पंजाब का एक राजशाही नगर है, पटियाला। यहाँ की महिलायें अत्यंत संभ्रांत मानी जाती हैं। पटियाला का बाजार भी महिलाओं में अत्यंत लोकप्रिय है जो इन संभ्रांत महिलाओं की साज-सज्जा की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। पटियाला अपनी राजसी धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। पटियाला जैसे एक छोटे नगर में भी अनेक दुर्ग, गढ़, महल जैसे कई ऐतिहासिक पर्यटन स्थल हैं। अनेक सुन्दर हवेलियाँ हैं, भिन्न भिन्न प्रकार के बाजार हैं तथा अनेक प्रकार की मिठाइयों की दुकानें हैं।
आईये, पंजाब के ऐतिहासिक धरोहरों से परिपूर्ण इस पटियाला नगर का भ्रमण करने मेरे साथ चलिए।
पटियाला के दर्शनीय स्थल
गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब
यद्यपि मैंने अपना पटियाला भ्रमण इस प्रकार नियोजित तो नहीं किया था, तथापि मेरा पटियाला का अविस्मरणीय भ्रमण दुख निवारण साहिब नामक इस गुरुद्वारे से ही हुआ था।
निवारण साहिब
यह एक विशाल गुरुद्वारा है। उससे भी विशाल इसका जलकुंड है। दूर-सुदूर से भक्तगण अपने दुखों का निवारण करने एवं कष्टों से मुक्ति का मार्ग पाने यहाँ आते हैं। अपने कष्टों एवं दुखों से मुक्ति पाते ही वे ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने पुनः यहाँ आते हैं तथा इस पवित्र कुण्ड में डुबकी लगाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि यदि निःसंतान दंपत्ति लगातार पाँच मास तक हिन्दू पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि को यहाँ आये तथा प्रभु से संतान की मांग करे तो उनकी अभिलाषा अवश्य पूर्ण होती है।
गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब का इतिहास
गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब पटियाला का वह प्राचीनतम भाग है जो अपनी स्थापना से अब तक अखंड रूप से जीवंत है। ऐसा माना जाता है कि पुरातन काल में इस गुरूद्वारे के निकट स्थित गाँव के सभी गाँववासी सदा व्याधियों एवं निर्धनता से त्रस्त रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर बहादुरगढ़ नामक एक स्थान पर पधारे थे जो यहाँ से अधिक दूर नहीं है।
तब एक गाँववासी भाग राम ने गुरु तेग बहादुर से भेंट की तथा उनसे गाँव आकर गाँव को आशीष देने की विनती की। सभी गाँववासियों के कष्टों का निवारण करने का अनुरोध किया। उसकी विनती स्वीकार करते हुए गुरु तेग बहादुर उस गाँव में पहुँचे तथा एक जलकुंड के समीप एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस दिन से गाँव को सभी कष्टों व दुखों से मुक्ति प्राप्त हो गयी।
ऐसा माना जाता है कि उस समय से जलकुंड के जल में सभी कष्टों का निवारण करने की क्षमता समाहित हो गयी। आज भी भक्तगण जलकुंड एवं उसके जल को अत्यंत पावन मानते हैं। कुण्ड के जल में कुछ भी डालना निषिद्ध है। जल में पैर डालकर बैठने की भी अनुमति नहीं है।
गुरुद्वारा परिसर में एक छोटा संग्रहालय है। यह संग्रहालय सिख धर्म के इतिहास को प्रदर्शित करता है।
गुरुद्वारे में हमने चारों ओर भ्रमण किया। सम्पूर्ण परिसर की भूमि पर संगमरमर लगा हुआ है। शीतकालीन जनवरी मास के कड़ाके की ठण्ड में भी चारों ओर सन्निहित भक्ति की उर्जा के कारण हमें भूमि की शीतलता का आभास ही नहीं हो रहा था। भक्तगण गुरुद्वारे के भीतर एवं बाहर आनंद से बैठे हुए थे तथा गुरबाणी सुन रहे थे। मैं भी कुछ क्षण के लिए वहाँ बैठ गयी तथा वातावरण में समायी शान्ति का अनुभव लिया। किन्तु मुझे परम शांति का अनुभव कड़ा प्रसाद का भक्षण करने के पश्चात ही हुआ जो केवल गुरुद्वारों में ही मिलता है।
जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर साहिब बैठे थे, उस स्थान पर अखंड ज्योत प्रज्ज्वलित रहती है। हम में से कोई भी उस ज्योत में घी का दान कर सकता है।
सम्पूर्ण परिसर की भूमि पर जो संगमरमर लगा हुआ है, उसके कुछ भागों पर संगमरमर पर रंगीन मीनाकारी की हुई है। कुछ छतों पर भी कांच के आकर्षक अलंकरण हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब के ऊपर स्थित मुख्य गुंबज सोने का है। इनके अतिरिक्त गुरुद्वारे के अधिकतम भाग शुभ्र श्वेत रंग में हैं।
गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गुरूद्वारे के वेबस्थल पर संपर्क करें।
मोहिंदरा कॉलेज
यदि पुरातन वास्तुकला शैलियों में आपकी रूचि है तो आप यहाँ रूककर, इसको निहारे बिना, इस आकर्षक संरचना के सामने से आगे नहीं जा सकते। सन् १८७५ में स्थापित यह विश्वविद्यालय देश के प्राचीनतम शिक्षण संस्थाओं में से एक है।
इस कॉलेज का नाम पटियाला के तात्कालिक महाराजा मोहिन्दर सिंह के सम्मान में रखा गया है। इस इमारत की सम्पूर्ण संरचना उस औपनिवेशिक काल की छवि प्रस्तुत करती है जिस काल में इसकी स्थापना हुई थी। क्या आप विश्वास करेंगे कि यह महाविद्यालय सम्पूर्ण उत्तर भारत में इस प्रकार का इकलौता महाविद्यालय था। यह महाविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था। सन् १९३७ तक यहाँ निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी। मुझे बताया गया कि इस महाविद्यालय में कन्याओं की शिक्षा आज भी निशुल्क है।
यूँ तो मोहिंदरा कॉलेज अथवा मोहिंदरा महाविद्यालय का नाम मेरी भ्रमण सूची में नहीं था, फिर भी मुझे महाविद्यालय की इस आकर्षक संरचना में भ्रमण करने, शीत ऋतु में सूर्य की सुखद किरणों के नीचे इसके उद्यान में बैठकर विद्यार्थियों को कक्षाओं में आते-जाते हुए देखने में आनंद आ गया था।
पटियाला के धरोहरों का पदभ्रमण
हमने अपने दिन का आरम्भ पटियाला के धरोहरों के पदभ्रमण से किया जो शाही समाधान के शाही स्मारकों, पुरातन हवेलियों, पटियाला के विशेष व्यंजनों की दुकानों आदि से होते हुए पटियाला नगर के हृदयस्थली स्थित किला मुबारक में समाप्त होती है।
अवश्य पढ़ें: पटियाला के धरोहरों का पदभ्रमण
शीश महल
पटियाला की मेरी बालपन की स्मृतियों में सर्वाधिक उज्जवल स्मृति शीश महल की ही है। किन्तु अपने इस भ्रमण में मैं इसका दर्शन बाहर से ही कर पायी थी क्योंकि नवीनीकरण कार्य के चलते यह स्मारक दर्शकों के लिए बंद था। गुलाबी रंग की इस संरचना में दो ऊँचे बुर्ज हैं जो इस महल के संरक्षक दुर्ग प्रतीत होते हैं। इसके छज्जे पर की गयी गचकारी एवं जालीदार कारीगरी बाहर से भी देखी जा सकती है।
बाहर से यह एक छोटा व सामान्य महल प्रतीत होता है किन्तु मैं विश्वास के साथ यह कहती हूँ कि इसके नवीनीकरण के पश्चात आप जब भी पटियाला आयें, इस प्रसिद्ध शीश महल का दर्शन अवश्य करें, यह आपको प्रसन्न कर देगा।
महल के समीप एक झील है जो अब सूख रही है। इस झील के ऊपर एक संकरा झूलता सेतु है जो महल को झील के उस तट से जोड़ता है। मेरी यात्रा के समय इस सेतु पर भी रखरखाव कार्य किया जा रहा था। मैं कल्पना करने लगी कि जल से लबालब झील के ऊपर बने झूलते सेतु पर से जाते हुए कितना आनंद आता होगा! विशेषतः संध्याकाल में सूर्योदय का आनंद उठाते हुए सेतु पार करना भावविभोर कर देता होगा!
प्राचीन मोती बाग या नेताजी सुभाष राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान (NSNIS)
आपने पटियाला स्थित नेताजी सुभाष राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान के विषय में अवश्य सुना होगा। यदि क्रिकेट पर आधारित चित्रपटों को छोड़ दें तो खेलों पर आधारित भारत के लगभग सभी चित्रपटों में इसी क्रीड़ा संस्थान को दिखाया जाता है। मेरा यह मानना है कि यह भारत के खिलाड़ियों का काशी है।
मूलतः यह पटियाला के महाराजा का विशाल महल था जिसे मोती महल कहा जाता था। इस संस्थान में खेल अकादमी के अतिरिक्त एक खेल संग्रहालय भी है। भारत में इसके अतिरिक्त भी कहीं इस प्रकार का खेल संग्रहालय है, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है।
खेल के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को इस संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है। मुझे अप्पू को देख कर बड़ा आनंद आया। आपको स्मरण होगा, सन् १९८२ के एशियाई खेलों का शुभंकर अथवा mascot अप्पू नाम का हाथी था। पी टी उषा एवं मिल्खा सिंग जैसे महान खिलाड़ियों के चित्र देख गर्व का अनुभव हुआ।
प्राचीन मोती बाग के उद्यान में रेलगाड़ी का पुरातन डिब्बा है जो हरे रंग का है। यह रेल का डिब्बा एक रोचक कथा कहता है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में जब सर्वप्रथम रेलगाड़ी का आगमन हुआ था तब पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने एक अंग्रेज को दौड़ की चुनौती दी थी। ऐसा तय किया गया था कि महाराजा घोड़े पर तथा वह अंग्रेज अपने नवीन रेल के डिब्बे में सवार होकर दौड़ में भाग लेंगे। महाराजा भूपिंदर सिंह इस दौड़ में विजयी हुए थे तथा उन्हें पारितोषिक स्वरूप यह रेल का डिब्बा प्रदान किया गया था। उनका यह पारितोषिक इस उद्यान में उस काल से खड़ा है।
पटियाला के द्वार
पटियाला नगर में अपने वाहन से भ्रमण करते हुए हम पटियाला के अनेक द्वारों पर रुके। इन द्वारों से संलग्न भित्तियों के कोई अवशेष अब नहीं हैं लेकिन ये द्वार अब भी अपना अस्तित्व संजोये हुए हैं जिनके मध्य से गाड़ियाँ ऐसे आती-जाती हैं मानो वे नगर में प्रवेश अथवा नगर से बहिर्गमन कर रहें हों।
बहादुरगढ़ दुर्ग
यह दुर्ग मुख्य नगर से किंचित दूरी पर स्थित है। अब इस दुर्ग को पुलिस प्रशिक्षण संस्थान में परिवर्तित कर दिया गया है जिसके कारण सामान्य नागरिकों के लिए इसके भीतर प्रवेश सीमित स्तर पर ही उपलब्ध है। हम इस दुर्ग के भीतर जाकर वहाँ स्थित गुरुद्वारा के दर्शन अवश्य कर सके। छोटी छोटी ईंटों द्वारा निर्मित इस दुर्ग की भित्तियाँ अब भी दृढ़ प्रतीत होती हैं।
काली देवी का मंदिर
पटियाला का काली देवी मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित काली देवी की मूर्ति को कोलकाता से लाया गया था। जिव्हा बाहर निकाली हुई काली देवी की ऐसी ही एक प्रतिमा कलकत्ता काली घाट पर भी है।
यह एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर में देवी को चढ़ावे के रूप में मदिरा अर्पण की जाती है। मैंने सम्पूर्ण भारत में इससे स्वच्छ मंदिर नहीं देखा। यहाँ जिन छोटे छोटे पूड़ों में प्रसाद दिया जाता है, उन पर भी स्वच्छता बनाए रखने हेतु सन्देश लिखे हुए हैं। मंदिर की भूमि पर नंगे पैर चलते हुए मुझे बड़ा आनंद आ रहा था क्योंकि मुझे निश्चिंतता थी कि भूमि पर कहीं भी किसी भी प्रकार का खाद्य अथवा प्रसाद बिखरा हुआ नहीं है। मुख्य मंदिर के पृष्ठभाग में कुछ छोटे मंदिर हैं जिनमें भगवान शिव एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों की प्रतिमाएं हैं।
पटियाला के विशेष व्यंजन
पटियाला का एक अत्यंत ही विशेष व्यंजन है, सूत के लड्डू, जो संभवतः केवल पटियाला में ही मिलते हैं। इसके लिए लोग आपको गोपाल स्वीट्स में जाने के लिए कहेंगे। किन्तु मैं आपसे कहूंगी कि आप पम्मी पूरियां वाला जाएँ तथा ये लड्डू वहाँ से लें। ये पटियाला की सर्वोत्तम सौगात हैं।
पटियाला में एक दुकान है, सतरंगी गोलगप्पे वाला। इसकी लोकप्रियता का श्रेय जाता है, सात भिन्न भिन्न प्रकार के पानी वाले गोलगप्पों को। ये हैं:
- जीरा
- पुदीना
- हिंग
- काली मिर्च
- मीठा
- चटनी
- दही वाला
आप जब भी पटियाला जाएँ तो सतरंगी गोलगप्पे वाले के पास इन सभी सात प्रकार के गोलगप्पों का आस्वाद अवश्य लें।
पटियाला के आसपास अन्य दर्शनीय स्थल
पटियाला के आसपास के खेत
आप पंजाब जाएँ तथा वहाँ के खेतों के दर्शन ना करें, यह कैसे हो सकता है ! इसलिए हमने एक फार्महाउस में जाने का निश्चय किया। किन्तु हमारा सही आनंद तो मार्ग में हमसे भेंट करने की प्रतीक्षा कर रहा था!
सड़क के एक ओर गुड़ बनाने की एक इकाई थी। मेरे जीवन का यह प्रथम अवसर था जब मैं गुड़ बनाने की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष देख रही थी। आधे घंटे के भीतर गन्ने का ताजा रस गुड़ में परिवर्तित हो जाता है। इसके लिए गन्ने के रस को पकाकर गाढ़ा किया जाता है तथा उसे सांचों में डालकर ठंडा लिया जाता है।
हमें पात्र में से ताजे गुड़ को खाने में भी अत्यंत आनंद आया। पंजाबी आतिथ्य का क्या कहना! सर्वप्रथम उन्होंने हमें गन्ने का ताजा रस पिलाया। तत्पश्चात गुड़ खिलाया। उसके पश्चात चाय भी पिलाई।
गुड़ बनाने की प्रक्रिया का विडियो
इसके पश्चात हमने एक दुकान से सूखे मेवे मिश्रित गुड़ क्रय किया जिसका आस्वाद मैं घर आकर अब भी ले रही हूँ।
हमने देसी शैली में भी अपने दांतों से काटकर गन्ना खाया। पंजाब के विषय में कहा जाता है कि आप किसी के खेत से एक गन्ना उठायें तो वे आपको अपनी ओर से एक गन्ना और दे देते हैं।
हम कुछ खेतों में भ्रमण करने लगे जहाँ बिहार से आये कुछ कामगार आलू की फसल काट रहे थे। यद्यपि प्रमुख कटाई यंत्रों द्वारा की जा रही थी, तथापि चुनने एवं छाँटने का कार्य हाथों द्वारा किया जा रहा था। भारत के भोजन भण्डार माने जाने वाले पंजाब के खेतों में खड़े हो कर हमें अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा था।
पटियाला के आसपास के खेतों में विचरण करते हुए हम अंततः फार्महाउस पहुँचे। वहाँ पहुँच कर ज्ञात हुआ कि वह विवाह-पूर्व छायाचित्रीकरण के लिए एक लोकप्रिय स्थल है। अनेक स्थानों पर विशेष साज-सज्जा की गयी थी। अनेक स्थानों पर कैमरे लगे हुए थे। आकाश में ड्रोन द्वारा भी चित्रीकरण किया जा रहा था। अनेक कृत्रिम साधनों का प्रयोग किया जा रहा था जैसे सजीले जीप, मोटरसायकल, बग्घी आदि। ये दृश्य देख मुझे फार्महाउस का रत्ती भर भी आभास नहीं हुआ। पंजाब का यह नवीन उभरता आयाम देखना रोचक अवश्य लगा।
केवल पंजाब में ही प्राप्त होने वाले वे क्षण!
पंजाब की सडकों पर हमें कुछ ऐसे दृश्य दिखे जो कदाचित केवल पंजाब में ही दिखाई देंगे।
- दुपहिया वाहन पर एक सम्पूर्ण दुकान!
सड़कों पर चाहे जितनी भीड़ हो, वे अपनी दुकान को आसानी से यहाँ से वहाँ ले जा सकते हैं।
- मोटरसायकल पर खड़े होकर चलाने वाला पंजाबी नवयुवक
पटियाला के इन दर्शनीय स्थलों एवं आकर्षणों के दर्शनों के पश्चात हम खरीददारी करने के लिए अदालत बाजार भी गये। वहाँ का अनुभव साझा करने के लिए एक सम्पूर्ण संस्करण की आवश्यकता होगी।