संखेड़ा के रंगीन गृह सज्जा सामग्री बनाने वाला कला ग्राम

0
1754

संखेड़ा, वडोदरा से दक्षिण-पूर्वीय दिशा में लगभग 45 कि.मी. की दूरी पर बसा हुआ एक छोटा सा गाँव है। यह भारत का एक सामान्य सा गुजराती गाँव है, जहाँ पर रहनेवाले अधिकतर परिवार लकड़ी की कारीगरी का व्यवसाय करते हैं। ये लोग लकड़ी के बड़े ही सुंदर फर्नीचर बनाते हैं, जो सिर्फ यहीं पर बनाए जाते हैं। यहाँ पर उत्पादित इन वस्तुओं को संखेड़ा के फर्नीचर के नाम से जाना जाता है।

संखेडा गुजरात में बनी रंग बुरंगी चौकियां
संखेडा गुजरात में बनी रंग बुरंगी चौकियां

इनकी विशेष बात यह है कि इन वस्तुओं को लाख के प्रयोग से चमकदार परिष्करण दिया जाता है। हालांकि अब इस कार्य के लिए लाख के स्थान पर तामचीनी का उपयोग किया जाता है। यह न केवल प्रयोग करने में ही आसान है, बल्कि इससे यहाँ के कारीगरों को रंगों की व्यापक विविधता भी प्राप्त हुई है, जिससे कि वे अपनी कलाकृतों को और भी सुंदर बना सकते हैं।

संखेड़ा के फर्नीचर अथवा गृह सज्जा का सामान

वडोदरा से संखेड़ा जाते वक्त हम दभोई से होते हुए गुजरे थे। संखेड़ा की इन संकरी गलियों में घूमते हुए हमे चाँदी की वस्तुएं बेचनेवाली बहुत सारी दुकाने दिखी, जिनमें चाँदी के बने ठेठ आदिवासी गहने बेचे जा रहे थे। जब हमने इन लोगों से लकड़ी की कलाकृतियों के बारे में पूछा तो उन्होंने हमे एक और गली की ओर मार्गदर्शित किया, जहाँ पर फर्नीचर की बहुत सी दुकानें और कार्यशालाएं थीं।

संखेडा में बना झूला
संखेडा में बना झूला

जिस दिन हम वहाँ गए थे वह दशहरे का दिन था जिसके कारण वहाँ की अधिकतर दुकानें बंद थीं। लेकिन जो भी दुकानें खुली थीं उनमें भी हमे एक से बढ़कर एक काष्ठ की वस्तुएं देखने को मिली। इन में से एक दुकान पर हमे दो महिलाएं दिखीं जो उस दुकान की कर्ता-धर्ता थीं। उन्होंने हमे लकड़ी की विविध वस्तुएं दिखाई, जो यहाँ पर बनायी जाती हैं; जैसे कि छोटी-छोटी चौकियाँ, डांडिया में प्रयुक्त छड़ियाँ, मंदिर और पालने आदि। यहाँ पर झूले भी थे जो गुजराती घरों की साज-सज्जा से बहुत मेल खा रहे थे।

कार्यशाला

संखेडा की कार्यशाला
संखेडा की कार्यशाला

थोड़ा-बहुत निवेदन करने के पश्चात उन में से एक महिला ने मुझे उनकी कार्यशाला के दर्शन करवाए। वहाँ पर मैंने सागौन लकड़ी के छोटे-बड़े टुकड़े देखे जिन्हें बाद में यंत्रों के द्वारा विविध आकार दिये जाते थे। आकार देने के बाद इन कलाकृतियों पर प्राइमर पोता जाता था और फिर आखिर में उनपर मेलामाइन रंगों की परत चढ़ाई जाती थी। यह रंग सूखने के बाद उस पर हाथ से विविध चित्र बनाए जाते थे, जो अधिकतर फूलों से संबंधित होते थे या फिर किसी प्रकार के ज्यामितीय आकार होते थे।

बाजोड़
बाजोड़

पुराने समय में इन वस्तुओं पर परिष्करण के तौर पर लाख की परत चढ़ाई जाती थी, जिसके कारण ये वस्तुएं भूरे से रंग की नज़र आती थीं; लेकिन अब इसके स्थान पर पोलिश का इस्तेमाल किया जाता है जो हूबहू वैसे ही परिणाम देती है। हमे बताया गया कि पुरानी प्रक्रिया बहुत ही थकाऊ थी और उसमें बहुत समय भी लगता था जिसका अनुसरण अब कोई नहीं करता। बाद में जब हम यहाँ की कारीगरों की गली में घूम रहे थे, तो हमने देखा कि यहाँ के अधिकतर घरों के बरामदों में लकड़ी के अध-उत्कीर्णित टुकड़े रखे गए थे।

संखेड़ा की प्रसिद्ध काष्ठ की वस्तुएं

काष्ठ का बना एक मनमोहक मंदिर
काष्ठ का बना एक मनमोहक मंदिर

संखेड़ा में उत्पादित प्रसिद्ध लकड़ी की वस्तुएँ हैं, बाजोड़ या चौकी – जो पूजा के समय बैठने के लिए इस्तेमाल की जाती है, कंगन रखने के स्टैंड, डांडिया की छड़ियाँ, मंदिर, सोफा, झूला आदि। इस छोटे से गाँव में उत्पादित इन वस्तुओं का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी संख्या में निर्यात भी किया जाता है। अगर आप कभी भी गुजराती घरों में गए हैं, तो आपने उनके घरों में संखेड़ा की कोई न कोइन लकड़ी की वस्तु जरूर देखी होगी।

यह भारत में स्थित अनेक छोटे-छोटे कला केन्द्रों में से एक है, जिनके अस्तित्व के बारे में बहुत से लोगों को जरा भी ज्ञान नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here