जैसा कि हम सब जानते हैं, हिन्दू देवी देवता विश्व के कई देशों में रीति रिवाज से पूजे जाते हैं। परन्तु इन देशों में जापान भी शामिल है यह हम में से अधिकतर के लिए सुखद आश्चर्य है। जापान में देवी सरस्वती के ही सैकड़ों मंदिर हैं। यहाँ लक्ष्मी, इंद्र, ब्रम्हा, गणेश, गरुड़, व अन्य कई देवी देवताओं के भिन्न भिन्न रूपों को सक्रियता से पूजा जाता है। यहाँ तक कि वायु, वरुण जैसे देव, जिन्हें हम भारत में बहुत हद तक भूल चुके हैं, उनकी जापान में आज भी आराधना की जाती है।
जापान में हिन्दू देवी देवता और भारतीय संस्कृति
एक तरफ भारतीय संस्कृति के मायने हमारे भारत के आधुनिक समाज में अब बदलने लगें हैं। दूसरी तरफ हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति को जापान ने बहुत हद तक सहेज कर रखा है। जापान में देवी सरस्वती का बहुत सम्मान किया जाता है। उनकी ना केवल वीणाधारिणी रूप की पूजा की जाती है, बल्कि उनकी सरिता रूप की भी आराधना की जाती है। इसलिए आप जापान में श्रद्धालुओं को जल कुंडों को पूजते देखेंगे।
संस्कृत
६०० से १२०० ई. तक सिद्धम लिपि का प्रयोग संस्कृत लिखने के लिए किया जाता था। यह लिपि ब्राम्ही से व्युत्पन्न है। इसे सिद्धमात्रका भी कहा जाता है। भारत में तो अब इसका उपयोग नहीं किया जाता, परन्तु जापान में सिद्धम लिपि को संरक्षित रखा है व इसे लुप्त होने नहीं दिया। इस लिपि के तहत संस्कृत में लिखे बीजाक्षरों को भी यहाँ पवित्र माना जाता है और उनका सम्मान किया जाता है। देवी देवताओं के साथ उनसे सम्बंधित बीजाक्षरों को भी पूजा जाता है। यह और बात है कि आज के युग में इसे पढ़ने व जानने वालों की संख्या बहुत कम है।
आप जब भी जापानी मकबरों को देखें, आप वहां खुदे इन संस्कृत लिपि को अवश्य देखेंगे। इस लिपि को ठीक से ना पढ़ पाने के बावजूद, जापानी लोग अपने स्वर्गवासी प्रियजनों को श्रद्धा अर्पित करने हेतु इनका प्रयोग करते हैं। जापान के कोयासन में स्थित एक शाला में सिद्धम के साथ संस्कृत सिखाई जाती है। यह इस तथ्य का प्रमाण है कि संस्कृत संरक्षण में जापान का भी भरपूर योगदान है।
होम
जापानी बोद्ध धर्म के अध्ययन के दौरान वज्रयान बोद्ध धर्म के विकास की कई कड़ियाँ इससे जुड़ती दिखाई पड़तीं हैं। वर्तमान में प्रचलित हिमालयी बौद्ध धर्म भी जापानी बौद्ध धर्म का आधुनिक रूप है परन्तु इसमें होम और हवन का अभाव प्रतीत होता है। जब मैं जापान के बौद्ध धर्म के अन्य महत्वपूर्ण पंथों के बारे में अध्ययन कर रहा था तब मुझे ज्ञात हुआ कि होम हवन की प्रक्रिया इन में अब भी एक प्रचलित प्रथा है। मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हुआ। जापान में होम को गोम कहा जाता है। इस होम अथवा गोम के दौरान संस्कृत मन्त्रों व श्लोकों का भी उच्चारण किया जाता है।
भाषा
जापानी भाषा के कई शब्दों की व्युत्पत्ती संस्कृत से हुई है। जापानी वर्ण काना का गठन भी संस्कृत से प्रेरित है।
बाज़ार में भ्रमण के दौरान मैंने ‘सुजाता’ नामक दूध का एक प्रमुख उत्पाद देखा। मुझे बताया गया कि इसके मालिकों ने सुजाता की दंतकथाओं से प्रेरित होकर अपने उत्पाद का नाम सुजाता रखा था। दंतकथाओं के अनुसार एक वैशाखी पूर्णिमा को सुजाता नामक स्त्री को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। वटवृक्ष से की मन्नत पूर्ण करने हेतु वह सोने की थाल में गाय के दूध व चावल की खीर भरकर वहां पहुंची। वटवृक्ष के नीचे तपस्या करते बुद्ध को वटवृक्ष का रूप मानकर उन्हें प्रेम से खीर खिलाई व उन्हें मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद भी दिया। उसी रात बुद्ध को परम ज्ञान की प्राप्ति हुई।
दर्शन शास्त्र
जापानी प्रथाओं के गूढ़ रहस्य भारत के दर्शन शास्त्र के प्राथमिक विकास की ओर इशारा करतें हैं। जापान ने अपने दार्शनिक समझ को अत्यंत गर्व से सहेज कर रखा है। जापान की संस्कृति चिरकाल से अटूट रही है। यह भारत का दुर्भाग्य रहा कि औपनिवेशिक राज के दौरान अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने हमारी संस्कृति को भारी चोट पहुंचाई। इसी का परिणाम है कि ज्यादातर भारतीय हमारी स्वयं की संस्कृति को पश्चिमी दृष्टिकोण से जानते हैं। यहाँ प्रमुख और पसंदीदा भाषा अंग्रेजी हो गयी है। शालाओं व विश्वविद्यालयों में अभ्यास व पुस्तकें भी पश्चिमी दृष्टिकोण से पूरी तरह प्रभावित हैं।
जापान और भारत
जापान से हमारा सम्बन्ध हमारी समझ से भी ज्यादा गहरा है। आवश्यकता है इसे समझने की और इसे बढ़ावा देने की। अब समय आ गया है कि हम प्राचीन भारत के शांत व सभ्य दृष्टिकोण व जापान जैसे देशों की संस्कृति से सीख लें। अपनी लापरवाही व विचारशून्य व्यापारिकता से अपना व अपने चारों ओर की दुनिया का नाश बंद करें।
आधुनिक विचारधारा रखने वालों का मत है कि प्राचीन संस्कृति से प्रेरणा लेने का अर्थ है आर्थिक विकास में कमी। यह मेरी राय में दोषपूर्ण सोच है। दरअसल संस्कृत ही हमें अनुशासन, शिष्टता व जीवन का अर्थ प्रदान करती है। यही गुण हमें अपने हर कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त कराती है और यही हमें स्वस्थ, सम्पूर्ण व खुशहाल जीवन प्रदान करती है।
जापान एक ऐसा देश है जहां बौद्ध धर्म सही मायने में फलफूल रहा है। यहाँ प्रोद्योगिकी व संस्कृति साथ पनप रहे हैं। बौद्ध धर्म की शिक्षा की गहरी जड़ें जापानियों की प्रेरणा का स्त्रोत हैं।
जापान में बौद्ध मंदिर बहुतायत में हैं। हर दिन भारी मात्रा में श्रद्धालु इनके दर्शन करते हैं। बुद्ध के अलावा कई हिन्दू देवी देवता भी इनमें पूजे जाते हैं व हिन्दू संस्कृति का पालन बड़ी श्रद्धा से किया जाता है। इसलिये भारतीय मूल के निवासी जापान में सहज भाव से रहते हैं।
बोधिसेना मूर्ति, र्योसेंजी, नारा
८वी. शताब्दी में भारतीय बौद्ध भिक्षुक बोधिसेना ने जापान के सम्राट शोमू के आमंत्रण पर जापान का भ्रमण किया। वहां उन्होंने संस्कृत के उपयोग को बढ़ावा दिया व बौद्ध धर्मं के हयान पंथ की भी स्थापना की। सन ७५२ में उन्होंने तोदोजी मंदिर में महान बुद्ध के भव्य समारोह का आयोजन किया था। बोधिसेना दक्षिण भारत में मदुरै के मूल निवासी हैं।
सरस्वती या बेन्जाइतेन मंदिर, बेंटन शू, ओसाका
यह देवी सरस्वती को समर्पित विश्व का सबसे ऊंचा व सबसे भव्य मंदिर है। बेन्जाइतेन, हिन्दू देवी सरस्वती का जापानी रूप है। जापान की सबसे ज्यादा पूजी जाने वाली बेन्जाइतेन देवी के हर बड़े शहर में मंदिर व तीर्थस्थल हैं। यह ज्यादातर समुद्र, झील, तालाब या नदी जैसे जलस्त्रोतों के निकट स्थित है। पंखों वाले सर्प पर सवार देवी ने अष्ट भुजाओं में तलवार, रत्न, धनुष, बाण, चक्र व चाबी धारण किये हुए हैं। यह देवी शुभता के लिए पूजी जाती है।
लेखक बेनॉय के. बहल
बेनॉय के. बहल एक फिल्मकार, कला इतिहासकार व फोटोग्राफ़र हैं। वे पिछले ३६ वर्षों के कड़ी मेहनत व फलप्राप्ति हेतु अथक प्रयास के लिए प्रसिद्ध हैं। विश्व के ५४ देशों में प्रदर्शित उनके छायाचित्रों को बेहद सराहा गया है। विश्व में सर्वाधिक भ्रमण करने वाले छायाचित्रकार के रूप में उन्हें लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में स्थान प्राप्त है।
बहल द्वारा निर्मित कई फ़िल्में व वृत्त चित्र अखिल भारतीय दूरदर्शन पर मुख्य समय पर दिखाये जा चुके हैं। इनमें २६ वृत्त चित्र ‘दी पेंटिंग्स ऑफ़ इंडिया’, २६ वृत्त चित्र ‘दी स्कल्पचर्स ऑफ़ इंडिया’ तथा २६ वृत्त चित्र ‘स्पेक्टाकुलर इंडिया’ पर शामिल हैं। बहल को महामहिम दलाई लामा से साक्षात्कार करने का भी गौरव प्राप्त है। इस साक्षात्कार पर आधारित उन्होंने एक फिल्म ‘इंडियन रूट्स ऑफ़ तिबेतन बुद्धिज़्म’ बनाई थी जिसे मेड्रिड अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में, सन २०१५ में, सर्वश्रेष्ठ वृत्त चित्र का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
उपलेख
यह ‘जापान में हिन्दू देवी देवता और भारतीय संस्कृति’ पर बिनॉय के. बहल द्वारा लिखित व इंडीटेल द्वारा आमंत्रित एक अतिथी संस्मरण है। उनके द्वारा लिखित ‘दी अजंता केव्स’ नामक पुस्तक मेरी पसंदीदा पुस्तक है। अजंता के चित्रण व शिल्पकारी के पीछे छुपी किवदंतियों को समझने हेतु इसने मेरी अपार मदद की। मेरे वेबदैनिकी में उनका संस्मरण प्रदान करना मेरे लिए गौरव का विषय है। बिनॉय को मेरी तरफ से हार्दिक धन्यवाद।
Very nice article Anuradha. It’s good to see that you are now writing in Hindi also. 🙂
धन्यवाद् गौरव। अभी हम केवल कुछ चुनिन्दा लेख अनुवाद कर रहे हैं। बाकी, पाठकों का आशीर्वाद रहा तो नए लेख और लेखकों को भी प्रकाशित करेंगे।
जापान मे देवी सरस्वती के सैकडों मंदिर है और इन्हे सरिता के रुप मे भी पूजा जाता है यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ. आधुनिकता के इस दौर में जापान द्वारा हमारी प्राचीन संस्कृति को न केवल सहेजना वरन इसे संरक्षित रखते हुए आगे बढ़ाना ,हमारे लिये आश्चर्य एवम् सोच का विषय है.
विश्व मे सर्वाधिक भ्रमण करने वाले छाया चित्रकार श्री बेनॉय के. बहल के यात्रा संस्मरण की सुंदर एवम् सरल शब्दों में प्रस्तुति के लिये अनेकानेक धन्यवाद .
प्रदीप जी, मैंने भी जब बेनॉय जी से इस के बारे में सुना था, तो बहुत अचंभा हुआ था. इसीलिए उनसे अनुरोध किया की वोह हमारे लिए एक लेख लिखें. जब से इसे छापा है, जापान भ्रमण की तीव्र इच्छा है – देखिये कब पूरी होती है.
आपके प्रोत्साहन के लिए अनेक धन्यवाद.