रामटेक, महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में नागपुर के निकट स्थित, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक अद्भुत नगर। रामटेक में इतिहास के अनेक कालखंडों ने अपने चिन्ह अंकित किये हैं।
रामटेक का रामायण से संबंध
रामटेक नाम का संबंध श्री राम के जन्मस्थल अयोध्या से है। टेक का एक अर्थ है, संकल्प अथवा प्रतिज्ञा। श्री राम ने रामटेक में इस धरती को असुरों से मुक्त करने की प्रतिज्ञा ली थी। टेक का एक अर्थ सहारा अथवा आश्रय भी होता है। इसलिए रामटेक का अर्थ यह भी हो सकता है कि भगवान राम ने अपनी दक्षिणावर्त यात्रा काल में यहाँ कुछ क्षण विश्राम किया था।
रामटेक का अर्थ राम टेकड़ी भी है। यहाँ एक टेकड़ी अथवा छोटी पहाड़ी पर रामचंद्र जी का प्रसिद्ध मंदिर है। आरंभ में इस पहाड़ी को तपोगिरी कहते थे, जिसका शाब्दिक अर्थ है, तप की पहाड़ी। यहाँ अनेक साधू-संन्यासियों ने तप किया है।
अगस्त्य मुनि का आश्रम
आप सोच रहे होंगे कि श्री राम का यहाँ आने का क्या प्रयोजन था! यहाँ ऋषि अगस्त्य का आश्रम था। अपने १४ वर्षों के वनवास काल में श्री राम जी उनसे भेंट करने के लिए यहाँ आये थे।
आपने रामायण में पढ़ा होगा कि भारत के सघन वनों के भीतर विचरण करते हुए श्री राम ने अनेक असुरों का वध किया था। उन्होंने घने वनों के भीतर अपने आश्रम में साधना करते अनेक साधू-संतों को अभय व सुरक्षा का आश्वासन दिया था। दण्डकरण्य ऐसा ही एक सघन वन था। रामटेक इसका एक भाग था। इस क्षेत्र में विचरण करते असुर ऋषियों एवं साधकों को शांति से साधना नहीं करने देते थे।
ऋषि अगस्त्य से भेंट करने आये श्री रामचन्द्र जी को ऋषियों की यह दयनीय स्थिति ज्ञात हुई। तब उन्होंने धरती को उन असुरों से मुक्त करने की प्रतिज्ञा ली जिन्होंने अनेक ऋषियों का वध किया था। साथ ही उन्होंने असुरों द्वारा मारे गए ऋषियों के लिए यहाँ तर्पण भी किया था। इसके लिए उन्होंने भारत के सभी तीर्थों को अम्बाकुंड भोगवती में आमंत्रित किया था। वर्तमान में यह अम्बाला तालाब के नाम से जाना जाता है।
अगस्त्य मुनि की पत्नी लोपामुद्रा विदर्भ राजा की कन्या थी। विदर्भ क्षेत्र रामटेक के समीप स्थित है।
अगस्त्य मुनि ने श्री राम, देवी सीता एवं लक्ष्मण से प्रार्थना की थी कि वे तपोगिरी पर्वत पर ज्योति के रूप में विराजमान हो जाएँ। ऐसा माना जाता है कि अगस्त्य मुनि के आश्रम में जो ज्योत प्रज्ज्वलित है, वह वास्तव में त्रेता युग से विराजमान श्री राम, देवी सीता एवं लक्ष्मण का प्रतिरूप है।
श्री राम की दूसरी भेंट
अयोध्या के राजा का पदभार स्वीकार करने के पश्चात भगवान राम पुनः रामटेक आये थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार अयोध्या के रामराज्य में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु अपने परिवार के ज्येष्ठ सदस्यों की मृत्यु से पूर्व नहीं होती थी। किन्तु एक दिवस श्री राम जी की आमसभा में एक व्यक्ति उपस्थित हुआ जिसके हाथों में उसके पुत्र का मृतदेह था। उसका आक्षेप था कि राज्य में कहीं अधर्म हो रहा है जिसके कारण उससे पूर्व उसके पुत्र का देहांत हो गया है। रामटेक के समीप शम्बूक नामक साधक सदेह स्वर्ग गमन हेतु तपस्या कर रहा था। उसे इस तप का अधिकार नहीं था। श्री राम ने रामटेक आकर शम्बूक को इस जीवन से मुक्त किया जिससे ब्राह्मण पुत्र पुनः जीवित हो उठा।
शम्बूक ने राम जी से प्रार्थना की कि वे सीता एवं लक्ष्मण समेत अपने राजावतार में उस पहाड़ी पर स्थाई हो जाएँ। श्री राम ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की।
इस यात्रा में श्री राम के साथ हनुमान जी भी आये थे। शम्बूक का वध करते समय हनुमान ने राम का धनुष धारण किया था तथा राम ने केवल तीर से शम्बूक का वध किया था। यहाँ हनुमान जी का एक मंदिर है जहाँ हनुमान जी को भगवान राम का धनुष धारण करते हुए दर्शाया गया है। कदाचित यही एक ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान की ऐसी प्रतिमा स्थापित है।
रामटेक पहाड़ी के मंदिर
रामटेक मंदिर रामटेक पहाड़ी पर स्थित है। यह गढ़ मंदिर के नाम से भी लोकप्रिय है क्योंकि इसकी संरचना एक गढ़ के समान है। यहाँ से चारों ओर के परिदृश्यों को निहारा जा सकता है। पहाड़ी पर चढ़कर जिस प्रवेश द्वार के द्वारा हम मंदिर में प्रवेश करते हैं, वह प्रवेश द्वार भी किसी राज गढ़ के प्रवेश द्वार सा प्रतीत होता है। कदाचित उन्होंने अयोध्या का प्रतिरूप बनाने की चेष्टा की होगी।
रामटेक का इतिहास
मुझे बताया गया कि ऐतिहासिक दृष्टि से भगवान राम एवं अगस्त्य आश्रम की उपस्थिति दर्शाने के लिए यहाँ केवल राम पादुकाएं ही थीं। १२-१४ ई. में सर्वप्रथम यादव शासकों ने यहाँ एक मंदिर का निर्माण कराया था। वर्तमान में जो मंदिर यहाँ उपस्थित है, उसका निर्माण १८वीं ई. में नागपुर के रघुजी भोंसले ने करवाया था। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार रघुजी भोंसले ने प्रतिज्ञा की थी कि देवगढ़ के युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात वे यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाएंगे।
मंदिर में भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण की प्राणप्रतिष्ठा करवाने के लिए रघुजी भोंसले ने जयपुर से उनकी प्रतिमाएं गढवा कर बुलवाई थीं। किन्तु उन्होंने अपने स्वप्न में देखा कि यहाँ स्थित तीनों की प्राचीन मूर्तियाँ सुर नदी के तल पर पड़ी हैं। शोध करने पर नदी के तल से तीन प्राचीन प्रतिमाएं प्राप्त भी हुईं। मंदिर के भीतर उन्ही तीन प्रतिमाओं को स्थापित कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। जयपुर से बुलवाई गयी मूर्तियों को मंदिर की संपत्ति के रूप में संग्रहीत कर रखा गया है।
रघुजी भोंसले ने गढ़ के अनुरूप इस मंदिर के चारों ओर भी प्राचीर की संरचना करवाई थी। यह वही काल था जब मंदिरों पर आक्रान्ताओं का आक्रमण एक सामान्य घटना थी। कदाचित इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मंदिर के चारों ओर भित्तियाँ बनवाई गई थीं।
इस मंदिर का निर्माण शिलाखंडों द्वारा हेमादपंती स्थापत्य शैली में किया गया है। इस शैली की विशेषता है, इसका उंचा शिखर एवं स्तंभों द्वारा अलंकृत मंडप।
गढ़ मंदिर
पहाड़ी के शिखर पर स्थित मुख्य मंदिर परिसर के भीतर अनेक छोटे-बड़े मंदिर हैं।
हम गोकुल द्वार से मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं। गोकुल द्वार को विपुलता से उत्कीर्णित किया गया है। उस पर एक विशाल घंटा लटका हुआ है। इसके दोनों ओर अलंकृत शैल स्तम्भ हैं। मंदिर परिसर के भीतर प्रवेश करते ही प्रथम दृष्टि अगस्त्य आश्रम पर पड़ती है। एक श्वेत भित्ति पर लाल अक्षरों में इस स्थान से संबंधित पौराणिक कथा का अभिलेखन किया गया है।
आश्रम के भीतर एक अखंड ज्योत है जो इस स्थान का सर्वाधिक परम तत्व है। ऐसी मान्यता है कि यह ज्योत उस काल से अनवरत प्रज्ज्वलित है जब श्री राम रामटेक पधारे थे। यहाँ राधा-कृष्ण का भी एक मंदिर है। अनुमानतः, यह मंदिर कालांतर में निर्मित किया गया है।
आश्रम के पश्चात आपकी दृष्टि लक्ष्मण मंदिर पर पड़ेगी। साधारणतः लक्ष्मण को श्री राम एवं सीता माता के संग देखा जाता है। किन्तु यहाँ लक्ष्मण का मंदिर श्री राम एवं सीता माता के मंदिर के समक्ष स्थित है। ऐसा प्रतीत होता है मानो वे अब भी दंडकारण्य में उनका रक्षण कर रहे हैं।
लक्ष्मण मंदिर के पृष्ठभाग में मुख्य मंदिर स्थित है। राम-सीता का यह मंदिर छोटा अवश्य है किन्तु यह एक अत्यंत आकर्षक मंदिर है। इसका वृत्ताकार मंडप हमें गर्भगृह की ओर ले जाता है।
राम-सीता मंदिर के समक्ष एक हनुमान मंदिर एवं एक लघु गरुड़ मंदिर भी हैं।
पुष्कर के पश्चात, यह दूसरा स्थान है जहाँ मुझे एकादशी माता का मंदिर दृष्टिगोचर हुआ।
त्रिविक्रम मंदिर
यह एक प्राचीन मंदिर है जो पहाड़ी के वाहन स्थल के समीप स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए हमें पहाड़ी पर स्थित कच्ची पगडंडी पर कुछ दूर रोहण करना पड़ता है। यह एक मुक्ताकाश मंडप है। कुछ सोपान चढ़कर हम वहाँ तक पहुँचते हैं।
एक मुक्ताकाश चबूतरे पर त्रिविक्रम रूप में भगवान विष्णु की एक प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा खंडित होने के पश्चात भी आप देख सकते हैं कि विग्रह का दायाँ पैर उठा हुआ है। प्रथम दर्शनी यह प्रतिमा पकी मिट्टी (टेराकोटा) द्वारा संरचित प्रतीत होती है। किन्तु ध्यान से अवलोकन करते पर ज्ञात होता है कि इस प्रतिमा की रचना में लाल रंग के बलुआ शिला का प्रयोग किया गया है। यह एक स्थानीय शिलाखंड है। मैंने ऐसी शिलाएं नागपुर एवं उसके आसपास के अनेक मंदिरों में देखा है।
इन मंदिरों की निर्माण अवधि ५वीं शताब्दी के आरम्भ काल की आंकी गयी है। इसका अर्थ है कि ये मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों की सूची में सम्मिलित हैं।
सिन्दूर बावड़ी
यह एक विशाल बावड़ी है जिसके भीतर सोपान निर्मित हैं। यह उस स्थान पर स्थित है जहाँ आप अपने वाहन खड़ा करते हैं। इसका नाम सिन्दूर बावड़ी है। इस बावड़ी के एक ओर स्तंभ युक्त मंडप है।
इस बावड़ी का नाम सिन्दूर बावड़ी कदाचित इसलिए रखा गया है क्योंकि इसके आसपास पाए जाने वाले शिलाखंडों का रंग सिंदूरी है। मुझे यह भी बताया गया कि इस पहाड़ी का एक नाम सिन्दूर गिरी भी है। कदाचित बावड़ी के नाम की व्युत्पत्ति यहीं से हुई हो।
उग्र नरसिंह मंदिर
यह भी एक छोटा मंदिर है जिसे लाल बलुआ शिलाखंडों द्वारा निर्मित किया गया है। इसके भीतर अनेक शैल स्तंभ हैं। गर्भगृह के भीतर स्थापित उग्र नरसिंह की प्रतिमा इतनी विशाल है कि उसने गर्भगृह का लगभग सम्पूर्ण अंतराल ग्रहण कर लिया है। मंदिर के समक्ष एक लघु मंडप भी है।
मुख्य प्रतिमा के दोनों पार्श्वभागों में अन्य प्रतिमाएं रही होंगीं किन्तु उनके विषय में मुझे जानकारी प्राप्त नहीं हुई।
केवल नरसिंह मंदिर
यह एक छोटा सा मंदिर है जिसकी बाह्य भित्तियों पर आकर्षक शिल्पकारी की गयी है। प्रवेश द्वार के चौखट पर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों को उकेरा गया है। एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित इस मंदिर में नरसिंह की लगभग दो मीटर ऊंची विशाल प्रतिमा है। इसके समक्ष स्थित मंडप में चार उत्कीर्णित शैल स्तंभ हैं।
इस मंदिर के समीप मुक्ताकाश के नीचे एक नाग मंदिर है जिसके समीप एक विशाल त्रिशूल रखा हुआ है।
समीप ही एक अन्य लघु मंदिर है जो एक ठेठ वाहन मंदिर है। इसके भीतर भी नरसिंह की वैसी ही प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा पर सिन्दूर का लेप है जिसके कारण लोग इसे हनुमान की मूर्ति समझ लेते हैं।
वराह मंदिर
गढ़ मंदिर जाते हुए आधी दूरी पार करते ही आप एक विस्तृत परिसर में विराजमान एक लघु मंदिर पर पहुँचेंगे। चार स्तंभों से युक्त चबूतरे पर वराह की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है।
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार केवल सदाचारी धर्मभीरु व्यक्ति ही वराह के उदर के नीचे से उस पार जा सकता है।
रामटेक गढ़ मंदिर के उत्सव
यह अत्यंत स्वाभाविक ही है कि राम नवमी इस मंदिर का एक विशेष व महत्वपूर्ण उत्सव है।
राम नवमी के अतिरिक्त एक अन्य महत्वपूर्ण उत्सव कार्तिक चतुर्दशी के दिवस आयोजित जाता है। अर्थात् कार्तिक पूर्णिमा से एक दिवस पूर्व, जब मंदिर में कार्तिक उत्सव आयोजित किया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव को तुलसी एवं भगवान विष्णु को बिल्व पत्र अर्पित किये जाते हैं। यह अनूठी अदला-बदली यह दर्शाती है कि शिव एवं विष्णु वास्तव में समरूप ही है।
कालिदास व रामटेक का संबंध
उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने अपने दरबार के राजकवि कालिदास को रामटेक भेजा था क्योंकि उनकी पुत्री का विवाह विदर्भ में हुआ था। रामटेक पहाड़ी पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना, दूतकाव्य की रचना की थी। इस काव्य का नाम था, मेघदूत। इस काव्य रचना के आरम्भ में ही रामटेक पहाड़ी का उल्लेख किया गया है।
पहाड़ी पर नवनिर्मित कालिदास स्मारक उसी लोकप्रिय कवि कालिदास एवं उनकी प्रसिद्ध काव्य रचना मेघदूत का उत्सव मनाता है। ॐ के आकार में निर्मित इस स्मारक के कक्ष में अनेक चित्र प्रदर्शित है जो कालिदास की विभिन्न रचनाओं का चित्रण करते हैं। यहाँ एक मुक्ताकाश रंगशाला भी है। रंगशाला के चारों ओर की भित्तियों पर मेघदूत के विभिन्न दृश्यों को चित्रित किया गया है। बाह्य भित्तियों पर मेघदूत के सभी छंदों को उकेरा गया है।
यदि स्मारक स्थल की स्वच्छता एवं रखरखाव पर अधिक ध्यान दिया गया होता तथा इस स्मारक को जीवंत बनाने के अधिक प्रयास किये गए होते तो ये उस महान कवि के प्रति महान श्रद्धांजलि होती। यह मेरे द्वारा देखे गए सर्वाधिक अस्वच्छ स्थलों में से एक था। इस स्मारक के चारों ओर झाड़ियाँ उगी हुई थीं तथा सर्वत्र कूड़ा-करकट फैला हुआ था।
कालिदास जैसे महान कवि के लिए सुन्दर शैल स्मारक निर्माण करने का क्या प्रयोजन यदि उनकी रचनाएँ ना किसी पुस्तक की दुकान में दृष्टिगोचर होती हैं, ना ही किसी कथानक, नाटक अथवा चलचित्र में उनका चित्रण किया जाता है! आशा है कि महाराष्ट्र पर्यटन इसका संज्ञान ले तथा इस स्मारक की स्वच्छता एवं रखरखाव पर लक्ष केन्द्रित करे ताकि इसे एक लोकप्रिय व जीवंत स्मारक बनाया जा सके।
रामटेक एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ पर्याप्त संख्या में पर्यटक आते हैं। यदि यहाँ के परिदृश्यों को अधिक आकर्षक बनाया जाए, कुछ जलपान गृह खोले जाएँ तथा कुछ विशेष शिक्षण गतिविधियों को इसमें जोड़ा जाए तो रामटेक भ्रमण एक अद्वितीय अनुभव सिद्ध हो सकता है।
कपूर बावड़ी
रामटेक पहाड़ी की तलहटी पर स्थित कपूर बावड़ी अथवा कर्पूर बावड़ी एक प्राचीन बावड़ी है। इसके निकट एक मंदिर भी है जो इस समय जर्जर अवस्था में है। मुझे यह देख अत्यंत वेदना हुई कि पर्यटक इस मंदिर की जर्जर अवस्था से नितांत अन्यमनस्क हैं। मैंने अनेक लोगों को मंदिर के शिखर पर जूते-चप्पलों के साथ भी चढ़ते देखा। मुझे ये देख अत्यंत पीड़ा हुई।
बावड़ी में जल का स्तर अत्यधिक होने के कारण मैं मंदिर के दर्शन नहीं कर पायी थी। बावड़ी कमल के पुष्पों से सुशोभित थी। इस क्षेत्र में छोटे छोटे जलाशयों में सिंघाड़े की खेती सामान्य है। सिंघाड़े की खेती के साथ साथ कमल के पुष्पों की भी खेती की जाती है। यहाँ के मंदिरों में अर्पित करने के लिए ये कमल के पुष्प सर्वत्र उपलब्ध होते हैं।
एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि यह मंदिर भगवान शिव का है जो यहाँ कर्पुरेश्वर के रूप में स्थानस्थ हैं। वहीं एक अन्य व्यक्ति ने इसे सप्तमातृका मंदिर बताया। मुझे अचरज नहीं होगा यदि ये सभी यहाँ स्थानस्थ होंगे क्योंकि मैं इस भंगित संरचना में भी तीन मंदिर शिखर स्पष्ट रूप से देख पा रही थी। इसका अर्थ है कि यहाँ तीन मंदिर हैं।
बावड़ी के तीन पार्श्वभागों में तीन गलियारे हैं। कदाचित उन गलियारों के ऊपर भी मंदिर स्थित रहे होंगे। शिखर के शीर्ष पर बिठाए जाने वाला अमलका, कुछ खंडित मूर्तियाँ आदि यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं।
आशा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग शीघ्र ही पहल करे तथा इस मंदिर एवं बावड़ी के संरक्षण की दिशा में त्वरित कार्य करे। यह एक सुन्दर बावड़ी है। यदि इसका रखरखाव सुनिश्चित किया जाए तो यह अनेक पर्यटकों एवं भक्तों को आकर्षित कर सकता है।
कर्पूर बावड़ी के निकट एक प्राचीन शांतिनाथ जैन मंदिर भी है किन्तु मैं उसके दर्शन नहीं कर पायी थी।
रामसागर के अप्रवाही जल में कयाकिंग जैसी विभिन्न जलक्रीडाएं आयोजित की जाती हैं। आप उनका भी आनंद ले सकते हैं।
यात्रा सुझाव
रामटेक नागपुर से लगभग ५० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अतः यह देश के विभिन्न भागों से वायुमार्ग, रेलमार्ग अथवा सड़कमार्ग द्वारा सुव्यवस्थित रूप से जुड़ा हुआ है।
इस पर्यटन स्थल का अवलोकन करने के लिए २-३ घंटों का समय आवश्यक है। जिन्हें इतिहास में रूचि हो, वे यहाँ एक से दो दिवस आसानी से व्यतीत कर सकते हैं। उनकी जिज्ञासु रूचि के लिए यह स्थान अनेक प्राचीन धरोहर स्थलों से संपन्न है।
पहाड़ी पर सीधे रोहण करने के लिए लगभग ७०० सोपान हैं। अन्यथा आप वाहन द्वारा पहाड़ी की तलहटी तक जा सकते हैं। वाहन स्थल से पहाड़ी के शीर्ष तक आपको लगभग १५० सोपान चढ़ने पड़ेंगे।
वाहन स्थल से मंदिर के प्रवेश द्वार तक, सम्पूर्ण मार्ग में अनेक दुकानें हैं जहाँ जलपान, स्मृति चिन्ह, पुष्प तथा अन्य पूजा सामग्री उपलब्ध हैं।
मुख्य मंदिर के बाह्य भागों में छायाचित्रीकरण की अनुमति है किन्तु मंदिर के भीतर छायाचित्रीकरण निषिद्ध है।
पहाड़ी पर वानरों का भी वास है। अतः साथ में खाने पीने की सामग्री हो तो सावधानी रखें।
रामटेक – विदर्भ में रामायण के पदचिन्ह, बहुत ही खूबसूरती से आपने धार्मिक स्थल रामटेक का चित्रण किया हैं और नई जानकारी प्राप्त हुई जैसे – पौराणिक कथाओं के अनुसार अयोध्या के रामराज्य में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु अपने परिवार के ज्येष्ठ सदस्यों की मृत्यु से पूर्व नहीं होती थी एवम जहाँ हनुमान जी को भगवान राम का धनुष धारण करते हुए दर्शाया गया है। कदाचित यही एक ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान की ऐसी प्रतिमा स्थापित है और इतने भिन्न भिन्न मंदिर स्थापित है रामटेक में, सभी मंदिर के निर्माण का कुछ न कूछ घटनाओं के घटित होने का स्वाभाविक संबंध प्रतीत होता है, वाकई अद्भुत है, वैसे भी अभी पूरा भारत राममय हुआ जा रहा है। इतने अच्छे धार्मिक यात्रा करवाने के लिए साधुवाद। राम राम 🙏🙏
रामटेक – विदर्भ में रामायण के पदचिन्ह, बहुत ही खूबसूरती से आपने धार्मिक स्थल रामटेक का चित्रण किया हैं और नई जानकारी प्राप्त हुई जैसे – पौराणिक कथाओं के अनुसार अयोध्या के रामराज्य में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु अपने परिवार के ज्येष्ठ सदस्यों की मृत्यु से पूर्व नहीं होती थी एवम जहाँ हनुमान जी को भगवान राम का धनुष धारण करते हुए दर्शाया गया है। कदाचित यही एक ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान की ऐसी प्रतिमा स्थापित है और इतने भिन्न भिन्न मंदिर स्थापित है रामटेक में, सभी मंदिर के निर्माण का कुछ न कूछ घटनाओं के घटित होने का स्वाभाविक संबंध प्रतीत होता है, वाकई अद्भुत है, वैसे भी अभी पूरा भारत राममय हुआ जा रहा है। इतने अच्छे धार्मिक यात्रा करवाने के लिए साधुवाद। राम राम 🙏🙏😊