भारत नेपाल सीमा पर स्थित लुम्बिनी बुद्ध की जन्मस्थली है। बुद्ध के जीवन से सम्बंधित, बोध गया, सारनाथ व कुशीनगर के अलावा, यह चौथा मुख्य स्थल है।
लुम्बिनी – यहीं से बुद्ध की कथा आरम्भ होती है। बुद्ध के माता व पिता के आवास स्थलों के मध्य स्थित एक पवित्र उद्यान है लुम्बिनी। ससुराल से मायके की ओर यात्रा के दौरान बुद्ध की माता रानी माया देवी ने उन्हें यहीं जन्म दिया था।
माया देवी
लुम्बिनी में बुद्ध के बजाय मायादेवी की अधिक मान्यता है। मायादेवी को बुद्ध की कथाओं में से मुख्यतः २ कथाओं द्वारा जाना जाता है। पहली कथा जिसमें उन्होंने सफ़ेद हाथी का स्वप्न देखा था, जिसका अर्थ, एक महान आत्मा के उनके गर्भ में प्रवेश, बताया गया है। दूसरी कथा उस समय की है जब वह प्रसव हेतु अपने पति, शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के कपिलवस्तु स्थित से देवदाहा स्थित अपने माता पिता के महल की ओर प्रस्थान कर रहीं थीं। उनकी यात्रा को सुखद व सुविधाजनक बनाने हेतु की गयी तैयारियों की विस्तृत जानकारी बोद्ध साहित्यों में देखी जा सकती है। यात्रा के दौरान जल मुहैया कराने हेतु राह में कई तालाब खुदवाए गए थे।
बुद्ध जन्म की दंतकथाएं
कहा जाता है कि लुम्बिनी के ऐसे ही एक तालाब के किनारे मायादेवी ने, अपने ऊपर पेड़ की एक शाखा को हाथ में लिए खड़ी अवस्था में ही बुद्ध को जन्म दिया था। तीनों लोकों के देव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्वयं बुद्ध को अपने हाथों में प्राप्त करने हेतु यहाँ पधारे थे। यह किवदंतियां कहतीं हैं कि जन्म के तुरंत पश्चात बुद्ध सात कदम चले थे।जहाँ उनके चरणों ने धरती को स्पर्श किया, वहां कमल के पुष्प खिल उठे थे। इसी घटना को बुद्ध की जीवन की पहली चमत्कारी घटना माना गया है। तत्पश्चात अपने जीवन में वे कई और चमत्कार करने वाले थे।
बुद्ध जन्म का यह दृश्य कई बौद्धिक स्थलों में देखा जा सकता है। प्रायः मायादेवी के स्वप्न दृश्य के उपरांत इसे ही दूसरा मुख्य दृश्य बताया जाता है। इन दृश्यों में मायादेवी के साथ बुद्ध की दाई माँ प्रजापति गौतमी को भी दिखाया गया है।
बुद्ध से सम्बंधित अन्य स्थल हैं:-
• बोधगया – जहाँ बुद्ध को परमज्ञान की प्राप्ति हुई
• सारनाथ – जहाँ उन्होंने अपना पहला प्रवचन देकर धर्मचक्र आरम्भ किया
• कुशीनगर – जहाँ उन्हें महानिर्वाण की प्राप्ति हुई
• राजगृह – जहाँ पहला बोद्ध सम्मलेन आयोजित हुआ था
• वैशाली – जहाँ नगरवधु आम्रपाली( अम्बपाली या अम्बपालिका या आर्याअम्बा) बोद्ध धर्म स्वीकार कर बुद्ध की शिष्या बनीं
“बुद्ध जन्म का यह दृश्य लुम्बिनी का मुख्य दृश्य है।”
लुम्बिनी का मायादेवी मंदिर
लुम्बिनी स्थित चिरस्थायी मंदिर मायादेवी अर्थात् महामाया को समर्पित है। इसे प्रदिमोक्ष वन भी कहा जाता है। गत कुछ सदियों से यह मंदिर उपेक्षित था। हाल ही में पुरातत्वविदों ने यहाँ खुदाई व प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का संरक्षण आरम्भ किया है।
लुम्बिनी को १९९७ में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।
वर्तमान में मायादेवी मंदिर के नाम पर यहाँ एक बाड़ है जिसके भीतर किसी काल में स्थित प्राचीन मंदिर के अवशेष बचे हैं। कई चीनी बोद्ध विद्वान, जिन्होंने इस स्थल के दर्शन किये, अपने द्वारा लिखित साहित्यों में इन अवशेषों की पुष्टि करतें हैं। फाहियान व हुएन सांग दोनों ने अपने साहित्यों में इस मंदिर का उल्लेख किया है।
यह स्थल बुद्ध की जन्मभूमि है, इसका सर्वोत्तम पुरातत्व प्रमाण है यहाँ स्थित अशोक स्तम्भ और शिलालेख जिस पर इस स्थल को राजकुमार सिद्धार्थ की जन्मभूमि दर्शाया गया है। इस अशोक स्तम्भ की स्थापना वर्ष २४९ ईसा पूर्व में की गयी थी। हालांकि यह बुद्ध जन्म से ३००-४०० वर्ष बाद की घटना है, तथापि यह माना जा सकता है कि मौखिक परम्पराओं ने ही प्रमुख स्थलों को जीवित रखा है। डॉ. फूहर ने १८९६ में अशोक स्तम्भ की खोज की थी।
परन्तु ईसवी सन १९९० के प्रारम्भ में ही खुदाई के दौरान प्राप्त शिला अवशेष द्वारा यह पुष्टि हो पायी कि ठीक इसी स्थल पर बुद्ध का जन्म हुआ था।
मायादेवी मंदिर के आसपास दर्शनीय स्थल
मायादेवी मंदिर वास्तव में पर्यटकों के लिए रोचक कई स्मारकों का समूह है।
मायादेवी मंदिर परिसर
सफ़ेद दीवारों द्वारा बने मंदिर के अहाते के भीतर स्थित मायादेवी मंदिर के ऊपर बोद्ध स्तूप समान संरचना है व भीतर प्राचीन मंदिर के अवशेष। यहाँ बड़े बड़े ईंटों को कई चौरस ढेर के आकर में रखा है। बहुत समय उन्हें निहारने के पश्चात भी मुझे इस गठन का अर्थ समझ नहीं आया। यह कक्ष, सभा मंडप अथवा विहार अथवा मठ के लिए अपेक्षाकृत छोटा था। यह मंदिर भी प्रतीत नहीं हो रहा था। मुझे शंका होने लगी कि मंदिर का यह स्वरुप खोज का नतीजा है या पुनर्निर्माण का! ज्यादातर संरचनात्मक अवशेष ५-६वीं ई के गुप्ता वंश से सम्बंधित है।
जन्म प्रतिमा
इस सभामंडप सदृश स्थल के एक ओर की दीवार पर एक पत्थर की प्रतिमा स्थापित है जिसे हाथ लगा लगा कर इतना घिसा दिया गया है कि आकृति अस्पष्ट हो गई हैं। इसे देख कर केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है कि यह, अन्य स्थलों पर स्थित मायादेवी की प्रतिमा सदृश है। इस कक्ष में मुख्यतः उन प्रतिमाओं का समावेश है जो बुद्ध का जन्म प्रदर्शित करती है। बोद्धधर्मियों का मानना है कि सदियों से श्रद्धालुओं द्वारा स्पर्श करने के कारण ही यह शिल्प सपाट हो गया है।
पुरातत्वविदों ने इसका जन्म प्रतिमा नामकरण किया अर्थात् वह शिल्प जो बुद्ध जन्म दर्शाता है। कालानुक्रमिक रूप से यह शिल्प ४थी शताब्दी के हो सकते है। तथापि खुदाई के दौरान मौर्ययुग से पूर्व की विशालकाय ईंटें प्राप्त हुईं हैं जो इस प्रमाण की पुष्टि करतें हैं कि यही बुद्ध की जन्म स्थली है।
पूर्व मौर्यकालीन युग की इन ईंटों का आकार ४९x३६x७ सेंटी मीटर और वजन २० किलो है।
दरअसल ईंटों का यह आकार व उसकी बनावट कौतूहल उत्पन्न करता है। इतने वर्षों उपरांत भी इन ईंटों का ज्यों का त्यों रहना आश्चर्यजनक है। हलके नारंगी रंग की यह ईंटें विभिन्न रूपों व आकारों की हैं। पता नहीं रूप और आकार में बदलाव इनके विभिन्न युगों में पाए जाने के कारण हैं या इनके विभिन्न उद्देश्यों के तहत।
सीमा शिला
जन्म प्रतिमा के नीचे, धरती से कुछ फीट नीचे, यह सीमा पत्थर रखा है। अनियमित आकार के इस शिला पर मानव पैर का हल्का निशान है। मान्यता है कि यह सिद्धार्थ गौतम के पाँव का निशान है। यह सब हमारी श्रद्धा पर निर्भर है। विश्वास हो तो बुद्ध के पदचिन्ह है वरना तार्किक मन इन बातों पर आसानी से विश्वास नहीं करता।
वर्तमान में यह ना टूटने वाले कांच के नीचे सुरक्षित रखा है। हम इस शिला को व इसे आस पास ढेर में रखे सभी बोद्ध देशों के सिक्कों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं जो श्रद्धा स्वरुप यहाँ अर्पित करते हैं।
सामान्यतः इस शिला के दर्शन हेतु पर्यटकों व श्रद्धालुओं को कतार में खड़े होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।यह मेरा सौभाग्य है कि दोनों बार जब मैंने इस मंदिर के दर्शन किये, यहाँ ज्यादा पर्यटक मौजूद नहीं थे और मुझे यहाँ कुछ क्षण शान्ति से व्यतीत करने का आनंद प्राप्त हुआ।
लुम्बिनी का अशोक स्तम्भ
यह अशोक स्तम्भ मायादेवी मंदिर की पिछली दीवार के निकट स्थित है। इस पर पाली भाषा में लिखा अभिलेख कहता है कि राजा अशोक ने स्वयं लुम्बिनी के दर्शन किये थे और इस स्तम्भ की स्थापना करवाई थी। इस पर गुदे “हिता बुद्धे जाते शाक्यमुनिती” का अर्थ है शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। यह शिलालेख यह भी उल्लेख करता है कि भगवान् बुद्ध की जन्मभूमि होने के नाते, लुम्बिनी गाँव के करों को केवल आठवें भाग तक सीमित कर दिया था।
पुष्करणी अर्थात पवित्र तालाब
मायादेवी मंदिर के एक पास ही यह पवित्र तालाब स्थित है। यह वही तालाब है जहाँ सिद्धार्थ के जन्म के समय मायादेवी ने स्नान किया था। इसलिए बोद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है। वर्तमान तालाब निश्चित रूप से एक नवीन संरचना है। एक विशाल बोधिवृक्ष इस तालाब के निकट स्थित है जहाँ बुद्ध को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है।यहाँ कुछ अन्य बोधिवृक्ष भी हैं, जिनमें कुछ के नीचे लकड़ी के गोलाकार पटिये रखे हैं। इन वृक्षों के नीचे बैठ कर ध्यानमग्न होते लोगों को देख कर मुझे सुकून व प्रसन्नता की अनुभूति हुई।
एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष तक बंधी डोर पर प्रार्थना पताकाएं लटक रहीं थीं। मायादेवी मंदिर की ओर पीठ कर जब मैं पुष्करणी के पास खड़ी थी, मेरे समक्ष रंगों का मेला लगा हुआ था।
मन्नत स्तूप
मायादेवी का मंदिर कई छोटे बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है जिनमें अधिकांश स्तूप खँडहर स्वरुप हैं। तथापि मंदिर से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं या कदाचित इन्हें कम छुआ गया है।
यहाँ कुछ स्तूपों के बड़े वर्गाकार आधार और कई गोलाकार आधार हैं। १६ स्तूप आधारों का यह समूह मुझे बेहद रोचक प्रतीत हुआ। शतरंज मंडल की तरह एक मंच पर स्थित यह स्तूप मुझे बेहद आकर्षक लगे। कहा जाता कि यह मन्नत के स्तूप हैं।
यह मन्नत के स्तूप, भक्तों द्वारा, इच्छा पूर्ती के उपरांत, बनाएं गएँ हैं।
विभिन्न युगों को दर्शाते यह भिन्न भिन्न स्तूप ज्यादातर १-३वीं सदी से सम्बंधित हैं।
मायादेवी मंदिर में पूजा अर्चना
एक शाम मैंने देखा कि दूर दराज के देशों से आये बोद्ध भिक्षुओं के समूह द्वारा किये पूजा अर्चना से मंदिर जीवंत हो उठा था।
अनुशासित तौर तरीके अपनाते श्रीलंका से आये कुछ बोद्ध भिक्षुओं का एक समूह बैठा था। बुद्ध की जीवनी का वर्णन करते हुए, प्रधान भिक्षु ने बुद्ध के प्रवचन सबके समक्ष दोहराए। काले वस्त्र धारण किये चीन से आये बोद्ध भिक्षुओं का एक समूह बुद्ध की बाल रूप की छवि पूजने में व्यस्त था। कुछ भिक्षुओं ने पुष्करणी के चारों ओर दीये प्रज्ज्वलित कर हमें दीपावली की रात्र का आभास करा दिया। कुछ अन्य भिक्षु मंदिर के दूसरे कोने में बैठकर मन्त्रों का जाप कर रहे थे।भिक्षुओं के एक समूह ने एक वर्गाकार आधार के स्तूप को गेंदे के फूलों से सजाया, वहीँ दूसरे समूह ने अशोक स्तम्भ को चटक रेशमी कपडे से बाँधा।
स्थानीय भिक्षुओं का एक समूह वृक्ष के चारों ओर बैठा था। मैंने उनमें से एक भिक्षु से चर्चा की और जाना कि जिस तरह पुरातत्वविदों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया, वे उससे खुश नहीं थे। उन्होंने हमें बताया कि प्राचीनकाल से यह मंदिर पूर्व-पश्चिम अक्ष पर स्थित था। परन्तु वर्तमान में भक्तगणों का प्रवेश व निकास उत्तर-दक्षिण दिशा में किया जाता है। दरअसल मध्य १९वीं ई से इस मंदिर के प्रारूप को आप कई छायाचित्रों में देख सकतें हैं और अब तक इसमें आये परिवर्तन स्पष्ट समझ सकतें हैं।
अब तक जो स्थान केवल एक खँडहर प्रतीत हो रहा था, भक्तों के मंत्रोच्चारण में सराबोर, यह सचमुच जीवित सा हो उठा था। बोद्ध भिक्षुओं की उपस्थिति हमारे अन्दर एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करने लगी थी। मैं वहीँ बैठ गयी और ध्यानपूर्वक उनका अवलोकन करने लगी। इस आध्यात्मिक ऊर्जा में भीगने लगी। और तभी मुझे अपनी इस यात्रा की सफलतापूर्वक पूर्ण होने का अहसास हुआ। पिछले दो दिनों से इस परिसर में भ्रमण करते हुए अपने जिस दिल को यहाँ से जोड़ नहीं पा रही थी, वह कुछ क्षणों में ही भिक्षुओं की असीम भक्ति के दर्शन कर यहाँ के अस्तित्व में समाने लगा था। जैसा कि कहा जाता है, भक्त की भक्ति शिला को भी देव बनाने में सक्षम होती है।
लुम्बिनी उद्यान
लुम्बिनी विकास न्यास ने एक महायोजना तैयार की है जिसके तहत लुम्बिनी का विकास कर इसे विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की योजना है। इस महायोजना का प्रभाव पूरे शहर में दिखाई पड़ता है। परन्तु सच्चाई यह है कि यह योजना के तहत कार्य अभी प्रगति पर है और इसकी पूर्णता में अवकाश है।
यह योजना इस परिसर को एक नहर द्वारा मध्य से दो भागों में बांटती है, जिसके एक ओर मायादेवी का मंदिर है तो दूसरी ओर एक विशाल श्वेत रंग का विश्वशांति शिवालय देखा जा सकता है।
इस नहर के पश्चिम में महायान बोद्ध देशों से सम्बंधित मंदिर स्थित है, जैसे कोरिया, चीन, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रिया, वियतनाम, लद्धाख और बेशक नेपाल। पूर्व की ओर थेरवाद बोद्ध धर्म का पालन करने वालों से सम्बंधित मंदिर स्थित हैं, जैसे थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया, भारत का महाबोध समाज, कोलकता, नेपाल का गौतमी जनाना मठ। इन दोनों के मध्य वज्रयान बोध धर्म की भी झलक मिलती है।
दोनों ओर के संगठनों के अपने भिन्न भिन्न ध्यान केंद्र हैं जहाँ पूर्वनिर्धारित कर आप ध्यान का अभ्यास कर सकतें हैं। मंदिर परिसर के दर्शन हेतु व्यापक पदयात्रा की आवश्यकता है।
हालांकि यह मंदिर परिसर पर्यटकों हेतु खुला है, परन्तु यह निवासी बोद्ध भिक्षुओं तथा बोद्ध धर्म के अनुयायियों के ध्यान हेतु बनाया गया है। एक पर्यटक की हैसियत से आप इसकी संरचना की सराहना कर सकते है, जो स्पष्ट रूप से इस प्रदेश का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। आप यहाँ स्थित भव्य प्रतिमाएं व अलंकरण के दर्शन का आनंद उठा सकते हैं परन्तु यदि आप इस मंदिर या बोद्ध धर्म के परिपेक्ष्य में अधिक जानकारी की इच्छा रखतें हैं तो आपको स्वयं के सूत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।
मेरी आपको यही सलाह है कि आप अपनी प्राथमिकता अनुसार कुछ मंदिर चुनें व संतोषपूर्वक उनके दर्शन करें। यदि आप सभी मंदिरों के दर्शन करना चाहेंगे तो कुछ समय पश्चात आप ऊब या व्यामोह महसूस करेंगे। सब मंदिर बुद्ध और मायादेवी से पूर्णतया सम्बंधित हैं। यदि आप बोद्ध धर्म के अनुयायी नहीं हैं तो इसकी वास्तुशिल्प व संरचना को सराहने से ज्यादा कुछ नहीं कर पायेंगे।
व्यक्तिगत रूप से इस परिसर में मुझे ऑस्ट्रेलिया मंदिर में स्थित मायादेवी की प्रतिमा अत्यंत मनभावन प्रतीत हुई। इसी तरह लाल व पीले रंग के सुन्दर चीनी मंदिर में हुआन त्सांग की प्रतिमा भी बेहद खूबसूरत है। जर्मनी के मंदिर के भीतर अप्रतिम भित्तिचित्र बनाए गए हैं वहीँ नेपाल के मंदिर में विशाल बुद्ध की प्रतिमा है। थाईलैंड, कंबोडिया व म्यांमार मंदिर बाहर से अत्यंत खूबसूरत है।
लुम्बिनी विकास न्यास संग्रहालय
मध्यावर्ती नहर के एक ओर लाल रंग की ईंटों द्वारा बनायी गयी एक विचित्र आकार की इमारत है। इसके मेहराब इसे बोद्ध विहार का रूप प्रदान करतें हैं। यह लुम्बिनी संग्रहालय है। इसके प्रवेश टिकट खरीदने हेतु हमें तालाब के दूसरी ओर स्थित एक दूसरी इमारत तक चलना पड़ा। उद्यान का यह भाग इतना प्रसिद्द ना होने के कारण इस संग्रहालय के दर्शन हेतु उपस्थित दर्शनार्थियों में शायद आप अकेले हो सकते हैं। इसके पीछे भी एक ठोस कारण है।
संग्रहालय की इमारत बेहद खूबसूरत है किन्तु इसके अन्दर एक भी वास्तविक कलाकृति नहीं रखी गयी है। अपितु यहाँ उपलब्ध प्रत्येक कलाकृति अन्य बोद्ध स्थलों के प्रसिद्द प्रतिमाओं के प्रतिरूप है। अधिकांश प्रतिरूप जिन्हें मैंने गिना, वे सब आंध्रप्रदेश के नागार्जुनकोंडा से सम्बंधित थे। तथापि प्रतिरूप सुन्दर होते हुए भी असली शिला प्रतिमाओं में उपलब्ध ऊर्जा से रहित थे।
मुख्य बोद्ध स्थलों के छायाचित्र भी यहाँ रखे हुए हैं। काश उन्होंने उच्च विभेदन युक्त चित्र रखे होते जो वर्तमान में आसानी से उपलब्ध हैं।
लुम्बिनी उद्यान में विचरण
यदि आपको भी मेरी तरह पैदल चलने में आनंद आता हो तो सुबह शाम उद्यान की सैर अवश्य करें। यह पैदल टहलने हेतु अति उपयुक्त स्थल है। हर तरफ जलनिकाय हैं जहाँ आप अनेक पक्षी व तितलियों को निहार सकते हैं। शीत ऋतू में यहाँ झीलों में सारस इत्यादि अनेक प्रवासी पक्षी आतें हैं।
हालांकि थोड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता है क्योंकि कई रास्ते अभी भी निर्माणाधीन हैं। कई भाग अत्यंत वीरान हैं अर्थात् आपको अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने की आवश्यकता है।
मैंने यहाँ भिक्षुओं के साथ वार्तालाप का खूब आनंद लिया। मैंने एक भिक्षुणी से भी चर्चा की उन्होंने मुझे अपनी अब तक की अध्यात्मिक यात्रा व बोद्ध धर्म में भिक्षुणियों की स्थिति के बारे में बताया। छोटे बाल भिक्षु, गेरुए पोशाक पहने, चहरे पर मासूमियत व शरारत का मिलाजुला भाव रखे, कैमरे के समक्ष शर्माते सबका मन मोह लेते हैं।
नेपाल के लुम्बिनी यात्रा से सम्बंधित कुछ सुझाव
१. लुम्बिनी छोटे बड़े जंगल विभागों से बना विशाल उद्यान है। इसलिए पैरों में आरामदायक जूते या चप्पल पहनें।
२. लुम्बिनी उद्यान के भीतर भोजन या जलपान की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। इसलिए प्रवेश के पूर्व भरपेट भोजन करना बेहतर होगा। उद्यान के पूर्वीय भाग में भेल और आइसक्रीम बेचते कुछ ठेले व पानी बेचतीं कुछ छोटी दुकानें दिखीं पर पश्चिमी भाग में खाने पीने की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
३. अपने साथ पानी का भरपूर भण्डार रखें। खासकर मायादेवी मंदिर और पश्चिमी भाग के मंदिर दर्शन के दौरान इनकी आवश्यकता रहेगी।
४. उद्यान के भीतर यातायात की सुविधाएं बेहद सीमित हैं। अपनी पैदल चलने की क्षमता का सही आकलन करें। जरूरत पड़ने पर रिक्शा किराये पर लेकर भ्रमण कर सकतें हैं।
५. उद्यान के एक छोर से दूसरे छोर तक की दूरी नाव द्वारा भी तय की जा सकती है परन्तु इस तरह आप सभी मंदिरों के दर्शन नहीं कर पाएंगे।
६. परम्परागत व शालीन वस्त्र धारण करें क्योंकि यह एक धार्मिक स्थल है।
७. मायादेवी मंदिर व लुम्बिनी संग्रहालय के अलावा बाकी स्थलों में दर्शनार्थ प्रवेश शुल्क नहीं है। इन दोनों स्थलों में भारतीय पर्यटकों के लिए प्रवेश व कैमरा शुल्क २० रुपये है।
८. सभी मंदिर व संग्रहालय सुबह ९ बजे से शाम ५ बजे तक खुले रहते हैं और दोपहर १ बजे से २ बजे तक मध्यांतर बंद रहतें हैं।
९. मायादेवी मंदिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। इसके दर्शन हेतु २ घंट का समय कम से कम रखना चाहिए।यदि आपके पास लुम्बिनी दर्शन हेतु सिर्फ आधा दिन ही उपलब्ध हो तो उसे पूरी तरह मायादेवी मंदिर के दर्शन हेतु रखना ही उपयुक्त होगा।
१०. हालांकि यह उद्यान हर वक्त खुला रहता है, फिर भी सूर्यास्त के पश्चात यहाँ विचरण करना उपयुक्त नहीं होगा।
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