नारकंडा शिमला से कुछ ही आगे बसा हुआ एक छोटा सा सुंदर शहर है। यह हिमाचल प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। जो लोग शिमला के पार जाना चाहते हैं पर स्पीति घाटी के ऊबड़-खाबड़ वाले इलाके में नहीं जाना चाहते उनके लिए यह जगह सबसे उत्तम है। वास्तव में नारकंडा शिमला पर्यटन का ही भाग है, क्योंकि वह शिमला जिले में पड़ता है। वैसे तो नारकंडा की यात्रा एक दिन में आसानी से की जा सकती है। यद्यपि मेरे खयाल से जब भी आप वहाँ जाए तो आपको वहाँ पर कुछ दिनों के लिए तो जरूर रुकना चाहिए।
नारकंडा में देखने और घूमने की जगहें, हिमाचल प्रदेश
तो चलिए नारकंडा में तथा उसके आस-पास स्थित कुछ देखने योग्य जगहों के बारे में जान लेते हैं।
हाटू चोटी, नारकंडा
हाटू चोटी नारकंडा का सबसे उच्चतम स्थल है, जिसकी ऊंचाई लगभग 3352 मिटर की है। यहाँ तक जानेवाली संकीर्ण घुमावदार सड़कें आपको ऊंचे-ऊंचे देवदार के पेड़ों के घने जंगलों से ले जाती हैं। यहाँ की तीव्र ढलानवाली घाटियां देखने में बहुत आकर्षक और थोड़ी डरावनी भी हैं। नारकंडा से हाटू तक जानेवाला रास्ता तीव्र चढ़ाई वाला है। ऊपर जाते समय प्रत्येक मोड पर आपको इस बात का एहसाह होता रहता है। एक बार ऊपर पहुँचने के बाद आशा कीजिए कि यहाँ का नज़ारा साफ हो, ताकि आप हिमालय की श्रीखंड महादेव पर्वत माला स्पष्ट देख सके।
जिस दिन हम वहाँ गए थे, उस दिन वहाँ पर बादल छाए हुए थे। हम जैसे इन बादलों के बीच में ही खड़े थे। वहाँ की दृश्यता भी 2-3 मिटर से नीचे ही थी। हाटू चोटी और वहाँ के नज़ारे इतने प्रसिद्ध हैं कि, हिमाचल पर्यटन ने नारकंडा में स्थित अपने हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल का नाम भी हाटू ही रखा है। अगर आप चोटी के ऊपर का नज़ारा नहीं भी देख पाए तो कोई बात नहीं, क्योंकि वहाँ तक जानेवाले मार्ग पर दिखाई देनेवाले नज़ारे भी अपने-आप में कुछ कम नहीं हैं। अगर आपको जोखिम भरी यात्राएं पसंद हैं, तो आप हाटू चोटी तक पैदल भी जा सकते हैं। यहाँ के किसी भी पर्यटन स्थल पर जाने से पूर्व नारकंडा के मौसम की जानकारी जरूर रखिए।
हाटू माता मंदिर, नारकंडा
भारत में बसी अधिकतर चोटियों और उच्चतम स्थल बिंदुओं की तरह ही हाटू चोटी के भी ठीक ऊपर हाटू माता का मंदिर स्थित है। यह मंदिर ठेठ हिमाचली शैली में बनाया गया है। उपाख्यानों के अनुसार जिस जगह पर यह मंदिर बनाया गया है, वहाँ पर स्वर्ग की ओर पांडवों की अंतिम यात्रा के दौरान द्रौपदी की मृत्यु हुई थी।
इस मंदिर के चारों ओर प्रचुरता से उत्कीर्णित लकड़ी के पटल हैं, जिन पर रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की कथाएँ दर्शायी गयी हैं; जैसे कि रामायण का भरत मिलाप का दृश्य। अन्य तख्तों पर हिन्दू धर्म से जुड़े कुछ शुभ और मंगल चिह्न उत्कीर्णित किए गए हैं, जैसे कि स्वातिक का चिह्न।
आज अगर इस मंदिर को देखा जाए तो वह अपेक्षाकृत काफी नया सा लगता है, ऐसा इस लिए की पहाड़ी क्षेत्र में बसा होने के कारण हर कुछ वर्षों के बाद उसका नवीनीकरण करना पड़ता है। इस यात्रा के दौरान देखे गए अन्य मंदिरों जैसे कि सराहन का भीमकाली मंदिर और कलपा का कालिका देवी मंदिर, की भी यही स्थिति है और उनका भी आवश्यकता के अनुसार नवीनीकरण किया जाता है।
तानी झुब्बर झील
तानी झुब्बर – इस लयात्मक नाम को सुनते ही मैं वह जगह देखने के लिए उत्साहित थी। मेरे साथियों के कहने के बावजूद भी कि यह हिमाचल प्रदेश की सबसे उत्तम झील नहीं है, मैं यह जगह देखना चाहती थी। इसलिए हाटू चोटी से वापसी के दौरान हम तानी झुब्बर झील के दर्शन करने गए।
यह एक छोटी सी कृत्रिम झील है जो नाग देवता मंदिर के पास स्थित है। नाग देवता का यह मंदिर एक छोटा सा कक्ष है, जिसमें एक साधारण सी मूर्ति है। इस मंदिर की छत पत्थर की है जो थोड़ी ढलाऊ है। तानी झुब्बर झील लंबोतर आकार की है, जिसके चारों ओर ऊंचे-ऊंचे देवदार के पेड़ खड़े हैं। इस झील के किनारे टहलना बहुत ही सुखदपूर्ण है। झील के पानी में पड़ते पेड़ों के प्रतिबिंब उसकी अस्तित्वहीन गहराइयों को चीरते हुए पानी पर अपनी छवि बना रहे थे। तानी जुब्बार हिमाचल का लोकप्रिय उद्यानभोज का स्थल है। तथा नारकंडा के मौसम का लुत्फ उठाने का यह सबसे उत्तम स्थान है। हमने बहुत से परिवारों को अपनी खान-पान की टोकरियाँ लेकर यहाँ पर आते हुए देखा।
सेंट मेरी चर्च, कोटगढ़
कोटगढ़ में स्थित सेंट मेरी चर्च उत्तर भारत में बसे सबसे पुराने गिरजाघरों में से एक है। यह गिरजाघर 1872 में लंदन के चर्च मिशनरी समाज द्वारा निर्मित किया गया था। अगर पुराने हिदुस्तान-तिब्बत मार्ग से जाए तो नारकंडा या ठानेधार से कोटगढ़ ज्यादा दूर नहीं है। इस गिरजाघर की फीके से पीले रंग की सीधी-सादी बाहरी सजावट इसे और भी आकर्षक बनाती है। उसकी स्थापत्य कला में आप वहशी वास्तुकला की छवि देख सकते हैं। इस गिरजाघर के ऊपर एक सुंदर सा घंटा घर भी है। यहाँ की साधारण सी लकड़ी की बैठकें और वेदी के मैले से पुराने काँच के तख्ते तथा खिड़कियों की आंतरिक सजावट इसकी आभा को पूर्ण करते हैं।
सेंट मेरी चर्च की सबसे खास बात यह है कि यहाँ पर मैंने पहली बार एक हिन्दी बाइबल देखा। यहाँ पर इस क्षेत्र का हाथ से बनाया हुआ एक नक्शा भी है जो काफी दिलचस्प है। संयोग से, मैं रविवार के दिन सुबह को वहाँ पहुंची जब उनके धर्म गुरु द्वारा धर्मोपदेशों का कथन हो रहा था। वहाँ पर मुझे चंडीगढ़ से आया हुआ एक परिवार मिला जो अपने बच्चे के नामकरण संस्कार के लिए वहाँ पर आया हुआ था। वहाँ की खाली बैठकें इस बात का सबूत थीं कि इस क्षेत्र में ईसाइयों की जनसंख्या बहुत कम है। इस गिरजाघर के पास ही एक पाठशाला है, जो इस गिरजाघर के जितनी ही पुरानी है।
ठानेधार
ठानेधार शब्द जैसा कि मुझे लगता था कि थानेदार है, दरअसल ठंडी धार अथवा ठंडी हवा, जो यहाँ पर बहती है, से बना है। यह सेब के बागानों का प्रमुख स्थल है। आप यहाँ के किसी भी स्थान या मार्ग से गुजरिए आपको वहाँ एक या दो सेब के पेड़ जरूर दिखेंगे। यहाँ पर कुछ अन्य भवन भी हैं, जैसे कि परमज्योति वेदिक आर्य मंदिर जिसकी सभी दीवारों पर संस्कृत के पद्य लिखे हुए हैं।
यह जगह आपको सत्यानंद स्टोक्स की याद दिलाती है, जो सेब की इस क्रांति को इस क्षेत्र में लेकर आए थे, जिससे इस जगह की पूरी किस्मत ही बदल गयी। यहाँ पर एक अतिथि गृह भी है जो सत्यानंद जी को समर्पित किया गया है। इस अतिथि गृह में सत्यानंद स्टोक्स की अर्ध-प्रतिमा है जो सतलेज नदी की ओर मुख किए हुए है। यहाँ से सूर्यास्त का दृश्य सच में देखने लायक है। ठानेधार के बंजारा फलोद्यान आश्रयगृह, जहाँ पर हम ठहरे हुए थे, से घाटी का दृश्य मंत्रमुग्ध करनेवाला था। पके सेबों से लदी ये गहरी घाटियां आज भी मेरे आँखों के सामने घूमती हैं।
इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए हिमाचल सेब पर लिखे गए मेरे ब्लॉग – हिमाचली सेब एवं सत्यानन्द स्टोक्स की समृद्धि दायक कथा को पढिए।
स्थानीय फल और फूल
नारकंडा, ठानेधार और कोटगढ़ के आस-पास बसा शिमला जिले का यह क्षेत्र पेड़-पौधों से भरा हुआ है। अगर आप जुलाई महीने के दौरान यहाँ पर गए, जब यहाँ के पेड़ पके हुए सेबों से लदे हुए होते हैं, तो आपके भीतर अपने-आप ही उन्हें तोड़कर खाने की लालसा जाग उठेगी। और अगर आप इन सेबों से परे देख पाए तो आपको वहाँ पर और भी कई प्रकार के फल नज़र आएंगे, जैसे कि खुबानी, आड़ू, बादाम और जामुन। आपको यहाँ पर कुछ सूखे फल भी मिलेंगे, जो अब तक सूखे तो नहीं होंगे परंतु पेड़ों पर लटक रहे होंगे। मुझे लगता है कि जल्दी ही मुझे हिमाचल प्रदेश के फलों पर एक स्वतंत्र बोल्ग ही लिखना होगा।
इसके अतिरिक्त यहाँ पर आपको बहुत से सुंदर-सुंदर फूल भी देखने को मिलेंगे, जैसे कि यह उज्जवलित और जीवंत से फ्यूशिया के फूल जो मुझे बिलकुल कान की बाली की तरह लग रहे थे।