गोवा के सुप्रसिद्ध म्हापसा बाज़ार की सैर

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म्हापसा गोवा की चार प्रमुख नगरियों में से एक है। प्राचीन युग से यह उत्तर गोवा का व्यापार केंद्र रहा है। गोवा के निवासी अब भी म्हापसा बाज़ार पर अत्यंत मोहित रहते हैं। यहाँ तक कि म्हापसा नगरी का नाम भी म्हापसा बाज़ार से आया है जो अब इसकी पहचान बन गया है।

म्हापसा बाज़ार गोवा
म्हापसा बाज़ार गोवा

आप सब ने गोवा के मडगांव नगर के विषय में सुना ही होगा। जैसे मडगांव दक्षिण गोवा का केंद्र बिंदु है, वही स्थान उत्तर गोवा में म्हापसा का है। पणजी नगर ने गोवा एवं गोवा-वासियों के जीवन में विलंब से प्रवेश किया था। म्हापसा शब्द की व्युत्पत्ति माप शब्द से हुई है जिसका अर्थ है मापना। किसी व्यापारिक क्षेत्र का नाम इससे अधिक उपयुक्त नहीं हो सकता। व्यंगय में लोग इसे महा पिशे अर्थात महान पागलों की नगरी भी कहते हैं।

म्हापसा बाज़ार

म्हापसा एवं इसके आसपास के क्षेत्रों से लोग प्रत्येक शुक्रवार को आवश्यक वस्तुएँ क्रय करने हेतु म्हापसा बाज़ार आते हैं। लोग इस बाज़ार को अब भी शुक्रवार से जोड़कर ही देखते हैं क्योंकि प्रत्येक शुक्रवार को यहाँ पारंपरिक बाज़ार भरता था। यह और बात है कि आजकल सप्ताह के अन्य दिनों में भी म्हापसा बाज़ार उतना ही चहल-पहल एवं भीड़ भाड़ भरा होता है। सप्ताह के अन्य दिनों में भिन्न गाँवों में यह बाज़ार भरता है।

जड़ी बूटियाँ - म्हापसा बाज़ार
जड़ी बूटियाँ – म्हापसा बाज़ार

इतिहास की दृष्टि से देखें तो जो बाज़ार आज हम देखते हैं, उसका आरंभ १९६० में हुआ था। अर्थात १९६१ में प्राप्त गोवा मुक्ति से ठीक एक वर्ष पूर्व। यह गोवा का प्रथम योजनाबद्ध एवं आयोजित बाज़ार है। इसे उस काल का शॉपिंग मॉल कह सकते हैं। दुकानों की गलियों के मध्य खुले स्थान होते हैं जहां व्यापारिक वस्तुओं की लदाई व उतराई की जा सकती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान सिपाहियों द्वारा बाज़ार पर निगरानी रखने हेतु नियोजित किया गया था। दुकानों के समक्ष समानांतर जाते हुए स्तम्भ युक्त गलियारे प्रमाण हैं।

कंकना पाव
कंकना पाव

बाज़ार को इस प्रकार नियोजित किया गया है कि एक प्रकार की वस्तुएं एक ही गली में उपलब्ध हो जाती हैं। उसी प्रकार भिन्न वस्तुओं के लिए भिन्न गालियाँ नियोजित हैं। जैसे सुनारों की सभी दुकानें एक गली में स्थित हैं तो कपड़ों की दुकानें दूसरी गली में। अंतिम गली बहुधा उन वस्तुओं के लिए होती है जिन्हे आप बाज़ार के अंत में खरीदना चाहते हैं। जैसे मछली तथा उसी प्रकार की अन्य वस्तुएं।

शकुंतला की प्रतिमा

बाज़ार चौक में फव्वारे के रूप में शकुंतला की प्रतिमा है। हम सब जानते हैं कि शकुंतला उत्तराखंड के कण्वाश्रम में पली–बढ़ी है। उसका गोवा से क्या संबंध? अपने आसपास पूछताछ करिये। कदाचित आपको इसका उत्तर प्राप्त हो जाएगा।

गोवा के मसाले
गोवा के मसाले

पारंपरिक रूप से गोवा के दूर-सुदूर गांवों से यहाँ बाज़ार में बेचने के लिए अनेक प्रकार की ताजी वस्तुएं लायी जाती थीं। आज भी आप अधिकतर उसी प्रकार की वस्तुएं यहाँ देखेंगे। किन्तु समय के साथ हुए परिवर्तन की भी झलक दिखाई पड़ ही जाती है। खरीददारों के इच्छानुरूप वस्तुएं लाने का प्रयत्न व्यापारी सदैव करते हैं, फिर वह चीनी वस्तु ही क्यों ना हो।

बाज़ार में नानबाई अर्थात डबलरोटी वालों के क्षेत्र में जाना ना भूलें। यहाँ गोवा के कई डबलरोटी वाले अनेक प्रकार की ताजी डबलरोटियों के प्रकार लेकर आते हैं। जैसे पोई, काकना, उने, पाव इत्यादि। दैनिक प्रयोग के लिए कई लोग यहाँ से डबलरोटियाँ ले जाते हैं। आप देख सकते हैं कैसे डबलरोटीवाले के हाथ जल्दी जल्दी इन डबलरोटियों को समाचारपत्र में बांधते हैं। देखते हो देखते उनकी टोकरी रिक्त होने लगती है।

म्हापसा के कुम्हार
म्हापसा के कुम्हार

बाज़ार का मेरा सर्वाधिक प्रिय भाग है गोवा के कुम्हार।

बाज़ार का पिछला भाग केलों एवं टोकरियों को समर्पित है। सींक की टोकरियों को बुनने वाली अधिकतर स्त्रियाँ हैं। वे यहाँ टोकरियाँ, छोटी थैलियाँ तथा हस्त पंखे इत्यादि लाकर बेचती हैं। गोवा में विवाह के अवसर पर दो टोकरियाँ, एक पर्स तथा एक हस्त पंखे का उपहार वधू को दिया जाता है। मेरे गाइड के अनुसार यह कला इसी परंपरा के कारण अब भी जीवित है।

१९६० से पूर्व, यह बाज़ार आज के बाज़ार के समीप स्थित गलियों में भरता था। उस क्षेत्र को अब अँगोद कहा जाता है। यह शब्द कन्नड भाषा के शब्द अंगदी से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ बाज़ार है। आप जब यहाँ की दुकानों के फलक देखेंगे तो आपको पते पर यह शब्द अंकित दृष्टिगोचर होगा।

शांतादुर्गा धारगल

म्हापसा की ग्रामदेवी शांतादुर्गा हैं। अब वे धारगल में निवास करती हैं जो चापोरा नदी के उस पार, यहाँ से लगभग १४ की. मी. दूर है। गोवा में पुर्तगालियों के आक्रमण के समय उन्हे यहाँ से धारगल में स्थानांतरित किया गया था। उन्हे अब भी म्हापसा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।

शांतादुर्गा मंदिर
शांतादुर्गा मंदिर

म्हापसा के निवासी किसी भी महत्वपूर्ण अथवा नवीन कार्य आरंभ करने से पूर्व देवी का आशीर्वाद लेने वहाँ अवश्य जाते हैं। होली के समान कई उत्सवों का शुभारंभ धारगल के मंदिर में किया जाता है। तत्पश्चात लोग अपने गाँव में उत्सव मनाते हैं।

पुराने बस स्थानक के समक्ष एक गृह के भीतर एक छोटा शांतादुर्गा मंदिर आप देखेंगे। देवी को म्हापसा से धारगल स्थानांतरित करते समय उन्हे अस्थायी समय के लिए यहाँ बिठाया गया था। उनकी स्मृति में यह छोटा मंदिर बनाया गया है। जब मैं यहाँ आई थी तब यह मंदिर बंद था। किन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे भक्तगण इस मंदिर में दर्शनार्थ आते रहते हैं। कदाचित आपको दर्शन प्राप्त हो जाएँ।

म्हापसा नगरी की बाहरी सीमाओं पर चार दिशाओं में ४ देव हैं जिन्हे राष्ट्रोली कहा जाता है। लोग जब भी नगर से बाहर यात्रा पर जाते थे तब वे संबंधित मंदिर में दर्शन करते थे। जैसे दक्षिण में प्रसिद्ध बोडगेश्वर मंदिर है।

हनुमान मंदिर

आप जब बाज़ार अथवा बस स्थानक की ओर आयेंगे तो आपके समक्ष एक उजला केसरिया रंग का मंदिर दिखेगा जिसे आप चाह कर भी अनदेखा नहीं कर सकते। इस मंदिर के अधिष्ठात्र देव दक्षिणमुखी मारुति हैं। उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर है।

दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर - म्हापसा
दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर – म्हापसा

ऐसा कहा जाता है कि लगभग २०० वर्षों पूर्व इस मंदिर के स्थान पर एक दुकान थी। उस दुकान का स्वामी एक हनुमान भक्त था। उसने चंदन की लकड़ी द्वारा निर्मित हनुमान की एक मूर्ति लाकर दुकान के भीतर स्थापित की थी। चूंकि दुकान का मुख दक्षिण की ओर था, हनुमान जी की मूर्ति भी दक्षिणमुखी स्थापित हुई। जब वे हनुमानजी की पूजा अर्चना करते थे तब अन्य भक्तगण भी उनके साथ आराधना में सम्मिलित हो जाते थे। धीरे धीरे भक्तों की संख्या में वृद्धि होने लगी तथा यह दुकान मंदिर में परिवर्तित हो गई।

म्हापसा तथा स्वतंत्रता आंदोलन

गोवा की एक स्वतंत्रता सेनानी सुधाताई जोशी एक आम सभा को संबोधित करने म्हापसा आई थीं। ‘जय हिन्द’ का उद्घोष करने के अपराध में उन्हे बंदी बनाया गया था। उन पर अर्थदंड लगाकर उन्हे कारागृह में कुछ वर्षों के लिए बंद किया गया था। इस विषय में और जानकारी प्राप्त करने के लिए इस फेसबुक पन्ने पर जाइए।

मुकुंद पुण्डलिक कामत-धाकणकर एवं उनके साथियों को बैंक एवं पुलिस स्थानक लूटने का प्रयत्न करने के अपराध में अंगोला निर्वासित किया गया था। इस नगर के एक मार्ग का नामकरण उन्ही के नाम पर किया गया है। वे गोवा के पूर्व मुख्य मंत्री स्व. श्री मनोहर पार्रिकर के सगे-संबंधी भी थे।

मारुति मंदिर के समीप लगे एक सूचना पट्टिका पर बारदेज तालुका के हुतात्मा स्वतंत्रता सेनानियों के नाम अंकित हैं। म्हापसा बारदेज तालुका के अंतर्गत एक नगर है।

चाचा नेहरू बागीचा

म्हापसा की गलियों में पुरानी गाड़ियाँ
म्हापसा की गलियों में पुरानी गाड़ियाँ

मारुति मंदिर के समक्ष एक बच्चों के खेलने के लिए एक बगीचा है। बच्चों के लिए इस बगीचे का मुख्य आकर्षण है धूसर रंग की तथा हाथी के आकार की एक फिसलपट्टी। मुझे बताया गया कि स्थानीय निवासियों को इस हाथी को अखंड रखने के लिए अनेक संघर्ष करने पड़े थे।

पुस्तकालय

मारुति मंदिर से आगे बढ़ने पर आपको एक और मंदिर दिखेगा। उजले पीले रंग का यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर है।

मार्ग में आप एक प्राचीन पुस्तकालय देखेंगे। मुझे यहाँ कई दर्जी तथा आधुनिक वस्त्रों की दुकानें भी दिखीं। दवाई की एक प्रसिद्ध दुकान भी थी। किसी समय प्रसिद्ध वैद्य अपने निवासस्थान पर ही बीमार व्यक्तियों को जाँचते थे। उनमें से कुछ अब भी इस सेवा में सक्रिय हैं।

समीप ही श्वेत भित्तियों से घिरा हुआ एक चौक है जिसके मध्य में अंबेडकर की एक मूर्ति है। यह पुराना बस स्थानक था। यद्यपि बसों ने तो कुछ काल के पश्चात पदार्पण किया था, तथापि नगर से धारगल अथवा शिओली तक यात्रियों को तांगा अथवा बैलगाड़ी द्वारा ही जाना पड़ता था। उससे आगे उन्हे पैदल ही जाना पड़ता था।

इसके समीप अट्टई पुस्तकालय है जिसका नाम फादर अट्टई पर रखा गया था। फादर अट्टई पादरी नहीं थे, अपितु एक समाजसेवी थे।

स्विस चैपल

नगर के मध्य में एक छोटा श्वेत रंग का उजला चैपल है जो ईसाइयों का पूजास्थल है। इसे स्विस चैपल क्यों कहते हैं यह कोई नहीं जानता। दूर की संभावना यह हो सकती है कि इसमें स्विस वास्तुकला की कुछ झलक दिखाई पड़ती है।

स्विस चैपल म्हापसा गोवा
स्विस चैपल म्हापसा गोवा

कुछ आगे जाने पर अलंकार सिनेमगृह है जो अब निष्क्रिय है। इस पर बाहुबली चलचित्र का विज्ञापन अब भी चिपका हुआ है जो इस सिनेमगृह में दिखाई जाने वाली अंतिम फिल्म थी। इसके बाहर छोटी छोटी गुमटियाँ हैं जो संध्या ७ बजे के पश्चात खुलती हैं। और तब यह स्थान अत्यंत क्रियाशील एवं गुंजायमान हो जाता है। यह म्हापसा का रात्रि का स्ट्रीट फूड बाज़ार बन जाता है। यहाँ एक बप्पा गुमटी है जो विशेषतः इसलिए प्रसिद्ध है कि गोवा के पूर्व मुख्य मंत्री स्व. श्री मनोहर पार्रिकर यहाँ कई बार आते थे। उन्होंने अनेक बार यहाँ अपने साथियों के साथ पार्टी बैठकें भी आयोजित की थीं तथा राजनैतिक विचार विमर्ष किया था। यह स्थान मीठे पेय के लिए प्रसिद्ध है।

गोवा के घर
गोवा के घर

आसपास सैर करते हुए कुछ समय बिताईए। लेटराइट पत्थर द्वारा निर्मित कुछ निवास अत्यंत मनमोहक हैं तो कुछ जर्जर स्थिति में भी हैं।

खाने-पीने के कुछ प्रसिद्ध स्थल

बाबाजी कैफै – मारुति मंदिर के एक ओर स्थित है। लिमसी यहाँ का प्रसिद्ध पुदीना डला नींबू शिकंजी है। यह कैफै नगर के युवाओं की मनपसंद बैठक है।

वृंदावन – यह प्रथम अल्पाहारगृह है जहां इडली बनाने का यंत्र लाया गया था। इस तथ्य ने इस अल्पाहारगृह को प्रसिद्धि दिलाई थी। कहा जाता है कि लोग यहाँ विशेष रूप से यह देखने आते थे कि यह यंत्र कैसा दिखता है। इसे देख यह विश्वास होता है कि एक बार पाई प्रसिद्धि आप के साथ सदैव रह सकती है।

ले जार्डिन –  एक समय यह नगर का बड़ा भोजनालय था।

म्हापसा बाज़ार यात्रा सुझाव

पणजी तथा मडगाव से म्हापसा तक सार्वजनिक परिवहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।

खाने-पीने की उत्तम सुविधाएं उपलब्ध हैं। कुछ के नाम उपरोक्त उल्लेख किए गए हैं।

म्हापसा के साथ आप पास के कुछ अन्य गाँव भी घूम सकते हैं, जैसे मोइरा, अलदोना, असागाव तथा अंजुना

ठहरने के लिए भी अनेक उत्तम सुविधाएं उपलब्ध हैं। गोवा पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित म्हापसा रेज़िडन्सी भी उनमें से एक है।

म्हापसा बाज़ार में विशेषतः शुक्रवार के दिन बहुत लोग आते हैं। इसीलिए इस बाज़ार को शुक्रवार बाज़ार अथवा फ्राइडे मार्केट भी कहा जाता है। आजकल यह बाजार सप्ताह के सभी दिन ग्राहकों एवं विक्रेताओं की चहल-पहल से भरा रहता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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