मुझे जब कान्हेरी गुफाओं के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी, उसके पूर्व मुंबई के भीतर स्थित इन अद्भुत प्राचीन ऐतिहासिक गुफाओं के विषय में मैंने ना तो पढ़ा था, ना ही सुना था। सर्वप्रथम ब्रिटिश काल के समय इन कान्हेरी गुफाओं के अस्तित्व के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी। बोरिवली के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए सुव्यवस्थित सड़क मार्ग उपलब्ध हैं। इन गुफाओं के आरंभिक बिन्दु तक गाड़ियां पहुँच सकती हैं। यहाँ से कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर आप टिकट खिड़की तक पहुंचेंगे, तत्पश्चात गुफा में प्रवेश करेंगे।
कान्हेरी गुफाएं – मुंबई का लोकप्रिय पर्यटन स्थल
अजंता एवं एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं के समान ही, कान्हेरी गुफाओं का उत्खनन भी १ ई.पू. से ११ ई. तक किया गया था। ये गुफाएं महायान एवं हीनयान, बौद्ध धर्म के इन दोनों पथों से सम्बंधित हैं। इस तथ्य का साक्ष्य देती हैं वे गुफाएं, जहां कुछ गुफाओं में बुद्ध को स्तूप एवं चरण पादुका जैसे संकेतों से दर्शाया गया है तो कुछ गुफाओं में उनके मानवरूपी छवियाँ हैं।
कान्हेरी गुफाओं के नाम की व्युत्पत्ति उस पहाड़ के नाम से हुई है जिस पर ये स्थित हैं, कृष्णगिरी। यह एक ज्वालामुखी से उत्पन्न पर्वत है। इस पर्वत पर कुल ११० गुफाओं का समूह है जो इस समूह को सर्वाधिक विशाल गुफा समूह बनाता है। यद्यपि कुछ गुफाएं अपूर्ण प्रतीत होती हैं। प्राचीन काल में ये गुफाएं उस व्यापार मार्ग पर थीं जो सोपारा, नासिक, पैठन तथा उज्जैन को जोड़ती थी।
चट्टान पर सुव्यवस्थित प्रकार से उकेरी गई सीढ़ियाँ अत्यंत दर्शनीय हैं।
चैत्य गृह
इन गुफाओं में एक चैत्य गृह अथवा प्रार्थना कक्ष है। एक विशाल भोजन कक्ष भी है जिसके भीतर भोजन करने के लिए दोनों ओर कम ऊंचाई की लम्बे शिलापाट हैं। अनेक भूमिगत जलकुण्ड हैं। भिक्षुओं के निवास के रूप में अनेक विहार हैं जिसके बाह्य प्रांगण में बैठकें भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि ३री सदी तक कान्हेरी गुफ़ाएं बौद्ध भिक्षुओं की स्थाई बस्ती बन चुकी थीं।
गुफा क्र. ३
गुफा क्र. ३ अथवा चैत्य गृह वर्तमान प्रवेश स्थल के समीप स्थित है। इसकी छत पर उत्कीर्णित आकृतियाँ लकड़ी पर की जानी वाली नक्काशी के समान है। ठीक वैसी ही जैसी, लोनावला के समीप स्थित कारले गुफाओं के भीतर हैं। इस विशाल कक्ष के मध्य में एक विशाल स्तूप है। इसके पार्श्व भाग में कुछ उत्कीर्णित स्तम्भ हैं जिन पर गजों की आकृतियाँ हैं। यह कक्ष कम से कम दो तलों का है किन्तु ऊपरी तलों तक पहुँचने का मार्ग ढूँढना अब कठिन है। गुफा के बाहर, ड्योढ़ी पर,बुद्ध की विशाल, उभरी हुई प्रतिमाएं हैं। अग्र भित्तियों पर उन दाताओं की छवियाँ हैं जिन्होंने इन गुफाओं को प्रायोजित किया था। गुफा के बाहर आप कुछ अन्य स्तूप भी देखेंगे। उनमें से एक स्तूप पूर्णतः ढका हुआ है किन्तु अन्य स्तूप अपेक्षाकृत कुछ खुले हैं जिनके चारों ओर आप चल सकते हैं।
यहाँ पर उन सभी ठेठ कठघरों जैसी मेढ हैं जो सामान्यतः प्रसिद्ध स्तूपों के चारों ओर बनी हुई हैं। जैसे अमरावती, सांची, सतना जिले के भरहुत तथा महाबोधि मंदिर में पाए जाने वाले स्तूपों में हैं। उन पर बनी आकृतियाँ ठेठ आड़ी-तिरछी रेखाएं हैं जिन पर कमल पुष्प का चिन्ह उत्कीर्णित है। १६ वीं से १७ वीं सदी के मध्य इन गुफाओं को ईसाई गिरिजाघरों में परिवर्तित कर दिया गया था। वर्तमान में इस परिवर्तन के किसी भी प्रकार के चिन्ह अस्तित्व में नहीं हैं।
विहार
विहार की रूपरेखा भी चैत्य गृह के ही समान है। इनके समक्ष स्थित प्रांगण में बैठने के लिए बैठकें हैं। इनके पश्चात भिक्षुओं के लिए कक्ष हैं। ऊपरी तल की भी यही रूपरेखा है। कक्षों के भीतर शिला के शयन हैं। सामान्यतः गुफाओं के दोनों ओर जलकुण्डों की व्यवस्था है। साहित्यों के अनुसार, दक्षिणपूर्वी देशों से अनेक साधक इस विहार में अध्ययन हेतु आते थे जिस के कारण यह अध्ययन का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था।
गुफा क्र. ११ को महाराजा अथवा दरबार गुफा भी कहते हैं क्योंकि यह एक प्रकार से सभा कक्ष प्रतीत होता है।
गुफा संबंधी सुरक्षा निर्देश
गुफाओं के भीतर से ऊपर-नीचे जाती सीढ़ियों में से कुछ अत्यंत भंगित अवस्था में हैं। उनका प्रयोग करते समय अत्यंत सावधानी का पालन करें। अन्यथा दुर्घटना की संभावना हो सकती है। गुफाओं के बाहर स्थित एक सूचना पटल के अतिरिक्त अन्य कहीं भी, गुफाओं एवं उत्कीर्णित आकृतियों की जानकारी नहीं दी गई है। टिकट घर पर भी कोई सूचना पुस्तिका अथवा जानकारी प्रदान करते साहित्य उपलब्ध नहीं है। यदि आपने इससे पूर्व कहीं बौद्ध गुफाएं देखी हों तो वहाँ से प्राप्त जानकारी का स्मरण करें। इससे इन गुफाओं एवं उत्कीर्णित आकृतियों को समझने में आसानी हो सकती है।
कान्हेरी गुफाओं की जल प्रबंधन प्रणाली
इन गुफाओं का एक अत्यंत उत्कृष्ट एवं रोचक तत्व है यहाँ की जल प्रबंधन प्रणाली। अनेक नलिकाएं एवं धाराएं वर्षा के जल को एक विशाल भूमिगत कुण्ड तक ले जाती हैं। यह प्राचीन काल के आरंभिक वर्षा जल संचयन प्रणाली का उत्तम उदाहरण हो सकता है। जल का प्रबंधन किस प्रकार सावधानी से किया जाता था, यह इसका उत्कृष्ट दृष्टांत है।
गुफाओं में भ्रमण करते हुए आप देख सकते हैं कि कैसे गुफाओं की छतें वर्षा के जल को गुफा के बाहर स्थित नलिकाओं की ओर ले जाती हैं। तत्पश्चात, ये नलिकाएं विभिन्न तलों पर कुण्डों से इस प्रकार जुड़ती हैं ताकि जल का अपव्यय न हो तथा सम्पूर्ण गुफा प्रणाली में शुद्ध जल उपलब्ध हो सके। इन गुफाओं का वास योग्य होने का प्रमुख कारण यह एकीकृत जल प्रबंधन प्रणाली ही हो सकता है। वर्तमान में यह शोध का विषय है कि किस प्रकार इन उत्खनित प्राकृतिक गुफा प्रणाली में इस प्रकार की आत्मनिर्भर जल प्रबंधन प्रणाली अंतर्निहित की गई थी।
मैंने ऐसी ही जल प्रबंधन प्रणाली जोर्डन की प्राचीन नगरी पेट्रा में भी देखी थी। उन्हे भी प्राकृतिक चट्टानों में उत्खनित किया गया था।
शिलालेख
आप गुफा की भित्तियों पर अनेक शिलालेख देख सकते हैं किन्तु उन्हे समझने का कोई साधन नहीं है। कान्हेरी गुफाओं में ब्राह्मी, देवनागरी एवं पाहलवी लिपि में कुल ५१ अभिलेखों एवं २६ उद्धरणों की खोज हो चुकी है। अधिकतर अभिलेखों में उन राजा-महाराजाओं के नाम हैं जिन्होंने इन गुफाओं को संरक्षण प्रदान किया था। एक अभिलेख में राजगद्दी पर विराजमान सातवाहन राजा सतकर्णी वशिष्टिपुत्र के विवाह का उल्लेख है।
कान्हेरी गुफाओं में कुछ ताम्रपत्र भी प्राप्त हुए थे जो अब ब्रिटिश संग्रहालय में संरक्षित हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टिका के अनुसार एक गुफा में अजंता की गुफाओं के समान भित्तिचित्र हैं। किन्तु मैं उस गुफा को ढूंढ नहीं पायी। उसे खोजने का कोई साधन अथवा सूचना भी उपलब्ध नहीं थी।
चित्रपट चित्रीकरण
जब मैं इन गुफाओं में भ्रमण कर रही थी, उस समय यहाँ, एक गुफा के ऊपर यशराज फिल्म्स के किसी चित्रपट का चित्रीकरण हो रहा था। किसी चित्रपट के चित्रीकरण में कितने बड़े स्तर पर परिश्रम, ऊर्जा तथा साधनों की आवश्यकता होती है, इस तथ्य से वह मेरा प्रथम साक्षात्कार था। कदाचित यह चित्रपट देखते समय, वह परिदृश्य दर्शकों के ध्यान में भी न आए, किन्तु उसे साकार करने में कम से कम १०० व्यक्तियों का जनबल जुटा हुआ था। वहाँ बिजली उत्पादक वाहन, अभिनेताओं के लिए चलित प्रसाधन कक्ष, खाद्य पदार्थों के वाहन, साज-सज्जा का सामान तथा अनेक उपकरण भी थे।
अनेक सुरक्षा कर्मचारी तैनात थे जो साधारण जनमानस को को चित्रीकरण स्थल पर जाने से निषिद्ध कर रहे थे। उन्होंने चित्रीकरण के लिए एक विस्तृत क्षेत्र घेर कर रखा था। यह न्यायसंगत नहीं है। यह एक सार्वजनिक स्थल है। सभी पर्यटक प्रवेश-शुल्क देकर भीतर प्रवेश किए हैं। उन्हे सभी स्थानों पर जाने एवं अवलोकन करने की स्वतंत्रता है।
गांधी स्मारक
जब आप कान्हेरी गुफाएं देखने यहाँ आएं तब आप गांधी स्मारक भी देख सकते हैं। गांधी स्मारक एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मंडप है जिसे महात्मा गांधी की स्मृति में बनवाया गया था। वहाँ से आप सम्पूर्ण नगर का ३६० अंश का परिदृश्य देख सकते हैं।
संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान
आप इस राष्ट्रीय उद्यान में विचरण कर सकते हैं तथा यहाँ की शुद्ध वायु का आनंद उठा सकते हैं। यहाँ एक छोटी झील है जिसमें आप नौका विहार का आनंद ले सकते हैं। एक छोटी रेलगाड़ी आपको सम्पूर्ण पहाड़ी की सैर कराती है। यहाँ बाघ सफारी का भी आनंद लिया जा सकता है। कुल मिलाकर आप एक सम्पूर्ण दिवस यहाँ व्यतीत कर सकते हैं। यह उद्यान अन्य घने राष्ट्रीय उद्यानों जैसा हरा-भरा नहीं है। फिर भी यह मुंबई जैसी भीड़भाड़ भरी महानगरी के फेफड़ों के समान है।
मंडपेश्वर गुफाएँ
यहाँ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मंडपेश्वर गुफाएँ हैं जो गुफाओं का लघु समूह है। इन गुफाओं की भिन्नता यह है कि ये हिन्दू गुफाएं हैं। एक भित्ति पर भगवान शिव की नृत्य मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ एक विशाल शिवलिंग था। किन्तु वह शिवलिंग अब कहाँ है, इसकी जानकारी नहीं है। उसके स्थान पर अब एक नवीन लिंग की आराधना की जाती है। एक लंबे समय तक इन गुफाओं का प्रयोग एक गिरिजाघर के रूप में भी किया जाता था। अब यह हिंदुओं का पूजनीय स्थल है। हमने यहाँ स्त्रियों के एक विशाल समूह को पूजा-अर्चना करते देखा। किन्तु विडंबना यह है कि ये गुफाएं अत्यंत ही मलिन परिवेश में स्थित है।
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अब मेरा आगामी लक्ष्य है, मुंबई नगरी के अन्य ब्रिटिश-पूर्व ऐतिहासिक तत्वों की खोज, जैसे बाणगंगा कुण्ड। उन ऐतिहासिक स्थलों में से कुछ का उल्लेख इस पॉडकास्ट में किया गया है जिसमें हम हमारे मित्र भरत गोठोस्कर जी से मुंबई के विषय में चर्चा कर रहे हैं।
अनुराधा जी,
मुंबई की प्राचीन कान्हेरी गुफाओं की सुंदर जानकारी युक्त आलेख । प्रसिद्ध संजय गांधी अभयारण्य में दो तीन बार जाने का मौका मिला पर इन प्राचीन गुफाओं को देखने का अवसर नहीं मिला । ऐसी ही सैकड़ों गुफाएँ प्राचीन धरोहरों के रूप में भारत भर में यत्र तत्र फैलीं हुई हैं । आलेख में कान्हेरी गुफाओं के जल प्रबंधन के बारे में बहुत ही सुंदर जानकारी दी गई है , हमारे देश में ही स्थित सदियों पुरानी अनेक प्राचीन धरोहरों में भी जल संचयन और प्रबंधन का विशेष ध्यान रखा जाता था , जो आज भी नितांत आवश्यक है ।
ज्ञानवर्धक जानकारी हेतु धन्यवाद !
यही तो विडम्बना है प्रदीप जी, हम अपने पिछवाड़े की धरोहरों को ही नहीं पहचानते, आशा है कुछ लोग पढ़ कर जायेंगे।