मेघालय – अर्थात मेघों का आलय। यह क्षेत्र हमेशा बादलों से आवृत्त रहता है। यहां पर एक भी पल ऐसा नहीं था, जब हमने आसमान में एक भी बादल ना देखा हो। वैसे तो यह बारिश का मौसम नहीं था, लेकिन मेघालय में यह नज़ारा आपको हमेशा देखने को मिलता है। पर्यटन की बात करें तो मेघालय उत्तर पूर्वीय भारत का सबसे संगठित राज्य माना जाता है। मेघालय की पर्यटन संबंधी विवरणिकाएं लगभग सभी जगहों पर उपलब्ध हैं। यहां के टेक्सी चालकों और स्थानीय लोगों को इन आते-जाते पर्यटकों की आदत सी हो गयी है। शिलांग में अपना पहला दिन तो मैंने इस छोटे से पहाड़ी शहर में ऐसे ही घूमते हुए बिताया और वहां के कुछ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल देखे।
शिलांग के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल – पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण
डॉन बोस्को संग्रहालय
शिलांग का डॉन बोस्को संग्रहालय एक ऐसी जगह है, जो इस पहाड़ी शहर की यात्रा करने आए हर व्यक्ति को अवश्य देखनी चाहिए। यह संग्रहालय काफी नया है जिसका उद्घाटन 2010 में ही किया गया था। आज तक मैंने भारत में जितने भी संग्रहालय देखे हैं, उन में से यह संग्रहालय उत्तम रूप से संचालित किया जाता है। यहां पर प्रदर्शित वस्तुओं को अच्छी तरह से आयोजित किया गया है। यहां की प्रकाश योजना भी बहुत बढ़िया है, जो परिदर्शकों की हलचल के अनुकूल समंजन करती है। इससे एक तो बिजली की बचत होती है और प्रदर्शित वस्तुओं को भी लगातार कृत्रिम रौशनी का सामन नहीं करना पड़ता। इसके अलावा यहां के प्रत्येक प्रदर्शन कक्ष में टच स्क्रीन कियोस्क हैं, जो आपको प्रदर्शित वस्तुओं के बारे में काफी जानकारी प्रदान करते हैं।
उत्तर पूर्वीय भारत की जनजातियों को दर्शाता प्रदर्शन कक्ष
इस संग्रहालय में लगभग 17 प्रदर्शन कक्ष हैं, जो उत्तर पूर्वीय भारत की विभिन्न जनजातियों को दर्शाते हैं। संग्रहालय में प्रवेश करते ही वहां पर मौजूद गाइड आपको मुख्य सभागृह से होते हुए अलग-अलग प्रदर्शन कक्षों की सैर करवाते हैं, जो इस भवन के विविध मजलों पर बिखरे हुए हैं और इनमें से आधे तो भूतल के नीचे स्थित हैं। पूरे संग्रहालय की सैर करने के बाद आखिर में आप संग्रहालय के विक्रय कक्ष से अपनी मनपसंद वस्तुएं खरीद सकते हैं। यद्यपि मैंने तो यहां से अपनी कुछ मनपसंद किताबें ही खरीदी हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ये विक्रेता इससे भी बेहतर व्यापार कर सकते हैं। अगर इन वस्तुओं की सही-सही कीमत लगा दी जाए तो राज्य के लिए आय इकट्ठा करने का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है।
संग्रहालय के प्रवेश द्वारा से रिसेप्शन की ओर जाते समय आपको एक लंबे गलियारे से गुजरना पड़ता है। इस गलियारे के दोनों तरफ अपनी पारंपरिक वेश-भूषा पहने उत्तर पूर्वीय भारत की विभिन्न जनजातियों की महिलाओं और पुरुषों की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ खड़ी हैं, जैसे कि वे आपका स्वागत कर रही हों। इस संग्रहालय में विविध विषयों से संबंधित खास प्रदर्शन कक्ष हैं, जैसे कि पूर्व-इतिहास, भूमि और लोग, मछली पकड़ना, शिकार करना, कृषि प्रथाएँ, पारंपरिक प्रोद्योगिकी, संगीत वाद्य, वस्त्र, पारंपरिक कलाकृतियाँ, शस्त्र, धर्म, संस्कृति, आभूषण, वेश-भूषा, कपड़े, और चित्रकला के प्रदर्शन कक्ष।
संगीत वाद्यों, चित्रकला और कलाकृतियों के प्रदर्शन कक्ष
मुझे विशेष रूप से यहां के संगीत वाद्यों, चित्रकला और कलाकृतियों के प्रदर्शन कक्ष बहुत पसंद आए। यद्यपि वहां के सभी प्रदर्शन कक्ष काफी आकर्षक और दर्शनीय थे, जिनमें दैनिक जीवन की लगभग सभी वस्तुएं थीं, जैसे मछली पकड़ने और शिकार करने के विभिन्न उपकरण जो बांस और बेंत से बनाए गए थे। संगीत वाद्यों का कक्ष इस क्षेत्र के पारंपरिक वाद्यों से सुंदर रूप से सजाया गया था। तथा चित्रकला और कलाकृतियों के कक्ष सर्जनशीलता का उत्कृष्ट रूप थे। कहीं-कहीं पर कुछ चित्रों और कलाकृतियों को एक दूसरे में सम्मिलित किया गया था, ताकि परिदर्शकों पर इसका उत्तम प्रभाव पड़ सके। उदाहरण के लिए यहां की एक दीवार पर एक योद्धा का चित्र बनाया गया था और उसके हाथों में असली शस्त्र दिये गए थे। इसी प्रकार यहां पर अपनी जनजाति की युद्ध पोशाख पहने, मिट्टी की बनी एक मूर्ति थी जो अपने धनुष्य को तार बांधने में लीन थी। मेरे लिए यह सब कुछ बहुत ही रोचकपूर्ण था।
आभूषण
इस संग्रहालय की और एक बात जो मुझे बहुत आकर्षक लगी वह थी, यहां पर प्रदर्शित चाँदी और पशुओं की हड्डियों से बने विविध प्रकार के आभूषण। इन आभूषणों की व्यापक विविधता और इन में झलकती प्रत्येक जनजाति की अपनी अलग पहचान सच में एक अप्रतिम बात थी। इन वस्तुओं को नजदीक से देखने तथा समझने का यह मौका सच में अमूल्य था। इसके अतिरिक्त गोदने, कपड़े बुनने और मिट्टी के बर्तनों के विविध रूपों और आकारों को चित्रों के माध्यम से समझाया गया था।
डॉन बोस्को संग्रहालय में स्काईवॉक, शिलांग
डॉन बोस्को संग्रहालय की छत स्काईवॉक के रूप में बनाई गयी है। यहां से आप अपने चारों ओर बसे शहर, तथा उसे घेरती पहाड़ियों का सुंदर नज़ारा देख सकते हैं। चित्र रूपी इस दृश्य में समाहित प्रत्येक रंग जैसे एक दूसरे के परिपूरक थे। वह नीला आसमान, घने हरे-भरे पेड़-पौधे, यहां-वहां बिखरे रंगबिरंगी घर और इमारतों की पीली छत, सारे जैसे एक-दूसरे की शोभा बढ़ा रहे थे।
यहां पर एक सभागार है, जहां पर आगंतुकों के लिए उत्तर पूर्वीय भारत के राज्यों से जुड़े कुछ चित्तरंजक विडियो प्रस्तुत किए जाते हैं और इसी के साथ एक गीत भी बजाया जाता है जिसके द्वारा शिलांग की प्रसिद्ध और देखने योग्य जगहों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी दी जाती है। मुझे ये विडियो बहुत पसंद आए और इनके पीछे का उद्धेश्य वास्तव में बहुत अच्छा था। इसके अलावा यहां पर भारत के आठों उत्तर पूर्वीय राज्यों के विविध नृत्य प्रकारों को दिखानेवाले कुछ विशेष विडियो भी दिखाये जा रहे थे।
वार्डस झील, शिलांग
जब हमे पता चला कि हमारा होटल वार्डस झील के पास ही स्थित है, तो हमे बहुत प्रसन्नता हुई। शाम के समय यह झील बहुत ही खूबसूरत दिखती है और यहां का नज़ारा भी उतना ही मनमोहक होता है। दूसरे दिन सुबह-सुबह, हम झील के किनारे बनी पत्थरों की पगडंडी पर सैर करने और आस-पास के विविध प्रकार के कमल और लिली के फूल देखने के इरादे से झील की ओर चले गए। लेकिन वहां पर पहुँचते ही प्रवेशद्वार के पास ही हमे रोका गया और बताया गया कि आगंतुकों के लिए यह द्वार 9 बजे के बाद ही खुलता है। तब तक यह पूरा परिसर विशेष रूप से स्थानीय लोगों के लिए ही खुला होता है, जो सुबह की सैर के लिए नियमित रूप से यहां पर आते हैं। जिनमें से अधिकतर वरिष्ठ सरकारी और सैन्य अधिकारी होते हैं।
यह जानकर हम थोडा बहुत निराश हुए, लेकिन बाद में विचार करने पर मुझे लगा कि वास्तव में यह सही भी है कि, ऐसी जगहों पर सबसे पहले स्थानीय लोगों का अधिकार होना चाहिए और बाद उसके पर्यटकों का। अगले दिन हमे इस सुंदर सी झील को देखने का अच्छा मौका मिला। यह झील परिदृश्यात्मक बगीचों से घिरी हुई है, जहां की जमीन प्रत्येक पग पर थोड़ी उतार-चढ़ाव जैसी है। शहर के बीचोबीच बसी यह जगह आरामदायक सैर के लिए उत्तम है। यहां पर घूमते हुए आप झील के भीतर और आस-पास बिखरे फूलों के विविध और रंगबिरंगी प्रकार देख सकते हैं। इसके अलावा आप यहां नौका विहार का आनंद भी ले सकते हैं। यहां पर लकड़ी का एक पुल भी है जिस पर से चलते हुए आप झील का सुंदर दृश्य देख सकते हैं। यहां का वातावरण और नज़ारे ही कुछ ऐसे हैं जो अपनी प्रशंसा किए बिना आपको आगे बढ्ने नहीं देते और आप जैसे प्रकृति की अद्भुतता में खो से जाते हैं।
शिलांग पीक – शिलांग की सबसे ऊंची चोटी
शिलांग पीक शिलांग की सबसे ऊंची चोटी है, जो मुख्य शहर से लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां से आप बादलों की आड़ से नीचे फैले शिलांग शहर का मनोरम दृश्य देख सकते हैं। भारत के अधिकतर पहाड़ी इलाकों में ऐसी ही चोटियाँ हैं, जहां पर पहरे की एक मीनार होती है और वहां से आप अपनी मनचाही तस्वीरें खींच सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि, मेघालय जैसे कि बादलों की नागरी है, तो यहां पर हर समय बादलों की चादर बिछी रहती है, इसलिए आपको या तो उनके हटने का इंतजार करना पड़ता है, या फिर उनके द्वारा निर्मित नए-नए नज़रों को आप अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं।
शिलांग का एलिफंट फॉल्स
एलिफंट फॉल्स तक पहुँचने के लिए आपको शिलांग पीक तक जानेवाले मार्ग से थोड़ा विमार्ग होते हुए जाना पड़ता है। इन बहुस्तरीय झरनों की खोज अंग्रेजों द्वारा की गयी थी। कहा जाता है कि जब उनकी खोज हुई थी, तब जिस चट्टान पर ये झरने गिर रहे थे वह हाथी की पीठ जैसी लग रही थी, जिसकी वजह से उन्हें एलिफंट फॉल्स कहा जाने लगा। एक भूकंप के दौरान यह चट्टान टूट गयी लेकिन वह नाम वैसे ही बना रहा। इन झरनों के पीछे की चट्टान काले रंग की है जिस पर झरने का सफ़ेद पानी बिल्कुल विपरीत सा लगता है। इन झरनों की आवाज आप काफी दूर तक सुन सकते हैं। लेकिन उनके ठीक सामने पहुंचे बिना आप उन्हें नहीं देख पाते। इन झरनों के पास बनी सीढ़ियाँ आपको उनके तल तक ले जाती हैं, जो लगभग 150-200 फीट नीचे तक हैं। नीचे उतरते समय आप झरने के प्रत्येक स्तर पर रुककर उसकी सुंदरता का आस्वाद ले सकते हैं। नीचे जाते समय वैसे तो ज्यादा कठिनाई नहीं होती लेकिन वापस ऊपर आते समय आपको थोड़ी मुश्किल जरूर होती है।
जिस दिन हम एलिफंट फॉल्स पर गए थे उस दिन वहां पर बहुत सारे लोग थे, इसलिए डरने की कोई बात नहीं थी। लेकिन अगर आप यहां पर अकेले हों, तो यह जगह कुछ सुनसान और डरावनी सी लगती है।
ख़ासी जनजाति और उनकी वेश-भूषा
शिलांग पूर्वीय ख़ासी पहाड़ी जिले में पड़ता है, जो ख़ासी जनजाति की जन्मभूमि है। शिलांग पीक और एलिफंट फॉल्स इन दोनों जगहों पर आप स्वयं ख़ासी वेश-भूषा पहनकर अपनी तस्वीरें खिंचवा सकते हैं। उनके लाल और पीले कपड़े जिसके साथ एक लंबी सी गोलाकार टोपी होती है, जिसे प्लास्टिक के फूलों और चाँदी के सूक्ष्म आभूषणों से सजाया जाता है, बहुत ही सुंदर दिखते हैं। मैंने भी इस सुंदर सी वेश-भूषा में अपनी एक तस्वीर खिंचवायी थी।
शिलांग के अन्य पर्यटन स्थल
हैदरी पार्क और ज़ू एक और ऐसी जगह है जो अधिकतर पहाड़ी इलाकों में पायी जाती है। यह एक पार्क है जिसमें एक छोटा सा ज़ू होता है। अगर आप कुछ समय के लिए यहां पर ठहरे हुए हों, तो यह स्थान आरामदायक सैर के लिए बहुत अच्छा है। इसके अलावा यहां पर देखने लायक और भी बहुत सी चीजें हैं, जैसे कि कीटविज्ञान संग्रहालय और राज्य संग्रहालय तथा पुस्तकालय जहां पर जाने की मेरी बहुत इच्छा थी। यहां के टेक्सी चालकों की स्थल अवलोकन सूची में ये स्थल मौजूद नहीं थे। उनकी सूची में तो शहर के कुछ ही गिने-चुने पर्यटन स्थल थे, जहां पर वे आपको ले जाते थे। अगर इन स्थलों के अलावा उन्हें और किसी भी स्थान पर ले जाने के लिए कहा जाए तो उनका सीधा जवाब होता था कि उन्होंने इन जगहों के बारे में पहले कभी नहीं सुना था और वैसे भी उन जगहों पर तो कोई भी नहीं जाता तो आप वहां पर क्यों जाना चाहते हैं। ऐसे में मैं अपने टेक्सी चालक तथा उसकी जाति के अन्य चालकों को ठीक से मनाने में नाकाम रही, जिसकी वजह से मैं यहां-वहां के कुछ स्थान नहीं देख पायी।