यह ब्लॉग एक लम्बा सफ़र तय कर चुका है। इस लंबे सफर के साथ कई अच्छे बुरे किस्से जुड़े हैं। बहुत सी यात्रा कथा ऐसी है जो आपके होने का अर्थ सार्थक कर देते हैं. आज आपसे साझा करने के लिए मेरे पास इससे बेहतर और अच्छी कहानी शायद कोई और नहीं हो सकती। मैंने कभी नहीं सोचा था कि नियति मुझे इस ब्लॉग के जरिये एक दिन किसी की ज़िंदगी सुधारने का प्रमुख स्त्रोत बना देगी।
बिहार की यात्रा और उत्प्रेरक बनने का सौभाग्य
फ़रवरी २०११ में मैंने बिहार की कुछ प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण जगहों की यात्रा की थी, जिससे संबंधित विवरण मैंने अपने इस ब्लॉग पर लिखे थे। इन यात्रा वृत्तान्तों में से एक लेख बिहार की बराबर पहाड़ियों में स्थित प्राचीन गुफाओं पर भी लिखा गया था। उस पहाड़ी पर कुछ उत्साहित से बच्चे थे जो हमसे अपनी तस्वीरें खिचवाने चाहते थे और उनकी मासूमियत ने हमे उनकी इस इच्छापूर्ति के लिए बाध्य किया। अपने कैमरे में उनके प्रफुल्लित चेहरों को एक अच्छी याद के रूप में संजोने के विचार से हम बहुत प्रसन्न थे।
आम तौर पर जब भी मैं किसी अजनबी व्यक्ति की तस्वीरें सोशियल मीडिया पर साझा करती हूँ तो थोड़े सोच-विचार के बाद ही अपना निर्णय लेती हूँ। लेकिन इस बार मैंने पहाड़ी पर खींची उन तीनों मुस्कुराते हुए लड़कों की तस्वीर अपने ब्लॉग पोस्ट पर डाल दी। और अब जाकर मुझे पता चला कि मेरे इस कार्य में नियति कहीं पर अपने ताने-बाने बुन रही थी।
उत्प्रेरक बनने का सौभाग्य
इस लेख के छपने के कुछ माह बाद कोलकाता में रहनेवाली किसी ऑस्ट्रलिया की महिला ने मुझे एक लंबा सा ईमेल भेजा। जिसमें उन्होंने लिखा था कि, जिस होटल में वह रह रही है वहां उनके कमरे की खिड़की के ठीक नीचे एक चाय की दुकान है, जहां पर एक छोटा सा लड़का काम करता है। उन्हें लगा कि शायद वह उस चाय वाले का लड़का होगा और उन्होंने उस लड़के को कुछ नए कपड़े और एक मोबाइल फोन देकर उसकी मदद करने की कोशिश की। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि वह उस चाय वाले का लड़का है ही नहीं, बल्कि वह तो बिहार का है।
उत्सुकतापूर्वक उन्होंने गूगल से बिहार संबंधित कुछ जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, जिसके द्वारा वह हमारे ब्लॉग तक पहुंची। इस ब्लॉग पर उस लड़के की तस्वीर देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ और उन्होंने तुरंत उस लड़के से इस संबंध में बात की जिसके उत्तर में उस लड़के ने अपनी स्वीकृति दी। यहाँ से शुरू हुई यह यात्रा कथा।
उसके बाद उस महिला ने बिना समय गवाए मुझे एक ईमेल भेजा, जिसमें उन्होंने उस लड़के के बारे में और जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की थी। वह उस लड़के को वापस उसके परिवार के पास पहुंचाना चाहती थी। उन्होंने मुझसे जानना चाहा कि मैंने वह तस्वीर कब और कहां पर खींची थी। उनकी इस कोशिश को देखकर मैंने सहज रूप से अपने पास उस लड़के से संबंधित जितनी भी जानकारी थी वह उनके साथ साझा की। इस तस्वीर में नीले रंग के कपड़े पहने हुए जो लड़का है वही वह लड़का है।
मुझे कोई अंदाज़ा नहीं कि, उस लड़के को कोलकाता उसके परिवार ने ही भेजा था या फिर वह खुद कोलकाता से भाग गया था। मुझे तो यह भी नहीं पता कि उसके परिवार वाले उसे फिर से अपनाएँगे भी या नहीं, या शायद उसके परिवार वाले ही चाहते थे कि, वह अपना पालन-पोषण स्वयं करे और उनपर बोझ ना बने। मैं तो यह भी नहीं जानती कि इस सबसे मुझे कोई मतलब है भी या नहीं। लेकिन मुझे इस बात की खुशी जरूर है कि, कहीं ना कहीं मेरा काम किसी के जीवन के छूटे हुए तार फिर से जोड़ने का माध्यम तो बन सका। इस घटना से मुझे एक बात का एहसास तो हो गया कि, यह दुनिया वास्तव में बहुत छोटी है और कभी-कभी वह अनजाने में ही आपको इसे एक बेहतरीन जगह बनाने का सौभाग्य प्रदान करती है।
अगर इस सबसे उस लड़के का अपने परिवार से पुनर्मिलन हो जाए और अगर दोनों तरफ से यही इच्छा है…तो शायद यह ब्लॉग अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में जरूर सफल रहा होगा।
कैसी लगो आपको हमारी यह यात्रा कथा, हमें अवश्य बताइयेगा।
very interesting travel diary thanks for sharing with us
धन्यवाद पुष्पेन्द्र जी
nice
धन्यवाद
बिहार के इस लड़के की कहानी जैसी ऐसी बहुत सारी घटनाएँ हमारे जीवन में घटतीं हैं जिनके परिणाम हमें बाद में पता चलते हैं …अनजाने लोगों के बीच दोस्ती होना हो या कभी कभी अनजाने में या ऐसे ही चलते फिरते बिना किसी ख़ास यत्न या योजना के कुछ कर देने के खूबसूरत नतीजे सामने आते हैं, तो मान लेना चाहिए कि ये अच्छा काम करने के लिए कुदरत ने हमें चुना …और ऐसा अक्सर होता है . हम इसे इत्तेफ़ाक भी कहते हैं लेकिन मेरा मानना है कि कुदरत अपनी योजना के हिसाब से हमसे ये सब करवाती है …
आपका ये यात्रा वृत्तांत अच्छा लगा
संजय, बहुत सही कहा आपने…हम किसी बड़े विधान का एक छोटा सा हिस्सा हैं. आज भी मैं जब यह वृतांत पढ़ती हूँ तो सिहर उठती हूँ. कहीं न कहीं ये हमें बताता है की हम कितने जुड़े हैं एक दुसरे से.