छत्तीसगढ़ के मैनपाट क्षेत्र का भगवान राम से प्रगाढ़ संबंध है। मैनपाट क्षेत्र का उल्लेख रामायण में किया गया है। रामायण के अनुसार श्री राम ने अपने वनवास काल में मैनपाट क्षेत्र में भी निवास किया था। इस क्षेत्र के आदिवासी जनजातियों से उन्होंने भेंट की थी तथा उनसे वार्तालाप भी किया था।
बौद्ध धर्म का इस क्षेत्र से कदापि संबंध नहीं था, यद्यपि यह वाराणसी से अधिक दूर नहीं है। इसीलिए यहाँ फलती-फूलती तिब्बती बस्तियों को देखना मेरे लिए अत्यंत विस्मय का विषय था। यहाँ तिब्बती बस्तियों का होना कोई प्राचीन ऐतिहासिक घटना नहीं है, अपितु यह नवागत इतिहास का परिणाम है।
लगभग ५० किलोमीटर दूर स्थित अम्बिकापुर से मैनपट पहुँचने के लिये दो मार्ग हैं। एक अम्बिकापुर-सीतापुर मार्ग द्वारा, अन्यथा दरिमा ग्राम से होते हुए मैनपट पहुँचा जा सकता है।
सघन वनों के मध्य से पहाड़ी पर चढ़ते हुए कमलेश्वरपुर पहुँचते हैं जहाँ पर्वत शिखर पर बौद्ध संस्कृति से प्रभावित एक जलपानगृह है। मैं यह विश्वास से कह सकती हूँ कि सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के सर्वोत्तम जलपानगृहों में इस जलपान गृह की गणना की जा सकती है। इस जलपानगृह के अतिरिक्त आप यहाँ मैनपट तिब्बती बस्ती भी देखेंगे।
मैनपाट तिब्बती बस्ती
सन् १९६२-६३ में कई तिब्बतियों ने भारत स्थानांतरण किया था। भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भूमि आबंटित की थी। उन भूभागों में से अनेक अब लोकप्रिय पर्यटन आकर्षण बन गये हैं।
उस काल में मध्यप्रदेश सरकार ने लगभग १४०० विस्थापित तिब्बतियों को ३००० एकड़ भूमि का आबंटन किया था। वर्तमान में यह संख्या लगभग २३०० हो गयी है। उन्होंने निवास करने के लिए विशेष रूप से मैनपट पर्वत का चयन किया क्योंकि तराई तथा मैदानी क्षेत्रों का उष्ण वातावरण उन्हे असहनीय था। तिब्बतीय क्षेत्रों के अनुरूप उन्हे यह स्थान अधिक शीतल तथा अनुकूल प्रतीत हुआ था।
मैनपाट पर्वतीय क्षेत्र एक सघन वनीय प्रदेश था। तिब्बती बस्ती का निर्माण करने के लिए कई वृक्षों की कटाई की गयी थी। प्रारंभ में सभी तिब्बती शरणार्थियों के लिए एक विशाल शिविर बनाया गया था। कालांतर में सात भिन्न भिन्न शिविरों का निर्माण हुआ जो सम्पूर्ण पर्वत पर फैले हुए हैं।
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मैनपाट पर्वत पर बसने के पश्चात इन तिब्बतियों ने भेड़ें चराना आरंभ किया जिसमें वे पूर्वतः अभ्यस्त थे। किन्तु वह जीविका के साधन के रूप में एक विफल प्रयास सिद्ध हुआ। इसके फलस्वरूप धर्मशाला में स्थित उनके मुख्य कार्यालय द्वारा उन्हे कृषि उद्योग में प्रशिक्षण दिया गया जिसके पश्चात उन्होंने खेती करना आरंभ किया। यहाँ आलू एवं कुट्टू की उत्तम उपज होती है।
अब वे सहकारी समिति प्रकल्प के अंतर्गत सूक्ष्म-ऋण, कृषि-यंत्रीकरण तथा आटा चक्की जैसे उद्यमों में नित-नवीन प्रयोग कर रहे हैं। एक दीर्घ काल तक हस्तकला की कृतियाँ निर्मित करना भी उनका प्रमुख व्यवसाय रहा। यह प्रकल्प भी वित्तीय मानदंडों पर खरा नहीं उतर पाया। अंततः उन्होंने अपनी जीविका के लिए कृषि एवं कृषि उत्पादन का चयन किया।
तकपो मठ
तिब्बती बस्ती में भ्रमण करते हुए आप एक छोटा स्वच्छ गाँव देखेंगे जहाँ कुछ विशाल भवन हैं। इन भवनों में केवल मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। एक बौद्ध मंदिर है जिसे तकपो मठ कहा जाता है। मठ के भीतर एक वेदी पर दलाई लामा का चित्र रखा हुआ है।
सम्पूर्ण क्षेत्र में गेरूएं रंग के पारंपरिक बौद्ध चोगे धारण किये अनेक नवयुवक लामा तथा किशोर लामा दृष्टिगोचर होते रहते हैं। मार्ग के दोनों ओर बहुरंगी प्रार्थना पताकाएं फड़फड़ाते रहते हैं। सम्पूर्ण पर्वत पर फहराते प्रार्थना ध्वजों के मध्य अनेक श्वेत व सुनहरे गुंबद दृष्टिगोचर होते हैं।
भारत के अन्य क्षेत्रों के नवयुवकों के अनुरूप यहाँ के नवयुवक लामा भी मोटरसाइकिल की सवारी करते हैं। स्त्रियाँ अपने पारंपरिक वस्त्र धारण करती हैं तथा अपने दैनंदिनी क्रियाकलापों में व्यस्त दिखाई पड़ती हैं। वहीं नन्हे बालक भी लाल चोगा धारण किये विविध क्रीडा में रत हिंडोले खाते दिखाई देते हैं। वे पर्यटकों से बतियाने में भी उत्सुक रहते हैं। उन्हे अपनी बस्ती का भ्रमण कराने में भी अत्यंत आनंद आता है।
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गाँव में पदभ्रमण करते हुए मुझे एक स्वास्थ्य केंद्र दिखाई पड़ा। साथ ही एक वृद्धाश्रम भी दिखा। खिन्न मन से सोच में पड़ गयी कि इतनी छोटी सी बस्ती में भी वृद्धों के लिए पृथक आवास की आवश्यकता पड़ी! आरंभ में आए शरणार्थियों में से अब कुछ ही शेष रह गये हैं। नवीन पीढ़ी के लिए यही उनका मूल आवास है।
एक आगंतुक के रूप में जब आप इन्हे देखेंगे तो आपको अपने घरों में निवास करते, फिर भी विस्थापित समुदाय की प्रतीति होगी।
पर्यटन आकर्षण
तिब्बती बस्ती के सीमावर्ती क्षेत्र में, जलपानगृह के समीप, सर्व-सुविधा सम्पन्न तंबू आवास क्षेत्र है जिसे स्विस टेंट कैम्प क्षेत्र कहते हैं। यहाँ से घाटी का सुंदर परिदृश्य दृष्टिगोचर होता है। मानसून काल में यह अप्रतिम प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण एक शांति प्रदायक स्थल हो जाता है।
इस पर्वत पर अनेक स्थानों पर परिदृश्य अवलोकन बिन्दु हैं जिनके नाम भी अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के अवलोकन बिंदुओं के नामों जैसे ही हैं, जैसे टाइगर पॉइंट आदि। किसी काल में यहाँ बाघों के दर्शन हो जाते थे। एक अन्य अवलोकन बिन्दु है, मछली पॉइंट। यहाँ से बहती नदी को मछली नदी कहते हैं। कुछ अन्य पर्यटन स्थल हैं, बगीचा तथा जलजला किन्तु हम उनका अवलोकन नहीं कर पाये।
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पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण मैनपट को एक रोमांचक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना है। इस योजना को पूर्ण होने में अभी कुछ समय तथा पर्याप्त परिश्रम शेष है। किन्तु तब तक आप इसके प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने यहाँ आवश्य आ सकते हैं।
मैनपाट पर्वत के आसपास के क्षेत्र में बॉक्साइट अयस्क की खानें हैं। आप इन खदानों से उत्खनित लाल-भूरे रंग के भंगुर अयस्क खंडों को ले जाती ट्रकों को पहाड़ी के उतार-चढ़ाव पार करते देख सकते हैं। बॉक्साइट एल्युमिनियम का अयस्क है। इन अयस्क ट्रकों के लिए पर्वत शिखर तक जाने के लिए पृथक मार्ग निश्चित किया गया है। सम्पूर्ण उत्खनन क्षेत्र को अस्थाई भित्तियों से सीमाबद्ध किया। ये भित्तियाँ भी बॉक्साइट अयस्क खंडों द्वारा बनाई गयी हैं।
मेरे छत्तीसगढ़ दर्शन कार्यक्रम में मैनपट भ्रमण एक अनपेक्षित किन्तु सुखद आश्चर्य था।
मैनपाट से ५ किलोमीटर की दूरी पर बिसार पानी अथवा उलटा पानी नाम का एक अनोखा स्थान है। यहाँ एक नदी की जलधारा गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर की ओर बहती है। यह एक दृष्टि-भ्रम है अथवा गुरुत्वाकर्षण को चुनौती देती कोई घटना, कुछ कहा नहीं जा सकता।
यात्रा सुझाव
मैनपाट अम्बिकापुर से लगभग ५५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अम्बिकापुर देश के अन्य भागों से वायु मार्ग, सड़क मार्ग तथा रेल मार्ग द्वारा सुविधाजनक रूप से सम्बद्ध है।
आप स्विस टेंट में निवास कर सकते हैं अथवा अम्बिकापुर से एक-दिवसीय यात्रा के रूप में मैनपट भ्रमण कर सकते हैं।
मैनपाट प्रकृति प्रेमियों तथा पदयात्रा प्रेमियों के लिए उत्तम पर्यटन स्थल है।