उत्तराखंड राज्य अनेक प्रसिद्ध देवालयों से विभूषित होने के कारण गर्व से देवभूमि भी कहलाता है। उत्तराखंड की भूमि एवं उसके मंदिरों का समृद्ध इतिहास है। साथ ही मनोरम चित्ताकर्षक प्रकृति के कारण यह सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है। उत्तराखंड के दो प्रमुख विभाग हैं, कुमाऊँ तथा गढ़वाल। राज्य के पूर्व में पसरे भूभाग को कुमाऊँ कहा जाता है जिसके अंतर्गत अनेक नयनाभिराम क्षेत्र हैं। उनमें कुछ लोकप्रिय क्षेत्र हैं, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोढ़ा, पिथोरागढ़, जागेश्वर, मुक्तेश्वर, मुन्सियारी आदि। वहीं उत्तराखंड के पश्चिमी क्षेत्र को गढ़वाल कहते हैं। इसके अंतर्गत देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, चार धाम, चमोली जैसे लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण क्षेत्र आते हैं।
उत्तराखंड के दोनों भागों में अनेक आयामों में भिन्नता है। उनके इतिहास, परिदृश्य, परम्पराएं, संस्कृति, सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियाँ आदि भिन्न हैं। उत्तराखंड के दोनों
दोनों विभागों में अनेक प्रकार के घरेलु स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं जिनमें प्रमुखता से स्थानीय खाद्य-वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। ऐसे भी अनेक व्यंजन हैं जो मूलतः केवल कुमाऊँ अथवा केवल गढ़वाल से सम्बंधित हैं।
इंडीटेल के इस संस्करण में हम आपको कुमाऊँ के एक अत्यंत स्वादिष्ट आयाम से अवगत करायेंगे। जी हाँ, कुमाऊँ के स्थानीय स्वादिष्ट व्यंजन!
कुमाऊँ के स्वादिष्ट खाद्य
कुमाऊँ के व्यंजन बनाने में आसान हैं। ये खाद्य पदार्थ अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ भरपूर उर्जा से परिपूर्ण होते हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करते एवं जलवायु की कठोर परिस्थितियों का सामना करते कुमाऊँनी जनमानस के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस संस्करण का ध्येय है, आप को वहां के व्यंजनों से अवगत करना ताकि आप जब भी वहां जाएँ, उनका आस्वाद अवश्य लें। यह संस्करण उनके लिए भी है जिन्हें नित-नवीन व्यंजन बनाना प्रिय है। वे इन व्यंजनों को अपने घर पर ही बनाकर उनका आनंद ले सकते हैं। निम्न दर्शित खाद्यों में अनेक ऐसे व्यंजन हैं जिन्हें उत्तराखंड के दोनों भागों में बनाया जाता है। अपने उत्तराखंड पर्यटन में इन व्यंजनों का आस्वाद लेना ना भूलें।
आलू के गुटके
आप जब भी गुजरात के दशहरे का स्मरण करें, आपके समक्ष अवश्य जलेबी व फाफडा का दृश्य उभर कर आ जाता होगा। महाराष्ट्र की होली की स्मृतियाँ आपकी जिव्हा पर पूरण-पोली का स्वाद ले आती होंगी। उसी प्रकार उत्तराखंड में हम जब भी आलू के गुटके खाएं अथवा केवल स्मरण करें, हमारे नैनों के समक्ष होली का दृश्य उभर कर आ जाता है। जी नहीं! इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप यह स्वादिष्ट व्यंजन वर्ष में केवल एक ही दिवस खा सकते हैं। आप इसे किसी भी ऋतु में तथा किसी भी समय खा सकते हैं।
होली के उत्सव काल में इसका स्वाद विशेष होता है। यहाँ के पहाड़ी स्थानिक इसे अत्यंत ही स्वादिष्ट, खट्टी व विभिन्न मसालों से परिपूर्ण भांग की चटनी के साथ खाते हैं। भांग की चटनी भी कुमाऊँ का एक प्रसिद्ध खाद्य पदार्थ है। विभिन्न रंगों एवं स्वाद से परिपूर्ण कुमाऊँ के सुप्रसिद्ध आलू के गुटके बनाने के लिए उबले आलू के टुकड़ों को विभिन्न मसालों के साथ भूना जाता है। हिमालयीन क्षेत्रों में उपलब्ध आलुओं को ‘पहाड़ी आलू’ कहा जाता है जो आकार में बड़े होते हैं तथा मैदानी क्षेत्रों में उपलब्ध आलुओं की तुलना में अधिक स्वादिष्ट होते हैं।
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भट्ट की चुड़कानी
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है, यह भट्ट अर्थात् एक प्रकार के काले राजमा के दानों से बनता है। सम्पूर्ण उत्तराखंड में इस की उत्तम उपज होती है। यह कुमाऊँ की एक महत्वपूर्ण फसल है। काले राजमा के दानों से बनी भट्ट की चुड़कानी पोषण तत्वों की धनी होते हुए भी बनाने में अत्यंत आसान है।
भट्ट के दानों को जीरे व हींग का तड़का लगाकर दाने फटने तक भूना जाता है। तत्पश्चात गेहूं या चावल का आटा, पिसा अदरक-लहसुन एवं नमक, हल्दी व लाल मिर्च जैसे अन्य मसाले डालकर भूना जाता है। इसके पश्चात पानी डालकर पकाया जाता है। धनिया की पत्ती से सजाकर चावल के साथ परोसा जाता है। यह एक आसान कृति है। आप इसे अवश्य बनाकर देखिये। यह स्वादिष्ट होने के साथ साथ पौष्टिक भी होता है। कुमाऊँवासियों को भट्ट से विशेष प्रेम है। वे इससे अनेक व्यंजन बनाते हैं।
चैंसू – उत्तराखंड का एक स्वादिष्ट व्यंजन
यह कुमाऊँ के सर्वोत्तम व्यंजनों में से एक है। इसे बनाने के लिए मूल सामग्री उड़द की डाल है। सर्वप्रथम उड़द डाल को सूखी कढ़ाई में सुगंध आने तक भूनते हैं। ठंडा होने पर दाल को दरदरा पीस लेते हैं। घी गर्म कर अदरक-लहसुन के टुकड़े, जीरा, कढ़ी पत्ते, प्याज, टमाटर एवं अन्य सूखे मसालों से छोंक लगाकर उसमें पीसी डाल डालकर भूनते हैं। पानी डालकर पकाते हैं। हरी धनिया से सजाकर गर्म चावल के साथ खाते हैं।
यह मूलतः एक गढ़वाली व्यंजन है किन्तु इसे कुमाऊँ में भी चाव से बनाया व खाया जाता है। इसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है। इस दाल को बनाने के लिए सर्वोत्तम पात्र लोहे का होता है। इससे चैंसू अधिक स्वादिष्ट व पौष्टिक हो जाता है। यद्यपि यह शीत ऋतु में खाया जाने वाला व्यंजन है, तथापि पर्वतीय क्षेत्रों के सर्वसामान्य शीतल वातावरण के कारण वहां इसे खाने के लिए मौसम का बंधन नहीं होता है। आप जब भी उत्तराखंड जाएँ, इसका आस्वाद अवश्य लें।
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सना हुआ नींबू मूली/ नींबू सान
शीत ऋतु में प्रत्येक पर्वतीय निवासी की यह हृदयपूर्वक अभिलाषा रहती है कि वह कड़ाके की ठण्ड में बाहर बैठकर धूप सेंके तथा यह सना हुआ नींबू खाए। शीत ऋतु में खाने योग्य यह एक ऐसा नाश्ता है जिसका स्मरण मात्र भी मुंह में पानी ले आता है। इसे बनाने के लिए बड़े आकार के नींबू का प्रयोग किया जाता है जो उत्तराखंड में ही उगाया जाता है। इसमें मूली, दही, भांग का चूर्ण एवं नमक मिलाया जाता है। खट्टे व नमकीन स्वाद से युक्त यह व्यंजन सभी उत्तराखंडियों को अत्यंत प्रिय है। पोषक तत्वों से भरपूर इस व्यंजन का आस्वाद आप शीत ऋतु में अवश्य लें।
भटिया/भट्ट का जौला
आप मुझसे पूर्णतः सहमत होंगे कि कोई भी भारतीय नमकीन व्यंजन मसालों के बिना अधूरा होता है। किन्तु आज में आपको एक ऐसे व्यंजन के विषय में बताने जा रही हूँ जिसे मसालों के बिना बनाया जाता है। जी हाँ, भटिया।
इसे बनाने के लिए केवल दो वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है, भट्ट अथवा काला राजमा तथा चावल। जौला में नमक व मसाले नहीं डाले जाते हैं। इसे अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इसे कढ़ी, जीरा-नमक अथवा ‘हरा धनिया नमक’ के साथ परोसा जाता है। यह मेरा सर्वप्रिय व्यंजन है। इसे मैं कभी भी व कहीं भी खा सकती हूँ।
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पालक का कापा
पालक का कापा अथवा कापा एक अत्यंत पौष्टिक पालक की तरी अथवा रस्सा है जिसे बनाना भी आसान है। सामान्यतः जब हम हरी सब्जियां पकाते हैं, उसकी पौष्टिकता एवं रंग कुछ मात्रा में नष्ट हो जाते हैं। किन्तु कापा में पालक को अधिक नहीं पकाया जाता है। अतः उसमें पोषकता नष्ट नहीं होती है। साथ ही उसका हरा रंग भी बना रहता है जो परोसते समय अत्यंत लुभावना प्रतीत होता है। इसे बनाने के लिए तेल गर्म कर जीरा, अदरक, हरी मिर्च व अन्य मसाले का बघार लगा कर उसमें चावल का आटा भूनते हैं। बारीक कटी पालक व पानी डालकर रस्से को पकाते हैं। इसे भी गर्म चावल के साथ खाया जाता है। पालक का कापा सामान्यतः शीत ऋतु में बनाया जाता है क्योंकि पहाड़ी पालक उन्ही दिवसों में उगता है। किन्तु आपको जब भी पालक उपलब्ध हो, आप इसे पकाकर खा सकते हैं। इसी प्रकार का एक अन्य पदार्थ है, कौफुली।
बाल मिठाई तथा सिंगोड़ी – कुमाऊँ के लोकप्रिय व्यंजन
आप सोच रहे होंगे कि मैं अनवरत आपसे कुमाऊँ के मसाले युक्त नमकीन व्यंजनों के विषय में ही चर्चा कर रही हूँ। क्या कुमाऊँ में मिष्ठान्न नहीं बनते? अवश्य बनते हैं। किसी भी स्थान के विशेष व्यंजनों की सूची तब तक सम्पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक उसमें वहां की मिठाई तथा अन्य मीठे व्यंजनों का समावेश ना हो। उसी सूची में मैं बाल मिठाई एवं सिंगोड़ी के नाम सम्मिलित करना चाहती हूँ जो पहाड़ी मिष्टान्न हैं। आप इन्हें विशेष अवसरों पर अवश्य बनाएं, खाएं एवं खिलाएं।
सिंगोड़ी को खोया, शक्कर एवं कसे हुए नारियल से बनाया जाता है। तीनों सामग्रियों को पकाकर एवं इलायची से सुगन्धित कर इस मिठाई को बनाया जता है। मालू के पत्ते को तिकोन आकार में मोड़कर उसमें यह मिठाई भरी जाती है। इससे पत्तों की सुगंध मिठाई में समा जाती है।
बाल मिठाई भीतर से भूरे चोकलेट जैसी दिखाई देती है जिस पर शक्कर के गोल दाने लपेटे जाते हैं। खोये को चीनी के साथ तब तक पकाया जाता है जब तक वह भुनकर भूरे रंग का ना हो जाए। तत्पश्चात चौकोर टुकड़ों में काटकर उस पर शक्कर के छोटे गोलाकार दानों को लपेटते हैं।
उत्तराखंड के इन दोनों मिष्टान्नों का आस्वाद लेना चाहें तो अल्मोड़ा सर्वोत्तम स्थान है जो कुमाऊँ क्षेत्र के अंतर्गत एक जिला है। बच्चे एवं बड़े, दोनों इन्हें चाव से खाते हैं। यदि आप घर पर बैठे बैठे ही उत्तराखंड का आनंद लेना चाहते हैं तो इन्हें घर पर ही बनाएं। इन्हें बनाने की विधियां आसान हैं।
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डुबुक/ डुबके
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की गोद से उभरा यह व्यंजन डुबुक प्रमाणिक रूप से एक पारंपरिक व्यंजन है जिसे डुबके भी कहा जाता है। यह एक पतली दाल होती है जिसे गहत/कुल्थी की दाल अथवा भट्ट से बनाया जाता है। इसे अन्य दालों से भी बना सकते हैं, जैसे अरहर, चना, मूंग आदि। इनके अतिरिक्त इसमें जीरा, मेथी के दाने, हिंग, प्याज, लहसुन तथा नमक, हल्दी व लाल मिर्च जैसे अन्य मसाले डाले जाते हैं। यह पर्वतों के तराई क्षेत्र के लोगों द्वारा शीत ऋतु में खाया जाने वाला व्यंजन है जिसे वे गर्म चपाती अथवा गर्म चावल के साथ खाते हैं।
डुबुक पकाने के लिए डुबुक की दाल को रात्र भर पानी में भिगोकर प्रातः उसे मोटा मोटा पीसते हैं। तेल गर्म कर प्याज व अन्य मसालों का छोंक लगाकर दाल को लोहे के पात्र में पकाते हैं। आवश्यकतानुसार पतला रखते हुए हरी धनिया से सजाकर परोसते हैं। देखने में यह एक साधारण दाल प्रतीत होती है। किन्तु इसका स्वाद चखते ही आपकी धारणा परिवर्तित हो जायेगी, यह मेरा विश्वास है।
भांग की चटनी
आप सब ने भांग के विषय में यह सुना ही होगा तथा चित्रपटों में देखा होगा कि कुछ लोग इसे ठंडाई में डालते हैं। आपने यह नहीं सुना होगा कि भांग की चटनी भी बनती है। भांग की चटनी उत्तराखंड में लोकप्रिय है। इसे भांग के गुणकारी बीजों द्वारा बनाया जाता है। इसे बनाने की विधि आसान है। भांग के बीजों को सूखी कढ़ाई में भूना जाता है। तत्पश्चात उन्हें हरी मिर्च, नींबू का रस, पुदीने की पत्तियाँ, हरी धनिया, साबुत लाल मिर्च एवं जीरे के साथ पीसा जाता है। नमक मिलाकर चाट-पकोड़ी के साथ परोसा जाता है।
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मडुआ की रोटी
मडुआ की रोटी उत्तराखंड में खाई जाने वाली एक पौष्टिक व स्वादिष्ट रोटी है। इसका नाम जितना क्लिष्ट है, इसे बनाना उतना ही आसान है। उत्तराखंड के कुमाऊँ में रागी को मडुआ कहा जाता है। विभिन्न पोषक तत्वों से परिपूर्ण रागी की प्रकृति उष्ण होती है। इसीलिए इसे शीत ऋतु में खाया जाता है। मडुआ की रोटी को बाजरे की रोटी के समान बनाया जाता है। इसमें गाजर, हरी मिर्च, हरे प्याज, दही, नमक आदि डालकर भी रोटी बनाई जाती है। मडुआ की रोटी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
रास/थटवानी अथवा ठठ्वानी
रास-भात अनेक प्रकार की खड़ी दालों से बनाया जाता है, जैसे चना, भट्ट, राजमा, लोबिया तथा गहत। नाम से ही आप अनुमान लगा सकते हैं कि यह एक गाढ़ा तरल व्यंजन है। इसे बनाने के लिए इन दालों को रात्र भर पानी में भिगोकर रखते हैं जिससे ये भीगकर फूल जाती हैं तथा शीघ्र पकती हैं। अब इन्हें खड़े मसाले डालकर उबालते हैं। ठंडा होने पर छानकर पानी एवं दानों को पृथक किया जाता है। लोहे की कढ़ाई में तेल गर्म कर जीरा, खड़े मसाले, प्याज, किसा अदरक, किसा लहसुन, नमक, हल्दी आदि का बघार लगाकर दालों का पानी डाला जाता है तथा एक उबाल आने तक पकाया जाता है। चावल के आटे का घोल डालकर इसे किंचित गाढा किया जाता है। ऊपर से घी एवं हरी धनिया डालकर भात के साथ परोसा जाता है।
पृथक किये गए दालों के दानों को भी जीरा, प्याज व मसालों का छोंक लगाकर रास-भात के साथ परोसा जाता है। इसमें नींबू, चाट मसाला आदि डालकर चाट के समान भी खा सकते हैं। रास थटवानी भी शीत ऋतु में खाया जाने वाला पदार्थ है। आप जब कुमाऊँ जाएँ तो इसका स्वाद अवश्य चखें। चाहें तो इसे घर पर भी बनाकर इसका आनंद उठायें।
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थेचौनी/थेचवानी
इसके नाम से ही अपने अनुमान लगा लिया होगा कि इसे ठेच कर अथवा पीसकर बनाया जाता है। थेच अर्थात् पीसना तथा वानी का अर्थ है रस्सा। इसमें मूली एवं आलुओं को सिलबट्टे अथवा खलबत्ते में कूटकर छोटे छोटे टुकड़ों में कचूमर कर लेते हैं। अदरक, लहसुन व हरी मिर्च का भी कचूमर कर लेते हैं। तेल गर्म कर उसमें पहाड़ी राई अथवा जखिया, जीरा, प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन व हरी मिर्च का कचूमर व अन्य सूखे मसालों का छोंक लगाते हैं। आलू-मूली डालकर भूनते हैं। तत्पश्चात इसमें आवश्यकतानुसार पानी डालकर पकाया जाता है। बेसन अथवा चावल के आटे से गाढ़ा किया जाता है। हरी धनिया से सजाकर चपाती अथवा गर्म भात के साथ खाया जाता है।
ये हैं उत्तराखंड, विशेषतः कुमाऊँ में प्रचलित कुछ पारंपरिक व्यंजन जो पहाड़ी शीतल वातावरण में शरीर को उर्जा प्रदान करते हैं तथा आवश्यक पोषक तत्व भी देते हैं। आप जब भी कुमाऊँ जाएँ, इन व्यंजनों का स्वाद अवश्य चखें। यदि आप पहाड़ों पर नहीं रहते हैं तब भी आप स्वयं इन्हें पकाकर इनका आस्वाद ले सकते हैं।
IndiTales Internship Program के अंतर्गत यह संस्करण निकिता चंदोला द्वारा लिखा तथा इंडीटेल द्वारा प्रकाशित किया गया है।