जब से मैंने सुना कि मत्तूर गाँव का बच्चा बच्चा संस्कृत में वार्तालाप करता है, मैं इस गाँव को देखने के लिए आतुर थी। मन में उत्सुकता जागृत हो गयी, प्राचीन काल में जो हमारी संस्कृति थी, भाषा थी, वह आज की २१ वीं. सदी में भी कहीं जीवित है! यह अविश्वसनीय है।
मैं सोचने लगी, क्या मैं २००० वर्ष से भी अधिक प्राचीन भारत की यात्रा करने वाली हूँ? कई प्रश्न मष्तिष्क में गूँज रहे थे। क्या यहाँ के निवासी संस्कृत के साथ साथ अन्य भाषा भी बोलते हैं? क्या उन्हें संस्कृत भाषा धरोहर के रूप में मिली है या उन्होंने इसे वैसे ही सीखी है जैसे हम-आप मातृभाषा के साथ अन्य भाषाएँ भी सीख लेते हैं? मेरी जिज्ञासा चरम सीमा पर थी। अंततः, पिछले महीने मुझे मुत्तूर जाकर कुछ घंटे वहां बिताने का स्वर्णिम अवसर मिल ही गया।
परिवार के एक विवाह समारोह में भाग लेने के लिए मैं शिवमोग्गा गयी हुई थी। विवाह की विधियों के बीच समय निकालकर मैं शिवमोग्गा की सीमा पर स्थित मुत्तूर गाँव जाने के लिए निकल पड़ी। खेतों एवं सुपारी के बागों के बीच, धूल भरी सडकों से होते हुए हम मुत्तूर गाँव पहुँचे। वहां पहुंचकर हमने श्री अश्वथ अवधानी जी को ढूंढना आरम्भ किया। उन्होंने हमें गाँव दिखाने के लिए अपना बहुमूल्य समय दिया। हमारे पास उनका संपर्क अथवा फोन नंबर नहीं था। किन्तु हमें बताया गया था कि हम गाँव में किसी से भी उनका पता पूछ सकते हैं। है ना यह प्राचीन पद्धति से गाँव का दर्शन, जहां सब एक दूसरे के विषय में जानते थे!
मत्तूर गाँव का पैदल भ्रमण
हमने पैदल गाँव का भ्रमण आरम्भ किया। हमारे चारों ओर पारंपरिक दक्षिण भारतीय शैली के घर थे। चौड़े रास्तों पर खुलते घर के गलियारों में कई काष्ठ स्तंभ थे। ऊंचे वृक्षों के नीचे बने चबूतरे यह बता रहे थे कि यहाँ अब भी चौपाल बैठती होंगी। जवान हो या वृद्ध, सब पुरुषों ने एक सामान वेष्टि पहनी हुई थी जो एक पारंपरिक दक्षिण भारतीय वेशभूषा है।
सम्पूर्ण गाँव की कुछ अलग ही आभा थी। एक प्रकार की एकरूपता थी जो अधिकतर स्थानों में नहीं पायी जाती। अधिकतर घरों के द्वार खुले थे जो हमें चारों ओर फैले विश्वास के वातावरण का आभास करा रहे थे। वहां लोग ना तो हमें जानते थे, ना ही हमारे आने के प्रयोजन से परिचित थे। फिर भी वे बिना झिझक हमें अपने घर आमंत्रित कर रहे थे।
हम अश्वथ जी के साथ एक खुले चबूतरे पर बैठ गए। इससे पूर्व उनके गांव वासियों से अनवरत संस्कृत भाषा में वार्तालाप सुनकर हम चकित हो रखे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हम कोई स्वप्न जी रहे थे। मैंने स्वयं को चूंटी काटी और कहा कि मैं सच में संस्कृत भाषा में दैनिक जीवन के सामान्य वार्तालाप सुन रही थी।
मुत्तूर गाँव का इतिहास
विजयनगर सम्राट ने संकेती ब्राम्हणों को रहने के लिए मुत्तूर गाँव दिया था जब वे कुछ ५०० वर्ष पूर्व तमिल नाडू से पलायन कर यहाँ आये थे। जी हाँ! संस्कृत भाषी मुत्तूर गाँव एक अग्रहार है जिसे यहाँ के परिवारों ने राजसी अनुदान के रूप में प्राप्त किया था। सम्राट कृष्णदेवराय के दरबार के मंत्री, त्र्यम्बकराय ने त्र्यम्केश्वर मंदिर की स्थापना करवाई थी जिसके चारों ओर यह गाँव बस गया।
गाँव के ४० परिवारों में यह अग्रहार की भूमि माप कर बांटी गयी थी। प्रत्येक परिवार के लिए तीन भूखंड! मापने के चिन्ह आप अब भी यहाँ देख सकते हैं। अग्रहार में लगभग १२० परिवार के ६०० लोग निवास करते हैं। यद्यपि, गाँव की कुल जनसँख्या लगभग २००० है। ये सभी एक ही ब्राम्हण जाति के हैं। इसी कारण चारों ओर एकरूपता दिखाई पड़ती है। गाँव का नाम मुत्तूर कैसे पड़ा, यह कोई नहीं जानता। हो सकता है यह महत + ऊरु को मिलाकर बना हो जिसका अर्थ है, एक बड़ा गाँव या एक महत्वपूर्ण गाँव।
मत्तूर तथा संस्कृत
यहाँ के अधिकतर निवासी किसी ना किसी प्रकार से संस्कृत से जुड़े हुए हैं। एक विद्यालय है जहां विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा में पाठ पढ़ाया जाता है। एक वेद पाठशाला है जहां विद्वान पंडित हिन्दू शास्त्रों का अभ्यास करते हैं। हमने यहाँ पूरे दक्षिण भारत से आये कुछ विद्यार्थियों से भेंट की जो यहाँ संस्कृत एवं शास्त्रों का अध्ययन करने आये हैं।
मैंने जब अश्वथजी से पूछा कि गाँव में संस्कृत में वार्तालाप कब आरम्भ हुआ, उन्होंने तुरंत उत्तर दिया – परंपरा। हमारे पूर्वज जो वेदों एवं शास्त्रों में पारंगत थे, संस्कृत में ही वार्तालाप करते थे। यद्यपि, पिछले कुछ दिनों में संस्कृत को जो बढ़ावा मिला है उसका श्रेय संस्कृत भारती द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों को भी जाता है।
मैंने उनसे पूछा कि यह परंपरा सम्पूर्ण भारत में ना सही, भारत के कई भागों में अवश्य विद्यमान थी, तो केवल मुत्तूर में ही ये अब तक कैसे जीवित है? उन्होंने कहा कि मुत्तूर के निवासियों के पास जो कुछ है उससे वे अन्यंत संतुष्ट एवं प्रसन्न हैं। मुत्तूर के युवाओं को भी श्रेय देते हुए उन्होंने कहा कि गाँव के युवाओं ने संस्कृत भाषा को सहेज कर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके योगदान के बिना भाषा को बचाकर रखना कठिन होता।
आज, अग्रहार के सभी लोग तथा गाँव के अधिकतर निवासी तमिल, कन्नड़ तथा संस्कृत भाषा बोल सकते हैं। तमिल इनकी मातृभाषा है, कन्नड़ यहाँ की स्थानीय भाषा है तथा संस्कृत इनकी स्वयं चुनी हुई भाषा है।
अश्वथजी ने मुझे दक्षिण भारत के कुछ अन्य गाँवों के विषय में बताया जहां संस्कृत को बोलचाल की भाषा के रूप में पुनः सजीव करने का प्रयास किया जा रहा है। धारवाड़ के समीप स्थित राधाकृष्ण नगर इनमें से एक है। उनका मानना है कि जब गाँव के युवा शहरों की ओर पलायन करते हैं तब गाँव की संस्कृति के साथ भाषा भी लुप्त होने लगती है। यदि हम गाँव में रहेंगे तो गाँव की भाषा भी स्वाभाविक रूप से सहेज कर रखी जायेगी।
मुझे यह जानकार सुखद आश्चर्य हुआ कि मुत्तूर गाँव विश्व को संस्कृत सिखाने के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर रहा है। कई युवा उद्यमी मुत्तूर गाँव से ऑनलाइन लोगों को संस्कृत सिखाते हैं। यह सुनकर मुझे लगा कि अधिक से अधिक युवाओं को उनके गाँव में ही जीविका का साधन ढूँढना चाहिए। इससे वे गाँव की धरोहर को सहेज कर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
मत्तूर गाँव में दर्शनीय स्थल
अश्वथ जी हमें मत्तूर गाँव की सैर पर ले गए। ६०० लोगों के इस छोटे से गाँव में हमने कई अनोखे स्थल देखे। मुझे यहाँ की सड़कें तथा उनकी सामुदायिकता व खुलापन अत्यंत भाया।
तुंग नदी का तट
तुंग नदी के तट पर, एक खुला मैदान था जहां अग्निहोत्र अथवा हवन का आयोजन किया जाता है। चूंकि मैं यहाँ दोपहर को आयी थी, मुझे इन्हें देखने का सौभाग्य नहीं मिला। मैंने निश्चय किया है कि मैं यहाँ फिर आऊँगी तथा एक प्राचीन नदी के तट पर हवन आयोजित होते देखने का प्रयत्न अवश्य करूंगी।
मत्तूर गाँव के मंदिर
इस छोटे से गाँव मत्तूर में कुल ७ मंदिर हैं। इनमें ३ मंदिर भगवान् विष्णु को समर्पित हैं – केशव मंदिर, श्री राम मंदिर एवं लक्ष्मी नारायण मंदिर हैं। अन्य ३ मंदिर, त्रयम्बकेश्वर मंदिर, गौरी शंकर मंदिर एवं सोमेश्वर मंदिर, भगवान् शिव को समर्पित हैं। एक अन्य मंदिर आंजनेय अर्थात् हनुमानजी को समर्पित है।
हमने गाँव के प्रवेश द्वार पर स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन किये। इसे दुर्गा मंदिर भी कहते हैं। यह एक छोटा सा, एक कक्ष का मंदिर है। यहां प्रत्येक संध्या को स्त्रियाँ आती हैं व कीर्तन करती हैं।
वेदशाला एवं गुरुकुल
गाँव के गुरुकुल के दर्शन मेरी इस यात्रा के सर्वाधिक आनंददायी क्षण थे। यह एक सादा पुराना घर था जहां आप अपने चप्पल-जूते उतारकर प्रवेश करते हैं, जहां छोटे छोटे बालक रहते हैं एवं भारतीय शास्त्रों का अध्ययन करते हैं।
मत्तूर के गुरुकुल में एक छोटा पुस्तकालय भी है जहां कई पुस्तकों एवं संस्कृत शास्त्रों का संग्रह है। मैंने सोचा, यदि इसके पास पर्याप्त पूँजी होती तो यहाँ एक बड़ा पुस्तकालय बनाया जा सकता है जहां लोग आकर अध्ययन कर सकते। अभी तो यहाँ स्टील की अलमारियां थीं जिनमें पांडुलिपियाँ एवं संस्कृत की पुस्तकें रखी हुई हैं।
गाँव की पाठशाला
गाँव की पाठशाला में मेरा अनुभव अत्यंत भावविभोर करने वाला था। मैंने वहां ५वी. कक्षा के विद्यार्थियों से भेंट की। उन नन्हें बालकों ने मुझे अपने संस्कृत ज्ञान से अचंभित कर दिया। भगवान् करे ये हमें उस भविष्य की ओर ले जाएँ जो हमारी संस्कृति से पोषित व सिंचित हो।
मत्तूर गाँव की यात्रा का सर्वाधिक दिलचस्प अनुभव था, संस्कृत भाषा में वार्तालाप को सुनना। यदि आपको कम से कम एक भारतीय भाषा का ज्ञान है तो इन संवादों को थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं।
वीरगल अथवा हीरो पत्थर
एक मंदिर के बाहर हमने एक हीरो पत्थर स्थापित देखा। यह स्मारक गाँव के स्थानीय शहीदों अथवा हीरो को समर्पित है। यह प्रथा इस क्षेत्र में बहुत सामान्य है। समय की कमी के कारण मैं इस स्मारक से जुड़ी किवदंती जान नहीं पायी। किन्तु मुझे यह आभास अवश्य हुआ कि यह संस्कृत भाषी गाँव अनूठा एवं भिन्न होने के बाद भी मुख्यधारा से अलग नहीं है।
मत्तूर का विडियो देखिये
मत्तूर गाँव कैसे पहुंचें
आप शिवमोग्गा या शिमोगा से सड़क मार्ग से आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं। शिमोगा बेंगलुरु से सड़क एवं रेल मार्ग से जुड़ा है।
मत्तूर गाँव के दर्शन की योजना इस प्रकार बनाएं कि आप वहां प्रातःकाल अथवा संध्या के समय रह सकें। इस प्रकार आप मत्तूर गाँव का सम्पूर्ण अनुभव ले सकते हैं, अग्निहोत्र व हवन होते देख सकते हैं तथा नदी के तट पर शास्त्रों के उच्चारण का आनंद ले सकते हैं।
यूँ तो मत्तूर गाँव के दर्शन आप लगभग एक घंटे में कर सकते हैं किन्तु वहां बैठकर वहां के लोगों से वार्तालाप करने की इच्छा हो तो थोडा अधिक समय लग सकता है।
गाँव के आसपास घूमने की इच्छा हो तो आप मंदिरों की नगरी श्रृंगेरी तथा इक्केरी व केलदी में केलदी राज्य के अवशेष भी देख सकते हैं।
अनुराधा जी, दक्षिण भारत के मत्तूर गाॅंव की परंपरा सही में अविश्वसनीय है ! भारत वर्ष की सदीयों पुरानी समृद्ध संस्कृत भाषा को आधुनिक २१ वीं सदी में भी न सिर्फ सहेज कर रखना,परन्तु इसे अपनी बोलचाल की भाषा बनाना आश्चर्यजनक हैं । इस परंपरा को जिवित रखने के लिये वहाॅं के बुजुर्गो तथा समस्त निवासीयों का तो योगदान है ही साथ ही इसमें गाॅंव की युवा पीढी़ की भी महति भूमिका हैं । वहां के सभी निवासीयों को शत शत नमन ! धन्यवाद ।
जी प्रदीप जी, संस्कृत को जीवित और जीवंत रखने के लिए मत्तुर वासी नमन के पात्र हैं।
कर्नाटक के मतूर गांव के रहवासियों का संस्कृत भाषी गांव बनाये रखना यह अपनेआप में प्रशंसनीय कार्य है, साथ ही संस्कार व परम्परा भी अपना रखी है वाकई ग्रामवासी बधाई के पात्र है व आपका हिंदी संस्करण???????? व हमे हर बार नए नए स्थान की जानकारी देते है साधुवाद????????
संजय जी – भारत में इतना कुछ है देखने को और सराहने को, हमारी यह बस एक छोटी से कोशिश है भारत को भारत से जोड़ने की ????
Bahut achha
धन्यवाद् मनीष जी
मैं वहां जाना चाहता था और संस्कृत भी सीखना चाहता हूं अगर आप वहाँ का कोई कांटेक्ट नंबर दे देते तो बड़ी मेहरबानी होती
Yahaan Tamil nahi boli jaati.. Balki Sankethi bhaasha, joki Tamil, Kannada aur Malayalam ka mix hai, boli jaati hai..
To learn sanskrit online
sanskrit online sikhne ke liye contact no mil Sakta h kya
Hum Delhi se contact kar rahe hain aapko aapka mobile number kaise mile aur aapse kuchh mulakat karna chahte hain bacchon ko ek Sanskrit padhaanaa chahte Hain kripya apna contact number hamen de denge to dhanyvad yah meri email ID hai maine apna number bhej diya hai aapko Jara dekh lenge dhanyvad
मैं भी सोच रहा हूं उसे गांव में जाकर इस ज्ञान को अर्जित करूं लेकिन वहां के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं होने के कारण मैं वहां नहीं जा पाता हूं और वहां संस्कृत भाषा का ज्ञान ग्रहण करने की मेरी पूरी अभिलाषा है कोई संपर्क सूत्र वहां रहने का हो कृपया मुझे बता सकते हैं
बहोत अच्छा है. पर संस्कृत सिखने के लिये बाच्चोंको भेजने के लिये किसी का संपर्क क्रमांक हो तो अछा होगा!
किसिके पास है तो 9270021938 इस क्रमांक पर भेजने कि कृपा करे!
धन्यवाद!