नवलगढ़ की पोद्दार हवेली एवं अन्य दर्शनीय स्थल

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नवलगढ़ वह प्रथम शेखावटी नगरी है जिसके मैंने दर्शन किए थे। पुष्कर से झुंझुनू के निकट स्थित बागड़ जाते समय नवलगढ़ मेरा प्रथम पड़ाव था। आप यह कह सकते हैं कि अद्भुत शेखावटी हवेलियों से यह मेरा प्रथम साक्षात्कार था। यद्यपि मंडवा की शेखावटी हवेलियाँ अधिक लोकप्रिय हैं, तथापि मैं यह विश्वास से कह सकती हूँ कि नवलगढ़ की पोद्दार हवेली सर्वोत्तम रूप से संरक्षित एवं प्रदर्शित हवेली है।

आईए मैं आपको इस अप्रतिम नगरी का दर्शन कराती हूँ जहां अनेक भारतीय व्यापारी परिवार बसते हैं।

नवलगढ़ का इतिहास

एक सरोवर के किनारे रोहिली नामक एक छोटा सा गाँव था। सन् १७३७ में झुंझुनू के संस्थापक शार्दूल सिंह के कनिष्ठ पुत्र नवल सिंह यहाँ आए थे तथा एक दुर्ग का निर्माण करवाया था। उन्होंने एक मोर्चाबंद नगर की स्थापना की जिसके चार दिशाओं में चार द्वार थे। इन द्वारों के नाम थे, अंगूना, बावड़ी, मंडी तथा ननसा। चारों ओर भित्तियों से घिरा तथा इन चार लौहद्वारों द्वारा संरक्षित इस दुर्ग का नाम बाला किला था। फतेहगढ़ नामक एक अन्य दुर्ग भी है जो इन भित्तियों के बाह्य भाग में है। नगर का बाजार इन चार भित्तियों के भीतर अब भी सक्रिय है। यह राज्य अपने उत्तम नस्ल के शिष्ट घोड़ों एवं हाथियों के लिए जाना जाता था।

नवल सिंह ने अनेक व्यापारी समुदायों को यहाँ आकर अपने व्यवसायों को स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया था। इस प्रकार अनेक व्यापारी एवं व्यवसायी यहाँ पधारे तथा अपने व्यवसाय द्वारा संचित धन से इन अप्रतिम हवेलियों का निर्माण किया।

नवलगढ़ के दर्शनीय स्थल

मैं नवलगढ़ की यात्रा विशेषतः शेखावटी हवेलियों का अवलोकन करने के लिए ही कर रही थी। अतः मैंने जैसे ही नवलगढ़ में प्रवेश किया, मैं इन हवेलियों के दर्शन करने के लिए व्याकुल हो गई। बाजार के सँकरे मार्गों से होते हुए हमारी गाड़ी आगे बढ़ी। मार्ग में दुर्ग की भित्तियों एवं विशाल प्रवेश द्वारों को निहारा। अनेक सुंदर इमारतों को देखा। उनमें कुछ इमारत मंदिर प्रतीत हो रहे थे तथा अन्य को देख हवेलियों का आभास हो रहा था। नगर के भीतर से होते हुए हम ऐसे स्थान पर पहुंचे जो हवेलियों से भरा हुआ था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मैं एक मुक्तांगन कलादीर्घा में पहुँच गई हूँ।

मोरार्का हवेली

नवलगढ़ नगरी में मैंने सर्वप्रथम इसी हवेली के दर्शन किए थे। एक अत्यंत अलंकृत काष्ठी द्वार, विपुलता से रंगी भित्तियों तथा ऊपर लटकते आलों व झरोखों के नीचे से हमने हवेली के भीतर प्रवेश किया। मेरे अनुमान से हवेली के स्वामी ने हाल ही में इसका नवीनीकरण किया था। भीतर पुस्तकों की एक छोटी दुकान है जहां हवेली की जानकारी एवं भव्य चित्रों से सजी सुंदर पुस्तक उपलब्ध है। पर्यटकों को हवेली से अवगत कराने के लिए अनेक छायाचित्रों एवं चलचित्रों का भी संग्रह है। मैंने तुरंत प्रवेश टिकट क्रय किया तथा हवेली के अभीक्षक से हवेली के दर्शन कराने के लिए अनुरोध किया।

मुरारका हवेली नवलगढ़
मुरारका हवेली नवलगढ़

मेरे परिदर्शक ने मुझे हवेली के विभिन्न अवयव दिखाए जो एक प्रकार से मेरे लिए पारंपरिक शेखावटी हवेलियों से प्रथम परिचय था। उन्होंने मुझे हवेली के मध्य में स्थित प्रांगण दिखाया जिसे चौक कहते हैं। हवेली में कितने चौक हैं, इस पर हवेली का आकार निर्भर होता है। यद्यपि छोटी हवेलियों में एक चौक होता है, तथापि अधिकतर हवेलियों में दो चौक की उपस्थिति सामान्य हैं। कुछ बड़ी हवेलियों में अधिक संख्या में चौक हो सकते हैं किन्तु ऐसी हवेलियाँ विरल हैं। वे मुझे हवेली की बैठक में ले गए जहां व्यावसायिक बैठकें की जाती थीं। उन्होंने मुझे हवेली का रसोईघर एवं ऊपरी तल पर स्थित अनेक विस्तृत शयनकक्ष भी दिखाए।

मुरारका हवेली के झरोखे
मुरारका हवेली के झरोखे

चारों ओर हिन्दू धर्मग्रंथों की कथाएं, विशेषतः कृष्ण की कथाएं दृष्टिगोचर हो रही थीं। मेरे चारों ओर स्थित प्रत्येक भित्ति पर रंगों की ऐसी छटा बिखरी हुई थी कि किसी एक चित्र पर नेत्र केंद्रित करना कठिन प्रतीत हो रहा था। हवेली के प्रांगण के मध्य स्थित तुलसी का पौधा यह संकेत दे रहा था कि अब भी इस हवेली में जीवन है। बैठक की भित्तियों पर मुझे अहोई माता के चिन्ह दृष्टिगोचर हुए। अनेक वैश्य परिवार नवरात्रि तथा अहोई अष्टमी के दिवस अहोई माता की आराधना करते हैं।

हवेली के ऊपर से मैं वह स्थान देख सकती थी जहां घोड़ों का अस्तबल था। उसकी भित्तियों पर घोड़ों की आकृतियाँ चित्रित हैं। हवेली के ठीक समक्ष एक विशाल मंदिर परिसर है जिसे ठेठ राजपूताना वास्तुशैली में निर्मित किया गया है। मंदिर पर शुद्ध श्वेत रंग चढ़ाया हुआ है जो उसके चारों ओर स्थित हवेलियों के चटक रंगों से पूर्णतः विपरीत है।

पोद्दार हवेली

पोद्दार हवेली नवलगढ़
पोद्दार हवेली नवलगढ़

यदि आपसे पूछा जाए कि नवलगढ़ में, यहाँ तक कि सम्पूर्ण शेखावटी में केवल एक स्थल के दर्शन का अवसर है तो आप अवश्य डॉ रामनाथ पोद्दार हवेली संग्रहालय का चुनाव करिए। सन् १९०२ ई. में निर्मित यह एक विशाल हवेली है। इसकी सफलतापूर्वक संरक्षित चित्रों को देख आप इस हवेली के समृद्ध काल की कल्पना कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इस हवेली में उचित परिदर्शित भ्रमण की व्यवस्था है जो आपको इस हवेली एवं उत्तम रूप से संरक्षित संग्रहालय को जानने एवं उस की सराहना करने में सहायक है। किंचित प्रवेश शुल्क लेकर सुनील जी आपको प्रत्येक अवयव के विषय में जानकारी देते हैं। सुनील जी राजस्थानी संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए सदा भावुक एवं उत्साही रहते हैं।

इस हवेली का रखरखाव अति उत्तम है। इसमें ७५० से भी अधिक चित्रकलाएं हैं जो उत्तम रीति से संरक्षित एवं अभिलेखित हैं। हवेली के अभीक्षक हवेली से संबंधित कथाओं से भलीभाँति अवगत हैं तथा उन कहानियों को सुनाने में उन्हे अत्यंत आनंद भी आता है।

सांस्कृतिक संग्रहालय

हवेली के ऊपरी कक्षों को संग्रहालय में परिवर्तित किया है जहां राजस्थान के विभिन्न सांस्कृतिक आयामों को प्रदर्शित किया गया है। जैसे:

  • राजस्थान के विभिन्न समुदायों में प्रचलित वर-वधू परिधान
  • विभिन्न समुदायों में प्रचलित पगड़ियाँ
महाजन पगड़ी
महाजन पगड़ी
  • राजस्थान के प्रसिद्ध दुर्गों के लघु प्रतिरूप
  • राजस्थान की विभिन्न सूक्ष्म चित्रकारी शैलियाँ
  • मरुराज्य की विभिन्न हस्तकलाएं
  • राज्य के विभिन्न संगीत वाद्य
  • विभिन्न राजस्थानी शैलियों के आभूषण एवं माणिक
  • राजस्थान के उत्सव
  • एक गांधी कक्ष है जहां भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन काल में इन हवेलियों की नींवों को प्रदर्शित किया गया है।
आनंदी लाल पोद्दार जी अपने पुत्रों के साथ
आनंदी लाल पोद्दार जी अपने पुत्रों के साथ

श्री. रामनाथ पोद्दार काँग्रेस के प्रमुख सदस्य थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। संग्रहालय के एक कक्ष में पोद्दार परिवार के छायाचित्र हैं। एक चित्र में परिवार के एक सदस्य को भारतीय संसद का भाग भी दर्शाया गया है। एक श्वेत-श्याम चित्र मुझे अत्यंत रोचक प्रतीत हुआ जिसमें श्री. आनंदी लाल पोद्दार की छवि को उनके चार पुत्रों की छवियों से इस प्रकार संयुक्त किया है कि भिन्न दिशा से अवलोकन करने पर भिन्न छवि नेत्रों के समक्ष उभरती है। इसे देख में अचंभे में पड़ गई कि इस प्रकार की रचनात्मकता अब क्यों दृष्टिगोचर नहीं होती?

चित्रकारी

पोद्दार हवेली में चित्रों का सुंदर संग्रह है। उनमें से कुछ चित्र ऐसे हैं जिन्हे देखना आप कदापि ना भूलें। वे हैं:

कृष्ण की कथाएं शेखावटी हवेली की भित्तियों पर
कृष्ण की कथाएं शेखावटी हवेली की भित्तियों पर
  • जयदेव का गीत गोविंद
  • बैठक के चारों ओर लघु कक्षों में चित्रित १० महाविद्याएं
  • बैठक के द्वार के ऊपर स्थित लक्ष्मी का चित्र
  • महाभारत में खेला गया चौपड़ का दृश्य
  • समरूपता प्रदर्शित करते कृत्रिम झरोखे, जिनमें बैठक की ओर झाँकते लोग ऐसे चित्रित हैं मानो वे जानने को उत्सुक हैं कि उनकी हवेली में आए भेंटकर्ता कौन हैं।
  • विस्तृत गणगौर उत्सव
  • भाप इंजन द्वारा चालित एक लंबी रेलगाड़ी जिसके साथ रेल लाइन बिछाने का भी दृश्य चित्रित है।
  • भारतीय एवं ब्रिटिश व्यापारियों के चित्र
  • बाह्य भित्तियों पर समकालीन संभ्रांतों के विशाल चित्र

यदि आप इन चित्रों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि हवेली की इन चित्रित भित्तियों में भूत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों का समावेश है।

महालक्ष्मी
महालक्ष्मी

पोद्दार हवेली का ऊपरी तल विक्टोरिया कालीन शैली में है। यद्यपि प्रथम तल पर भी उसी प्रकार के चित्र भित्तियों पर हैं किन्तु हल्के पिस्ता रंग में रंगे वहाँ के तोरण एवं स्तंभ विक्टोरिया कालीन अलंकरण का सटीक निरूपण हैं।

बैठक

नवलगढ़ की पोद्दार हवेली की बैठक
नवलगढ़ की पोद्दार हवेली की बैठक

इस हवेली का सर्वाधिक मनमोहक भाग बैठक है जहां सुंदर लाल रंग के गद्दे, तकिये एवं लाल रंग का हस्त पंखा लटका हुआ है। दोनों तलों एवं झरोखों के चित्र यह दर्शाते हैं कि दोनों तलों का मूल प्रारूप भिन्न होते हुए भी उनमें समरूपता है तथा दोनों एक ही हवेली के अभिन्न भाग हैं। तिजोरी कक्ष बैठक के अत्यंत भीतरी भाग में है जहां तक पहुँचने के लिए अनेक द्वार पार करने पड़ते हैं। हवेली का यह भाग अन्य भागों के विपरीत अत्यंत सादा है। हवेली का प्रांगण अत्यंत मनमोहक है। इसका लकड़ी का उत्कीर्णित द्वार अत्यंत शोभायमान है। हवेली का रसोईघर इतना छोटा है कि यह आपको अति विचित्र प्रतीत होगा। इससे विचित्र यह तथ्य है कि रसोईघर में सामग्री भंडारण के लिए आले एवं अलमारी भी नहीं हैं। सामग्री भंडारण के लिए बड़े बड़े सन्दूक अवश्य हैं किन्तु रसोईघर का लघु आकार अब भी मेरे लिए एक पहेली ही है।

विक्टोरियन एवं भारतीय शैली पोद्दार हवेली के दो तलों पर
विक्टोरियन एवं भारतीय शैली पोद्दार हवेली के दो तलों पर

हवेली में एक छोटा पुस्तकालय भी है किन्तु अत्यंत दुखी होकर मुझे कहना पड़ रहा है कि वहाँ मेरे समान आगंतुकों एवं भेंटकर्ताओं के प्रवेश पर पाबंदी है।

पोद्दार हवेली के चित्रों को निहारने, उन्हे समझने एवं उनकी सराहना करने में आपके घंटों व्यतीत हो जाएंगे। इसीलिए हवेली, उसकी संरचना, उसका लोकाचार एवं वहाँ की चित्रकला शैली को समझने के लिए आपको कम से कम एक घंटे का समय ले कर चलें। कोई विशेषज्ञ अथवा पारखी यहाँ एक से अधिक दिवस व्यतीत कर सकता है।

पोद्दार हवेली का विडिओ

हवेली में मेरी भेंट के समय मैंने इस अद्वितीय धरोहर का सुंदर छाया चलचित्र मैंने मेरे यूट्यूब चैनल में डाला है। इसका अवलोकन अवश्य कीजिए। आपको यह उत्तम रूप से संरक्षित कलाकृति अवश्य भायेगी। कदाचित आप अपनी आगामी भ्रमण योजना में नवलगढ़ का ही समावेश करें।

नवलगढ़ की अन्य हवेलियाँ

चूंकि नवलगढ़ की सभी हवेलियाँ एक ही क्षेत्र में स्थित हैं तथा एक ही काल में निर्मित हैं, अन्य हवेलियों का विस्तृत अवलोकन करना आवश्यक नहीं है। आप बाहर भ्रमण करते हुए इन्हे निहार सकते हैं। यदि कोई हवेली खुली हो तो आप भीतर जाकर उसे देख सकते हैं। कभी कभी वहाँ कोई रखवाला भी मिल जाता है जिससे निवेदन कर अथवा कुछ मेहनताना दे कर हवेली दिखाने का आग्रह कर सकते हैं। अधिकार हवेलियाँ बंद हैं। उन पर समय का प्रहार स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

नवलगढ़ हवेली पर रेल का इंजन, सेनानी और लोक कथाएं
नवलगढ़ हवेली पर रेल का इंजन, सेनानी और लोक कथाएं

यदि आप जिज्ञासू हैं तो आप प्रत्येक हवेली की कुछ ना कुछ वैशिष्ट्य अथवा कुछ रोचक चित्र अवश्य ढूंढ निकालेंगे। एक हवेली में मैंने पर्याप्त मात्रा में बेल्जियम कांच का प्रयोग देखा तो एक अन्य हवेली में रेल सेतु के निर्माण का चित्र मुझे अत्यंत विशेष एवं रोचक प्रतीत हुआ। किन्तु हवेलियों का ऐसा सक्रिय अवलोकन करने के लिए पर्याप्त समय एवं धैर्य की आवश्यकता है।

नवलगढ़ की अधिकतर हवेलियाँ व्यवहार में नहीं हैं। न हवेलियों के स्वामी, न ही किरायेदार इत्यादि इन हवेलियों में वास करते हैं। नवलगढ़ के ठीक विपरीत, मंडावा, चुरू एवं बागड़ की कुछ हवेलियों को विरासती अतिथिगृहों में परिवर्तित किया गया है तथा उनका उत्तम प्रयोग किया जा रहा है।

मंदिर

नवलगढ़ के मंदिर
नवलगढ़ के मंदिर

मोरार्का हवेली के समक्ष शुद्ध श्वेत रंग में रंगा एक मंदिर परिसर है जिसमें अनेक छोटे-बड़े मंदिर हैं। मैं जब यहाँ आई थी तब दोपहर के भोजन का समय हो चुका था। मंदिर के पट बंद हो चुके थे। मेरी निराशा कदाचित मेरे मुखड़े पर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। किसी ने समीप स्थित एक दुकान में पुजारीजी को बुलावा भेजा। उन्होंने तुरंत एक मंदिर को खोलकर मुझे मंदिर में दर्शन करने का अवसर दिया।

११ लिंगों वाला शिवलिंग
११ लिंगों वाला शिवलिंग

मैंने यहाँ एक अद्भुत शिवलिंग देखा। पत्थर की एक योनि के ऊपर ११ लिंग विराजमान थे। मंदिर की भित्तियों पर भी हवेलियों के ही समान चित्र थे किन्तु उतनी संख्या में नहीं थे। राधा-कृष्ण का भी एक मंदिर देखा। तत्पश्चात मेरे लिए मंदिर के पट खोलने के लिए मैंने पुजारीजी का हृदय से आभार प्रकट किया। पुजारीजी ने आनंदित होकर कहा कि आप इतनी दूर से यहाँ दर्शन के लिए आई हैं तो मैं आपकी सहायता करने के लिए कुछ पग अवश्य चल सकता हूँ। पुजारीजी की ऐसी सादगी ने मेरा मन गदगद कर दिया था। ऐसे व्यवहार का अनुभव आपको भारत के शहरी केंद्रों से दूर जाकर ही प्राप्त हो सकता है।

गोपीनाथ जी का मंदिर

यह मंदिर भीड़भाड़ भरे बाजार के मध्य में स्थित है। पोद्दार द्वार से मैंने इस मंदिर में प्रवेश किया। दुर्भाग्य से इस मंदिर का गर्भगृह भी बंद था। किन्तु मुझे निराशा नहीं हुई क्योंकि मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करते हुए मैंने मंदिर पर की गई चित्रकारी का भरपूर आनंद उठाया। मंदिर में प्रवेश करते ही, कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर आप एक सभागृह में पहुंचते हैं। इस सभागृह की छत पर एक अप्रतिम राम दरबार उत्कीर्णित है। मुझे बताया गया कि इस मंदिर का निर्माण नवलगढ़ के संस्थापक नवल सिंह ने ही करवाया था। अतः यह मंदिर भी नवलगढ़ जितना ही प्राचीन है। गोपीनाथ जी अर्थात् गोपियों के नाथ। जी हाँ, यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है।

गोपीनाथ जी मंदिर में राम दरबार
गोपीनाथ जी मंदिर में राम दरबार

इस क्षेत्र के अन्य मंदिरों में कल्याण जी मंदिर एवं गणेश मंदिर उल्लेखनीय है। मैं इन्हे केवल बाहर से ही देख पायी। मुझे देखकर बाजार में लोगों अटकलें लगा रहे थे कि मैं केवल मंदिर की चित्रकारी एवं वास्तुकला में ही रुचि रखती हूँ। मैंने जब उन्हे बताया कि मैं वास्तव में भगवान के दर्शन करना चाहती हूँ तो उन्हे सुखद आश्चर्य भी हुआ।

रामदेव जी मंदिर – रामदेव शेखावटी क्षेत्र के एक स्थानिक लोक देव हैं। उनका मंदिर आप इस क्षेत्र के प्रत्येक नगरी में देख सकते हैं।

रूप निवास कोठी

रूप निवास कोठी नवलगढ़
रूप निवास कोठी नवलगढ़

विशाल बगीचों से घिरा यह एक प्राचीन महल है। अब इसे एक विरासती अतिथिगृह में परिवर्तित कर दिया गया है जिसका संचालन राजपरिवार ही करता है। इस कोठी में औपनिवेशिक काल का प्रभाव स्पष्ट झलकता है। आप यहाँ राजपरिवार के सदस्यों के छायाचित्रों में उन्हे अन्य साज-सामग्री सहित घोड़ों पर सवार देखेंगे। उनके वेबस्थल के अनुसार आप यहाँ घुड़सवारी का आनंद ले सकते हैं। वैसे भी, नवलगढ़ घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था।

पोद्दार कॉलेज – पोद्दार महाविद्यालय अपने विशाल घंटाघर के कारण विशेष है। पोद्दार कॉलेज तथा मोरार्का विद्यालय समेत अनेक अन्य शैक्षणिक संस्थान इस नगरी को यहाँ के व्यापारियों की देन है जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी निवेश किया है। इन्हे उस समय बनवाया गया था जब ‘कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोन्सिबिलिटी’ अर्थात् कंपनियों का सामाजिक उत्तरदायित्व, यह संकल्पना लोकप्रिय एवं आवश्यक नहीं हुई थी।

बाजार में मैंने लाख की चूड़ियों की, छोटे कुम्हारों की एवं चमड़े के जूतों की अनेक दुकानें देखीं।

कुल मिलाकर नवलगढ़ में प्राचीनता एवं नगरी परिवेश, दोनों के सभी अवयव दृष्टिगोचर होते हैं। मेरी तीव्र अभिलाषा है कि नवलगढ़ के सभी भव्य हवेलियों में सक्रिय वसाहत हो ताकि वे केवल संग्रहालय में संकुचित होकर न रह जाएँ।

यात्रा सुझाव

  • नवलगढ़ जयपुर से १६० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नवलगढ़ के लिए निकटतम विमानतल भी जयपुर ही है।
  • नवलगढ़ राजस्थान के सभी प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग द्वारा भलीभाँति जुड़ा हुआ है।
  • अधिकतर पर्यटक नवलगढ़ की अपेक्षा मंडावा अथवा चुरू में ठहरना अधिक पसंद करते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

4 COMMENTS

  1. नवलगढ़ की पोद्दार हवेली अतिसुन्दर गजब की चित्रकारी व वास्तु, अभी तक तो महलों में ही इतनी भव्यता व कलात्मकता देखने मे आती थी, लेकिन इस व्यक्तिगत हवेली में तो शायद ही कोई जगह छोड़ी कलाकारों ने, जहाँ उन्होंने अपनी छाप नही छोड़ी। मैं तो यही सोच रहा हूँ कि इस को बनाने में कितना धन व समय लगा होगा और बनवाने वालों ने कितना धैर्य रखा होगा। आपका हवेली का वीडियो तो वहां की भव्यता, सुंदरता व कला का बखान कर रहा है। धन्यवाद????????????

    • जब हवेलियाँ पीढियों के लिए बनाई जाती थी प्यार से, अरमान से तब ऐसी ही बनती थी, हालाँकि एक पीढ़ी से अधिक लोग रह नहीं पाए इनमे भी।

  2. अनुराधाजी एवं मीताजी
    नवलगढ की हवेलीयों के विषय में आपका लेख दिल को छू गया. आपके मन में इतने सुंदर स्थलों के अवलोकन का खयाल कैसे आता है. नवलगढ का इतिहास भी अवर्णनीय है. सही में नवलसिंहजी इसके लिये धन्यवाद के पात्र है. उन्ही के प्रयासों से गणमान्य व्यक्ति यहां आकर बसे और उन्होंने सुंदर सुंदर हवेलियों का निर्माण किया. हवेलियों के सुंदर फोटो से और व्हिडिओ से उनकी भव्यता, कलात्मकता और सुंदरता देखने को मिली. फोटो इतने सुंदर है तो वास्तविक हवेलियां कितनी सुंदर होंगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है और उनको प्रत्यक्ष देखने को जी ललचाता है.
    पोतदार हवेली तो एकसोबीस वर्ष पुरानी होने के बावजूद बहुत ही आकर्षक मनमोहक और अत्यंत सुंदर लगी. भित्ती- चित्र और संग्रहालय अचंभित करने वाले है. यहां के मंदिर बहुत ही प्रेक्षणीय लगे. इतनी प्रेक्षणीय हवेलीयों के दर्शन कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद.

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