कल्पा का किन्नर कैलाश – यहां सृष्टि भी स्तब्ध हो जाए

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हिमाचल में सेबों की घाटी में रहते हुए अब हमें कुछ दिन हो चुके थे। अपने चारों ओर सेबों से लदे वृक्षों को देखने में हम अभ्यस्त हो गए थे। हिमाच्छादित पर्वत शिखरों से घिरे रहने में आनंद आने लगा था। घाटियों के बीच ये पर्वत मालाएं मानो हमें कम्बल ओढाकर हमें बाहरी वातावरण से बचा रही हों।

किन्नर कैलाश पर्वत इन सब ने मेरे हृदय एवं मन मस्तिष्क में ऐसी छाप छोड़ी कि मैं जब भी पर्वतों को देखती हूँ, अपने ही अंतर्मन में खोने लग जाती हूँ। इन पर्वतों ने मुझसे मेरा परिचय कुछ इस प्रकार कराया जिस प्रकार अब तक किसी स्थान अथवा वस्तु ने नहीं कराया था। वैसे भी, हिमालयों को सदा से ही आध्यात्मिकता से जोड़ा जाता रहा है। मेरे अद्वितीय अनुभव से एकरूप होने के लिए आप भी अपनी आगामी यात्रा शीघ्रातिशीघ्र नियोजित कीजिये एवं कल्पा के किन्नर कैलाश में आ जाइए।

हिमाचल प्रदेश में कल्पा के दर्शनीय स्थल

अनेक लोगों का यह स्वप्न होता है कि अपने जीवन के कुछ दिन यहाँ अवश्य बिताएं। मेरा यह संस्मरण पढ़कर आप भी उन में सम्मिलित हुए बिना नहीं रह पायेंगे। मैं जब भी यहाँ की सर्वव्यापी हरी टोपियाँ धारण किये किन्नौर वासियों को देखती हूँ तो मेरे मस्तिष्क में एक ही विचार कौंधता है। ‘ये किन्नौरी कितने भाग्यशाली हैं!’ इसमें तनिक भी अचरज नहीं कि इस भूमि को देव भूमि कहा जाता है। किन्नौर वासियों को देखकर भी ऐसा ही प्रतीत होता है कि वे साधारण मानवों से कुछ अधिक हैं तथा दैवी अस्तित्व के निकट हैं। उनके सादे मुखड़े पर उपस्थित अबोध निश्छल हंसी इसी का प्रमाण है। यही देखने के लिए आईये किन्नर कैलाश चलते हैं।

कल्पा से किन्नर कैलाश पर्वत श्रंखला का परिदृश्य
कल्पा से किन्नर कैलाश पर्वत श्रंखला का परिदृश्य

कल्पा पहुँचने के लिए हमारा वाहन सतलज नदी के किनारे से आगे बढ़ रहा था। मुझे स्मरण नहीं कि मैंने इससे पूर्व किसी नदी का इतना रौद्र रूप देखा होगा जो मैंने इस घाटी में सतलज का देखा। सतलज नदी के इसी शक्तिशाली बहाव को देखते हुए इस पर अनेक प्रमुख बिजली उत्पादन संयंत्र नियोजित किये गए हैं। सतलज नदी के कोलाहल के समक्ष आसपास के सभी ध्वनि एवं शोरगुल लगभग शांत प्रतीत हो रहे थे। कल्पा तक पहुँचने के लिए आपको रेकोंग पेओ को पार करना पड़ता है जो किन्नौर का जिला मुख्यालय तो है ही, साथ ही एक छोटा किन्तु जीवंत गाँव है। हमें बताया गया कि यह सूखे मेवों एवं किन्नौरी शाल क्रय का सर्वोत्तम स्थान है।

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किन्नर कैलाश

१३ किलोमीटर की तीव्र चढ़ाई चढ़ने के पश्चात् हमारी गाड़ी हिमाचल के एक ठेठ गाँव, कल्पा पहुंची। कल्पा हिमालय के किन्नर कैलाश पर्वतमाला के अप्रतिम परिदृश्यों के लिए प्रसिद्ध है, विशेषतः शिवलिंग के समान दिखाई देने वाले किन्नर कैलाश के लिए, जिसका रंग सूर्य की किरणों के कारण दिवस भर परिवर्तित होता रहता है। आरम्भ में कल्पा को चीनी कहा जाता था। यदि आप स्थानीय वार्तालापों को ध्यान से सुनेंगे तो आप जानेंगे कि स्थानिक इसे अब भी चीनी कहते हैं।

किन्नर कैलाश की त्रिकोणीय शिखाएं
किन्नर कैलाश की त्रिकोणीय शिखाएं

१९६२ के भारत-चीन युद्ध के पश्चात इसका नाम परिवर्तित कर कल्पा रखा गया था क्योंकि इस नाम से चीन के निवासियों को भी पुकारा जाता था। कल्पा हिन्दू एवं बौद्ध संस्कृतियों का विशिष्ठ सम्मिश्रण है। शिमला की ओर के क्षेत्रों में हिन्दू धर्म की प्रधानता है, वहीं स्पीति की ओर बौद्ध धर्म का प्राधान्यता से पालन किया जाता है। मध्य में होने के कारण कल्पा में दोनों धर्मों का सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है।

हिमालय का किन्नर कैलाश पर्वतमाला

कल्पा में हम शाम्बा ला होटल में ठहरे थे। होटल में हमारे कक्ष के छज्जे से सम्पूर्ण किन्नर कैलाश पर्वतमाला के हमें सीधे दर्शन हो रहे थे। हम वहां जिस दिन थे, मेघों ने भी उसी दिन कल्पा के दर्शन की योजना बनाई थी। मेघों एवं पर्वत शिखरों के मध्य अठखेलियों के हम प्रत्यक्षदर्शी थे। जब भी कुछ क्षणों के लिए मेघों के झुण्ड विरले होकर हमें सूर्य की किरणों अथवा पर्वत शिखरों का दर्शन करा देते, हम आनंद से झूम उठते थे। संध्या का अधिकतम समय हमने मेघों एवं पर्वतों के मध्य आंखमिचौली के खेल का आनंद लेने में व्यतीत कर दिया। साथ में गर्म चाय भी थी जो प्रथम चुस्की तक भी गर्म नहीं रह पा रही थी।

मेघों से घिरी पर्वत शिखाएं
मेघों से घिरी पर्वत शिखाएं

यहाँ के पर्वत शिखरों की एक अनूठी विशेषता ने मेरा ध्यान खींचा। सभी पर्वत शिखरों की चोटियां तीखी त्रिकोणीय थीं। ठीक उसी प्रकार जैसे पाठशालाओं में विद्यार्थी अपनी पेंसिल को छीलकर नुकीला करते हैं। एक अथवा दो नहीं, अपितु सभी शिखरों की चोटियाँ मानो समभुज त्रिकोण थीं। उन पर्वत मालाओं से बहती हिमनदियां गहरे धूसर रंग के पर्वतों पर श्वेत शिराओं सी प्रतीत हो रही थीं।

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सूर्य प्रकाश विलुप्त होते तक हम उन शिखरों को निहारते रहे। जब कुछ भी देख पाना दूभर हो गया, हम मन मसोसकर विश्रामगृह के पुस्तकालय में चले गए। गर्म गर्म सूप की चुस्कियां लेते लेते हम विश्रामगृह के युवा स्वामी, पृथ्वी नेगी से बतियाने लगे। वहां के पुस्तकालय ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया। हमारे चारों ओर पुस्तकों की भरमार, पृष्ठभूमि में बजता भक्ति संगीत तथा समक्ष बैठे नेगीजी के मुख से निकलती इस कस्बे की कथाएं। उन्होंने हमें लार्ड डलहौसी के बंगले के विषय में बताया जहां उनकी रोगग्रस्त पत्नी ने स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया था। हमने उन तिब्बती प्रवासियों के विषय में जाना जो दलाई लामा के साथ भारत आये तथा यहीं बस गए। उन्ही तिब्बतियों ने यहाँ बौद्ध प्रार्थनास्थलों का निर्माण किया, स्थानिकों से विवाह किया तथा लगभग दो जीवन चक्रों में यहाँ की मुख्य धारा से एकरूप हो गए।

‘सुईसाइड’ स्थल

प्रातः पृथ्वी जी मुझे कल्पा के दर्शन के लिए ले गए। सर्वप्रथम वे मुझे एक लोकप्रिय अवलोकन स्थल ले गए जिसे ‘सुईसाइड’ स्थल भी कहते हैं। मेरे समक्ष ९० अंश तीव्र गहरी खाई थी जो किसी को भी तुरंत मुक्ति दिला सकती थी। सौभाग्य से अब तक उस स्थान ने किसी के भी प्राण नहीं लिए हैं। ना ही किसी ने यहाँ आत्महत्या करने का प्रयास किया है। कदाचित खाई की तीव्र गहराई के कारण उसका यह नामकरण हुआ है। अथवा किसी भी अन्य पर्वतीय पर्यटन स्थल की परिपाटी का यहाँ भी पालन किया जा रहा है जिसके अंतर्गत साधारणतः प्रत्येक पर्वतीय पर्यटन क्षेत्र पर एक आत्महत्या स्थल, एक सूर्यास्त दर्शन स्थल तथा एक प्रेमी-प्रेमिका स्थल होते हैं। कुछ भी हो, वह स्थान अत्यंत भयावह था। जब पृथ्वीजी ने मुझे उसके समीप जाकर खड़े होने के लिए कहा ताकि वह मेरा चित्र ले सके, मेरा कलेजा मुंह को आ गया तथा हृदय धौंकनी के समान धड़कने लगा। ऐसे चित्र की मुझे तनिक भी आस नहीं रहेगी।

सुसाइड पॉइंट का परिदृश्य
सुसाइड पॉइंट का परिदृश्य

यह स्थान कितना भी भयावह क्यों ना हो, किन्तु यहाँ से चारों ओर का परिदृश्य अप्रतिम प्रतीत होता है। सम्पूर्ण घाटी में खड़ी चट्टानों के किनारों पर अकस्मात् ही गाँव दृष्टिगोचर हो जाते हैं। परिदृश्यों को भेदते वे अचानक ही किसी कुकुरमुत्ते के समान प्रकट होते हैं जो इस परिदृश्य का भाग होते हुए भी मुख्य धारा से कटे हुए प्रतीत होते हैं। उन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है कि उन तक पहुँचने का कोई मार्ग होगा भी? मुझे बताया गया कि यहाँ के अधिकाँश गाँव किसी ना किसी जल स्त्रोत के समीप बसे हुए हैं जो उन्हें लगभग आत्मनिर्भर बनाते हैं। फिर भी, मेरा अनुमान है कि मार्ग तो अवश्य ही होगा।

बौद्ध प्रार्थना स्थल

कल्पा का बौद्ध मंदिर
कल्पा का बौद्ध मंदिर

इसके पश्चात पृथ्विजी मुझे उनके पिता द्वारा निर्मित एक बौद्ध मंदिर में ले गए जो कल्पा कस्बे के मध्य स्थित है। इस मंदिर से व्यक्तिगत रूप से जुड़े होने के कारण मुझे उनके मध्य एक भावनात्मक उर्जा का आभास हुआ। प्रांगण में स्थित बौद्ध स्मारक अथवा चोरटेन को अनदेखा करें तो यह बौद्ध मंदिर हिमाचल के किसी भी अन्य मंदिर के समान प्रतीत होता है। मंदिर के समीप ही एक प्राथमिक पाठशाला है जिसकी विशेषता यह है कि यह पाठशाला भारत का सर्वप्रथम मतदान केंद्र है। इसी स्थान पर भारत के सर्वप्रथम मतदाता श्री श्याम सरन नेगी ने मतदान किया था। उस समय से पिछले चुनावों तक, प्रत्येक चुनाव में उनके अनवरत मतदान को चुनाव कार्यालय चाय व समोसे बाँटते हुए एक उत्सव के रूप में मनाती है।

नाग नागिन मंदिर

कल्पा कस्बे में एक नाग-नागिन मंदिर है जो इस नगरी के हृदयस्थल पर विराजमान है। पाषाण व काष्ठ में निर्मित इस मंदिर में अनेक प्रकार के सर्प उत्कीर्णित हैं जिनमें अधिकतर सर्प स्तंभों पर कुण्डली मारे हुए हैं। मंदिर का उत्कीर्णित स्वर्णिम द्वार अत्यंत भव्य है जो उसके पाषाणी संरचना में सूर्य के समान दमकता है। यद्यपि मंदिर से चारों ओर का सुन्दर दृश्य दिखाई पड़ता है तथापि, जैसा कि मैंने पूर्व में भी कहा है, जिस दिन मैं यहाँ थी, उसी दिन मेघों को भी इस स्थान के दर्शन की सूझी थी।

नाग नागिनी मंदिर का प्रवेश द्वार
नाग नागिनी मंदिर का प्रवेश द्वार

मंदिर के चारों ओर पदचाप करते समय मेरी दृष्टी पत्थर एवं लकड़ी से निर्मित कुछ प्राचीन घरों पर पड़ी। लकड़ी का प्रत्येक भाग उत्कीर्णित था। उन घरों की पुरातनता में ही उनकी सुन्दरता सन्निहित थी। समय के प्रत्येक कालखंड ने मानो उस पर रहस्य की परते चढ़ाई थी। अब इस प्रकार के घरों का रखरखाव जितना कठिन होता जा रहा है, उतना ही कठिन उनमें निवास करना होता है। चारों ओर घरों के प्रकार में निरंतर परिवर्तन मेरा ध्यान खींच रही थी।

पारंपरिक पहाड़ी घर
पारंपरिक पहाड़ी घर

मेरे शहरी रूचि के अनुसार यहाँ के कंक्रीट घरों में रत्ती भर भी सुन्दरता नहीं है किन्तु फिर भी ये तेजी से यहाँ के ठेठ पत्थर-काष्ठ के तिरछी छत वाले वैशिष्ठ्य पूर्ण घरों का स्थान ले रहे हैं। यहाँ के गाँववासियों का ऐसा मानना है कि यह आधुनिकता में प्रवेश करने का संकेत है।

रोघी का चंडिका देवी मंदिर

कुछ दूर स्थित रोघी गाँव में चंडिका देवी का प्रसिद्ध मंदिर है जो इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी है। यह मंदिर भी लकड़ी एवं पत्थरों से निर्मित है। देवी पार्वती के चंडिका अवतार को समर्पित यह मंदिर भक्तों से भरा रहता है।

रोघी का श्री चंडिका देवी मंदिर
रोघी का श्री चंडिका देवी मंदिर

हरे किन्नौरी टोपी के बिना इस मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। आप प्रवेश द्वार पर यह टोपी किराये से ले सकते हैं। मंदिर की सूचना पट्टिका के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि पूर्वकाल में यह क्षेत्र ‘तपोभूमि’ थी जहां महिषासुर तथा बाणासुर जैसे अनेक राक्षसों ने भी तपस्या की थी। देवी ने चंडिका अवतार धारण कर इन असुरों का संहार किया था तथा इस भूमि को उनके अत्याचार से मुक्त किया था। तब से चंडिका देवी इस क्षेत्र की संरक्षिका देवी हैं। वास्तव में, इस मंदिर को चंडिका का गढ़ भी कहा जाता है।

चंडिका देवी मंदिर का स्थापत्य एवं वास्तुकला

इस मंदिर की वास्तुकला विशेष है। स्लेट पत्थर में निर्मित इसका शिखर अथवा अधिसंरचना उलटे शंकु के आकार का है। यहाँ दो मंदिर हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे सराहन में भीमकाली मन्दिर में हैं, एक नवीन तथा एक प्राचीन।

कल्पा के मंदिरों का दृश्य
कल्पा के मंदिरों का दृश्य

यहाँ नवीन एवं प्राचीन मंदिर प्रत्यक्ष रूप से अपनी आयु दर्शाते हैं। ध्यान से देखने पर आपको मंदिर की छत एवं भित्तियों पर पशुओं के अनेक सींग लटकते दृष्टिगोचर होंगे। मेरे अनुमान से ये उन पशुओं के सींग हैं जिन्हें कदाचित यहाँ बलि स्वरूप अर्पित किया गया होगा क्योंकि देवी मंदिरों में बहुधा यह प्रथा प्रचलित थी। आँगन में लकड़ी का एक सिंहासन है जिस पर हिम तेंदुए के शीष सहित उसका चर्म बिछाया हुआ है। किसी हिम तेंदुए को इतने समीप से देखने का अवसर सर्वप्रथम प्राप्त हुआ था, भले ही वह अब निर्जीव हो।

चंडिका देवी मंदिर के निकट एक और प्राचीन मंदिर
चंडिका देवी मंदिर के निकट एक और प्राचीन मंदिर

चंडिका देवी मंदिर के समक्ष एक अन्य मंदिर था जिसके जलकुंड में व्यालमुख प्रणाली से आता जल भर रहा था। मैं इस मंदिर के भीतर नहीं गयी किन्तु दूर से यह मंदिर अपने सुन्दर जलकुंड समेत अत्यंत मनमोहक प्रतीत हो रहा था। इस मंदिर से महाभारत की एक दन्तकथा जुड़ी हुई है।

किन्नर कैलाश की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, किन्नर कैलाश पर्वतमाला भगवान शिव का शीतकालीन निवास था। जब शीत ऋतु अत्यंत तीव्र हो जाती थी तब भगवान शिव मानसरोवर के समीप, कैलाश पर्वत पर स्थित अपने निवास से नीचे उतरकर यहाँ आ जाते थे। वास्तव में, पुरातन काल से, हिन्दू परंपरा के अनुसार पर्वतों को भगवान शिव का ही एक स्वरूप मानकर पूजा जाता रहा है। दक्षिण भारत में भी आपको इस प्रथा का अनुभव प्राप्त होगा। तिरुपति के चारों ओर के पर्वतों को भी भगवान शिव का रूप माना जाता है।

कल्पा का डाक घर
कल्पा का डाक घर

प्रत्येक वर्ष जुलाई-अगस्त मास में किन्नर कैलाश यात्रा का आयोजन किया जाता है। अनेक भक्तगण एवं अब निरंतर बढ़ते पर्वतारोही इस पर्वत शिखर की परिक्रमा करते हैं। इस पर्वत के शीर्ष तक पहुँचने वाला भी एक मार्ग है जिस पर अग्रसर होकर पर्वतारोही शीर्ष तक पहुँचते हैं। शीर्ष पर फहराता ध्वज इस रोहण का जीवंत प्रमाण है।

किन्नर कैलाश के चित्ताकर्षक सौंदर्य में स्वयं को सराबोर करने के पश्चात तथा यहाँ के सेबों एवं अन्य फलों का जी भर के आस्वाद लेने के पश्चात कल्पा से विदाई का समय आ गया था। मानो हमारी यात्रा के एक कल्प का भी अंत होने लगा था। यहाँ से आगे की यात्रा में, कुछ दिवसों तक, हमें हरियाली एवं सभ्यता दोनों की ही न्यूनता का आभास होने वाला था।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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