ताला की अद्वितीय रुद्रशिव की मूर्ति – छत्तीसगढ़ 

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रुद्रशिव की अद्वितीय मूर्ति 

ताला छत्तीसगढ़ के रुद्रशिव की प्रतिमा
ताला छत्तीसगढ़ के रुद्रशिव की प्रतिमा

ताला की रुद्रशिव की यह अद्वितीय मूर्ति शिल्पकला का सबसे अनोखा रचनांश है। लाल बलुआ पत्थर से बनी यह मूर्ति दो मीटर से भी अधिक ऊंची है। मूर्तिकला का ऐसा अनूठा नमूना पुरातत्व के इतिहास में आज तक कहीं भी नहीं मिल पाया है। इस मूर्ति में बड़ी ही कलात्मकता से उभारे गए रुद्र अथवा उग्र भावों के कारण यह मूर्ति मुझे यक्ष की आकृति जैसे ज्यादा लग रही थी। शायद इसी वजह से इस मूर्ति को रुद्रशिव कहा जाता है। इस मूर्ति को शिवजी का स्वरूप मानने का एक और संभावित कारण यह भी हो सकता है कि, शिवजी को पशुपतिनाथ अर्थात पशुओं के देवता भी कहा जाता है और इस मूर्ति में शारीरिक अंगों के रूप में उत्कीर्णित विविध पशुओं की आकृतियों द्वारा शिवजी का यह स्वरूप भलीभाँति उभरकर आता है। मेरे खयाल से यह छत्तीसगढ़ की विशेषक मूर्ति हो सकती है।

रुद्रशिव की मूर्ति का पर्यवेक्षण

पशुओं और मनुष्यों की मुखाकृतियों से बनाए गए शारीरिक अंग इस मूर्ति को अद्वितीय बनाते हैं। ऊपर दिये गए चित्र को अगर आप ध्यान से देखेंगे तो उस में आप निम्नलिखित बातें देख सकते हैं।

पशुपति या रुद्रशिव या कोई यक्ष
पशुपति या रुद्रशिव या कोई यक्ष
  • इस मूर्ति का मुकुट साँप का बना हुआ है, जो बिलकुल पगड़ी के समान लगता है।
  • नाक के स्थान पर गिरगिट बना हुआ है, जिसकी पूंछ बिच्छू के जैसी है।
  • उसकी भौहें मेंढक के पावों जैसी हैं।
  • नेत्रगोलक अंडों के समान हैं।
  • कान मयूर के रूप में बनाए गए हैं।
  • ठुड्डी के स्थान पर केकड़ा बना हुआ है।
  • मूँछों के स्थान पर मछलियाँ बनी हुई हैं।
  • कंधों की जगह मगरमच्छ का मुंह बना हुआ है।
  • बाँहें हाथी की सूंड की तरह हैं।
  • उँगलियाँ साँप के मुख जैसी हैं – कुछ लोगों का कहना है कि वह पंचमुखी नाग है।
  • वक्षस्थलों पर मनुष्यों की आकृतियाँ बनी हुई हैं – शायद वह जुड़वा हो।
  • पेट क स्थान पर एक गोलाकार मनुष्य का मुख बना हुआ है – शायद वह कुंभ को दर्शाता हो।
  • जांघों पर विद्याधर की आकृतियाँ बनी हुई हैं – यह मत्स्यकन्या हो सकती हैं – या हो सकता है कि वह तुला को भी दर्शाती हों।
  • जांघों की बाजुओं पर गंधर्व की आकृतियाँ बनी हुई हैं – शायद यह भी मत्स्यकन्या हो सकती है।
  • घुटनों के स्थान पर सिंह का मुख बना हुआ है – जो शायद सिंह राशि को दर्शाता हो।
  • पाँव हाथी के जैसे हैं।
  • दोनों कंधों पर रक्षक के रूप में दो साँप बने हुए हैं।
  • मूर्ति के बाईं तरफ भी एक साँप बना हुआ है।
पशुओं की आकृतियाँ और ज्योतिषीय चिह्न 

जैसा कि आप देख सकते हैं इस मूर्ति में समाहित कुछ पशु विविध ज्योतिषीय चिह्नों से भी संबंधित हैं। जैसे कि जुड़वा व्यक्तियों की वह आकृतियाँ जो मिथुन राशि से जुड़ी हुई हैं, कुंभ की आकृति जो कुंभ राशि से जुड़ी है, सिंह की आकृति सिंह राशि को दर्शाती है, विद्याधर या तुला की आकृतियाँ तुला राशि से संबंधित हैं, मगरमच्छ की आकृति मकर राशि को दर्शाती है, मत्स्यकन्याओं की आकृतियाँ कन्या राशि से संबंधित हैं, बिच्छू की आकृति वृश्चिक राशि से जुड़ी है और केकड़ा कर्क राशि को दर्शाता है, आदि। कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मूर्ति में सभी 12 राशियों या ज्योतिषीय चिह्नों का समावेश है। यद्यपि इन से संबंधित इससे अधिक जानकारी मुझे नहीं मिल पायी।

हैरानी की बात तो यह है कि इस मूर्ति के कुछ भाग टूटे हुए होने के बावजूद भी लोग उसकी पूजा करते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस मूर्ति को एक छोटे से कटघरे में रखा गया है, जिस पर हमेशा ताला लगा रहता है। भक्तजन इस कटघरे में बने धातु के दरवाजे से उस मूर्ति की पूजा करते हैं।

देवरानी – जेठानी मंदिरों का परिसर

देवरानी – जेठानी मंदिरों का वह परिसर, जहाँ पर आज यह मूर्ति रखी गयी है, गुप्त काल के दौरान बनवाया गया था। लेकिन इस मूर्ति के निर्माण-काल के संबंध में वहाँ पर कोई जानकारी नहीं मिलती। मूर्तिकला की दृष्टि से भी यह मूर्ति बहुत अनोखी है और उसे किसी निश्चित काल से जोड़ना थोड़ा कठिन है। उसकी स्थूलता को देखा जाए तो यह मूर्ति पुरातन काल की हो सकती है, या फिर थोड़ा बाद में निर्मित लोक कला का एक अद्भुत नमूना हो सकती है।

कलाकृति

ताला की रुद्रशिव की इस मूर्ति के दर्शन करना जैसे, इतिहास के किसी छूटे हुए किस्से की खोज करने जैसा था। जैसे कि मैंने शिवसागर के अहोम राजवंश की खोज की थी। इस मूर्ति की विचित्र सी शिल्पकला मुझे आज भी उसकी ओर आकर्षित करती है। क्या वह किसी चित्रकार की कल्पना का वास्तविकरण हो सकती है? या फिर किसी पशु-प्रेमी या किसी ज्योतिषी द्वारा की गयी मनुष्य के शरीर की व्याख्या? क्या वह अपने प्रकार का एक ही रचनांश है, या फिर उसकी समकालीन कुछ अन्य प्रतिमाएँ भी हो सकती हैं?

किसी के द्वारा इस मूर्ति को शिवजी की उपमा देना और फिर उसे उन्हीं के स्वरूप में पूजना, इस बात का द्योतक है कि किस प्रकार श्रद्धा का पोषण होता है और कैसे मनुष्य की आस्था एक पत्थर को भी भगवान बना देती है।

भारत में न जाने और ऐसे कितने खजाने छुपे हुए हैं जो इन यात्राओं के द्वारा मुझे हर बार आश्चर्य चकित कर देते हैं।

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