जोधपुर – राजस्थान की नील नगरी केअद्भुत दर्शनीय स्थल

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मुझे राजस्थान का भ्रमण करना अत्यंत प्रिय है क्योंकि वहाँ के व्यंजन, वहाँ की भाषा, वहाँ का संगीत, वहाँ के उद्यमी नागरिक तथा वहाँ के अचंभित करते बालू के टीले अथवा धोरा मुझे अत्यंत भाते हैं। किन्तु अब तक नील नगरी के नाम से प्रसिद्ध जोधपुर का मैंने भ्रमण नहीं किया था। एक दीर्घ काल से मेरी भ्रमण सूची में वह अनवरत रूप से आरक्षित था।

मैं जोधपुर विमान द्वारा पहुँची थी। वायु मार्ग द्वारा जोधपुर पहुँचने का आकर्षण इसलिए भी था कि विमान तल जोधपुर नगर के केंद्र बिंदु से अधिक दूर नहीं है। इसका पूर्ण श्रेय महाराजा उम्मैद सिंग को दिया जा सकता है। विमान की खिड़की पर बैठकर उस ऊँचाई से मुझे बालू के टीले तो दिखाई नहीं दिये किन्तु उस ऊँचाई से जोधपुर के दुर्ग एवं राजवाड़े को ढूँढने में मुझे बड़ा आनंद आया।

जोधपुर पहुँचने के पश्चात उसी दिवस हमने उम्मैद भवन संग्रहालय के अवलोकन का निश्चय किया। संग्रहालय बंद होने का समय संध्या ५ बजे का है जिसके लिए पर्याप्त समय शेष था। गणतंत्र दिवस होने के कारण हम किंचित शंकित थे कि यह संग्रहालय कदाचित सार्वजनिक अवकाश के चलते बंद ना हो। किन्तु गणतंत्र दिवस के दिन भी यह संग्रहालय दर्शकों के लिए खुला था। उम्मैद भवन संग्रहालय का वर्णन करने से पूर्व आईये हम जोधपुर के इतिहास पर एक संक्षिप्त चर्चा कर लेते हैं।

जोधपुर का संक्षिप्त इतिहास

ऐसी मान्यता है कि १५वीं सदी में राव जोधा ने जोधपुर की नींव रखी थी तथा उनके पुत्र राव बीका ने बीकानेर की स्थापना की थी। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने ऐसा भगवती करणी जी की आज्ञा पर किया था जिन्हें करणी माता के नाम से भी बुलाते हैं।

एक ओर जहाँ सन् १४५९ में एक एकाकी चट्टानी क्षेत्र पर मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव रखी गयी, वहीं दूसरी ओर सन् १४८८ में एक निर्जन प्रदेश में बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग की स्थापना की गयी थी, जिसे जंगलदेश, जंगल प्रदेश अथवा जांग्ला देश भी कहते हैं।

करणी माता ने अपने प्रभाव से भिन्न भिन्न कबीलों को एकत्र किया व उन्हें एकजुट किया। सम्पूर्ण अराजकता से भरे काल में राजस्थान में स्थिरता स्थापित की। मैंने इससे पूर्व अनेक अवसरों पर राजस्थान के देशनोक में स्थित करणी माता मंदिर में माता के दर्शन किये थे। उस समय मुझे यह ज्ञात नहीं था कि करणी माता ने राजस्थान का इतिहास रचने में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जोधपुर के दर्शनीय स्थल

उम्मैद भवन पैलेस

जोधपुर में हमने जहाँ जहाँ भी भ्रमण किया, उपलब्धता के अनुसार हमने ऑटोरिक्शा अथवा उबर का प्रयोग किया। जोधपुर भ्रमण के अंतर्गत हमारा प्रथम गंतव्य था, उम्मैद भवन महल। ८० वर्ष पूर्व निर्मित उम्मैद भवन को विश्व के विशालतम महलों में से एक माना जाता है। यह ऐतिहासिक धरोहर नगरी जोधपुर का सर्वाधिक लोकप्रिय आकर्षण है। इस महल के एक लघु भाग को संग्रहालय में परिवर्तित किया गया है जिसके भीतर प्रवेश करने के लिए एक पृथक प्रवेश द्वार है।

उम्मेद भवन जोधपुर
उम्मेद भवन जोधपुर

महाराजा गज सिंग द्वितीय जो महाराजा उम्मैद सिंग के ज्येष्ठ पुत्र हनुवंत सिंग के पुत्र हैं तथा राठौर वंश के ३९वें पीढ़ी के राजा हैं, वे अपने परिवार समेत इस महल के एक भाग में निवास करते हैं। महल के शेष भाग को अब एक उच्च स्तरीय विश्रामगृह में परिवर्तित किया गया है जो ताज होटल श्रंखला के अंतर्गत आता है। यह अलंकृत महल भारतीय एवं यूरोपीय वास्तु का एक चित्ताकर्षक सम्मिश्रण है।

ऐसा कहा जाता है कि ३४७ कक्षों से सज्ज इस अतिविलासी व्यक्तिगत निवास का निर्माण जोधपुर के निवासियों को १५ वर्षों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय उपलब्ध कराने की मंशा से किया गया था। जोधपुर के निवासी उस काल में सूखे की मार झेल रहे थे तथा यह प्रकल्प उन्ही के लिए सूखा राहत उपायों के अंतर्गत कार्यान्वित किया गया था।

महल के मुख्य कक्ष में इस महल के निर्माण कार्य से सम्बंधित प्रदर्शनी है। साथ ही राजपरिवार के सदस्यों की रूचि एवं उनके योगदान भी प्रदर्शित हैं।

उम्मैद भवन के भित्तिचित्र

भवन में प्रवेश करते ही आपकी दृष्टि गुम्बद के नीचे एक अवतल भित्ति पर चित्रित एक विशाल भित्ति चित्र पर पड़ेगी। एक अन्य भित्तिचित्र आपके पृष्ठ भाग में स्थित भित्ति पर चित्रित है। प्रथम भित्तिचित्र में सेनापति दुर्गादास राठौर एवं औरंगजेब के मध्य हुए युद्ध का दृश्य है। इस दृश्य की पृष्ठभूमि में आप मेहरानगढ़ दुर्ग देख सकते हैं। दूसरी भित्तिचित्र में महाराजा उम्मैद सिंग के विवाह की शोभायात्रा का दृश्य है। इस दृश्य की पृष्ठभूमि में उम्मैद भवन चित्रित है। इन भित्तिचित्रों को स्टीफान नोरब्लिन नामक पोलैंड वासी चित्रकार ने चित्रित किया है।

दूसरी भित्तिचित्र के नीचे कांच में गढ़ी संकट मोचन हनुमान जी की छवि है। मैं सोच में पड़ गयी कि इस चित्र को यहाँ प्रदर्शित करने का उद्देश्य केवल धार्मिक भावना है अथवा यह लाक्षणिक है। जैसा कि बताया जाता है, दुर्गादास इस क्षेत्र में राठौर वंश के शासन को संरक्षित रखने में तथा राठौर वंश की सेवा में निरंतर प्रयासरत रहे। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी भगवान राम की अमोघ सेवा में तत्पर रहने के लिए जाने जाते हैं। तो क्या हनुमान जी का यह चित्र उन दो परिस्थितियों में समानांतरता दर्शाने के लिए प्रदर्शित किया गया होगा?

संग्रहालय क्षेत्र में विविध प्रकार की प्राचीन वस्तुएं, मानवी चित्र, बहुआयामी चित्र, आयुध, मानवी जीवनशैली की वस्तुएं, गृह साज-सज्जा की वस्तुएं आदि प्रदर्शित की गयी हैं।

उम्मैद भवन का सिंहासन कक्ष

उम्मैद भवन का सिंहासन कक्ष सर्वाधिक चित्ताकर्षक प्रतीत हुआ। इस कक्ष को अनेक भित्तिचित्रों से सज्जित किया गया है जो प्राचीन महाकाव्य रामायण में घटी महत्वपूर्ण घटनाओं पर आधारित हैं। इन भित्तिचित्रों को भी पोलैंड वासी चित्रकार स्टीफान नोरब्लिन ने चित्रित किया है।

प्रथम दृष्टया इन चित्रों में दर्शित व्यक्तियों को देख श्री राम, सीता एवं लक्ष्मण का स्मरण नहीं होता है। गत दशकों में यहाँ की कठोर जलवायु के कारण ये भित्तिचित्र गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गए थे। एक दशक पूर्व पोलैंड के पुरातत्व संरक्षकों के एक समूह ने अथक प्रयास कर इनका नवीनीकरण किया है। चित्रकार स्टीफान नोरब्लिन एवं उनके भित्तिचित्रों के विषय में अधिक जानकारी के लिए यह वृत्तचित्र अवश्य देखें।

इन भित्तिचित्रों को देख मुझे बैंकाक के ग्रैंड रॉयल पैलेस में देखे रामायण चित्रांजलि का स्मरण हो आया।

महल के बाह्य भाग में, प्रवेश द्वार के समीप विंटेज वाहनों का एक संग्रह प्रदर्शित है। विंटेज वाहन सामान्यतः वे वाहन होते हैं जिनका निर्माण १९१९ के आरम्भ से १९३० के अंत तक किया गया था। हमने इस संग्रह से भी विशाल संग्रह जोधपुर के खास बाग में देखा।

उम्मैद भवन में अब भी भिन्न भिन्न अनुष्ठान एवं समारोह आयोजित किये जाते हैं जिनके विषय में अनेक विडियो इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं।

जोधपुर का घंटाघर

जोधपुर के घंटाघर का दर्शन करने के लिए हमने एक ऑटोरिक्शा की सेवा ली।

घंटाघर
घंटाघर

यह पांच तलीय अलंकृत घंटाघर बलुआ चट्टानों द्वारा निर्मित है जिसमें अनेक छज्जे एवं झरोखे हैं। हम जब वहाँ गए तब इसे संरक्षण कार्यों के लिए बंद किया गया था। मैं केवल कल्पना ही कर सकती थी कि इस घंटाघर के ऊपर से जोधपुर नगरी एवं दुर्ग का उत्तम परिदृश्य प्राप्त होता होगा।

घंटाघर के चारों ओर स्थित हाट कढ़ाई किये वस्त्रों, हस्तकला की वस्तुओं, मसालों, सुगंधी चाय आदि के लिए  लोकप्रिय है। यह एक व्यस्त हाट है जो क्रेता-विक्रेताओं से भरा रहता है।

हमने भी इस हाट में जाकर अपनी रूचि के अनुसार इसका आनंद उठाया। हमने घंटाघर चौक के निकट स्थित शाही समोसा अरोरा नमकीन मिष्टान्न भण्डार में मिर्ची बड़ा/पकोड़ा एवं समोसा जैसे स्थानीय व्यंजनों का आस्वाद लिया। श्री मिश्रीलाल होटल उनकी विशेष रबड़ी के लिए प्रसिद्ध है।

यहाँ की स्वच्छता के विषय में कुछ भी कहने में मैं असमर्थ हूँ। किन्तु इतना स्वादिष्ट मिर्ची बड़ा मैंने इससे पूर्व केवल गंगाशहर के छोटू मोटू के यहाँ खाया था।

जोधपुर की पाल हवेली

हम हाट के दूसरे छोर पर स्थित प्रवेश की ओर जाने लगे। हमने पाल हवेली का अवलोकन करने का निश्चय किया। पाल हवेली को अब दो भिन्न धरोहर होटलों में परिवर्तित किया गया है। दोनों होटलों की छतों पर जलपान गृह अथवा कैफे हैं जहाँ से अप्रतिम परिदृश्य दिखाई देता है।

पाल हवेली से सूर्यास्त
पाल हवेली से सूर्यास्त

इनमें से एक कैफे में बैठकर संध्या के समय अदरक वाली चाय का आस्वाद लेते हुए परिदृश्यों का आनंद उठाना स्वयं में एक अद्वितीय अनुभव था। क्षितिज में विभिन्न रंगों से अठखेलियाँ खेलता सूर्य अस्त की ओर बढ़ रहा था। समक्ष चट्टानी पहाड़ी पर भव्य मेहरानगढ़ दुर्ग विराजमान था। दुर्ग के एक ओर नीली छतों के अनेक घर थे जिनके कारण जोधपुर को ब्लू सिटी या नील नगरी कहते हैं। दूसरी ओर गुलाब सागर सरोवर था। इन अप्रतिम परिदृश्यों को केवल हम ही नहीं निहार रहे थे। इन चित्ताकर्षक दृश्यों को चिरस्थायी बनाने के प्रयास में एक ड्रोन भी ऊपर उड़ रहा था।

तूरजी का झालरा- एक लुभावनी बावड़ी

जोधपुर के इस भाग का आनंद हमने पदयात्रा द्वारा उठाया। हमने मार्ग में अनेक सुन्दर हवेलियाँ देखीं। उनमें से कई हवेलियों को होटलों में परिवर्तित कर दिया गया है। कई हवेलियाँ अब उच्च स्तरीय दुकानों में परिवर्तित हो चुकी हैं जिनमें उच्च स्तर की उत्तम वस्तुओं की विक्री की जाती है। अंततः हम एक प्राचीन बावड़ी के समक्ष पहुँचे। इस बावड़ी का नाम है, तूरजी का झालरा। यह ३०० फीट गहरी बावड़ी है।

तूरजी का झालरा बावड़ी
तूरजी का झालरा बावड़ी

लगभग २५० वर्ष प्राचीन इस बावड़ी का निर्माण जोधपुर के महाराजा अभयसिंग की महारानी तंवर तूर जी ने अपने निरिक्षण में करवाया था। उस काल में राज परिवार की स्त्रियों का सार्वजनिक विकास के लिए किये गए कार्यों का निरिक्षण करना एक सामान्य घटना होती थी। इसकी संरचना महारानी के पीहर गुजरात में निर्मित बावड़ियों से साम्य रखती है। इस झालरे के जल का प्रयोग प्रमुख रूप से राज्य की स्त्रियाँ ही करती थीं।

मैंने पढ़ा था कि यह झालर अनेक दशकों से जलमग्न था तथा जोधपुर के RAAS होटल द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया गया था। यह होटल इस बावड़ी से लगा हुआ है। यह जोधपुर की लाल शिलाओं द्वारा निर्मित है। इसमें नृत्य करते हाथी एवं अन्य पशुओं के उत्कीर्णन हैं। देवी देवताओं की भी मूर्तियाँ हैं। जल निकास के लिए गाय एवं शेर के मुख की संरचना की गयी है।

हमने समीप स्थित एक कैफे में भोजन किया जहाँ से बावड़ी का विहंगम दृश्य प्राप्त हो रहा था। बावड़ी को उत्तम रूप से प्रकाशित किया गया है जो सर्व सामान्य जनता के लिए २४ घंटे उपलब्ध रहता है। लोग यहाँ आकर बैठते हैं तथा यहाँ के वातावरण का आनंद उठाते हैं। अपने इस धरोहर को स्वच्छ रखने का उनका प्रयास स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। यह सब देख मन प्रसन्नता से भर उठा।

जसवंत थड़ा

जसवंत थड़ा जाने के लिए हमने एक रिक्शा किराए पर लिया।

जसवंत थड़ा एक राजसी स्मारक है जो देवकुंड सरोवर के निकट स्थित है तथा चारों ओर से चट्टानी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। श्वेत संगमरमर द्वारा निर्मित इस भव्य स्मारक को महाराजा सरदार सिंग ने बनवाया था। उनके पिता महाराजा जसवंत सिंग द्वितीय की अंतिम इच्छा पूर्ण करते हुए उन्होंने यहाँ उनका अंतिम संस्कार किया। तत्पश्चात उनकी स्मृति में इस स्मारक का निर्माण कराया।

जसवंत ठाडा
जसवंत ठाडा

जसवंत थड़ा को लोग मारवाड़ का ताजमहल कहते हैं। इसकी संरचना एक मंदिर के समान है जिस के ऊपर एक शिखर है। यह ओरछा की छत्रियों जैसा प्रतीत होता है। यह एक राजसी समाधी है।

एक प्रतिभाशाली स्थानीय गायक बीरबलरामजी के राजस्थानी गीतों से सम्पूर्ण वातावरण सजीव हो उठा था। साथ में वे रावणहत्था नामक वाद्य यंत्र बजा रहे थे। मैंने उन्हें Game Of Throne का संगीत सुनाया तथा उनसे अनुरोध किया कि वे उसे अपने वाद्य यंत्र पर बजा कर सुनाएँ। उन्होंने हमें वह संगीत बजाकर सुनाया तथा उसमें अपनी विशेष छाप भी डाल दी।

मेहरानगढ़ दुर्ग – जोधपुर का अद्वितीय रत्न

राव चुँडा अथवा चामुंडाराय ने मंडौर में राठौरों की राजधानी स्थापित की थी। राव चुँडा को मंडौर क्षेत्र दहेज में प्राप्त हुआ था। दो पीढ़ियों के पश्चात राव जोधा ने एक वीरान विशालकाय व ऊँची चट्टान पर मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण कराया। यह दुर्ग उनकी राजधानी मंडौर से कुछ मील दूर स्थित है। इसकी ऊँचाई उत्तम चौकसी एवं उत्तम प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करने में अत्यंत सहायक थी। मेहरानगढ़ का अर्थ है, सूर्य का गढ़। राव जोधा एक सूर्य वंशी महाराजा जो थे।

मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर
मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर

यह दुर्ग आसपास के मैदान से लगभग ४०० फीट ऊँचे धरातल पर स्थित है। लगभग ५०० वर्षों तक यह राठौरों का प्रमुख केंद्र था। ५०० गज लम्बा यह दुर्ग राजस्थान के विशालतम दुर्गों में से एक माना जाता है। यह ऊँची भित्तियों द्वारा संरक्षित है। इसमें सात द्वार है जिन्हें विक्ट्री द्वार, फतेह द्वार, भैरों द्वार, डेढ़ कामग्रा द्वार, जयपोली, मार्टी द्वार तथा लोहा द्वार कहा जाता है। इस दुर्ग में अनेक महल अथवा विशाल कक्ष हैं जो उत्तम रूप से संरक्षित हैं। सभी कक्ष चटक रंगों में रंगे तथा अलंकृत हैं। दुर्ग में छः गलियारे तथा अनेक मुक्तांगन हैं।

मेहरानगढ़ दुर्ग के महल

मेहरानगढ़ के महलों में फूल महल, मोती महल, शीष महल, जनाना महल आदि अधिक लोकप्रिय हैं। फूल महल मेहरानगढ़ के सभी महलों में सर्वाधिक भव्य महल है। इस महल में संगीत प्रदर्शन आयोजित किये जाते थे। मोती महल अपेक्षाकृत साधारण महल है जो वर्तमान महाराजा का महल है। शीशमहल में दर्पण के टुकड़ों द्वारा जटिल आकृतियाँ बनाई गयी हैं जो अत्यंत मनभावन हैं। इसके सभी आलों में जब दीप जलाए जाते थे तो यह महल अत्यंत आकर्षक प्रतीत होता होगा। हमारे परिदर्शक ने हमें बताया कि महाराजा शीशमहल का प्रयोग ध्यान-साधना के लिए करते थे।

मेहरानगढ़ का मोती महल
मेहरानगढ़ का मोती महल

यह दुर्ग एवं इसके महलों का निर्माण लगभग ५०० वर्षों तक जारी था। दुर्ग को देख कर प्रसन्नता होती है कि इसके संरक्षकों ने इनके नवीनीकरण एवं संरक्षण की दिशा में उत्तम कार्य किया है। दुर्ग के भीतर संग्रहालय की दुकानें तथा एक स्थानीय हाट स्थित है जहाँ से हस्तकला की वस्तुओं की विक्री की जाती है। आप संग्रहालय की दुकानों की वस्तुओं को ऑनलाइन भी क्रय कर सकते हैं। मेहरानगढ़ संग्रहालय न्यास ने इस दुर्ग एवं इसके महलों के विषय में पर्याप्त जानकारी एकत्र कर उनके वेबस्थल पर प्रकाशित की है।

मेहरानगढ़ का रानीवास
मेहरानगढ़ का रानीवास

दुर्ग अत्यंत विस्तृत है तथा भीतर मार्ग अत्यंत ढलुआँ है। जिन्हें पैदल चलने में कष्ट हो, उनके लिए दुर्ग के भीतर एक उद्वाहक अथवा लिफ्ट उपलब्ध कराई गयी है जो पर्यटकों को न्यूनतम शुल्क पर टिकट खिड़की से दुर्ग की एक छत तक ले जाती है। इस छत का नाम मेहरान छत है जहाँ एक जलपानगृह (कैफे) भी है। इस कैफे में रात्रि का भोजन उपलब्ध होता है। दुर्ग भ्रमण पूर्ण कर आपको इसी छत पर आना होगा जहाँ से यह उद्वाहक आपको टिकट खिड़की तक ले जायेगी। इस उद्वाहक की कार्यप्रणाली संध्या के पश्चात बंद कर दी जाती है। इसके पश्चात आप ढलुआँ मार्ग द्वारा नीचे उतर सकते हैं। यह मार्ग भी सुगम है।

जोधपुर में उत्तम राजस्थानी थाली मुझे केवल कैफे मेहरान में ही मिली जो दुर्ग के प्रवेश द्वार के निकट स्थित है। यह कैफे मेहरान छत से एक तल नीचे स्थित है।

मेहरानगढ़ में चामुंडा मंदिर

आप दुर्ग के भीतर स्थित चामुंडा माता मंदिर का अवलोकन करने अवश्य जाएँ। ऊँचाई पर स्थित यह एक लघु किन्तु सुन्दर मंदिर है। यदि आपकी आस्था ना हो तो आप वहाँ से जोधपुर की नील नगरी का अवलोकन कर सकते हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि इस मंदिर को जोधपुर भ्रमण की प्रचलित सूची में सम्मिलित क्यों नहीं किया गया है! इसके पश्चात भी यहाँ दर्शनार्थियों एवं पर्यटकों की भीड़ खिंची चली आती है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको कैफे मेहरान से कुछ सोपान चढ़ने पड़ेंगे।

परिदृश्यों के छायाचित्र लेने के लिए यह एक सर्वोत्तन क्षेत्र है। यहाँ से आप एक विशाल मुक्तांगन में जा सकते हैं जहाँ अनेक पुरातन वृक्ष हैं। आप उनकी छाँव में बैठकर तनिक सुस्ता सकते हैं। आपकी सुविधा के लिए बलुआ शिलाओं द्वारा निर्मित बैठकें रखी हुई हैं। आप वहाँ कई लोक गायकों को देखेंगे जो गलियारों एवं तोरणों के नीचे बैठकर अपनी लोककला प्रस्तुत करते रहते हैं। मंदिर से चारों ओर का उत्तम परिदृश्य दिखाई देता है। मंदिर तक जाने के लिए स्त्रियों के लिए किंचित छोटा व सुगम मार्ग है तथा पुरुषों के लिए किंचित लम्बा पृथक मार्ग है। दोनों ही मार्ग आकर्षक हैं। मैं सोचने लगी कि क्या यह व्यवस्था वर्ष २००८ में हुए भगदड़ का परिणाम है!

सामान्य ज्ञान – स्थानीय जनता यह मानती है कि यह दुर्ग एवं बीकानेर का जूनागढ़ दुर्ग, केवल ये दो दुर्ग ही ऐसे हैं जो अब भी राठौरों के स्वामित्व में हैं क्योंकि करणी माता ने इन दोनों दुर्गों की नींव रखी थी। अन्य सभी राजपुताना दुर्ग अब त्यक्त हो चुके हैं।

दुर्ग से नील नगरी(प्राचीन नगर) तक पद भ्रमण

मेरे जोधपुर भ्रमण की एक दूसरी विशिष्टता थी, मेहरानगढ़ दुर्ग से जोधपुर की प्राचीन नगरी तक पद भ्रमण। यदि आप यह पद भ्रमण करना चाहते हैं तो आप दुर्ग के सामान्य निकास द्वार से बाहर ना आयें। आप उस द्वार से निकास करें जो प्राचीन नगर की ओर जाती है। आप वहाँ उपस्थित सुरक्षा कर्मियों से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

नील नगरी जोधपुर
नील नगरी जोधपुर

दुर्ग से निकास करते ही आपकी प्रथम दृष्टि जोधपुर के प्रतिष्ठित नीले घरों पर पड़ेगी। उनमें से कुछ घरों की भित्तियाँ भित्तिचित्रों से चित्रित हैं। सम्पूर्ण दृश्य अत्यंत मनभावन प्रतीत होता है। मुझे बताया गया कि इन घरों पर प्रयुक्त नीला रंग नील एवं चूने के सम्मिश्रण से प्राप्त हुआ है जो स्थानीय खदानों में उपलब्ध होता है।

कहा जाता है कि प्राचीन काल में नीले रंग का प्रयोग ब्राह्मणों के घरों को दर्शाने के लिए किया जाता था। किन्तु अब वह भेद नहीं रहा। अब स्थानीय लोग जोधपुर की उष्णता से बचने के लिए घरों को नीले रंग में रंगते हैं ताकि घर के भीतर शीतलता रहे। कुछ का मानना है कि नीला रंग मच्छरों एवं अन्य कीटों को दूर रखता है।

जो भी कारण हो, ये नीले रंग के घर जोधपुर को एक पृथक वैशिष्ट प्रदान करते हैं। इसी कारण जोधपुर को राजस्थान की नील नगरी अथबा ब्लू सिटी कहा जाता है।

खास बाग

यह एक अप्रतिम होटल है जिसके कक्ष केवल राजपरिवार एवं उनके अतिथियों के लिए आरक्षित रहते हैं। हमने इस होटल के मुक्ताकाश बगीचा भोजनालय में रात्रि का भोजन करने का निश्चय किया।

मैंने यहाँ अत्यंत स्वादिष्ट बाजरा मिर्ची की रोटी खायी। हमें बताया गया कि होटल में अनेक जलपानगृह हैं। वे एक नवीन जलपानगृह इसकी छत पर भी खोलने जा रहे हैं।

हमने यहाँ राजपरिवार के विंटेज वाहनों का विशाल संग्रह देखा जो उम्मैद भवन के संग्रह से कहीं अधिक था।

सरदार सरकारी संग्रहालय

इस संग्रहालय का नामकरण महाराजा सरदार सिंग पर किया गया है। इसे औपचारिक रूप से सन् १९३६ में खोला गया था। यह संग्रहालय एक विस्तृत सार्वजनिक उम्मैद उद्यान के मध्य स्थित है। इस संग्रहालय में राजस्थान की संस्कृति का उत्सव मनाती अनेक कलाकृतियाँ एवं अवशेष संग्रहीत हैं।

महेश्वरी माता मूर्ति - सरदार संग्रहालय जोधपुर
महेश्वरी माता मूर्ति – सरदार संग्रहालय जोधपुर

संग्रहीत वस्तुओं में सर्वाधिक रोचक संग्रह हैं, वे मसौदे जिन पर १०वीं शताब्दी से राजपरिवार के सभी महानुभावों की जन्म कुण्डलियाँ हैं। साथ ही रागमाला चित्र, हिन्दू देवियों के चित्र, त्रिविम दर्शक, दक्षिण- पूर्वी एशिया से आयी व्यापारिक वस्तुएं, जोधपुर एवं आसपास का मानचित्र जो २०वीं शताब्दी का है, जैन चित्रावलियाँ, मूर्तियाँ आदि का भी प्रदर्शन किया गया है।

ब्रिटिश भारतीय सेना में अभियंता, स्थापत्यकार एवं लेखक कर्नल सर सैमुअल स्विंटन जैकब द्वारा लिखित पुस्तकों के कुछ पन्ने रखे हुए हैं। उनके द्वारा रूपांकित अनेक प्रतिष्ठित भवनों में बीकानेर का उम्मैद भवन महल भी सम्मिलित है। ऐसा उल्लेख किया गया है कि अपने समकालीन स्थापत्यकारों को राजस्थान के अप्रतिम संरचनाओं के विषय में बताने की ललक में उन्होंने एक विस्तृत पुस्तक की रचना की जिसका नाम है, ‘Jaypore Portfolio of Architectural Details’। १२ अध्यायों में संकलित इस पुस्तक में सटीक रेखाचित्रों का संकलन है जो भारतीय स्थापत्य शैली के विविध तत्वों के रूपांकन एवं निर्माण का विस्तृत वर्णन करता है। ये तत्व हैं,

  1. 1. मुंडेर एवं स्तंभ के नीचे स्थित चौकी (Copings and Plinths)
  2. 2. स्तंभ: शीर्ष एवं आधार
  3. 3. उत्कीर्णित द्वार
  4. 4. कोष्ठक (Brackets)
  5. 5. तोरण (Arches)
  6. 6. कठघरा (Balustrade)
  7. 7. आड़ी-तिरछी आकृतियाँ
  8. 8. भित्तियां एवं सतह
  9. 9. न्याधार एवं भित्तिचित्र (Dados and Frescos)
  10. 10. प्राचीर (Parapets)
  11. 11. छत्रियाँ एवं गुंबद
  12. 12. झरोखे एवं छज्जे की खिड़कियाँ

स्थापत्य कला से सम्बंधित उनकी पुस्तक से इतने जटिल रेखांकन प्रदर्शित थे कि मेरा सर चकराने लगा था। जब हम सूक्ष्म चित्रों अथवा उत्कृष्ट रूप से अलंकृत विशाल संरचनाओं को देखते हैं तो वे अपनी सुन्दरता से हमारा ध्यान अनायास ही आकर्षिक कर लेते हैं। किन्तु यह कल्पना करना भी कठिन हो जाता है कि प्राचीन काल में भारत में ऐसे अद्भुत कलाकार एवं चित्रकार थे जिन्होंने इन रूपांकनों को अपनी शिल्पकला से सजीव किया था। उनमें से अधिकाँश को जानना तो दूर, उनके नाम तक ज्ञात नहीं हैं। किन्तु उन सभी ने अपनी अप्रतिम धरोहर हमारे लिए छोड़ी है जिसे हमें संजो कर रखना है।

जोधपुर के आसपास के दर्शनीय स्थल

मंडोर उद्यान

जोधपुर से इसके एक उपनगर मंडोर तक जाने के लिए आधे घंटे का समय लगता है। ओसियाँ जाने के मार्ग में हमने मंडोर में अल्प विराम लिया तथा यहाँ स्थित मंडोर उद्यान में लगभग एक घंटा व्यतीत किया।

कई सदियों तक मंडोर जोधपुर के अनेक महाराजाओं की राजधानी रही है। राठौरों द्वारा अपनी राजधानी जोधपुर में स्थानांतरित करने के पश्चात भी मंडोर की महत्ता कम नहीं हुई। आगामी ४०० वर्षों तक मंडोर राजपरिवार से सदस्यों की समाधि स्थल रही है। उसके पश्चात जसवंत थड़ा का निर्माण हुआ। उद्यान में अनेक छत्रियाँ हैं। सभी छत्रियों के ऊपर शिखर हैं तथा सम्पूर्ण छत्रियों पर जटिल व सूक्ष्म उत्कीर्णन हैं। हमने यहाँ ऐसे विशाल एवं अलंकृत संरचनाओं की उपस्थिति की अपेक्षा नहीं की थी। इन संरचनाओं को देखते ही मेरा मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया। इसका कारण कदाचित यह हो सकता है कि वे देखने में मंदिर जैसे प्रतीत हो रहे थे।

मन्दौर के मंदिर
मन्दौर के मंदिर

सम्पूर्ण स्थल में नवीनीकरण का कार्य चल रहा था। जिसके चलते यहाँ की उर्जा बाधित हो रही है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। मेहरानगढ़ न्यास ने ‘Adopt a Heritage’ एक धरोहर को गोद लेने की इस परियोजना के अंतर्गत मंडोर उद्यान को गोद लिया है। हमारे पास समय की कमी थी जिसके कारण हम मंडोर महल, Hall of Heros, संग्रहालय तथा यहाँ स्थित अन्य मंदिरों के दर्शन नहीं पाए। आप उन सब का दर्शन अवश्य कीजिये क्योंकि वे अत्यंत दर्शनीय हैं।

मुझे बताया गया कि मंडोर के निकट स्थित बालसमंद सरोवर महल अत्यंत सुन्दर है जहाँ आप संध्या के समय कुछ क्षण अवश्य व्यतीत करें। इस महल का स्वामित्व जोधपुर के राजपरिवार के हाथों में है। मुझे यह भी बताया गया कि महल में स्वादिष्ट जोधपुरी भोजन परोसा जाता है। आप चाहें तो कुछ दिवस भी इस महल में व्यतीत कर सकते हैं।

ओसियाँ

जोधपुर से लगभग डेढ़ घंटे वाहन चलाकर हम ओसियाँ पहुंचे। यदि आपके राजस्थान भ्रमण की सूची में जैसलमेर सम्मिलित नहीं है तो आप ओसियाँ अवश्य जाएँ। यहाँ भी वैसे ही बालू के टीले हैं, यद्यपि जैसलमेर में स्थित टीलों से किंचित न्यून हैं।

सच्चियां माता मंदिर ओसियाँ
सच्चियां माता मंदिर ओसियाँ

ओसियाँ अपने सुन्दर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। ओसियाँ के परिदृश्यों की पृष्ठभूमि में सच्चियाय माता मंदिर अत्यंत आकर्षक लगता होगा किन्तु अब यहाँ दर्शनार्थियों एवं पर्यटकों की अत्यधिक भीड़ रहने लगी है। बड़ी संख्या में पधारे श्रद्धालुयों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मंदिर परिसर में अनेक परिवर्तन किये गए हैं।

ओसियाँ के रेट के टीले
ओसियाँ के रेट के टीले

ओसियाँ जाकर वहाँ भ्रमण करने के मेरे निश्चय के पीछे एक विशेष कारण था। मैं ओसियाँ की उस वायु में श्वास लेना चाहती थी जहाँ किसी काल में मेरे ओसवाल पूर्वजों ने जीवन व्यतीत किया था तथा यहाँ स्थित बालू के टीलों पर भ्रमण किया था। बालू के टीलों पर पर्यटकों की अत्यधिक भीड़ थी जो तीव्र गति के जीपों द्वारा इन टीलों पर चढ़-उतर रहे थे। आनंद उठा रहे थे। हम इन टीलों पर पदभ्रमण करना चाहते थे। इन जीपों से स्वयं को सुरक्षित रखते हुए हमने बालू के टीलों पर दीर्घ काल कर रोहण किया। अंततः हम एक शांत स्थान पर पहुंचे जहाँ बैठकर हमने सूर्यास्त के अप्रतिम दृश्यों का आनंद लिया।

यात्रा सुझाव

  • इस संस्करण में मैंने जिस दर्शनीय स्थलों का उल्लेख किया है, उन सभी का अवलोकन करने के लिए कम से कम ४ दिवस आवश्यक हैं। प्रथम दिवस जसवंत थड़ा, मेहरानगढ़ दुर्ग एवं नीली नगरी में पदभ्रमण के लिए आवश्यक हैं। दूसरे दिवस आप उम्मैद भवन महल, सरकारी संग्रहालय तथा उसके आसपास भ्रमण कर सकते हैं। तीसरा दिवस आप मंडोर उद्यान एवं आसपास के क्षेत्रों के लिए रख सकते हैं। यदि मंदिरों एवं भग्नावशेषों के अवलोकन में आपकी रूचि है तो चौथे दिवस आप ओसियाँ जा सकते हैं।
  • जोधपुर यात्रा नियोजित करने से पूर्व आप मेहरानगढ़ तथा आसपास के क्षेत्रों में आयोजित संगीत प्रदर्शनों एवं उत्सवों की पूर्व जानकारी प्राप्त कर लें। उसी के अनुसार अपनी यात्रा कार्यक्रम का नियोजन करें।
  • जोधपुर एक उष्णता प्रधान क्षेत्र है। शीत ऋतु में भी दिवस की ऊष्मा असहनीय हो सकती है। अतः अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रबंध अवश्य करें।
  • जोधपुर के प्राचीन क्षेत्र, नीली नगरी में भ्रमण करते समय किसी भी गंतव्य को ध्यान में ना रखें। इससे आप इस प्राचीन नगरी में पदभ्रमण का सही आनंद उठा सकते हैं। सम्पूर्ण प्राचीन क्षेत्रों में अनवरत जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है ताकि इस क्षेत्र को इसकी पूर्ववत भव्यता पुनः प्रदान कराई जा सके।

जोधपुर कैसे जाएँ तथा कहाँ ठहरें?

  • करणी भवन धरोहर होटल जोधपुर विमानतल से केवल ५ मिनट की दूरी पर स्थित है। किन्तु इस होटल में उद्वाहक अथवा लिफ्ट नहीं है। जोधपुर के इस भाग में उबर टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती हैं।
  • तूरजा का झालरा के निकट भी अनेक धरोहर विश्रामगृह हैं। आवश्यक हो तो लिफ्ट के विषय में पूर्व जानकारी प्राप्त कर लें अन्यथा भूतल पर स्थित कक्षों की मांग करें।
  • जोधपुर भ्रमण के लिए हमें ऑटोरिक्शा अधिक सुगम प्रतीत हुए। विशेषतः पुरातन नगर की संकरी गलियों में वे अत्यंत सुविधाजनक हैं। हमने २०० रुपये प्रति घंटे के दर से उन्हें भुगतान किया।
  • जोधपुर देश के अन्य क्षेत्रों से रेल तथा सड़क मार्गों द्वारा भी सुविधाजनक रूप से जुड़ा हुआ है।
  • जोधपुर एवं दिल्ली/मुंबई के मध्य अनेक विमान सेवायें उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त भी कई ऐसे प्रमुख नगर हैं जहाँ से आप विमान द्वारा सीधे जोधपुर आ सकते हैं।

यह खुशबू ललानी द्वारा प्रदत्त एक अतिथि संस्करण है।

खुशबू ललानी ने सॉफ्टवेर के क्षेत्र में १३ वर्षों तक कार्य किया है। मानवीय गतिविधियों के दीर्घकालिक परिणाम तथा उनसे सीख लेने की प्रणाली, इस विषयों में खुशबू की विशेष रूचि है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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