भारत दर्शन या भारत भ्रमण स्वतः ही एक अद्भुत अनुभव है। भारत में इतनी विविधताएं हैं कि आप भ्रमण के विकल्प ढूँढते ढूँढते खो जायेंगे। भारत में ऐसी भी अनेक विशेषताएं हैं जिनके विषय में अधिकांशतः हमें जानकारी भी नहीं होती है। हम वही घिसेपिटे पर्यटन स्थलों तक ही सीमित रह जाते हैं।
आप भले ही अपने भारत दर्शन की योजना में ताजमहल जैसे प्रसिद्ध स्मारकों को सम्मिलित कर लें, किन्तु प्रत्येक स्थान से प्राप्त अनुभव ही आपको इस देश के शुद्ध सार का आनंद देगा।
१२ सर्वोत्तम भारत दर्शन अनुभव
आईये मैं आपसे भारत दर्शन के सर्वोत्तम अनुभवों में से कुछ के विषय में जानकारी बांटना चाहती हूँ। आप अपनी आगामी यात्रा के नियोजन के समय इन पर विचार कर सकते हैं।
१. भारतीय वनों के वन्यजीवन का आनंद उठायें।
संस्कृति के धनी भारत देश में भ्रमण करते समय हम बहुधा यहाँ के वन्यजीवन दर्शन को अनदेखा कर देते हैं। अन्यथा हम सब जानते हैं कि भारत में वन्य प्राणियों की कई अनोखी प्रजातियाँ हैं। शेर, सिंह, एक श्रृंगी गेंडा, हाथी इनमें से कुछ हैं। भारतीय अरण्य एवं वन ऐसी वन्यजीवों की प्रजातियों से भरी हैं जो आपको दंग कर देंगी।
अधिकतर वन वन-विभाग के अंतर्गत आते हैं जिन पर वन्य जीवन के रक्षण एवं संरक्षण का दायित्व है। इसका अर्थ है कि बिना अनुमति वन में प्रवेश निषिद्ध है। वन्य जीवन के दर्शन निर्देशित सफारी द्वारा की जाती है जिसमें वन विभाग द्वारा अनुमति प्राप्त जीप एवं गाइड आपको वन का भ्रमण कराते हैं। वे आपको वनीय वनस्पतियों एवं प्राणियों के विषय में जानकारी देते हैं। कुछ राष्ट्रीय अभयारण्यों में हाथी द्वारा जंगल-सफारी, पैदल सफारी एवं नौका द्वारा सफारी जैसी विविध सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
सभी सफारियाँ आनंद उठाने लायक हैं। कल्पना कीजिये आप नौका में बैठे हैं तथा आपके चारों ओर पानी, उसके पार घनी हरियाली एवं उनमें विचरते जलचर एवं थलचर अपने अपने कार्यों में व्यस्त हैं। आपके ऊपर विभिन्न पक्षी यहाँ से वहां उड़ते अपनी स्वच्छंदता का सुखद आनंद प्रदान कर रहे हैं।
और पढ़ें: वन्यजीवन दर्शन के नियोजन के लिए सम्पूर्ण गाइड
पेंच जैसे कुछ राष्ट्रीय उद्यान मोगली से जुड़े होने के कारण एक रोचक अनुभव देते हैं। यहाँ आप वृक्षों के ऊपर बने कुटिया में रहने का भी आनंद ले सकते हैं। कुछ अभयारण्यों में सुन्दर आदिवासी गाँव अथवा प्राचीन दुर्ग के खँडहर भी हैं। यहाँ आपको प्रकृति एवं प्राचीन आदिवासी संस्कृति के अद्भुत समागम का अनुभव प्राप्त होगा।
२. भारतीय मंदिरों की वास्तुकला को समझें।
उत्तरी भारत के पंजाब राज्य में पली-बड़ी होने के कारण मैं अधिकाँश भारत में स्थित सुन्दर मंदिरों से अनभिज्ञ थी। अप्रतिम देवालय-वास्तुकला से मेरा सामना जीवन में कुछ विलम्ब से हुआ। जब मुझे मंदिर वास्तुकला का अनुभव प्राप्त हुआ, मैं उस पर कुछ इस प्रकार मोहित हुई कि मेरा मन संतुष्ट ही नहीं होता। प्राचीन भारतीय मंदिरों के जितना अधिक मैं दर्शन करती हूँ, उतनी अधिक जानकारी मुझे प्राप्त होती है। प्राचीन भारतीय मंदिर स्वयं में अनेक कथाएं, किवदंतियां, दर्शनशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र एवं इतिहास की अपार संपत्ति समेटे हुए है जिन्हें जितना जानें उतना कम है।
मेरा सुझाव है कि आप भारत के किसी भी कोने की यात्रा करें, वहां स्थित कुछ प्राचीन मंदिरों के दर्शन अवश्य करें, उनकी वास्तु को समझने का प्रयत्न करें। यदि कुछ अध्ययन के पश्चात जाएँ तो मंदिर-वास्तु की सूक्ष्मताओं को पहचानने में आसानी होगी तथा आपका आनंद कई गुना अधिक हो जाएगा।
यदि आप सर्वाधिक प्रसिद्ध दिल्ली- आगरा- जयपुर परिपथ में भ्रमण कर रहे हैं तथा यह आपका प्रथम अवसर है तो प्रयत्न कर उसे खजुराहो तक ले जाएँ।
यदि आप उत्तर भारत की धरोहरों के दर्शन करना चाहते हैं तो उत्तराखंड में जागेश्वर अथवा हिमाचल प्रदेश के पाषाण एवं काष्ठ मंदिरों के दर्शन करना ना भूलें।
दक्षिण भारत का मंदिर वास्तुशिल्प
यदि आप दक्षिण भारत की ओर जाना चाहते हैं तो आपके समक्ष विकल्पों की झड़ी लग जायेगी। दक्षिण भारत में आप जहाँ दृष्टी दौड़ाएं वहां आपको अप्रतिम मंदिर दृष्टिगोचर होंगे। दक्षिण भारत के मंदिरों के दर्शन करने के लिए मेरे सर्वाधिक प्रिय स्थल हैं कांचीपुरम एवं तंजावुर। इन दोनों स्थानों में देवालय-वास्तुकला की दो अद्भुत शैली विद्यमान है। वे हैं पल्लव शैली एवं चोल शैली। केरल के मंदिरों की विशेषता है लकड़ी का अप्रतिम प्रयोग एवं उनकी तिरछी छतें।
देश के पश्चिमी भाग में एल्लोरा का कैलाश मंदिर अथवा खिद्रापुर का कोपेश्वर मंदिर जैसे मंदिर हैं जिनकी वास्तुशैली अतुलनीय है। इनके दर्शन करना ना भूलें।
पूर्वी भाग में बिश्नुपुर का टेराकोटा मंदिर, भुवनेश्वर का पुरी मंदिर अथवा उड़ीसा का कोणार्क मंदिर प्रसिद्ध हैं।
उत्तर-पूर्वी दिशा में गुवाहाटी का कामाख्या मंदिर तथा सिबसागर की मंदिर नगरी अवश्य देखें।
यहाँ तक कि जिस गोवा राज्य को आप एक भिन्न पर्यटन की दृष्टी से देखते आये हैं, वही गोवा अनेक भव्य एवं आकर्षक मंदिरों से भरपूर राज्य है। गोवा की मंदिर-वास्तु शैली आपका परिचय गोवा के एक भिन्न आयाम से करायेगी।
आप जब भी भारत के प्राचीन मंदिरों के दर्शन करें तब उन मंदिरों के निर्माण में प्रयोग की गयी सामग्री की ओर ध्यान केन्द्रित करें। उनकी आकृतियाँ, कथाएं सुनाती नक्काशी, शिखर तथा भवन की वास्तु-शैली, अधिष्ठातृ देव तथा स्थानीय किवदंतियों के विषय में जानने का प्रयत्न करें।
भारत के मंदिर, हमारी यह श्रंखला अवश्य पढ़ें।
३. इतिहास दर्शन एवं अनुभव के लिए संग्रहालय देखें
जब बात हो प्रसिद्ध पर्यटन स्थल की तो संग्रहालय बहुधा हमारे मष्तिष्क में नहीं आता। किन्तु यदि आप भारत को विभिन्न स्थान एवं समय के परिप्रेक्ष्य में जानना चाहें तो संग्रहालय अवश्य देखें। किसी भी स्थान का भ्रमण उसके इतिहास एवं संस्कृति को समझे बिना सम्पूर्ण नहीं होता। अन्यथा आप उस स्थान के साथ न्याय नहीं करते। इतिहास एवं संस्कृति को जानने के लिए वहां के संग्रहालय से उत्तम कोई अन्य स्त्रोत नहीं है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनेक संग्रहालय हैं जिनमें अनेक प्राचीन कलाकृतियाँ हैं। कई ऐसी कलाकृतियाँ हैं जिन्हें विशेष रूप से खुदाई द्वारा निकाला गया है। संग्रहालय में उपलब्ध किसी विशेषज्ञ की सहायता से आप प्रत्येक प्रदर्शित कलाकृति के विषय में जान सकते हैं। आप जान सकते हैं, प्राचीन भारत के तकनीक, संस्कृति, जीवन शैली एवं अनेक पौराणिक कथाएं।
• दिल्ली : राष्ट्रीय संग्रहालय तथा सुलभ शौचालय संग्रहालय
• मुंबई : भाऊ दाजी लाड संग्रहालय जिसने मुंबई नगरी की सर्व जानकारी तथा इसकी धनी एवं विविधतापूर्ण इतिहास का आलेखन किया है।
• चेन्नई : एग्मोर संग्रहालय में चोल काँस्यों का सर्वोत्तम संग्रह है।
• कोलकाता : यहाँ भारत संग्रहालय नाम का सर्वाधिक प्राचीन संग्रहालय है।
• हैदराबाद : हैदराबाद में कई प्रसिद्ध संग्रहालय हैं जिनमें ऐतिहासिक संस्कृति एवं सभ्यता दर्शाता सालारजंग संग्रहालय तथा सुधा कार संग्रहालय प्रमुख हैं।
• जयपुर : अलबर्ट हाल संग्रहालय
• अहमदाबाद : कैलिको संग्रहालय
• वाईजाक : पनडुब्बी संग्रहालय
प्रत्येक राज्य की राजधानी एवं प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में प्रभावशाली संग्रहालय हैं। मथुरा संग्रहालय में मथुरा स्कूल ऑफ़ आर्ट्स की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ हैं।
संग्रहालय दर्शन के समय किसी विशेषज्ञ की सहायता अवश्य लें। यूँ तो कई संग्रहालयों में संलग्न आलेखों में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध होती हैं। कई संग्रहालयों में ध्वनी यंत्रों द्वारा भी सुव्यवस्थित जानकारी उपलब्ध कराई जाती हैं। किन्तु अब भी अधिकतर संग्रहालयों में यह सुविधा अनुपस्थित है। आशा है वहां भी ऐसी सुविधाएं शीघ्र ही प्राप्त होंगी।
४. थाली – भारतीय पारंपरिक स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद चखें
भारत के भीतर किसी भी पर्यटन स्थल की यात्रा के समय आप भारतीय भोजन ही पसंद करते होंगे, ऐसा मेरा अनुमान है। मेरा सुझाव है कि आप जहां भी जाएँ, उस स्थान के स्थानीय भोजन का आनंद उठाने के लिए वहां की थाली अवश्य चखें। थाली में मीठे-तीखे कई व्यंजन परोसे जाते हैं जो उस स्थान की विशेषता होते हैं। कभी कभी तो किसी थाली विशेष में ३० से भी अधिक पकवान परोसे जाते हैं।
थाली में विभिन्न कटोरियों में जो भिन्न भिन्न पकवान परोसे जाते हैं उनमें से कुछ तो सामान्यतः एक समान होते हैं जैसे चटनी, अचार, पापड, रोटी, चावल इत्यादि। किन्तु इनका स्वाद भी प्रत्येक क्षेत्र में भिन्न है। इनके अतिरिक्त उस स्थान पर उपलब्ध स्थानीय व मौसमी भाजियों एवं मसालों का प्रयोग कर वहां की पद्धति से बनाया गया भोजन आपको वहीं प्राप्त होगा।
अतः आप भारत में जहां भी जाएँ, वहां की थाली का आनंद अवश्य उठायें।
मैं आपको एक सुझाव यह भी देना चाहती हूँ कि आप एक समय का भोजन वहां के किसी स्थानीय प्रमुख मंदिर अथवा आश्रम में भी करें। वहां भोजन सादा होता है किन्तु मंदिर का भोजन प्रसाद रूप में ग्रहण करना एक पृथक आनंद देता है। यूँ तो मंदिरों में निःशुल्क भोजन उपलब्ध है, आप कुछ दान-दक्षिणा करना चाहें तो कर सकते हैं।
हमारा यह विस्तृत संस्मरण देखें: भारतीय पाकशैली का आनंद उठाने के लिए १५ सर्वोत्तम भारतीय ‘थाली’।
५. भारत दर्शन में भारत की नदियों से वार्तालाप करें
प्राचीन भारतीय संस्कृति नदियों के तट पर ही पनपी है। आज भी भारत के अधिकांश प्रमुख नगरों एवं कस्बों में एक अथवा दो नदियाँ बहती हैं।
भारतीय संस्कृति में नदियों को जीवन-दायिनी जल के कारण देवी-स्वरूप माना जाता है। अपने जल से हमारा पालन-पोषण करने के लिये उन्हें माँ-स्वरूप भी माना जाता है। भारतीय परम्परा में नदियों की पूजा-अर्चना की जाती है। भारत के कई स्थानों में आप ऐसे मंदिर भी देखेंगे जो विशेषतः नदियों को समर्पित हैं, जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी इत्यादि।
ऐसे नगरों के भ्रमण के समय जहां इनमें से कोई नदी बहती है, आप उसकी कम से कम एक आरती में अवश्य भाग लें। यह अनुभव अतुलनीय है। भारत के कुछ प्रसिद्ध नदियों की आरतियां :
• वाराणसी के दशाश्वमेध घाट में गंगा आरती
• हरिद्वार एवं ऋषिकेश में गंगा आरती
• अयोध्या में सरयू नदी की आरती
• मथुरा एवं वृन्दावन में यमुना की आरती
• महेश्वर में नर्मदा नदी की आरती
• बुरहानपुर में ताप्ती नदी की आरती
अधिकतर आरती संध्या के समय, सूर्यास्त के तुरंत बाद की जाती है। नदी के जल पर पड़ता आरती के दीयों का प्रतिबिम्ब अत्यंत मनमोहक होता है। यह कोई औपचारिक आयोजन नहीं है जिसके लिए आपको आमंत्रण की आवश्यकता हो। आप कभी भी वहां पहुंचकर आरती में भाग ले सकते हैं।
यह तो हुआ नदियों को देखने का धार्मिक दृष्टिकोण। इनके अलावा आप गंगा एवं ब्रम्हपुत्र नदियों पर पोतविहार कर सकते हैं अथवा चम्बल एवं माण्डवी जैसी नदियों पर नौका विहार का आनंद ले सकते हैं।
६. भारत के बाजारों में खरीददारी करिये
किसी भी संस्कृति का सूक्ष्मदर्शन होता उसका बाजार। किसी भी क्षेत्र का बाजार यह दर्शाता है कि उस क्षेत्र की जीवन शैली कैसी है, वहां किन किन वस्तुओं की खपत है, वहां किन किन वस्तुओं का उत्पादन होता है इत्यादि। यह और बात है कि वर्तमान में प्रत्येक छोटे-बड़े नगरों में बड़े बड़े मॉल खुल गए हैं।
किन्तु मेरा प्रिय भ्रमण स्थल है पुरानी शैली के बाजार जहां छोटे विक्रेता अपना माल लाकर बिक्री करते हैं। वहां सामान के साथ साथ उस स्थान की संस्कृति से भी आपका सामना होता है।
पुराने बाजारों की एक शैली होती है। वहां एक प्रकार की वस्तुओं के लिए स्थान निर्धारित रहता है। जैसे एक सम्पूर्ण गली वस्त्र बाजार को समर्पित रहती है तो एक गली में अनेक प्रकार के आभूषणों की दुकानें रहती हैं। कोई गली मसालों की दुकानों से भरी रहती है तो कोई क्षेत्र भाजी एवं फलों की दुकानों से सज्ज रहती है। इसका अर्थ है एक ही स्थान पर अनेक प्रकार की वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं। साथ ही एक प्रकार की अनेक दुकानें होने के कारण आपके समक्ष चुनने का विकल्प भी उपलब्ध रहता है। गोवा के म्हापसा बाजार में मछली खरीदने की अनोखी सुविधा है जिसमें आप सम्पूर्ण खरेदी करने के पश्चात अंत में मछली खरीद कर सीधे घर जा सकते हैं।
भारतीय बाजार भीड़-भाड़ भरे, गड़बड़ी से भरपूर एवं ऊर्जा से ओतप्रोत रहते हैं। यहाँ आपकी मोलभाव करने की कला का सही आकलन हो सकता है। यदि कुछ खरीदने की इच्छा ना हो तब भी एक कोने में खड़े होकर लोगों को मोलभाव करते देखना तथा वहाँ की रौनक निहारना भी अत्यंत रोचक एवं प्रफुल्लित करने वाला अनुभव हो सकता है।
भारत के कुछ अत्यंत लोकप्रिय बाजार ये हैं:
• दिल्ली – पुरानी दिल्ली के बाजार अथवा चांदनी चौक
• हैदराबाद – लाड बाजार तथा आसपास की गलियाँ
• गोवा – अंजुना फ्ली मार्किट
• जयपुर – बापू बाजार
• वाराणसी – ठठेरी गली
• चेन्नई – टी नगर
अतः मेरी सलाह है कि आप भारत के किसी भी भाग का भ्रमण कर रहे हों, वहां के स्थानीय बाजार में कुछ घंटे अवश्य बिताइये। आपको उस संस्कृति के व्यवहारिक आयामों के दर्शन होंगे।
७. किसी दुर्ग की चढ़ाई
दुर्ग अर्थात ऐसा स्थान जहां आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता। इसलिए दुर्ग अधिकतर किसी पहाड़ी पर निर्मित किये जाते थे जहां से सैनिक चारों ओर दृष्टी रख सकते थे। भारत के सम्पूर्ण समुद्र तटीय क्षेत्र में भी अनेक दुर्ग हैं।
कई दुर्ग इतने बड़े हैं कि उनके भीतर एक नगर समा सकता है। दुर्ग को घेरती ऊंची सक्षम भित्तियाँ इतनी चौड़ी होती हैं कि आप उन पर चल सकते हैं। दुर्ग की ये भित्तियाँ स्वयं के भीतर जीवंत धरोहर समाये रहती हैं। प्रत्येक दुर्ग की संरचना में अपनी विशेषता होती है। जैसे चितोड़गढ़ का विजयस्तम्भ तथा कुम्भलगढ़ दुर्ग की दूसरी सर्वाधिक लम्बी भित्ती।
कई दुर्ग समुद्र के भीतर स्थित हैं। उनमें एक है सिंधुदुर्ग जो सागर के खारे जल में ४०० से भी अधिक वर्षों से खड़ा है। इसकी एक अन्य विशेषता है चारों ओर खारे जल से घिरे दुर्ग के भीतर स्थित मीठे जल का कुआं। झांसी के किले जैसे भी दुर्ग हैं जो वहां की रानी के कारण प्रसिद्ध हैं। कुछ दुर्ग अब भी जीवंत हैं जैसे ओरछा एवं जैसलमेर दुर्ग।
भारत १९४७ तक कई छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। अतः देश के किसी भी कोने में दुर्ग का होना आश्चर्यजनक नहीं है। भारत के दुर्ग, हमारी यह श्रंखला आपको इस विषय में रोचक जानकारी देती है।
यदि संभव हो तो आप किसी हेरिटेज होटल में रहने का प्रयास कर सकते हैं। हेरिटेज होटल पूर्व में किसी राजा अथवा राजदरबार के पदवीदार वंश का निवास स्थान होता है जिसे पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से अतिथिगृह में परिवर्तित किया गया है।
८. गलियों के स्थानीय व्यंजन खाकर अपनी चटोरी जिव्हा को संतुष्ट करें
मैं गलियों के चटपटे व्यंजनों पर सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकती हूँ। ऐसे चटपटे व्यंजन अब सब स्थानों पर उपलब्ध हैं, जैसे गलियों में, सार्वजनिक स्थलों पर खड़े ठेलों पर, स्कूल कॉलेजों के बाहर इत्यादि।
भारतीय व्यंजन खट्टे-मीठे एवं मसालेदार होते हैं। ये आपकी मचलती जिव्हा को परम आनंद प्रदान करते हैं। यह और बात है कि वे आपके पेट में जाकर कौन कौन सा खेल खेलें यह आपकी प्रकृति पर निर्भर है। गलियों के व्यंजनों की सूची अत्यंत व्यापक है। उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ अवश्य करना चाहती हूँ:
• पानी पूरी जिसे पुचका अथवा गोल-गप्पे भी कहते हैं
• पाव भाजी
• आलू टिक्की
• वडा पाव
• समोसा
• कचोरी
• भेलपुरी अथवा झालमुड़ी
• भजिया या पकोड़े
• भुट्टे
गलियों के शाकाहारी चटपटे व्यंजनों के लिए मेरे सर्वाधिक प्रिय नगर हैं, इंदौर, लखनऊ एवं अहमदाबाद। यूँ तो प्रत्येक स्थान के कुछ विशेष व्यंजन होते हैं जो वहां की गलियों को स्वाद एवं सुगंध से परिपूर्ण करते हैं।
९. भारत भ्रमण के कार्यक्रम में कपड़ा बुनाई के ताने-बाने को अवश्य गूंथिये
भारत में कपड़ा बुनाई का विस्तृत इतिहास है। देश के उस पार से लोग भारत कपड़ा व्यापार एवं उससे सम्बंधित उद्योग के कारण ही आये थे। कपड़ा रंगने के लिए उपयोगी नील ने भी कई विदेशियों को भारत की ओर आकर्षित किया था। समय के साथ विभिन्न प्रकार के वस्त्रों एवं उनकी बुनाई पद्धतियों ने भी विकास किया। वस्त्रों पर रंगाई की जाती है, कढ़ाई की जाती है, सोना, चाँदी एवं रत्नों से जरदोजी की जाती है। देश की वस्त्र संबंधी धरोहर अप्रतिम है। इन्हें आप खरीदी के परे जाकर भी देखने का प्रयत्न करें।
वस्त्र बुनाई के लोकप्रिय स्थल हैं वाराणसी, कांचीपुरम, श्री कालाहस्ती, पोचमपल्ली, पाटन, पैठन, भागलपुर, महेश्वर, बिश्नुपुर इत्यादि।
खादी आश्रम में भी आप कपड़ा बुनाई का अनुभव ले सकते हैं। इन्हें देख आप जान सकते हैं कि जो वस्त्र आप धारण करते हैं, उन्हें किस प्रकार बुना जाता है।
भारत के वस्त्र इतिहास एवं परंपरा का सर्वधिक आकर्षक नमूना है साड़ियाँ। बुने वस्त्रों से विभिन्न प्रकार के परिधान भी सिले जाते हैं।
कपड़ा बुनाई भारत की अनवरत धरोहर का जीता जागता उदाहरण है। इन्हें अपने भ्रमण कार्यसूची में अवश्य सम्मिलित करें।
यदि आप आभूषणों को पसंद करते हैं तो वस्त्रों के साथ उस स्थान के प्रसिद्ध आभूषणों को भी खोजें। मोती एवं चांदी के आदिवासी आभूषणों से लेकर रत्न जड़ित सोने के आभूषण अथवा सड़क के किनारे बिकते कृत्रिम आभूषण, यह स्वयं में एक विश्व है जिनमें आप खो सकते हैं।
१०. फल – आम का स्वाद चखिए
सौभाग्य से फल अभी भी अपने भौगोलिक स्थलों तक सीमित हैं। भले ही लोगों ने उन्हें अन्यत्र उगाने के कई प्रयास किये हों। आम को फलों का राजा कहा जाता है। इन्हें खाने का सर्वोत्तम समय ग्रीष्म ऋतु है।
कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि हम तपती गर्मी आसानी से सहन कर लेते हैं क्योंकि यह अपने साथ आम तथा तरबूज जैसे रसीले फल लाती है। अधिकाँश भारतीयों के आम से सम्बंधित कई कहानियां एवं अनुभव होते हैं।
हम सदा आपस में वादविवाद करते हैं कि कौन से आम सर्वाधिक स्वादिष्ट होते हैं। बालपन में आम की जिन प्रजातियों को खाकर हम बड़े होते हैं, अधिकतर वही हमारे प्रिय आम होते हैं। मुझे बनारसी आम अत्यंत प्रिय हैं, वहीं मेरे पतिदेव अल्फांजो अर्थात हाफूस आम को सर्वाधिक स्वादिष्ट मानते हैं। आम भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। कुछ को काटकर तथा कुछ को चूसकर खाया जाता है। वहीं कुछ आमों के रस निकाले जाते हैं तथा कुछ को अचार चटनी इत्यादि में परिवर्तित कर वर्ष भर उनका आस्वाद लिया जाता है।
ग्रीष्म ऋतू में खाने लायक कुछ फल केवल हिमालय की तलहटी में ही उपलब्ध होते हैं, जैसे लीची तथा बेल।
भारत में भ्रमण के समय वहां के स्थानीय फल चखना ना भूलें।
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११. भारत में भ्रमण के समय ग्रामीण भाग एवं शिल्प ग्राम देखें
आपने यह कहावत सुनी होगी कि वास्तविक भारत गावों में बसता है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। मेरे विचार से आधुनिक नगरों में भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां की जीवन शैली ग्रामीण भागों से समानता रखती है। यह और बात है कि ग्रामीण क्षेत्र संस्कृति एवं परम्पराओं से अधिक गहराई तक जुड़े होते हैं।
मेरी सलाह है कि आप किसी छोटे से गाँव में भी कुछ क्षण व्यतीत करें। ग्रामीण पर्यटन संगठनों की इस सूची पर दृष्टी डालें जो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों का अनुभव कराती हैं।
आप किसी शिल्प ग्राम में भी भेंट कर सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं, बंगाल का बिश्नुपुर, उड़ीसा का रघुराजपुर, हैदराबाद के समीप पोचमपल्ली अथवा आगरा के समीप फिरोजाबाद। इन्हें ढूँढना कठिन नहीं है। आवश्यकता है अपने कार्यक्रम में इन्हें स्थान देने की। कृषि प्रधान समाज की सादगी भरी जीवन शैली का आनंद उठायें।
१२. भारत दर्शन की यात्रा में जीवंत कला का आनंद उठायें
किसी भी क्षेत्र की संस्कृति वहां के मूल कला रूपों द्वारा सर्वोत्तम रूप से दर्शाई जा सकती है। भारत ऐसे ही कई संस्कृतियों का धनी है। इन्हें गिनना कठिन कार्य है। कुछ की सूची यहाँ दे रही हूँ। इनमें से आप चुन सकते हैं। वहां की कला एवं संस्कृति को जानने के लिए स्थानीय समाचार पत्र को खंगालिए। उनमें आपको चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जानकारी प्राप्त हो सकती है।
• शास्त्रीय अथवा लोक नृत्य प्रदर्शन
• चित्रकला अथवा रंगोली कार्यशाला
• कला प्रदर्शन
• योग शिविर
• पाककला कार्यशाला इत्यादि
भारत यात्रा वास्तव में देश के विभिन्न आयामों को खोजने से कम नहीं है। यहाँ एक स्थानीय कहावत है जिसके अनुसार- यहाँ प्रत्येक ३ की.मी. के उस पार जल का स्वाद भिन्न हो जाता है तथा प्रत्येक १२ की.मी. पर भाषा में परिवर्तन आ जाता है जिसके साथ अन्य सर्व आयामों में भी भिन्नता आ जाती है। एक देश होकर भी यह अनेक विविधताओं को समेटे हुए है।
उपरोक्त अनुभवों में से कम से कम कुछ को अपने कार्यक्रम में सम्मिलित करने का प्रयास कीजिये।
अपने अनुभव हमसे बांटना ना भूलें।
अति उत्तम।
धन्यवाद अभिषेक