ताला और मल्हार जैसे नाम सुनते ही सबसे पहले आपके दिमाग में एक ऐसी जगह आती है जो संगीत से जुड़ी हो, लेकिन वास्तव में यह जगह छत्तीसगढ़ की वास्तुकला संबंधी विरासत का प्रमुख केंद्र है। मनियारी और शिवनाथ नदी के संगम बिन्दु के आस-पास बसी इस जगह पर शायद शैव पंथियों का प्रभुत्व है, हालांकि इस क्षेत्र में आपको कदम-कदम पर रामायण से जुड़े उपाख्यान सुनने को मिलते हैं।
हमे बताया गया कि ताला विशेष रूप से तांत्रिक विद्याओं और प्रथाओं के लिए प्रचलित है।
तो चलिये ताला में स्थित देवरानी – जेठानी के इन दो मंदिरों के बारे में जानते हैं।
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देवरानी – जेठानी का मंदिर
यहाँ पर दो प्राचीन मंदिरों के अवशेष पाए जाते हैं। दोनों मंदिर एक-दूसरे से कुछ ही मीटर की दूरी पर बसे हुए हैं। सार्वजनिक रूप से यह देवरानी – जेठानी के मंदिरों के नाम से जाने जाते हैं। उपाख्यान बताते हैं, कि ये मंदिर यहाँ के राजसी परिवार के दो भाइयों की पत्नियों के लिए बनवाए गए थे।
जेठानी मंदिर
जेठानी का मंदिर अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। एक समय में जो पत्थर मंदिर के रूप में खड़े हुआ करते थे, वे आज एक-दूसरे के ऊपर ऐसे ही पड़े हुए हैं। इन पत्थरों पर उत्कीर्णित विविध आकृतियाँ छोटे-छोटे कोनों से बाहर झाँकती हुई नज़र आती हैं।
यहाँ पर आप उत्कीर्णित हाथी भी देख सकते हैं, जो शायद मंदिर के प्रवेश द्वार पर खड़े हुआ करते थे। यहाँ पर कुछ टूटे हुए उत्कीर्णित स्तंभ भी हैं जो कभी इस मंदिर की छत का भार संभालते थे। इसके अतिरिक्त आप मंदिर की पूरी की पूरी छत जमीन पर बिखरी पड़ी हुई देख सकते हैं।
देवरानी मंदिर
देवरानी के मंदिर का आधारभूत मंच आज भी ज्यों का त्यों हैं और इसी के साथ मुख्य मंदिर तक जाती सीढ़ियाँ भी वैसी की वैसी हैं। इस मंदिर के द्वार की चौखट पर भी गुजरते हुए काल से हुई क्षति के ज्यादा निशान नहीं मिलते। यह चौखट आज भी इस प्रकार खड़ी है, जैसे कि वह आपको इस मंदिर के गौरवपूर्ण अतीत की झलकियाँ प्रदान कर रही हो। यह पूरी चौखट जटिल और नाजुक नक्काशी काम से सजी हुई है।
उसकी मोटी-मोटी दीवारों पर विस्तृत रूप से सिंह की मुखाकृतियाँ और मनुष्यों की आकृतियाँ उत्कीर्णित की गयी हैं, जो शायद किसी कथा का बयान करती हैं या फिर किसी घटना को दर्शाती हैं। उसके कोने गुलाब की वेणियों के रूप में तराशे गए हैं, जो विभिन्न आकारों में बनी हुई हैं। इस चौखट की सीधी किनारी पर कमल की वेणियाँ तराशी गयी हैं।
यहाँ पर खड़े स्तंभों के ऊपर अमलका बने हुए हैं और उनके मूल में पूर्ण घटक हैं। इस चौखट के ऊपरी भाग पर दिव्य आकृतियाँ बनी हुई हैं और उसी के नीचे वाली पट्टिका पर शायद देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हुई हैं, जिन्हें ठीक से पहचानना थोड़ा मुश्किल है। तो कुछ पट्टिकाओं पर नृत्य करते पुरुषों के चित्र हैं, जिनके पैर असंगत रूप से छोटे हैं; जैसे कि मंदिर के बाहर पड़ी गणेश जी की मूर्ति है।
यहाँ के अधिकतर पत्थरों को जोड़ने का प्रयास किया गया है। इन पत्थरों को देखते हुए यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है कि ये सभी पत्थर उसी मंदिर के हैं या नहीं। इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि, मंदिर तक जाती सीढ़ियाँ चढ़कर जब आप ऊपर पहुँचते हैं तो उस उच्चतम स्थान बिन्दु पर आपको मंदिर का गर्भ-गृह नज़र आता है। मंदिर के अवशेषों से यह बता पाना थोड़ा कठिन है कि उसकी शिखर किस प्रकार की थी। लेकिन भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो उड़ीसा और खजुराहो के बीच बसे होने के कारण यह कहा जा सकता है कि शायद उसकी शिखर नागर शैली में बनाई गई होगी।
श्री सिद्धनाथ आश्रम
ताला के देवरानी – जेठानी के इन मंदिरों तक पहुँचने के लिए आपको अपेक्षाकृत कुछ नए मंदिरों से होकर गुजरना पड़ता है। इन मंदिरों तक जाने वाले मार्ग पर बने मेहराब पर नज़र आनेवाले बड़े-बड़े अक्षरों के अनुसार इस जगह को श्री सिद्धनाथ आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस आश्रम का निर्माण 2008 में किया गया था।
इन प्राचीन मंदिरों के पास खड़े सफ़ेद त्रिकोणी शिखरोंवाले ये नए मंदिर काफी आकर्षक लग रहे थे। यहाँ पर एक छोटा सा अस्थायी संग्रहालय है जिसमें इस जगह से, खुदाई के दौरान प्राप्त कुछ मूर्तियाँ रखी गयी हैं। इन में से कुछ टूटी हुई मूर्तियों को सीमेंट के प्रयोग से फिर से संपूर्णता प्रदान करने की कोशिश की गयी है। मेरे विचार से अगर यह कार्य संरक्षण संस्थाओं को सौपा जाता तो शायद वे इससे भी बेहतर कार्य करतीं।
इन मूर्तियों के संबंध में भी यहाँ पर कोई दस्तावेजीकरण नहीं मिलता। यहाँ तक कि इन मंदिरों से संबंधित जानकारी प्रदान करने वाले सूचना फलकों को भी थोड़ी-बहुत मरम्मत की आवश्यकता है। और अगर इन सूचना फलकों को अंग्रेज़ी में भी प्रस्तुत किया गया तो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए इन्हें समझना और भी आसान हो सकता है।
कहा जाता है कि ताला ये सभी मंदिर मनियारी नदी के किनारे बसे हुए हैं, लेकिन हो सकता है कि मैं इस वास्तुकलात्मक विरासत में इतनी खो गयी थी की नदी की तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया; या फिर शायद यह नदी उतनी नजदीक नहीं थी कि हम उसे देख पाते।