आप सब ने कर्नाटक के श्रवनबेलगोला स्थित विशालकाय बाहुबली मूर्ति के सम्बन्ध में अवश्य सुना होगा। आप में से कुछ को इनके दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ होगा। तथापि लोगों को क्वचित ही जानकारी होगी कि जैन धर्म कर्नाटक के सांस्कृतिक वयन और जातीयता का आधारभूत अंग है। मूडबिद्री भी ऐसा ही एक प्राचीन जैन मंदिरों का नगर है जो कर्नाटक के समुद्रतटीय नगर, मंगलूरू से लगभग ३५ की.मी. दूरी पर स्थित है।
इस संस्मरण के द्वारा मैं आपको इस नगर के जैन मंदिरों के दर्शन कराती हूँ जहाँ जैन मंदिरों को बसदी भी कहा जाता है। मूडबिद्री में १८ मुख्य जैन मंदिर अथवा बसदी हैं। इनमें से १० मंदिर एक ही मार्ग पर स्थित हैं। इसलिए इस मार्ग को जैन मंदिर मार्ग भी कहा जाता है। साहित्यों का उल्लेख किया जाय तो इनमें मूडबिद्री के १८ मंदिरों, १८ तालाबों व गावों को आपस में जोड़तीं १८ सड़कों का वर्णन है। मैंने भी यहाँ १८ या संभवतः १८ से अधिक जैन मंदिरों के दर्शन किये। कई छोटी बड़ी सड़कें लांघी परन्तु इनका लेखा जोखा नहीं रखा। परन्तु मुझे कोई झील व तालाब के दर्शन नहीं हुए, सिवाय एक मंदिर के समीप एक ताल के। संभवतः मानव सभ्यता व जाती के विकास में इन तालाबों की बलि चढ़ा दी गयी।
मूडबिद्री का इतिहास
मूडबिद्री दो शब्दों का संयुक्ताक्षर है, मुदु अर्थात् पूर्व और बिदरू अर्थात् बांस। मेरे अनुमान से किसी समय यहाँ बांस उगाया जाता था। परन्तु वर्तमान के मूडबिद्री में बांस के खेत कहीं दृष्टिगोचर नहीं होते। यहाँ सर्वत्र नारियल व सुपारी के बागों का फैलाव है। तुलुनाडू का एक भाग, यह मूडबिद्री मंगलुरु-कारकला मार्ग पर स्थित एक शांत नगर है।
एक अरसे से मूडबिद्री, दक्षिण भारत में जैन धर्म का केंद्र रहा है। जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति यहाँ की प्राचीनतम अंकित मूर्ति है। किवदंतियों के अनुसार, कुछ बौद्ध भिक्षुओं ने इस इलाके से जाते समय एक गाय व एक शेर को साथ क्रीडारत देखा। उन्होंने इसे एक पवित्र स्थल होने का शुभ संकेत मानकर यहीं एक मंदिर स्थापना का निश्चय किया। मंदिर की संरचना हेतु धरती की सफाई के समय संयोगवश उन्हें पार्श्वनाथ की एक पाषाणी मूर्ति हाथ लगी। यह किवदंती बेतुकी प्रतीत नहीं होती क्योंकि भारत के मंदिरों की स्थापना की पृष्ठभूमि बहुधा ऐसी ही बताई जाती है।
मूडबिद्री का पार्श्वनाथ मंदिर
पार्श्वनाथ मंदिर मूडबिद्री का सर्वप्रथम जैन मंदिर है। ८ वीं सदी के तांबे की पट्टिका में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। परम्परागत कथाओं के अनुसार प्राचीन काल से यह मंदिर जैन गुरुओं का आध्यात्मिक ठिकाना हुआ करता था। मूडबिद्री के सबसे प्राचीन इस मंदिर को गुरु बसदी भी कहा जाता है।
पारंपरिक कथाओं के अनुसार लगभग १००० वर्षों पूर्व तत्कालीन जैन सम्राट ने जैन धर्म का त्याग कर वैष्णव धर्म स्वीकार लिया था। अपने कृत्य के औचित्य सिद्धि हेतु उसने जैन मंदिरों का नाश करना आरम्भ किया। परिणामस्वरूप कर्नाटक में जैन धर्म के अनुयायियों में किंचित घटाव आया। तत्पश्चात उत्तरकालीन राजा बल्लाल राय का जैन धर्म में पुनरागमन हुआ। उन्होंने सर्वप्रथम श्रवणबेलगोला में पूजा आरम्भ करवाई। कई जैन मुनियों को पुनः पीठासीन किया। तत्पश्चात इन जैन मुनियों ने मूडबिद्री आकर अपने मठों की स्थापना की।
जिस दिन मैंने मूडबिद्री की यात्रा की, कम से कम तीन मंदिरों में मुझे धार्मिक अनुष्ठान देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह इस तथ्य का द्योतक है कि ये जागृत व कार्यरत मंदिर हैं। इनमें से गुरु बसदी और सहस्त्र स्तंभयुक्त मंदिर वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की छत्रछाया में संरक्षित हैं।
मूडबिद्री जैन मंदिरों का वास्तुशिल्प
बसदी शब्द की व्युत्पत्ती संस्कृत शब्द वसति से हुई है जिसका अर्थ है ठहरने का स्थान।
इन मंदिरों का निर्माण धरणी और सरदल शिल्पकला द्वारा किया गया है। अर्थात् यह मध्य एशिया के प्रभाव से पूर्व बनवाये गए थे। इनमें भस्मी धूसर रंग के पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इसकी छत स्थानीय शिल्पकला के इस्तेमाल से बनाई गयी है। तिरछी छत पर लाल रंग के मंगलुरु कवेलू (tiles)लगाए गए हैं।
सहस्त्र स्तंभों के मंदिर को छोड़, बाकी सब मंदिर छोटे हैं। इनमें पीठासीन देवी अथवा देवता की केवल एक प्रतिमा स्थापित है। इनमें कुछ मंदिरों का नामकरण पीठासीन देव या देवी से सम्बंधित है और कुछ मंदिरों के नामकरण उसके निर्माता के नामों पर आधारित हैं। कुछ मंदिर शेट्टी समुदाय के प्रभावशाली व्यक्तियों पर दिए गए हैं।
मंदिरों के नक्काशीदार पत्थर
मूडबिद्री के मंदिरों के नक्काशीदार स्तंभ आकर्षक एवं अत्यंत प्रशंसनीय हैं। पत्थरों पर किया गया उत्कीर्णन धार्मिक भी हैं और धर्म निरपेक्ष भी। जैन मंदिर होते हुए भी, मंदिरों के स्तंभों पर कई हिन्दू देवी-देवताओं की छवि उत्कीर्णित है। मूडबिद्री के इन बसदियों के स्तंभों पर जैन तीर्थंकर की धातु एवं पत्थरों की बनी कई प्रतिमाएं हैं जिनकी ऊंचाई ३ फीट से ९ फीट के बीच है। प्रत्येक जैन मंदिर के समक्ष एक ऊंचा पाषाण स्तंभ है जिसे मानस्तंभ कहते हैं।
मूडबिद्री में नक्काशीयुक्त काष्ठीय तख्तों का भी उपयोग किया गया है परन्तु यह मुख्यतः सहस्त्र-स्तम्भ मंदिर में ही दृष्टिगोचर है। अन्यथा अन्य मंदिरों में ज्यादातर पत्थरों का उपयोग किया गया है।
मुझे इन मंदिरों में कुछ शिलालेख भी दिखाई दिए परन्तु इन्हें पढ़ पाना मेरे लिए असंभव था। संभवतः इन शिलालेखों में मंदिरों से सम्बंधित ऐतिहासिक विवरण एवं आलेख हो सकते हैं।
मूडबिद्री का सहस्त्र-स्तंभ मंदिर
मेरे मूडबिद्री यात्रा का मुख्य उद्देश्य सहस्त्र-स्तंभ जैन मंदिर के दर्शन करना था। भारत में स्थापित कुछ सहस्त्र-स्तंभ मंदिरों में मूडबिद्री मंदिर अल्पतम विदित है। संभवतः इसी कारण इस मंदिर के दर्शन की मुझमें तीव्र अभिलाषा थी। मेरी यह अभिलाषा पूर्ण हुई मार्ग के एक छोर पर स्थित इस सुन्दर मंदिर के दर्शनोपरान्त।
मंदिर में प्रवेशपूर्व ही भव्य प्रवेशद्वार ने मन मोह लिया । आकर्षक प्रवेशद्वार पर महीन नक्काशीदार काष्ठ फलक इसकी भव्यता में चार चाँद लगा रहे थे। भस्मी धूसर रंग के पाषाणी द्वारस्तंभ भी आकर्षक रूप से तराशे गए थे। अन्य देवस्थानों की तरह, यहाँ भी मंदिर के समक्ष स्थित मानस्तंभ भक्तों का स्वागत करता है। ऊंचा चमकदार धात्विक मानस्तंभ अथवा ध्वजदंड के पीछे मंदिर किंचित अदृष्ट सा प्रतीत होता है। मंत्रमुग्ध करते उत्कीर्णित प्रवेशद्वार एवं भव्य मानस्तंभ मानो मंदिर से, हमारे ध्यानाकर्षण हेतु, प्रतियोगिता कर रहे हों। आधिकारिक रूप से “त्रिभुवन तिलक चूड़ामणि बसदी” के नाम से अंकित, मूडबिद्री के सहस्त्र-स्तम्भ मंदिर की कुछ विशेषताओं का उल्लेख करना चाहती हूँ।
उत्कीर्णित स्तम्भ
हम मानस्तंभ के किनारे किनारे चलते हुए मंदिर के समक्ष पहुंचे। पगोडा पद्धति से बने इस मंदिर की तिरछी छतों को रंगीन नक्काशीदार फलकों से जोड़ा गया था। मंदिर की ओर जाती सीड़ियों के दोनों ओर एक एक हाथी की प्रतिमा रखी हुई थी। इन सीड़ियों द्वारा हम उत्कीर्णित स्तंभों से भरे मंदिर सभामंड़प के भीतर पहुंचे। दूर से सारे स्तंभ सममित प्रतीत हो रहे थे। परन्तु जैसे ही हमने इन स्तंभों का बारीकी से निरिक्षण आरम्भ किया, हमने पाया कि प्रत्येक स्तंभ के ऊपर भिन्न भिन्न नक्काशियां की हुई थीं।
सभामंड़प की शिल्पकारी
हमें स्तंभों को निहारते देख, मंदिर का संरक्षक हमारे निकट आया और हमें स्तंभों पर की गयी शिल्पकारी की बारीकियां दिखाई। मंदिर के भीतर, मुख्य प्रतिमा के ठीक सामने के फलक पर शिल्पकारी नहीं थी, अपितु उस पर गज लक्ष्मी का चित्र गुदा हुआ था। एक फलक पर गणेशजी और दूसरे फलक पर वानरसेना सहित राम व लक्ष्मण के चित्रों की नक्काशी थी। मंडप के एक कोने में दो घोड़ों की शिल्पकारी की गयी थी, जो दूसरी तरफ से गज सदृश दृष्टिगोचर होते थे। सबसे अनोखी शिल्प थी, स्तंभो पर की गयी स्तंभों की ही शिल्पकारी। बाद में पता चला कि इन उत्कीर्णित स्तंभों को असली स्तंभों में जोड़कर ही १००० की संख्या पूर्ण होती है।
विडियो – मूडबिद्री के सहस्त्र स्तंभ मंदिर के विडियो द्वारा इसकी कलाकृति एवं वास्तुशिल्प का प्रत्यक्ष दर्शन कीजिये।
लटकते स्तंभ
इस मंदिर का सबसे आश्चर्यजनक स्तंभ है लटकता स्तंभ! अब तक मैंने आन्ध्र प्रदेश के लेपाक्षी मंदिर में लटकते स्तंभ के विषय में सुना था। इस तरह के स्तंभ को देखने का अवसर इस मंदिर में प्राप्त हुआ। तकनीक व कलात्मकता का सुरुचिपूर्ण संजोग देख हमने दांतों तले उंगली दबा ली।
कलात्मकता का एक और नमूना जिसने हमारा ध्यानाकर्षित किया, वह था प्रत्येक स्तंभ के आधार पर बना ज्यामितीय आकार। इन स्तंभों के चौकोर आधार के चार फलकों पर अनंत कुंडलीनुमा आकृतियां खुदी हुई थीं। मुझे इन आकृतियों का ओर-छोर दिखाई नहीं पड़ा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि किसी भी बिंदु से आरम्भ कर यदि हम इन रेखांकृतियों को, बिना हाथ उठाये, अनुकरण करें तो ये रेखांकृतियां उसी बिंदु पर आकर समाप्त होंगीं। समझ नहीं आ रहा था कि ये कोई गणितीय समीकरण है या गुप्त सांकेतिक भाषा।
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मुख्य मंदिर
हमने सभामंडप को पार कर मुख्य मंदिर में प्रवेश किया। प्रवेशद्वार के दोनों ओर द्वारपाल का रंगीन चित्र बनाया गया था। मुझे यह देख अत्यंत अचरज हुआ कि सम्पूर्ण मंदिर नक्काशियों एवं शिल्पों से सज्ज था, जबकि द्वारपालों को चित्रित किया गया था। तत्पश्चात हमने एक और लकड़ी के द्वार को पार किया। इस पर कमल के पुष्पों की नक्काशी की गयी थी।
काले पत्थर की बनी चंद्रप्रभु की ऊंची प्रतिमा हमें यहीं से दृष्टिगोचर होने लगी थी। कुछ दीपों के टीमटिमाते प्रकाश में यह प्रतिमा अलौकिक प्रतीत हो रही थी। इस प्रतिमा तक पहुँचने हेतु कुछ और द्वारों को पार करने की आवश्यकता थी, परन्तु हम यात्रियों को इसकी अनुमति नहीं थी। हम जहां खड़े थे, उस स्थान पर भी कुछ वैशिष्टपूर्ण नक्काशीयुक्त स्तंभ खड़े थे। हमने यहीं से देवदर्शन किये, प्रार्थना अर्पित की एवं परिक्रमा हेतु बाहर आ गए।
मंदिर परिक्रमा
परिक्रमा हेतु मंदिर के चारों ओर संकरी गली बनायी गयी थी। मंदिर के चारों दीवारों पर अतिरिक्त प्रवेश द्वार बनाए गए थे जिनके द्वारा भी मंदिर में प्रवेश किया जा सकता था। इन प्रवेशद्वारों की ओर जाती सीड़ियों पर सुन्दर नक्काशी की गयी थी। इन नक्काशियों में चालुक्य वास्तुकला का किंचित आभास स्पष्ट दृष्टिगोचर था। मुख्य प्रवेशद्वार के अतिरिक्त बाकी सभी द्वार बंद थे। एक उत्कीर्णित व्याल्मुख द्वारा अभिषेक जल का निकास हो रहा था। सम्पूर्ण मंदिर स्तंभों की दो कतारों से घिरा हुआ था।
हम मंदिर की परिक्रमा कर पुनः मंडप में पहुंचे। मंदिर का यह भाग पूर्णतः निहारने के उपरांत भी हमें यहाँ सहस्त्र स्तंभों के विद्यमान होने पर संदेह उत्पन्न हो रहा था। स्तंभों पर विद्यमान कई स्तंभों के शिल्पों के योग के उपरांत भी संख्या सहस्त्र से दूर थी। हमारी दुविधा देख मंदिर के संरक्षक ने बताया कि इस तरह की संरचना इस मंदिर के ऊपर दो और तलों पर उपस्थित है, परन्तु पर्यटकों को वहां जाने की अनुमति नहीं है।
हम एक ऊंची भित्ती से घिरे इस मंदिर को कुछ क्षण और निहारते रहे। तत्पश्चात आनंदमय एवं विस्मयाकुल ह्रदय से ओतप्रोत बाहर आ गए। कुछ और मंदिरों के दर्शन जो शेष थे।
गुरु बसदी अर्थात् सिद्धांत मंदिर
यह मूडबिद्री का प्राचीनतम मंदिर है। इस मंदिर को पीठासीन देव पार्श्वनाथ के नाम पर पार्श्वनाथ बसदी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान् पार्श्वनाथ की काले पाषण में बनी ऊंची प्रतिमा सहस्त्रों वर्ष प्राचीन है। इतिहास के अनुसार इस प्रतिमा की खोज ८ वीं. ई. में वन की सफाई के समय जैन भिक्षुओं ने की थी। उसी समय से यह इस मंदिर में स्थापित है। जबकि इस प्रतिमा की खोज व स्थापना एक गुरु के हस्तों हुई थी, इसे गुरु बसदी कहा जाता है।
गुरु बसदी नामकरण के पीछे एक और कारण है। यहीं पर जैन मठ के प्रमुख, मठाधिपति की नियुक्ति हुई थी। गुरु बसदी में अभी भी जैन भट्टारकों का राज्याभिषेक किया जाता है।
प्राचीन जैन धवला धर्मग्रंथों का संचय – मूडबिद्री
मूडबिद्री के गुरु बसदी में दिगंबर जैन धर्म के तीन बहुमूल्य सिद्धांत ग्रन्थ रखे हुए हैं। ये हैं, धवला, जय धवला एवं महाधवला। इन जैन धवलों को कर्नाटक के धारवाड़ जिले से लाया गया था। इसी कारण गुरु बसदी सिद्धांत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
गुरु बसदी के दर्शन हेतु पधारे तीर्थयात्री यहाँ के सर्वाधिक अनमोल संग्रह के दर्शनों की अभिलाषा रखते हैं। यह अनमोल संग्रह है बहुमूल्य धातु एवं रत्नों से बने, जैन तीर्थंकरों की सूक्ष्म प्रतिमाओं का। इन प्रतिमाओं को बनाने में सोने, चांदी, मोती, नीलम, मणि, स्फटिक इत्यादि का उपयोग किया गया है। किन्तु किसी निजी समारोह के कारण पंडितजी हमें इन प्रतिमाओं के दर्शन नहीं करा सके। आप अपनी यात्रा के समय इन प्रतिमाओं के दर्शन का आग्रह अवश्य कर सकते हैं।
मंडप विहीन गुरु बसदी के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ दो चबूतरे बनाए गए थे जिन पर दर्शनार्थियों के बैठने की सुविधा की गयी थी। इन चबूतरों को भी उत्कीर्णित स्तंभों का आधार प्राप्त था। गुरु बसदी परिसर के भीतर सरस्वती एवं पद्मावती को समर्पित एक और छोटा मंदिर था, जिसे अम्मावरम बसदी कहा जाता है।
गुरु बसदी में स्थापित पार्श्वनाथ की ९ फीट ऊंची प्रतिमा अत्यंत सुन्दर है। इस प्रतिमा को देख मन में विचार उत्पन्न होते हैं कि जिस प्रतिमा ने इतने युग व इतनी मानव जातियाँ देखी, उसके पास कितना कुछ बताने हेतु संचित होगा! काश, यह प्रतिमा अपने संस्मरण अभिव्यक्त कर पाती।
मूडबिद्री के अन्य जैन बसदियाँ
मातादा बसदी
सहस्त्र स्तंभ मंदिर की ओर जाते मार्ग के एक कोने में स्थित मातादा बसदी अपनी भव्य प्राचीन चित्रकारियों के कारण अत्यंत अनोखी छवि प्रस्तुत करती है। इस बसदी की दीवारें जैन मंडलों व जीवन वृक्ष से चित्रित है। एक अनुष्ठान हेतु सुन्दर रंगों द्वारा बनाया गया एक चित्ताकर्षक मंडल देख मन गदगद हो उठा। पार्श्वनाथ का भी एक सुन्दर चित्र, यक्षिणी कुशमंदिनी देवी के चित्र के साथ बनाया गया है। कहा जाता है कि यह एक जागृत मठ है।
यदि आप मंगलवार के दिन मूडबिद्री के देवस्थानों के दर्शन कर रहे हों तो आपको यहाँ विशेष पूजा अर्चना में भाग लेने का भी अवसर मिल सकता है।
राम दरबार का एक विशाल व सुन्दर चित्र हमें सूचना केंद्र में भी देखने मिला।
पाठशाला बसदी
भगवान् मुनि सुव्रिता को समर्पित यह बसदी केरल के आकर्षक स्तंभयुक्त प्रांगण के सामान बनाया गया है। अपेक्षाकृत छोटी इस बसदी में लकड़ी पर आकर्षक नक्काशी व शिल्पकला देख प्रशंसा के उद्गार स्वयं ही उमटने लगते हैं।
जैन मार्ग के आसपास की बसदियाँ
विक्रम शेट्टी बसदी
अदिनाथ अथवा ऋषभनाथ को समर्पित इस बसदी का निर्माण विक्रम शेट्टी ने करवाया था। पत्थरों पर नागदेवता की शिल्पकारी कर बसदी के एक कोने में स्थापित की गयी है। दिवंगत आत्मा की शान्ति हेतु एक अंतिम संस्कार विधि होते देख हम शान्तिपूर्वक मंदिर के भीतर झाँक कर तुरंत बाहर आ गए।
लेपदा बसदी
उस दिन यह बसदी के पट बंद होने के कारण हमने प्रवेशद्वार से झाँक कर ही इसके दर्शन किये। भगवान् चन्द्रनाथ स्वामी को समर्पित इस बसदी का विशाल प्रांगण व मंदिर की छोटी सादी संरचना द्वार से स्पष्ट दिखाई पड़ रही थीं।
देरम्मा शेट्टी बसदी
भक्त देरम्मा द्वारा बनवाई गयी इस बसदी में अरनाथ, मलिनाथ व मुनि सुव्रतनाथ के साथ २४ जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं।
कल्लू बसदी
भगवान् शीतलनाथ स्वामी को समर्पित इस बसदी की दीवारों पर चित्रित जैन मंडल नवीन होते हुए भी जैन ब्रम्हांडिकी से आपका परिचय कराता है।
बदग बसदी
मूडबिद्री के उत्तर में स्थित यह प्राचीन बसदी चन्द्रनाथ स्वामी को समर्पित है।
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शीतर बसदी व बेत्केरी बसदी
भगवान् महावीर को समर्पित है।
कोटि बसदी
भगवान् नेमिनाथ को समर्पित एवं कोटि शेट्टी द्वारा निर्मित बसदी।
चोळ शेट्टी बसदी
चोल शेट्टी द्वारा निर्मित एवं सुमतिनाथ, पद्मप्रभानाथ व सुपार्श्वनाथ को समर्पित बसदी।
महादेव शेट्टी बसदी
आदिनाथ तीर्थंकर को समर्पित बसदी।
वैंकटीकरी बसदी
अनंतनाथ स्वामी को समर्पित बसदी।
केरे बसदी
भगवान् कृष्ण एवं उनकी गौमाताओं को समर्पित यह बसदी किसी हिन्दू मंदिर की तरह प्रतीत हो रही थी। जैन मंदिर मार्ग के दूसरी ओर बनी यह बसदी इकलौती ऐसी बसदी है जिससे सम्बंधित एक ताल भी समीप निर्मित है।
पाडू बसदी
इस प्राचीन बसदी में श्रीमती रमा रानी जैन अनुसंधान केंद्र स्थित है।
गौरी मंदिर
विशिष्ट केरल पद्धति से बना यह एक इस प्राचीन मंदिर है। एक छोटे पाषाणी मंदिर के चारों ओर लकड़ी की जाली लगायी हुई है। ७ वीं. शताब्दी में बना यह मंदिर समकालीन बसदियों के सह-अस्तित्व में होकर भेदभाव रहित समाज की ओर संकेत करता है। कदाचित इन मंदिरों के अनुयायी भी समान ही थे।
मूडबिद्री यात्रा हेतु कुछ सुझाव
• मूडबिद्री मंगलुरु शहर से लगभग ३५ की.मी. एवं मंगलुरु विमानतल से लगभग ३० की.मी. की दूरी पर स्थित है।
• सहस्त्र स्तंभ मंदिर प्रवेश शुल्क १० रु. प्रति सदस्य, कैमरा शुल्क ५० रु. एवं मोबाईल कैमरा शुल्क २५ रु. है। अन्य सभी मंदिरों में प्रवेश शुल्क नहीं है।
• चित्रीकरण की अनुमति प्रत्येक मंदिर में पुजारी द्वारा मौखिक प्राप्त करने के पश्चात ही चित्र खींचिए।
• भोजन हेतु सादे भोजनालय उपब्ध हैं। उदा.- पडिवाल।
• बसदियों के दर्शन हेतु वाहन की आवश्यकता नहीं है क्योंकि पास पास स्थित बसदियों तक पैदल पहुंचा जा सकता है।
• बसदियों के दर्शन का सर्वोपयुक्त समय प्रथम प्रहर है जब सारे मंदिर खुले रहते हैं एवं वातावरण भी पगभ्रमण हेतु ठंडा रहता है।
• सम्पूर्ण मूडबिद्री के बसदियों के दर्शन हेतु ३ से ४ घंटों का समय पर्याप्त है। अल्प अवधि के रहते, केवल सहस्त्र स्तंभ मंदिर एवं गुरु बसदी के दर्शन आपका यहाँ की प्राचीन संस्कृति से परिचय कराने में सक्षम हैं।