काशी की नवरात्रि नवदुर्गा यात्रा

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नवदुर्गा यात्रा! स्कन्द पुराण के काशी खंड में लिखा है कि हमें नवरात्रि में नवदुर्गा यात्रा करनी चाहिए, विशेषतः शरद नवरात्रि में जो आश्विन मास में आती है। अतः, इस समय जब मैं काशी में थी, मैंने काशी की सम्पूर्ण पावन नगरी में जितने भी प्रमुख देवी मंदिर हैं, उनके दर्शन करने का निश्चय किया। ये सभी देवी मंदिर वस्तुतः, एक तीर्थयात्रा मार्ग पर स्थित हैं जिसके द्वारा अनेक तीर्थयात्री इन देवी मंदिरों के दर्शन करते हैं, विशेषतः नवरात्रि के अवसर पर।

काशी नवरात्रि नवदुर्गा यात्रा
काशी नवरात्रि नवदुर्गा यात्रा

शक्ति पर लिखे अनेक ग्रंथों में देवी के नौ रूपों का उल्लेख किया गया है जिनकी आराधना नवरात्रि के नौ दिवसों में की जाती है। देवी के नौ रूप वास्तव में एक विकास चक्र है, विशेषतः प्रकृति का जीवन चक्र है, जिसकी अभिव्यक्ति शक्ति के रूप में की जाती है। देवी के सभी नौ रूपों को समर्पित एक एक मंदिर है जो वाराणसी या काशी की गलियों में स्थित हैं। ये मंदिर घाट से अधिक दूर नहीं हैं। आप इन मंदिरों तक घाट से भी जा सकते हैं तथा नगर की ओर से भी जा सकते हैं।

काशी के नवदुर्गा मंदिर
काशी के नवदुर्गा मंदिर

आईये देवी के इन नौ रूपों के दर्शन करते हैं तथा इन अभिव्यक्तियों को समझने का प्रयास करते हैं।

शैलपुत्री – हिमालय की पुत्री

माँ दुर्गा का प्रथम रूप है, शैलपुत्री, जो हिमवान की पुत्री है। शैल का अर्थ पत्थर होता है जिसका अभिप्राय यह है कि देवी अब तक सक्रिय रूप में नहीं हैं। अभी ही उनका जन्म हुआ है। उनकी जीवन यात्रा अब से आरम्भ होती है। मूर्ति शास्त्र के अनुसार उन्हें एक हाथ में त्रिशूल एवं दूसरे हाथ में कमल लिए, वृषभ पर आरूढ़ दर्शाया जाता है।

वाराणसी का शैलपुत्री मंदिर
वाराणसी का शैलपुत्री मंदिर

वाराणसी में शैलपुत्री का मंदिर उत्तर दिशा में, मढ़िया घाट के निकट स्थित है। एक संकरी गली में स्थित इस मंदिर तक आपको कोई भी रिक्शावाला ले जा सकता है। मंदिर परिसर अपेक्षाकृत छोटा है। इसके भीतर अनेक मंदिर स्थित हैं। मैं इस मंदिर में प्रातः ५ बजे ही पहुँच गयी थी। तब तक पुजारीजी भी नहीं आये थे। कुछ समय पश्चात पुजारीजी आये तथा उन्होंने मंदिर के पट खोले। इस संकुल में अनेक छोटे छोटे प्राचीन शिव मंदिर हैं। साथ ही एक हनुमान मंदिर भी है।

मुख्य मंदिर के भीतर एक शिवलिंग है जिसके समक्ष, एक मंडप के नीचे, उन्हें निहारते नंदी विराजमान हैं। शिवलिंग के एक ओर माँ शैलपुत्री की प्रतिमा है। शैलपुत्री के रूप को अबाधित रूप से निहारने के लिए आपको दूसरे द्वार पर जाना होगा।

प्रातःकाल के समय माँ शैलपुत्री के मुख को छोड़कर उनके सम्पूर्ण शरीर को एक पीले वस्त्र से ढंका हुआ था। मंदिर में मेरे अतिरिक्त अन्य कोई भी दर्शनार्थी उपस्थित नहीं था। मैंने शान्ति से देवी के साथ कुछ अनमोल क्षण व्यतीत किये। ठण्ड के मौसम में प्रातः काल के समय पाए ये क्षण मेरे लिए वरदान तुल्य थे।

माँ शैलपुत्री का दर्शन नवरात्रि के प्रथम दिवस किया जाता है। मुझे बताया गया कि उस दिन मंदिर की ओर आती सभी गलियाँ भक्तों एवं दर्शनार्थियों से भर जाती हैं।

ब्रह्मचारिणी – देवी का तपस्विनी रूप

नवरात्रि के दूसरे दिवस देवी के दूसरे रूप की आराधना की जाती है जिसे ब्रह्मचारिणी कहते हैं। यह माँ पार्वती का तपस्विनी रूप है। पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोरतम तपस्या की थी। एक तपस्विनी के रूप में वे सादे वस्त्र धारण करती हैं तथा उनके एक हाथ में रुद्राक्ष की माला व दूसरे हाथ में जल से भरा कमण्डलु होता है।

काशी का ब्रह्मचारिणी मंदिर
काशी का ब्रह्मचारिणी मंदिर

काशी में माँ ब्रह्मचारिणी का मंदिर दुर्गा घाट अथवा ब्रह्म घाट के समीप स्थित है। आप इस मंदिर में घाट की ओर से आ सकते हैं अथवा नगरी की ओर से भी आ सकते हैं। इस मंदिर का परिसर भी अपेक्षाकृत छोटा है। इसकी ओर आती सभी गलियों को काशी के दृश्यों से चित्रित किया है।

मंदिर के बाहर संगमरमर के एक पटल पर ब्रह्मचारिणी मंत्र अभिलिखित है। माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति भी अन्यंत मोहक है। उन्हें सुन्दर वस्त्रों, पुष्पों एवं आभूषणों से अलंकृत किया गया है। सभी देवी मंदिरों के समान इस मंदिर में भी देवी की प्रतिमा के समक्ष शिवलिंग स्थापित है।

प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिवस ब्रह्मचारिणी देवी का उत्सव, अन्नकूट महोत्सव आयोजित किया जाता है। यदि आप देवी की पूजा-अर्चना-अनुष्ठान करवाना चाहते हैं अथवा देवी का श्रृंगार करना चाहते हैं तो आप पुजारी जी से संपर्क कर सकते हैं।

चंद्रघंटा देवी – मस्तक पर घंटी के आकार का चन्द्र

चंद्रघंटा देवी का तीसरा रूप है जिसकी आराधना नवरात्रि के तीसरे दिवस की जाती है। देवी के इस रूप की विशेषता है, उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचन्द्र। सिंह उनका वाहन है। वे अपनी दस भुजाओं में विभिन्न आयुध धारण करती हैं। साथ ही अपने भक्तों को अभय भी प्रदान करती हैं। देवी की इस मुद्रा में वे दुर्गा हैं जो अपने भक्तों की सुरक्षा एवं दुष्टों का नाश करने हेतु युद्ध के लिए उद्धत है।

देवी चंद्रघंटा मंदिर
देवी चंद्रघंटा मंदिर

काशी में माँ चंद्रघंटा का मंदिर चंदू नाई की गली में चौक के समीप स्थित है। यह गली के एक छोर पर स्थित एक छोटा मंदिर है। आप लोहे की एक जाली के मध्य से देवी के दर्शन कर सकते हैं।

मैंने मंदिर में माँ चंद्रघंटा की मुख्य मूर्ति के साथ उनके अन्य आठ रूपों की छोटी मूर्तियों के भी दर्शन किये। मंदिर के बाहर लगे सूचना पटल पर चंद्रघंटा मंदिर लिखा हुआ है। यह आपके द्वारा देखे जा रहे मंदिरों में सबसे छोटे मंदिरों में से एक है।

कूष्मांडा – ब्रह्माण्ड की रचयिता

नवरात्रि के चौथे दिवस दुर्गा के चौथे रूप की आराधना की जाती है। वे कूष्मांडा हैं जिसका अभिप्राय यह है कि उनसे ही सृष्टि उत्पन्न हुई है। उनकी आठ भुजाएं हैं जिनमें उन्होंने अनेक आयुध एवं पवित्र चिन्ह धारण किये हुए हैं। सिंह उनका वाहन है। वे अपनी स्वर्णिम आभा से दैदीप्यमान हैं। वे हिरण्यगर्भ का प्रतिनिधित्व करती हैं।

वाराणसी का सुप्रसिद्ध दुर्गा कुंड मंदिर
वाराणसी का सुप्रसिद्ध दुर्गा कुंड मंदिर

वाराणसी में उनका एक विशाल मंदिर है जो अत्यंत प्रसिद्ध है। यह मंदिर असी घाट के दक्षिणी ओर स्थित है। मंदिर के जल कुण्ड को दुर्गा कुण्ड कहते हैं। लाल रंग में रंगा यह मंदिर एक अत्यंत लोकप्रिय मंदिर है जहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है।

देवी भागवत पुराण में इस मंदिर की कथा है। उसमें अयोध्या के एक निर्वासित राजकुमार का उल्लेख किया गया है जिसने काशी की राजकुमारी से विवाह किया था। यही कथा मंदिर के बाहर स्थित सूचना पटल पर भी लिखी हुई है। एक अन्य कथा के अनुसार इसी स्थान पर देवी ने दुर्गासुर का वध किया था जिसके पश्चात उनका नाम दुर्गा पड़ा।

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यद्यपि नवरात्रि के चौथे दिवस इस मंदिर के दर्शन का प्रावधान किया गया है, तथापि यह मंदिर वर्ष भर भक्तों से भरा रहता है। नवरात्रि के नौ दिवस तो इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ रहती है। लम्बी पंक्ति में भक्तगण देवी के दर्शन के लिए आतुरता से प्रतीक्षा करते रहते हैं। नवरात्रि में ही चंडी होम का आयोजन किया जाता है। यह एक अत्यंत उर्जावान मंदिर है।

स्कंदमाता – कार्तिकेय की माता

माँ दुर्गा का पाँचवाँ रूप है, स्कंदमाता। वे भगवान स्कंद की माता हैं। भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। छः शीषों से युक्त भगवान स्कन्द देवताओं की सेना के सेनापति हैं। पोषणकर्ता माता के इस रूप में देवी की गोद में उनका पुत्र विराजमान है जिसे उन्होंने अपने एक हाथ से पकड़ा हुआ है। वे अपने वाहन सिंह पर आरूढ़ हैं। उनके दो हाथों में कमल के पुष्प हैं। चौथे हाथ में भक्तों की रक्षा करने के लिए आयुध पकड़ा हुआ है। उन्हें पद्मासना भी कहते हैं जो उनका ही एक अन्य रूप है। इसमें उन्हें कमल पर आसीन दिखाया जाता है।

काशी का स्कन्दमाता मंदिर - नवरात्रि नवदुर्गा का पांचवां स्वरुप
काशी का स्कन्दमाता मंदिर – नवरात्रि नवदुर्गा का पांचवां स्वरुप

वाराणसी में स्कंदमाता का मंदिर जैतपुरा क्षेत्र में जैतपुरा पोलिस स्टेशन के समीप स्थित है। यह जिस मंदिर परिसर के भीतर स्थित है, वह परिसर बागेश्वरी देवी मंदिर के नाम से अधिक लोकप्रिय है। इसे एक शक्ति से परिपूर्ण उर्जावान मंदिर माना जाता है। मुझे यहाँ अनेक शालेय विद्यार्थी दिखे जो शाला जाने से पूर्व मंदिर आकर देवी से आशीष ले रहे थे।

यह दो तल का मंदिर है। निचले तल पर बागेश्वरी देवी का मंदिर है जिसमें देवी अश्वारूढ़ हैं अर्थात घोड़े पर सवार हैं। इस मंदिर के पट वर्ष में केवल दो दिवस ही खुलते हैं। अन्य दिनों में भक्तगण बंद पट में ही प्रार्थना करते हैं।

स्कंदमाता का मंदिर दूसरे तल पर स्थित है। इस मंदिर में भक्तगण नियमित रूप से आते हैं तथा देवी की आराधना करते हैं। नवरात्रि के पांचवें दिवस स्कंदमाता का दर्शन महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर में पुरोहित एक स्त्री है।

कात्यायनी – शक्ति की आदिरूपा

कात्यायनी देवी का योद्धा रूप है जिसने महिषासुर का वध किया था। देवी के इस रूप की आराधना ऋषि कात्यायन ने की थी इसलिए उन्हें देवी कात्यायनी कहते हैं। काशी में उनसे सम्बंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है जिसमें विकट देवी के रूप में उनका चित्रण है। देवी ने अपने इस रूप में काशी के एक राजकुमार की सहायता की थी कि वह स्वर्ग का दर्शन कर वापिस आ जाए। नवरात्रि के छठें दिवस देवी के इस रूप की आराधना की जाती है।

कात्यायनी सिंह पर आरूढ़ एक चतुर्भुज देवी हैं जिन्होंने अपने दो हाथों में कमल एवं तलवार पकड़ी हुई है तथा अन्य दो हाथ भक्तों को आशीष एवं उनके संरक्षण की मुद्रा में हैं। देवी का यह रूप भक्तों के सभी प्रकार के कष्टों का निवारक माना जाता है।

काशी में उनका मंदिर सिंधिया घाट के समीप स्थित आत्मवीरेश्वर मंदिर परिसर के भीतर है। आप यहाँ चौक की ओर से आ सकते हैं अथवा घाट की ओर से भी आ सकते हैं। इस क्षेत्र को मंच मुद्रा महापीठ भी कहते हैं। यह एक ऐसा पावन क्षेत्र है जिसकी मान्यता है कि यहाँ आकर भक्तों के पुण्य कई गुना हो जाते हैं। नवरात्रि की नवदुर्गा यात्रा में छठें दिवस इस मंदिर की यात्रा करना बताया गया है।

कालरात्रि – महाकाली

कालरात्रि के कई अर्थ हो सकते हैं। इसका एक अर्थ जो मुझे समझ में आता है, वह है चक्रीय रात्रि जो दिन के पश्चात आती है। इसका अभिप्राय एक युग के अंत से है जब सम्पूर्ण सृष्टि लय होकर ब्रह्म में विलीन हो जाती है। इस रात्रि के पश्चात ही सृष्टि का नवीन चक्र आरंभ होता है। यह देवी का वह रूप है जिसके मुख से असुरों से युद्ध के समय श्वास छोड़ने मात्र से ही अग्नि का भभका उमड़ पड़ता था। अन्य देवियों के साथ कालरात्रि भी काशी का संरक्षण करती हैं।

काशी की कलिका देवी
काशी की कलिका देवी

रात्रि का प्रतिनिधित्व करती देवी कालरात्रि का रूप सांवला है। उनकी लाल लाल आँखें अंगारे उगलती हैं। चारों ओर बिखरे उनके खुले केश उनके रौद्र रूप को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। गले में वज्र की माला है। मुझ से ज्वाला उमड़ रही है। इस चतुर्भुज देवी के एक हाथ में चंद्रहास तलवार है तो दूसरे हाथ में वज्र है। उनका वाहन गधा है। यद्यपि यह उनका रौद्र रूप है, तथापि वे पावित्र्य का प्रसार करती हैं। इसीलिए उन्हें शुभकारी भी कहा जाता है। वे आपके सभी प्रकार के भय हर लेती हैं।

वाराणसी में कालरात्रि मंदिर कालिका घाट पर स्थित है जो विश्वनाथ गली के समान्तर है। घाट का नाम देवी के इसी स्वरूप पर पड़ा है। यह स्थान दशाश्वमेध घाट के समीप है जहाँ तक आप चलकर जा सकते हैं। कालरात्रि देवी की काली के रूप में भी आराधना की जाती है। उनके मंदिर को शक्तिपीठ का मान दिया जाता है। नवरात्रि की नवदुर्गा यात्रा में सातवें दिवस इस मंदिर का दर्शन किया जाता है।

महागौरी – गौरवर्णा महादेवी

महागौरी देवी पार्वती का सर्वाधिक कृपालु व दयालु रूप है। उनका वाहन, श्वेत वृषभ भी इसका द्योतक है। इस चतुर्भुजा रूप के तीन हाथों में वे त्रिशूल, डमरू एवं कमल धारण करती हैं।

काशी की अधिष्ठात्री देवी माँ अन्नपूर्णा हैं जो महागौरी का ही एक स्वरूप है। दुर्गा के इस आठवें रूप की आराधना नवरात्रि के आठवें दिवस की जाती है। काशी में उनका मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक ओर स्थित है। यह मंदिर काशी के सर्वाधिक लोकप्रिय मंदिरों में से एक है।

आदि अन्नपूर्णा मंदिर
आदि अन्नपूर्णा मंदिर

आप चाहे नवदुर्गा यात्रा कर रहे हों या अन्यथा काशी आये हों, इस अन्नपूर्णा मंदिर के दर्शन अवश्य करें। यह मंदिर सदा भक्तों से भरा रहता है। इस मंदिर के अन्य विशेष दिवस हैं, धनतेरस से दीपावली अमावस्या तक, जब उनकी स्वर्ण प्रतिमा दर्शनार्थियों द्वारा दर्शन के लिए मंदिर के उपरी तल में रखी जाती है।

चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी के दिन अर्थात् वसंत नवरात्रि के आठवें दिवस माँ अन्नपूर्ण की १०८ परिक्रमा करने की प्रथा है।

इस मंदिर के समीप एक छोटा आदि अन्नपूर्णा मंदिर है। यहाँ अधिक दर्शनार्थी नहीं आते हैं। इस मंदिर में देवी की मूर्ति अत्यंत विशेष है। उसे देखने के लिए आपको पुजारीजी से निवेदन करना पड़ेगा।

सिद्धिदात्री – आध्यात्मिक शक्तियों की प्रदाता

नवरात्रि के अंतिम दिवस अर्थात् नौवें दिवस देवी के नवें रूप सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। अपने इस रूप में देवी साधक को अनेक सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। पौराणिक ग्रंथों में आठ सिद्धियों का उल्लेख है जिन्हें अष्टसिद्धि कहा जाता है। देवी का यह रूप हमें यह स्मरण करता है कि जब हम किसी भी प्राप्ति की चरमसीमा पर पहुँचते है तब यह हमारा कर्त्तव्य होता है कि हम दूसरो को अपनी शक्तियों द्वारा सशक्त करें।

माँ सिद्धिदात्री
माँ सिद्धिदात्री

देवी अपने इस रूप में कमल पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में त्रिशूल, सुदर्शन चक्र, शंख व कमल हैं।

नवरात्रि की नवदुर्गा यात्रा के नवें दिवस सिद्धिदात्री देवी का दर्शन किया जाता है। काशी में उनका मंदिर सिद्धेश्वरी मोहल्ले की सिद्धमाता गली में स्थित है। इन सभी के नाम देवी के इस रूप से ही प्रेरित हैं। सिद्धिदात्री देवी के मंदिर परिसर में चंद्रेश्वर महादेव मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं चन्द्र ने की थी। इसका अर्थ है कि यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से भी अधिक पुरातन है। परिसर में एक प्राचीन कुआँ है जिसे चन्द्र कूप कहते हैं। इस कुँए का जल अब भी मंदिर में अभिषेक के लिए प्रयोग में लिया जाता है।

मंदिर के पुरोहित जी ने मुझे बताया कि यह एक सिद्धपीठ है। अनेक ऋषि अपने सूक्ष्म रूप में अब भी यहाँ ध्यानरत हैं। इतने प्रचीक काल से होते आ रहे अनुष्ठान, आराधना के कारण आप स्वयं भी यहाँ एक अनोखी उर्जा का अनुभव करेंगे।

सम्पूर्ण संस्करण पढ़ने के पश्चात एक तथ्य पर आपका ध्यान अवश्य गया होगा कि देवी का प्रत्येक स्वरूप किसी ना किसी रूप में कमल से संबंधित है। देवी या तो कमल पर आसीन है अथवा उनके हाथ में कमल है। कमल शुद्धता व पवित्रता का चिन्ह है। कीचड़ में खिलकर भी इसकी पवित्रता पर किंचित भी आंच नहीं आती है। उसके ऊपर किसी भी प्रकार की अशुद्धता ठहर नहीं पाती है।

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काशी में नवरात्रि नवदुर्गा यात्रा के लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव:

  • काशी स्थित देवी के इन नौ रूपों के नौ मंदिरों के दर्शन आप एक ही दिन में पूर्ण कर सकते हैं यदि आपके साथ कोई स्थानिक गाइड हो।
  • इनमें से अनेक मंदिर संकरी गलियों में स्थित हैं। यदि आप बिना गाइड के भ्रमण कर रहे हैं तो इन्हें ढूंडने में किंचित समय लग सकता है। कुछ गाइड अपनी दुपहिया वाहन पर आपको मंदिर तक ले जाने के लिए भी उपलब्ध रहते हैं। आप सायकल रिक्शा से भी जा सकते हैं।
  • अधिकतर मंदिर प्रातः एवं सायं के समय खुलते हैं।
  • मंदिर के पुजारी जिज्ञासाओं को शांत करने में हिचकिचाते नहीं हैं। आप उनसे अपने प्रश्न पूछ सकते हैं।
  • मंदिर में किसी भी प्रकार की दान-दक्षिणा की आस नहीं रहती है। आप अपनी स्वेच्छा से दान कर सकते हैं।

मैंने इन मंदिरों में प्रातःकाल के समय दर्शन किये थे। उस समय स्थानिक काशीवासियों को मंदिर में पूजा-अर्चना करते देखना मुझे अत्यंत आनंददायी प्रतीत हुआ।

इनमें से अधिकाँश मंदिरों में आप अनेक साधकों को ध्यान-साधना करते हुए पायेंगे।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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