केरल भारत का सर्वाधिक प्रिय पर्यटन स्थल है। केरल के निवासी इसे भगवान का अपना देश कहते हैं। देशी एवं विदेशी पर्यटकों में यह स्वप्निल पर्यटन स्थल के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। आप इतने मनमोहक राज्य में भ्रमण के लिए जाएँ तथा साथ में वहाँ की स्मृति को सदैव के लिए सँजोने के लिए कोई केरल के उपहार ना लाएं, यह केरल के प्रति अन्याय होगा।
मैंने अब तक केरल राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के अनेक भ्रमण किए हैं। प्रत्येक भ्रमण के अंत में मेरे संग केरल की अनेक स्मृतियाँ वापिस आयीं हैं। कुछ मेरे मानसपटल को शोभित कर रही हैं तो कुछ मेरे एवं मेरे सगे-संबंधियों के निवासस्थान को। उन्ही अनेक भ्रमणों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर मैंने केरल की स्मृति चिन्हों पर इस संस्करण की रचना की है। किन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि मुझे केरल से संबंधित सर्व स्मारिकाओं को लाने का अवसर प्राप्त हो गया है। केरल की अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जो मेरी ‘वहाँ से लाने वाली वस्तुओं की सूची’ में अभी भी शेष हैं।
केरल से कौन सी स्मारिकाएं क्रय करें? – एक दिशा निर्देश
केरल के मसाले
केरल मसालों के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। आप जब भी केरल का भ्रमण करेंगे तो किसी न किसी मसालों के बाग का दर्शन अवश्य करेंगे। आपको काली मिर्च की बेलें, इलायची के पौधे इत्यादि देखने का सुअवसर प्राप्त होगा। आपने भारत के इतिहास में भी पढ़ा होगा कि कैसे विश्व भर के यात्री समुद्र मार्ग से केरल के तट पर इन मसालों की चाह में ही उतरे थे। अतः केरल से कोई विशेष वस्तु अपने साथ लानी हो तो मसालों से बेहतर क्या होगा।
मसाले हमारे भोजन का अभिन्न अंग हैं। वह यदि उसके स्त्रोत स्थल से प्राप्त किया जाए तो इनकी गुणवत्ता अतुल्य हो जाती है। अतः आप बिना हिचक इन ताजे मसालों को अपने प्रयोग के लिए तथा सगे-संबंधियों के लिए ले सकते हैं।
मसालों में आप काली मिर्च, सफेद मिर्च, इलायची, लौंग, दालचीनी, जायफल इत्यादि ले सकते हैं। हो सकता है आपको वनीला की भी अच्छी फलियाँ मिल जाएंगी।
चाय मसाले तथा अन्य मिश्रण
यदि आप इन मूल मसालों से विशेष मिश्रण चूर्ण तैयार करते हैं तो मेरा सुझाव यही होगा कि आप पृथक पृथक मसाले क्रय कर उनसे मिश्रण स्वयं बनाएं। यदि आप बने बनाए समालों के मिश्रण क्रय करना चाहते हैं तो भी ले सकते हैं। चाय मसालों जैसे मसालों की छोटी छोटी शीशियाँ अत्यंत उपयोगी हैं। मसाले की गंध लिए इन अर्को की दो से तीन बूंदे चाय में डालकर आप इच्छित गंध व स्वाद प्राप्त कर सकते हैं। पर्यटकों में अदरक, तुलसी, पुदीना इत्यादि चाय मसालों के अर्क अत्यंत प्रसिद्ध हैं।
भोजन से प्रेम करने वालों के लिए केरल की स्मारिकाएं
केले के कुरकुरे कतले
जब आप केरल भ्रमण के लिए आएंगे, मेरा विश्वास है कि तब आप केले के कुरकुरे चिप्स अथवा कतलों को चबाते हुए ही पर्यटन स्थलों का आनंद लेंगे। क्यों ना हो? ये चिप्स केरल में सर्वत्र उपलब्ध हैं, वह भी ताजे ताजे कढ़ाई से निकले हुए। वे अनेक स्वादों में भी उपलब्ध हैं। आप उन्हे वहाँ भी खा सकते हैं तथा अपने साथ भी जितना चाहें ला सकते हैं।
आपके नगर में निवास करते केरल के किसी प्रवासी को यदि आपने ये चिप्स लाकर दिए तो वह आपको आशीषों से सराबोर कर देगा।
कसावा (टैपियोका) के चिप्स
कसावा (टैपियोका) का सम्पूर्ण भारत में प्रयोग किया जाता है। आप सोच रहे होंगे कि यह मैं क्या कह रही हूँ। जी हाँ, आपने साबूदाना का नाम अवश्य सुना होगा। साबूदाना टैपियोका से ही बनाया जाता है। किन्तु इसके मूल से चिप्स केवल दक्षिण भारत में, विशेषतः केरल में बनाए जाते हैं। ये पतले कुरकुरे चिप्स किंचित कड़क होते हैं। इनका स्वयं का स्वाद अधिक नहीं होता। इन्हे नमक व मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।
केले के चिप्स के समान आप ये चिप्स भी अपने साथ ले जा सकते हैं तथा परिजनों का मन जीत सकते हैं।
हलवा
केरल का यह सुप्रसिद्ध हलवा अनेक रंगों एवं स्वादों में आता है। कुछ हल्के रंगों के तथा कुछ गहरे रंगों के होते हैं। यह हलवा मेवों से भरा जेली के समान दिखता है। गहरे रंग के हलवे में गुड का प्रयोग किया जाता है तथा हल्के रंगों के हलवे में शक्कर का। अन्य सामग्री हैं चावल का आटा, नारियल, सूखे मेवे, इलायची इत्यादि। घी तथा सूखे मेवे से भरपूर यह हलवा किंचित गरिष्ट हो सकता है किन्तु इसका स्वाद अत्यंत सुंदर होता है।
आप हलवे के विभिन्न प्रकारों का स्वाद चखें तथा जो पसंद आ जाए वह अपने साथ अवश्य लाएं। इस सुझाव के लिए आप हमें धन्यवाद अवश्य देंगें।
केरल की चाय तथा कॉफी
आप जब भी मुन्नार जाएंगे तथा वहाँ के सुंदर चाय के बागानों के बीच पैदल सैर करेंगे तो आप वहाँ के बागानों से स्थानीय चाय अवश्य क्रय करेंगे। मुन्नार की स्मारिका के लिए इससे अधिक उपयुक्त अन्य कोई वस्तु नहीं हो सकती। मेरा यह सुझाव है कि आप अपने मुन्नार भ्रमण के समय चाय के बागानों के साथ चाय के किसी कारखाने का अवलोकन अवश्य करें। जिस चाय को आप दिन में दो बार पीते हैं, वह कारखाने में कैसे तैयार होती है, यह देखना अत्यंत रोमांचक होता है। वे आपको चाय प्रोद्योगिकी के विभिन्न चरणों का विवरण देंगे तथा भिन्न भिन्न प्रकार के चाय की भी जानकारी देंगे। इस जानकारी तथा आपके स्वाद के आधार पर आप चाय की पत्ती का चयन कर सकते हैं।
यदि आप दक्षिण भारत के नागरिक नहीं हैं तो आप यहाँ से फ़िल्टर कॉफी भी क्रय कर सकते हैं। अन्यथा दक्षिण भारत में विभिन्न प्रकार की कॉफी के लिए भिन्न भिन्न स्थल हैं।
कलाकृतियों के रूप में स्मारिकाएं
भारत की दो विशेष शास्त्रीय नृत्य कला शैलियों तथा अनेक प्रकार की लोक कला शैलियों का संबंध केरल से है। आप केरल के किसी भी भाग में भ्रमण करें आपको इनकी झलक किसी ना किसी रूप में अवश्य दृष्टिगोचर हो जाएगी।
कथकली मुखौटे
कथकली मूलतः केरल की शास्त्रीय नृत्य शैली है जो अपने विस्तृत साज-श्रंगार तथा रंग-बिरंगे मुखौटों के लिए प्रसिद्ध है। नर्तकों को अपने अलंकरण तथा विस्तृत वेशभूषा में सज्ज होने के लिए घंटों व्यतीत करने पड़ते हैं। तब जाकर वे मंच पर प्रदर्शन करने के लिए उतरते हैं जहाँ वे अत्यंत भारी वेशभूषा व मुखौटे धारण कर नृत्य करते हैं।
यदि आपको उनके साज-सज्जा कक्ष में जाने का अवसर प्राप्त हो तो आप उनके इस कष्टदायी अलंकरण को देख सकते हैं। तब आप उनके नृत्य की अधिक न्यायपूर्वक सराहना कर सकते हैं। आप नर्तकों के नृत्य एवं उनकी वेशभूषा से इतने प्रभावित हो जाएंगे कि उनकी स्मृति में एक कथकली मुखौटा अवश्य ले लेंगे। कथकली मुखौटे भिन्न भिन्न वस्तुओं से तथा भिन्न भिन्न आकार के बनाए जाते हैं। मैंने अपने लिए एक मुखौटा नारियल की जटा द्वारा बनवाया था। छोटे से छोटा मुखौटा यदि लें तो वह चाबी के छल्ले के रूप में होता है।
नेट्टिपट्टम
केरल हाथियों अथवा गजों का प्रदेश है। प्राचीन काल में मानव एवं गज आपस में शांतिपूर्वक जीवन जीते थे। ये गज मंदिरों के अभिन्न अंग होते थे। मंदिरों के उत्सवों में इन्हे विस्तृत रूप से अलंकृत किया जाता था। उनके मस्तक पर जो विस्तृत अलंकरण होता था उसे नेट्टिपट्टम कहा जाता है। उसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित किया जाता था। संग्रहालय में आप इस प्रकार के प्राचीन नेट्टिपट्टम देख सकते हैं।
इन्ही नेट्टिपट्टम के लघु अवतार केरल भ्रमण पर आए पर्यटकों के प्रिय स्मारिकाएं हैं। आप प्रत्येक स्मारिका दुकान में सुव्यवस्थित प्रकार से प्रदर्शित इन नेट्टिपट्टम की अनेक पंक्तियाँ देखेंगे। पारंपरिक रूप से ये नेट्टिपट्टम सुनहरे रंग के होते हैं जिन्हे लाल रंग से बांधा जाता है। इनके निचले भाग पर घंटियाँ लटकती हैं।
कई पर्यटक यही नेट्टिपट्टम केरल की स्मृति के रूप में ले जाते हैं तथा अपने भवन एवं गाड़ियों को सजाते हैं। यदि आप इस समय केरल भ्रमण की योजना नहीं बना रहे हैं तो आप इन्हे अमेजॉन से भी ले सकते हैं।
नेट्टूर पेट्टी
नेट्टूर पेट्टी एक पारंपरिक जवाहरात की पेटी है। लकड़ी की बनी इस पेटी पर पीतल द्वारा नक्काशी की जाती है। कुछ पेटियों पर चित्रकारी भी देखने को मिलती है। नेट्टूर पेट्टी अन्य जवाहरात पेटियों से अपने आकार के कारण भिन्न प्रतीत होती है। इसका आधार आयताकार होता है किन्तु इसका ऊपरी भाग लगभग शुंडाकार होता है। इस के ऊपर पीतल की एक कड़ी होती है। इसका सम्पूर्ण आकार मुझे किसी मंदिर के लघु प्रतिरूप के समान प्रतीत होता है।
नेट्टूर पेट्टी को अपने घर पर रखना हो तो इसके लिए विशेष स्थान का प्रयोजन करना होगा। मेरी इच्छा है कि मैं भी एक नेट्टूर पेट्टी अपने घर पर रखूँ जिसमें मैं अपने लधु कलाकृतियों को सहेज कर रखूँ तथा अपने परिजनों को दिखाऊँ।
नेट्टूर पेट्टी के कुछ सुंदर संग्रह इस वेबस्थल पर देखें।
भित्तिचित्र
केरल के मंदिरों में एक विशेष प्रकार की चित्रकला शैली दृष्टिगोचर होती है। उनमें नारंगी रंग के अनेक उतार-चढ़ाव होते हैं। इससे पूर्व मैंने इस प्रकार के भित्तिचित्र त्रिवेंद्रम के पद्मनाभस्वामी मंदिर तथा कलदी के मंदिरों में देखा था।
आप केरल की स्मारिका के रूप में इन भित्तिचित्रों के प्रतिरूप तथा उसी शैली में रचित अन्य आधुनिक चित्र ले सकते हैं। यहाँ एक प्रदर्शनी से मैंने लकड़ी के कुछ छोटे आभूषण खरीदे थे जिन पर इसी केरल भित्तिचित्र शैली में चित्रकारी की हुई थी। मैं जब भी उन्हे धारण करती हूँ, वे मुझे केरल के मंदिरों में पहुँचने का आभास प्रदान करते हैं। इसीलिए ये आभूषण मुझे अत्यंत प्रिय हैं। मुझे प्रसन्नता है कि केरल में अब भी अनेक कारीगर हैं जो इस कला शैली को जीवंत व सम्पन्न रखे हुए हैं।
लकड़ी की नौकाएं
संकरी लंबी सर्प नौकाएं केरल की विशेष पहचान हैं। प्रत्येक वर्ष अनेक सर्प नौकाएं वार्षिक सर्प-नौका दौड़ में भाग लेती हैं। शेष समय ये केरल के अप्रवाही जल में लंगर डाले रहती हैं। आप जब अप्रवाही जल में नौका विहार के लिए जाएंगे तब आप ऐसी कई नौकाओं को देख सकते हैं। अनेक उच्च-स्तरीय अतिथिगृह एवं रिज़ॉर्ट ऐसी नौकाओं को केरल की परंपरा प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग करते हैं। हाँ, इतनी बड़ी नौका तो आप क्रय कर अपने घर पर नहीं रख सकते। किन्तु आप इनके लघु प्रतिरूप अवश्य ले जा सकते हैं।
मैंने भी नौका का एक प्रतिरूप यहाँ से लिया था जिसे मैंने अपने घर में प्रदर्शित कर रखा हुआ है। इसके भीतर मैंने केरल के ही खड़े मसाले रखे हैं। दोनों ही केरल की विशेष सौगात हैं।
नारियल के कवच से बनी कलाकृतियाँ
यूँ तो नारियल के कवच से बनी कलाकृतियाँ आप भारत के सभी तटीय क्षेत्रों में देखेंगे, किन्तु प्रत्येक क्षेत्र की कलाकृतियों तथा इन की कलाशैली में भिन्नता होती है। केरल से आप नारियल के कवच से बनी अनेक प्रकार की कलाकृतियाँ तथा पात्र स्मारिका के रूप में ले सकते हैं। पर्यावरण के अनुकूल यह एक उत्तम उपहार होगा।
सीपियों एवं शंखों से बनी कलाकृतियाँ
प्रत्येक छोटे-बड़े स्मारिका दुकानों में आप सीपियों एवं शंखों से बनी अनेक कलाकृतियाँ देखेंगे। कारीगर सीपियों तथा शंखों का प्रयोग कर अत्यंत सुंदर कलाकृतियाँ एवं पात्र बनाते हैं। एक ओर सीपियों एवं शंखों को समुद्र तटों से अन्यत्र ले जाना पर्यावरण के लिए हानिकारक है, वहीं दूसरी ओर उनसे निर्मित ये कलाकृतियाँ अनेक छोटे कलाकारों एवं व्यापारियों के जीवन-यापन का साधन भी हैं। अतः इन कलाकृतियों के क्रय का अंतिम निर्णय आपको ही लेना होगा।
पारंपरिक कसवू साड़ियाँ
यदि आप केरल के किसी माता एवं बहन का स्मरण करें तो आप मोतिया रंग की काठ वाली साड़ी धारण की हुई किसी भद्र स्त्री की छवि देखेंगे। ये साड़ियाँ केरल की पारंपरिक कसवू साड़ियाँ हैं। ये साड़ियाँ दो प्रकार की होती हैं। पहली सामान्य ५ गज की साड़ी होती है। कसवू साड़ी का दूसरा प्रकार है मुन्डु, जो तीन टुकड़ों में धारण किया जाता है। यहाँ आप कसवू साड़ियों के कुछ अप्रतिम नमूने देख सकते हैं।
अधिकतर कसवू साड़ियाँ हथकरघे पर बुनी जाती है। कुछ साड़ियों में शुद्ध सोने की काठ होती है। यदि क्षमता हो तो ये साड़ी एक अतुल्य उपहार सिद्ध हो सकती है। अन्य कसवू साड़ियाँ भिन्न भिन्न प्रकार की तथा विस्तृत मूल्य सीमा में उपलब्ध हैं। पत्नी, माता एवं बहनों के लिए यह सर्वोत्तम उपहार है। आधुनिकता ने यहाँ भी प्रवेश करना आरंभ कर दिया है। अब आप इन साड़ियों में बूटियों तथा काठ व पल्लू में रंगों का समावेश भी देख सकते हैं। किन्तु प्राधान्यता सदैव सुनहरे एवं मोतिया रंग की ही होती है।
कसवू में पुरुषों के लिए भी मुन्डु उपलब्ध है जो दो भागों में होता है।
आरमल कन्नाडी
आपने कभी चिंतन किया है कि कांच के दर्पणों के आविष्कार से पूर्व लोग अपनी छवि कहाँ देखते थे? इसका उत्तर है धातुई दर्पण। हाथों से बने ये दर्पण ना केवल छवि देखने में सहायक होते थे, अपितु अप्रतिम कलाशैली के द्योतक भी होते थे। केरल में अरणमूल नामक एक नगर है जहाँ इस प्रकार के धातुई दर्पण बनाए जाते हैं। स्थानीय मान्यता है कि वैदिक काल से ऐसे धातुई दर्पणों का प्रयोग किया जा रहा है। कुछ किवदंतियों में इन्हे पार्वती का दर्पण भी कहा गया है।
यह उत्तम चमकदार दर्पण जिस धातु से निर्मित किया जाता है वह एक मिश्र धातु है। दर्पण को धातु के भिन्न भिन्न आकार के चौखट में मड़ा जाता है तथा उन्हे सुंदरता से उत्कीर्णित किया जाता है।
आरमल कन्नाडी केरल की अप्रतिम स्मारिका है किन्तु यह एक मितव्ययी वस्तु नहीं है। इसका मूल्य ३०००/- रुपयों से आरंभ होता है। इनके कुछ नमूने आप अमेजॉन में देख सकते हैं।
जूट के उत्पाद
जूट की वस्तुएं बनाना केरल का एक विशाल लघु-उद्योग है। इनमें नरियाल के ऊपर की जटाओं का प्रयोग किया जाता है। जब आप अप्रवाही जल में नौका विहार पर जाएंगे, तब आप अनेक लोगों को इस उद्योग में संलग्न पाएंगे। नारियल की जटाओं को अप्रवाही जल में कई दिनों तक भिगोकर सुखाया जाता है। इससे वे जूट तैयार करते हैं। इस जूट से वे रस्सी, चटायी, टोकरी, थैली, गृहसज्जा की वस्तुएं तथा कलाकृतियाँ बनाते हैं। ये केरल की अप्रतिम स्मारिकाएं हैं।
केरल के उपहार अथवा स्मारिकाओं की सूची तैयार करते समय यदि मुझसे कोई वस्तु छूट गई हो तो इससे मुझे अवश्य अवगत कराएं। अपनी प्रतिक्रिया निम्न टिप्पणी खंड में लिखें। प्रतीक्षारत।