनुमान मूर्ति
नगर के एक मंदिर के समक्ष हनुमान की एक अतिविशाल मूर्ति है। ऐसा प्रतीत होता है मानो वे नगर का संरक्षण करते हुए उस पर अपनी दृष्टि रखे हुए हैं।
जाफना का परिदृश्य
‘लगून’ अर्थात अनूप, समुद्र जैसे विस्तृत जलस्त्रोतों के किनारे बनने वाला एक उथला जल क्षेत्र होता है। सभी द्वीप कॉज़वेस अर्थात सेतुमार्ग द्वारा जुड़े हुए हैं। जब आप उन सेतुमार्गों पर गाड़ी चलाते हुए जाएंगे, आपके चारों ओर आपको केवल जल ही दृष्टिगोचर होगा। एक क्षण को यदि आप अपने समक्ष स्थित मार्ग की ओर ध्यान ना दें तो आपको ऐसा प्रतीत होगा मानो आप जल की सतह पर गाड़ी चला रहे हैं। जाफना के लगून की स्मृतियाँ मेरे मनमस्तिष्क में लंबे समय तक रहने वाली है।
मैं नागपूषणी अम्मा मंदिर के दर्शन करने नैनतिवु द्वीप पर आई थी। मैं चारों ओर से जल द्वारा घिरी हुई थी। चारों ओर इक्का-दुक्का ही लोग अथवा गाड़ियां थीं। सम्पूर्ण दृश्य अत्यन्त ही शांत व मनोहारी था। मेरा रोम रोम रोमांचित हो उठा था। एक शांत दिवस व्यतीत करने के लिए यह सर्वोत्तम स्थान है।
समुद्र के जल में मछली पकड़ने के सँकरे लंबे जाल बिछाए हुए थे। कहीं कहीं यह जाल एक कीप के आकार में बिछाया हुआ था। मैं कल्पना करने लगी कि संध्याकाल तक यह जाल मछलियों से भर जाएगा। यहाँ-वहाँ छोटी नौकाएं लंगर डालकर रुकी हुई थीं। कुछ मछुआरे नौकाओं में जाल बिछाने की तैयारी कर रहे थे।
दूर पर एक द्वीप दृष्टिगोचर हो रहा था। मंदिरों के ऊंचे ऊंचे गोपुरम इन द्वीपों की उपस्थिति दर्शा रहे थे। इन मंदिरों के भव्य गोपुरमों देख आप भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे।
जाफना के दर्शनीय सांस्कृतिक स्थल
जाफना का दुर्ग
यह एक माध्यम आकार का दुर्ग है जो ६२ एकड़ में फैला हुआ है। समुद्र में होती गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए इस दुर्ग की अवस्थिति सर्वोत्तम है। इसके चारों ओर जल से भरा एक चौड़ा खंदक है। जब आप इसके किसी बुर्ज पर खड़े होंगे, आपको ऐसा आभास होगा मानो आप जल के मध्य बनी किसी संरचना के ऊपर खड़े हैं।
इस दुर्ग का निर्माण मूलतः पूर्तगालियों ने १६१९ ईस्वी में करवाया था। तत्पश्चात १६५८ ईस्वी में इस पर डच लोगों ने अपना आधिपत्य जमा लिया तथा जाफना को एक प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह बनाया। यद्यपि यह दुर्ग जीर्ण अवस्था में है, तथापि इसका रखरखाव सही प्रकार से किया जा रहा है। दुर्ग के विभिन्न भागों की विस्तृत जानकारी देती सूचना पट्टिकाएं भिन्न भिन्न स्थानों पर लगायी हुई हैं
यहाँ प्रवेश निःशुल्क है। प्रवेश द्वार के निकट स्मारिकाओं की एक छोटी दुकान है जहां से आप श्रीलंका पर पोस्टर तथा पुस्तकें ले सकते हैं।
मंत्री मनई
जाफना नगर में विरासती धरोहरों की इमारतें अधिक शेष नहीं बची हैं। मैं तो केवल एक ही धरोहर संरचना ढूंढ पाई। यह धरोहर, मंत्री मनई एक विरासती निवासस्थान है जो किसी समय किसी मंत्री का निवासस्थान था। इस इमारत की अवस्था अधिक अच्छी नहीं है, फिर भी यह गर्व से खड़ा अपने इतिहास की गाथा कह रहा है।
यह एक औपनिवेशिक संरचना होते हुए भी इसमें स्थानीय तत्वों का सम्मिश्रण किया गया है। रसोईघर एवं कुआं इसका उदाहरण है।
पुरातात्विक संग्रहालय
नवलार मार्ग पर स्थित यह एक छोटा किन्तु रोचक संग्रहालय है। यहाँ उत्तरी श्रीलंका में खुदाई द्वारा प्राप्त कलाकृतियों का संग्रह है। मन्नार के थिरुकेटेस्वर मंदिर से लाया गया तथा पत्थर से निर्मित एक बड़ा घड़ा प्रवेशद्वार पर आपका स्वागत करता है। इसमें उसका साथ देता प्रतीत होता है, बौद्ध स्तूप का शिखर।
यहाँ प्रदर्शित कुछ रोचक वस्तुएं हैं:
• एक मिट्टी का घड़ा जिसके ७ मुंह हैं। यह एक संगीत वाद्य है।
• देवी लक्ष्मी की छवि से सज्ज सिक्के
• मोती चुनने की छलनी
• मछली के आकार के शतरंज जैसे खेलों के पट्टे
• ताड़ के पत्तों पर तमिल भाषी रामायण की पांडुलिपि
कंडारोडई का कडुरुगोडा विहारय
यह एक रोचक पुरातात्विक कार्यस्थल है जहां ४०-५० प्राचीन स्तूपों के अवशेष एक साथ स्थित हैं। इनमें कुछ स्तूप अभंजित हैं किन्तु कुछ स्तूपों की हरमिका नहीं है तथा कुछ के केवल आधार ही शेष हैं। खंडित अवस्था में होते हुए भी वे अत्यन्त आकर्षक व रोचक प्रतीत होते हैं। उनमें उनकी प्राचीनता स्पष्ट झलकती है। कदाचित ये स्तूप गर्व से अपनी प्राचीनता का प्रदर्शन भी कर रहे हैं।
यह एक संरक्षित स्थल है। साथ ही यह सेना संस्थापन के समीप स्थित है। अतः इसके दर्शन से पूर्व आपको पूर्व अनुमति प्राप्त करनी होगी। आप यहाँ आकर भी यह अनुमति प्राप्त कर सकते हैं।
जाफना सार्वजनिक पुस्तकालय
नगर का सार्वजनिक पुस्तकालय, निर्मल श्वेत रंग में रंगी एक मनभावन इमारत है। दूर से यह ताज महल का स्मरण कराती है। आप जब यहाँ आएंगे, प्रथम वस्तु जो आपका ध्यान आकर्षित करेगी, वह है देवी सरस्वती की प्रतिमा।
एक समय यह एशिया की विशालतम पुस्तकालयों में से एक थी। गृहयुद्ध के समय इसे अग्नि में भस्म कर दिया गया था। बड़ी संख्या में पुस्तकें नष्ट हो गई थीं। स्थानीय निवासियों ने मुझे बताया कि पुस्तकालय के संग्रह का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। इसके लिये निवासियों से भी आवाहन किया जा रहा है कि वे पुस्तकों का दान करें अथवा उनका क्रय करने हेतु आर्थिक सहायता करें।
जाफना का घंटाघर
पुस्तकालय के समीप स्थित घंटाघर भी निर्मल श्वेत रंग में रंगा हुआ है। यह जाफना में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का स्मरण कराता है। १८७५ में प्रिंस अल्बर्ट द्वारा इस क्षेत्र की यात्रा की स्मृति में यह घंटाघर निर्मित किया गया है। किसी प्राचीन संरचना के लिए इसका रखरखाव आवश्यकता से अधिक प्रतीत होता है। मुझे जानकारी दी गई कि हाल ही में इसका पुनरुद्धार किया गया है। गृहयुद्ध के समय इसे भी क्षति पहुंचाई गई थी।
इसके चारों ओर इस क्षेत्र के राजाओं की घोड़े पर सवार प्रतिमाएं हैं। राजा एवं उनके घोड़े, दोनों को सुनहरे रंग में रंगा गया है।
जाफना में ये स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ अवश्य चखें
जाफना में आपको ठेठ तमिल खाद्य पदार्थ चखने को मिलेंगे। मेरे जैसे शाकाहारियों के लिए यह अत्यन्त आनंददायी है। यहाँ उपलब्ध इन खाद्य पदार्थों का अवश्य आस्वाद लें:
कुंद डोसइ – छोटी इडली के समान दोसा
रियो आइसक्रीम
नगर के सच्चे सार एवं यहाँ के जीवन को समझने के लिए यहाँ के बाजार में घूमिए।
जाफना कैसे पहुंचे?
जाफना पहुँचने के लिए निकटतम विमानतल कोलंबो अंतरराष्ट्रीय विमानतल है।
जाफना कोलंबो एवं श्रीलंका के अन्य प्रमुख नगरों से रेल एवं सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है।
जाफना के जिन दर्शनीय स्थलों की मैंने यहाँ चर्चा की है, उन्हे देखने के लिए दो दिवसों का समय पर्याप्त है। यदि आप द्वीप की यात्रा नहीं करना चाहते तो शेष स्थल आप एक दिन में आसानी से देख सकते हैं।
जाफना में कई अथितिगृह हैं। मेरा अनुमान है कि यहाँ बड़ी संख्या में व्यावसायिक यात्री आते हैं।
उत्तरी श्रीलंका के प्राचीन जाफना नगर : वाकई बहुत ही सुंदर स्थल है कुल मिलाकर दक्षिण भारत के जो धार्मिक स्थल है वैसा ही यह ऐतिहासिक महत्व का सुंदर शहर है, कीरिमलई का नागुलेश्वरम मंदिर का चित्र बहुत ही सुंदर है, निःसंदेह देखने पर वह अतिसुन्दर होगा। आपके द्वारा हम पर्यटन का घर बैठे ही आनंद ले लेते है, धन्यवाद।।
धन्यवाद संजय जी, जाफ़ना बहुत सुन्दर है, जब कभी अवसर मिले, जाइएगा।