श्रीनगर के हाउसबोट अर्थात् सरोवर पर तैरते घर! क्या इनका अनुभव प्राप्त किये बिना कश्मीर अथवा श्रीनगर की यात्रा पूर्ण मानी जा सकती है? कदाचित नहीं! वस्तुतः, कश्मीर यात्रा के लिए आये पर्यटकों का सम्पूर्ण पर्यटन हाउसबोट के इस अनोखे अनुभव के चारों ओर ही केन्द्रित रहता है।
हमने गुलमर्ग में तीन दिवस अप्रतिम परिदृश्यों का आनंद उठाते व्यतीत किये जिसमें गुलमर्ग का प्रसिद्ध गोंडोला केबल कार भ्रमण भी सम्मिलित था। वहां से हम हाउसबोट में रहने का आनंद लेने श्रीनगर पहुंचे। आरम्भ में मुझे किंचित निराशा हुई क्योंकि हम प्रसिद्ध डल सरोवर पर नहीं, अपितु निगीन या नागिन सरोवर पर हाउसबोट में ठहरने जा रहे थे। मैंने कश्मीर में किसी नागिन सरोवर के विषय में कभी सुना नहीं था। श्रीनगर के नाम से सदा डल सरोवर का नाम ही जुड़ा होता है।
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श्रीनगर के आसपास, विशेषतः डल सरोवर के आसपास विचरण करने के पश्चात् मुझे प्रसन्नता हुई कि हम नागिन सरोवर पर ठहरे थे। नागिन सरोवर पर डल सरोवर जैसी भीड़भाड़ नहीं थी जिसके कारण हम अपने चारों ओर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध प्रकृति का मनःपूर्वक आनंद उठा सके। हाउसबोट में एक सम्पूर्ण दिवस व्यतीत करना स्वयं में एक अद्वितीय अनुभव था। उसके द्वारा हम श्रीनगर के जीवन एवं वाणिज्य को तथा इसके चारों ओर केन्द्रित कश्मीर पर्यटन की मनोवृत्ति को जानने का प्रयास कर सके।
श्रीनगर के शिकारों का अनुभव
एक रंगबिरंगा शिकारा मुझे व मेरे सामान को हाउसबोट तक लेकर गया। हाउसबोट में प्रवेश करते ही मेरा चाय के साथ स्वागत किया गया। तभी मेरी दृष्टी मेरे सभी मित्रों पर पड़ी जो हाउसबोट के भीतर एक विक्रेता को घेरकर बैठे थे। वह विक्रेता उन्हें कागज की लीद से निर्मित रंगबिरंगी कलाकृतियाँ दिखा रहा था तथा उनसे क्रय करने का प्रलोभन दे रहा था। उसने रंगबिरंगे संदूक जिन पर हाथों से चित्रकारी की गयी थी, घंटियाँ, कंगन, चौकोर थाल तथा ऐसी ही अनेक छोटी छोटी वस्तुओं की लगभग प्रदर्शनी सजा रखी थी। हम उससे सही भाव के लिए तोल-मोल कर ही रहे थे कि वहां कश्मीरी आभूषणों की विक्री करने एक अन्य विक्रेता भी पहुँच गया। उसने भी अपनी पेटी खोलकर हमें चाँदी के आभूषण दिखाना आरम्भ कर दिया। एक प्रकार से संदूकों से बाजार बाहर आ गया था।
शिकारे की सवारी
समय हो चुका था कि हम एक शिकारे पर शांति से बैठकर नौका विहार करें तथा सरोवर में सूर्यास्त का आनंद लें। हम पुनः एक रंगबिरंगे शिकारे पर बैठ गए तथा हमारा नाविक शनैः शनैः उसे जल के भीतर ले जाने लगा। शिकारा अत्यंत संकरी नौका होती है। हम में से अधिकाँश लोग सरोवर की गहराई से भयभीत थे तथा इस संकरी नौका के उलटने के भय से आशंकित थे। वहीं मुझे सरोवर के शीत जल की चिंता अधिक थी। हमारा नाविक शिकारे को खेते हुए सरोवर के किनारे खड़ी हाउसबोटों को पार कर आगे ले गया। सभी हाउसबोटों के नाम अत्यंत निराले थे। उनमें से कई हाउसबोट ऐसे थे जिन पर आधुनिक होटल श्रंखलाओं के नाम थे। कुछ हाउसबोट धरोहर-होटलों की श्रंखला का स्वामित्व दर्शा रहे थे तो कुछ पर अंकित नामों से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे कश्मीर के स्थानीय होटलों के हाउसबोट हैं। सभी हाउसबोटों में एक समानता थी कि वे सभी काष्ठ की बनी थीं तथा उन पर काष्ठ का प्राकृतिक रंग था। बाह्य गलियारे अत्यंत उत्कीर्णित काष्ठ फलकों से निर्मित थे।
हमें एक दृश्य ने अत्यंत अचंभित किया कि प्रत्येक हाउसबोट का एक छोर भूमि से भलीभांति सम्बद्ध था। किन्तु बोट संचालक सभी पर्यटकों को शिकारे द्वारा बोट तक ऐसे ले जाते हैं मानो ये हाउसबोट सरोवर के मध्य खड़े हों।
बॉलीवुड के हिन्दी चित्रपटों ने शिकारों को अमर कर दिया है। अनेक चित्रपटों में नायक व नायिका को प्रेम में सराबोर शिकारे की सवारी करते दर्शाया गया है मानो प्रेम दर्शाने के लिए शिकारे सर्वोत्तम स्थान हैं। सरोवर में इतनी बड़ी संख्या में हाउसबोट हैं तथा उससे भी बड़ी संख्या में शिकारों में पर्यटक यहाँ से वहां सैर करते रहते हैं कि मुझे नहीं लगता प्रेमी जोड़े अथवा मधुचंद्र मनाते नवीन वर-वधु इन शिकारों में बैठकर एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रदर्शित कर पाते होंगे। कुछ क्षणों के लिए आप यह अनुभव भी कर लें कि आप प्रकृति के मध्य उसकी सुन्दरता का आनंद ले रहे हैं कि अचानक एक अन्य शिकारा आपके समीप आकर रुक जाता है तथा उसमें बैठा नाविक अपनी विक्री क्षमता आप पर जांचने लगता है। सम्पूर्ण नौकाविहार में यह अनुभव अनवरत जारी रहता है। जैसे ही एक विक्रेता-शिकारा किसी पर्यटक तक पहुंचता है, अन्य विक्रेता भी अपने अपने शिकारे लेकर वहां आ जाते हैं। यह सरोवर पूर्णतः एक बाजार प्रतीत होता है। इन सब के पश्चात भी इन शिकारों में बैठकर जल में नौकाविहार करना एक स्वप्निल व भावना से ओतप्रोत करने वाला अनुभव है।
खरीददारी
आप इन शिकारे-विक्रेताओं से चाँदी के आभूषण, कागज की लीद से निर्मित वस्तुएं, कश्मीरी केसर, फिरन इत्यादि के साथ काहवा चाय का भी आनंद ले सकते हैं। यदि आप खरीददारी की इच्छा नहीं रखते हैं अथवा आप अपना बटुआ हाउसबोट में रख आये हैं तो कैमरे व कश्मीरी वेशभूषा लेकर छायाचित्र खींचने वाले आपको घेर लेंगे। आप अपने परिधान पर ही कश्मीरी वेशभूषा धारण कर सकते हैं तथा एक कश्मीरी के समान अपना छायाचित्र खिंचवा सकते हैं। जी हां, शीतल जल पर तैरती इस संकरी सी नौका पर ही आप सज्ज हो सकते हैं। आप ‘कश्मीर की कली’ अथवा ‘कश्मीर का पुष्प’ बनकर अपना छायाचित्र खिंचवा सकते हैं। यदि आप इतना परिश्रम ना करना चाहे तो आप जैसे हैं, वैसे ही वे आपके कैमरे से ही आपका छायाचित्र ले सकते हैं जिसके लिए वे छोटी रकम लेते हैं। यह एक उत्तम अवसर होता है क्योंकि जल के मध्य तैरते शिकारे में बैठकर आप स्वयं का छायाचित्र तो नहीं ले सकते हैं ना!
तैरता भाजी उद्यान
आपका शिकारा खिवैय्या आपको तैरते हुए भाजी उद्यान की ओर अवश्य संकेत करेगा। कश्मीरी लोग बड़ी मात्रा में कमल ककड़ी खाते हैं जो कमल के पौधे का तना होता है। वह जल में ही उगता है। इसके अतिरिक्त भी वे अनेक ऐसी भाजियां खाते हैं जो जल में ही उगते हैं। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? क्या आपने इससे पूर्व कहीं जल में तैरते भाजी के उद्यान देखे हैं? यदि हाँ, तो टिप्पणी खंड द्वारा मुझे अवश्य बताएं।
आप चाहे तट पर बैठे हों, हाउसबोट पर बैठे हों अथवा किसी शिकारे की सवारी कर रहे हों, आप जल पर तैरते अन्य शिकारों पर कहीं से भी दृष्टी डालें, वे अत्यंत ही मनभावन दृश्य प्रस्तुत करते हैं। वे ऐसे दृश्य होते हैं जिन्हें देखने तथा जिन्हें अपने कैमरे द्वारा अमर बनाने की इच्छा सभी पर्यटन छायाचित्रकारों में होती ही है।
श्रीनगर में हाउसबोटों का इतिहास
सदा से ऐसा माना जाता रहा है कि कश्मीर घाटी में हाउसबोटों की संकल्पना को अंग्रेज लेकर आये थे। किन्तु मुझे हमारे पर्यटन संयोजक Mascot Houseboats के आयोजक यासीन तुमन से ज्ञात हुआ कि १३वीं सदी के प्राचीन कश्मीरी साहित्यों में कश्मीर घाटियों के सरोवरों में तैरती नौकाओं का उल्लेख किया गया है। अतः कश्मीर के लिए नौकाओं का निर्माण नवीन कृति नहीं है। किन्तु उस काल में नौकाओं का प्रयोग पर्यटकों अथवा यात्रियों के लिए कम, स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए अधिक किया जाता था।
यदि इन्टरनेट की मानें तो जब अंग्रेज कश्मीर घाटी में आये थे, उन्हें भूमि क्रय करने की अनुमति नहीं थी। इसके विकल्प के रूप में उन्होंने नौकाओं का निर्माण किया। उन नौकाओं को उन्होंने विस्तृत सरोवरों में उतारा तथा उनके भीतर ही निवास करने लगे। कालांतर में श्रीनगर के सरोवरों के तट पर खडीं ये भव्य नौकाएं कश्मीर पर्यटन का मुख्य आकर्षण बन गयीं।
आज यदि आप शंकराचार्य मंदिर से डल झील या सरोवर को देखें तो वह आपको नौकाओं से भरी एक नगरी के समान दिखाई देगी। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि किस प्रकार कश्मीर का वाणिज्य इन्ही नौकाओं के चारों ओर केन्द्रित रहता है तथा किस प्रकार इन्ही नौकाओं के चारों ओर अनंत स्मृतियों की रचना होती है।
हाउसबोट क्या है?
डल सरोवर तथा नागिन सरोवर जैसे जलस्त्रोतों के तट पर एक पंक्ति में खडीं श्रीनगर की हाउसबोटें सरोवरों के चारों ओर स्थित किसी गाँव के समान प्रतीत होती हैं। साधारणतः प्रत्येक हाउसबोट के भीतर कुछ कक्ष होते हैं जिनमें प्रत्येक कक्ष के भीतर एक प्रसाधन गृह भी होता है। साथ ही एक भोजन कक्ष होता है तथा एक आमकक्ष होता है जहां सभी अतिथि साथ बैठकर वार्तालाप कर सकते हैं। सभी कक्षों में तापमान सुखद बनाने के लिए साधन होते हैं। झरोखों से आप सरोवर के शीतल जल को देख सकते हैं। नौका के बाहरी ओर खुला गलियारा होता है जहां बैठकर आप दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। यह गलियारा नौका का सर्वोत्तम भाग होता है।
मेरे मानसपटल पर अब भी उस समय की सुखदाई स्मृतियाँ स्पष्ट हैं जब प्रातः शीघ्र उठकर मैं उस गलियारे में बैठ गयी थी। मेरे एक हाथ में गर्म चाय थी तथा दूसरे हाथ में किन्डल। मेरे समक्ष नागिन सरोवर में छाई धुंद की परतें छंटने लगी थीं तथा प्रातःकालीन दृश्य शनैः शनैः स्पष्ट होने लगा था। उगते हुए सूर्य की किरणें सरोवर के जल को सहलाते हुए उसे निद्रा से जगाने लगी थीं। कुछ ही समय में जल पर सुन्दर पुष्पों से लदे शिकारे दिखने लगे जो उन की विक्री करने के लिए जल में चक्कर काटने लगे थे। बाहरी दृश्यों का आनंद लेते हुए मैं गर्म चाय पी रही थी तथा साथ ही किंडल में पढ़ भी रही थी।
उत्कृष्ट उत्कीर्णित काष्ठ नौकाएं
हमारे हाउसबोट पास एक अतिभव्य नौका थी जिस पर उत्कृष्ट रूप से नक्काशी की हुई थी। हम उसे देखने उसके भीतर गए। नौका के भीतर की गयी नक्काशियों द्वारा कश्मीर का जीवन तथा उसकी संस्कृति को प्रदर्शित किया गया था। श्रीनगर के हाउसबोटों की लकड़ियों पर की गयी नक्काशी में प्रमुख रूप से चिनार के वृक्ष अवश्य होते हैं। कश्मीर के लिए चिनार केवल एक वृक्ष नहीं है, अपितु वह स्वयं में कश्मीर का इतिहास समेटे हुए है। वह कश्मीर के जीवन का अभिन्न अंग है।
इस भव्य नौका के भीतर स्थित सभी प्रसाधन गृह अतिआधुनिक थे। सभी कक्षों के भीतर वातानुकूलन सुविधाएं थीं जबकि वहां केवल जुलाई मास में वातावरण किंचित उष्ण होता है। कक्षों में रखीं सभी काष्ठ साज-सज्जा की वस्तुएं, मेज, बैठक आदि कश्मीरी कारीगरों की उत्कृष्ट कला प्रदर्शित कर रही थीं। मुझे यह जानकार अत्यंत दुःख हुआ कि अब ऐसे कारीगर कश्मीर में कम ही होते हैं। कश्मीर में लकड़ी पर उत्तम उत्कीर्णन करने वाले उत्कृष्ट कारीगर अब गिने-चुने ही रह गए हैं। कदाचित अब उन्हें इस क्षेत्र में पर्याप्त कार्य एवं पारिश्रमिक उपलब्ध नहीं हो पाता है। इस भव्य नौका के भीतर प्रत्येक सजावट उत्कीर्णित लकड़ी द्वारा की गयी थी।
हमने कुछ अन्य नौकाएं भी देखीं। हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि उत्कीर्णन व सजावट की मात्रा एवं गुणवत्ता नौकाओं के स्तर पर निर्भर करती हैं। कुछ नौकाओं के भीतर लकड़ी के पटलों पर की गयी नक्काशी एक प्रकार से कश्मीर एवं उसके वनस्पति व जीवों पर की गयी विस्तृत वृत्तचित्र के समान थी।
हाउसबोट का निर्माण
मैं यात्रा संस्करण लिखने वाली एक ट्रेवल ब्लॉगर हूँ। कश्मीर के हाउसबोट में भी मैं एक ट्रेवल ब्लॉगर के रूप में ही आयी थी। इसका एक लाभ यह हुआ कि हाउसबोट के मालिक ने ना केवल हमें उसकी अन्य नौकाएं दिखाईं, अपितु उसने हमें हाउसबोट के निर्माण पर आधारित एक चलचित्र भी दिखाया। मुझे वह विडियो अत्यंत भाया। अन्यथा हम जैसे लोग, जिनका सामान्य जीवन में कभी नौकाओं से सामना नहीं होता है, नहीं समझ सकते कि कम से कम ५० से ६० वर्षों तक अखंड रूप से साथ निभाने वाली तथा असंख्य पर्यटकों को आनंदित करने वाली इन विशाल नौकाओं का निर्माण कितना कठिन कार्य है। कैसे लकड़ी के लम्बे फलकों से नौकाओं के ऐसे खोल बनाए जाते हैं जो आसानी से जल पर तैर सकें, कैसे प्रत्येक पट्टिका को हाथों से आकार दिया जाता है, कैसे उन्हें आपस में जोड़कर एक विशाल नौका बनाई जाती है तथा कैसे उन्हें अंतर्बाह्य सज्ज किया जाता है आदि।
गत कुछ वर्षों में कश्मीर में अस्थिरता व अशांति पूर्ण वातावरण के कारण वहां पर्यटकों की संख्या लगभग नगण्य हो गयी थी जिससे हाउसबोट मालिकों का व्यवसाय चौपट हो गया था। अब कश्मीर की स्थिति में कुछ सुधार आते ही सभी हाउसबोट मालिकों ने एकत्र आकर इस व्यवसाय को पुनर्जीवित करने का निश्चय किया है। उन्होंने इसमें ठहरने के लिए निर्धारित शुल्कों में भरी कमी की है तथा अब इन नौकाओं को आम पर्यटकों के लिए भी खोल दिया है। अन्यथा इससे पूर्व वे केवल संपन्न तथा धनाड्य पर्यटकों को ही हाउसबोट की सेवायें मुहैय्या कराते थे।
श्रीनगर में हम जहां भी गए, सब पिछले वर्ष आई विनाशकारी बाढ़ की ही चर्चा कर रहे थे। किन्तु उससे इन हाउसबोटों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। क्योंकि जलस्तर बढ़ने के पश्चात भी नौकाएं उन पर तैरती रहीं।
हाउसबोट के लिए व्यवहारिक सुझाव
- जम्मू कश्मीर पर्यटन के वेबस्थल पर श्रीनगर के सभी सरोवरों पर तैरती हाउसबोटों का उनकी श्रेणियों के अनुसार सूचीबद्ध उल्लेख किया गया है। साथ ही उनके मालिकों के नाम तथा उन नौकाओं के स्थापना वर्षों का भी उल्लेख है। आप जब भी कश्मीर की यात्रा का नियोजन करें तथा हाउसबोट में ठहरना चाहें तो आप अपनी नौका के विषय में सभी आवश्यक जानकारी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं।
- आप वहां कम से कम एक सूर्योदय एवं एक सूर्यास्त का दृश्य अवश्य देखें एवं उनका आनंद उठायें।
- कम से कम एक बार शिकारे की सवारी अवश्य करें।
- शिकारे पर विक्रेताओं से कुछ भी क्रय करने से पूर्व आवश्यक मोल-भाव अवश्य कर लें।
कश्मीर के हाउसबोट में ठहरना स्वयं में एक अनोखा अनुभव है जिसे आप जीवन भर विस्मृत नहीं कर सकते।