द्वारका गुजरात के आसपास बिखरे प्राचीन तीर्थ स्थान

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स्कन्द पुराण के अनुसार द्वारका नगरी को ऐतिहासिक रूप से प्रभास क्षेत्र का ही एक भाग माना जाता है। प्रभास एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, दीप्तिवान, ज्योतिर्मय, प्रकाशवान, अर्थात जो प्रकाश उत्पन्न करे। पूर्व दिशा में सोमनाथ तक फैले इस क्षेत्र में कई छोटे बड़े प्राचीन तीर्थ स्थल हैं जिन्हें आप द्वारका दर्शन के समय आसानी से देख सकते हैं। आईये द्वारका के आसपास के इन तीर्थ स्थलों के विषय में जानने का प्रयत्न करें-

बेट द्वारका

द्वारका व आसपास के तीर्थ स्थानों में सर्वाधिक प्रसिद्ध स्थल है, बेट द्वारका। बेट अर्थात् गुजराती भाषा में द्वीप। ओखा के समुद्रतट स्थित बेट द्वारका एक द्वीप है जो मुख्य द्वारका से लगभग ३५ की.मी. की दूरी पर स्थित है। मुख्य द्वारका तट से इस द्वीप तक पहुँचने हेतु आपको एक नौका यात्रा करनी पड़ेगी। मैं आपको बताना चाहूंगी कि यह नौका यात्रा भी कम आनंददायी नहीं है।

अनेक अनोखे मंदिरों से सुशोभित बेट द्वारका से कृष्ण-सुदामा भेंट तथा मीराबाई की स्मृतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। बेट द्वारका के विषय में मैंने अपने एक अन्य संस्मरण में विस्तार पूर्वक लिखा है। इनके विषय में मेरा संस्मरण पढ़ने के लिए बेट द्वारका, इसे पढ़ें।

मूल द्वारका

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब अपने यदुवंशी परिवारजनों समेत द्वारका आये थे तब उन्होंने प्रथम पड़ाव मूल द्वारका में ही डाला था। पोरबंदर के निकट विसवडा में स्थित यह स्थान द्वारका से लगभग ७५ की.मी पर है।

मूल द्वारका का मंदिर परिसर
मूल द्वारका का मंदिर परिसर

यहाँ आपको एक छोटा मंदिर परिसर देखने मिलेगा। इस परिसर में भगवान् शिव को समर्पित कई मंदिर हैं जिनमें मुख्य हैं,नीलकंठ महादेव मंदिर तथा सिद्धेश्वर महादेव मंदिर। सौराष्ट्र में भगवान श्रीकृष्ण रणछोड़ राय के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्ही रणछोड़ राय का एक मंदिर भी आप यहाँ देख सकते हैं। इन मंदिरों की जिस वैशिष्ठता ने मुझे अत्यंत आकर्षित किया था, वह थी इसकी नागर शैली के अंतर्गत पञ्च-रतन उपशैली की वास्तुकला। मंदिर के भीतर भक्तों के बैठने योग्य स्थानों की भी व्यवस्था की गयी थी।

मुझे मूल द्वारका अत्यंत छोटा परिसर होते हुए भी अत्यंत शांत मंदिरों का समूह प्रतीत हुआ।

मूल द्वारका मंदिर परिसर प्रवेश द्वार
मूल द्वारका मंदिर परिसर प्रवेश द्वार

मूल द्वारका की एक और अनोखी विशेषता है, १३ वीं. शताब्दी में बनी बावड़ी, ज्ञानव्यापी। इसका नाम सुनकर आप में से कई को वाराणसी के ज्ञान वापी कुँए का स्मरण हो आया होगा। मूल द्वारका की इस बावड़ी के चारों ओर खेमे बने हुए हैं। बावडी की ओर जाते गलियारे के आलों पर मुझे ब्रम्हा, विष्णु तथा सूर्यदेव की प्रतिमाएं दिखीं। ऊपर स्थित मंडप को वाव अर्थात बावड़ी के जल से शीतल रखा जाता है।

ज्ञानव्यापी बावड़ी में विष्णु प्रतिमाएं
ज्ञानव्यापी बावड़ी में विष्णु प्रतिमाएं

बावड़ी देख मन में एक हूक सी उठी कि इस बावड़ी के रखरखाव तथा स्वच्छता में वृद्धि होनी चाहिए।

एक जानकारी आपको अवश्य दे दूँ कि सोमनाथ के समीप भी एक मूल द्वारका है। मेरे विचार से हम यह मान सकते हैं कि इन हजारों वर्षो में इस तटीय क्षेत्र के भूभाग में कई परिवर्तन आये होंगे जिसके परिणाम स्वरूप मूल द्वारका ने अपना स्थान परिवर्तित कर दिया होगा। सिक्के के दूसरी ओर देखते हुए यह भी माना जा सकता है कि भक्तों ने उन सब स्थानों पर मूल द्वारका की स्थापना की होगी जहां जहां बृज भूमि से आते श्रीकृष्ण ने पड़ाव डाले थे।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

भारत देश के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक, यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग द्वारका से लगभग १६ की.मी. दूरी पर स्थित है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम से ही एक और ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के जागेश्वर धाम में भी है। इनमें कौन सा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग असली है, मैं दृड़ता से नहीं कह सकती। चूंकि मैंने दोनों के ही दर्शन किये हैं, मैंने शान्ति से इसका नाम अपनी दर्शनार्थ ज्योतिर्लिंग सूची में से निकाल लिया है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

टी-सीरीज के गुलशन कुमार द्वारा निर्मित यह छोटा सा मंदिर अपेक्षाकृत नवीन है। मूल प्राचीन मंदिर कदाचित अत्यंत छोटा रहा होगा। लाल रंग में रंगे इस सादे मंदिर के एक ओर एक प्राचीन कुण्ड है जो उस समय कछुओं से भरा हुआ था। यद्यपि कुण्ड के जल तक पहुँचने हेतु प्राचीन सीढियाँ दिखाई दीं, किन्तु उन्हें देख कर लगा कि बहुत समय से इनका प्रयोग नहीं हुआ है। मंदिर के समीप एक पुराना वृक्ष है। इस वृक्ष ने कदाचित प्राचीन मंदिर को भी छत्रछाया प्रदान की होगी। इस मंदिर की परिक्रमा करते समय मुझे एक अद्भुत उर्जा का सुखद अनुभव हुआ।

नागेश्वर धाम पर विशाल शिव मूर्ति
नागेश्वर धाम पर विशाल शिव मूर्ति

मंदिर के बाहर भगवान् शिव की बैठी मुद्रा में एक विशालकाय मूर्ति है। इससे पूर्व मैंने ऐसी विशाल शिव मूर्ति सिक्किम राज्य के नामची क्षेत्र में स्थित चार धाम में देखी थी। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बाहर स्थित शिव की यह विशाल मूर्ति पर्यटकों को अत्यंत उत्साहित करती है क्योंकि मंदिर के भीतर छायाचित्रिकरण वर्जित होने के कारण पर्यटक अक्सर इस विशाल मूर्ति के समक्ष चित्रीकरण कर अपनी इच्छा पूर्ति करते हैं।

गोपी तलाव

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से ५ की.मी. दूर स्थित इस छोटे से तालाब से कई प्रसिद्ध किवदंतियां जुडी हुई हैं।

पीली मिट्टी लिए गोपी तालाब
पीली मिट्टी लिए गोपी तालाब

एक कथा अनुसार भगवान् कृष्ण जब वृन्दावन छोड़ द्वारका आये थे, उनके मोहपाश में बंधीं गोपियाँ उनका पीछा करने लगीं थीं। कहा जाता है कि यहीं उन्होंने कृष्ण से भेंट की तथा उनमें विलीन हो गयीं। इस तालाब की मिट्टी उन्ही गोपियों का प्रतिनिधित्व करती है। इसीलिए इस तालाब के आसपास की पीली मिट्टी अत्यंत पावन मानी जाती है। यह पावन पीली मिट्टी आप गोपी तालाब के चारों ओर कहीं भी अथवा द्वारका से भी खरीद सकते हैं।

दूसरी किवदंती के अनुसार यह वही स्थान है, जहां अर्जुन का घमंड चूर चूर हुआ था। कथाओं के अनुसार जब कृष्ण ने देह त्याग का निश्चय किया, उन्होंने अर्जुन से अपनी रानियों तथा बच्चों की रक्षा करने का आग्रह किया था। दुर्भाग्यवश काबा नामक एक स्थानीय जनजाति के सदस्यों ने रानियों तथा बच्चों पर हमला किया। कई रानियों ने स्वयं के रक्षण हेतु इसी तालाब में कूदकर प्राण त्याग दिए थे। अर्जुन ने अपने पराक्रम व गांडीव के मद में आक्रमणकारियों पर धावा बोला, किन्तु वे उन को नियंत्रित नहीं कर पाए। मुझे गोपी तलाव की भित्तियों पर इस कथा से सम्बंधित कई उत्कीर्णित छंद भी दिखाई दिये।

इस तलाव के मैंने जब दर्शन किये, यह तालाब पूर्ण रूप से सूखा हुआ था। कुछ स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि पिछले ३-४ वर्षों में अपर्याप्त वर्षा इसका मुख्य कारण है। गोपी तलाव पर आप कई विशाल, तैरने में सक्षम पत्थरों की प्रदर्शनी देख सकते हैं। द्वारका में भी सर्वत्र आप इन पत्थरों को देख सकते हैं।

गोपी तलाव पर रुक्मिणी तथा गोपीनाथ मंदिरों के अलावा अधिक कुछ देखने योग्य मुझे नहीं मिला। यह और बात है कि यह स्थल भक्तगणों की प्रसिद्ध तीर्थ यात्रा, द्वारकाधीश मंदिर, रुक्मिणी मंदिर, बेट द्वारका तथा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, इस तीर्थ सूची के अंतर्गत आता है।

सुवर्ण तीर्थ

कृष्ण सुभद्रा एवं बलभद्र सुवर्ण तीर्थ पर
कृष्ण सुभद्रा एवं बलभद्र सुवर्ण तीर्थ पर

द्वारका तथा मीठापुर के मध्य स्थित सुवर्ण तीर्थ भी मंदिरों का एक समूह है। मुख्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। जगन्नाथ रुपी भगवान् विष्णु का भी एक मंदिर इस समूह में सम्मिलित है।

और पढ़ें – मोढेरा का सूर्य मंदिर 

वहां उपस्थित पुजारीजी के मुझे बताया कि मूल प्राचीन मंदिर वर्तमान में उपस्थित मंदिर के एक कोने में स्थापित था। सूर्य देव की मौलिक मूर्ति को अंग्रेज सन १९२० में यहाँ से निकाल कर ले गए थे। वर्तमान में स्थापित सूर्य देव की मूर्ति मुझे अपेक्षाकृत नवीन तथा आधुनिक शैली में निर्मित प्रतीत हुई। खुले प्रांगण में मुझे एक श्री चक्र भी दृष्टिगोचर हुआ।

सुवर्ण तीर्थ के सम्मुख एक सूखा ताल है जो किसी काल में विशाल तालाब रहा होगा।

मीठापुर

मीठापुर और कुछ नहीं, बल्कि टाटा रसायन कारखाने के चारों ओर बसा नगर है। इस कारखाने में मुख्यतः नमक का उत्पादन होता है। यूँ तो कारखाने के भीतर जाने की अनुमति हम पर्यटकों को नहीं है, फिर भी मीठापुर नगर देख आप अचंभित हो जायेंगे। चारों ओर नमक के ढेर ही ढेर पड़े हुए हैं।

मीठापुर में नमक के पहाड़
मीठापुर में नमक के पहाड़

चारों ओर फैले नमक के ढेरों पर रंगों के उतार चड़ाव मनोरम छटा बिखेरते हैं। मैंने इन टीलों पर कई प्रकार के पक्षियों को भी मंडराते देखा। कदाचित वे अपने पोषण में नमक की कमी को पूर्ण करने के लिए यहाँ आते हैं।

द्वारका के आसपास अन्य मंदिर तथा दर्शन स्थल

इन्द्रेश्वर महादेव मंदिर जहां से अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया था। यह एक छोटा सा अत्यंत रंगबिरंगा मंदिर है जिसके मध्य में शिवलिंग स्थापित है। मूल प्राचीन मंदिर इसी मंदिर परिसर में कहीं था। इसके समीप एक गुफा भी थी जहां कथित रूप से अर्जुन ने तपस्या की थी।

इन्द्रेश्वर महादेव मंदिर
इन्द्रेश्वर महादेव मंदिर

कहा जाता है कि यहीं से समीप ही एक कुण्ड था जहां अर्जुन का सुभद्रा के साथ विवाह हुआ था। इन्द्रेश्वर मंदिर पर एक भद्र स्त्री ने हमें वहाँ पहुँचने का मार्ग भी बताया था, किन्तु हम उसे ढूंढ नहीं पाए।

ऋण मुक्तेश्वर महादेव जहां की मान्यता है कि मनुष्य अपने सर्व ऋणों से मुक्ति पा सकता है। जैसा कि नाम से विदित है, यह एक शिव मंदिर है जिसके चारों ओर कई छोटे छोटे प्राचीन मंदिर हैं।

पिंडारक जहां ऋषि दुर्वासा का गुरुकुल था। अपनी इस यात्रा में मैं इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पायी। आशा है भविष्य में यह अवसर शीघ्र प्राप्त होगा।

चरण गंगा जहां दुर्वासा ऋषि को द्वारका ले जाते समय कृष्ण ने रुक्मिणी के लिए जल स्त्रोत उत्पन्न किया था।

मेरा सदैव यह मानना है कि भारत हमें अचंभित करने में कभी नहीं चूकता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

4 COMMENTS

  1. अनुराधा जी, द्वारका के आसपास के प्राचीन तीर्थ स्थानों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता सुंदर आलेख ।प्रसिद्ध द्वारका धाम के आसपास इतने तीर्थ स्थल हैं इसकी जानकारी पहले नहीं थी । आपके पूर्व आलेख से हमें प्रसिद्ध श्री द्वारीकाधीश मंदिर के बारे में भी विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई थी और इसी आलेख से हमें हमारी द्वारका यात्रा के समय बहुत मार्गदर्शन भी मिला था । दोनो आलेखों में आपने द्वारका तथा आसपास के लगभग सारे तीर्थ स्थानों का बहुत सुंदरता से समावेश किया है ।ज्ञानवर्धक आलेख हेतू धन्यवाद !

    • जी, जब आप द्वारका जाये तो पूरा द्वारका क्षेत्र देखें. न केवल २-३ बड़े बड़े मंदिर।

  2. मीताजी और अनुराधाजी
    द्वारका और उसके आसपास का भौगोलीक, आध्यात्मिक,और वास्तवीक स्वरुपका आपने जो वर्णन किया वह सर्वोतम है. द्वारका से द्वारका बेट तक के अनेक मंदिरों का सुंदर चित्रण आपने किया है.हम भी वहां दर्शन करने गये थे पर आपने लिखे अनेक स्थलों से वंचीत रह गये. आप लेखमे इतना सुंदर वर्णन करते कि आश्चर्य होता है आपको इतनी जानकारी कैसे प्राप्त होती है और लिखने के लिये याद कैसे रहता है.सुंदर जानकारी के लिये धन्यवाद.

    • धन्यवाद चंद्रहास जी, द्वारका जाने से पहले स्कन्द पुराण का द्वारका महात्मय पढ़ा था, अधिकतर जानकारी वहीँ से मिली, बाकि के गलियों की खाक छानते मिल जाती है।

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