कनखल कदाचित हरिद्वार का प्राचीनतम निवासित क्षेत्र है। यहाँ के मंदिरों एवं गंगा के घाटों पर अब भी शिव एवं सती की गाथाएँ जीवित हैं। मेरी हरिद्वार यात्रा के समय, हरिद्वार की इस प्राचीन नगरी के कण कण को जानने का मुझे स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। इस यात्रा में मैंने कनखल के अनेक आयामों को जानने का प्रयत्न किया। मुझे विश्वास है कि जब मैं इन आयामों का उल्लेख करूंगी, तब आप अपनी आगामी हरिद्वार यात्रा के समय उन सब का अनुभव लेने का निश्चय अवश्य कर लेंगे।
एक समय था जब हरिद्वार इस कनखल के भीतर एवं उसके आसपास बसा हुआ था। समय के साथ हरिद्वार की वृद्धि होने लगी। वर्तमान में हरिद्वार प्रमुख नगर बन गया है तथा कनखल इसकी परछाई में कहीं लुप्त होने लगा है।
हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है। पंचपुरी में मायादेवी मंदिर के आसपास के ५ छोटे नगर सम्मिलित हैं। कनखल उनमें से ही एक है।
चलिए मेरे साथ कनखल की एक अनोखी यात्रा पर:
कनखल की धर्मशाला
धर्मशालायें वर्तमान के आधुनिक होटल एवं रेसॉर्ट के पूर्वज हैं। धर्मशालायें, हरिद्वार जैसे तीर्थस्थलों में, तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। इन धर्मशालाओं में यात्री परिवारों को नाममात्र शुल्क पर कई दिनों तक रहने की सुविधा प्राप्त होती है। यात्री परिवार इन कक्षों में रहते हुए, अपना भोजन स्वयं पकाते हुए लगभग किसी स्थानीय निवासी के समान यहाँ रह सकते हैं। इससे तीर्थयात्रियों को अत्यधिक सुविधा हो जाती है।
धनवान व्यापारी व उद्योगपति बहुधा पुण्य अर्जित करने के उद्येश्य से ऐसी धर्मशालाओं का निर्माण करवाते हैं। यह अर्थव्यवस्था का एक अद्भुत चक्र ही है जिसमें सम्पन्न वर्ग जनसामान्य के लाभ के लिए संसाधन उपलब्ध करवाते हैं।
रुइया धर्मशाला
कनखल स्थित रुइया धर्मशाला १०० वर्षों से भी अधिक समय पूर्व, सन् १९१७ में निर्मित की गयी थी। शर्माजी इस धर्मशाला के अभीक्षक हैं तथा इसकी देखरेख करते हैं। मेरे आग्रह पर उन्होंने मुझे सम्पूर्ण धर्मशाला दिखाई। रंग रोगन लगे द्वार के ऊपर लगे वृत्तखंड के नीचे एक साधारण पट्टिका लटक रही थी जिस पर धर्मशाला लिखा हुआ था। इसकी वास्तुकला ठेठ भारतीय हवेली एवं औपनिवेशिक वास्तुकला का विलक्षण सम्मिश्रण था। इसके मुख्य द्वार के बाहर एक चबूतरा था। मुख्य द्वार के भीतर एक विशाल प्रांगण था जिसके चारों ओर कई निवास कक्ष थे।
स्त्रियाँ गलियारों में बैठकर दिन के व्यंजन बना रही थीं। स्नानघर एवं शौचालय यहाँ से दूर, मुख्य भवन के पृष्ठभाग पर स्वतन्त्र संरचना के रूप में निर्मित थे। समीप ही एक विशाल खेत था जिस पर एक मंदिर भी निर्मित था। वहां मैंने मई मास की तपतपाती धूप में भी कई पंछी उड़ते देखे। धर्मशाला में एक पुस्तकालय भी था जिसमें कई नवीन व प्राचीन पुस्तकें उपलब्ध थीं।
इतने लोग यहाँ रह रहे थे, अपने अपने कार्यों में व्यस्त थे, फिर भी चारों ओर एक अद्भुत शांतता थी। सबके मुखमंडल पर प्रसन्नता एवं अधरों पर मंदहास था। शुद्ध आनंद से वे हमारा स्वागत कर रहे थे।
रुइया धर्मशाला में मैं तत्वमय भारतीय तीर्थयात्रियों से मिली। उनमें ना अन्य पर्यटकों की देखादेखी चित्र लेने की आतुरता थी, ना ही किसी भी प्रकार का उतावलापन था। उनके पास सबके लिए भरपूर समय था। वे यहाँ गंगा मैया के संग समय बिताने, उसके पवित्र जल में स्नान करने, कुछ शास्त्रों के अध्ययन करने एवं गुरुओं की ज्ञान भरी वाणी का श्रवण करने आये हुए थे।
यहाँ की पावन एवं शांतता से परिपूर्ण वातावरण देख मैं भावविभोर हो गयी थी। मैं आपको भी यह सुझाव देना चाहती हूँ कि आप जब भी कनखल, हरिद्वार अथवा किसी अन्य तीर्थस्थल में जाएँ, वहां की धर्मशाला अवश्य देखें।
सती कुण्ड
वर्तमान में सती कुण्ड केवल एक क्षेत्र बन कर रह गया है। दक्ष मंदिर परिसर जाते समय मार्ग में मुझे अनायास ही यह सती कुण्ड दिख गया। मुझे यह एक अपेक्षाकृत विशाल, सूखी हुई बावडी प्रतीत हुई। संकुल में प्रवेश करते ही मुझे कई छोटे छोटे यज्ञ कुण्ड तथा एक लघु मंच दिखे जो दर्शा रहे थे कि यहाँ अग्नि प्रज्ज्वलित कर हवन आदि का नियमित आयोजन किया जाता है।
मेरे प्रश्नों का उत्तर देकर मेरी जिज्ञासा को शांत करे, ऐसे किसी व्यक्ति की मैं खोज करने लगी। यद्यपि प्रातः काल होने के कारण वहां स्थित एक छोटा सा शिव मंदिर भक्तों से भरा हुआ था। वे वहां शिवलिंग पर दूध अर्पित करने पहुंचे हुए थे। तथापि उनमें से कोई भी मुझे जानकारी मुहैया करने में असमर्थ था।
सती कुण्ड के समक्ष एक सूचना पट्टिका पर ‘प्राचीन सती मंदिर’ लिखा था। किन्तु पूर्णतः उपेक्षित प्रतीत होती इस संरचना के समीप पहुँचने का कोई मार्ग नहीं था।
आशा है कि इतिहासकार एवं शोधकर्ता इस स्थान पर आवश्यक शोध कार्य करें तथा हमें इन संरचनाओं के विषय में अवगत करायें। साथ ही यह बताये कि कौन कौन से अनुष्ठान अब भी यहाँ आयोजित किये जाते हैं।
कनखल के दर्शनीय मंदिर एवं आश्रम
हरिहर आश्रम
यह स्वामी अवधेशानंद गिरी जी का आश्रम है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ का शिवलिंग पारे का बना हुआ है। मैं शिवलिंग को देख नहीं पायी क्योंकि वह पुष्पादि से ढका हुआ था।
परिसर में एक बड़ा रुद्राक्ष वृक्ष भी है। आप यहाँ रुद्राक्ष फल को विभिन्न चरणों में, कटोरियों में प्रदर्शित देख सकेंगे ।
श्री यन्त्र मंदिर
श्री यन्त्र के आकार का यह अपेक्षाकृत नवीन तथा अत्यंत मनमोहक मंदिर है। केवल मंदिर ही श्री यन्त्र के आकार का नहीं है, इसके भीतर भी आप कई सुन्दर श्री यंत्र देखेंगे जिनकी निरंतर पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित एक बड़े कक्ष में कोई कथा बांची जा रही थी। खुले प्रांगण के एक ओर यज्ञ किये जा रहे थे।
दक्ष महादेव मंदिर संकुल
दक्ष महादेव मंदिर संकुल इस कनखल धरोहर क्षेत्र का हृदयस्थल है। यह हिन्दु शास्त्र के प्राचीनतम ज्ञात कथा का घटनास्थल है। जी हाँ, दक्ष एवं सती की कथा! हिन्दू शास्त्रों एवं साहित्यों की अनेक कथाएं अंततः सती की कथा पर ही पहुँचती हैं।
सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध शिव से विवाह किया था। इससे क्षुब्ध होकर सती के पिता, दक्ष ने अपने यज्ञ समारोह में शिव एवं सती के सिवाय अन्य सभी को आमंत्रण दिया। तथापि सती अपने पिता के यज्ञ समारोह में भाग लेने के लिए पिता के भवन में पहुँच गयी किन्तु वहां दक्ष ने उसका एवं परोक्ष में शिव का अत्यंत अपमान किया। इससे संतप्त सती ने यज्ञ कुण्ड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। इससे क्रुद्ध शिव ने वीरभद्र को दक्ष का वध करने तथा यज्ञ का विनाश करने दक्ष के भवन में भेजा।
क्रोधित शिव सती की मृतदेह उठाकर सम्पूर्ण पृथ्वी पर तांडव नृत्य करने लगे जिससे सब ओर हाहाकार मच गया। अंततः शिव के क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु ने चक्र द्वारा सती की देह को कई भागों में भंग कर दिया। सती की देह के विभिन्न अंग जिन स्थलों पर गिरे, उन सर्व स्थलों पर शक्ती पीठ की स्थापना की गयी। कालान्तर में सती ने हिमावन की पुत्री, पार्वती के रूप में पुनर्जन्म प्राप्त किया। शिव को पुनः प्राप्त करने की इच्छा से उन्होंने कनखल के समीप ही कठोर तपस्या की थी। पार्वती की यह कथा किसी अन्य दिवस बाचेंगे!
एक लघु द्वार के मध्य से आप दक्ष महादेव मंदिर संकुल के भीतर प्रवेश करेंगे। इस द्वार के दोनों ओर सिंह बने हुए हैं। हमारे देखे हुए प्राचीन पाषाणी मंदिरों का यह एक साधारण प्रतिरूप है।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर
यह इस संकुल का अपेक्षाकृत बड़ा मंदिर है। शिखर के विभिन्न तोरणों एवं परतों की रंगबिरंगी किनारियाँ श्वेत पृष्ठपट पर अद्भुत छटा बिखेरती हैं। सादी उदासीन पृष्ठभूमि को ये रंग चटकीला एवं आकर्षक बनाते हैं।
मंदिर के समीप एक विशाल बड़ का वृक्ष है। इस वृक्ष के तने पर बंधे मौली के लाल-पीले घागों की परतें यह दर्शाती हैं कि यह एक पवित्र एवं पूजनीय वृक्ष है तथा यहाँ आते भक्तगण इसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
जब हम दर्शनार्थ यहाँ पहुंचे, मंदिर में प्रवेश करने के लिए भक्तगणों की लम्बी पंक्ती थी। हम भी इस पंक्ति में सम्मिलित हो गए। हम एक यज्ञ कुण्ड पर पहुंचे जिसे सर्व भक्तगण झुककर प्रणाम कर रहे थे। कुछ भक्तों ने इस कुण्ड में कुछ सिक्के भी डाले। ऐसा माना जाता है कि इसी कुण्ड की अग्नि में कूदकर सती ने अपने प्राण अर्पण किये थे। कालान्तर में हृदय परिवर्तन के पश्चात उनके पिता दक्ष ने शिव के सम्मान में यहाँ मंदिर का निर्माण कराया था। उन्ही के नाम पर इस मंदिर को दक्षेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है।
मुझे मंदिर सादा होते हुए भी अत्यंत आकर्षक प्रतीत हो रहा था। किन्तु मंदिर के भीतर तथा बाहर भक्तों की भीड़ थी जिसके कारण मैं इसकी वास्तुकला समझ नहीं पा रही थी। वहां शान्ति से खड़े होकर उसकी सुन्दरता भी निहार नहीं पा रही थी।
गंगा का घाट एवं उनका मंदिर
कनखल हरिद्वार में आप दोनों ओर बहती गंगा के सदैव समीप होते हैं। दक्ष महादेव मंदिर पर, गंगा किनारे, एक बड़ा घाट निर्मित किया गया है। यहाँ आनेवाले लगभग सभी भक्तगण गंगा में डुबकी अवश्य लगाते हैं। ऐसे भक्त जिन्हें तैरना नहीं आता है अथवा जिन्हें जल की गहराई से भय लगता है, उनके लिए भी डुबकी लगाने हेतु आवश्यक व्यवस्था की गयी है। जब मैंने कनखल की यात्रा की थी, मई का मास था। कई युवा भक्त गंगा के शीतल जल में अठखेलियाँ कर रहे थे तथा तैरने का आनंद उठा रहे थे।
घाट के समीप गंगा माता को समर्पित एक मंदिर है। यहाँ गंगा को उनके मानवीय रूप में पूजा जाता है। मंदिर की भित्तियों पर सेरामिक टाइल लगी हुई थीं जो मंदिर की पवित्रता एवं उर्जा का हनन करती प्रतीत हो रही थी। मेरी आँखों में ये टाइलें खटक रही थीं।
शीतला माता मंदिर
दक्षेश्वर मंदिर के पृष्ठभाग में शीतला माता का मंदिर है। शीतला माता को अधिकतर चेचक, छोटी माता अथवा शीतला जैसे संचारी रोगों की देवी माना जाता है।
इस स्थान को देवी सती का जन्मस्थान भी माना जाता है। मुझे मुख्य प्रतिमा अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत हुई। गर्भगृह के पृष्ठभाग में मुझे एक प्राचीन पाषाणी प्रतिमा या विग्रह दिखाई दिया। इस प्रतिमा की अष्टभुजाएं तथा भेदतीं दृष्टी थीं।
दश महाविद्या मंदिर
दक्षेश्वर महादेव मंदिर से लगा हुआ यह एक अतिशय मनमोहक मंदिर है जो देवी के १० महाविद्या रूपों को समर्पित है।
इस मंदिर के हृदयस्थली, एक भित्ति पर तांबे का एक विशाल श्रीयंत्र है। इसकी परिधि पर देवी के महाविद्या रूपों की १० छवियाँ हैं। ये इस प्रकार हैं:
१. काली
२. तारा
३. त्रिपुरा सुन्दरी
४. भुवनेश्वरी
५. भैरवी
६. छिन्नमस्तिके
७. धूमावती
८. बगलामुखी
९. मातंगी
१०. कमला
देवी के शक्ति रूप को पूजने वाले भक्तों के लिए यह एक महत्वपूर्ण भक्तिस्थल है।
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ब्रम्हेश्वर महादेव मंदिर
दश महाविद्या मंदिर से लगा हुआ एक छोटा ब्रम्हेश्वर महादेव मंदिर है। जैसा कि नाम से विदित है, यह अवश्य वह मंदिर है जहां ब्रम्हा ने शिव की आराधना की थी।
कनखल हरिद्वार की गलियों का भ्रमण
यह उत्तर भारत का एक ठेठ नगर है। जब आप इसकी गलियों में भ्रमण करेंगे, आपके समक्ष अपने बीते दिनों की कुछ स्मृतियाँ अवश्य प्रकट होंगीं। यह आपके मुखमंडल पर स्मित हास्य अवश्य लायेंगीं।
हरिद्वार एक देवनगरी है। आप जहां भी अपनी दृष्टी केन्द्रित करें, आपके समक्ष एक नवीन अथवा प्राचीन मंदिर अवश्य होगा। किस मंदिर के दर्शन करें तथा किस मंदिर से आगे बढ़ जाएँ, यह आपका निर्णय होगा जो आप उस समय भी ले सकते हैं। धैर्य रखें, प्रत्येक मंदिर अद्भुत कथाओं से परिपूर्ण मनमोहक मंदिर होगा।
दरजी(सौचिक)
भ्रमण करते हुए मैं एक सौचिक अर्थात् दरजी की दुकान के समीप रुकी। उन्होंने अपनी सम्पूर्ण आयु इसी दुकान में बिता दी। ७० वर्ष की आयु में भी उन्होंने सिलाई का कार्य चालू रखा है। उन्हें गर्व है कि इस परिपक्व आयु में भी वह कई कमीजें प्रति दिन सिल लेते हैं।
वैद्य
ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक पौधा हमारी देह के लिए पोषक है। देव भूमि उत्तराखंड के विषय में तो ऐसा माना जाता है कि यहाँ का प्रत्येक पौधा एक औषधि है। उत्तराखंड की पहाड़ियों के वनीय क्षेत्र जड़ी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस विरासती नगरी की गलियों मैंने कई वैद्याशालायें देखीं। मैंने कुछ वैद्यशालाओं के भीतर जाकर वैद्यों से भेंट भी की। बीमारों की लम्बी पंक्ती होने के बाद भी उन्होंने मुझे पर्याप्त समय दिया तथा अपनी कार्य के विषय में जानकारी दी। देशभर से उपचार कराने हरिद्वार आये बीमारों की बीमारियों के विषय में भी चर्चा की।
मैंने उनके वैद्यशाला में जाकर औषधियों की निर्मिती प्रक्रिया देखी। औषधी निर्मिती न्यूनतम मशीनीकरण द्वारा की जा रही थी। वहां कारीगर अब भी मूसल एवं खरल का प्रयोग कर जड़ी-बूटियाँ कूटते दिखे। कई स्त्रियाँ हाथों द्वारा औषधियों को उनके पात्रों में भर रही थीं।
आयुर्वेद कदाचित उत्तराखंड की ऐसी लघु-उद्योग इकाई है जिसके विषय में अधिक लोग नहीं जानते। मैं भी उनमें सम्मिलित थी। उत्कृष्ट धरोहर से परिपूर्ण इस नगरी के भ्रमण के समय ही मुझे इसके विषय में जानकारी प्राप्त हुई।
हवेली सदृश अखाड़े
गलियों में भ्रमण करते समय मैंने कुछ आकर्षक अलंकृत द्वार एवं प्रवेशद्वार देखे। उन्हें देखते ही मुझे वे किसी संपन्न परिवार की हवेली के द्वार प्रतीत हुए। समीप से निरक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि उनमें से अधिकतर द्वार विभिन्न अखाड़ों अथवा धार्मिक संगठनों के हैं जहां साधू-संत निवास करते हैं।
एक ओर के अखाड़े, दूसरी ओर गंगा नदी तक ले जाते हैं। अपने भवन के समीप, पहाड़ों से कलकल कर उतरती पवित्र गंगा बहती हो ऐसा अनुपम निवासस्थान अन्य कहीं हो सकता है?
कनखल की संस्कृत पाठशालाएं
भवनों एवं अखाड़ों के मध्य मुझे एक संस्कृत पाठशाला दिखाई दी। उसने मुझे स्मरण कराया कि इस स्थान पर तो कई संस्कृत एवं वैदिक पाठशालाएं होने चाहिए। स्थानीय निवासियों ने जानकारी दी कि यहाँ ऐसे कई विद्यालय है, किन्तु उनमें से कई विद्यालयों की स्थिति चिंताजनक है।
गंगा के किनारे निर्मित इन विद्यालयों के सुन्दर परिदृश्यों ने मुझे भावविभोर कर दिया। इनकी स्मृति मेरे मनमष्तिष्क में कई दिनों तक रहेगी।
यहाँ के अन्य प्रसिद्ध स्थलों में माँ आनंदमयी आश्रम तथा रामकृष्ण मिशन भी हैं।
कनखल के लिए यात्रा सुझाव
- हरिद्वार की प्रसिद्ध हर की पौड़ी से ३ की.मी. दक्षिण में कनखल स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए आप परिवहन के किसी भी साधन का प्रयोग कर सकते हैं।
- वातावरण अनुकूल हो तो आप कनखल का सम्पूर्ण दर्शन पैदल पदयात्रा द्वारा कर सकते हैं। अन्यथा, दर्शनीय स्थलों के अवलोकन के लिए ई-रिक्शा उत्तम साधन है। यहाँ की कुछ सड़कें अत्यंत संकरी हैं।
- अखाड़ा अथवा विद्यालय जैसे निजी स्थलों में प्रवेश से पूर्व उनकी अनुमति अवश्य ले लें।
- कनखल के मुख्य दर्शनीय स्थलों के दर्शन हेतु २ घंटों से भी कम समय लगता है। चूंकि मैं यहाँ के प्रत्येक छोटे-बड़े स्थलों को सूक्ष्मता से निहारना चाहती थी, मैंने यहाँ लगभग एक सम्पूर्ण दिवस व्यतीत किया।
- प्राचीन आभा लिए इस सर्वोत्कृष्ट तीर्थस्थल का आनंदपूर्वक अनुभव आपको भी प्राप्त हो, ऐसी शुभकामनाएं व्यक्त करती हूँ।
अति सुन्दर चित्रण किया है। हरिद्वार की पावन भूमि पर ऐसे ही बहुत अज्ञात ऐतिहासिक जगहें हैं, जिनसे हम अनभिज्ञ हैं आप हमेशा एक नए जगह को उजागर करती हैं।
अभिषेक – मुझे विश्वास है की तुम भी भारत की अनदेखी धरोहर हो दुनिया तक ले जाने का काम करोगे।
आपका यह यात्रा लेख पढ़कर ऐसा लगा जैसे मैं भी यात्रा पर हूँ। जानकारी प्रदान करता हुआ लेख।
विकास जी धन्यवाद्