कार्तिक मास भगवान् विष्णु को सदा ही प्रिय है। कार्तिक सब मासों में उत्तम है। इस महीने में तैंतीसों देवता मनुष्य के सन्निकट हो जाते हैं तथा इस माह में किये हुए व्रत-स्नान, भोजन, व्रत, तिल, धेनु, सुवर्ण, रजत, भूमि, वस्त्र आदि के दानों को विधिपूर्वक ग्रहण करते हैं।
कार्तिक में जो भी तप किया जाता है, जो भी दान दिया जाता है, भगवान् विष्णु ने उसे अक्षय फल देने वाला बताया है। विष्णु-भक्त कार्तिक में गुरु की सेवा कर मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस समय अन्नदान का महत्व अधिक है। यद्यपि कन्यादान श्रेष्ठ बताया जाता है तथापि उससे श्रेष्ठ क्रमशः विद्यादान,गोदान तथा सर्वाधिक श्रेष्ठ अन्नदान है।
कार्तिक मास स्नान एवं स्नान के लिए श्रेष्ठ तीर्थ
हिन्दू पञ्चांग के अनुसार, कार्तिक का व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी तक अथवा आश्विन की पूर्णिमा से कार्तिक की पूर्णिमा तक की जाती है।
सूर्य की प्रीति के लिये जब तक सूर्यनारायण तुला राशि पर स्थित है तब तक व्रत किया जाता है।
भगवान् शंकर की प्रसन्नता के लिए आश्विन की पूर्णिमा से कार्तिक की पूर्णिमा तक व्रत किया जाता है।
भगवती दुर्गा की प्रसन्नता के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महारात्री तक व्रत किया जाता है।
गणेशजी की प्रसन्नता के लिए आश्विन कृष्ण चतुर्थी से कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक व्रत किया जाता है।
भगवान् जनार्दन की प्रसन्नता के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक नियमपूर्वक प्रातःस्नान का विधान है।
सूर्य रुपी नारायण को पूजनोपचार समर्पित किया जाता है।
पीपल भगवान् विष्णु तथा वट भगवान् शंकर का स्वरूप है। अतः इनकी यथोचित पूजा एवं सांगोपन करना चाहिये। शालग्राम शिला के चक्र में सदा भगवान् विष्णु का निवास है इसलिए सदा उसकी पूजा की जाती है। पलाश ब्रम्हाजी के अंश से उत्पन्न हुआ है। अतः स्कन्दपुराण में कार्तिक में पलाश के पत्तल में भोजन कर विष्णु लोक को प्राप्त करने का भी उल्लेख है।
जलाशय, कुँए, बावडी, पोखर, झरना व नदी में स्नान क्रमशः अधिक पुण्यवान होता जाता है। जहां दो अथवा तीन नदियों का संगम हो तो पुण्य की कोई सीमा नहीं।
सिन्धु, कृष्णा, वेणी(वेन्ना), यमुना, सरस्वती, गोदावरी, विपासा(व्यास), नर्मदा, तमसा(गंगा की सहनदी), माही, कावेरी, सरयू, क्षिप्रा, चर्मण्वती(चम्बल), बितस्ता(झेलम), वेदिका, शोणभद्र(सोन नद), वेत्रवती(बेतवा), अपराजिता, गण्डकी, गोमती, पूर्णा(गोदावरी की सहनदी), ब्रम्हपुत्र, मानसरोवर, वाग्मती(नेपाल), शतद्रु(सतलज) इत्यादि पवित्र नदियाँ हैं जिनमें स्नान अत्यंत पुण्यदायी माना गया है|
स्नान हेतु कोल्हापुर, उससे श्रेष्ठ क्रमशः विष्णुकांची, शिवकांची, वराह्क्षेत्र(उ.प्र.), चक्रकक्षेत्र(उड़ीशा), मुक्तिकक्षेत्र(कर्नाटक) हैं। इनसे श्रेष्ठ हैं क्रमशः अवन्तिपुरी(उज्जैन), बद्रिकाश्रम, अयोध्या, गंगाद्वार, कनखल(हरिद्वार) एवं मथुरा जहां भगवान् राधाकृष्ण स्नान करते थे। इनसे श्रेष्ठ द्वारका, तत्पश्चात भागीरथी, प्रयाग एवं काशी हैं।
कुछ रात्री शेष रहे तभी स्नान किया जाय तो वह उत्तम तथा सूर्योदयकाल का स्नान मध्यम श्रेणी का है। विलम्ब से किया गया स्नान कार्तिक स्नान में नहीं आता।
स्नान के विविध प्रकार
स्नान के चार प्रकार बतलाये गए हैं- वायव्य, वारुण, ब्राम्ह तथा दिव्य। गोधूलि में किया हुआ स्नान वाव्य कहलाता है। समुद्र आदि के जल में जो स्नान किया जाता है उसे वारुण कहते हैं। वेद-मन्त्रों के उच्चारपूर्वक किया गया स्नान ब्राम्ह तथा मेघों अथवा सूर्या की किरणों द्वारा जो जल शरीर पर गिरता है उसे दिव्य स्नान कहा जाता है। इन सब में वारुण स्नान सबसे उत्तम है।
कार्तिक मास में दीपदान एवं आकाशदीप की महिमा
कार्तिकमास में स्नान व दान आदि कर दीपदान करने का विधान है। पुराण के अनुसार यह समस्त उपद्रवों का नाश कर भगवान् विष्णु की प्रसन्नता बढ़ाता है। दीपदान के साथ आकाशदीप के दान का भी उल्लेख किया गया है। स्कन्दपुराण के अनुसार आकाशदीपदान करने वाला सुख-संपत्ति एवं मोक्ष प्राप्त करता है। अतः कार्तिक में स्नान-दान कर भगवान् विष्णु के मंदिर के कंगूरे पर एक मास तक दीपदान अवश्य करना चाहिए। एकादशी से, तुलाराशि के सूर्य से अथवा पूर्णिमा से लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णु का ध्यान कर आकाशदीप दान आरम्भ किया जाता है।
इस पुराण के अनुसार आकाश में दीपदान करते हैं उनके पूर्वज उत्तम गति को प्राप्त होते हैं। जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर तथा नींद लेने के स्थान पर दीप प्रज्वलित करता है वह लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। जो कीट एवं काँटों से भरी हुई दुर्गम एवं ऊंची-नीची भूमिपर दीपदान करता है उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं भोगना पड़ता। अनुमानतः इस प्रकार दीप एवं आकाशदीप दान द्वारा चारों ओर प्रकाश फैलाकर दूसरों के जीवन को प्रकाशमान करना चाहिए। इससे हमारे जीवन में भी प्रसन्नता एवं संतुष्टी का प्रादुर्भाव होता है।
कार्तिक मास में तुलसीवृक्ष के आरोपण व पूजन की महिमा
स्कन्दपुराण के अनुसार तुलसी पाप का नाश एवं पुण्य की वृद्धी करने वाली है। अतः घर घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए। जिस घर में तुलसी का बगीचा विद्यमान है वह तीर्थस्थल बन जाता है। कहा जाता है कि देवताओं एवं असुरों द्वारा समुद्र मंथन करने पर लक्ष्मी एवं अन्य के साथ अमृत भी प्राप्त हुआ था। अमृतकलश हाथ में लिए विष्णु के नेत्रों से हर्ष के अश्रु निकल पड़े तथा अमृत पर गिरे। तत्काल उस से तुलसी उत्पन्न हुई थी। ब्रम्हा आदि देवताओं ने लक्ष्मी एवं तुलसी को श्रीहरी को समर्पित किया। तब से दोनों भगवान् विष्णु को अत्यंत प्रियकर हैं। अतः इस समय लक्ष्मी एवं तुलसी दोनों को पूजने का विधान है।
त्रयोदशी से दीपावली तक के उत्सव
स्कन्दपुराण के अनुसार, हिन्दी पञ्चांग के कार्तिकी कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के प्रदोषकाल में घर के द्वार पर दीप जलाना शुभकारी होता है। कदाचित इसीलिए दीपावली के उत्सव में हम त्रयोदिशी के दिवस से ही द्वार पर दीये जलाना आरम्भ करते हैं। दीपावली से पूर्व चतुर्दशी को तेलमात्र में लक्ष्मी तथा जलमात्र में गंगा निवास करती है। अतः इस दिन प्रातःकाल तेल व उबटन लगाकर जल से स्नान बताया गया है। इसे अभ्यंगस्नान कहते हैं। इस दिन से लेकर तीन दिनों तक दीपोत्सव करना चाहिए।
पुराण के अनुसार वामन रूप में विष्णु ने राजा बलि द्वारा दी गयी भूमि को तीन दिनों में तीन पगों द्वारा नाप लिया था। भूमि दान में देने के उपरांत बलि ने विष्णु से वर माँगा कि आज से तीन दिवसों तक पृथ्वी पर उसका राज रहे। इन तीन दिनों तक जो पृथ्वी पर दीपदान करे उसके गृह में लक्ष्मी निवास करे। भगवान् ने बलि की इच्छा पूर्ण की। इसलिए इन तीन दिनों तक महोत्सव करना चाहिए।
तदनंतर अमावस्या को लक्ष्मीदेवी का पूजन कर दीपदान किया जाता है। अपनी शक्ति के अनुसार देवमन्दिर में दीपों का वृक्ष बनाना चाहिए। चौराहे पर, श्मशान भूमि में, नदी के किनारे, पर्वत पर, घरों में, वृक्षों की जड़ों के समीप, गोशालाओं में, चबूतरों पर तथा प्रत्येक गृह में दीप जलाकर रखना चाहिए। सर्वप्रथम ब्राम्हणों एवं भूखे मनुष्यों को भोजन कराकर पीछे स्वयं नूतन वस्त्र एवं आभूषण से विभूषित होकर भोजन करना चाहिये। जीवहिंसा, मदिरापान, अगम्यागमन, चोरी तथा विश्वासघात ये पांच नरक के द्वार कहे गये हैं एवं इनका सदैव त्याग करना चाहिए। तदनंतर आधी रात के समय नगर की शोभा देखने के लिए धीरे धीरे पैदल चलाना चाहिए तथा आनंदोत्सव देखकर घर लौटना चाहिए।
भाईदूज का उत्सव एवं बहन के घर भोजन का महत्त्व
दीपावली के अगले दिन अर्थात् बलिप्रतिपदा के दिवस बलिराज गौओं को भोजन अर्पित कर अलंकार से विभूषित किया जाता है। उनकी आरती उतारी जाती है।
अगला दिवस यम द्वितीय कहलाता है जिसे भाईदूज के रूप में मनाया जाता है। पूर्वकाल में हिंदी पञ्चांग के कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यमुनाजी ने भ्राता यम को अपने घर भोजन कराया था तथा उसका सत्कार किया था। तभी से भाईदूज की यह प्रथा आरम्भ हुई। इस दिन भाई अपनी बड़ी बहन के घर जाकर उसे प्रणाम कर उससे आशीर्वाद प्राप्त करता है। तत्पश्चात बहन के घर भोजन ग्रहण करता है। भोजन के पश्चात भाई बहन को वस्त्राभूषण देता है। इस प्रकार बहन के कुशलक्षेम की जानकारी उसके मायकेवालों तक पहुँचती थी। उन्हें यह संतुष्टि प्राप्त होती थी कि उनकी पुत्री अपने ससुराल में कुशल एवं संतुष्ट है।
आँवले के वृक्ष की उत्पत्ति एवं उसका माहात्म्य
स्कन्दपुराण के अनुसार वैकुण्ठ चतुर्दशी को आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि सम्पूर्ण विश्व जब जलमग्न हो गया था व सर्व चराचर प्राणी नष्ट हो गए थे, तब देवाधिदेव ब्रम्हा अविनाशी परब्रम्ह का जप करने लगे। तत्पश्चात भगवत दर्शन के अनुरागवश उनके नेत्रों से अश्रु निकल पड़े। प्रेम से परिपूर्ण अश्रु की बूँद जब पृथ्वी पर गिरी तब वहां से आँवले का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ।
सब वृक्षों में सर्वप्रथम उत्पन्न होने के कारण इसे आदिरोह भी कहा जाता है। इसके पश्चात ही ब्रम्हा ने समस्त प्रजा एवं देवताओं की सृष्टि की। इसीलिए समस्त कामनाओं की सिद्धि हेतु आँवले के वृक्ष का पूजन एवं इसके फल के सेवन का विधान है।
दूसरा भाग – सुसंगति और कुसंगति के पाप-पुण्य का लेखा जोखा
कार्तिक मास में मनाये जाने वाले मुख्य पर्व
धनतेरस
दिवाली
अन्नकूट
भाई दूज
तुलसी विवाह
देव दीपावली
पुष्कर मेला
आप कार्तिक मास में क्या क्या करते हैं, नीचे टिपण्णी में हमें बताइए!
मधुमिता जी,
कार्तिक मास और इस माह में मनाये जाने वाले लगभग सभी व्रत-त्योहारों का महत्व तथा इनके बारे में सुंदर,विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई । देश के हर हिस्से में अमुमन् सभी वर्ग के लोगों द्वारा मनायें जाने वाले ये त्योहार हमारे आपसी सौहार्द्ध के प्रतीक हैं ।धन्यवाद ।
आपके इस आलेख में हिन्दू संस्कारों के बारे में, कार्तिक माह का बखान, स्नान के प्रकार और कब और कैसे किया जाना, कार्तिक माह के त्योहारों का संक्षेप में वर्णन के अलावा भी काफी रोचक व जानने योग्य बातों का वर्णन सरल भाषा बताया है। साधुवाद।