महाभारत काल में वित्त व वाणिज्य की कथा

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महाभारत काल में एक द्यूतक्रीडा में कौरवों के हाथों पराजित होने के पश्चात पांडवों को १३ वर्ष वनवास भोगना पड़ा था। उनके हाथों से सम्पूर्ण वैभव, धन-संपत्ति तथा राजपाट छिन गया था। इससे पांडव खिन्न थे। द्रौपदी एवं भीम अपनी इस दशा के लिए युधिष्ठिर को दोषी मान रहे थे। युधिष्ठिर को अपराध बोध अवश्य था लेकिन वे धर्मपालन के प्रति भी पूर्णतः समर्पित थे। इसीलिए उन्होंने वनवास का दंड सहर्ष स्वीकार कर लिया था।

मिथिला के राजा जनक द्वारा दिए गए जीवन ज्ञान के संदर्भ से, शौनक मुनि अरण्यकाल में युधिष्ठिर को जीवन के विविध आयामों पर ज्ञानोपदेश करते हैं। उसके अंतर्गत वे वित्त एवं वाणिज्य से संबंधित विषयों में भी उपदेश करते हैं। उस काल में प्रदान किया गया वित्त एवं वाणिज्य से संबंधित प्रज्ञान वर्तमान में भी उतना ही प्रासंगिक है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

जिस प्रकार मानव मृत्यु से भयभीत रहता है, एक समृद्ध व्यक्ति भी सदा राजा, जल, अग्नि, चोर-डाकुओं एवं अपने परिजनों से भयभीत रहता है।

वित्तीय विषयों की चर्चा करें तो क्या यह वक्तव्य आज भी उतना ही सटीक नहीं है? एक व्यापारी, चाहे वह उच्चतम स्तर का हो अथवा निम्नतम स्तर का हो, वह सदा सरकार से भयभीत रहता है। कौन जाने किस समय कौन सा अतिरिक्त कर लगा दे! अथवा कौन से नियम में परिवर्तन कर दे जिससे क्षण भर में उनका व्यापार धाराशायी हो जाए! इसके अतिरिक्त दो देशों के मध्य युद्ध अथवा दो राजनैतिक गुटों के मध्य नित परिवर्तित होते समीकरण का भी अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय व्यापार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसका ज्वलंत उदाहरण है, रशिया-यूक्रेन युद्ध, जिसका अनेक अंतर्राष्ट्रीय व्यापारों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

जब जल एवं अग्नि के प्रभाव का उल्लेख किया जाता है, तब इसका संकेत प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित आपदाओं की ओर होता है। व्यापार के परिप्रेक्ष्य में भी दोनों जोखिम भरे संकट हैं। इनके कारण उत्पादों को भारी क्षति पहुँच सकती है। माल के सुगम आवागमन में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। प्रौद्योगिकी के विभिन्न स्तरों के कारण एक साधारण ग्राहक इन जटिलताओं से अनभिज्ञ रहता है। किन्तु सत्य यही है कि व्यवसाय एवं व्यापार सुदृढ़ धरातल पर किये जाते हैं जिनमें जन एवं माल की आवाजाही एक महत्वपूर्ण भाग है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डिजिटल आधारभूत संरचनाओं पर भी असामाजिक तत्वों द्वारा आक्रमण का संकट मंडरा रहा है।

डिजिटल अथवा अंकीय प्रौद्योगिकी के उद्भव से पूर्व, हमें हमारी संपत्ति, मालमत्ते, नकद एवं परिजनों की भौतिक सुरक्षा की ही चिंता रहती थी। किन्तु अंकीय प्रोद्योगिकी के आगमन का प्रभाव सुरक्षा व्यवस्था पर भी पड़ा है। जहाँ एक ओर नितनवीन तकनीकों द्वारा हम हमारी संपत्ति की रक्षा का प्रबंध कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उसी अंकीय प्रौद्योगिकी में दक्ष कुछ असामाजिक तत्व उसी तकनीक का प्रयोग दुगुनी गति से कर रहे हैं। हम सब इसी भय में निमग्न रहते हैं कि कब कौन इस तकनीक का अभिनव प्रयोग कर हमारी संपत्ति को लूट ले। इसी कारण व्यवसायियों के लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को अनवरत सुदृढ़ बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

ऐसा कहा जाता है कि ठग-लुटेरे नवीन तकनीकों के सर्वप्रथम एवं सर्वोत्तम उपभोक्ता होते हैं। यह एक प्रकार का चोर-पुलिस का खेल है जो ठगों एवं व्यापारियों के मध्य जारी रहता है। अथवा सरकारी इकाईयों एवं भ्रष्टाचारियों के मध्य जारी रहता है।

अनोखा तथ्य यह है कि समृद्ध व्यक्ति को अपने परिवारजनों से भी भय लगा रहता है। एक सफल व्यवसाय को स्थापित करने के लिए विश्वासपात्र सहयोगियों के समूह की आवश्यकता होती है। किन्तु कभी कभी इन्ही सहयोगियों में से कोई विश्वासघात कर बैठता है तथा परम शत्रु बन जाता है। आपको देवी माहात्म्य में समाधि वैश्य की कथा स्मरण होगी जिसके साथ उसके परिवारजनों ने ही विश्वासघात किया था। वहीं रामायण में विभीषण को रावण के पतन का कारण माना जाता है। इस प्रसंग से ही लोकप्रिय कहावत का जन्म हुआ था, घर का भेदी लंका ढाए।

जो परिवारजन अथवा मित्र हमारे अत्यंत समीप होते हैं, उन्हे हमारे अथवा हमारे व्यवसाय संबंधी सभी गोपनीय तथ्यों की जानकारी होती है। यह जानकारी उन्हे वह शक्ति प्रदान करती है जिसके द्वारा वे चाहें तो हमें सर्वाधिक आघात पहुँचा सकते हैं।

जिस प्रकार एक पक्षी आकाश में, एक पशु भूमि में तथा एक मछली जल में माँस के एक टुकड़े को झपटकर पकड़ लेती है, उसी प्रकार एक समृद्ध व्यक्ति की संपत्ति में से कुछ भाग हथियाने के लिए सभी तत्पर रहते हैं।

एक समृद्ध व्यक्ति के रूप में आप ना केवल लोगों की ईर्ष्या का पात्र बनते हैं, अपितु कई लोग आपकी संपत्ति में से कुछ भाग झपटने के लिए भी तत्पर रहते हैं। किसी को आपसे दान-दक्षिणा की अपेक्षा रहती है तो किसी को रोजगार की। वहीं कुछ लोग आपको अपने उत्पाद अथवा सेवाएं विक्री करने के लिए तत्पर रहते हैं। इन सब को प्राप्त करने के लिए वे मधुर वचनों का प्रयोग कर सकते हैं अथवा चापलूसी कर सकते हैं। अन्यथा आपसे दुष्टता भी कर सकते हैं। एक समृद्ध व्यक्ति के लिए ऐसे लोगों को जानना, पहचानना तथा उनसे सावधान रहना अत्यंत आवश्यक है।

आपके जीवन में आपको आकाश, भूमि एवं जल जैसे सभी संभव वर्गीकरणों का अनुभव प्राप्त होगा, चाहे वे परिवारजन हों अथवा मित्र, चाहे वे कर्मचारी हों अथवा व्यावसायिक संबंधी, चाहे वह सरकार हो अथवा दान मांगने वाले। जहाँ भी वित्त अथवा धन संबंधी विषय हो, हमें इस सभी वर्गों से सावधान रहने की आवश्यकता है।

मेरे अनुमान से यही कारण होगा कि वैश्य समाज के अधिकांश परिवार अपनी समृद्धि का दिखावा करने से कतराते हैं क्योंकि ऐसा करके वे अवांछित तत्वों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। इसी कारण से वे सादगी पूर्ण जीवन उत्तम समझते हैं। ना कि क्षत्रिय समाज के परिवार के अनुरूप, जो अपना प्रभाव प्रदर्शित करने के लिए अपनी समृद्धि का दिखावा करते हैं। इस विषय में आपकी क्या राय है?

संपत्ति प्राप्त करने के ३ उपाय

महाभारत में आपने पढ़ा होगा कि अपनी सम्पूर्ण संपत्ति एवं राज्य को चौपड़ के दांव में हार जाने के पश्चात पांडवों ने वन की शरण ली थी। वे वन में कंदमूल एवं फल खा कर दिवस व्यतीत कर रहे थे। द्रौपदी को यह सब अत्यंत अरुचिकर प्रतीत हो रहा था। वो नहीं चाहती थी कि युधिष्ठिर एवं अन्य पांडव भ्राता ऐसे  जीवन से आत्मसंतुष्टि प्राप्त करते रहें। वो चाहती थी कि युधिष्ठिर एवं अन्य पांडव भ्राता अपने खोए हुए राज्य एवं संपत्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए तत्पर हों। इसलिए वे युधिष्ठिर को उकसाती हैं कि इस ओर प्रयत्न शीघ्र आरंभ करें। वे सतत उनसे कहती कि कर्म के बिना जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। द्रौपदी ने युधिष्ठिर को कर्म की बृहस्पति नीति से भी अवगत कराया था।

संपत्ति प्राप्त करने के तीन साधन हैं: कर्म, भाग्य एवं प्रकृति।

महाभारत में वित्त और वाणिज्य
महाभारत में वित्त और वाणिज्य

हम सब कर्म के विषय में जानते हैं, संपत्ति अर्जित करने के लिए कार्य करना। यह हमारे नियंत्रण में होता है।

भाग्य वह तत्व है जो जन्म से हमारे साथ जुड़ जाता है। वह हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों पर आधारित होता है। अतः यदि आपके भाग्य से आपका जन्म किसी संपन्न परिवार में होता है तो आप धनवान हो सकते हैं। आपके भाग्य से आप कोई लॉटरी जीत सकते हैं। उसे भगवान का आशीर्वाद अवश्य मानिए किन्तु संपत्ति प्राप्त करने के पश्चात निष्क्रिय होकर ना बैठें। यह संपत्ति आपको बिना किसी परिश्रम के प्राप्त हुई है लेकिन उसे बनाए रखने के लिए परिश्रम अवश्य करना पड़ेगा। यदि पूर्व सत्कर्मों की कृपा से यह धन आपको अनायास ही प्राप्त हुआ है तो पुनः इसी प्रकार से धन प्राप्त करने के लिए आपको वैसे ही सत्कर्म पुनः करने पड़ेंगे।

आप कैसे कर्म करते हैं, यह आपके जन्मजात स्वभाव पर निर्भर करता है। यदि आपके कर्म आपके स्वभाव से साम्य रखते हैं तो आपको आपके कर्म में आनंद प्राप्त होगा तथा वह कर्म तदनुसार फल देगा। सद्धर्म एवं सत्कर्म आपको आनंददायी फल प्रदान करेंगे। सम्पूर्ण समर्पण से सद्धर्म निभाएं तथा सत्कर्म करें अन्यथा वही कर्म एक बोझ प्रतीत होगा।

एक बुद्धिमान व्यक्ति सर्वप्रथम यह ज्ञान प्राप्त करता है कि बीज के भीतर वसा होती है, गौ के भीतर दूध होता है तथा लकड़ी के भीतर अग्नि होती है। तत्पश्चात वह उन्हे दुहने के साधनों की खोज करता है।

द्रौपदी मनु के कथन का उद्धरण देती हैं – संभव है कि कर्म करने के पश्चात भी आपको मनचाहा फल प्राप्त ना हो। ऐसी परिस्थिति में हमें अपने कर्मों का विश्लेषण करना चाहिए कि हमसे क्या चूक हो गई, कहाँ कमी रह गयी तथा उस चूक को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि आपको वारंवार वांछित फल प्राप्त ना हो तब भी निराश ना हों। कर्मों का फल प्राप्त होने में हमारे भाग्य एवं भगवान की कृपा की भी विशेष भूमिका होती है। अतः अपना अखंड प्रयास जारी रखें।

यदि आप कर्म ही नहीं करेंगे तो फल प्राप्त करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।

वित्त एवं वाणिज्य संबंधी विषयों में आपके प्रयास की दिशा इस ओर होनी चाहिए – अर्जन, सुवर्धन एवं संरक्षण। यदि आप अर्जन से अधिक व्यय करेंगे तो हिमालय जैसी संपत्ति भी एक ना एक दिवस समाप्त हो जाएगी। जो केवल भाग्य के आश्रय में जीवन व्यतीत करता है वह उसी प्रकार समाप्त हो जाएगा जिस प्रकार कच्ची मिट्टी के घड़े में जल भरने से घड़ा नष्ट हो जाता है। अर्थात क्षण भर में उसका नाश हो जाएगा।

यह वेबस्थल अमेजॉन का सहयोगी है। अतः आप जब भी इस लिंक से कुछ क्रय करेंगे, उसका एक लघु भाग यह वेबस्थल के खाते में निष्पन्न होगा। किन्तु इससे आपके व्यय में कोई अंतर नहीं आएगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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