बस्पा घाटी भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित किन्नौर जिले की एक पर्वतीय घाटी है। इस पर्वत शृंखला से बहती बस्पा नदी के कारण इसका नाम बस्पा घाटी पड़ा। इस घाटी की सर्वाधिक विस्तृत बस्ती सांगला है जिसके कारण इसे सांगला घाटी भी कहा जाता है। सांगला घाटी बस्पा नदी के एक तट पर स्थित है। वहीं नदी के दूसरे तट पर बस्तेरी गाँव है।
बस्पा नदी इन दोनों कस्बों का प्रमुख जल स्त्रोत है तथा वहां के निवासियों को ट्राउट मछली की आपूर्ति भी करती है। हम बस्पा नदी के दोनों तटों पर, अर्थात् दोनों कस्बों में नदी के किनारे कुछ दिनों के लिए तम्बुओं में ठहरे थे। समीप से बहती उत्तेजित बस्पा नदी की जो गर्जना हमने उन कुछ रात्रियों में सुनी थीं,उसकी गूंज इतने महीनों पश्चात आज भी मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई पड़ती है। वह दृश्य व वो गर्जना आज भी मेरे मस्तिष्क में वही रोमांच उत्पन्न कर देता है जो उन दिनों में मैंने अनुभव किया था।
सांगला घाटी में बस्पा नदी की गर्जना का विडियो
सांगला घाटी के मध्य से बहती, उर्जा से भरपूर, बस्पा नदी का रौद्र रूप एवं उसकी गर्जना का अनुभव लेना हो तो यह विडियो देखिये।
दूर से बस्पा नदी घाटियों के मध्य से बहती एक सुकोमल नदी प्रतीत होती है। किन्तु उसके समीप पहुँचते ही उसकी गर्जना कानों के भीतर तक गूँज उठती है। उसके समीप जाकर ही आपको उसके रौद्र रूप का आभास होता है तथा उसमें ओतप्रोत उर्जा का अनुभव होता है।
हिमाचल प्रदेश के सांगला घाटी के दर्शनीय स्थल
बस्तेरी – एक अनूठा गाँव
एक दिवस, संध्या के समय हम पैदल सैर करते हुए बस्तेरी गाँव की ओर चल पड़े। किंचित चढ़ाई के पश्चात बस्पा नदी के ऊपर निर्मित पुल पार किया। कुछ दूर पैदल चलने के पश्चात हम बस्तेरी गाँव के प्रवेशद्वार पर पहुंचे।
गाँव की सीमा को परिभाषित करते इस प्रवेशद्वार से हमने गाँव में प्रवेश किया। प्रवेश करते ही मेरी दृष्टी यहाँ-वहां बिखरे पत्थरों पर पड़ी जिन पर शिल्पकारी की हुई थी। मेरे भीतर जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी। मैंने निश्चय किया कि जो भी जानकार व्यक्ति मिले, उससे इनके विषय में पूछूंगी
बस्तेरी का बद्री विशाल मंदिर
हम वहां से आगे बढ़े। हमने समक्ष पत्थर एवं लकड़ी द्वारा निर्मित एक सुन्दर बद्री नारायण मंदिर देखा। यद्यपि हमने इस मंदिर एवं यहाँ की आरती के समय के विषय में पूर्व जानकारी प्राप्त की थी तथा उस समय के अनुसार ही यहाँ पहुंचे थे, तथापि पर्वतीय गाँवों में पुजारीजी एवं भक्तों का आना बहुधा स्थानीय वातावरण एवं अनेक अन्य परिस्थितियों पर निर्भर रहता है।
हम पुजारीजी की प्रतीक्षा करने लगे कि वे आयें तथा मंदिर के पट खोलें। प्रतीक्षा काल का सदुपयोग करते हुए हमने मंदिर परिसर का अवलोकन आरम्भ किया। मंदिर की संरचना नवीन थी तथा लकड़ी पर सुन्दर नक्काशी की गयी थी। उन पर हिन्दू देवी-देवताओं के साथ साथ स्वामी विवेकानंद, बुद्ध तथा अन्य आदरणीय व्यक्तित्वों की छवियाँ भी उत्कीर्णित थीं। साथ ही अनेक शुभ चिन्ह, तांत्रिक विधियों से सम्बंधित चिन्ह तथा कुछ मादक प्रतिमाएं भी उत्कीर्णित थीं।
काष्ठ कलाकृतियों के रचयिता
संयोग से इन काष्ठ कलाकृतियों के सृजनकर्ता श्री रोशन लालजी भी वहीं उपस्थित थे। मैंने कुछ क्षण उनसे चर्चा की तथा उनकी कलाकृतियों के विषय में जानने की लालसा व्यक्त की। उन्होंने त्वरित मुझे अपनी कार्यशाला में आने का न्योता दिया जहां उसी प्रकार के अनेक अन्य काष्ठ फलकों पर शिल्पकारी की जा रही थी। उनकी कार्यशाला अत्यंत सरल थी। उन्होंने मुझे बताया कि यह मंदिर सन् १९९८ में अग्नि में भस्म हो गया था। अब गांववासी शनैः शनैः इस मंदिर का पुनर्निर्माण करा रहे थे जिसके लिए वे स्वयं के ही संसाधनों का उपयोग कर रहे थे। उनका समर्पण वास्तव में अचंभित कर देने वाला है।
कुछ समय पश्चात पुजारीजी आये तथा उन्होंने मंदिर के द्वार खोल दिए। लकड़ी के उत्कीर्णित द्वार के पीछे एक अन्य द्वार है जिस पर चाँदी एवं पीतल की नक्काशी की गयी थी। मंदिर की कथा कहते दो सूचना फलक थे जिस पर शिव-पार्वती के संग चेष्टा करते विष्णु की कथा प्रदर्शित है।
मंदिर में स्थापित प्रतिमाएं मेरे द्वारा अब तक देखी प्रतिमाओं से अत्यंत भिन्न थीं। वे चाँदी की तिब्बती प्रतिमाएं थीं जो पालकी जैसे आसनों पर विराजमान थीं तथा उन पर ऊनी वस्त्र उढ़ाए हुए थे। जब तक पुजारीजी पूजा अर्चना करते रहे, मैंने कथा पढ़ी तथा उन प्रतिमाओं को ध्यानपूर्वक निहारा। तत्पश्चात मैंने पुजारीजी से मंदिर की भित्तियों एवं द्वार पर अन्य महत्वपूर्ण शिल्पों के साथ कामुक शिल्पों की उपस्थिति का कारण पूछा। उन्होंने उत्तर दिया,”ये तो मेला है”। कदाचित वे यह कहना चाह रहे थे कि यही जीवन चक्र है। उन्होंने यह इतने सहज ढंग से कहा कि उनके दो टूक उत्तर में मानो सम्पूर्ण जीवन का सार समाहित हो गया।
अन्धकार होने से पूर्व तम्बू में पहुँचने की मंशा से हम वहां से वापिस आने के लिए निकले। मार्ग में लकड़ी के सुन्दर घरों को निहारते रहे जो मनोहरता एवं लालित्य से समय का सामना कर रहे थे।
सांगला कस्बा
सांगला कस्बा इस घाटी का व्यापारिक केंद्र है। हम सांगला के मार्गों में पैदल सैर करने लगे। उतार-चढ़ाव भरे मार्गों पर चलते हमारी साँस फूल रही थी किन्तु स्थानिकों के मुख की निश्छल स्मित हमारी थकान मिटा देती थी। हम नदी के समीप स्थित बेरिंग नाग मंदिर ढूँढने लगे।
बेरिंग नाग मंदिर
बेरिंग नाग मन्दिर हिन्दू एवं बौद्ध मूर्ति विद्या का अनोखा संगम है। यदि आपने अब तक इन दोनों धर्मों की भिन्नता ना देखी होती तो आप अवश्य यह समझते कि दोनों एक ही धर्म हैं। मुख्य मंदिर के पट बंद थे। इस मंदिर की प्रबल उपस्थिति का अनुभव आपको सम्पूर्ण कस्बे में प्राप्त होगा।
एक परित्यक्त संरचना ने मुझे सर्वाधिक अचंभित किया। वह कदाचित मंदिर का ही एक भाग था। उस पर की गयी जटिल उत्कीर्णन अब भी ध्यान आकर्षित कर रहे थे। भूतल में छोटे छोटे द्वार थे तथा प्रथम तल पर सुन्दर छज्जे थे जिन पर अप्रतिम नक्काशी की गयी थी। द्वार पर एक अनोखा ताला लटक रहा था। परिसर में अखरोट के वृक्ष भी थे।
मैं अटकलें लगाने लगी कि क्या किसी काल में यहाँ धनाड्य परिवारों ने निवास किया होगा अथवा क्या यह मंदिर का ही भण्डार गृह था या यह पुजारीजी का निवासस्थान था? मेरे इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए वहां कोई नहीं था। वह सुन्दर संरचना अपनी गौरव गाथा स्वयं ही सुनाने में पूर्ण सक्षम प्रतीत हो रही थी।
बौद्ध प्रार्थना शिलाएं
हम गाँव के भीतर सैर करने लगे। हमने देखा, अनेक स्थानों पर रंगबिरंगी बौद्ध प्रार्थना शिलाएं रखी हुई थीं जिन पर बौद्ध मंत्र उत्कीर्णित थे। ऐसी मान्यता है कि ये पवित्र शिलाएं भक्तों की प्रार्थनाओं को ब्रह्माण्ड में भेजती हैं। कुछ का यह भी मानना है कि ये शिलाएं बुरी आत्माओं को दूर रखती हैं। मेरे लिए तो ये शिलाएं मनुष्य एवं प्रकृति के मध्य एक आध्यात्मिक सम्बन्ध का द्योतक है।
शिमला से मनाली तक की हमारी यात्रा, Himachal Odyssey, में यहाँ से बौद्ध धर्म का प्रभाव आरम्भ हो रहा था। यहाँ से आगे अब हम कल्पा तथा स्पीति घाटी के नाको व ताबो में हिन्दू एवं बौद्ध संस्कृतियों का सम्मिश्रण देखने वाले थे। इसके आगे काजा में पूर्णतः बौद्ध धर्म व संस्कृति की प्राथमिकता है। ये रंगबिरंगी बौद्ध प्रार्थना शिलाएं इसी संस्कृति का संकेत देती हैं कि समीप ही वसाहत है जहां बौद्ध संस्कृति का प्रभाव है।
हिमाचल प्रदेश के विरल जनसँख्या वाले क्षेत्रों में, प्रत्येक गाँव एक दर्शनीय स्थल होता है तथा वहां की संस्कृति का अनुभव लेना अत्यंत आनंददायक होता है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन के अंतर्गत एक आदिवासी पर्यटन परिपथ है जो आपको इस घाटी का भ्रमण कराता है।