उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में बसा नैनीताल, यात्रियों का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। हिमालय पर चमचमाते माणिक की तरह चमकता यह शहर देशी व विदेशी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। हरे भरे पहाड़ों एवं झीलों से आच्छादित नैनीताल, प्राकृतिक सुन्दरता का उत्कृष्ट नमूना है। पर क्या आप जानते हैं, नैनीताल स्थित नैनी झील कुमाऊँ घाटी की केवल एक ताल या झील है। हल्द्वानी अथवा काठगोदाम के मैदानी क्षेत्रों से कुमाऊँ की ओर जाते मार्ग पर जब पहाड़ियों की शुरुआत होती है, एक के बाद एक दिखाई देती छोटी बड़ी झीलें मन्त्रमुग्ध कर देती हैं। भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल जैसे झीलों के पास बिताया समय हमें प्रकृति से एकाकार कर देता है।
इन झीलों के सानिध्य में बिताये कुछ दिनों में हमने हर सुबह झीलों के किनारे रमणीय वातावरण में भरपूर भ्रमण किया। सांझ होते ही हम अन्य पर्यटकों को झीलों में नौका सवारी का आनंद उठाते, बतखों से खेलते व अन्य पानी के खेल खेलते देख, घंटों बिता देते। हमने एक एक झील का भरपूर आनंद उठाया और प्रत्येक झील ने हमें एक नया अनुभव दिया। हर झील ने एक नयी कहानी सुनाई।
यही अनुभव व कहानियां मैं आपके साथ बांटना चाहती हूँ। आईये मेरे अनुभव एवं दृष्टि से होते हुवे इन झीलों से आपका परिचय कराती हूँ।
भीमताल
इस ताल का नाम ही एक कथा कहता है। महाभारत के पांडव पुत्रों में दूसरे पुत्र भीम के नाम पर इस झील का नामकरण किया गया है। ऐसी मान्यता है की पांडव अपने वनवास काल में यहाँ आये थे।
भीमेश्वर महादेव मंदिर
भीमताल पर स्थित भीमेश्वर महादेव मंदिर अर्थात् भीम के इष्ट देव को समर्पित मंदिर, एक छोटा और प्राचीन मंदिर है। मंदिर के उज्जवल रंगों को देख इसके प्राचीन होने पर सहसा विश्वास नहीं होता। परन्तु मंदिर परिसर में स्थित बरगद के वृक्ष पर एक दृष्टी आपकी सारी शंकाएं दूर कर देंगी।
भीमेश्वर महादेव मंदिर के भीतर व आसपास मैंने पत्थर में बनी अनोखी शिल्पकलाएं देखीं। प्राचीन मंदिर के चित्र को देख अनुमान लगाया जा सकता है कि मूलतः इस मंदिर की संरचना जागेश्वर के मंदिरों की तरह पाषाणी थी। भीमताल पर लगे सूचना पट्टिका के अनुसार वर्तमान मंदिर १७ वीं. शताब्दी में चाँद वंशी राजा बाज बहादुर ने बनवाया था।
इस मंदिर के समीप स्थित पहाड़ी को हिडिम्बा पहाड़ी कहा जाता है। भीम ने अपने वनवास के समय राक्षस कन्या हिडिम्बा से विवाह किया था। उससे उन्हें घटोत्कच नामक पुत्र की भी प्राप्ति हुई थी।
भीमताल झील के आसपास भ्रमण
भीमताल से सम्बंधित मेरे सबसे अविस्मरणीय क्षण थे सूर्योदय के समय भीमताल की परिक्रमा! हालांकि कुमाऊँ विकास मंडल निगम के आवास गृह में हमारे कक्ष से भीमताल का सुन्दर दृश्य दिखाई दे रहा था। तथापि सूर्योदय के समय भीमताल का पग भ्रमण एक अलौकिक अनुभव था। उस समय वहां होते थे, केवल हम, कुछ पक्षी और आलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य। यहाँ तक कि मंदिर में भी अभी जागरण व पूजा अर्चना आरम्भ नहीं हुई होती थी।
भीमताल, कुमाऊँ की सर्वाधिक प्रसिद्ध, नैनीताल अथवा नैनी झील से भी अधिक प्राचीन है।
भीमताल भ्रमण के आरम्भ में हमें पीपों से बनी पुल सदृश संरचना पानी में तैरती दिखाई दी। उस पर तार की जालियां लटकी हुई थीं। मैं अनुमान लगा ही रही थी कि मेरे अनुमान की पुष्टि हुई एक सूचना फलक द्वारा, जिस पर लिखा था- मीठा-जल मछली अनुसन्धान विभाग द्वारा प्रायोगिक पिंजरा मछली पालन उद्योग। उस दिन मुझे पिंजरा मछली पालन उद्योग की तकनीक की जानकारी मिली।
भीमताल कुमाऊँ की सर्वाधिक बड़ी झील है।
झील के चारों ओर भ्रमण हेतु पक्की पगडण्डी बनायी गयी थी जिस पर हम चलने लगे। यह मार्ग झील से अपेक्षाकृत बहुत ऊंचा था। चलते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम किसी ऊंचे टीले पर चल रहे हों। थोड़े थोड़े अंतराल पर झील के ऊपर छोटे छोटे मंच बने हुए थे जिन पर चढ़ कर हम झील का विहंगम दृश्य देख सकते थे। हमारी बायीं ओर ऊंची सपाट चट्टान थी जिसकी परछाई झील के जल के साथ आखेट कर रही थी। झील का जल आईने की तरह स्वच्छ था। उस पर पड़ती परछाई हमें असली और परछाई में भेद करने की चुनौती दे रही थी।
पक्षी
भीमताल के पगभ्रमण के समय नीले, पीले व लाल रंगों के अनेक पक्षी हमारे चारों तरफ फुदक रहे थे। इन चंचल पक्षियों की स्वच्छंदता देख हम अपने आप को रोक ना सके व रूक कर इनके चित्र खींचने में व्यस्त हो गए।
भीमताल के बीचोंबीच एक उपद्वीप है जिस पर पहले एक जलपान गृह हुआ करता था। कुछ असुविधाओं के कारण इस जलपानगृह को बंद कर दिया गया है। अब उस पर नैनीताल झील विकास प्राधिकरण ने एक मछलीघर की स्थापना की है। आप उस उपद्वीप तक नौकासवारी का आनंद उठाते पहुँच सकते हैं व मछलीघर में मक्सिको, दक्षिण आफ्रिका, चीन इत्यादि देशों से लायी गयी रंगबिरंगी मछलियों को आकर्षक पृष्ठभूमि में देख सकते हैं।
भीमेश्वर महादेव मंदिर के एक तरफ हमने एक नहर देखी जो भीमताल के जल को गोला नदी से जोड़ती है। इसका जल सिंचाई व शहरी जल आपूर्ति हेतु उपयोग में लाया जाता है।
झील के दूसरी ओर एक नौका केंद्र है। सूर्योदय के समय वहां अनेक रंगबिरंगी नौकाएं एवं डोंगियाँ कतार में खड़ी रहती हैं। संध्या आते ही पर्यटक झील में नौकाविहार का आनंद उठाते हैं। साथ ही झील किनारे चाट, पकौड़ी, भुट्टे, चाय, इत्यादि का आस्वाद लेकर चटकारे लेते नहीं थकते।
कैंचुलीदेवी मंदिर
भीमताल पदभ्रमण के अंतिम चरण में हमें कैंचुलीदेवी को समर्पित मंदिर के दर्शन हुए। स्कन्द पुराण के मानसखंड के अनुसार इस मंदिर के समीप भीमताल का जल अत्यंत पवित्र है। ऐसा माना जाता है की इस पवित्र जल में स्नान करने से शरीर के सर्व रोगों का अंत होता है। झील के इस भाग में फलतः मछली पकड़ने की मनाही है। कैंचुली देवी का मूल मंदिर जल में समाधिस्त है। उसका केवल शीष ध्वज ही जलस्तर के ऊपर दृष्ट है। सड़क के समीप स्थित कैंचुली देवी मंदिर अपेक्षाकृत नवीन संरचना है।
नौकुचिया ताल
जैसा की इसका नाम है, नौकुचिया ताल नौ कोनों का एक छोटा ताल है। भीमताल से ४ की.मी. दूर इस ताल के पगभ्रमण हेतु हम एक संध्या यहाँ पहुंचे। सूर्यास्त के पहले के सांध्य प्रकाश में हमने इस ताल का एक चक्कर लगाया।
इस झील का पर्यटन वातावरण किंचित शांत होते हुए केवल दोनों तरफ कुछ साधारण व्यापारिक गतिविधियाँ दृष्टिगोचर हुईं। मेरी अभिलाषा थी इस ताल का सम्पूर्ण चक्कर लगाकर इसके नौ कोनों की गणना करना। परन्तु एक स्थान पर मार्ग बंद होने के कारण यह संभव नहीं हो सका। तथापि हमारे आनंद में कोई कटौती नहीं आई। हमारे भ्रमण के समय हमने इस ताल की सुन्दरता के कई आयाम देखे। अनियमित आकार होने के कारण थोड़ी थोड़ी दूरी पर इसका रूप परिवर्तित हो रहा था। कहीं पहाड़ी, कहीं पहाड़ी के पीछे से झांकता झील का जल, कभी पहाड़ी के पीछे से निकलती सूर्य की किरणें तो कभी रंगबिरंगी नौकाओं से सज्ज झील की अग्रभूमी। कहीं कहीं तिकोनी पहाड़ियां झील के शांत जल में ज्यामितीय आकार में प्रतिबिंबित होकर आकर्षक चित्र बना रही थीं।
नौकुचिया ताल का कमल तालाब
नौकुचिया ताल के समीप एक छोटा तालाब था को कमल के पौधों से भरा पड़ा था। जैसा कि हम जानते है, कमल के पुष्प दिन के समय खिलते हैं एवं संध्या समय तक इसकी सारी पंखुड़ियां झड़ जाती हैं। चूंकि हम यहाँ संध्या भ्रमण पर थे, हम इन पुष्पों की सुन्दरता का आनंद नहीं ले सके। श्वेत एवं गुलाबी कमल पुष्पों से भरे इस तालाब का काल्पनिक दृश्य अपने मानसपटल पर अंकित किया और आनंदित हो उठी। मेरे काल्पनिक चित्र में रंगबिरंगे वास्तविक रामचिरैया अर्थात् किंगफिशर पक्षी चार चाँद लगा रहे थे। तालाब की सुन्दरता एवं रखरखाव हेतु प्रशासन की चेतावनी “फूल तोड़ना मना है” के फलक से स्पष्ट व्यक्त हो रही थी।
चूंकि हम सांझ बेला में नौकुचिया ताल पर उपस्थित थे, हमें कई पर्यटक नौकाविहार करते दिखाई दिए। कुछ पर्यटक अश्वारोहण तो कुछ गरमागरम नुडल्स का आनंद उठाते दिखाई दिए। कुछ पर्यटक ज़ोर्बिंग नामक अनोखे खेल में व्यस्त थे जिसमें एक विशाल पारदर्शक गोले के भीतर एक सहभागी को बिठाकर गोले को ढलान पर लुड़काया जाता है। तथापि, अँधेरा होते ही परिचालकों को गोले से वायु निकालकर सावधानी से उसकी घड़ी करते देखने में मुझे अधिक आनंद आ रहा था।
किवदंतियों के अनुसार नौकुचिया ताल को भगवान् ब्रम्हा से जोड़ा जाता है। यहाँ तक की नौकुचिया ताल पर ब्रम्हा का एक मंदिर भी स्थित है।
नौकुचिया ताल को घेरते मार्ग अधिकांशतः मोटरगाड़ियों के यातायात से मुक्त हैं। अतः आप यहाँ बिना किसी चिंता या डर के घने वृक्षों की छाँव में ताल के चारों ओर भ्रमण कर सकते हैं।
नौकुचिया ताल के भक्तिधाम की हनुमान प्रतिमा
नौकुचिया ताल के समीप स्थापित हनुमान की विशाल प्रतिमा दूर से ही दृष्टिगोचर हो जाती है। समीप पहुँच कर हमने देखा कि यह प्रतिमा वास्तविकता में भक्तिधाम मंदिर परिसर का एक हिस्सा था। इस परिसर में दुर्गा, नीम करोली बाबा व अन्य कई देवी देवताओं को समर्पित कई छोटे छोटे मंदिर थे।
सातताल
सातताल ७ तालों का एक समूह है। ये हैं-
1. नल दमयंती ताल
2. गरुड़ ताल
3. राम ताल
4. लक्ष्मण ताल
5. सीता ताल
6. भरत ताल
7. हनुमान ताल
जैसा की उपरोक्त कुछ नामों से विदित है, लोगों की मान्यता है कि राम, लक्ष्मण एवं सीता ने अपने वनवास के समय इन तालों के समीप कुछ काल बिताया था।
सातताल की विशेषता है कि आपस में जुड़ी ये सर्व तालें मीठे जल की हैं। इन तालों के नाम एक साथ लिए जाते हैं मानो इन का एक ही स्त्रोत हो। बलूत एवं देवदार जैसे ऊंचे वृक्षों से घिरे इन तालों को देख अछूते व निर्मल प्रकृति का आभास होता है। इस ताल के आसपास नानाप्रकार के पुष्प व लताएँ लगाई हैं। बैठने हेतु सुन्दर व्यवस्था एवं सुन्दर पुलों के निर्माण द्वारा सातताल, स्वर्ग सुदृश, सौंदर्य की दृष्टी से सर्वोपरि है।
नल दमयंती ताल
भीमताल से करीब २ की.मी. दूर स्थित नल दमयंती ताल एक पवित्र ताल है। पंचकोणी आकार के इस ताल से सम्बंधित पौराणिक कथा कहती है कि राजा नल व उनकी पत्नी ने अपने वनवास का समय इस ताल के समीप बिताया था। यहीं राजा नल अपनी पत्नी को छोड़ कर चले गए थे। कालान्तर में इस ताल में ही उनकी समाधि बनायी गयी। इसी प्राचीन मान्यता के तहत अभी भी इस ताल में मछली पकड़ने की मनाही है। इसीलिए इस ताल में हमें तरह तरह की बड़ी बड़ी मछलियाँ दिखाई पड़ीं।
इस झील तक पहुँचने हेतु पहाड़ी से नीचे उतरने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए पक्की ढलान बनायी गयी है। इस छोटे ताल के चारों तरफ सीड़ियाँ बनायी हुई हैं। यहाँ मछली पकड़ने के अलावा स्नान, धुलाई इत्यादि व कचरा डालना भी मना है।
इस ताल के चारों ओर पैदल भ्रमण करते हुए मैं नल दमयंती की कल्पना में खो गयी। चिरकाल से ताल में तैरती बड़ी बड़ी मछलियों को देख लगा कि उन्होंने अपने पूर्वजों से उनकी कथा अवश्य सुनी होगी। काश, ये मछलियाँ बोल पाती!
सातताल के अन्य ताल
हम राम ताल और हनुमान ताल के पास पहुंचे – जो की सबसे आसानी से पहुँचने वाले ताल हैं। इन दोनों तालों के गिर्द एक पैदल पथ है जिस पर चलना एक आनंददायी अनुभव है।
भ्रमण के समय ताल के किनारे पर्यटकों व दुकानदारों की अच्छी चहल पहल थी। नींबू पानी से लेकर भोजन तक की व्यवस्था थी। यहाँ आपको उत्तर भारतीय भोजन का आस्वाद लेने का अवसर मिलेगा। यहाँ उपलब्ध ठंडी खीर आप अवश्य चखिए। यह एक अतिस्वादिष्ट व पहाड़ों की छुट्टियों का आनंद लेने हेतु सर्वोत्तम मिष्टान्न है।
भ्रमण के समय हमने देखा, कुछ परिचालक पर्यटकों को एक और अनोखे खेल का आनंद दे रहे थे, जहां वे पर्यटकों को रस्सी से लटका कर तेज गति से ताल की ओर नीचे धकेलते थे। पर्यटकों को उल्ल्हास से चीखते चिल्लाते, ताल के जल में डुबकी लगते हुए, ताल के पार पहुंचते देख मुझे बेहद आनंद आ रहा था।
गरुड़ ताल
नल दमयंती ताल के पश्चात छोटा गरुड़ ताल पड़ता है। गरुड़ ताल हमें सड़क से ही दिखाई पड़ रहा था। कुमाऊँ की घाटियों के बीच, ऊंचे ऊंचे वृक्षों से घिरा, यह नीले हरे रंग का ताल बहुत सुन्दर दिखाई पड़ रहा था। लोगों का मानना है कि वनवास के समय, भोजन बनाने हेतु द्रौपदी द्वारा इस्तेमाल किया गया सिलबट्टा अभी भी यही पत्थरों में कहीं उपस्थित है। गरुड़ ताल के पश्चात, आपस में जुड़ीं राम, सीता एवं लक्ष्मण ताल पड़ते हैं। इन तालों तक सड़क मार्ग उपलब्ध ना होने के कारण, इन तक नौकाओं द्वारा ही पहुंचा जा सकता है|
इन सारे तालों के चारों ओर भ्रमण का मेरा अनुभव मेरे लिए उपचारात्मक एवं बहुत शान्तिदायक था। हमारे पूर्वजों ने जिस तरह प्रकृति के सानिध्य में जीवन बिताया, मैंने भी उस जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव इन झीलों के भ्रमण द्वारा प्राप्त किया। मुझे आभास हुआ कि क्यों ऋषि मुनि इन पहाड़ों व झीलों के सानिध्य में ध्यान करते थे। एक ओर हरियाली भरे मैदान तो दूसरी ओर शांत हिमालय! यह स्वर्ग नहीं तो और क्या है!
कुमाऊँ के तालों के भ्रमण हेतु सुझाव
• भीमताल, नौकुचिया ताल एवं सातताल के समीप ठहरने हेतु अनेक आवासगृह उपलब्ध है। अवस्थिति की दृष्टी से कुमाऊँ विकास मंडल निगम के आवासगृह सर्वोत्तम हैं। परन्तु उनके रखरखाव एवं सुविघाओं के सम्बन्ध में मैं कोई टिपण्णी नहीं करना चाहती। आशा करती हूँ कि भविष्य में कुमाऊँ पर्यटन इसके रखरखाव एवं सुविधाओं की बढ़ोतरी हेतु आवश्यक कदम उठाएगा।
• इसके अलावा यहाँ हर क्षेणी के अशासकीय आवासगृह भी उपलब्ध हैं।
• भोजनालय की सीमित व्यवस्था होते हुए भी, ताजा स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध है।
• प्रसिद्ध पर्यटन स्थल होने के कारण, यहाँ अनेक प्रकार की पर्यटन गतिविधियाँ एवं सुविधाएं उपलब्ध हैं।
• निकटतम रेल स्थानक ३५ की.मी. की दूरी पर स्थित, काठगोदाम है जहां दिल्ली से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
• दिल्ली से कुमाऊँ तक के सड़क मार्ग की स्थिति भी बहुत अच्छी है।
और पढ़ें- भारत की १२ सर्वोत्तम झीलें
उत्तराखंड के विभिन्न स्थलों के भ्रमण हेतु निम्नलिखित संस्मरण पढ़ें-
- मुक्तेश्वर- अवाक् दृश्यों से परिपूर्ण एक कुमाऊँ घाटी
- उत्तराखंड के लान्डोर एवं मसूरी के आसपास का पगभ्रमण
- जागेश्वर धाम – कुमाऊँ में शिव का धाम
बढ़िया संकलन
धन्यवाद.
अनुराधा जी इस लेख को पढ कर आज से चालीस साल पहले का समय याद आ गया जब हम अपने विशवविद्यालय द्वारा आयोजित एक कैंप में भीमताल गये थे। निःसंदेह वो जगह देखने वाली है।आपने बहुत सुंदर ढंग से उस जगह का परिचय दिया है……
शालिनी जी, अनाकनेक धन्यवाद. हिमालय में कहीं भी चले जाईये – हर छटा देखने लायक होती है – लिखने की प्रेरणा अपने आप मिल जाती है.