मैं यात्राएं करती हूँ तथा उन पर अपने संस्मरण लिख कर उन्हें प्रकाशित करती हूँ। अनेक लोग मुझसे प्रश्न करते हैं कि मैं यात्राएं करने हेतु मूल आवश्यक तत्व, धन कैसे अर्जित करती हूँ। उन के लिए मेरा उत्तर है कि यात्रा के लिए धन अवश्य आवश्यक है, किन्तु एक सफल यात्रा के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है, उत्तम स्वास्थ्य। अनेक वर्षों से मैं उत्तम स्वास्थ्य की आवश्यकता पर यह संस्करण लिखना चाहती थी। अंततः मुझे इसका अवसर उस समय प्राप्त हुआ जब मैं अपने कार्यक्षेत्र से एक स्वास्थ्य विराम पर थी। उत्तम स्वास्थ्य पर संस्करण लिखने के लिए इससे उपयुक्त समय अन्य नहीं हो सकता था, जब मैं स्वयं स्वास्थ्य लाभ ले रही थी।
आप सब यह जानते ही हैं कि एक सफल व सुखमय यात्रा के लिए उत्तम स्वास्थ्य अत्यावश्यक है। इसके लिए हमें किन किन नियमों का पालन करना चाहिए, यहाँ उस पर चर्चा करेंगे।
इसके अतिरिक्त, एक यात्रा आपके स्वास्थ्य के लिए वरदान सिद्ध होगी अथवा अभिशाप, इस पर भी चिंतन व मनन अत्यंत आवश्यक है। यात्राओं में किन किन तथ्यों पर लक्ष्य केन्द्रित करने की आवश्यकता है, किन किन सावधानियों का पालन करना चाहिए, इस पर भी चर्चा आवश्यक है। यात्राएं वरदान अथवा अभिशाप कैसे बन जाती हैं, आईये इस पर कुछ प्रकाश डालते हैं।
यात्राएं स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। यात्राएं हमारा तनाव कम करने में सहायक होती हैं। यात्राएं हमें अवसर प्रदान करती हैं कि हम प्रकृति के सानिध्य में आनंदमय क्षण व्यतीत कर सकें, अपने परिजनों, मित्र-बांधवों से भेंट कर सकें अथवा स्वयं को आध्यात्मिक, प्राकृतिक अथवा शांति के कुछ क्षण दे सकें। ये हमारी उर्जा को पुनर्जीवित कर देती है। यात्राएं हमारे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी तो होती ही हैं, साथ ही ज्ञानवर्धक होती हैं।
यात्रा स्वास्थ्य – जीवन के दो परस्पर निर्भर व आवश्यक तत्व
कहावत है कि किसी भी तत्व की अत्यधिकता हानिकारक हो सकती है। यात्राएं भी उनमें से एक है। चाहे कार्य निमित्त यात्राएं हो अथवा आनंद, पारिवारिक हों अथवा एकल, यात्राएं अपने स्वास्थ्य पर सकारात्मक के साथ नकारात्मक प्रभाव भी डालती हैं।
शरीर पर यात्राओं का प्रभाव
अधिकतर यात्राएं शारीरिक क्रियाकलाप होते हैं। आप एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी पार करते हैं, एक तापमान को लांघकर दूसरे तापमान पर पहुंचते हैं, एक मौसम से दूसरे मौसम पर जाते हैं तथा एक ऊँचाई से दूसरी ऊँचाई में छलांग लगाते हैं। इनके अतिरिक्त खाने का स्वाद परिवर्तित होता है, घाट घाट के पेयजल में अंतर होता है, कभी कभी देश के बाहर जाने पर समय क्षेत्र में भी परिवर्तन आता है। देश के बाहर ही क्यों? देश के भीतर भी, भारत के पश्चिमी तट से उत्तर–पूर्वी क्षेत्रों में जाएँ तो भले ही घड़ी में समय समान हो, किन्तु दोनों क्षेत्रों के भौगोलिक समयचक्र में अंतर होता है। इन सब के कारण शारीरिक समयचक्र तो प्रभावित होता ही है, मानसिक स्तर पर भी संतुलन बनाए रखना आवश्यक हो जाता है।
आप अपने दैनिक नियमों में कितना भी अनुशासित हों तथा यात्राओं में भी उनका पालन करने का भरसक प्रयास करते हों, किन्तु यात्राएं प्रत्येक चरण में आपके अनुशासित जीवनशैली को चुनौती देती प्रतीत होती हैं। एक सामान्य यात्री के रूप में आप कितना ही आनंदमय, सुखकर अथवा विलास पूर्ण यात्रा कर लें, यात्राएं आपको अनेक प्रकार से थका देती हैं। मैं कुछ उदहारण देना चाहती हूँ,
अनिद्रा अथवा निद्रा में बाधाएं
प्रातः ४ बजे की हवाई उड़ान भरनी हो तो मध्य रात्रि लगभग २ बजे घर से निकलना पड़ता है, विमानतल में भिन्न भिन्न लम्बी कतारों में खड़े होना पड़ता है तथा हवाई जहाज में अपनी कुर्सी के सीमित स्थान से सामंजस्य साधना पड़ता है। रात्रि की स्वास्थ्यवर्धक निद्रा की बलि तो चढ़ गयी, दूसरे दिन भी यात्रा कार्यक्रमों के चलते रात्रि से पूर्व निद्रा पाना संभव नहीं होता है।
आप अनेक ऐसे गंतव्यों का भ्रमण करते हैं जो सूर्योदय दर्शन के लिए लोकप्रिय होते हैं। कुछ समुद्र तटीय अथवा ऊँचे पर्वतीय गंतव्यों को छोड़कर अधिकांशतः ऐसे स्थानों पर आपका आश्रय सूर्योदय दर्शन स्थल से दूर होता है। अतः सूर्योदय के दर्शन के लिए आपको प्रातः अतिशीघ्र होटल से निकलना पड़ता है। उस रात्रि की निद्रा भी भंग हो जाती है। मुझे स्मरण है, हम इंडोनेशिया के जावा प्रान्त में स्थित बोरोबुदूर मंदिर के दर्शन हेतु कि प्रातः ३ बजे होटल से बाहर निकल गए थे, ताकि प्रातः ४ बजे मंदिर पहुँच सकें। सीढ़ियों तक तो हम लगभग अन्धकार में चलते हुए ही पहुंचे थे। जब हमने सीढ़ियाँ चढ़नी आरम्भ की, हमें सूर्य की प्रथम किरण के दर्शन हुए। बोरोबुदूर मंदिर से सूर्योदय दर्शन अद्वितीय है, इसमें शंका नहीं है, किन्तु यह आनंद निद्रा की आहुति चाहता है।
यात्रा नियम का अर्थ है, कोई नियम नहीं!
जब हम घर पर होते हैं, तब समय पर पौष्टिक भोजन करना हमारा प्राथमिक नियम होता है। यात्राएं आपके दैनिक दिनचर्या के लिए अत्यंत निष्ठुर हो सकती हैं। जब आप एक समय क्षेत्र से दूसरे समय क्षेत्र में जाते हैं, जैसे आप भारत से अमेरिका जाते हैं, तब कुछ दिवसों के लिए आपकी शारीरिक गतिविधियाँ भ्रमित हो जाती हैं।
अपने स्वयं के समय क्षेत्र में भी, यात्राओं के समय बहुधा समय पर भोजन करना संभव नहीं होता है। कभी आप दूर-सुदूर किसी स्थान का अवलोकन कर रहे हों जहां भोजन की सुविधाएं उपलब्ध ना हों अथवा प्रातः काल शीघ्र निकलकर कोई जंगल सफारी कर रहे हों, किसी अच्छे जलपान गृह तक पहुँचते पहुँचते आप भूख से व्याकुल हो सकते हैं। दूर-सुदूर स्थानों पर आप भोजन साथ ले जा सकते हैं, किन्तु जंगल सफारी में उसकी भी अनुमति नहीं होती है।
पैदल चलना – पर्यटन स्थलों की एक आवश्यकता
यात्राओं एवं दर्शनीय स्थलों के अवलोकन के लिए पैदल चलना अत्यंत आवश्यक होता है। आप चाहे कितनी ही विलास पूर्ण यात्रा कर लें अथवा कितने ही वैभव सम्पूर्ण अतिथिगृहों में आश्रय लें, विभिन्न पर्यटन गंतव्यों तक पहुँचने के लिए आपको कभी पैदल चलना पड़ेगा तो कभी चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी। मैं जब जयपुर एवं आसपास के स्थलों के भ्रमण पर थी, मैंने अत्यंत सुखमय यात्रा की थी। स्थानीय भ्रमण के लिए मेरे पास चालक सहित एक सुविधाजनक कार भी थी। हम भरी दुपहरी में भानगढ़ दुर्ग पहुंचे थे। उस दुर्ग का विहंगम दृश्य प्राप्त करने के लिए हमें तपती दुपहरी में दुर्ग की सम्पूर्ण लम्बाई चलकर पार करनी पड़ी, तीव्र ढलान पर चढ़ना पडा तथा ऊँची ऊँची सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ी। कार तक वापिस पहुंचते तक मैंने उष्ण वातावरण में लगभग ३ किलोमीटर की दूरी पैदल पार की थी।
नेपाल में लुम्बिनी के दर्शन के समय मैं प्रातःकाल वहां पहुँची थी। सुखमय वातावरण देख मैंने सायकल रिक्शा भाड़े पर नहीं ली। यह मेरी भारी भूल सिद्ध हुई। लुम्बिनी बाग में प्रवेश करना आसान था किन्तु समूचे स्थल का अवलोकन करते हुए सम्पूर्ण दिवस व्यतीत हो गया था। होटल वापिस पहुंचते तक मैंने लगभग १९ किलोमीटर पैदल यात्रा कर ली थी। मेरे पैरों ने मेरा साथ लगभग छोड़ ही दिया था।
जॉर्डन में पेट्रा भ्रमण के समय प्राचीन गुलाबी नगरी के सपूर्ण अवलोकन के लिए मुझे १५ किलोमीटर चलना पड़ा था। वह भी तब, जब मैंने मठ तक की चढ़ाई खच्चर पर की थी। जी हां, कुछ स्थानों पर मैं ऊंट अथवा ऊंट गाड़ी की सवारी कर सकती थी किन्तु उससे इस अप्रतिम प्राचीन नगरी की सूक्ष्मताओं को पास से निहारने का अद्वितीय अवसर छूट जाता। बदूईन के मधुर संगीत का श्रवण संभव ना हो पाता।
लोकप्रिय पर्यटन गंतव्य प्रमुख नगरों से सुविधाजनक परिवहन साधनों के द्वारा जुड़े होते हैं। ऐसे पर्यटन स्थलों पर उत्तम पर्यटन संसाधन भी उपलब्ध होते हैं। किन्तु ऐसे स्थानों पर दूसरे प्रकार के उत्पीड़न होते हैं। जैसे, यदि आप ताजमहल का अवलोकन करना चाहते हैं तथा आप अतिविशिष्ट अतिथि हैं तो आपको किसी भी प्रकार के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ेगा। अन्यथा, आपको लम्बी पंक्ति में खड़ा होना पड़ सकता है, भीड़ से जूझना पड़ सकता है तथा दूर तक पैदल चलना पड़ सकता है।
द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर तक पहुँचने के लिए भी अनेक सुविधाजनक पर्याय उपलब्ध हैं। फिर भी आपको कुछ दूर पैदल चलना पड़ता है तथा चढ़ना-उतरना पड़ता है। अतः अपने स्वास्थ्य के अनुसार गंतव्य का चयन करें तथा यात्रा पर निकलने से पूर्व अपनी सहनशीलता को उसके अनुकूल बनाने के लिए अभ्यास करें।
धैर्य व सहनशक्ति
मैं यहाँ रोमांचक क्रीड़ाओं एवं क्रियाकलापों में आवश्यक धैर्य एवं सहनशक्ति की ओर संकेत नहीं कर रही हूँ। नवम्बर मास में जब मैंने ब्रिटिश कोलंबिया का भ्रमण किया था, उस समय ३० घंटों की समयावधि में मैं उष्ण प्रकृति के गोवा से हिमाच्छादित व्हिस्टलर पहुँच गयी थी। दूसरे ही दिवस मैं व्हिस्टलर में जिपलाइनिंग नामक क्रीड़ा कर रही थी जिसमें मुझे हिमाच्छादित पर्वतों के मध्य तथा शीत ऋतु में जमी हुई नदियों के ऊपर बंधे तार पर लटक कर नदी पार करनी थी। एक ओर मेरा शरीर इस तीव्र शीत वातावरण से अभ्यस्त हो ही रहा था, मैं हिमनदी के ऊपर तार से लटक रही थी।
किशोरावस्था एवं युवावस्था में हमारा शरीर उर्जावान एवं शक्ति से परिपूर्ण होता है। उसमें सहनशक्ति भी अधिक होती है। मैंने भी अपनी युवावस्था में अनेक रोमांचक यात्राएं की हैं। पर्याप्त निद्रा के बिना कई दिवसों तक भ्रमण किया है। किन्तु आयु के ४० वर्ष बीतने के पश्चात मैंने अपनी गति धीमी कर दी है। आयु के अनुसार मनःस्थिति एवं गंतव्यों के चयन में भी परिवर्तन आ जाता है। अब मुझे सुविधाजनक व सुखद विश्राम भाता है। किसी भी पर्यटन स्थल को पर्याप्त समय लेकर, सूक्ष्मता से व आत्मीयता की भावना से अवलोकन करना भाता है।
धीमी गति से पर्याप्त समय लेकर यात्रा करना सदैव सर्वोत्तम है। किन्तु सभी व्यवसाय के रूप में यात्राएं नहीं करते हैं। उनके पास पर्यटन स्थलों का सूक्ष्मता से अवलोकन करने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं होता है। वे सिमित समयावधि में अनेक स्थलों का भ्रमण करते हैं। इसका उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अतः अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के अनुसार भ्रमण की गति एवं क्रियाकलाप निश्चित करें। आप अधिक आनंद पायेंगे।
भोजन – क्या खाएं, क्या ना खाएं?
‘मुझे भिन्न भिन्न प्रकार का भोजन अत्यंत प्रिय है’, ऐसा कहना वर्तमान काल में आधुनिकता का प्रतीक माना जाता है। लोग अत्यंत गर्व से कहते हैं कि वे केवल खाने के लिए यात्राएं कर सकते हैं। इसके विपरीत, यात्राओं के समय मैं सादे भोजन को प्राथमिकता देती हूँ। इससे मेरा शरीर चपल रहता है तथा अपच इत्यादि की आशंका कम रहती है।
आप भिन्न भिन्न प्रकार का भोजन खाना चाहें अथवा सादा भोजन, नवीन स्थल, नवीन जल तथा नवीन प्रकार की भोजन शैली के लिए हमारी पाचन शक्ति को अभ्यस्त होने में समय लगता है। हमारी ड्रेस्डेन यात्रा के समय हमारे गुट में केवल मैं ही एकमात्र शाकाहारी थी। शाकाहारी होने के कारण मेरे भोजन को पनीर, चीस इत्यादि से सज्ज किया जा रहा था। अकस्मात् इतनी अधिक मात्रा में पनीर व चीज खाने के पश्चात मेरी पाचन प्रणाली ने हाथ खड़े कर दिए। मुझे विशेषतः पनीर व चीज इत्यादि से रहित भोजन के लिए आग्रह करना पड़ा था। भोजन अत्यंत स्वादिष्ट था, इसमें शंका कदापि नहीं है, किन्तु मेरी पाचन प्रणाली नियमित रूप से इतनी मात्रा में चीज पचाने के लिए अभ्यस्त नहीं थी। मैं यह नहीं कहना चाहती हूँ कि आप भिन्न भिन्न भोजन ना चखें। अवश्य चखें। आपकी पाचन प्रणाली भिन्न भिन्न भोजन पचाने के लिए सक्षम होती है किन्तु प्रत्येक की पाचन सीमा भिन्न होती है। अपनी पाचन प्रणाली के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रयोग करें।
यदि आपकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य ही उस क्षेत्र के खान-पान, वहाँ के व्यंजन व पाककला को जानना व उनका का आनंद उठाना है तो अपनी पाचन प्रणाली के स्वास्थ्य के प्रति सजग रह कर उन व्यंजनों का आस्वाद अवश्य लीजिये.
यात्रा – एक मानसिक क्रियाकलाप
यात्रा केवल शारीरिक कार्यकलाप नहीं है। यात्राएं शारीरिक श्रम कम, मानसिक परिश्रम अधिक है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह परिश्रम अपनी यात्रा को सीमित समयावधि में नियोजित करने से आरम्भ होता है। सम्पूर्ण योजना को निर्धारित समय एवं निधि के भीतर सिमित करते हुए पूर्व-नियोजन करना पड़ता है। यात्रा व भ्रमण के समय विभिन्न स्थलों का अवलोकन करना, उनकी सूक्षमताओं को ढूंढना, देखना, समझना, नवीन वातावरण में स्वयं को ढालने का प्रयास करना, उनका आनंद उठाना इत्यादि कार्यकलापों में भी मानसिक परिश्रम होता है। यहाँ तक कि दिवस भर के भ्रमण के पश्चात एक नवीन स्थान में रात्रि का विश्राम करना, यह सब आनंद के साथ साथ मानसिक थकान भी उत्पन्न करता है। कभी कभी भाषा की अनभिज्ञता, नवीन स्थल की अनकही असुरक्षितता व अनिश्चितता भी मन को थका सकती है। अतः, यात्रा से पूर्व शरीर के साथ साथ मन की भी पूर्व तैयारी आवश्यक है। इसके लिए अपने गंतव्य के सभी आयामों का सूक्ष्मता से अध्ययन करें. तत्पश्चात आवश्यकतानुसार पूर्व तैयारी कर यात्रा पर निकलें.
संस्करण के अंत में यह कह सकती हूँ कि यात्रा करने के लिए न्यूनतम आवश्यकता है, उत्तम शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य। यदि आपको मेरी यात्रा शैली के अनुसार यात्रा करना भाता है तो उत्तम स्वास्थ्य पाने के लिए यात्राओं को प्रेरणा स्त्रोत मानें। स्वयं को शारीरिक व मानसिक रूप से उर्जावान व स्वस्थ बनाएं ताकि आप यात्राओं में आती भिन्न भिन्न परिस्थितियों का सामना कर सकें तथा आनंद प्राप्त कर सकें।
स्वस्थ रहें! भरपूर यात्राएं करें!
अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे